deshbandhu

deshbandu_logo
  • राष्ट्रीय
  • अंतरराष्ट्रीय
  • लाइफ स्टाइल
  • अर्थजगत
  • मनोरंजन
  • खेल
  • अभिमत
  • धर्म
  • विचार
  • ई पेपर
deshbandu_logo
  • राष्ट्रीय
  • अंतरराष्ट्रीय
  • लाइफ स्टाइल
  • अर्थजगत
  • मनोरंजन
  • खेल
  • अभिमत
  • धर्म
  • विचार
  • ई पेपर
Menu
  • राष्ट्रीय
  • अंतरराष्ट्रीय
  • लाइफ स्टाइल
  • अर्थजगत
  • मनोरंजन
  • खेल
  • अभिमत
  • धर्म
  • विचार
  • ई पेपर
Facebook Twitter Youtube
  • भोपाल
  • इंदौर
  • उज्जैन
  • ग्वालियर
  • जबलपुर
  • रीवा
  • चंबल
  • नर्मदापुरम
  • शहडोल
  • सागर
  • देशबन्धु जनमत
  • पाठक प्रतिक्रियाएं
  • हमें जानें
  • विज्ञापन दरें
ADVERTISEMENT
Home अंतरराष्ट्रीय

बटर चिकन के ‘आविष्कार’ की लड़ाई पहुंची पाकिस्तान, पेशावर के लोगों ने किया बड़ा खुलासा

by
September 12, 2024
in अंतरराष्ट्रीय
0
बटर चिकन के ‘आविष्कार’ की लड़ाई पहुंची पाकिस्तान, पेशावर के लोगों ने किया बड़ा खुलासा
0
SHARES
1
VIEWS
Share on FacebookShare on Whatsapp
ADVERTISEMENT

इस्लामाबाद, 12 सितम्बर (आईएएनएस)। दिल्ली के दो रेस्टोरेंट्स के बीच बटर चिकन के ‘आविष्कार’ को लेकर लड़ी जा रही ‘जंग’ की लपटें पाकिस्तान तक पहुंच गई हैं। पेशावर के पुराने निवासियों को अपने शहर के मोती महल रेस्तरां की याद तो है, लेकिन उन्हें पुख्ता तौर पर पता नहीं कि बटर चिकन मेन्यू में शामिल था या नहीं।

बटर चिकन के स्वामित्व को लेकर मोती महल और दरियागंज नाम की दो रेस्टोरेंट चेन कानूनी लड़ाई लड़ रही हैं। दोनों रेस्टोरेंट चेन, विभाजन के बाद दिल्ली में पूर्व साझेदार कुंदन लाल गुजराल और कुंदन लाल जग्गी द्वारा स्थापित की गई थीं। अब इनके वंशज इन रेस्टोरेंट्स को चला रहे हैं।

READ ALSO

हेलिकॉप्टर में मेलानिया पर भड़के ट्रंप? वायरल वीडियो का सच सामने आया

बांग्लादेश में मंदिरों पर हमलों के बीच हिंदुओं की मांग, ‘हमारे धार्मिक स्थलों को सालभर मुहैया कराई जाए सुरक्षा’

जियो न्यूज के अनुसार, यह कहानी 20वीं सदी की शुरुआत में पेशावर के कैंटोनमेंट क्षेत्र से आरंभ हुई। यहां मोती महल रेस्टोरेंट टीपू सुल्तान रोड के पास फव्वारा चौक पर एक इमारत की पहली मंजिल पर स्थित था।

इस रेस्टोरेंट की स्थापना के बारे में दो अलग-अलग कहानियां है। एक के अनुसार, दिल्ली में मोती महल के संस्थापक कुंदन लाल गुजराल ने 1920 में इसकी स्थापना की थी। वहीं, यह भी कहा जाता है कि इस रेस्टोरेंट मालिकाना हक सिख व्यवसायी मोका सिंह लांबा पास था। जग्गी ने बाद में यहां काम किया।

पेशावर के पुराने निवासी मुश्ताक खान ने जियो टीवी को बताया कि अपने सुनहरे दिनों में यह रेस्टोरेंट अपनी सुगंधित चाय, कुरकुरे-पकौड़ों, पनीर के व्यंजनों और तीखे दही आधारित स्नैक्स के लिए जाना जाता था, हालांकि यह थोड़ा महंगा था और ज्यादातर अमीर लोग यहां आते थे, जिनमें ब्रिटिश अधिकारी भी शामिल थे।

रेस्टोरेंट का रसोईघर ग्राउंड फ्लोर पर स्थित था। अब इस जगह पर पेशावर के एक पुराने निवासी इकबाल आरिफ की कपड़ों की दुकान है। उन्होंने बताया कि अपने समय में, मोती महल रेस्तरां की ऊपरी मंजिल पर एक पारंपरिक तंदूर था, जहां पेशावरी नान तैयार किया जाता था और तंदूरी चिकन को बारबेक्यू किया जाता था।

आरिफ ने जियो को बताया कि 1980 के दशक में उन्होंने सुना था कि गुजराल पेशावर आए थे और “कपड़े की दुकान के सामने एक पेड़ के सहारे बैठे कर सुबक-सुबक कर रो रहे थे। वह अपने पुराने रेस्टोरेंट के बारे में सोच रहे थे, हालांकि उन्हें यह जानकर तसल्ली हुई थी कि उनका रेस्टोरेंट और उसके स्वादिष्ट व्यंजन की याद लोगों ने अब भी संजोकर रखी है।’

वहीं, बिजनेसमैन शाहिद खान ने जियो को बताया कि उन्होंने बटर चिकन के सिलसिले में गुजराल का नाम कभी नहीं सुना, लेकिन अब अदालती मामले के कारण इस मुद्दे पर अक्सर चर्चा हो रही है।

सदर बाजार के बुजुर्ग व्यापारी चौधरी अब्दुल गफूर के मुताबिक पेशावर के मोती महल के मेन्यू में बटर चिकन कहीं नहीं था। उन्होंने कहा कि गुजराल ने दिल्ली आने के बाद इस मशहूर रेसिपी का आविष्कार किया।

जियो ने जब वादियों से संपर्क किया, तो गुजराल के वंशजों ने जोर देकर कहा कि बटर चिकन को पेशावर में उनके द्वारा विकसित किया गया था। वहीं जग्गी के पोते का तर्क है कि उनके दादा ने विभाजन के बाद दिल्ली में इस व्यंजन को इजाद किया, हालांकि यह पेशावर में सीखी गई पाक कला पर आधारित था।

–आईएएनएस

एमके/एकेजे

ADVERTISEMENT

इस्लामाबाद, 12 सितम्बर (आईएएनएस)। दिल्ली के दो रेस्टोरेंट्स के बीच बटर चिकन के ‘आविष्कार’ को लेकर लड़ी जा रही ‘जंग’ की लपटें पाकिस्तान तक पहुंच गई हैं। पेशावर के पुराने निवासियों को अपने शहर के मोती महल रेस्तरां की याद तो है, लेकिन उन्हें पुख्ता तौर पर पता नहीं कि बटर चिकन मेन्यू में शामिल था या नहीं।

बटर चिकन के स्वामित्व को लेकर मोती महल और दरियागंज नाम की दो रेस्टोरेंट चेन कानूनी लड़ाई लड़ रही हैं। दोनों रेस्टोरेंट चेन, विभाजन के बाद दिल्ली में पूर्व साझेदार कुंदन लाल गुजराल और कुंदन लाल जग्गी द्वारा स्थापित की गई थीं। अब इनके वंशज इन रेस्टोरेंट्स को चला रहे हैं।

जियो न्यूज के अनुसार, यह कहानी 20वीं सदी की शुरुआत में पेशावर के कैंटोनमेंट क्षेत्र से आरंभ हुई। यहां मोती महल रेस्टोरेंट टीपू सुल्तान रोड के पास फव्वारा चौक पर एक इमारत की पहली मंजिल पर स्थित था।

इस रेस्टोरेंट की स्थापना के बारे में दो अलग-अलग कहानियां है। एक के अनुसार, दिल्ली में मोती महल के संस्थापक कुंदन लाल गुजराल ने 1920 में इसकी स्थापना की थी। वहीं, यह भी कहा जाता है कि इस रेस्टोरेंट मालिकाना हक सिख व्यवसायी मोका सिंह लांबा पास था। जग्गी ने बाद में यहां काम किया।

पेशावर के पुराने निवासी मुश्ताक खान ने जियो टीवी को बताया कि अपने सुनहरे दिनों में यह रेस्टोरेंट अपनी सुगंधित चाय, कुरकुरे-पकौड़ों, पनीर के व्यंजनों और तीखे दही आधारित स्नैक्स के लिए जाना जाता था, हालांकि यह थोड़ा महंगा था और ज्यादातर अमीर लोग यहां आते थे, जिनमें ब्रिटिश अधिकारी भी शामिल थे।

रेस्टोरेंट का रसोईघर ग्राउंड फ्लोर पर स्थित था। अब इस जगह पर पेशावर के एक पुराने निवासी इकबाल आरिफ की कपड़ों की दुकान है। उन्होंने बताया कि अपने समय में, मोती महल रेस्तरां की ऊपरी मंजिल पर एक पारंपरिक तंदूर था, जहां पेशावरी नान तैयार किया जाता था और तंदूरी चिकन को बारबेक्यू किया जाता था।

आरिफ ने जियो को बताया कि 1980 के दशक में उन्होंने सुना था कि गुजराल पेशावर आए थे और “कपड़े की दुकान के सामने एक पेड़ के सहारे बैठे कर सुबक-सुबक कर रो रहे थे। वह अपने पुराने रेस्टोरेंट के बारे में सोच रहे थे, हालांकि उन्हें यह जानकर तसल्ली हुई थी कि उनका रेस्टोरेंट और उसके स्वादिष्ट व्यंजन की याद लोगों ने अब भी संजोकर रखी है।’

