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Home ताज़ा समाचार

बंगाल : ट्रांसजेंडरों के लिए सामान्य श्रेणी के तहत नौकरियों के फैसले को मिलेगी कानूनी चुनौती

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December 3, 2022
in ताज़ा समाचार
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बंगाल : ट्रांसजेंडरों के लिए सामान्य श्रेणी के तहत नौकरियों के फैसले को मिलेगी कानूनी चुनौती
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कोलकाता, 3 दिसंबर (आईएएनएस)। ट्रांसजेंडर समुदाय के लोगों को सामान्य श्रेणी के तहत राज्य सरकार की नौकरियों के लिए आवेदन करने की अनुमति देने का पश्चिम बंगाल सरकार का हालिया फैसला कानूनी चुनौतियों का सामना करने के लिए तैयार है, क्योंकि ट्रांसजेंडर अधिकार आंदोलन ने इस मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले के उल्लंघन के रूप में फैसले को चुनौती देने के लिए कलकत्ता उच्च न्यायालय का रुख करने का फैसला किया है।

पश्चिम बंगाल ट्रांसजेंडर डेवलपमेंट बोर्ड की पूर्व सदस्य और राज्य में ट्रांसजेंडर अधिकारों के आंदोलन के सबसे लोकप्रिय चेहरों में से एक रंजीता सिन्हा ने आईएएनएस को बताया कि राज्य सरकार द्वारा सामान्य श्रेणी के तहत राज्य सरकार की नौकरियों के लिए आवेदन करने की अनुमति देने का राज्य सरकार का निर्णय शीर्ष अदालत के 2014 के फैसले का स्पष्ट उल्लंघन है, जिसने शिक्षा और रोजगार के क्षेत्र में थर्ड जेंडर के लोगों के लिए आरक्षण का आदेश दिया था।

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उन्होंने कहा, सुप्रीम कोर्ट के आदेश की भावना के बाद कर्नाटक, केरल और महाराष्ट्र सहित कई राज्यों ने राज्य सरकार की नौकरियों की कुछ श्रेणियों में समुदाय के लिए आरक्षण पेश किया। ऐसी स्थिति में पश्चिम बंगाल सरकार का ट्रांसजेंडर समुदाय के लोगों को सामान्य श्रेणी के तहत राज्य सरकार की नौकरियों के लिए आवेदन करने की अनुमति देना शीर्ष अदालत के फैसले की भावना के खिलाफ है। इसलिए हमने इस कदम के खिलाफ कलकत्ता उच्च न्यायालय जाने का फैसला किया है और जैसे कुछ अन्य राज्य सरकारों ने आरक्षण दिया है वैसे ही आरक्षण देने की मांग की है।

यहां तक कि कुछ प्रतिष्ठित कानूनी जानकारों ने भी इस मुद्दे पर सिन्हा के विचारों का समर्थन किया। कलकत्ता उच्च न्यायालय के वरिष्ठ अधिवक्ता और सीपीआई (एम) के राज्यसभा सदस्य बिकाश रंजन भट्टाचार्य के अनुसार, आरक्षण के प्रावधान के बिना, सामान्य श्रेणी के तहत नौकरियां वास्तव में ट्रांसजेंडर समुदाय से संबंधित लोगों की मदद नहीं करती हैं, जो वर्षो से अपने वैध अधिकारों से वंचित हैं।

भट्टाचार्य ने कहा, इसलिए एक तरह से पश्चिम बंगाल सरकार का फैसला सुप्रीम कोर्ट के फैसले की भावना के खिलाफ है और अगर समुदाय के लोग इस फैसले को अदालत में चुनौती देते हैं तो यह उचित है।

कलकत्ता उच्च न्यायालय के वरिष्ठ वकील कौशिक गुप्ता ने कहा कि यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि राज्य की कार्यकारी मशीनरी ने सुप्रीम कोर्ट के आदेश की भावना को दरकिनार करने के लिए कानूनी प्रावधानों को तोड़-मरोड़ कर पेश किया है।

हालांकि, चंद्रिमा भट्टाचार्य और मानस भुइयां जैसे राज्य मंत्रियों के अपने तर्क हैं। उनके अनुसार, ट्रांसजेंडर समुदाय को सामान्य श्रेणी के तहत आवेदन करने का यानी समान अधिकार देने का निर्णय ट्रांसजेंडर व्यक्तियों (अधिकारों का संरक्षण) अधिनियम, 2019 के प्रावधानों के अनुसार है, जो ट्रांसजेंडर व्यक्तियों के अधिकारों के संरक्षण और उनके कल्याण और उससे जुड़े मामलों के प्रावधानों की बात करता है।

–आईएएनएस

केसी/एसजीके

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कोलकाता, 3 दिसंबर (आईएएनएस)। ट्रांसजेंडर समुदाय के लोगों को सामान्य श्रेणी के तहत राज्य सरकार की नौकरियों के लिए आवेदन करने की अनुमति देने का पश्चिम बंगाल सरकार का हालिया फैसला कानूनी चुनौतियों का सामना करने के लिए तैयार है, क्योंकि ट्रांसजेंडर अधिकार आंदोलन ने इस मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले के उल्लंघन के रूप में फैसले को चुनौती देने के लिए कलकत्ता उच्च न्यायालय का रुख करने का फैसला किया है।

पश्चिम बंगाल ट्रांसजेंडर डेवलपमेंट बोर्ड की पूर्व सदस्य और राज्य में ट्रांसजेंडर अधिकारों के आंदोलन के सबसे लोकप्रिय चेहरों में से एक रंजीता सिन्हा ने आईएएनएस को बताया कि राज्य सरकार द्वारा सामान्य श्रेणी के तहत राज्य सरकार की नौकरियों के लिए आवेदन करने की अनुमति देने का राज्य सरकार का निर्णय शीर्ष अदालत के 2014 के फैसले का स्पष्ट उल्लंघन है, जिसने शिक्षा और रोजगार के क्षेत्र में थर्ड जेंडर के लोगों के लिए आरक्षण का आदेश दिया था।

उन्होंने कहा, सुप्रीम कोर्ट के आदेश की भावना के बाद कर्नाटक, केरल और महाराष्ट्र सहित कई राज्यों ने राज्य सरकार की नौकरियों की कुछ श्रेणियों में समुदाय के लिए आरक्षण पेश किया। ऐसी स्थिति में पश्चिम बंगाल सरकार का ट्रांसजेंडर समुदाय के लोगों को सामान्य श्रेणी के तहत राज्य सरकार की नौकरियों के लिए आवेदन करने की अनुमति देना शीर्ष अदालत के फैसले की भावना के खिलाफ है। इसलिए हमने इस कदम के खिलाफ कलकत्ता उच्च न्यायालय जाने का फैसला किया है और जैसे कुछ अन्य राज्य सरकारों ने आरक्षण दिया है वैसे ही आरक्षण देने की मांग की है।

यहां तक कि कुछ प्रतिष्ठित कानूनी जानकारों ने भी इस मुद्दे पर सिन्हा के विचारों का समर्थन किया। कलकत्ता उच्च न्यायालय के वरिष्ठ अधिवक्ता और सीपीआई (एम) के राज्यसभा सदस्य बिकाश रंजन भट्टाचार्य के अनुसार, आरक्षण के प्रावधान के बिना, सामान्य श्रेणी के तहत नौकरियां वास्तव में ट्रांसजेंडर समुदाय से संबंधित लोगों की मदद नहीं करती हैं, जो वर्षो से अपने वैध अधिकारों से वंचित हैं।

