नई दिल्ली, 22 अप्रैल (आईएएनएस)। पूर्व प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह की सरकार के दौरान ‘अल्पसंख्यक, विशेष रूप से मुस्लिम तुष्टीकरण’ पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की टिप्पणियों पर बढ़ते विवाद और उसके बाद भाजपा और कांग्रेस में वाकयुद्ध के बीच ‘भगवा आतंक’ जैसे मुद्दे फिर से कांग्रेस पार्टी को परेशान करने लगे हैं।
भाजपा ने कांग्रेस सरकारों के समय अल्पसंख्यक तुष्टीकरण की राजनीति के वीडियो को सोशल मीडिया पर जारी कर सवाल करना शुरू कर दिया है। अब इसके बाद से सोशल मीडिया पर यह भी चर्चा हो रही है कि कांग्रेस के मन में अल्पसंख्यकों के लिए कैसे ‘सॉफ्ट कॉर्नर’ था और इसने बहुसंख्यक समुदाय को कैसे ‘विलेन’ बना दिया।
2004 में यूपीए सरकार की शुरुआत से लेकर 2014 तक कई घटनाएं हुईं जो स्पष्ट रूप से यह दर्शाती है कि एक खास वोट बैंक के लिए देश की सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस का झुकाव अल्पसंख्यक समुदाय की तरफ था।
2004 में, कांग्रेस के नेतृत्व वाली यूपीए सरकार ने आतंकवाद विरोधी कानून, आतंकवाद निरोधक अधिनियम (पोटा) को रद्द कर दिया। तत्कालीन सरकार के इरादे भले ही सही हों, लेकिन बाद के वर्षों में देशभर में हुए सिलसिलेवार आतंकी हमलों ने सरकार के मकसद को झुठला दिया।
मुसलमानों की सामाजिक, आर्थिक और शैक्षिक स्थितियों का अध्ययन करने के लिए 2005 में मनमोहन सरकार द्वारा नियुक्त सच्चर समिति को पक्षपातपूर्ण कदम के रूप में देखा गया था।
2006 में तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने कहा था कि अल्पसंख्यकों, विशेषकर मुसलमानों का देश के संसाधनों पर पहला हक होना चाहिए। पीएम मोदी ने अपनी राजस्थान रैली में यही कहा, जिससे कांग्रेस नाराज हो गई।
2007 में ‘भगवा आतंक’ शब्द ने सबका ध्यान आकर्षित किया। कांग्रेस सरकार से लेकर शीर्ष पार्टी नेतृत्व तक, सभी ने इसे भाजपा पर हमला करने और आरएसएस को बदनाम करने के लिए एक हथियार के रूप में इस्तेमाल किया।
दिल्ली पुलिस द्वारा किया गया बटला हाउस एनकाउंटर एक उल्लेखनीय उपलब्धि थी, लेकिन यह भी कांग्रेस की तुष्टीकरण की राजनीति का शिकार हो गई। हालांकि, सरकार ज्यादा कुछ कहने से बचती रही, कांग्रेस ने इसे फर्जी मुठभेड़ बताया और इसके इको सिस्टम ने उन बहादुर पुलिस अधिकारियों को बदनाम किया, जिन्होंने आतंकवादियों को मुठभेड़ में मार गिराया था।
कांग्रेस के शीर्ष नेता सलमान खुर्शीद के मुताबिक, तत्कालीन पार्टी अध्यक्ष सोनिया गांधी भी बाटला हाउस एनकाउंटर की खबर पर रो पड़ी थीं।
2008 में भारत की आर्थिक राजधानी कहे जाने वाले मुंबई में हुए आतंकी हमले ने पूरे देश को शोक और क्रोध से भर दिया था। पाकिस्तान का रहने वाला आतंकवादी अजमल कसाब जिंदा पकड़ा गया और उसने भारत में आतंक फैलाने की पाकिस्तान की साजिश के बारे में खुलासा किया। इन सबके बावजूद, गांधी परिवार से करीबी संबंध रखने वाले दिग्विजय सिंह ने एक किताब रिलीज करते हुए दावा किया कि 26/11 हमला आरएसएस की साजिश थी।
2011 में सोनिया गांधी के नेतृत्व वाली राष्ट्रीय सलाहकार परिषद (एनएसी) द्वारा प्रस्तावित सांप्रदायिक हिंसा विधेयक ने भी भारी विवाद का रूप ले लिया था। ब्लूक्राफ्ट डिजिटल फाउंडेशन के सीईओ अखिलेश मिश्रा का दावा है कि इस प्रस्तावित कानून में ऐसे प्रावधान थे, जो “हिंदुओं को अपने ही देश में दूसरे दर्जे के नागरिक में बदल सकते थे।”
इस बीच, कांग्रेस पार्टी ने राजस्थान की चुनावी रैली में पीएम मोदी के बयान को ‘बेहद विभाजनकारी’ बताते हुए इसके खिलाफ कार्रवाई की मांग करते हुए चुनाव आयोग का रुख किया है। लेकिन, यूपीए 1 और यूपीए 2 के दौरान हिंदू विरोधी बयानों की श्रृंखला, जिसका ऊपर उल्लेख किया गया है, यह विश्वास दिलाने के लिए काफी है कि इस पर प्रतिक्रिया दी जा सकती है।
–आईएएनएस
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