वहीं, बिजनेसमैन शाहिद खान ने जियो को बताया कि उन्होंने बटर चिकन के सिलसिले में गुजराल का नाम कभी नहीं सुना, लेकिन अब अदालती मामले के कारण इस मुद्दे पर अक्सर चर्चा हो रही है।

सदर बाजार के बुजुर्ग व्यापारी चौधरी अब्दुल गफूर के मुताबिक पेशावर के मोती महल के मेन्यू में बटर चिकन कहीं नहीं था। उन्होंने कहा कि गुजराल ने दिल्ली आने के बाद इस मशहूर रेसिपी का आविष्कार किया।

जियो ने जब वादियों से संपर्क किया, तो गुजराल के वंशजों ने जोर देकर कहा कि बटर चिकन को पेशावर में उनके द्वारा विकसित किया गया था। वहीं जग्गी के पोते का तर्क है कि उनके दादा ने विभाजन के बाद दिल्ली में इस व्यंजन को इजाद किया, हालांकि यह पेशावर में सीखी गई पाक कला पर आधारित था।

–आईएएनएस

एमके/एकेजे

ADVERTISEMENT

इस्लामाबाद, 12 सितम्बर (आईएएनएस)। दिल्ली के दो रेस्टोरेंट्स के बीच बटर चिकन के ‘आविष्कार’ को लेकर लड़ी जा रही ‘जंग’ की लपटें पाकिस्तान तक पहुंच गई हैं। पेशावर के पुराने निवासियों को अपने शहर के मोती महल रेस्तरां की याद तो है, लेकिन उन्हें पुख्ता तौर पर पता नहीं कि बटर चिकन मेन्यू में शामिल था या नहीं।

बटर चिकन के स्वामित्व को लेकर मोती महल और दरियागंज नाम की दो रेस्टोरेंट चेन कानूनी लड़ाई लड़ रही हैं। दोनों रेस्टोरेंट चेन, विभाजन के बाद दिल्ली में पूर्व साझेदार कुंदन लाल गुजराल और कुंदन लाल जग्गी द्वारा स्थापित की गई थीं। अब इनके वंशज इन रेस्टोरेंट्स को चला रहे हैं।

जियो न्यूज के अनुसार, यह कहानी 20वीं सदी की शुरुआत में पेशावर के कैंटोनमेंट क्षेत्र से आरंभ हुई। यहां मोती महल रेस्टोरेंट टीपू सुल्तान रोड के पास फव्वारा चौक पर एक इमारत की पहली मंजिल पर स्थित था।

इस रेस्टोरेंट की स्थापना के बारे में दो अलग-अलग कहानियां है। एक के अनुसार, दिल्ली में मोती महल के संस्थापक कुंदन लाल गुजराल ने 1920 में इसकी स्थापना की थी। वहीं, यह भी कहा जाता है कि इस रेस्टोरेंट मालिकाना हक सिख व्यवसायी मोका सिंह लांबा पास था। जग्गी ने बाद में यहां काम किया।

पेशावर के पुराने निवासी मुश्ताक खान ने जियो टीवी को बताया कि अपने सुनहरे दिनों में यह रेस्टोरेंट अपनी सुगंधित चाय, कुरकुरे-पकौड़ों, पनीर के व्यंजनों और तीखे दही आधारित स्नैक्स के लिए जाना जाता था, हालांकि यह थोड़ा महंगा था और ज्यादातर अमीर लोग यहां आते थे, जिनमें ब्रिटिश अधिकारी भी शामिल थे।

रेस्टोरेंट का रसोईघर ग्राउंड फ्लोर पर स्थित था। अब इस जगह पर पेशावर के एक पुराने निवासी इकबाल आरिफ की कपड़ों की दुकान है। उन्होंने बताया कि अपने समय में, मोती महल रेस्तरां की ऊपरी मंजिल पर एक पारंपरिक तंदूर था, जहां पेशावरी नान तैयार किया जाता था और तंदूरी चिकन को बारबेक्यू किया जाता था।

आरिफ ने जियो को बताया कि 1980 के दशक में उन्होंने सुना था कि गुजराल पेशावर आए थे और “कपड़े की दुकान के सामने एक पेड़ के सहारे बैठे कर सुबक-सुबक कर रो रहे थे। वह अपने पुराने रेस्टोरेंट के बारे में सोच रहे थे, हालांकि उन्हें यह जानकर तसल्ली हुई थी कि उनका रेस्टोरेंट और उसके स्वादिष्ट व्यंजन की याद लोगों ने अब भी संजोकर रखी है।’

वहीं, बिजनेसमैन शाहिद खान ने जियो को बताया कि उन्होंने बटर चिकन के सिलसिले में गुजराल का नाम कभी नहीं सुना, लेकिन अब अदालती मामले के कारण इस मुद्दे पर अक्सर चर्चा हो रही है।

सदर बाजार के बुजुर्ग व्यापारी चौधरी अब्दुल गफूर के मुताबिक पेशावर के मोती महल के मेन्यू में बटर चिकन कहीं नहीं था। उन्होंने कहा कि गुजराल ने दिल्ली आने के बाद इस मशहूर रेसिपी का आविष्कार किया।

जियो ने जब वादियों से संपर्क किया, तो गुजराल के वंशजों ने जोर देकर कहा कि बटर चिकन को पेशावर में उनके द्वारा विकसित किया गया था। वहीं जग्गी के पोते का तर्क है कि उनके दादा ने विभाजन के बाद दिल्ली में इस व्यंजन को इजाद किया, हालांकि यह पेशावर में सीखी गई पाक कला पर आधारित था।

–आईएएनएस

एमके/एकेजे

ADVERTISEMENT

इस्लामाबाद, 12 सितम्बर (आईएएनएस)। दिल्ली के दो रेस्टोरेंट्स के बीच बटर चिकन के ‘आविष्कार’ को लेकर लड़ी जा रही ‘जंग’ की लपटें पाकिस्तान तक पहुंच गई हैं। पेशावर के पुराने निवासियों को अपने शहर के मोती महल रेस्तरां की याद तो है, लेकिन उन्हें पुख्ता तौर पर पता नहीं कि बटर चिकन मेन्यू में शामिल था या नहीं।

बटर चिकन के स्वामित्व को लेकर मोती महल और दरियागंज नाम की दो रेस्टोरेंट चेन कानूनी लड़ाई लड़ रही हैं। दोनों रेस्टोरेंट चेन, विभाजन के बाद दिल्ली में पूर्व साझेदार कुंदन लाल गुजराल और कुंदन लाल जग्गी द्वारा स्थापित की गई थीं। अब इनके वंशज इन रेस्टोरेंट्स को चला रहे हैं।

जियो न्यूज के अनुसार, यह कहानी 20वीं सदी की शुरुआत में पेशावर के कैंटोनमेंट क्षेत्र से आरंभ हुई। यहां मोती महल रेस्टोरेंट टीपू सुल्तान रोड के पास फव्वारा चौक पर एक इमारत की पहली मंजिल पर स्थित था।

इस रेस्टोरेंट की स्थापना के बारे में दो अलग-अलग कहानियां है। एक के अनुसार, दिल्ली में मोती महल के संस्थापक कुंदन लाल गुजराल ने 1920 में इसकी स्थापना की थी। वहीं, यह भी कहा जाता है कि इस रेस्टोरेंट मालिकाना हक सिख व्यवसायी मोका सिंह लांबा पास था। जग्गी ने बाद में यहां काम किया।

पेशावर के पुराने निवासी मुश्ताक खान ने जियो टीवी को बताया कि अपने सुनहरे दिनों में यह रेस्टोरेंट अपनी सुगंधित चाय, कुरकुरे-पकौड़ों, पनीर के व्यंजनों और तीखे दही आधारित स्नैक्स के लिए जाना जाता था, हालांकि यह थोड़ा महंगा था और ज्यादातर अमीर लोग यहां आते थे, जिनमें ब्रिटिश अधिकारी भी शामिल थे।

रेस्टोरेंट का रसोईघर ग्राउंड फ्लोर पर स्थित था। अब इस जगह पर पेशावर के एक पुराने निवासी इकबाल आरिफ की कपड़ों की दुकान है। उन्होंने बताया कि अपने समय में, मोती महल रेस्तरां की ऊपरी मंजिल पर एक पारंपरिक तंदूर था, जहां पेशावरी नान तैयार किया जाता था और तंदूरी चिकन को बारबेक्यू किया जाता था।

आरिफ ने जियो को बताया कि 1980 के दशक में उन्होंने सुना था कि गुजराल पेशावर आए थे और “कपड़े की दुकान के सामने एक पेड़ के सहारे बैठे कर सुबक-सुबक कर रो रहे थे। वह अपने पुराने रेस्टोरेंट के बारे में सोच रहे थे, हालांकि उन्हें यह जानकर तसल्ली हुई थी कि उनका रेस्टोरेंट और उसके स्वादिष्ट व्यंजन की याद लोगों ने अब भी संजोकर रखी है।’

वहीं, बिजनेसमैन शाहिद खान ने जियो को बताया कि उन्होंने बटर चिकन के सिलसिले में गुजराल का नाम कभी नहीं सुना, लेकिन अब अदालती मामले के कारण इस मुद्दे पर अक्सर चर्चा हो रही है।

सदर बाजार के बुजुर्ग व्यापारी चौधरी अब्दुल गफूर के मुताबिक पेशावर के मोती महल के मेन्यू में बटर चिकन कहीं नहीं था। उन्होंने कहा कि गुजराल ने दिल्ली आने के बाद इस मशहूर रेसिपी का आविष्कार किया।