भट्टाचार्य ने कहा, इसलिए एक तरह से पश्चिम बंगाल सरकार का फैसला सुप्रीम कोर्ट के फैसले की भावना के खिलाफ है और अगर समुदाय के लोग इस फैसले को अदालत में चुनौती देते हैं तो यह उचित है।

कलकत्ता उच्च न्यायालय के वरिष्ठ वकील कौशिक गुप्ता ने कहा कि यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि राज्य की कार्यकारी मशीनरी ने सुप्रीम कोर्ट के आदेश की भावना को दरकिनार करने के लिए कानूनी प्रावधानों को तोड़-मरोड़ कर पेश किया है।

हालांकि, चंद्रिमा भट्टाचार्य और मानस भुइयां जैसे राज्य मंत्रियों के अपने तर्क हैं। उनके अनुसार, ट्रांसजेंडर समुदाय को सामान्य श्रेणी के तहत आवेदन करने का यानी समान अधिकार देने का निर्णय ट्रांसजेंडर व्यक्तियों (अधिकारों का संरक्षण) अधिनियम, 2019 के प्रावधानों के अनुसार है, जो ट्रांसजेंडर व्यक्तियों के अधिकारों के संरक्षण और उनके कल्याण और उससे जुड़े मामलों के प्रावधानों की बात करता है।

–आईएएनएस

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कोलकाता, 3 दिसंबर (आईएएनएस)। ट्रांसजेंडर समुदाय के लोगों को सामान्य श्रेणी के तहत राज्य सरकार की नौकरियों के लिए आवेदन करने की अनुमति देने का पश्चिम बंगाल सरकार का हालिया फैसला कानूनी चुनौतियों का सामना करने के लिए तैयार है, क्योंकि ट्रांसजेंडर अधिकार आंदोलन ने इस मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले के उल्लंघन के रूप में फैसले को चुनौती देने के लिए कलकत्ता उच्च न्यायालय का रुख करने का फैसला किया है।

पश्चिम बंगाल ट्रांसजेंडर डेवलपमेंट बोर्ड की पूर्व सदस्य और राज्य में ट्रांसजेंडर अधिकारों के आंदोलन के सबसे लोकप्रिय चेहरों में से एक रंजीता सिन्हा ने आईएएनएस को बताया कि राज्य सरकार द्वारा सामान्य श्रेणी के तहत राज्य सरकार की नौकरियों के लिए आवेदन करने की अनुमति देने का राज्य सरकार का निर्णय शीर्ष अदालत के 2014 के फैसले का स्पष्ट उल्लंघन है, जिसने शिक्षा और रोजगार के क्षेत्र में थर्ड जेंडर के लोगों के लिए आरक्षण का आदेश दिया था।

उन्होंने कहा, सुप्रीम कोर्ट के आदेश की भावना के बाद कर्नाटक, केरल और महाराष्ट्र सहित कई राज्यों ने राज्य सरकार की नौकरियों की कुछ श्रेणियों में समुदाय के लिए आरक्षण पेश किया। ऐसी स्थिति में पश्चिम बंगाल सरकार का ट्रांसजेंडर समुदाय के लोगों को सामान्य श्रेणी के तहत राज्य सरकार की नौकरियों के लिए आवेदन करने की अनुमति देना शीर्ष अदालत के फैसले की भावना के खिलाफ है। इसलिए हमने इस कदम के खिलाफ कलकत्ता उच्च न्यायालय जाने का फैसला किया है और जैसे कुछ अन्य राज्य सरकारों ने आरक्षण दिया है वैसे ही आरक्षण देने की मांग की है।

यहां तक कि कुछ प्रतिष्ठित कानूनी जानकारों ने भी इस मुद्दे पर सिन्हा के विचारों का समर्थन किया। कलकत्ता उच्च न्यायालय के वरिष्ठ अधिवक्ता और सीपीआई (एम) के राज्यसभा सदस्य बिकाश रंजन भट्टाचार्य के अनुसार, आरक्षण के प्रावधान के बिना, सामान्य श्रेणी के तहत नौकरियां वास्तव में ट्रांसजेंडर समुदाय से संबंधित लोगों की मदद नहीं करती हैं, जो वर्षो से अपने वैध अधिकारों से वंचित हैं।

भट्टाचार्य ने कहा, इसलिए एक तरह से पश्चिम बंगाल सरकार का फैसला सुप्रीम कोर्ट के फैसले की भावना के खिलाफ है और अगर समुदाय के लोग इस फैसले को अदालत में चुनौती देते हैं तो यह उचित है।

कलकत्ता उच्च न्यायालय के वरिष्ठ वकील कौशिक गुप्ता ने कहा कि यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि राज्य की कार्यकारी मशीनरी ने सुप्रीम कोर्ट के आदेश की भावना को दरकिनार करने के लिए कानूनी प्रावधानों को तोड़-मरोड़ कर पेश किया है।

हालांकि, चंद्रिमा भट्टाचार्य और मानस भुइयां जैसे राज्य मंत्रियों के अपने तर्क हैं। उनके अनुसार, ट्रांसजेंडर समुदाय को सामान्य श्रेणी के तहत आवेदन करने का यानी समान अधिकार देने का निर्णय ट्रांसजेंडर व्यक्तियों (अधिकारों का संरक्षण) अधिनियम, 2019 के प्रावधानों के अनुसार है, जो ट्रांसजेंडर व्यक्तियों के अधिकारों के संरक्षण और उनके कल्याण और उससे जुड़े मामलों के प्रावधानों की बात करता है।

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पश्चिम बंगाल ट्रांसजेंडर डेवलपमेंट बोर्ड की पूर्व सदस्य और राज्य में ट्रांसजेंडर अधिकारों के आंदोलन के सबसे लोकप्रिय चेहरों में से एक रंजीता सिन्हा ने आईएएनएस को बताया कि राज्य सरकार द्वारा सामान्य श्रेणी के तहत राज्य सरकार की नौकरियों के लिए आवेदन करने की अनुमति देने का राज्य सरकार का निर्णय शीर्ष अदालत के 2014 के फैसले का स्पष्ट उल्लंघन है, जिसने शिक्षा और रोजगार के क्षेत्र में थर्ड जेंडर के लोगों के लिए आरक्षण का आदेश दिया था।

उन्होंने कहा, सुप्रीम कोर्ट के आदेश की भावना के बाद कर्नाटक, केरल और महाराष्ट्र सहित कई राज्यों ने राज्य सरकार की नौकरियों की कुछ श्रेणियों में समुदाय के लिए आरक्षण पेश किया। ऐसी स्थिति में पश्चिम बंगाल सरकार का ट्रांसजेंडर समुदाय के लोगों को सामान्य श्रेणी के तहत राज्य सरकार की नौकरियों के लिए आवेदन करने की अनुमति देना शीर्ष अदालत के फैसले की भावना के खिलाफ है। इसलिए हमने इस कदम के खिलाफ कलकत्ता उच्च न्यायालय जाने का फैसला किया है और जैसे कुछ अन्य राज्य सरकारों ने आरक्षण दिया है वैसे ही आरक्षण देने की मांग की है।

यहां तक कि कुछ प्रतिष्ठित कानूनी जानकारों ने भी इस मुद्दे पर सिन्हा के विचारों का समर्थन किया। कलकत्ता उच्च न्यायालय के वरिष्ठ अधिवक्ता और सीपीआई (एम) के राज्यसभा सदस्य बिकाश रंजन भट्टाचार्य के अनुसार, आरक्षण के प्रावधान के बिना, सामान्य श्रेणी के तहत नौकरियां वास्तव में ट्रांसजेंडर समुदाय से संबंधित लोगों की मदद नहीं करती हैं, जो वर्षो से अपने वैध अधिकारों से वंचित हैं।

