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Home राष्ट्रीय

भरण-पोषण के लिए दायर किया जा सकता है दूसरा आवेदन : इलाहाबाद हाईकोर्ट

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June 23, 2023
in राष्ट्रीय
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भरण-पोषण के लिए दायर किया जा सकता है दूसरा आवेदन : इलाहाबाद हाईकोर्ट
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प्रयागराज, 23 जून (आईएएनएस)। इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने कहा है कि सीआरपीसी की धारा 125 के तहत पहले आवेदन की अस्वीकृति के बाद भी भरण-पोषण की मांग करने वाला दूसरा आवेदन कायम रह सकता है। अगर परिस्थितियों में कोई बदलाव हो, तो उक्त प्रावधान के तहत कोई व्यक्ति इसका हकदार बन सकता है।

न्यायमूर्ति ज्योत्सना शर्मा की पीठ ने श्याम बहादुर सिंह नामक व्यक्ति की याचिका खारिज कर दी। इसमें निचली अदालत के उस आदेश को चुनौती दी गई थी, जिसमें उसे अपनी पहली पत्नी को भरण-पोषण के रूप में 1,500 रुपये प्रति माह देने का निर्देश दिया गया था।

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पीठ का विचार था कि यदि भरण-पोषण के लिए आवेदन दायर करने का अधिकार बंद कर दिया जाता है, तो यह सीआरपीसी की धारा 125 के मूल उद्देश्य को विफल कर देगा।

अदालत ने कहा कि ऐसे कुछ उदाहरण हो सकते हैं, जहां एक व्यक्ति, जो कुछ समय के लिए अपना भरण-पोषण करने में सक्षम है, लेकिन उसके बाद बदली हुई परिस्थितियों के कारण अपने संसाधनों को खो देता है, ऐसे मामलों में, भरण-पोषण का दावा करने का एक नया अधिकार होता है।

अदालत ने अतिरिक्त मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट, उत्तर-पूर्व रेलवे, बांदा के जनवरी 2004 के आदेश को बरकरार रखते हुए यह बात कही, इसमें सीआरपीसी की धारा 125 के तहत एक महिला द्वारा दायर दूसरे आवेदन को अनुमति दी गई थी।

मामले के मुताबिक प्रतिवादी सं. 2 (पत्नी) ने अपने पति से भरण-पोषण का दावा करते हुए एक आवेदन दायर किया था, जिसे जनवरी 1995 में कुछ आधारों पर खारिज कर दिया गया था।

इसके बाद, 2003 में, उसने सीआरपीसी की धारा 125 के तहत दूसरा आवेदन इस आधार पर दायर किया कि परिस्थितियों में बदलाव आया है, पति के पुनर्विवाह के कारण वह उससे भरण-पोषण का दावा करने की हकदार है।

इस दूसरे आवेदन को एसीजेएम (बांदा) की अदालत ने जनवरी 2004 में स्वीकार कर लिया और उसके पति को उसे प्रति माह 1,500 रुपये का भुगतान करने का निर्देश दिया।

पति ने आपराधिक पुनरीक्षण याचिका में आदेश को चुनौती दी, जिसे अतिरिक्त जिला न्यायाधीश, बांदा ने भी खारिज कर दिया।

–आईएएनएस

सीबीटी

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प्रयागराज, 23 जून (आईएएनएस)। इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने कहा है कि सीआरपीसी की धारा 125 के तहत पहले आवेदन की अस्वीकृति के बाद भी भरण-पोषण की मांग करने वाला दूसरा आवेदन कायम रह सकता है। अगर परिस्थितियों में कोई बदलाव हो, तो उक्त प्रावधान के तहत कोई व्यक्ति इसका हकदार बन सकता है।

न्यायमूर्ति ज्योत्सना शर्मा की पीठ ने श्याम बहादुर सिंह नामक व्यक्ति की याचिका खारिज कर दी। इसमें निचली अदालत के उस आदेश को चुनौती दी गई थी, जिसमें उसे अपनी पहली पत्नी को भरण-पोषण के रूप में 1,500 रुपये प्रति माह देने का निर्देश दिया गया था।