जियो ने जब वादियों से संपर्क किया, तो गुजराल के वंशजों ने जोर देकर कहा कि बटर चिकन को पेशावर में उनके द्वारा विकसित किया गया था। वहीं जग्गी के पोते का तर्क है कि उनके दादा ने विभाजन के बाद दिल्ली में इस व्यंजन को इजाद किया, हालांकि यह पेशावर में सीखी गई पाक कला पर आधारित था।

–आईएएनएस

एमके/एकेजे

ADVERTISEMENT

इस्लामाबाद, 12 सितम्बर (आईएएनएस)। दिल्ली के दो रेस्टोरेंट्स के बीच बटर चिकन के ‘आविष्कार’ को लेकर लड़ी जा रही ‘जंग’ की लपटें पाकिस्तान तक पहुंच गई हैं। पेशावर के पुराने निवासियों को अपने शहर के मोती महल रेस्तरां की याद तो है, लेकिन उन्हें पुख्ता तौर पर पता नहीं कि बटर चिकन मेन्यू में शामिल था या नहीं।

बटर चिकन के स्वामित्व को लेकर मोती महल और दरियागंज नाम की दो रेस्टोरेंट चेन कानूनी लड़ाई लड़ रही हैं। दोनों रेस्टोरेंट चेन, विभाजन के बाद दिल्ली में पूर्व साझेदार कुंदन लाल गुजराल और कुंदन लाल जग्गी द्वारा स्थापित की गई थीं। अब इनके वंशज इन रेस्टोरेंट्स को चला रहे हैं।

जियो न्यूज के अनुसार, यह कहानी 20वीं सदी की शुरुआत में पेशावर के कैंटोनमेंट क्षेत्र से आरंभ हुई। यहां मोती महल रेस्टोरेंट टीपू सुल्तान रोड के पास फव्वारा चौक पर एक इमारत की पहली मंजिल पर स्थित था।

इस रेस्टोरेंट की स्थापना के बारे में दो अलग-अलग कहानियां है। एक के अनुसार, दिल्ली में मोती महल के संस्थापक कुंदन लाल गुजराल ने 1920 में इसकी स्थापना की थी। वहीं, यह भी कहा जाता है कि इस रेस्टोरेंट मालिकाना हक सिख व्यवसायी मोका सिंह लांबा पास था। जग्गी ने बाद में यहां काम किया।

पेशावर के पुराने निवासी मुश्ताक खान ने जियो टीवी को बताया कि अपने सुनहरे दिनों में यह रेस्टोरेंट अपनी सुगंधित चाय, कुरकुरे-पकौड़ों, पनीर के व्यंजनों और तीखे दही आधारित स्नैक्स के लिए जाना जाता था, हालांकि यह थोड़ा महंगा था और ज्यादातर अमीर लोग यहां आते थे, जिनमें ब्रिटिश अधिकारी भी शामिल थे।

रेस्टोरेंट का रसोईघर ग्राउंड फ्लोर पर स्थित था। अब इस जगह पर पेशावर के एक पुराने निवासी इकबाल आरिफ की कपड़ों की दुकान है। उन्होंने बताया कि अपने समय में, मोती महल रेस्तरां की ऊपरी मंजिल पर एक पारंपरिक तंदूर था, जहां पेशावरी नान तैयार किया जाता था और तंदूरी चिकन को बारबेक्यू किया जाता था।

आरिफ ने जियो को बताया कि 1980 के दशक में उन्होंने सुना था कि गुजराल पेशावर आए थे और “कपड़े की दुकान के सामने एक पेड़ के सहारे बैठे कर सुबक-सुबक कर रो रहे थे। वह अपने पुराने रेस्टोरेंट के बारे में सोच रहे थे, हालांकि उन्हें यह जानकर तसल्ली हुई थी कि उनका रेस्टोरेंट और उसके स्वादिष्ट व्यंजन की याद लोगों ने अब भी संजोकर रखी है।’

वहीं, बिजनेसमैन शाहिद खान ने जियो को बताया कि उन्होंने बटर चिकन के सिलसिले में गुजराल का नाम कभी नहीं सुना, लेकिन अब अदालती मामले के कारण इस मुद्दे पर अक्सर चर्चा हो रही है।

सदर बाजार के बुजुर्ग व्यापारी चौधरी अब्दुल गफूर के मुताबिक पेशावर के मोती महल के मेन्यू में बटर चिकन कहीं नहीं था। उन्होंने कहा कि गुजराल ने दिल्ली आने के बाद इस मशहूर रेसिपी का आविष्कार किया।

जियो ने जब वादियों से संपर्क किया, तो गुजराल के वंशजों ने जोर देकर कहा कि बटर चिकन को पेशावर में उनके द्वारा विकसित किया गया था। वहीं जग्गी के पोते का तर्क है कि उनके दादा ने विभाजन के बाद दिल्ली में इस व्यंजन को इजाद किया, हालांकि यह पेशावर में सीखी गई पाक कला पर आधारित था।

–आईएएनएस

एमके/एकेजे

ADVERTISEMENT

इस्लामाबाद, 12 सितम्बर (आईएएनएस)। दिल्ली के दो रेस्टोरेंट्स के बीच बटर चिकन के ‘आविष्कार’ को लेकर लड़ी जा रही ‘जंग’ की लपटें पाकिस्तान तक पहुंच गई हैं। पेशावर के पुराने निवासियों को अपने शहर के मोती महल रेस्तरां की याद तो है, लेकिन उन्हें पुख्ता तौर पर पता नहीं कि बटर चिकन मेन्यू में शामिल था या नहीं।

बटर चिकन के स्वामित्व को लेकर मोती महल और दरियागंज नाम की दो रेस्टोरेंट चेन कानूनी लड़ाई लड़ रही हैं। दोनों रेस्टोरेंट चेन, विभाजन के बाद दिल्ली में पूर्व साझेदार कुंदन लाल गुजराल और कुंदन लाल जग्गी द्वारा स्थापित की गई थीं। अब इनके वंशज इन रेस्टोरेंट्स को चला रहे हैं।

जियो न्यूज के अनुसार, यह कहानी 20वीं सदी की शुरुआत में पेशावर के कैंटोनमेंट क्षेत्र से आरंभ हुई। यहां मोती महल रेस्टोरेंट टीपू सुल्तान रोड के पास फव्वारा चौक पर एक इमारत की पहली मंजिल पर स्थित था।

इस रेस्टोरेंट की स्थापना के बारे में दो अलग-अलग कहानियां है। एक के अनुसार, दिल्ली में मोती महल के संस्थापक कुंदन लाल गुजराल ने 1920 में इसकी स्थापना की थी। वहीं, यह भी कहा जाता है कि इस रेस्टोरेंट मालिकाना हक सिख व्यवसायी मोका सिंह लांबा पास था। जग्गी ने बाद में यहां काम किया।

पेशावर के पुराने निवासी मुश्ताक खान ने जियो टीवी को बताया कि अपने सुनहरे दिनों में यह रेस्टोरेंट अपनी सुगंधित चाय, कुरकुरे-पकौड़ों, पनीर के व्यंजनों और तीखे दही आधारित स्नैक्स के लिए जाना जाता था, हालांकि यह थोड़ा महंगा था और ज्यादातर अमीर लोग यहां आते थे, जिनमें ब्रिटिश अधिकारी भी शामिल थे।

रेस्टोरेंट का रसोईघर ग्राउंड फ्लोर पर स्थित था। अब इस जगह पर पेशावर के एक पुराने निवासी इकबाल आरिफ की कपड़ों की दुकान है। उन्होंने बताया कि अपने समय में, मोती महल रेस्तरां की ऊपरी मंजिल पर एक पारंपरिक तंदूर था, जहां पेशावरी नान तैयार किया जाता था और तंदूरी चिकन को बारबेक्यू किया जाता था।

आरिफ ने जियो को बताया कि 1980 के दशक में उन्होंने सुना था कि गुजराल पेशावर आए थे और “कपड़े की दुकान के सामने एक पेड़ के सहारे बैठे कर सुबक-सुबक कर रो रहे थे। वह अपने पुराने रेस्टोरेंट के बारे में सोच रहे थे, हालांकि उन्हें यह जानकर तसल्ली हुई थी कि उनका रेस्टोरेंट और उसके स्वादिष्ट व्यंजन की याद लोगों ने अब भी संजोकर रखी है।’

वहीं, बिजनेसमैन शाहिद खान ने जियो को बताया कि उन्होंने बटर चिकन के सिलसिले में गुजराल का नाम कभी नहीं सुना, लेकिन अब अदालती मामले के कारण इस मुद्दे पर अक्सर चर्चा हो रही है।

सदर बाजार के बुजुर्ग व्यापारी चौधरी अब्दुल गफूर के मुताबिक पेशावर के मोती महल के मेन्यू में बटर चिकन कहीं नहीं था। उन्होंने कहा कि गुजराल ने दिल्ली आने के बाद इस मशहूर रेसिपी का आविष्कार किया।

जियो ने जब वादियों से संपर्क किया, तो गुजराल के वंशजों ने जोर देकर कहा कि बटर चिकन को पेशावर में उनके द्वारा विकसित किया गया था। वहीं जग्गी के पोते का तर्क है कि उनके दादा ने विभाजन के बाद दिल्ली में इस व्यंजन को इजाद किया, हालांकि यह पेशावर में सीखी गई पाक कला पर आधारित था।

–आईएएनएस

एमके/एकेजे

ADVERTISEMENT

इस्लामाबाद, 12 सितम्बर (आईएएनएस)। दिल्ली के दो रेस्टोरेंट्स के बीच बटर चिकन के ‘आविष्कार’ को लेकर लड़ी जा रही ‘जंग’ की लपटें पाकिस्तान तक पहुंच गई हैं। पेशावर के पुराने निवासियों को अपने शहर के मोती महल रेस्तरां की याद तो है, लेकिन उन्हें पुख्ता तौर पर पता नहीं कि बटर चिकन मेन्यू में शामिल था या नहीं।