भट्टाचार्य ने कहा, इसलिए एक तरह से पश्चिम बंगाल सरकार का फैसला सुप्रीम कोर्ट के फैसले की भावना के खिलाफ है और अगर समुदाय के लोग इस फैसले को अदालत में चुनौती देते हैं तो यह उचित है।

कलकत्ता उच्च न्यायालय के वरिष्ठ वकील कौशिक गुप्ता ने कहा कि यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि राज्य की कार्यकारी मशीनरी ने सुप्रीम कोर्ट के आदेश की भावना को दरकिनार करने के लिए कानूनी प्रावधानों को तोड़-मरोड़ कर पेश किया है।

हालांकि, चंद्रिमा भट्टाचार्य और मानस भुइयां जैसे राज्य मंत्रियों के अपने तर्क हैं। उनके अनुसार, ट्रांसजेंडर समुदाय को सामान्य श्रेणी के तहत आवेदन करने का यानी समान अधिकार देने का निर्णय ट्रांसजेंडर व्यक्तियों (अधिकारों का संरक्षण) अधिनियम, 2019 के प्रावधानों के अनुसार है, जो ट्रांसजेंडर व्यक्तियों के अधिकारों के संरक्षण और उनके कल्याण और उससे जुड़े मामलों के प्रावधानों की बात करता है।

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पश्चिम बंगाल ट्रांसजेंडर डेवलपमेंट बोर्ड की पूर्व सदस्य और राज्य में ट्रांसजेंडर अधिकारों के आंदोलन के सबसे लोकप्रिय चेहरों में से एक रंजीता सिन्हा ने आईएएनएस को बताया कि राज्य सरकार द्वारा सामान्य श्रेणी के तहत राज्य सरकार की नौकरियों के लिए आवेदन करने की अनुमति देने का राज्य सरकार का निर्णय शीर्ष अदालत के 2014 के फैसले का स्पष्ट उल्लंघन है, जिसने शिक्षा और रोजगार के क्षेत्र में थर्ड जेंडर के लोगों के लिए आरक्षण का आदेश दिया था।

उन्होंने कहा, सुप्रीम कोर्ट के आदेश की भावना के बाद कर्नाटक, केरल और महाराष्ट्र सहित कई राज्यों ने राज्य सरकार की नौकरियों की कुछ श्रेणियों में समुदाय के लिए आरक्षण पेश किया। ऐसी स्थिति में पश्चिम बंगाल सरकार का ट्रांसजेंडर समुदाय के लोगों को सामान्य श्रेणी के तहत राज्य सरकार की नौकरियों के लिए आवेदन करने की अनुमति देना शीर्ष अदालत के फैसले की भावना के खिलाफ है। इसलिए हमने इस कदम के खिलाफ कलकत्ता उच्च न्यायालय जाने का फैसला किया है और जैसे कुछ अन्य राज्य सरकारों ने आरक्षण दिया है वैसे ही आरक्षण देने की मांग की है।

यहां तक कि कुछ प्रतिष्ठित कानूनी जानकारों ने भी इस मुद्दे पर सिन्हा के विचारों का समर्थन किया। कलकत्ता उच्च न्यायालय के वरिष्ठ अधिवक्ता और सीपीआई (एम) के राज्यसभा सदस्य बिकाश रंजन भट्टाचार्य के अनुसार, आरक्षण के प्रावधान के बिना, सामान्य श्रेणी के तहत नौकरियां वास्तव में ट्रांसजेंडर समुदाय से संबंधित लोगों की मदद नहीं करती हैं, जो वर्षो से अपने वैध अधिकारों से वंचित हैं।

भट्टाचार्य ने कहा, इसलिए एक तरह से पश्चिम बंगाल सरकार का फैसला सुप्रीम कोर्ट के फैसले की भावना के खिलाफ है और अगर समुदाय के लोग इस फैसले को अदालत में चुनौती देते हैं तो यह उचित है।

कलकत्ता उच्च न्यायालय के वरिष्ठ वकील कौशिक गुप्ता ने कहा कि यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि राज्य की कार्यकारी मशीनरी ने सुप्रीम कोर्ट के आदेश की भावना को दरकिनार करने के लिए कानूनी प्रावधानों को तोड़-मरोड़ कर पेश किया है।

हालांकि, चंद्रिमा भट्टाचार्य और मानस भुइयां जैसे राज्य मंत्रियों के अपने तर्क हैं। उनके अनुसार, ट्रांसजेंडर समुदाय को सामान्य श्रेणी के तहत आवेदन करने का यानी समान अधिकार देने का निर्णय ट्रांसजेंडर व्यक्तियों (अधिकारों का संरक्षण) अधिनियम, 2019 के प्रावधानों के अनुसार है, जो ट्रांसजेंडर व्यक्तियों के अधिकारों के संरक्षण और उनके कल्याण और उससे जुड़े मामलों के प्रावधानों की बात करता है।

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कोलकाता, 3 दिसंबर (आईएएनएस)। ट्रांसजेंडर समुदाय के लोगों को सामान्य श्रेणी के तहत राज्य सरकार की नौकरियों के लिए आवेदन करने की अनुमति देने का पश्चिम बंगाल सरकार का हालिया फैसला कानूनी चुनौतियों का सामना करने के लिए तैयार है, क्योंकि ट्रांसजेंडर अधिकार आंदोलन ने इस मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले के उल्लंघन के रूप में फैसले को चुनौती देने के लिए कलकत्ता उच्च न्यायालय का रुख करने का फैसला किया है।

पश्चिम बंगाल ट्रांसजेंडर डेवलपमेंट बोर्ड की पूर्व सदस्य और राज्य में ट्रांसजेंडर अधिकारों के आंदोलन के सबसे लोकप्रिय चेहरों में से एक रंजीता सिन्हा ने आईएएनएस को बताया कि राज्य सरकार द्वारा सामान्य श्रेणी के तहत राज्य सरकार की नौकरियों के लिए आवेदन करने की अनुमति देने का राज्य सरकार का निर्णय शीर्ष अदालत के 2014 के फैसले का स्पष्ट उल्लंघन है, जिसने शिक्षा और रोजगार के क्षेत्र में थर्ड जेंडर के लोगों के लिए आरक्षण का आदेश दिया था।

उन्होंने कहा, सुप्रीम कोर्ट के आदेश की भावना के बाद कर्नाटक, केरल और महाराष्ट्र सहित कई राज्यों ने राज्य सरकार की नौकरियों की कुछ श्रेणियों में समुदाय के लिए आरक्षण पेश किया। ऐसी स्थिति में पश्चिम बंगाल सरकार का ट्रांसजेंडर समुदाय के लोगों को सामान्य श्रेणी के तहत राज्य सरकार की नौकरियों के लिए आवेदन करने की अनुमति देना शीर्ष अदालत के फैसले की भावना के खिलाफ है। इसलिए हमने इस कदम के खिलाफ कलकत्ता उच्च न्यायालय जाने का फैसला किया है और जैसे कुछ अन्य राज्य सरकारों ने आरक्षण दिया है वैसे ही आरक्षण देने की मांग की है।

यहां तक कि कुछ प्रतिष्ठित कानूनी जानकारों ने भी इस मुद्दे पर सिन्हा के विचारों का समर्थन किया। कलकत्ता उच्च न्यायालय के वरिष्ठ अधिवक्ता और सीपीआई (एम) के राज्यसभा सदस्य बिकाश रंजन भट्टाचार्य के अनुसार, आरक्षण के प्रावधान के बिना, सामान्य श्रेणी के तहत नौकरियां वास्तव में ट्रांसजेंडर समुदाय से संबंधित लोगों की मदद नहीं करती हैं, जो वर्षो से अपने वैध अधिकारों से वंचित हैं।

