मुंबई, 9 फरवरी (आईएएनएस)। बंबई उच्च न्यायालय ने गुरुवार को मुंबई-अहमदाबाद बुलेट ट्रेन परियोजना को राष्ट्रीय महत्व का बताते हुए गोदरेज एंड बॉयस मैन्युफैक्च रिंग कंपनी की उस याचिका को खारिज कर दिया, जिसमें विक्रोली में उसकी जमीन के अधिग्रहण को चुनौती दी गई थी।
न्यायमूर्ति आरडी धानुका और न्यायमूर्ति एम.एम. साठाये की खंडपीठ ने फैसला सुनाते हुए कहा, परियोजना राष्ट्रीय महत्व और जनहित की है, इसमें हस्तक्षेप की आवश्यकता नहीं है। मुआवजे में कोई अवैधता नहीं पाई गई।
शुक्रवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की प्रस्तावित मुंबई यात्रा की पूर्व संध्या पर मेगा-प्रोजेक्ट के लिए हरी झंडी दिखाने वाला फैसला एक राहत के रूप में आया है।
जस्टिस धानुका और जस्टिस धानुका ने यह भी कहा कि यह सामूहिक हित सर्वोपरि है।
जब गोदरेज समूह के वकील, वरिष्ठ अधिवक्ता नवरोज सीरवई ने सर्वोच्च न्यायालय में अपील करने के लिए आदेश पर रोक लगाने की मांग की, तो उच्च न्यायालय ने याचिका पर विचार करने से इनकार कर दिया।
राज्य के एडवोकेट-जनरल आशुतोष कुंभकोनी ने अदालत को बताया कि गोदरेज समूह के स्वामित्व वाले हिस्से को छोड़कर परियोजना के लिए भूमि अधिग्रहण पूरा हो गया था, और अनुरोध किया कि कंपनी की याचिका को खारिज कर दिया जाना चाहिए।
अतिरिक्त सॉलिसिटर-जनरल अनिल सिंह ने तर्क दिया कि गुजरात में भूमि अधिग्रहण पूरा हो गया है और परियोजना का काम शुरू हो गया है, जबकि महाराष्ट्र में 3 प्रतिशत अधिग्रहण किया जाना बाकी है।
उन्होंने तर्क दिया कि गोदरेज की याचिका परियोजना में देरी कर रही है और लागत में वृद्धि हो रही है, यदि मुआवजे की राशि चिंता का विषय है, तो एक अधिक भुगतान पर विचार किया जा सकता है, लेकिन परियोजना को और अधिक नुकसान नहीं पहुंचाया जा सकता।
अगस्त 2019 से सरकार और गोदरेज समूह के बीच कंपनी की भूमि के अधिग्रहण को लेकर विवाद चल रहा है।
लगभग 1.60 लाख-करोड़ रुपये की लागत वाली, बुलेट ट्रेन परियोजना 508 किलोमीटर लंबी होगी, जिसमें 21 किलोमीटर भूमिगत रूट शामिल है। भूमिगत सुरंग के प्रवेश बिंदुओं में से एक विक्रोली में गोदरेज के स्वामित्व वाली भूमि पर सरकार ने कब्जा कर लिया है।
करीब 9.69 एकड़ जमीन के अधिग्रहण के बाद गोदरेज समूह ने मुआवजे को चुनौती दी थी। सितंबर 2022 में डिप्टी कलेक्टर द्वारा 264 करोड़ रुपये का मुआवजा दिया गया। समूह ने 572 करोड़ रुपये का दावा किया है।
कंपनी ने भूमि अधिग्रहण, पुनर्वास और पुनस्र्थापन अधिनियम, 2013 में उचित मुआवजे और पारदर्शिता के अधिकार के तहत अगस्त 2019 की अधिसूचना और कुछ वर्गों की संवैधानिक वैधता को भी चुनौती दी है, जिसे उच्च न्यायालय ने बरकरार रखा है।
–आईएएनएस
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