बटर चिकन के स्वामित्व को लेकर मोती महल और दरियागंज नाम की दो रेस्टोरेंट चेन कानूनी लड़ाई लड़ रही हैं। दोनों रेस्टोरेंट चेन, विभाजन के बाद दिल्ली में पूर्व साझेदार कुंदन लाल गुजराल और कुंदन लाल जग्गी द्वारा स्थापित की गई थीं। अब इनके वंशज इन रेस्टोरेंट्स को चला रहे हैं।

जियो न्यूज के अनुसार, यह कहानी 20वीं सदी की शुरुआत में पेशावर के कैंटोनमेंट क्षेत्र से आरंभ हुई। यहां मोती महल रेस्टोरेंट टीपू सुल्तान रोड के पास फव्वारा चौक पर एक इमारत की पहली मंजिल पर स्थित था।

इस रेस्टोरेंट की स्थापना के बारे में दो अलग-अलग कहानियां है। एक के अनुसार, दिल्ली में मोती महल के संस्थापक कुंदन लाल गुजराल ने 1920 में इसकी स्थापना की थी। वहीं, यह भी कहा जाता है कि इस रेस्टोरेंट मालिकाना हक सिख व्यवसायी मोका सिंह लांबा पास था। जग्गी ने बाद में यहां काम किया।

पेशावर के पुराने निवासी मुश्ताक खान ने जियो टीवी को बताया कि अपने सुनहरे दिनों में यह रेस्टोरेंट अपनी सुगंधित चाय, कुरकुरे-पकौड़ों, पनीर के व्यंजनों और तीखे दही आधारित स्नैक्स के लिए जाना जाता था, हालांकि यह थोड़ा महंगा था और ज्यादातर अमीर लोग यहां आते थे, जिनमें ब्रिटिश अधिकारी भी शामिल थे।

रेस्टोरेंट का रसोईघर ग्राउंड फ्लोर पर स्थित था। अब इस जगह पर पेशावर के एक पुराने निवासी इकबाल आरिफ की कपड़ों की दुकान है। उन्होंने बताया कि अपने समय में, मोती महल रेस्तरां की ऊपरी मंजिल पर एक पारंपरिक तंदूर था, जहां पेशावरी नान तैयार किया जाता था और तंदूरी चिकन को बारबेक्यू किया जाता था।

आरिफ ने जियो को बताया कि 1980 के दशक में उन्होंने सुना था कि गुजराल पेशावर आए थे और “कपड़े की दुकान के सामने एक पेड़ के सहारे बैठे कर सुबक-सुबक कर रो रहे थे। वह अपने पुराने रेस्टोरेंट के बारे में सोच रहे थे, हालांकि उन्हें यह जानकर तसल्ली हुई थी कि उनका रेस्टोरेंट और उसके स्वादिष्ट व्यंजन की याद लोगों ने अब भी संजोकर रखी है।’

वहीं, बिजनेसमैन शाहिद खान ने जियो को बताया कि उन्होंने बटर चिकन के सिलसिले में गुजराल का नाम कभी नहीं सुना, लेकिन अब अदालती मामले के कारण इस मुद्दे पर अक्सर चर्चा हो रही है।

सदर बाजार के बुजुर्ग व्यापारी चौधरी अब्दुल गफूर के मुताबिक पेशावर के मोती महल के मेन्यू में बटर चिकन कहीं नहीं था। उन्होंने कहा कि गुजराल ने दिल्ली आने के बाद इस मशहूर रेसिपी का आविष्कार किया।

जियो ने जब वादियों से संपर्क किया, तो गुजराल के वंशजों ने जोर देकर कहा कि बटर चिकन को पेशावर में उनके द्वारा विकसित किया गया था। वहीं जग्गी के पोते का तर्क है कि उनके दादा ने विभाजन के बाद दिल्ली में इस व्यंजन को इजाद किया, हालांकि यह पेशावर में सीखी गई पाक कला पर आधारित था।

–आईएएनएस

एमके/एकेजे

ADVERTISEMENT

इस्लामाबाद, 12 सितम्बर (आईएएनएस)। दिल्ली के दो रेस्टोरेंट्स के बीच बटर चिकन के ‘आविष्कार’ को लेकर लड़ी जा रही ‘जंग’ की लपटें पाकिस्तान तक पहुंच गई हैं। पेशावर के पुराने निवासियों को अपने शहर के मोती महल रेस्तरां की याद तो है, लेकिन उन्हें पुख्ता तौर पर पता नहीं कि बटर चिकन मेन्यू में शामिल था या नहीं।

बटर चिकन के स्वामित्व को लेकर मोती महल और दरियागंज नाम की दो रेस्टोरेंट चेन कानूनी लड़ाई लड़ रही हैं। दोनों रेस्टोरेंट चेन, विभाजन के बाद दिल्ली में पूर्व साझेदार कुंदन लाल गुजराल और कुंदन लाल जग्गी द्वारा स्थापित की गई थीं। अब इनके वंशज इन रेस्टोरेंट्स को चला रहे हैं।

जियो न्यूज के अनुसार, यह कहानी 20वीं सदी की शुरुआत में पेशावर के कैंटोनमेंट क्षेत्र से आरंभ हुई। यहां मोती महल रेस्टोरेंट टीपू सुल्तान रोड के पास फव्वारा चौक पर एक इमारत की पहली मंजिल पर स्थित था।

इस रेस्टोरेंट की स्थापना के बारे में दो अलग-अलग कहानियां है। एक के अनुसार, दिल्ली में मोती महल के संस्थापक कुंदन लाल गुजराल ने 1920 में इसकी स्थापना की थी। वहीं, यह भी कहा जाता है कि इस रेस्टोरेंट मालिकाना हक सिख व्यवसायी मोका सिंह लांबा पास था। जग्गी ने बाद में यहां काम किया।

पेशावर के पुराने निवासी मुश्ताक खान ने जियो टीवी को बताया कि अपने सुनहरे दिनों में यह रेस्टोरेंट अपनी सुगंधित चाय, कुरकुरे-पकौड़ों, पनीर के व्यंजनों और तीखे दही आधारित स्नैक्स के लिए जाना जाता था, हालांकि यह थोड़ा महंगा था और ज्यादातर अमीर लोग यहां आते थे, जिनमें ब्रिटिश अधिकारी भी शामिल थे।

रेस्टोरेंट का रसोईघर ग्राउंड फ्लोर पर स्थित था। अब इस जगह पर पेशावर के एक पुराने निवासी इकबाल आरिफ की कपड़ों की दुकान है। उन्होंने बताया कि अपने समय में, मोती महल रेस्तरां की ऊपरी मंजिल पर एक पारंपरिक तंदूर था, जहां पेशावरी नान तैयार किया जाता था और तंदूरी चिकन को बारबेक्यू किया जाता था।

आरिफ ने जियो को बताया कि 1980 के दशक में उन्होंने सुना था कि गुजराल पेशावर आए थे और “कपड़े की दुकान के सामने एक पेड़ के सहारे बैठे कर सुबक-सुबक कर रो रहे थे। वह अपने पुराने रेस्टोरेंट के बारे में सोच रहे थे, हालांकि उन्हें यह जानकर तसल्ली हुई थी कि उनका रेस्टोरेंट और उसके स्वादिष्ट व्यंजन की याद लोगों ने अब भी संजोकर रखी है।’

वहीं, बिजनेसमैन शाहिद खान ने जियो को बताया कि उन्होंने बटर चिकन के सिलसिले में गुजराल का नाम कभी नहीं सुना, लेकिन अब अदालती मामले के कारण इस मुद्दे पर अक्सर चर्चा हो रही है।

सदर बाजार के बुजुर्ग व्यापारी चौधरी अब्दुल गफूर के मुताबिक पेशावर के मोती महल के मेन्यू में बटर चिकन कहीं नहीं था। उन्होंने कहा कि गुजराल ने दिल्ली आने के बाद इस मशहूर रेसिपी का आविष्कार किया।

जियो ने जब वादियों से संपर्क किया, तो गुजराल के वंशजों ने जोर देकर कहा कि बटर चिकन को पेशावर में उनके द्वारा विकसित किया गया था। वहीं जग्गी के पोते का तर्क है कि उनके दादा ने विभाजन के बाद दिल्ली में इस व्यंजन को इजाद किया, हालांकि यह पेशावर में सीखी गई पाक कला पर आधारित था।

–आईएएनएस

एमके/एकेजे

इस्लामाबाद, 12 सितम्बर (आईएएनएस)। दिल्ली के दो रेस्टोरेंट्स के बीच बटर चिकन के ‘आविष्कार’ को लेकर लड़ी जा रही ‘जंग’ की लपटें पाकिस्तान तक पहुंच गई हैं। पेशावर के पुराने निवासियों को अपने शहर के मोती महल रेस्तरां की याद तो है, लेकिन उन्हें पुख्ता तौर पर पता नहीं कि बटर चिकन मेन्यू में शामिल था या नहीं।

बटर चिकन के स्वामित्व को लेकर मोती महल और दरियागंज नाम की दो रेस्टोरेंट चेन कानूनी लड़ाई लड़ रही हैं। दोनों रेस्टोरेंट चेन, विभाजन के बाद दिल्ली में पूर्व साझेदार कुंदन लाल गुजराल और कुंदन लाल जग्गी द्वारा स्थापित की गई थीं। अब इनके वंशज इन रेस्टोरेंट्स को चला रहे हैं।

