पटना, 16 मार्च (आईएएनएस)। लोकसभा चुनाव अगले वर्ष होने हैं, लेकिन बिहार में अभी से ही इसकी धमक सुनाई दे रही है। वैसे, सही मायने में देखे तो महागठबंधन की सरकार बनने के बाद से राज्य में राजनीतिक उठापटक हो रही है।
महागठबंधन की सरकार बनने के बाद जदयू ने नीतीश कुमार को प्रधानमंत्री उम्मीदवार के रूप में प्रचारित करना शुरू कर दिया। हालांकि, मुख्यमंत्री इसका खंडन करते रहे हैं।
जदयू के राजद के साथ मिलकर सरकार बनाने के बाद नीतीश कुमार विपक्षी दलों के एकजुट होने पर जोर देते हुए इसके लिए राज्य से बाहर दौरा करने की भी बात कही है। नीतीश कुमार इस दौरान कई नेताओं से मिल भी चुके हैं।
भले ही नीतीश कुमार विपक्षी एकता की बात कर रहे हों लेकिन, सही अर्थों में उनके ही दल में बिखराव दिखने लगा है।
करीब एक महीना पहले ही जदयू के संसदीय बोर्ड के प्रमुख रहे उपेंद्र कुशवाहा ने पार्टी को बाय बाय कर दिया तो फिर पूर्व सांसद मीना सिंह ने न केवल जदयू से इस्तीफा दे दिया, बल्कि आज की तारीख में जदयू की सबसे विरोधी पार्टी भाजपा का दामन थाम लिया।
इसके बाद इसी महीने पार्टी के प्रवक्ता रहे शंभू नाथ ने भी पार्टी को अलविदा कहकर कुशवाहा की पार्टी राष्ट्रीय लोक जनता दल की सदस्यता ग्रहण कर ली।
सबसे गौर करने वाली बात है कि इन सभी नेताओं ने पार्टी के अपने सिद्धांतों से भटकने का आरोप लगाया है। कुशवाहा ने तो जदयू में रहते मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को इससे बचने की नसीहत दी थी।
ऐसी स्थिति में अब सवाल उठाए जाने लगे हैं कि नीतीश कुमार से जब अब अपनी पार्टी ही नहीं संभल रही है, तो देश में वे विपक्षी एकता का सूत्रधार क्या बनेंगे।
इधर, भाजपा के वरिष्ठ नेता और विधान परिषद में विपक्ष के नेता सम्राट चौधरी भी कहते हैं कि नीतीश कुमार अब राजनीति में अप्रासंगिक हो गए हैं। राजद भी इस स्थिति को भलीभांति जानता है। उन्होंने कहा कि चुनाव आने तक जदयू पार्टी भी रहेगी या नहीं यह बड़ा प्रश्न है।
–आईएएनएस
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