लंदन, 11 सितंबर (आईएएनएस)। एक रिपोर्ट में खुलासा हुआ है कि पाकिस्तान के बलूचिस्तान प्रांत में दाएश से जुड़े आतंकवादी समूह और सांप्रदायिक मिलिशिया राज्य संरक्षण में काम कर रहे हैं, और दाएश ने सार्वजनिक रूप से खुजदार और मस्तुंग में अपने पनाहगाह होने की बात स्वीकार की है।
पाकिस्तान के बलूचिस्तान प्रांत में 2008 से गुमशुदगी और फांसी का एक भयावह पैटर्न देखने को मिला है, जिसे नीति आलोचक ‘मार डालो और फेंक दो’ कहते हैं।
ब्रिटेन स्थित ‘द मिल्ली क्रॉनिकल’ की एक रिपोर्ट में विस्तार से बताया गया है, “इन चरमपंथी ठिकानों को ध्वस्त करने के बजाय पाकिस्तान की सत्ता ने कथित तौर पर इन्हें राजनीतिक लाभ के लिए इस्तेमाल किया। जो उग्रवादी कभी शियाओं को निशाना बनाते थे, उन्हें बलूच राष्ट्रवादियों को दबाने और असहमति की आवाजों को दबाने की दिशा में मोड़ दिया गया। ये शरणस्थल सिर्फ सुरक्षित पनाहगाह से कहीं ज्यादा थे। प्रशिक्षण शिविरों, भर्ती नेटवर्क और वित्तीय माध्यमों ने चरमपंथियों को पूरे प्रांत और उसके बाहर अपनी पहुंच बढ़ाने में मदद की। सबूत बताते हैं कि ये शिविर सिंध में आत्मघाती बम विस्फोटों और क्वेटा में हजारा शियाओं के नरसंहार से जुड़े हैं, जो दर्शाता है कि बलूचिस्तान का उग्रवाद अलग-थलग नहीं है, बल्कि एक राष्ट्रव्यापी आतंकी ढांचे में एकीकृत है।”
रिपोर्ट के अनुसार, इस साजिश का एक प्रमुख पात्र बलूचिस्तान के पूर्व मुख्यमंत्री नसीर मेंगल का बेटा शफीक मेंगल है, जिसने एचिसन कॉलेज छोड़ने के बाद खुद को एक देवबंदी मदरसे में शामिल कर लिया और लश्कर-ए-तैयबा से संबंध बना लिए। रिपोर्ट में कहा गया है कि मेंगल ने मुसल्ला दिफ्फा तंजीम नामक एक मिलिशिया बनाया, जो अपहरण, यातना और न्यायेतर हत्याओं के लिए जाना जाता था। उसके डेथ स्क्वाड ने बलूच अधिकारों की वकालत करने वाले कार्यकर्ताओं, छात्रों और कवियों को निशाना बनाया। मेंगल के नेतृत्व में चरमपंथी ताकतवर होते गए और अक्सर पूरी तरह से बेखौफ होकर काम करते रहे।
लंदन स्थित स्तंभकार उमर वजीर ने लिखा, “मेंगल जैसे डेथ स्क्वाड राज्य की ओर से इस रणनीति को अंजाम देने में अहम भूमिका निभाते थे। 2010 में बलूच छात्र संगठन (बीएसओ-आजाद) की एक रैली पर ग्रेनेड हमला हुआ था। इसके बाद सांस्कृतिक कार्यक्रमों पर लक्षित हमले हुए, जिनमें युवा प्रतिभागी मारे गए और अपंग हो गए। बालाच और मजीद जेहरी जैसे नाबालिगों के अपहरण और हत्याओं ने भय के माहौल को और गहरा कर दिया। हर घटना ने इस धारणा को पुष्ट किया कि पाकिस्तान की सुरक्षा एजेंसियों ने अपने सबसे गंदे ऑपरेशन चरमपंथियों को आउटसोर्स कर दिए हैं। इस आउटसोर्सिंग ने सेना को नकारने का मौका दिया, जबकि बलूच नागरिक समाज को आतंकित करके चुप करा दिया।”
सरदार अख्तर मेंगल सहित सांसदों ने पाकिस्तानी सेना पर राष्ट्रवादी आंदोलनों को रोकने के लिए मिलिशिया को हथियार और संरक्षण देने का आरोप लगाया है। यह मिलीभगत राजनीतिक अभिजात वर्ग तक भी फैली हुई है। बलूचिस्तान के कार्यवाहक गृह मंत्री सरफराज बुघती पर अपनी खुद की मिलिशिया बनाए रखने का आरोप लगाया गया है। राजनीति, उग्रवाद और सैन्य समर्थन यह दर्शाता है कि यह व्यवस्था कितनी मजबूत हो गई है।
लापता व्यक्तियों के परिवार, मिलिशिया या सुरक्षा बलों के हाथों लापता हुए बेटों, भाइयों और पिताओं की तस्वीरें लिए अक्सर क्वेटा और अन्य इलाकों में अपने प्रियजनों की रिहाई के लिए इकट्ठा होते हैं। लापता व्यक्तियों के परिवारों के शांतिपूर्ण विरोध प्रदर्शनों को अक्सर उदासीनता या सीधे दमन का सामना करना पड़ता है।
मिली क्रॉनिकल की रिपोर्ट में उल्लेख किया गया है, “यहां तक कि इस्लामाबाद में जवाबदेही की मांग करने वाले प्रदर्शनों को भी कुचल दिया गया है, जो पाकिस्तान के लोकतांत्रिक शासन के दावों के पाखंड को रेखांकित करता है। नागरिक समाज सेना के हथौड़े और चरमपंथियों के हथौड़े के बीच फंसा हुआ है। बलूचिस्तान एक गंभीर सबक देता है कि कैसे राज्य राजनीतिक उद्देश्यों के लिए उग्रवाद का निर्माण और हथियारीकरण कर सकते हैं। प्रांत में दाएश की उपस्थिति केवल सांप्रदायिक हिंसा तक सीमित नहीं है, यह राजनीतिक इंजीनियरिंग और राज्य समर्थित आतंक की एक गहरी नीति को दर्शाता है।”
–आईएएनएस
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