जियो न्यूज के अनुसार, यह कहानी 20वीं सदी की शुरुआत में पेशावर के कैंटोनमेंट क्षेत्र से आरंभ हुई। यहां मोती महल रेस्टोरेंट टीपू सुल्तान रोड के पास फव्वारा चौक पर एक इमारत की पहली मंजिल पर स्थित था।

इस रेस्टोरेंट की स्थापना के बारे में दो अलग-अलग कहानियां है। एक के अनुसार, दिल्ली में मोती महल के संस्थापक कुंदन लाल गुजराल ने 1920 में इसकी स्थापना की थी। वहीं, यह भी कहा जाता है कि इस रेस्टोरेंट मालिकाना हक सिख व्यवसायी मोका सिंह लांबा पास था। जग्गी ने बाद में यहां काम किया।

पेशावर के पुराने निवासी मुश्ताक खान ने जियो टीवी को बताया कि अपने सुनहरे दिनों में यह रेस्टोरेंट अपनी सुगंधित चाय, कुरकुरे-पकौड़ों, पनीर के व्यंजनों और तीखे दही आधारित स्नैक्स के लिए जाना जाता था, हालांकि यह थोड़ा महंगा था और ज्यादातर अमीर लोग यहां आते थे, जिनमें ब्रिटिश अधिकारी भी शामिल थे।

रेस्टोरेंट का रसोईघर ग्राउंड फ्लोर पर स्थित था। अब इस जगह पर पेशावर के एक पुराने निवासी इकबाल आरिफ की कपड़ों की दुकान है। उन्होंने बताया कि अपने समय में, मोती महल रेस्तरां की ऊपरी मंजिल पर एक पारंपरिक तंदूर था, जहां पेशावरी नान तैयार किया जाता था और तंदूरी चिकन को बारबेक्यू किया जाता था।

आरिफ ने जियो को बताया कि 1980 के दशक में उन्होंने सुना था कि गुजराल पेशावर आए थे और “कपड़े की दुकान के सामने एक पेड़ के सहारे बैठे कर सुबक-सुबक कर रो रहे थे। वह अपने पुराने रेस्टोरेंट के बारे में सोच रहे थे, हालांकि उन्हें यह जानकर तसल्ली हुई थी कि उनका रेस्टोरेंट और उसके स्वादिष्ट व्यंजन की याद लोगों ने अब भी संजोकर रखी है।’

वहीं, बिजनेसमैन शाहिद खान ने जियो को बताया कि उन्होंने बटर चिकन के सिलसिले में गुजराल का नाम कभी नहीं सुना, लेकिन अब अदालती मामले के कारण इस मुद्दे पर अक्सर चर्चा हो रही है।

सदर बाजार के बुजुर्ग व्यापारी चौधरी अब्दुल गफूर के मुताबिक पेशावर के मोती महल के मेन्यू में बटर चिकन कहीं नहीं था। उन्होंने कहा कि गुजराल ने दिल्ली आने के बाद इस मशहूर रेसिपी का आविष्कार किया।

जियो ने जब वादियों से संपर्क किया, तो गुजराल के वंशजों ने जोर देकर कहा कि बटर चिकन को पेशावर में उनके द्वारा विकसित किया गया था। वहीं जग्गी के पोते का तर्क है कि उनके दादा ने विभाजन के बाद दिल्ली में इस व्यंजन को इजाद किया, हालांकि यह पेशावर में सीखी गई पाक कला पर आधारित था।

–आईएएनएस

एमके/एकेजे

ADVERTISEMENT

इस्लामाबाद, 12 सितम्बर (आईएएनएस)। दिल्ली के दो रेस्टोरेंट्स के बीच बटर चिकन के ‘आविष्कार’ को लेकर लड़ी जा रही ‘जंग’ की लपटें पाकिस्तान तक पहुंच गई हैं। पेशावर के पुराने निवासियों को अपने शहर के मोती महल रेस्तरां की याद तो है, लेकिन उन्हें पुख्ता तौर पर पता नहीं कि बटर चिकन मेन्यू में शामिल था या नहीं।

बटर चिकन के स्वामित्व को लेकर मोती महल और दरियागंज नाम की दो रेस्टोरेंट चेन कानूनी लड़ाई लड़ रही हैं। दोनों रेस्टोरेंट चेन, विभाजन के बाद दिल्ली में पूर्व साझेदार कुंदन लाल गुजराल और कुंदन लाल जग्गी द्वारा स्थापित की गई थीं। अब इनके वंशज इन रेस्टोरेंट्स को चला रहे हैं।

जियो न्यूज के अनुसार, यह कहानी 20वीं सदी की शुरुआत में पेशावर के कैंटोनमेंट क्षेत्र से आरंभ हुई। यहां मोती महल रेस्टोरेंट टीपू सुल्तान रोड के पास फव्वारा चौक पर एक इमारत की पहली मंजिल पर स्थित था।

इस रेस्टोरेंट की स्थापना के बारे में दो अलग-अलग कहानियां है। एक के अनुसार, दिल्ली में मोती महल के संस्थापक कुंदन लाल गुजराल ने 1920 में इसकी स्थापना की थी। वहीं, यह भी कहा जाता है कि इस रेस्टोरेंट मालिकाना हक सिख व्यवसायी मोका सिंह लांबा पास था। जग्गी ने बाद में यहां काम किया।

पेशावर के पुराने निवासी मुश्ताक खान ने जियो टीवी को बताया कि अपने सुनहरे दिनों में यह रेस्टोरेंट अपनी सुगंधित चाय, कुरकुरे-पकौड़ों, पनीर के व्यंजनों और तीखे दही आधारित स्नैक्स के लिए जाना जाता था, हालांकि यह थोड़ा महंगा था और ज्यादातर अमीर लोग यहां आते थे, जिनमें ब्रिटिश अधिकारी भी शामिल थे।

रेस्टोरेंट का रसोईघर ग्राउंड फ्लोर पर स्थित था। अब इस जगह पर पेशावर के एक पुराने निवासी इकबाल आरिफ की कपड़ों की दुकान है। उन्होंने बताया कि अपने समय में, मोती महल रेस्तरां की ऊपरी मंजिल पर एक पारंपरिक तंदूर था, जहां पेशावरी नान तैयार किया जाता था और तंदूरी चिकन को बारबेक्यू किया जाता था।

आरिफ ने जियो को बताया कि 1980 के दशक में उन्होंने सुना था कि गुजराल पेशावर आए थे और “कपड़े की दुकान के सामने एक पेड़ के सहारे बैठे कर सुबक-सुबक कर रो रहे थे। वह अपने पुराने रेस्टोरेंट के बारे में सोच रहे थे, हालांकि उन्हें यह जानकर तसल्ली हुई थी कि उनका रेस्टोरेंट और उसके स्वादिष्ट व्यंजन की याद लोगों ने अब भी संजोकर रखी है।’

वहीं, बिजनेसमैन शाहिद खान ने जियो को बताया कि उन्होंने बटर चिकन के सिलसिले में गुजराल का नाम कभी नहीं सुना, लेकिन अब अदालती मामले के कारण इस मुद्दे पर अक्सर चर्चा हो रही है।

सदर बाजार के बुजुर्ग व्यापारी चौधरी अब्दुल गफूर के मुताबिक पेशावर के मोती महल के मेन्यू में बटर चिकन कहीं नहीं था। उन्होंने कहा कि गुजराल ने दिल्ली आने के बाद इस मशहूर रेसिपी का आविष्कार किया।

जियो ने जब वादियों से संपर्क किया, तो गुजराल के वंशजों ने जोर देकर कहा कि बटर चिकन को पेशावर में उनके द्वारा विकसित किया गया था। वहीं जग्गी के पोते का तर्क है कि उनके दादा ने विभाजन के बाद दिल्ली में इस व्यंजन को इजाद किया, हालांकि यह पेशावर में सीखी गई पाक कला पर आधारित था।

–आईएएनएस

एमके/एकेजे

ADVERTISEMENT

इस्लामाबाद, 12 सितम्बर (आईएएनएस)। दिल्ली के दो रेस्टोरेंट्स के बीच बटर चिकन के ‘आविष्कार’ को लेकर लड़ी जा रही ‘जंग’ की लपटें पाकिस्तान तक पहुंच गई हैं। पेशावर के पुराने निवासियों को अपने शहर के मोती महल रेस्तरां की याद तो है, लेकिन उन्हें पुख्ता तौर पर पता नहीं कि बटर चिकन मेन्यू में शामिल था या नहीं।

बटर चिकन के स्वामित्व को लेकर मोती महल और दरियागंज नाम की दो रेस्टोरेंट चेन कानूनी लड़ाई लड़ रही हैं। दोनों रेस्टोरेंट चेन, विभाजन के बाद दिल्ली में पूर्व साझेदार कुंदन लाल गुजराल और कुंदन लाल जग्गी द्वारा स्थापित की गई थीं। अब इनके वंशज इन रेस्टोरेंट्स को चला रहे हैं।

जियो न्यूज के अनुसार, यह कहानी 20वीं सदी की शुरुआत में पेशावर के कैंटोनमेंट क्षेत्र से आरंभ हुई। यहां मोती महल रेस्टोरेंट टीपू सुल्तान रोड के पास फव्वारा चौक पर एक इमारत की पहली मंजिल पर स्थित था।

इस रेस्टोरेंट की स्थापना के बारे में दो अलग-अलग कहानियां है। एक के अनुसार, दिल्ली में मोती महल के संस्थापक कुंदन लाल गुजराल ने 1920 में इसकी स्थापना की थी। वहीं, यह भी कहा जाता है कि इस रेस्टोरेंट मालिकाना हक सिख व्यवसायी मोका सिंह लांबा पास था। जग्गी ने बाद में यहां काम किया।