पीठ का विचार था कि यदि भरण-पोषण के लिए आवेदन दायर करने का अधिकार बंद कर दिया जाता है, तो यह सीआरपीसी की धारा 125 के मूल उद्देश्य को विफल कर देगा।

अदालत ने कहा कि ऐसे कुछ उदाहरण हो सकते हैं, जहां एक व्यक्ति, जो कुछ समय के लिए अपना भरण-पोषण करने में सक्षम है, लेकिन उसके बाद बदली हुई परिस्थितियों के कारण अपने संसाधनों को खो देता है, ऐसे मामलों में, भरण-पोषण का दावा करने का एक नया अधिकार होता है।

अदालत ने अतिरिक्त मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट, उत्तर-पूर्व रेलवे, बांदा के जनवरी 2004 के आदेश को बरकरार रखते हुए यह बात कही, इसमें सीआरपीसी की धारा 125 के तहत एक महिला द्वारा दायर दूसरे आवेदन को अनुमति दी गई थी।

मामले के मुताबिक प्रतिवादी सं. 2 (पत्नी) ने अपने पति से भरण-पोषण का दावा करते हुए एक आवेदन दायर किया था, जिसे जनवरी 1995 में कुछ आधारों पर खारिज कर दिया गया था।

इसके बाद, 2003 में, उसने सीआरपीसी की धारा 125 के तहत दूसरा आवेदन इस आधार पर दायर किया कि परिस्थितियों में बदलाव आया है, पति के पुनर्विवाह के कारण वह उससे भरण-पोषण का दावा करने की हकदार है।

इस दूसरे आवेदन को एसीजेएम (बांदा) की अदालत ने जनवरी 2004 में स्वीकार कर लिया और उसके पति को उसे प्रति माह 1,500 रुपये का भुगतान करने का निर्देश दिया।

पति ने आपराधिक पुनरीक्षण याचिका में आदेश को चुनौती दी, जिसे अतिरिक्त जिला न्यायाधीश, बांदा ने भी खारिज कर दिया।

–आईएएनएस

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प्रयागराज, 23 जून (आईएएनएस)। इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने कहा है कि सीआरपीसी की धारा 125 के तहत पहले आवेदन की अस्वीकृति के बाद भी भरण-पोषण की मांग करने वाला दूसरा आवेदन कायम रह सकता है। अगर परिस्थितियों में कोई बदलाव हो, तो उक्त प्रावधान के तहत कोई व्यक्ति इसका हकदार बन सकता है।

न्यायमूर्ति ज्योत्सना शर्मा की पीठ ने श्याम बहादुर सिंह नामक व्यक्ति की याचिका खारिज कर दी। इसमें निचली अदालत के उस आदेश को चुनौती दी गई थी, जिसमें उसे अपनी पहली पत्नी को भरण-पोषण के रूप में 1,500 रुपये प्रति माह देने का निर्देश दिया गया था।

पीठ का विचार था कि यदि भरण-पोषण के लिए आवेदन दायर करने का अधिकार बंद कर दिया जाता है, तो यह सीआरपीसी की धारा 125 के मूल उद्देश्य को विफल कर देगा।

अदालत ने कहा कि ऐसे कुछ उदाहरण हो सकते हैं, जहां एक व्यक्ति, जो कुछ समय के लिए अपना भरण-पोषण करने में सक्षम है, लेकिन उसके बाद बदली हुई परिस्थितियों के कारण अपने संसाधनों को खो देता है, ऐसे मामलों में, भरण-पोषण का दावा करने का एक नया अधिकार होता है।

अदालत ने अतिरिक्त मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट, उत्तर-पूर्व रेलवे, बांदा के जनवरी 2004 के आदेश को बरकरार रखते हुए यह बात कही, इसमें सीआरपीसी की धारा 125 के तहत एक महिला द्वारा दायर दूसरे आवेदन को अनुमति दी गई थी।

