तिरुवनंतपुरम, 24 जून (आईएएनएस)। भारतीय मौसम विज्ञान विभाग (आईएमडी) के अनुसार, दक्षिण-पश्चिम मानसून 8 जून को केरल पहुंचा, जबकि इसकी सामान्य तारीख 1 जून है।
आईएमडी को उम्मीद थी कि एसडब्ल्यू मॉनसून 4 जून को राज्य में पहुंचेगा, लेकिन भीषण चक्रवाती तूफान बिपरजॉय ने इसकी शुरुआत में देरी कर दी।
राज्य के कई हिस्सों खासकर दक्षिण केरल में बारिश की कमी है। उत्तरी केरल के चुनिंदा इलाकों में तो भरपूर बारिश होती है, लेकिन उत्तरी और मध्य केरल के कुछ हिस्सों में बारिश की कमी है।
2005 से मानसून की शुरुआत के बारे में आईएमडी की भविष्यवाणियां सही साबित हुई हैं, लेकिन अरब सागर में बिपरजॉय चक्रवात के कारण इसमें चार दिन की देरी हो गई।
आईएमडी आधिकारिक तौर पर मानसून की शुरुआत की घोषणा करता है, जब राज्य के लगभग 60 फीसदी मौसम केंद्रों में 10 मई के बाद लगातार दो दिनों तक 2.5 मिमी या उससे अधिक पानी दर्ज किया जाता है।
आईएमडी ने राज्य के मौसम केंद्रों में बारिश को मापने के बाद पुष्टि की थी कि मानसून ने राज्य को छू लिया है।
हालांकि, दक्षिण केरल में, विशेष रूप से राजधानी तिरुवनंतपुरम, कोल्लम और पथानामथिट्टा जिलों में, बारिश लुकाछिपी का खेल खेल रही है और कई क्षेत्रों में उचित वर्षा नहीं हो रही है।
हालांकि उत्तर और मध्य केरल के कुछ इलाकों में प्रचुर बारिश हो रही है, मौसम अधिकारियों ने आईएएनएस को बताया कि राज्य बारिश की कमी का सामना कर रहा है। हालांकि, अगले तीन से चार दिनों में कुछ दिनों तक बारिश नहीं होगी, लेकिन मध्य और उत्तरी केरल में औसत से अधिक बारिश होने का अनुमान है।
केरल के कोझिकोड, कन्नूर, वायनाड, मालापुरम, त्रिशूर, एनार्कुलम और इडुक्की जिलों में कई दिनों के लिए येलो अलर्ट जारी किया गया है।
राज्य के कुछ हिस्सों में बारिश की कमी का कारण मध्य प्रदेश से 1.5 किमी की ऊंचाई पर एक चक्रवाती परिसंचरण का निर्माण होना है, जिसने मानसून को प्रभावित किया है।
मौसम अधिकारियों ने कहा कि इस चक्रवाती परिसंचरण ने हवाओं को केरल तट से दूर मोड़ दिया है जिससे बारिश की कमी हो गई है।
राडार अनुसंधान संस्थानों के वैज्ञानिकों की राय है कि एक बार मध्य प्रदेश के ऊपर यह चक्रवाती परिसंचरण कम हो जाएगा, तो मानसून फिर से ताकत और तीव्रता हासिल कर लेगा।
1901 से 2021 के बीच केरल में दक्षिण पश्चिम मानसून 14 बार कमजोर रहा है जबकि 1918 में सबसे ज्यादा कमजोर मानसून देखा गया।
भले ही कई एजेंसियों ने 2023 को अल नीनो वर्ष के रूप में पूवार्नुमानित किया है, जो मानसून को अस्थिर कर सकता है, भारतीय मौसम विभाग के पास उपलब्ध आंकड़ों से पता चलता है कि 1951 और 2022 के बीच देश में 15 अल नीनो वर्ष देखे गए हैं, जिनमें से केवल पांच ने केरल को प्रभावित किया है।
आईएमडी के आंकड़ों के अनुसार, केरल में 1965, 1972, 1987, 2002 और 2015 में कम वर्षा हुई। हालांकि, 1953, 1957, 1963, 1969 और 1991 के छह अल नीनो वर्षो के दौरान राज्य में प्रचुर मात्रा में या सामान्य से अधिक वर्षा हुई।
विशेषज्ञों के मुताबिक, राज्य में अल नीनो प्रभाव के ऐतिहासिक आंकड़ों को देखते हुए केरल को चिंता करने की जरूरत नहीं है। आम तौर पर अल नीनो घटना अगस्त और सितंबर के बीच होती है लेकिन तब तक राज्य में 60 प्रतिशत बारिश हो चुकी होती है।
वैज्ञानिकों ने यह भी कहा कि यदि सकारात्मक हिंद महासागर डिपोल (पूर्व की तुलना में पश्चिमी हिंद महासागर में गर्म समुद्री सतह का तापमान) होता है, तो राज्य अल नीनो प्रभाव को नकार देगा और चार महीनों में अच्छी बारिश होने की उम्मीद है।
–आईएएनएस
एसजीके