पेशावर के पुराने निवासी मुश्ताक खान ने जियो टीवी को बताया कि अपने सुनहरे दिनों में यह रेस्टोरेंट अपनी सुगंधित चाय, कुरकुरे-पकौड़ों, पनीर के व्यंजनों और तीखे दही आधारित स्नैक्स के लिए जाना जाता था, हालांकि यह थोड़ा महंगा था और ज्यादातर अमीर लोग यहां आते थे, जिनमें ब्रिटिश अधिकारी भी शामिल थे।

रेस्टोरेंट का रसोईघर ग्राउंड फ्लोर पर स्थित था। अब इस जगह पर पेशावर के एक पुराने निवासी इकबाल आरिफ की कपड़ों की दुकान है। उन्होंने बताया कि अपने समय में, मोती महल रेस्तरां की ऊपरी मंजिल पर एक पारंपरिक तंदूर था, जहां पेशावरी नान तैयार किया जाता था और तंदूरी चिकन को बारबेक्यू किया जाता था।

आरिफ ने जियो को बताया कि 1980 के दशक में उन्होंने सुना था कि गुजराल पेशावर आए थे और “कपड़े की दुकान के सामने एक पेड़ के सहारे बैठे कर सुबक-सुबक कर रो रहे थे। वह अपने पुराने रेस्टोरेंट के बारे में सोच रहे थे, हालांकि उन्हें यह जानकर तसल्ली हुई थी कि उनका रेस्टोरेंट और उसके स्वादिष्ट व्यंजन की याद लोगों ने अब भी संजोकर रखी है।’

वहीं, बिजनेसमैन शाहिद खान ने जियो को बताया कि उन्होंने बटर चिकन के सिलसिले में गुजराल का नाम कभी नहीं सुना, लेकिन अब अदालती मामले के कारण इस मुद्दे पर अक्सर चर्चा हो रही है।

सदर बाजार के बुजुर्ग व्यापारी चौधरी अब्दुल गफूर के मुताबिक पेशावर के मोती महल के मेन्यू में बटर चिकन कहीं नहीं था। उन्होंने कहा कि गुजराल ने दिल्ली आने के बाद इस मशहूर रेसिपी का आविष्कार किया।

जियो ने जब वादियों से संपर्क किया, तो गुजराल के वंशजों ने जोर देकर कहा कि बटर चिकन को पेशावर में उनके द्वारा विकसित किया गया था। वहीं जग्गी के पोते का तर्क है कि उनके दादा ने विभाजन के बाद दिल्ली में इस व्यंजन को इजाद किया, हालांकि यह पेशावर में सीखी गई पाक कला पर आधारित था।

–आईएएनएस

एमके/एकेजे

ADVERTISEMENT

इस्लामाबाद, 12 सितम्बर (आईएएनएस)। दिल्ली के दो रेस्टोरेंट्स के बीच बटर चिकन के ‘आविष्कार’ को लेकर लड़ी जा रही ‘जंग’ की लपटें पाकिस्तान तक पहुंच गई हैं। पेशावर के पुराने निवासियों को अपने शहर के मोती महल रेस्तरां की याद तो है, लेकिन उन्हें पुख्ता तौर पर पता नहीं कि बटर चिकन मेन्यू में शामिल था या नहीं।

बटर चिकन के स्वामित्व को लेकर मोती महल और दरियागंज नाम की दो रेस्टोरेंट चेन कानूनी लड़ाई लड़ रही हैं। दोनों रेस्टोरेंट चेन, विभाजन के बाद दिल्ली में पूर्व साझेदार कुंदन लाल गुजराल और कुंदन लाल जग्गी द्वारा स्थापित की गई थीं। अब इनके वंशज इन रेस्टोरेंट्स को चला रहे हैं।

जियो न्यूज के अनुसार, यह कहानी 20वीं सदी की शुरुआत में पेशावर के कैंटोनमेंट क्षेत्र से आरंभ हुई। यहां मोती महल रेस्टोरेंट टीपू सुल्तान रोड के पास फव्वारा चौक पर एक इमारत की पहली मंजिल पर स्थित था।

इस रेस्टोरेंट की स्थापना के बारे में दो अलग-अलग कहानियां है। एक के अनुसार, दिल्ली में मोती महल के संस्थापक कुंदन लाल गुजराल ने 1920 में इसकी स्थापना की थी। वहीं, यह भी कहा जाता है कि इस रेस्टोरेंट मालिकाना हक सिख व्यवसायी मोका सिंह लांबा पास था। जग्गी ने बाद में यहां काम किया।

पेशावर के पुराने निवासी मुश्ताक खान ने जियो टीवी को बताया कि अपने सुनहरे दिनों में यह रेस्टोरेंट अपनी सुगंधित चाय, कुरकुरे-पकौड़ों, पनीर के व्यंजनों और तीखे दही आधारित स्नैक्स के लिए जाना जाता था, हालांकि यह थोड़ा महंगा था और ज्यादातर अमीर लोग यहां आते थे, जिनमें ब्रिटिश अधिकारी भी शामिल थे।

रेस्टोरेंट का रसोईघर ग्राउंड फ्लोर पर स्थित था। अब इस जगह पर पेशावर के एक पुराने निवासी इकबाल आरिफ की कपड़ों की दुकान है। उन्होंने बताया कि अपने समय में, मोती महल रेस्तरां की ऊपरी मंजिल पर एक पारंपरिक तंदूर था, जहां पेशावरी नान तैयार किया जाता था और तंदूरी चिकन को बारबेक्यू किया जाता था।

आरिफ ने जियो को बताया कि 1980 के दशक में उन्होंने सुना था कि गुजराल पेशावर आए थे और “कपड़े की दुकान के सामने एक पेड़ के सहारे बैठे कर सुबक-सुबक कर रो रहे थे। वह अपने पुराने रेस्टोरेंट के बारे में सोच रहे थे, हालांकि उन्हें यह जानकर तसल्ली हुई थी कि उनका रेस्टोरेंट और उसके स्वादिष्ट व्यंजन की याद लोगों ने अब भी संजोकर रखी है।’

वहीं, बिजनेसमैन शाहिद खान ने जियो को बताया कि उन्होंने बटर चिकन के सिलसिले में गुजराल का नाम कभी नहीं सुना, लेकिन अब अदालती मामले के कारण इस मुद्दे पर अक्सर चर्चा हो रही है।

सदर बाजार के बुजुर्ग व्यापारी चौधरी अब्दुल गफूर के मुताबिक पेशावर के मोती महल के मेन्यू में बटर चिकन कहीं नहीं था। उन्होंने कहा कि गुजराल ने दिल्ली आने के बाद इस मशहूर रेसिपी का आविष्कार किया।

जियो ने जब वादियों से संपर्क किया, तो गुजराल के वंशजों ने जोर देकर कहा कि बटर चिकन को पेशावर में उनके द्वारा विकसित किया गया था। वहीं जग्गी के पोते का तर्क है कि उनके दादा ने विभाजन के बाद दिल्ली में इस व्यंजन को इजाद किया, हालांकि यह पेशावर में सीखी गई पाक कला पर आधारित था।

–आईएएनएस

एमके/एकेजे

ADVERTISEMENT

इस्लामाबाद, 12 सितम्बर (आईएएनएस)। दिल्ली के दो रेस्टोरेंट्स के बीच बटर चिकन के ‘आविष्कार’ को लेकर लड़ी जा रही ‘जंग’ की लपटें पाकिस्तान तक पहुंच गई हैं। पेशावर के पुराने निवासियों को अपने शहर के मोती महल रेस्तरां की याद तो है, लेकिन उन्हें पुख्ता तौर पर पता नहीं कि बटर चिकन मेन्यू में शामिल था या नहीं।

बटर चिकन के स्वामित्व को लेकर मोती महल और दरियागंज नाम की दो रेस्टोरेंट चेन कानूनी लड़ाई लड़ रही हैं। दोनों रेस्टोरेंट चेन, विभाजन के बाद दिल्ली में पूर्व साझेदार कुंदन लाल गुजराल और कुंदन लाल जग्गी द्वारा स्थापित की गई थीं। अब इनके वंशज इन रेस्टोरेंट्स को चला रहे हैं।

जियो न्यूज के अनुसार, यह कहानी 20वीं सदी की शुरुआत में पेशावर के कैंटोनमेंट क्षेत्र से आरंभ हुई। यहां मोती महल रेस्टोरेंट टीपू सुल्तान रोड के पास फव्वारा चौक पर एक इमारत की पहली मंजिल पर स्थित था।

इस रेस्टोरेंट की स्थापना के बारे में दो अलग-अलग कहानियां है। एक के अनुसार, दिल्ली में मोती महल के संस्थापक कुंदन लाल गुजराल ने 1920 में इसकी स्थापना की थी। वहीं, यह भी कहा जाता है कि इस रेस्टोरेंट मालिकाना हक सिख व्यवसायी मोका सिंह लांबा पास था। जग्गी ने बाद में यहां काम किया।

पेशावर के पुराने निवासी मुश्ताक खान ने जियो टीवी को बताया कि अपने सुनहरे दिनों में यह रेस्टोरेंट अपनी सुगंधित चाय, कुरकुरे-पकौड़ों, पनीर के व्यंजनों और तीखे दही आधारित स्नैक्स के लिए जाना जाता था, हालांकि यह थोड़ा महंगा था और ज्यादातर अमीर लोग यहां आते थे, जिनमें ब्रिटिश अधिकारी भी शामिल थे।

रेस्टोरेंट का रसोईघर ग्राउंड फ्लोर पर स्थित था। अब इस जगह पर पेशावर के एक पुराने निवासी इकबाल आरिफ की कपड़ों की दुकान है। उन्होंने बताया कि अपने समय में, मोती महल रेस्तरां की ऊपरी मंजिल पर एक पारंपरिक तंदूर था, जहां पेशावरी नान तैयार किया जाता था और तंदूरी चिकन को बारबेक्यू किया जाता था।

