नई दिल्ली, 23 मार्च (आईएएनएस)। सर्वोच्च न्यायालय ने गुरुवार को कहा कि वह मुस्लिमों में बहुविवाह और निकाह हलाला की वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर विचार करने के लिए पांच न्यायाधीशों की नई संविधान पीठ का गठन करेगा।
मामले में अधिवक्ता अश्विनी उपाध्याय की याचिका पर सुनवाई करते हुए भारत के मुख्य न्यायाधीश डी.वाई. चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ, जिसमें जस्टिस पी.एस. नरसिम्हा और जेबी पारदीवाला शामिल थे, ने कहा कि वह इस मामले पर विचार करेंगे। मुख्य न्यायाधीश ने कहा, एक उचित चरण में, मैं एक संविधान पीठ का गठन करूंगा।
पिछले साल 30 अगस्त को जस्टिस इंदिरा बनर्जी, हेमंत गुप्ता, सूर्यकांत, एम.एम. सुंदरेश, और सुधांशु धूलिया ने याचिकाओं पर नोटिस जारी किया था और मामले में राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (एनएचआरसी), राष्ट्रीय महिला आयोग (एनसीडब्ल्यू) और राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग (एनसीएम) को पक्ष बनाया और उनकी प्रतिक्रिया मांगी थी।
हालांकि, जस्टिस बनर्जी और जस्टिस गुप्ता अब सेवानिवृत्त हो चुके हैं, इसलिए बहुविवाह और निकाह हलाला की प्रथाओं को चुनौती देने वाली याचिकाओं की सुनवाई के लिए पीठ के पुनर्गठन की आवश्यकता है।
उपाध्याय की याचिका में कहा गया है कि तीन तलाक, बहुविवाह और निकाह-हलाला की प्रथा संविधान के अनुच्छेद 14, 15 और 21 का उल्लंघन और सार्वजनिक व्यवस्था, नैतिकता व स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है।
याचिका में मुस्लिम पर्सनल लॉ (शरीयत) एप्लीकेशन एक्ट, 1937 की धारा 2 को असंवैधानिक घोषित करने की मांग की गई है, क्योंकि यह बहुविवाह और निकाह-हलाला को मान्यता देना चाहता है।
उपाध्याय की याचिका में कहा गया कि यह अच्छी तरह से स्थापित है कि व्यक्तिगत कानूनों पर सामान्य कानून की प्रधानता है। इसलिए, यह अदालत यह घोषित कर सकती है कि तीन तलाक, निकाह-हलाला व बहुविवाह एक अपराध है।
–आईएएनएस
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