रांची, 28 मई (आईएएनएस)। भारत की राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू बीते 24 से 26 मई तक झारखंड के दौरे पर थीं और इस दौरान रांची स्थित राजभवन के जादू ने उन्हें एक बार फिर मोह लिया। उन्होंने विजिटर्स बुक में लिखा, राजभवन के सुंदर परिसर में आकर मुझे बहुत प्रसन्नता का अनुभव हो रहा है। यहां पर प्रवेश करते ही इस भवन में बिताए छह वर्षों की मधुर स्मृतियां जीवंत हो उठीं।
द्रौपदी मुर्मू छह साल तक झारखंड की राज्यपाल रही हैं। इस वजह से इस भवन में उनका नॉस्टैल्जिक होना स्वाभाविक है, लेकिन सच तो यह है कि रांची स्थित राजभवन अपने बेमिसाल स्थापत्य, बेहतरीन वास्तु और अनुपम सौंदर्य को लेकर ब्रिटिश काल से ही आकर्षण का केंद्र रहा है।
झारखंड अलग राज्य के तौर पर भले 15 नवंबर 2000 को अस्तित्व में आया, लेकिन रांची स्थित राजभवन का इतिहास 9 दशकों से भी ज्यादा पुराना है। अपनी बेहतरीन जलवायु और प्राकृतिक सौंदर्य के कारण रांची बिहार की ग्रीष्मकालीन राजधानी हुआ करती थी। इसी दौरान इस राजभवन का निर्माण हुआ था।
संभवत: यह पूरे देश की गिनी-चुनी ऐसी इमारतों में है, जो गुप्त भूमिगत सुरंग से जुड़ी है। इस सुरंग में जाने के लिए दो द्वारों के निशान राजभवन के दरबार हॉल और डाइनिंग हॉल के पास मौजूद हैं। कहते हैं कि इन द्वारों से जो सुरंग कनेक्ट होती थी, वह कहां तक जाती थीं, इसका पता किसी को नहीं है। झारखंड राजभवन की वेबसाइट में भी इन द्वारों और इनसे जुड़ी सुरंग का जिक्र है। झारखंड राजभवन की वेबसाइट में बताया गया है कि राजभवन के ग्राउंड फ्लोर में दो ट्रैप डोर्स हैं जो भूमिगत सुरंगों से जुड़े हुए हैं और ये सुरंगें किसी गुप्त स्थान तक जाती हैं।
रांची डिस्ट्रिक्ट गजेटियर के मुताबिक इस दो मंजिला भवन को ब्रिटिश शासनकाल में करीब सात लाख रुपये में बनाया गया था। लेकिन इस इमारत का सबसे दिलचस्प पहलू इससे जुड़ा सुरंग है, जिसके अब सिर्फ निशान भर बाकी हैं। दरबार हॉल के पास सुरंग के पहले द्वार और डायनिंग हॉल के पास दूसरे द्वार के निशान मौजूद हैं। इन द्वारों को कब स्थायी तौर पर बंद किया गया, इसकी जानकारी किसी को नहीं है। अंग्रेजों के जमाने में किसी विपत्ति से बच निकलने के लिए महत्वपूर्ण भवनों में सुरंगों का निर्माण किया जाता था।
झारखंड का राजभवन ब्रिटिश शासनकाल में वर्ष 1930 में बनना शुरू हुआ था। तब इंग्लैंड में जॉर्ज पंचम का शासन था और झारखंड एकीकृत बिहार का हिस्सा था। रांची बिहार की ग्रीष्मकालीन राजधानी हुआ करती थी। 1931 में करीब सात लाख की लागत से ये बनकर तैयार हो गया। इस भवन के आ*++++++++++++++++++++++++++++र्*टेक्ट सैडलो बलार्ड थे।
