वाशिंगटन, 17 सितंबर (आईएएनएस)। दिल्ली में हाल ही में हुई जी20 बैठक के दौरान पैदा हुआ नया संक्षिप्त नाम आईएमईसी, ग्लोबल इंफ्रास्ट्रक्चर एंड इन्वेस्टमेंट (पीजीआईआई) के लिए साझेदारी के तहत शुरू की गई अब तक की सबसे महत्वाकांक्षी परियोजना है, जिसे चीन के बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (बीआरआई) का पश्चिमी जवाब माना जा रहा है।
आईएमईसी (भारत-मध्य पूर्व-यूरोप कॉरिडोर) तीनों क्षेत्रों को जोड़ने वाला एक बंदरगाह और रेल आर्थिक गलियारा है। मार्ग में बिजली और डिजिटल कनेक्टिविटी के लिए एक केबल चलाने की योजना है।
(पीजीआईआई) के वास्तुकार, अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने इस परियोजना को “गेम-चेंजिंग” क्षेत्रीय निवेश के रूप में सराहा।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इसे “ऐतिहासिक” कहा। घोषणा में उपस्थित अन्य भाग लेने वाली संस्थाएँ यूरोपीय संघ, फ्रांस, जर्मनी, इटली, संयुक्त अरब अमीरात और सऊदी अरब थीं।
अमेरिकी राष्ट्रपति के प्रधान उप राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार जॉन फाइनर ने घोषणा से पहले संवाददाताओं से कहा, “यह एक नए मॉडल का स्पष्ट प्रदर्शन होगा जिसे राष्ट्रपति बाइडेन ने अधिक पारदर्शी और टिकाऊ तरीके से बनाये गये सतत उच्च-मानक बुनियादी ढांचे के लिए बनाया है जो हानिकारक वैश्विक खाई को भरता है और दुनिया के प्रमुख क्षेत्रों के लिए अधिक समृद्धि और बेहतर कनेक्टिविटी को सक्षम बनाता है।”
पीजीआईआई को जर्मनी में जी7 देशों के 2022 शिखर सम्मेलन में लॉन्च किया गया था। यह बिल्ड बैक बेटर वर्ल्ड – या बी3डब्ल्यू – का रीपैकेज्ड और रीब्रांडेड संस्करण है जिसे 2021 में ब्रिटेन में जी7 शिखर सम्मेलन में चीन के बीआरआई के विकल्प के रूप में लॉन्च किया गया था।
बाइडेन प्रशासन के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बी3डब्ल्यू पर जी7 बैठक से पहले संवाददाताओं से कहा कि यह “चीन जैसे अन्य बड़े देशों के साथ एक स्पष्ट विरोधाभास होगा जो ऐसे बुनियादी ढांचे का निर्माण कर रहे हैं जिससे विकासशील देश कई दशकों के लिए अभेद्य ऋण जाल और जीवाश्म-निर्भर बुनियादी में फंस जाएंगे।”
बी3डब्ल्यू का जन्म इसके विरोध में बाइडेन और उनके तत्कालीन ब्रिटिश समकक्ष बोरिस जॉनसन के बीच हुई चर्चा से हुआ था।
चीन के बीआरआई ने इसमें शामिल देशों को अविश्वसनीय रूप से बड़े ऋण जाल में उलझा दिया है। इन ऋणों का भुगतान न करने से उन्हें चीन के हित में अपनी संप्रभुता से समझौता करना पड़ सकता है, जैसा कि श्रीलंका में हंबनटोटा बंदरगाह के मामले में हुआ जिसका निर्माण ऋण चुकाने में विफल रहने पर वर्ष 2018 में 99 वर्षों के लिए चीन ने इसे अपने कब्जे में ले लिया।
बंदरगाह की कल्पना और योजना बुरी तरह से बनाई गई थी – कुछ लोग कहते हैं कि इसे इस तरह बनाया ही गया था कि इसका विफल होना तय था, और ऐसा हुआ – दुनिया भर में कई दूसरी चीनी-वित्त पोषित परियोजनाओं की तरह।
दूसरी तरफ बी3डब्ल्यू को मूल्य-आधारित, गुणवत्तापूर्ण बुनियादी ढाँचा प्रदान करने के उद्देश्य से बनाया गया था जो जलवायु-अनुकूल, टिकाऊ हो। बीआरआई के विपरीत, अधिकांश वित्तपोषण निजी क्षेत्र से आना था।
इसका लक्ष्य निम्न और मध्यम आय वाले देशों में बुनियादी ढांचे के वित्तपोषण की मांग और उपलब्धता के बीच अनुमानित 40 लाख करोड़ डॉलर के अंतर को कम करना था। हालाँकि, यह योजना धराशायी हो गई, क्योंकि बाइडेन की घरेलू योजना जिसने इसे प्रेरित किया, जिसे बिल्ड बैक बेटर कहा जाता है, अमेरिकी कांग्रेस से मंजूरी प्राप्त नहीं कर सकी।
बाइडेन ने अगले पांच वर्षों में भागीदार देशों द्वारा 60 हजार करोड़ डॉलर जुटाने की महत्वाकांक्षा को कुछ हद तक कम करते हुए 2022 जी7 शिखर सम्मेलन में पीजीआईआई की घोषणा की। उन्होंने अमेरिका से 20 हजार करोड़ डॉलर लेने का वादा किया। अफ्रीका, मध्य पूर्व और यूरोप में एक ही समय में कई परियोजनाओं की घोषणा की गई, जिससे यह स्पष्ट हो गया कि नेता अपने शब्दों को अमल में ला रहे हैं।
–आईएएनएस
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