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बर्थडे स्पेशल: पैरालंपिक में पदक जीतने वाली पहली महिला एथलीट

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September 29, 2024
in खेल
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बर्थडे स्पेशल: पैरालंपिक में पदक जीतने वाली पहली महिला एथलीट
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नई दिल्ली, 29 सितंबर (आईएएनएस)। ‘मंजिलें क्या हैं, रास्ता क्या है हौसला हो तो फासला क्या है’, कुछ ऐसा ही इरादा रखने वाली दीपा मलिक ने पैरालंपिक में अपना नाम बनाया। वो एक प्रमुख भारतीय पैरालंपियन और खिलाड़ी हैं, जिन्होंने खेल जगत में अपना एक विशेष स्थान बनाया है। पैरालंपिक खेलों में मेडल जीतने वाली दीपा मलिक पहली भारतीय महिला हैं।

उनका जन्म 1970 में हुआ था। दीपा के जीवन में एक महत्वपूर्ण मोड़ तब आया जब उन्हें 1999 में स्पाइनल ट्यूमर का सामना करना पड़ा, जिससे उनके शरीर के निचले हिस्से ने काम करना बंद कर दिया और उन्हें व्हीलचेयर पर निर्भर होना पड़ा। हालांकि, उन्होंने इससे हार नहीं मानी और अपने जीवन में एक नए अध्याय पर फोकस किया।

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दीपा खेल में ही आगे नहीं है, वह सामाजिक कार्य करने के साथ-साथ लेखन भी करती हैं। गंभीर बीमारी से पीड़ित लोगों के लिए कैंपेन चलाती है और सामाजिक संस्थाओं के कार्यक्रमों में बढ़ चढ़कर हिस्सा लेती हैं।

दीपा शॉट पुटर के अलावा स्विमर, बाइकर, जैवलिन और डिस्कस थ्रोअर हैं। रियो पैरालंपिक खेलों में रजत पदक जीतकर वह पैरालंपिक खेलों में पदक जीतने वाली पहली भारतीय महिला खिलाड़ी बनी।

2012 में उन्हें ‘अर्जुन पुरस्कार’ से नवाजा जा चुका है। भाला फेंक में दीपा मलिक के नाम पर एशियाई रिकॉर्ड है, जबकि गोला फेंक (शॉट पुट) और चक्का फेंक (डिस्कस थ्रो) में उन्होंने 2011 में विश्व चैंपियनशिप में रजत पदक जीते थे। 2019 में उन्हें खेल रत्न पुरस्कार से भी नवाजा जा चुका है।

दीपा मलिक का संघर्ष, मेहनत, और समर्पण उनके प्रेरणादायक जीवन की कहानी को उजागर करता है।

–आईएएनएस

आरआर/

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नई दिल्ली, 29 सितंबर (आईएएनएस)। ‘मंजिलें क्या हैं, रास्ता क्या है हौसला हो तो फासला क्या है’, कुछ ऐसा ही इरादा रखने वाली दीपा मलिक ने पैरालंपिक में अपना नाम बनाया। वो एक प्रमुख भारतीय पैरालंपियन और खिलाड़ी हैं, जिन्होंने खेल जगत में अपना एक विशेष स्थान बनाया है। पैरालंपिक खेलों में मेडल जीतने वाली दीपा मलिक पहली भारतीय महिला हैं।

उनका जन्म 1970 में हुआ था। दीपा के जीवन में एक महत्वपूर्ण मोड़ तब आया जब उन्हें 1999 में स्पाइनल ट्यूमर का सामना करना पड़ा, जिससे उनके शरीर के निचले हिस्से ने काम करना बंद कर दिया और उन्हें व्हीलचेयर पर निर्भर होना पड़ा। हालांकि, उन्होंने इससे हार नहीं मानी और अपने जीवन में एक नए अध्याय पर फोकस किया।

दीपा खेल में ही आगे नहीं है, वह सामाजिक कार्य करने के साथ-साथ लेखन भी करती हैं। गंभीर बीमारी से पीड़ित लोगों के लिए कैंपेन चलाती है और सामाजिक संस्थाओं के कार्यक्रमों में बढ़ चढ़कर हिस्सा लेती हैं।