भट्टाचार्य ने कहा, इसलिए एक तरह से पश्चिम बंगाल सरकार का फैसला सुप्रीम कोर्ट के फैसले की भावना के खिलाफ है और अगर समुदाय के लोग इस फैसले को अदालत में चुनौती देते हैं तो यह उचित है।

कलकत्ता उच्च न्यायालय के वरिष्ठ वकील कौशिक गुप्ता ने कहा कि यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि राज्य की कार्यकारी मशीनरी ने सुप्रीम कोर्ट के आदेश की भावना को दरकिनार करने के लिए कानूनी प्रावधानों को तोड़-मरोड़ कर पेश किया है।

हालांकि, चंद्रिमा भट्टाचार्य और मानस भुइयां जैसे राज्य मंत्रियों के अपने तर्क हैं। उनके अनुसार, ट्रांसजेंडर समुदाय को सामान्य श्रेणी के तहत आवेदन करने का यानी समान अधिकार देने का निर्णय ट्रांसजेंडर व्यक्तियों (अधिकारों का संरक्षण) अधिनियम, 2019 के प्रावधानों के अनुसार है, जो ट्रांसजेंडर व्यक्तियों के अधिकारों के संरक्षण और उनके कल्याण और उससे जुड़े मामलों के प्रावधानों की बात करता है।

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कोलकाता, 3 दिसंबर (आईएएनएस)। ट्रांसजेंडर समुदाय के लोगों को सामान्य श्रेणी के तहत राज्य सरकार की नौकरियों के लिए आवेदन करने की अनुमति देने का पश्चिम बंगाल सरकार का हालिया फैसला कानूनी चुनौतियों का सामना करने के लिए तैयार है, क्योंकि ट्रांसजेंडर अधिकार आंदोलन ने इस मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले के उल्लंघन के रूप में फैसले को चुनौती देने के लिए कलकत्ता उच्च न्यायालय का रुख करने का फैसला किया है।

पश्चिम बंगाल ट्रांसजेंडर डेवलपमेंट बोर्ड की पूर्व सदस्य और राज्य में ट्रांसजेंडर अधिकारों के आंदोलन के सबसे लोकप्रिय चेहरों में से एक रंजीता सिन्हा ने आईएएनएस को बताया कि राज्य सरकार द्वारा सामान्य श्रेणी के तहत राज्य सरकार की नौकरियों के लिए आवेदन करने की अनुमति देने का राज्य सरकार का निर्णय शीर्ष अदालत के 2014 के फैसले का स्पष्ट उल्लंघन है, जिसने शिक्षा और रोजगार के क्षेत्र में थर्ड जेंडर के लोगों के लिए आरक्षण का आदेश दिया था।

उन्होंने कहा, सुप्रीम कोर्ट के आदेश की भावना के बाद कर्नाटक, केरल और महाराष्ट्र सहित कई राज्यों ने राज्य सरकार की नौकरियों की कुछ श्रेणियों में समुदाय के लिए आरक्षण पेश किया। ऐसी स्थिति में पश्चिम बंगाल सरकार का ट्रांसजेंडर समुदाय के लोगों को सामान्य श्रेणी के तहत राज्य सरकार की नौकरियों के लिए आवेदन करने की अनुमति देना शीर्ष अदालत के फैसले की भावना के खिलाफ है। इसलिए हमने इस कदम के खिलाफ कलकत्ता उच्च न्यायालय जाने का फैसला किया है और जैसे कुछ अन्य राज्य सरकारों ने आरक्षण दिया है वैसे ही आरक्षण देने की मांग की है।

यहां तक कि कुछ प्रतिष्ठित कानूनी जानकारों ने भी इस मुद्दे पर सिन्हा के विचारों का समर्थन किया। कलकत्ता उच्च न्यायालय के वरिष्ठ अधिवक्ता और सीपीआई (एम) के राज्यसभा सदस्य बिकाश रंजन भट्टाचार्य के अनुसार, आरक्षण के प्रावधान के बिना, सामान्य श्रेणी के तहत नौकरियां वास्तव में ट्रांसजेंडर समुदाय से संबंधित लोगों की मदद नहीं करती हैं, जो वर्षो से अपने वैध अधिकारों से वंचित हैं।

भट्टाचार्य ने कहा, इसलिए एक तरह से पश्चिम बंगाल सरकार का फैसला सुप्रीम कोर्ट के फैसले की भावना के खिलाफ है और अगर समुदाय के लोग इस फैसले को अदालत में चुनौती देते हैं तो यह उचित है।

कलकत्ता उच्च न्यायालय के वरिष्ठ वकील कौशिक गुप्ता ने कहा कि यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि राज्य की कार्यकारी मशीनरी ने सुप्रीम कोर्ट के आदेश की भावना को दरकिनार करने के लिए कानूनी प्रावधानों को तोड़-मरोड़ कर पेश किया है।

हालांकि, चंद्रिमा भट्टाचार्य और मानस भुइयां जैसे राज्य मंत्रियों के अपने तर्क हैं। उनके अनुसार, ट्रांसजेंडर समुदाय को सामान्य श्रेणी के तहत आवेदन करने का यानी समान अधिकार देने का निर्णय ट्रांसजेंडर व्यक्तियों (अधिकारों का संरक्षण) अधिनियम, 2019 के प्रावधानों के अनुसार है, जो ट्रांसजेंडर व्यक्तियों के अधिकारों के संरक्षण और उनके कल्याण और उससे जुड़े मामलों के प्रावधानों की बात करता है।

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पश्चिम बंगाल ट्रांसजेंडर डेवलपमेंट बोर्ड की पूर्व सदस्य और राज्य में ट्रांसजेंडर अधिकारों के आंदोलन के सबसे लोकप्रिय चेहरों में से एक रंजीता सिन्हा ने आईएएनएस को बताया कि राज्य सरकार द्वारा सामान्य श्रेणी के तहत राज्य सरकार की नौकरियों के लिए आवेदन करने की अनुमति देने का राज्य सरकार का निर्णय शीर्ष अदालत के 2014 के फैसले का स्पष्ट उल्लंघन है, जिसने शिक्षा और रोजगार के क्षेत्र में थर्ड जेंडर के लोगों के लिए आरक्षण का आदेश दिया था।

उन्होंने कहा, सुप्रीम कोर्ट के आदेश की भावना के बाद कर्नाटक, केरल और महाराष्ट्र सहित कई राज्यों ने राज्य सरकार की नौकरियों की कुछ श्रेणियों में समुदाय के लिए आरक्षण पेश किया। ऐसी स्थिति में पश्चिम बंगाल सरकार का ट्रांसजेंडर समुदाय के लोगों को सामान्य श्रेणी के तहत राज्य सरकार की नौकरियों के लिए आवेदन करने की अनुमति देना शीर्ष अदालत के फैसले की भावना के खिलाफ है। इसलिए हमने इस कदम के खिलाफ कलकत्ता उच्च न्यायालय जाने का फैसला किया है और जैसे कुछ अन्य राज्य सरकारों ने आरक्षण दिया है वैसे ही आरक्षण देने की मांग की है।

