जबलपुर. हाई कोर्ट ने बलात्कार के मामले में सुनवाई करते हुए पाया गया कि पीडिता की फोटो जन्म से एक साल पहले की है. एकलपीठ ने इस पर आष्चर्य व्यक्त करते हुए कहा कि स्कूल के दस्तावेज में दुष्कर्म पीड़ित छात्रा के जन्म से एक वर्ष पहले खींची गई फोटो चस्पा किए जाने की जांच आवश्यक है.
न्एकलपीठ ने रीवा के पुलिस अधीक्षक को यह जिम्मेदारी सौंप दी है. साथ ही जिला शिक्षा अधिकारी को निर्देश दिए हैं कि सुनवाई का अवसर देकर सरस्वती ज्ञान मंदिर, मऊगंज के विरुद्ध समुचित कार्रवाई करें. मामले की अगली सुनवाई 22 जनवरी को निर्धारित की गई है.
आवेदक रीवा निवासी मेहंदी हसन की पीड़िता को नाबालिग बताने स्कूल के फर्जी दस्तावेज लगाए गए हैं. वर्ष 2016-17 की जो अंकसूची प्रस्तुत की गई है, उसमें छात्रा की जन्मतिथि तीन मई 2004 दी दर्ज है, जबकि प्रवेश-प्रत्र में जो फोटो चस्पा की गई है, वह 10 जुलाई, 2003 को खींची गई है.
मऊगंज थाने की जांच अधिकारी प्रज्ञा पटेल ने कोर्ट में उपस्थित होकर बताया कि छात्रा ने उक्त स्कूल में कभी भी पहली कक्षा में प्रवेश नहीं लिया था. वहीं लोक अभियोजक ने बताया कि सात जनवरी को प्रस्तुत केस डायरी में प्रवेश पत्र संलग्न नहीं था.
इसे बाद में जोड़ा गया है. हाई कोर्ट ने इस पर आश्चर्य जताते हुए कहा कि यह मामला गंभीर है कि उच्चाधिकारी की अनुमति बिना केस डायरी में नया दस्तावेज कैसे जोड़ दिया. एकलपीठ ने सुनवाई के बाद उक्त आदेष जारी किये.