दीपा शॉट पुटर के अलावा स्विमर, बाइकर, जैवलिन और डिस्कस थ्रोअर हैं। रियो पैरालंपिक खेलों में रजत पदक जीतकर वह पैरालंपिक खेलों में पदक जीतने वाली पहली भारतीय महिला खिलाड़ी बनी।

2012 में उन्हें ‘अर्जुन पुरस्कार’ से नवाजा जा चुका है। भाला फेंक में दीपा मलिक के नाम पर एशियाई रिकॉर्ड है, जबकि गोला फेंक (शॉट पुट) और चक्का फेंक (डिस्कस थ्रो) में उन्होंने 2011 में विश्व चैंपियनशिप में रजत पदक जीते थे। 2019 में उन्हें खेल रत्न पुरस्कार से भी नवाजा जा चुका है।

दीपा मलिक का संघर्ष, मेहनत, और समर्पण उनके प्रेरणादायक जीवन की कहानी को उजागर करता है।

–आईएएनएस

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नई दिल्ली, 29 सितंबर (आईएएनएस)। ‘मंजिलें क्या हैं, रास्ता क्या है हौसला हो तो फासला क्या है’, कुछ ऐसा ही इरादा रखने वाली दीपा मलिक ने पैरालंपिक में अपना नाम बनाया। वो एक प्रमुख भारतीय पैरालंपियन और खिलाड़ी हैं, जिन्होंने खेल जगत में अपना एक विशेष स्थान बनाया है। पैरालंपिक खेलों में मेडल जीतने वाली दीपा मलिक पहली भारतीय महिला हैं।

उनका जन्म 1970 में हुआ था। दीपा के जीवन में एक महत्वपूर्ण मोड़ तब आया जब उन्हें 1999 में स्पाइनल ट्यूमर का सामना करना पड़ा, जिससे उनके शरीर के निचले हिस्से ने काम करना बंद कर दिया और उन्हें व्हीलचेयर पर निर्भर होना पड़ा। हालांकि, उन्होंने इससे हार नहीं मानी और अपने जीवन में एक नए अध्याय पर फोकस किया।

दीपा खेल में ही आगे नहीं है, वह सामाजिक कार्य करने के साथ-साथ लेखन भी करती हैं। गंभीर बीमारी से पीड़ित लोगों के लिए कैंपेन चलाती है और सामाजिक संस्थाओं के कार्यक्रमों में बढ़ चढ़कर हिस्सा लेती हैं।

दीपा शॉट पुटर के अलावा स्विमर, बाइकर, जैवलिन और डिस्कस थ्रोअर हैं। रियो पैरालंपिक खेलों में रजत पदक जीतकर वह पैरालंपिक खेलों में पदक जीतने वाली पहली भारतीय महिला खिलाड़ी बनी।

2012 में उन्हें ‘अर्जुन पुरस्कार’ से नवाजा जा चुका है। भाला फेंक में दीपा मलिक के नाम पर एशियाई रिकॉर्ड है, जबकि गोला फेंक (शॉट पुट) और चक्का फेंक (डिस्कस थ्रो) में उन्होंने 2011 में विश्व चैंपियनशिप में रजत पदक जीते थे। 2019 में उन्हें खेल रत्न पुरस्कार से भी नवाजा जा चुका है।

दीपा मलिक का संघर्ष, मेहनत, और समर्पण उनके प्रेरणादायक जीवन की कहानी को उजागर करता है।

–आईएएनएस

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नई दिल्ली, 29 सितंबर (आईएएनएस)। ‘मंजिलें क्या हैं, रास्ता क्या है हौसला हो तो फासला क्या है’, कुछ ऐसा ही इरादा रखने वाली दीपा मलिक ने पैरालंपिक में अपना नाम बनाया। वो एक प्रमुख भारतीय पैरालंपियन और खिलाड़ी हैं, जिन्होंने खेल जगत में अपना एक विशेष स्थान बनाया है। पैरालंपिक खेलों में मेडल जीतने वाली दीपा मलिक पहली भारतीय महिला हैं।