यहां तक कि कुछ प्रतिष्ठित कानूनी जानकारों ने भी इस मुद्दे पर सिन्हा के विचारों का समर्थन किया। कलकत्ता उच्च न्यायालय के वरिष्ठ अधिवक्ता और सीपीआई (एम) के राज्यसभा सदस्य बिकाश रंजन भट्टाचार्य के अनुसार, आरक्षण के प्रावधान के बिना, सामान्य श्रेणी के तहत नौकरियां वास्तव में ट्रांसजेंडर समुदाय से संबंधित लोगों की मदद नहीं करती हैं, जो वर्षो से अपने वैध अधिकारों से वंचित हैं।

भट्टाचार्य ने कहा, इसलिए एक तरह से पश्चिम बंगाल सरकार का फैसला सुप्रीम कोर्ट के फैसले की भावना के खिलाफ है और अगर समुदाय के लोग इस फैसले को अदालत में चुनौती देते हैं तो यह उचित है।

कलकत्ता उच्च न्यायालय के वरिष्ठ वकील कौशिक गुप्ता ने कहा कि यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि राज्य की कार्यकारी मशीनरी ने सुप्रीम कोर्ट के आदेश की भावना को दरकिनार करने के लिए कानूनी प्रावधानों को तोड़-मरोड़ कर पेश किया है।

हालांकि, चंद्रिमा भट्टाचार्य और मानस भुइयां जैसे राज्य मंत्रियों के अपने तर्क हैं। उनके अनुसार, ट्रांसजेंडर समुदाय को सामान्य श्रेणी के तहत आवेदन करने का यानी समान अधिकार देने का निर्णय ट्रांसजेंडर व्यक्तियों (अधिकारों का संरक्षण) अधिनियम, 2019 के प्रावधानों के अनुसार है, जो ट्रांसजेंडर व्यक्तियों के अधिकारों के संरक्षण और उनके कल्याण और उससे जुड़े मामलों के प्रावधानों की बात करता है।

–आईएएनएस

केसी/एसजीके

कोलकाता, 3 दिसंबर (आईएएनएस)। ट्रांसजेंडर समुदाय के लोगों को सामान्य श्रेणी के तहत राज्य सरकार की नौकरियों के लिए आवेदन करने की अनुमति देने का पश्चिम बंगाल सरकार का हालिया फैसला कानूनी चुनौतियों का सामना करने के लिए तैयार है, क्योंकि ट्रांसजेंडर अधिकार आंदोलन ने इस मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले के उल्लंघन के रूप में फैसले को चुनौती देने के लिए कलकत्ता उच्च न्यायालय का रुख करने का फैसला किया है।

पश्चिम बंगाल ट्रांसजेंडर डेवलपमेंट बोर्ड की पूर्व सदस्य और राज्य में ट्रांसजेंडर अधिकारों के आंदोलन के सबसे लोकप्रिय चेहरों में से एक रंजीता सिन्हा ने आईएएनएस को बताया कि राज्य सरकार द्वारा सामान्य श्रेणी के तहत राज्य सरकार की नौकरियों के लिए आवेदन करने की अनुमति देने का राज्य सरकार का निर्णय शीर्ष अदालत के 2014 के फैसले का स्पष्ट उल्लंघन है, जिसने शिक्षा और रोजगार के क्षेत्र में थर्ड जेंडर के लोगों के लिए आरक्षण का आदेश दिया था।

उन्होंने कहा, सुप्रीम कोर्ट के आदेश की भावना के बाद कर्नाटक, केरल और महाराष्ट्र सहित कई राज्यों ने राज्य सरकार की नौकरियों की कुछ श्रेणियों में समुदाय के लिए आरक्षण पेश किया। ऐसी स्थिति में पश्चिम बंगाल सरकार का ट्रांसजेंडर समुदाय के लोगों को सामान्य श्रेणी के तहत राज्य सरकार की नौकरियों के लिए आवेदन करने की अनुमति देना शीर्ष अदालत के फैसले की भावना के खिलाफ है। इसलिए हमने इस कदम के खिलाफ कलकत्ता उच्च न्यायालय जाने का फैसला किया है और जैसे कुछ अन्य राज्य सरकारों ने आरक्षण दिया है वैसे ही आरक्षण देने की मांग की है।

यहां तक कि कुछ प्रतिष्ठित कानूनी जानकारों ने भी इस मुद्दे पर सिन्हा के विचारों का समर्थन किया। कलकत्ता उच्च न्यायालय के वरिष्ठ अधिवक्ता और सीपीआई (एम) के राज्यसभा सदस्य बिकाश रंजन भट्टाचार्य के अनुसार, आरक्षण के प्रावधान के बिना, सामान्य श्रेणी के तहत नौकरियां वास्तव में ट्रांसजेंडर समुदाय से संबंधित लोगों की मदद नहीं करती हैं, जो वर्षो से अपने वैध अधिकारों से वंचित हैं।

भट्टाचार्य ने कहा, इसलिए एक तरह से पश्चिम बंगाल सरकार का फैसला सुप्रीम कोर्ट के फैसले की भावना के खिलाफ है और अगर समुदाय के लोग इस फैसले को अदालत में चुनौती देते हैं तो यह उचित है।

कलकत्ता उच्च न्यायालय के वरिष्ठ वकील कौशिक गुप्ता ने कहा कि यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि राज्य की कार्यकारी मशीनरी ने सुप्रीम कोर्ट के आदेश की भावना को दरकिनार करने के लिए कानूनी प्रावधानों को तोड़-मरोड़ कर पेश किया है।

हालांकि, चंद्रिमा भट्टाचार्य और मानस भुइयां जैसे राज्य मंत्रियों के अपने तर्क हैं। उनके अनुसार, ट्रांसजेंडर समुदाय को सामान्य श्रेणी के तहत आवेदन करने का यानी समान अधिकार देने का निर्णय ट्रांसजेंडर व्यक्तियों (अधिकारों का संरक्षण) अधिनियम, 2019 के प्रावधानों के अनुसार है, जो ट्रांसजेंडर व्यक्तियों के अधिकारों के संरक्षण और उनके कल्याण और उससे जुड़े मामलों के प्रावधानों की बात करता है।

–आईएएनएस

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कोलकाता, 3 दिसंबर (आईएएनएस)। ट्रांसजेंडर समुदाय के लोगों को सामान्य श्रेणी के तहत राज्य सरकार की नौकरियों के लिए आवेदन करने की अनुमति देने का पश्चिम बंगाल सरकार का हालिया फैसला कानूनी चुनौतियों का सामना करने के लिए तैयार है, क्योंकि ट्रांसजेंडर अधिकार आंदोलन ने इस मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले के उल्लंघन के रूप में फैसले को चुनौती देने के लिए कलकत्ता उच्च न्यायालय का रुख करने का फैसला किया है।

पश्चिम बंगाल ट्रांसजेंडर डेवलपमेंट बोर्ड की पूर्व सदस्य और राज्य में ट्रांसजेंडर अधिकारों के आंदोलन के सबसे लोकप्रिय चेहरों में से एक रंजीता सिन्हा ने आईएएनएस को बताया कि राज्य सरकार द्वारा सामान्य श्रेणी के तहत राज्य सरकार की नौकरियों के लिए आवेदन करने की अनुमति देने का राज्य सरकार का निर्णय शीर्ष अदालत के 2014 के फैसले का स्पष्ट उल्लंघन है, जिसने शिक्षा और रोजगार के क्षेत्र में थर्ड जेंडर के लोगों के लिए आरक्षण का आदेश दिया था।

