बिहारशरीफ, 6 अगस्त (आईएएनएस)। तीन वर्षों के अंतराल में बिहार के राजगीर में लगने वाले मलमास मेले की शुरुआत साधु -संतों के 33 कोटि देवी देवताओं के आह्वान के साथ होती है। मान्यता है कि मलमास या अधिमास के दौरान 33 कोटि देवी देवताओं का वास ऐतिहासिक और पौराणिक नगर राजगीर में होता है।
इस दौरान भले ही सभी देवी देवताओं का वास यहां होता है लेकिन आम दिनों में दिखने वाले काग (कौआ) राजगीर छोड़कर अन्यत्र निकल जाते हैं। यहां रहने वाले लोग इस मान्यता की तस्दीक भी करते हैं कि इस महीने एक भी कौआ राजगीर क्षेत्र में दिखाई नहीं देता है।
राजगीर तीर्थ पंडा समिति के प्रमुख सुधीर उपाध्याय कहते हैं कि इस एक महीने में राजगीर में काला काग को छोड़कर हिन्दुओं के सभी 33 कोटि देवता यहां प्रवास करते हैं। उन्होंने बताया कि प्राचीन मान्यताओं और पौराणिक कथाओं के अनुसार भगवान ब्रह्मा के मानस पुत्र राजा बसु द्वारा राजगीर के ब्रह्म कुंड परिसर में एक यज्ञ का आयोजन कराया गया था जिसमें 33 कोटि देवी-देवताओं को निमंत्रण दिया गया था और वे यहां पधारे भी थे, लेकिन काला काग (कौआ) को निमंत्रण नहीं दिया गया था।
मान्यता है कि इसी कारण इस एक माह के दौरान राजगीर में काला काग कहीं नहीं दिखते। इस क्रम में आए सभी देवी देवताओं को एक ही कुंड में स्नानादि करने में परेशानी हुई थी तभी ब्रह्मा ने यहां 22 कुंड और 52 जलधाराओं का निर्माण किया था।
इस साल 18 जुलाई को राजगीर में विश्व प्रसिद्ध राजकीय मलमास मेला का शुभारंभ सिमरिया घाट के स्वामी चिदात्मन जी महाराज उर्फ फलाहारी बाबा के द्वारा ध्वजारोहण के साथ किया गया। 15 अगस्त तक यह मेला चलेगा।
एक महीने तक राजगीर में प्रवास कर रहे स्वामी चिदात्मन जी महाराज बताते हैं कि हिंदू पंचाग के अनुसार हर तीसरे वर्ष में एक मास अधिक हो जाता है। यह स्थिति 32 माह 16 दिन यानी लगभग हर तीसरे वर्ष बनती है। इस अधिक मास को पुरुषोत्तम मास कहा जाता है। पुरुषोत्तम मास में एक माह तक मांगलिक कार्य वर्जित रहते हैं। धार्मिक आस्था को लेकर हिन्दू धर्मावलंबी इस मास में शुभ कार्य नहीं करते हैं।
राजगीर में ऐसे तो धार्मिक महत्ता के 22 कुंड और 52 धाराएं हैं, लेकिन ब्रह्मकुंड व सप्तधाराओं में स्नान की विशेष महत्ता है। देश व विदेश के श्रद्धालु यहां के कुंडों में स्नान व पूजा-पाठ करते हैं।
अधिकतर श्रद्धालु यहां के सभी कुंडों में पूरे विधि-विधान से स्नान व पूजा-पाठ करते हैं।
इस दौरान कुंभ की तर्ज पर शाही स्नान का आयोजन होता है, जिसमें देश के कोने-कोने से आए साधु-संत अस्था की डुबकी लगाते हैं।
शाही स्नान का मेले में विशेष महत्व है। शाही स्नान वह क्षण होता है, जिसमें साधु-संतों की टोलियों द्वारा विभिन्न कुंडों में स्नान किया जाता है।
साधु संतों का मानना है कि राजगीर की महत्ता वेद पुराणों में की गई है। इस राजगीर की भूमि तपोभूमि कहा गया है। वायु पुराण के अनुसार राजगीर का ब्रह्मकुंड वह स्थान है, जहां पर भगवान ब्रह्मा ने यज्ञ कर मनुष्यों की बुराईयों को अग्नि में अर्पित कर पवित्रता की ओर चलने का आह्वान किया था। हिन्दू धर्म में तो मलमास या अधिमास में इस नगरी की महत्ता काफी बढ़ जाती है।
–आईएएनएस
एमएनपी/एसकेपी