मामले के मुताबिक प्रतिवादी सं. 2 (पत्नी) ने अपने पति से भरण-पोषण का दावा करते हुए एक आवेदन दायर किया था, जिसे जनवरी 1995 में कुछ आधारों पर खारिज कर दिया गया था।

इसके बाद, 2003 में, उसने सीआरपीसी की धारा 125 के तहत दूसरा आवेदन इस आधार पर दायर किया कि परिस्थितियों में बदलाव आया है, पति के पुनर्विवाह के कारण वह उससे भरण-पोषण का दावा करने की हकदार है।

इस दूसरे आवेदन को एसीजेएम (बांदा) की अदालत ने जनवरी 2004 में स्वीकार कर लिया और उसके पति को उसे प्रति माह 1,500 रुपये का भुगतान करने का निर्देश दिया।

पति ने आपराधिक पुनरीक्षण याचिका में आदेश को चुनौती दी, जिसे अतिरिक्त जिला न्यायाधीश, बांदा ने भी खारिज कर दिया।

–आईएएनएस

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न्यायमूर्ति ज्योत्सना शर्मा की पीठ ने श्याम बहादुर सिंह नामक व्यक्ति की याचिका खारिज कर दी। इसमें निचली अदालत के उस आदेश को चुनौती दी गई थी, जिसमें उसे अपनी पहली पत्नी को भरण-पोषण के रूप में 1,500 रुपये प्रति माह देने का निर्देश दिया गया था।

पीठ का विचार था कि यदि भरण-पोषण के लिए आवेदन दायर करने का अधिकार बंद कर दिया जाता है, तो यह सीआरपीसी की धारा 125 के मूल उद्देश्य को विफल कर देगा।

अदालत ने कहा कि ऐसे कुछ उदाहरण हो सकते हैं, जहां एक व्यक्ति, जो कुछ समय के लिए अपना भरण-पोषण करने में सक्षम है, लेकिन उसके बाद बदली हुई परिस्थितियों के कारण अपने संसाधनों को खो देता है, ऐसे मामलों में, भरण-पोषण का दावा करने का एक नया अधिकार होता है।

अदालत ने अतिरिक्त मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट, उत्तर-पूर्व रेलवे, बांदा के जनवरी 2004 के आदेश को बरकरार रखते हुए यह बात कही, इसमें सीआरपीसी की धारा 125 के तहत एक महिला द्वारा दायर दूसरे आवेदन को अनुमति दी गई थी।

मामले के मुताबिक प्रतिवादी सं. 2 (पत्नी) ने अपने पति से भरण-पोषण का दावा करते हुए एक आवेदन दायर किया था, जिसे जनवरी 1995 में कुछ आधारों पर खारिज कर दिया गया था।

इसके बाद, 2003 में, उसने सीआरपीसी की धारा 125 के तहत दूसरा आवेदन इस आधार पर दायर किया कि परिस्थितियों में बदलाव आया है, पति के पुनर्विवाह के कारण वह उससे भरण-पोषण का दावा करने की हकदार है।

इस दूसरे आवेदन को एसीजेएम (बांदा) की अदालत ने जनवरी 2004 में स्वीकार कर लिया और उसके पति को उसे प्रति माह 1,500 रुपये का भुगतान करने का निर्देश दिया।

पति ने आपराधिक पुनरीक्षण याचिका में आदेश को चुनौती दी, जिसे अतिरिक्त जिला न्यायाधीश, बांदा ने भी खारिज कर दिया।

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न्यायमूर्ति ज्योत्सना शर्मा की पीठ ने श्याम बहादुर सिंह नामक व्यक्ति की याचिका खारिज कर दी। इसमें निचली अदालत के उस आदेश को चुनौती दी गई थी, जिसमें उसे अपनी पहली पत्नी को भरण-पोषण के रूप में 1,500 रुपये प्रति माह देने का निर्देश दिया गया था।

पीठ का विचार था कि यदि भरण-पोषण के लिए आवेदन दायर करने का अधिकार बंद कर दिया जाता है, तो यह सीआरपीसी की धारा 125 के मूल उद्देश्य को विफल कर देगा।