उन्होंने कहा, सुप्रीम कोर्ट के आदेश की भावना के बाद कर्नाटक, केरल और महाराष्ट्र सहित कई राज्यों ने राज्य सरकार की नौकरियों की कुछ श्रेणियों में समुदाय के लिए आरक्षण पेश किया। ऐसी स्थिति में पश्चिम बंगाल सरकार का ट्रांसजेंडर समुदाय के लोगों को सामान्य श्रेणी के तहत राज्य सरकार की नौकरियों के लिए आवेदन करने की अनुमति देना शीर्ष अदालत के फैसले की भावना के खिलाफ है। इसलिए हमने इस कदम के खिलाफ कलकत्ता उच्च न्यायालय जाने का फैसला किया है और जैसे कुछ अन्य राज्य सरकारों ने आरक्षण दिया है वैसे ही आरक्षण देने की मांग की है।

यहां तक कि कुछ प्रतिष्ठित कानूनी जानकारों ने भी इस मुद्दे पर सिन्हा के विचारों का समर्थन किया। कलकत्ता उच्च न्यायालय के वरिष्ठ अधिवक्ता और सीपीआई (एम) के राज्यसभा सदस्य बिकाश रंजन भट्टाचार्य के अनुसार, आरक्षण के प्रावधान के बिना, सामान्य श्रेणी के तहत नौकरियां वास्तव में ट्रांसजेंडर समुदाय से संबंधित लोगों की मदद नहीं करती हैं, जो वर्षो से अपने वैध अधिकारों से वंचित हैं।

भट्टाचार्य ने कहा, इसलिए एक तरह से पश्चिम बंगाल सरकार का फैसला सुप्रीम कोर्ट के फैसले की भावना के खिलाफ है और अगर समुदाय के लोग इस फैसले को अदालत में चुनौती देते हैं तो यह उचित है।

कलकत्ता उच्च न्यायालय के वरिष्ठ वकील कौशिक गुप्ता ने कहा कि यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि राज्य की कार्यकारी मशीनरी ने सुप्रीम कोर्ट के आदेश की भावना को दरकिनार करने के लिए कानूनी प्रावधानों को तोड़-मरोड़ कर पेश किया है।

हालांकि, चंद्रिमा भट्टाचार्य और मानस भुइयां जैसे राज्य मंत्रियों के अपने तर्क हैं। उनके अनुसार, ट्रांसजेंडर समुदाय को सामान्य श्रेणी के तहत आवेदन करने का यानी समान अधिकार देने का निर्णय ट्रांसजेंडर व्यक्तियों (अधिकारों का संरक्षण) अधिनियम, 2019 के प्रावधानों के अनुसार है, जो ट्रांसजेंडर व्यक्तियों के अधिकारों के संरक्षण और उनके कल्याण और उससे जुड़े मामलों के प्रावधानों की बात करता है।

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पश्चिम बंगाल ट्रांसजेंडर डेवलपमेंट बोर्ड की पूर्व सदस्य और राज्य में ट्रांसजेंडर अधिकारों के आंदोलन के सबसे लोकप्रिय चेहरों में से एक रंजीता सिन्हा ने आईएएनएस को बताया कि राज्य सरकार द्वारा सामान्य श्रेणी के तहत राज्य सरकार की नौकरियों के लिए आवेदन करने की अनुमति देने का राज्य सरकार का निर्णय शीर्ष अदालत के 2014 के फैसले का स्पष्ट उल्लंघन है, जिसने शिक्षा और रोजगार के क्षेत्र में थर्ड जेंडर के लोगों के लिए आरक्षण का आदेश दिया था।

उन्होंने कहा, सुप्रीम कोर्ट के आदेश की भावना के बाद कर्नाटक, केरल और महाराष्ट्र सहित कई राज्यों ने राज्य सरकार की नौकरियों की कुछ श्रेणियों में समुदाय के लिए आरक्षण पेश किया। ऐसी स्थिति में पश्चिम बंगाल सरकार का ट्रांसजेंडर समुदाय के लोगों को सामान्य श्रेणी के तहत राज्य सरकार की नौकरियों के लिए आवेदन करने की अनुमति देना शीर्ष अदालत के फैसले की भावना के खिलाफ है। इसलिए हमने इस कदम के खिलाफ कलकत्ता उच्च न्यायालय जाने का फैसला किया है और जैसे कुछ अन्य राज्य सरकारों ने आरक्षण दिया है वैसे ही आरक्षण देने की मांग की है।

यहां तक कि कुछ प्रतिष्ठित कानूनी जानकारों ने भी इस मुद्दे पर सिन्हा के विचारों का समर्थन किया। कलकत्ता उच्च न्यायालय के वरिष्ठ अधिवक्ता और सीपीआई (एम) के राज्यसभा सदस्य बिकाश रंजन भट्टाचार्य के अनुसार, आरक्षण के प्रावधान के बिना, सामान्य श्रेणी के तहत नौकरियां वास्तव में ट्रांसजेंडर समुदाय से संबंधित लोगों की मदद नहीं करती हैं, जो वर्षो से अपने वैध अधिकारों से वंचित हैं।

भट्टाचार्य ने कहा, इसलिए एक तरह से पश्चिम बंगाल सरकार का फैसला सुप्रीम कोर्ट के फैसले की भावना के खिलाफ है और अगर समुदाय के लोग इस फैसले को अदालत में चुनौती देते हैं तो यह उचित है।

कलकत्ता उच्च न्यायालय के वरिष्ठ वकील कौशिक गुप्ता ने कहा कि यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि राज्य की कार्यकारी मशीनरी ने सुप्रीम कोर्ट के आदेश की भावना को दरकिनार करने के लिए कानूनी प्रावधानों को तोड़-मरोड़ कर पेश किया है।

हालांकि, चंद्रिमा भट्टाचार्य और मानस भुइयां जैसे राज्य मंत्रियों के अपने तर्क हैं। उनके अनुसार, ट्रांसजेंडर समुदाय को सामान्य श्रेणी के तहत आवेदन करने का यानी समान अधिकार देने का निर्णय ट्रांसजेंडर व्यक्तियों (अधिकारों का संरक्षण) अधिनियम, 2019 के प्रावधानों के अनुसार है, जो ट्रांसजेंडर व्यक्तियों के अधिकारों के संरक्षण और उनके कल्याण और उससे जुड़े मामलों के प्रावधानों की बात करता है।

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पश्चिम बंगाल ट्रांसजेंडर डेवलपमेंट बोर्ड की पूर्व सदस्य और राज्य में ट्रांसजेंडर अधिकारों के आंदोलन के सबसे लोकप्रिय चेहरों में से एक रंजीता सिन्हा ने आईएएनएस को बताया कि राज्य सरकार द्वारा सामान्य श्रेणी के तहत राज्य सरकार की नौकरियों के लिए आवेदन करने की अनुमति देने का राज्य सरकार का निर्णय शीर्ष अदालत के 2014 के फैसले का स्पष्ट उल्लंघन है, जिसने शिक्षा और रोजगार के क्षेत्र में थर्ड जेंडर के लोगों के लिए आरक्षण का आदेश दिया था।

उन्होंने कहा, सुप्रीम कोर्ट के आदेश की भावना के बाद कर्नाटक, केरल और महाराष्ट्र सहित कई राज्यों ने राज्य सरकार की नौकरियों की कुछ श्रेणियों में समुदाय के लिए आरक्षण पेश किया। ऐसी स्थिति में पश्चिम बंगाल सरकार का ट्रांसजेंडर समुदाय के लोगों को सामान्य श्रेणी के तहत राज्य सरकार की नौकरियों के लिए आवेदन करने की अनुमति देना शीर्ष अदालत के फैसले की भावना के खिलाफ है। इसलिए हमने इस कदम के खिलाफ कलकत्ता उच्च न्यायालय जाने का फैसला किया है और जैसे कुछ अन्य राज्य सरकारों ने आरक्षण दिया है वैसे ही आरक्षण देने की मांग की है।