उनका जन्म 1970 में हुआ था। दीपा के जीवन में एक महत्वपूर्ण मोड़ तब आया जब उन्हें 1999 में स्पाइनल ट्यूमर का सामना करना पड़ा, जिससे उनके शरीर के निचले हिस्से ने काम करना बंद कर दिया और उन्हें व्हीलचेयर पर निर्भर होना पड़ा। हालांकि, उन्होंने इससे हार नहीं मानी और अपने जीवन में एक नए अध्याय पर फोकस किया।

दीपा खेल में ही आगे नहीं है, वह सामाजिक कार्य करने के साथ-साथ लेखन भी करती हैं। गंभीर बीमारी से पीड़ित लोगों के लिए कैंपेन चलाती है और सामाजिक संस्थाओं के कार्यक्रमों में बढ़ चढ़कर हिस्सा लेती हैं।

दीपा शॉट पुटर के अलावा स्विमर, बाइकर, जैवलिन और डिस्कस थ्रोअर हैं। रियो पैरालंपिक खेलों में रजत पदक जीतकर वह पैरालंपिक खेलों में पदक जीतने वाली पहली भारतीय महिला खिलाड़ी बनी।

2012 में उन्हें ‘अर्जुन पुरस्कार’ से नवाजा जा चुका है। भाला फेंक में दीपा मलिक के नाम पर एशियाई रिकॉर्ड है, जबकि गोला फेंक (शॉट पुट) और चक्का फेंक (डिस्कस थ्रो) में उन्होंने 2011 में विश्व चैंपियनशिप में रजत पदक जीते थे। 2019 में उन्हें खेल रत्न पुरस्कार से भी नवाजा जा चुका है।

दीपा मलिक का संघर्ष, मेहनत, और समर्पण उनके प्रेरणादायक जीवन की कहानी को उजागर करता है।

–आईएएनएस

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नई दिल्ली, 29 सितंबर (आईएएनएस)। ‘मंजिलें क्या हैं, रास्ता क्या है हौसला हो तो फासला क्या है’, कुछ ऐसा ही इरादा रखने वाली दीपा मलिक ने पैरालंपिक में अपना नाम बनाया। वो एक प्रमुख भारतीय पैरालंपियन और खिलाड़ी हैं, जिन्होंने खेल जगत में अपना एक विशेष स्थान बनाया है। पैरालंपिक खेलों में मेडल जीतने वाली दीपा मलिक पहली भारतीय महिला हैं।

उनका जन्म 1970 में हुआ था। दीपा के जीवन में एक महत्वपूर्ण मोड़ तब आया जब उन्हें 1999 में स्पाइनल ट्यूमर का सामना करना पड़ा, जिससे उनके शरीर के निचले हिस्से ने काम करना बंद कर दिया और उन्हें व्हीलचेयर पर निर्भर होना पड़ा। हालांकि, उन्होंने इससे हार नहीं मानी और अपने जीवन में एक नए अध्याय पर फोकस किया।

दीपा खेल में ही आगे नहीं है, वह सामाजिक कार्य करने के साथ-साथ लेखन भी करती हैं। गंभीर बीमारी से पीड़ित लोगों के लिए कैंपेन चलाती है और सामाजिक संस्थाओं के कार्यक्रमों में बढ़ चढ़कर हिस्सा लेती हैं।

दीपा शॉट पुटर के अलावा स्विमर, बाइकर, जैवलिन और डिस्कस थ्रोअर हैं। रियो पैरालंपिक खेलों में रजत पदक जीतकर वह पैरालंपिक खेलों में पदक जीतने वाली पहली भारतीय महिला खिलाड़ी बनी।

2012 में उन्हें ‘अर्जुन पुरस्कार’ से नवाजा जा चुका है। भाला फेंक में दीपा मलिक के नाम पर एशियाई रिकॉर्ड है, जबकि गोला फेंक (शॉट पुट) और चक्का फेंक (डिस्कस थ्रो) में उन्होंने 2011 में विश्व चैंपियनशिप में रजत पदक जीते थे। 2019 में उन्हें खेल रत्न पुरस्कार से भी नवाजा जा चुका है।