अदालत ने कहा कि ऐसे कुछ उदाहरण हो सकते हैं, जहां एक व्यक्ति, जो कुछ समय के लिए अपना भरण-पोषण करने में सक्षम है, लेकिन उसके बाद बदली हुई परिस्थितियों के कारण अपने संसाधनों को खो देता है, ऐसे मामलों में, भरण-पोषण का दावा करने का एक नया अधिकार होता है।

अदालत ने अतिरिक्त मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट, उत्तर-पूर्व रेलवे, बांदा के जनवरी 2004 के आदेश को बरकरार रखते हुए यह बात कही, इसमें सीआरपीसी की धारा 125 के तहत एक महिला द्वारा दायर दूसरे आवेदन को अनुमति दी गई थी।

मामले के मुताबिक प्रतिवादी सं. 2 (पत्नी) ने अपने पति से भरण-पोषण का दावा करते हुए एक आवेदन दायर किया था, जिसे जनवरी 1995 में कुछ आधारों पर खारिज कर दिया गया था।

इसके बाद, 2003 में, उसने सीआरपीसी की धारा 125 के तहत दूसरा आवेदन इस आधार पर दायर किया कि परिस्थितियों में बदलाव आया है, पति के पुनर्विवाह के कारण वह उससे भरण-पोषण का दावा करने की हकदार है।

इस दूसरे आवेदन को एसीजेएम (बांदा) की अदालत ने जनवरी 2004 में स्वीकार कर लिया और उसके पति को उसे प्रति माह 1,500 रुपये का भुगतान करने का निर्देश दिया।

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न्यायमूर्ति ज्योत्सना शर्मा की पीठ ने श्याम बहादुर सिंह नामक व्यक्ति की याचिका खारिज कर दी। इसमें निचली अदालत के उस आदेश को चुनौती दी गई थी, जिसमें उसे अपनी पहली पत्नी को भरण-पोषण के रूप में 1,500 रुपये प्रति माह देने का निर्देश दिया गया था।

पीठ का विचार था कि यदि भरण-पोषण के लिए आवेदन दायर करने का अधिकार बंद कर दिया जाता है, तो यह सीआरपीसी की धारा 125 के मूल उद्देश्य को विफल कर देगा।

अदालत ने कहा कि ऐसे कुछ उदाहरण हो सकते हैं, जहां एक व्यक्ति, जो कुछ समय के लिए अपना भरण-पोषण करने में सक्षम है, लेकिन उसके बाद बदली हुई परिस्थितियों के कारण अपने संसाधनों को खो देता है, ऐसे मामलों में, भरण-पोषण का दावा करने का एक नया अधिकार होता है।

अदालत ने अतिरिक्त मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट, उत्तर-पूर्व रेलवे, बांदा के जनवरी 2004 के आदेश को बरकरार रखते हुए यह बात कही, इसमें सीआरपीसी की धारा 125 के तहत एक महिला द्वारा दायर दूसरे आवेदन को अनुमति दी गई थी।

मामले के मुताबिक प्रतिवादी सं. 2 (पत्नी) ने अपने पति से भरण-पोषण का दावा करते हुए एक आवेदन दायर किया था, जिसे जनवरी 1995 में कुछ आधारों पर खारिज कर दिया गया था।

इसके बाद, 2003 में, उसने सीआरपीसी की धारा 125 के तहत दूसरा आवेदन इस आधार पर दायर किया कि परिस्थितियों में बदलाव आया है, पति के पुनर्विवाह के कारण वह उससे भरण-पोषण का दावा करने की हकदार है।

इस दूसरे आवेदन को एसीजेएम (बांदा) की अदालत ने जनवरी 2004 में स्वीकार कर लिया और उसके पति को उसे प्रति माह 1,500 रुपये का भुगतान करने का निर्देश दिया।

पति ने आपराधिक पुनरीक्षण याचिका में आदेश को चुनौती दी, जिसे अतिरिक्त जिला न्यायाधीश, बांदा ने भी खारिज कर दिया।