यहां तक कि कुछ प्रतिष्ठित कानूनी जानकारों ने भी इस मुद्दे पर सिन्हा के विचारों का समर्थन किया। कलकत्ता उच्च न्यायालय के वरिष्ठ अधिवक्ता और सीपीआई (एम) के राज्यसभा सदस्य बिकाश रंजन भट्टाचार्य के अनुसार, आरक्षण के प्रावधान के बिना, सामान्य श्रेणी के तहत नौकरियां वास्तव में ट्रांसजेंडर समुदाय से संबंधित लोगों की मदद नहीं करती हैं, जो वर्षो से अपने वैध अधिकारों से वंचित हैं।

भट्टाचार्य ने कहा, इसलिए एक तरह से पश्चिम बंगाल सरकार का फैसला सुप्रीम कोर्ट के फैसले की भावना के खिलाफ है और अगर समुदाय के लोग इस फैसले को अदालत में चुनौती देते हैं तो यह उचित है।

कलकत्ता उच्च न्यायालय के वरिष्ठ वकील कौशिक गुप्ता ने कहा कि यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि राज्य की कार्यकारी मशीनरी ने सुप्रीम कोर्ट के आदेश की भावना को दरकिनार करने के लिए कानूनी प्रावधानों को तोड़-मरोड़ कर पेश किया है।

हालांकि, चंद्रिमा भट्टाचार्य और मानस भुइयां जैसे राज्य मंत्रियों के अपने तर्क हैं। उनके अनुसार, ट्रांसजेंडर समुदाय को सामान्य श्रेणी के तहत आवेदन करने का यानी समान अधिकार देने का निर्णय ट्रांसजेंडर व्यक्तियों (अधिकारों का संरक्षण) अधिनियम, 2019 के प्रावधानों के अनुसार है, जो ट्रांसजेंडर व्यक्तियों के अधिकारों के संरक्षण और उनके कल्याण और उससे जुड़े मामलों के प्रावधानों की बात करता है।

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पश्चिम बंगाल ट्रांसजेंडर डेवलपमेंट बोर्ड की पूर्व सदस्य और राज्य में ट्रांसजेंडर अधिकारों के आंदोलन के सबसे लोकप्रिय चेहरों में से एक रंजीता सिन्हा ने आईएएनएस को बताया कि राज्य सरकार द्वारा सामान्य श्रेणी के तहत राज्य सरकार की नौकरियों के लिए आवेदन करने की अनुमति देने का राज्य सरकार का निर्णय शीर्ष अदालत के 2014 के फैसले का स्पष्ट उल्लंघन है, जिसने शिक्षा और रोजगार के क्षेत्र में थर्ड जेंडर के लोगों के लिए आरक्षण का आदेश दिया था।

उन्होंने कहा, सुप्रीम कोर्ट के आदेश की भावना के बाद कर्नाटक, केरल और महाराष्ट्र सहित कई राज्यों ने राज्य सरकार की नौकरियों की कुछ श्रेणियों में समुदाय के लिए आरक्षण पेश किया। ऐसी स्थिति में पश्चिम बंगाल सरकार का ट्रांसजेंडर समुदाय के लोगों को सामान्य श्रेणी के तहत राज्य सरकार की नौकरियों के लिए आवेदन करने की अनुमति देना शीर्ष अदालत के फैसले की भावना के खिलाफ है। इसलिए हमने इस कदम के खिलाफ कलकत्ता उच्च न्यायालय जाने का फैसला किया है और जैसे कुछ अन्य राज्य सरकारों ने आरक्षण दिया है वैसे ही आरक्षण देने की मांग की है।

यहां तक कि कुछ प्रतिष्ठित कानूनी जानकारों ने भी इस मुद्दे पर सिन्हा के विचारों का समर्थन किया। कलकत्ता उच्च न्यायालय के वरिष्ठ अधिवक्ता और सीपीआई (एम) के राज्यसभा सदस्य बिकाश रंजन भट्टाचार्य के अनुसार, आरक्षण के प्रावधान के बिना, सामान्य श्रेणी के तहत नौकरियां वास्तव में ट्रांसजेंडर समुदाय से संबंधित लोगों की मदद नहीं करती हैं, जो वर्षो से अपने वैध अधिकारों से वंचित हैं।

भट्टाचार्य ने कहा, इसलिए एक तरह से पश्चिम बंगाल सरकार का फैसला सुप्रीम कोर्ट के फैसले की भावना के खिलाफ है और अगर समुदाय के लोग इस फैसले को अदालत में चुनौती देते हैं तो यह उचित है।

कलकत्ता उच्च न्यायालय के वरिष्ठ वकील कौशिक गुप्ता ने कहा कि यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि राज्य की कार्यकारी मशीनरी ने सुप्रीम कोर्ट के आदेश की भावना को दरकिनार करने के लिए कानूनी प्रावधानों को तोड़-मरोड़ कर पेश किया है।

हालांकि, चंद्रिमा भट्टाचार्य और मानस भुइयां जैसे राज्य मंत्रियों के अपने तर्क हैं। उनके अनुसार, ट्रांसजेंडर समुदाय को सामान्य श्रेणी के तहत आवेदन करने का यानी समान अधिकार देने का निर्णय ट्रांसजेंडर व्यक्तियों (अधिकारों का संरक्षण) अधिनियम, 2019 के प्रावधानों के अनुसार है, जो ट्रांसजेंडर व्यक्तियों के अधिकारों के संरक्षण और उनके कल्याण और उससे जुड़े मामलों के प्रावधानों की बात करता है।

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पश्चिम बंगाल ट्रांसजेंडर डेवलपमेंट बोर्ड की पूर्व सदस्य और राज्य में ट्रांसजेंडर अधिकारों के आंदोलन के सबसे लोकप्रिय चेहरों में से एक रंजीता सिन्हा ने आईएएनएस को बताया कि राज्य सरकार द्वारा सामान्य श्रेणी के तहत राज्य सरकार की नौकरियों के लिए आवेदन करने की अनुमति देने का राज्य सरकार का निर्णय शीर्ष अदालत के 2014 के फैसले का स्पष्ट उल्लंघन है, जिसने शिक्षा और रोजगार के क्षेत्र में थर्ड जेंडर के लोगों के लिए आरक्षण का आदेश दिया था।

उन्होंने कहा, सुप्रीम कोर्ट के आदेश की भावना के बाद कर्नाटक, केरल और महाराष्ट्र सहित कई राज्यों ने राज्य सरकार की नौकरियों की कुछ श्रेणियों में समुदाय के लिए आरक्षण पेश किया। ऐसी स्थिति में पश्चिम बंगाल सरकार का ट्रांसजेंडर समुदाय के लोगों को सामान्य श्रेणी के तहत राज्य सरकार की नौकरियों के लिए आवेदन करने की अनुमति देना शीर्ष अदालत के फैसले की भावना के खिलाफ है। इसलिए हमने इस कदम के खिलाफ कलकत्ता उच्च न्यायालय जाने का फैसला किया है और जैसे कुछ अन्य राज्य सरकारों ने आरक्षण दिया है वैसे ही आरक्षण देने की मांग की है।

यहां तक कि कुछ प्रतिष्ठित कानूनी जानकारों ने भी इस मुद्दे पर सिन्हा के विचारों का समर्थन किया। कलकत्ता उच्च न्यायालय के वरिष्ठ अधिवक्ता और सीपीआई (एम) के राज्यसभा सदस्य बिकाश रंजन भट्टाचार्य के अनुसार, आरक्षण के प्रावधान के बिना, सामान्य श्रेणी के तहत नौकरियां वास्तव में ट्रांसजेंडर समुदाय से संबंधित लोगों की मदद नहीं करती हैं, जो वर्षो से अपने वैध अधिकारों से वंचित हैं।