दीपा मलिक का संघर्ष, मेहनत, और समर्पण उनके प्रेरणादायक जीवन की कहानी को उजागर करता है।

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उनका जन्म 1970 में हुआ था। दीपा के जीवन में एक महत्वपूर्ण मोड़ तब आया जब उन्हें 1999 में स्पाइनल ट्यूमर का सामना करना पड़ा, जिससे उनके शरीर के निचले हिस्से ने काम करना बंद कर दिया और उन्हें व्हीलचेयर पर निर्भर होना पड़ा। हालांकि, उन्होंने इससे हार नहीं मानी और अपने जीवन में एक नए अध्याय पर फोकस किया।

दीपा खेल में ही आगे नहीं है, वह सामाजिक कार्य करने के साथ-साथ लेखन भी करती हैं। गंभीर बीमारी से पीड़ित लोगों के लिए कैंपेन चलाती है और सामाजिक संस्थाओं के कार्यक्रमों में बढ़ चढ़कर हिस्सा लेती हैं।

दीपा शॉट पुटर के अलावा स्विमर, बाइकर, जैवलिन और डिस्कस थ्रोअर हैं। रियो पैरालंपिक खेलों में रजत पदक जीतकर वह पैरालंपिक खेलों में पदक जीतने वाली पहली भारतीय महिला खिलाड़ी बनी।

2012 में उन्हें ‘अर्जुन पुरस्कार’ से नवाजा जा चुका है। भाला फेंक में दीपा मलिक के नाम पर एशियाई रिकॉर्ड है, जबकि गोला फेंक (शॉट पुट) और चक्का फेंक (डिस्कस थ्रो) में उन्होंने 2011 में विश्व चैंपियनशिप में रजत पदक जीते थे। 2019 में उन्हें खेल रत्न पुरस्कार से भी नवाजा जा चुका है।

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उनका जन्म 1970 में हुआ था। दीपा के जीवन में एक महत्वपूर्ण मोड़ तब आया जब उन्हें 1999 में स्पाइनल ट्यूमर का सामना करना पड़ा, जिससे उनके शरीर के निचले हिस्से ने काम करना बंद कर दिया और उन्हें व्हीलचेयर पर निर्भर होना पड़ा। हालांकि, उन्होंने इससे हार नहीं मानी और अपने जीवन में एक नए अध्याय पर फोकस किया।

दीपा खेल में ही आगे नहीं है, वह सामाजिक कार्य करने के साथ-साथ लेखन भी करती हैं। गंभीर बीमारी से पीड़ित लोगों के लिए कैंपेन चलाती है और सामाजिक संस्थाओं के कार्यक्रमों में बढ़ चढ़कर हिस्सा लेती हैं।

दीपा शॉट पुटर के अलावा स्विमर, बाइकर, जैवलिन और डिस्कस थ्रोअर हैं। रियो पैरालंपिक खेलों में रजत पदक जीतकर वह पैरालंपिक खेलों में पदक जीतने वाली पहली भारतीय महिला खिलाड़ी बनी।

2012 में उन्हें ‘अर्जुन पुरस्कार’ से नवाजा जा चुका है। भाला फेंक में दीपा मलिक के नाम पर एशियाई रिकॉर्ड है, जबकि गोला फेंक (शॉट पुट) और चक्का फेंक (डिस्कस थ्रो) में उन्होंने 2011 में विश्व चैंपियनशिप में रजत पदक जीते थे। 2019 में उन्हें खेल रत्न पुरस्कार से भी नवाजा जा चुका है।

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दीपा खेल में ही आगे नहीं है, वह सामाजिक कार्य करने के साथ-साथ लेखन भी करती हैं। गंभीर बीमारी से पीड़ित लोगों के लिए कैंपेन चलाती है और सामाजिक संस्थाओं के कार्यक्रमों में बढ़ चढ़कर हिस्सा लेती हैं।

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