हेरिटेज एक्टिविस्ट श्रीदेव सिंह के मुताबिक, ब्रिटिश वास्तुकला से प्रेरित इस भवन में स्थानीय परिवेश का भी ध्यान रखा गया था। इस भवन की छत में रानीगंज के टाइल्स का इस्तेमाल किया गया है जिससे गर्मी में भी ठंडक की अनुभूति होती है। पूरा राजभवन परिसर 62 एकड़ में फैला है जिसमें से 52 एकड़ में राजभवन परिसर और दस एकड़ में ऑड्रे हाउस नामक प्राचीन इमारत है। इस भवन की छत 18 से 20 फीट ऊंची है वहीं दीवारें 14 ईंच मोटी हैं। भवन की छत के लिए जिन टाइल्स का इस्तेमाल किया गया था उनमें से कुछ पर मेड इन इंग्लैंड लिखा हुआ है।
राजभवन के ग्राउंड फ्लोर में दरबार हॉल, डाइनिंग हॉल, रिक्रिएशन रूम, वेटिंग रूम, सीटिंग रूम और ऑफिस हैं। वहीं पहले तल्ले पर राज्यपाल का निवास स्थान, प्रेसिडेंशियल ऑफिस और गेस्ट सुइट्स हैं। राजभवन में रखी गयीं महत्वपूर्ण एंटीक वस्तुओं में ब्रिटिश काल में बना केरोसिन से चलने वाला पंखा और रेफ्रिजरेटर भी है। इनके अलावा कई अन्य वस्तुओं को यहां संभाल कर रखा गया है।
राजभवन के दरबार हॉल में एंग्लो फ्रेंच आर्टिस्ट डैनिएल की बनायी 12 पेंटिंग्स लगी हैं जो 1796 की हैं। इसके अलावा यहां झारखंड के मशहूर फोटोग्राफर बिशु नंदी की खींची गयीं तस्वीरें भी प्रदर्शित की गयी हैं। बिशु नंदी की तस्वीरों में झारखंड की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत और जनजातीय जीवन का परिचय मिलता है। यहां एक आर्ट गैलरी है, जिसमें मनमोहक पेंटिंग, झारखंड की संस्कृति को दिखाती पेंटिंग, सोहराई पेंटिंग, कृत्रिम ऑक्टोपस, कृत्रिम पहाड़, झरना आादि शामिल हैं।
दरबार हॉल में एक शानदार झूमर लगा हुआ है जो ब्रिटिश काल की कहानी कहता है। यहां के डायनिंग हॉल में एक बार में बैठकर 32 लोग भोजन कर सकते हैं। राजभवन के रिक्रिएशन रूम में ब्रिटिश काल का एक बिलियर्ड टेबल भी है।
झारखंड के राजभवन परिसर में कई गार्डन हैं, जहां 250 तरह के 15 हजार से अधिक गुलाब के फूल हैं। गार्डन के नाम महान लोगों के नाम पर हैं। एक अकबर गार्डन है, जिसे 2005 में नया स्वरूप दिया हया। इसमें गुलाबों की सैकड़ों प्रजातियां हैं। राजभवन के एक बड़े हॉल का नाम बिरसा मंडप है। यहां सांस्कृतिक गतिविधियां आयोजित होती हैं। यहां एक किचन गार्डन है। इसमें लौंग, इलायची, दालचीनी, तेजपत्ता समेत कई मसालों के पौधे हैं।
इसके अतिरिक्त टमाटर, गाजर और बैगन भी है। यह सभी जैविक तरीके से उपजाए जाते हैं। यहां गोबर से खाद बनाई जाती है। एक गौशाला भी है। एक हर्बल मेडिसिनल प्लांट है। इसमें 35 तरह की जड़ी-बूटियां हैं।
इसके अलावा रुद्राक्ष और कल्पतरू के पेड़, पीला बांस, इलायची समेत कई तरह के फल हैं। इनमें संतरा, थाई अमरूद, एप्पल बेर, कई तरह के नींबू हैं। अनेक तरह के पेड़-पौधे भी हैं। उद्यान परिसर में 9 फव्वारे हैं। बच्चों के लिए खेलने और झूलने की व्यवस्था है। यह गार्डेन हर साल जब आम लोगों के लिए खोला जाता है, हर रोज लाखों की तादाद में लोग पहुंचते हैं।
–आईएएनएस
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