आरिफ ने जियो को बताया कि 1980 के दशक में उन्होंने सुना था कि गुजराल पेशावर आए थे और “कपड़े की दुकान के सामने एक पेड़ के सहारे बैठे कर सुबक-सुबक कर रो रहे थे। वह अपने पुराने रेस्टोरेंट के बारे में सोच रहे थे, हालांकि उन्हें यह जानकर तसल्ली हुई थी कि उनका रेस्टोरेंट और उसके स्वादिष्ट व्यंजन की याद लोगों ने अब भी संजोकर रखी है।’

वहीं, बिजनेसमैन शाहिद खान ने जियो को बताया कि उन्होंने बटर चिकन के सिलसिले में गुजराल का नाम कभी नहीं सुना, लेकिन अब अदालती मामले के कारण इस मुद्दे पर अक्सर चर्चा हो रही है।

सदर बाजार के बुजुर्ग व्यापारी चौधरी अब्दुल गफूर के मुताबिक पेशावर के मोती महल के मेन्यू में बटर चिकन कहीं नहीं था। उन्होंने कहा कि गुजराल ने दिल्ली आने के बाद इस मशहूर रेसिपी का आविष्कार किया।

जियो ने जब वादियों से संपर्क किया, तो गुजराल के वंशजों ने जोर देकर कहा कि बटर चिकन को पेशावर में उनके द्वारा विकसित किया गया था। वहीं जग्गी के पोते का तर्क है कि उनके दादा ने विभाजन के बाद दिल्ली में इस व्यंजन को इजाद किया, हालांकि यह पेशावर में सीखी गई पाक कला पर आधारित था।

–आईएएनएस

एमके/एकेजे

ADVERTISEMENT

इस्लामाबाद, 12 सितम्बर (आईएएनएस)। दिल्ली के दो रेस्टोरेंट्स के बीच बटर चिकन के ‘आविष्कार’ को लेकर लड़ी जा रही ‘जंग’ की लपटें पाकिस्तान तक पहुंच गई हैं। पेशावर के पुराने निवासियों को अपने शहर के मोती महल रेस्तरां की याद तो है, लेकिन उन्हें पुख्ता तौर पर पता नहीं कि बटर चिकन मेन्यू में शामिल था या नहीं।

बटर चिकन के स्वामित्व को लेकर मोती महल और दरियागंज नाम की दो रेस्टोरेंट चेन कानूनी लड़ाई लड़ रही हैं। दोनों रेस्टोरेंट चेन, विभाजन के बाद दिल्ली में पूर्व साझेदार कुंदन लाल गुजराल और कुंदन लाल जग्गी द्वारा स्थापित की गई थीं। अब इनके वंशज इन रेस्टोरेंट्स को चला रहे हैं।

जियो न्यूज के अनुसार, यह कहानी 20वीं सदी की शुरुआत में पेशावर के कैंटोनमेंट क्षेत्र से आरंभ हुई। यहां मोती महल रेस्टोरेंट टीपू सुल्तान रोड के पास फव्वारा चौक पर एक इमारत की पहली मंजिल पर स्थित था।

इस रेस्टोरेंट की स्थापना के बारे में दो अलग-अलग कहानियां है। एक के अनुसार, दिल्ली में मोती महल के संस्थापक कुंदन लाल गुजराल ने 1920 में इसकी स्थापना की थी। वहीं, यह भी कहा जाता है कि इस रेस्टोरेंट मालिकाना हक सिख व्यवसायी मोका सिंह लांबा पास था। जग्गी ने बाद में यहां काम किया।

पेशावर के पुराने निवासी मुश्ताक खान ने जियो टीवी को बताया कि अपने सुनहरे दिनों में यह रेस्टोरेंट अपनी सुगंधित चाय, कुरकुरे-पकौड़ों, पनीर के व्यंजनों और तीखे दही आधारित स्नैक्स के लिए जाना जाता था, हालांकि यह थोड़ा महंगा था और ज्यादातर अमीर लोग यहां आते थे, जिनमें ब्रिटिश अधिकारी भी शामिल थे।

रेस्टोरेंट का रसोईघर ग्राउंड फ्लोर पर स्थित था। अब इस जगह पर पेशावर के एक पुराने निवासी इकबाल आरिफ की कपड़ों की दुकान है। उन्होंने बताया कि अपने समय में, मोती महल रेस्तरां की ऊपरी मंजिल पर एक पारंपरिक तंदूर था, जहां पेशावरी नान तैयार किया जाता था और तंदूरी चिकन को बारबेक्यू किया जाता था।

आरिफ ने जियो को बताया कि 1980 के दशक में उन्होंने सुना था कि गुजराल पेशावर आए थे और “कपड़े की दुकान के सामने एक पेड़ के सहारे बैठे कर सुबक-सुबक कर रो रहे थे। वह अपने पुराने रेस्टोरेंट के बारे में सोच रहे थे, हालांकि उन्हें यह जानकर तसल्ली हुई थी कि उनका रेस्टोरेंट और उसके स्वादिष्ट व्यंजन की याद लोगों ने अब भी संजोकर रखी है।’

वहीं, बिजनेसमैन शाहिद खान ने जियो को बताया कि उन्होंने बटर चिकन के सिलसिले में गुजराल का नाम कभी नहीं सुना, लेकिन अब अदालती मामले के कारण इस मुद्दे पर अक्सर चर्चा हो रही है।

सदर बाजार के बुजुर्ग व्यापारी चौधरी अब्दुल गफूर के मुताबिक पेशावर के मोती महल के मेन्यू में बटर चिकन कहीं नहीं था। उन्होंने कहा कि गुजराल ने दिल्ली आने के बाद इस मशहूर रेसिपी का आविष्कार किया।

जियो ने जब वादियों से संपर्क किया, तो गुजराल के वंशजों ने जोर देकर कहा कि बटर चिकन को पेशावर में उनके द्वारा विकसित किया गया था। वहीं जग्गी के पोते का तर्क है कि उनके दादा ने विभाजन के बाद दिल्ली में इस व्यंजन को इजाद किया, हालांकि यह पेशावर में सीखी गई पाक कला पर आधारित था।

–आईएएनएस

एमके/एकेजे

ADVERTISEMENT

इस्लामाबाद, 12 सितम्बर (आईएएनएस)। दिल्ली के दो रेस्टोरेंट्स के बीच बटर चिकन के ‘आविष्कार’ को लेकर लड़ी जा रही ‘जंग’ की लपटें पाकिस्तान तक पहुंच गई हैं। पेशावर के पुराने निवासियों को अपने शहर के मोती महल रेस्तरां की याद तो है, लेकिन उन्हें पुख्ता तौर पर पता नहीं कि बटर चिकन मेन्यू में शामिल था या नहीं।

बटर चिकन के स्वामित्व को लेकर मोती महल और दरियागंज नाम की दो रेस्टोरेंट चेन कानूनी लड़ाई लड़ रही हैं। दोनों रेस्टोरेंट चेन, विभाजन के बाद दिल्ली में पूर्व साझेदार कुंदन लाल गुजराल और कुंदन लाल जग्गी द्वारा स्थापित की गई थीं। अब इनके वंशज इन रेस्टोरेंट्स को चला रहे हैं।

जियो न्यूज के अनुसार, यह कहानी 20वीं सदी की शुरुआत में पेशावर के कैंटोनमेंट क्षेत्र से आरंभ हुई। यहां मोती महल रेस्टोरेंट टीपू सुल्तान रोड के पास फव्वारा चौक पर एक इमारत की पहली मंजिल पर स्थित था।

इस रेस्टोरेंट की स्थापना के बारे में दो अलग-अलग कहानियां है। एक के अनुसार, दिल्ली में मोती महल के संस्थापक कुंदन लाल गुजराल ने 1920 में इसकी स्थापना की थी। वहीं, यह भी कहा जाता है कि इस रेस्टोरेंट मालिकाना हक सिख व्यवसायी मोका सिंह लांबा पास था। जग्गी ने बाद में यहां काम किया।

पेशावर के पुराने निवासी मुश्ताक खान ने जियो टीवी को बताया कि अपने सुनहरे दिनों में यह रेस्टोरेंट अपनी सुगंधित चाय, कुरकुरे-पकौड़ों, पनीर के व्यंजनों और तीखे दही आधारित स्नैक्स के लिए जाना जाता था, हालांकि यह थोड़ा महंगा था और ज्यादातर अमीर लोग यहां आते थे, जिनमें ब्रिटिश अधिकारी भी शामिल थे।

रेस्टोरेंट का रसोईघर ग्राउंड फ्लोर पर स्थित था। अब इस जगह पर पेशावर के एक पुराने निवासी इकबाल आरिफ की कपड़ों की दुकान है। उन्होंने बताया कि अपने समय में, मोती महल रेस्तरां की ऊपरी मंजिल पर एक पारंपरिक तंदूर था, जहां पेशावरी नान तैयार किया जाता था और तंदूरी चिकन को बारबेक्यू किया जाता था।

आरिफ ने जियो को बताया कि 1980 के दशक में उन्होंने सुना था कि गुजराल पेशावर आए थे और “कपड़े की दुकान के सामने एक पेड़ के सहारे बैठे कर सुबक-सुबक कर रो रहे थे। वह अपने पुराने रेस्टोरेंट के बारे में सोच रहे थे, हालांकि उन्हें यह जानकर तसल्ली हुई थी कि उनका रेस्टोरेंट और उसके स्वादिष्ट व्यंजन की याद लोगों ने अब भी संजोकर रखी है।’

वहीं, बिजनेसमैन शाहिद खान ने जियो को बताया कि उन्होंने बटर चिकन के सिलसिले में गुजराल का नाम कभी नहीं सुना, लेकिन अब अदालती मामले के कारण इस मुद्दे पर अक्सर चर्चा हो रही है।