भट्टाचार्य ने कहा, इसलिए एक तरह से पश्चिम बंगाल सरकार का फैसला सुप्रीम कोर्ट के फैसले की भावना के खिलाफ है और अगर समुदाय के लोग इस फैसले को अदालत में चुनौती देते हैं तो यह उचित है।

कलकत्ता उच्च न्यायालय के वरिष्ठ वकील कौशिक गुप्ता ने कहा कि यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि राज्य की कार्यकारी मशीनरी ने सुप्रीम कोर्ट के आदेश की भावना को दरकिनार करने के लिए कानूनी प्रावधानों को तोड़-मरोड़ कर पेश किया है।

हालांकि, चंद्रिमा भट्टाचार्य और मानस भुइयां जैसे राज्य मंत्रियों के अपने तर्क हैं। उनके अनुसार, ट्रांसजेंडर समुदाय को सामान्य श्रेणी के तहत आवेदन करने का यानी समान अधिकार देने का निर्णय ट्रांसजेंडर व्यक्तियों (अधिकारों का संरक्षण) अधिनियम, 2019 के प्रावधानों के अनुसार है, जो ट्रांसजेंडर व्यक्तियों के अधिकारों के संरक्षण और उनके कल्याण और उससे जुड़े मामलों के प्रावधानों की बात करता है।

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पश्चिम बंगाल ट्रांसजेंडर डेवलपमेंट बोर्ड की पूर्व सदस्य और राज्य में ट्रांसजेंडर अधिकारों के आंदोलन के सबसे लोकप्रिय चेहरों में से एक रंजीता सिन्हा ने आईएएनएस को बताया कि राज्य सरकार द्वारा सामान्य श्रेणी के तहत राज्य सरकार की नौकरियों के लिए आवेदन करने की अनुमति देने का राज्य सरकार का निर्णय शीर्ष अदालत के 2014 के फैसले का स्पष्ट उल्लंघन है, जिसने शिक्षा और रोजगार के क्षेत्र में थर्ड जेंडर के लोगों के लिए आरक्षण का आदेश दिया था।

उन्होंने कहा, सुप्रीम कोर्ट के आदेश की भावना के बाद कर्नाटक, केरल और महाराष्ट्र सहित कई राज्यों ने राज्य सरकार की नौकरियों की कुछ श्रेणियों में समुदाय के लिए आरक्षण पेश किया। ऐसी स्थिति में पश्चिम बंगाल सरकार का ट्रांसजेंडर समुदाय के लोगों को सामान्य श्रेणी के तहत राज्य सरकार की नौकरियों के लिए आवेदन करने की अनुमति देना शीर्ष अदालत के फैसले की भावना के खिलाफ है। इसलिए हमने इस कदम के खिलाफ कलकत्ता उच्च न्यायालय जाने का फैसला किया है और जैसे कुछ अन्य राज्य सरकारों ने आरक्षण दिया है वैसे ही आरक्षण देने की मांग की है।

यहां तक कि कुछ प्रतिष्ठित कानूनी जानकारों ने भी इस मुद्दे पर सिन्हा के विचारों का समर्थन किया। कलकत्ता उच्च न्यायालय के वरिष्ठ अधिवक्ता और सीपीआई (एम) के राज्यसभा सदस्य बिकाश रंजन भट्टाचार्य के अनुसार, आरक्षण के प्रावधान के बिना, सामान्य श्रेणी के तहत नौकरियां वास्तव में ट्रांसजेंडर समुदाय से संबंधित लोगों की मदद नहीं करती हैं, जो वर्षो से अपने वैध अधिकारों से वंचित हैं।

भट्टाचार्य ने कहा, इसलिए एक तरह से पश्चिम बंगाल सरकार का फैसला सुप्रीम कोर्ट के फैसले की भावना के खिलाफ है और अगर समुदाय के लोग इस फैसले को अदालत में चुनौती देते हैं तो यह उचित है।

कलकत्ता उच्च न्यायालय के वरिष्ठ वकील कौशिक गुप्ता ने कहा कि यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि राज्य की कार्यकारी मशीनरी ने सुप्रीम कोर्ट के आदेश की भावना को दरकिनार करने के लिए कानूनी प्रावधानों को तोड़-मरोड़ कर पेश किया है।

हालांकि, चंद्रिमा भट्टाचार्य और मानस भुइयां जैसे राज्य मंत्रियों के अपने तर्क हैं। उनके अनुसार, ट्रांसजेंडर समुदाय को सामान्य श्रेणी के तहत आवेदन करने का यानी समान अधिकार देने का निर्णय ट्रांसजेंडर व्यक्तियों (अधिकारों का संरक्षण) अधिनियम, 2019 के प्रावधानों के अनुसार है, जो ट्रांसजेंडर व्यक्तियों के अधिकारों के संरक्षण और उनके कल्याण और उससे जुड़े मामलों के प्रावधानों की बात करता है।

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पश्चिम बंगाल ट्रांसजेंडर डेवलपमेंट बोर्ड की पूर्व सदस्य और राज्य में ट्रांसजेंडर अधिकारों के आंदोलन के सबसे लोकप्रिय चेहरों में से एक रंजीता सिन्हा ने आईएएनएस को बताया कि राज्य सरकार द्वारा सामान्य श्रेणी के तहत राज्य सरकार की नौकरियों के लिए आवेदन करने की अनुमति देने का राज्य सरकार का निर्णय शीर्ष अदालत के 2014 के फैसले का स्पष्ट उल्लंघन है, जिसने शिक्षा और रोजगार के क्षेत्र में थर्ड जेंडर के लोगों के लिए आरक्षण का आदेश दिया था।

उन्होंने कहा, सुप्रीम कोर्ट के आदेश की भावना के बाद कर्नाटक, केरल और महाराष्ट्र सहित कई राज्यों ने राज्य सरकार की नौकरियों की कुछ श्रेणियों में समुदाय के लिए आरक्षण पेश किया। ऐसी स्थिति में पश्चिम बंगाल सरकार का ट्रांसजेंडर समुदाय के लोगों को सामान्य श्रेणी के तहत राज्य सरकार की नौकरियों के लिए आवेदन करने की अनुमति देना शीर्ष अदालत के फैसले की भावना के खिलाफ है। इसलिए हमने इस कदम के खिलाफ कलकत्ता उच्च न्यायालय जाने का फैसला किया है और जैसे कुछ अन्य राज्य सरकारों ने आरक्षण दिया है वैसे ही आरक्षण देने की मांग की है।

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भट्टाचार्य ने कहा, इसलिए एक तरह से पश्चिम बंगाल सरकार का फैसला सुप्रीम कोर्ट के फैसले की भावना के खिलाफ है और अगर समुदाय के लोग इस फैसले को अदालत में चुनौती देते हैं तो यह उचित है।

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हालांकि, चंद्रिमा भट्टाचार्य और मानस भुइयां जैसे राज्य मंत्रियों के अपने तर्क हैं। उनके अनुसार, ट्रांसजेंडर समुदाय को सामान्य श्रेणी के तहत आवेदन करने का यानी समान अधिकार देने का निर्णय ट्रांसजेंडर व्यक्तियों (अधिकारों का संरक्षण) अधिनियम, 2019 के प्रावधानों के अनुसार है, जो ट्रांसजेंडर व्यक्तियों के अधिकारों के संरक्षण और उनके कल्याण और उससे जुड़े मामलों के प्रावधानों की बात करता है।

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