सदर बाजार के बुजुर्ग व्यापारी चौधरी अब्दुल गफूर के मुताबिक पेशावर के मोती महल के मेन्यू में बटर चिकन कहीं नहीं था। उन्होंने कहा कि गुजराल ने दिल्ली आने के बाद इस मशहूर रेसिपी का आविष्कार किया।

जियो ने जब वादियों से संपर्क किया, तो गुजराल के वंशजों ने जोर देकर कहा कि बटर चिकन को पेशावर में उनके द्वारा विकसित किया गया था। वहीं जग्गी के पोते का तर्क है कि उनके दादा ने विभाजन के बाद दिल्ली में इस व्यंजन को इजाद किया, हालांकि यह पेशावर में सीखी गई पाक कला पर आधारित था।

–आईएएनएस

एमके/एकेजे

ADVERTISEMENT

इस्लामाबाद, 12 सितम्बर (आईएएनएस)। दिल्ली के दो रेस्टोरेंट्स के बीच बटर चिकन के ‘आविष्कार’ को लेकर लड़ी जा रही ‘जंग’ की लपटें पाकिस्तान तक पहुंच गई हैं। पेशावर के पुराने निवासियों को अपने शहर के मोती महल रेस्तरां की याद तो है, लेकिन उन्हें पुख्ता तौर पर पता नहीं कि बटर चिकन मेन्यू में शामिल था या नहीं।

बटर चिकन के स्वामित्व को लेकर मोती महल और दरियागंज नाम की दो रेस्टोरेंट चेन कानूनी लड़ाई लड़ रही हैं। दोनों रेस्टोरेंट चेन, विभाजन के बाद दिल्ली में पूर्व साझेदार कुंदन लाल गुजराल और कुंदन लाल जग्गी द्वारा स्थापित की गई थीं। अब इनके वंशज इन रेस्टोरेंट्स को चला रहे हैं।

जियो न्यूज के अनुसार, यह कहानी 20वीं सदी की शुरुआत में पेशावर के कैंटोनमेंट क्षेत्र से आरंभ हुई। यहां मोती महल रेस्टोरेंट टीपू सुल्तान रोड के पास फव्वारा चौक पर एक इमारत की पहली मंजिल पर स्थित था।

इस रेस्टोरेंट की स्थापना के बारे में दो अलग-अलग कहानियां है। एक के अनुसार, दिल्ली में मोती महल के संस्थापक कुंदन लाल गुजराल ने 1920 में इसकी स्थापना की थी। वहीं, यह भी कहा जाता है कि इस रेस्टोरेंट मालिकाना हक सिख व्यवसायी मोका सिंह लांबा पास था। जग्गी ने बाद में यहां काम किया।

पेशावर के पुराने निवासी मुश्ताक खान ने जियो टीवी को बताया कि अपने सुनहरे दिनों में यह रेस्टोरेंट अपनी सुगंधित चाय, कुरकुरे-पकौड़ों, पनीर के व्यंजनों और तीखे दही आधारित स्नैक्स के लिए जाना जाता था, हालांकि यह थोड़ा महंगा था और ज्यादातर अमीर लोग यहां आते थे, जिनमें ब्रिटिश अधिकारी भी शामिल थे।

रेस्टोरेंट का रसोईघर ग्राउंड फ्लोर पर स्थित था। अब इस जगह पर पेशावर के एक पुराने निवासी इकबाल आरिफ की कपड़ों की दुकान है। उन्होंने बताया कि अपने समय में, मोती महल रेस्तरां की ऊपरी मंजिल पर एक पारंपरिक तंदूर था, जहां पेशावरी नान तैयार किया जाता था और तंदूरी चिकन को बारबेक्यू किया जाता था।

आरिफ ने जियो को बताया कि 1980 के दशक में उन्होंने सुना था कि गुजराल पेशावर आए थे और “कपड़े की दुकान के सामने एक पेड़ के सहारे बैठे कर सुबक-सुबक कर रो रहे थे। वह अपने पुराने रेस्टोरेंट के बारे में सोच रहे थे, हालांकि उन्हें यह जानकर तसल्ली हुई थी कि उनका रेस्टोरेंट और उसके स्वादिष्ट व्यंजन की याद लोगों ने अब भी संजोकर रखी है।’

वहीं, बिजनेसमैन शाहिद खान ने जियो को बताया कि उन्होंने बटर चिकन के सिलसिले में गुजराल का नाम कभी नहीं सुना, लेकिन अब अदालती मामले के कारण इस मुद्दे पर अक्सर चर्चा हो रही है।

सदर बाजार के बुजुर्ग व्यापारी चौधरी अब्दुल गफूर के मुताबिक पेशावर के मोती महल के मेन्यू में बटर चिकन कहीं नहीं था। उन्होंने कहा कि गुजराल ने दिल्ली आने के बाद इस मशहूर रेसिपी का आविष्कार किया।

जियो ने जब वादियों से संपर्क किया, तो गुजराल के वंशजों ने जोर देकर कहा कि बटर चिकन को पेशावर में उनके द्वारा विकसित किया गया था। वहीं जग्गी के पोते का तर्क है कि उनके दादा ने विभाजन के बाद दिल्ली में इस व्यंजन को इजाद किया, हालांकि यह पेशावर में सीखी गई पाक कला पर आधारित था।

–आईएएनएस

एमके/एकेजे

Related Posts

हेलिकॉप्टर मेलानिया ट्रंप वायरल वीडियो सच
अंतरराष्ट्रीय

हेलिकॉप्टर में मेलानिया पर भड़के ट्रंप? वायरल वीडियो का सच सामने आया

September 27, 2025
बांग्लादेश में मंदिरों पर हमलों के बीच हिंदुओं की मांग, ‘हमारे धार्मिक स्थलों को सालभर मुहैया कराई जाए सुरक्षा’
अंतरराष्ट्रीय

बांग्लादेश में मंदिरों पर हमलों के बीच हिंदुओं की मांग, ‘हमारे धार्मिक स्थलों को सालभर मुहैया कराई जाए सुरक्षा’

September 27, 2025
प्रधानमंत्री मोदी का ओडिशा दौरा : युवाओं ने कहा- पीएम के नेतृत्व में देश को मिल रही नई दिशा
अंतरराष्ट्रीय

प्रधानमंत्री मोदी का ओडिशा दौरा : युवाओं ने कहा- पीएम के नेतृत्व में देश को मिल रही नई दिशा

September 27, 2025
किम जोंग उन ने परमाणु शक्ति पर दोहराया अपना ‘अपरिवर्तनीय’ रुख, कहा- देश की सुरक्षा के लिए जरूरी
अंतरराष्ट्रीय

किम जोंग उन ने परमाणु शक्ति पर दोहराया अपना ‘अपरिवर्तनीय’ रुख, कहा- देश की सुरक्षा के लिए जरूरी

September 27, 2025
दो-राज्य समाधान की नींव को नष्ट करने वाली एकतरफ़ा कार्रवाइयों का विरोध करें: चीन
अंतरराष्ट्रीय

दो-राज्य समाधान की नींव को नष्ट करने वाली एकतरफ़ा कार्रवाइयों का विरोध करें: चीन

September 26, 2025
शेनचोउ-20 अंतरिक्ष यात्री दल ने चौथी बाह्ययान गतिविधि सफलतापूर्वक पूरी की
अंतरराष्ट्रीय

शेनचोउ-20 अंतरिक्ष यात्री दल ने चौथी बाह्ययान गतिविधि सफलतापूर्वक पूरी की

September 26, 2025
Next Post
विपक्ष ने गणेशोत्‍सव पर्व का किया अपमान, महाराष्ट्र की महान पंरपरा पर पहुंचाया चोट : हितेश जैन

विपक्ष ने गणेशोत्‍सव पर्व का किया अपमान, महाराष्ट्र की महान पंरपरा पर पहुंचाया चोट : हितेश जैन

Leave a Reply Cancel reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

ADVERTISEMENT

Contact us

Address

Deshbandhu Complex, Naudra Bridge Jabalpur 482001

Mail

deshbandhump@gmail.com

Mobile

9425156056

Important links

  • राशि-भविष्य
  • वर्गीकृत विज्ञापन
  • लाइफ स्टाइल
  • मनोरंजन
  • ब्लॉग

Important links

  • देशबन्धु जनमत
  • पाठक प्रतिक्रियाएं
  • हमें जानें
  • विज्ञापन दरें
  • ई पेपर

Related Links

  • Mayaram Surjan
  • Swayamsiddha
  • Deshbandhu

Social Links

114389
Total views : 6017752
Powered By WPS Visitor Counter

Published by Abhas Surjan on behalf of Patrakar Prakashan Pvt.Ltd., Deshbandhu Complex, Naudra Bridge, Jabalpur – 482001 |T:+91 761 4006577 |M: +91 9425156056 Disclaimer, Privacy Policy & Other Terms & Conditions The contents of this website is for reading only. Any unauthorised attempt to temper / edit / change the contents of this website comes under cyber crime and is punishable.

Copyright @ 2022 Deshbandhu. All rights are reserved.

  • Disclaimer, Privacy Policy & Other Terms & Conditions
No Result
View All Result
  • राष्ट्रीय
  • अंतरराष्ट्रीय
  • लाइफ स्टाइल
  • अर्थजगत
  • मनोरंजन
  • खेल
  • अभिमत
  • धर्म
  • विचार
  • ई पेपर

Copyright @ 2022 Deshbandhu-MP All rights are reserved.

Welcome Back!

Login to your account below

Forgotten Password? Sign Up

Create New Account!

Fill the forms below to register

All fields are required. Log In

Retrieve your password

Please enter your username or email address to reset your password.

Log In