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न्यायमूर्ति ज्योत्सना शर्मा की पीठ ने श्याम बहादुर सिंह नामक व्यक्ति की याचिका खारिज कर दी। इसमें निचली अदालत के उस आदेश को चुनौती दी गई थी, जिसमें उसे अपनी पहली पत्नी को भरण-पोषण के रूप में 1,500 रुपये प्रति माह देने का निर्देश दिया गया था।

पीठ का विचार था कि यदि भरण-पोषण के लिए आवेदन दायर करने का अधिकार बंद कर दिया जाता है, तो यह सीआरपीसी की धारा 125 के मूल उद्देश्य को विफल कर देगा।

अदालत ने कहा कि ऐसे कुछ उदाहरण हो सकते हैं, जहां एक व्यक्ति, जो कुछ समय के लिए अपना भरण-पोषण करने में सक्षम है, लेकिन उसके बाद बदली हुई परिस्थितियों के कारण अपने संसाधनों को खो देता है, ऐसे मामलों में, भरण-पोषण का दावा करने का एक नया अधिकार होता है।

अदालत ने अतिरिक्त मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट, उत्तर-पूर्व रेलवे, बांदा के जनवरी 2004 के आदेश को बरकरार रखते हुए यह बात कही, इसमें सीआरपीसी की धारा 125 के तहत एक महिला द्वारा दायर दूसरे आवेदन को अनुमति दी गई थी।

मामले के मुताबिक प्रतिवादी सं. 2 (पत्नी) ने अपने पति से भरण-पोषण का दावा करते हुए एक आवेदन दायर किया था, जिसे जनवरी 1995 में कुछ आधारों पर खारिज कर दिया गया था।

इसके बाद, 2003 में, उसने सीआरपीसी की धारा 125 के तहत दूसरा आवेदन इस आधार पर दायर किया कि परिस्थितियों में बदलाव आया है, पति के पुनर्विवाह के कारण वह उससे भरण-पोषण का दावा करने की हकदार है।

इस दूसरे आवेदन को एसीजेएम (बांदा) की अदालत ने जनवरी 2004 में स्वीकार कर लिया और उसके पति को उसे प्रति माह 1,500 रुपये का भुगतान करने का निर्देश दिया।

पति ने आपराधिक पुनरीक्षण याचिका में आदेश को चुनौती दी, जिसे अतिरिक्त जिला न्यायाधीश, बांदा ने भी खारिज कर दिया।

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न्यायमूर्ति ज्योत्सना शर्मा की पीठ ने श्याम बहादुर सिंह नामक व्यक्ति की याचिका खारिज कर दी। इसमें निचली अदालत के उस आदेश को चुनौती दी गई थी, जिसमें उसे अपनी पहली पत्नी को भरण-पोषण के रूप में 1,500 रुपये प्रति माह देने का निर्देश दिया गया था।

पीठ का विचार था कि यदि भरण-पोषण के लिए आवेदन दायर करने का अधिकार बंद कर दिया जाता है, तो यह सीआरपीसी की धारा 125 के मूल उद्देश्य को विफल कर देगा।

अदालत ने कहा कि ऐसे कुछ उदाहरण हो सकते हैं, जहां एक व्यक्ति, जो कुछ समय के लिए अपना भरण-पोषण करने में सक्षम है, लेकिन उसके बाद बदली हुई परिस्थितियों के कारण अपने संसाधनों को खो देता है, ऐसे मामलों में, भरण-पोषण का दावा करने का एक नया अधिकार होता है।

अदालत ने अतिरिक्त मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट, उत्तर-पूर्व रेलवे, बांदा के जनवरी 2004 के आदेश को बरकरार रखते हुए यह बात कही, इसमें सीआरपीसी की धारा 125 के तहत एक महिला द्वारा दायर दूसरे आवेदन को अनुमति दी गई थी।

मामले के मुताबिक प्रतिवादी सं. 2 (पत्नी) ने अपने पति से भरण-पोषण का दावा करते हुए एक आवेदन दायर किया था, जिसे जनवरी 1995 में कुछ आधारों पर खारिज कर दिया गया था।

इसके बाद, 2003 में, उसने सीआरपीसी की धारा 125 के तहत दूसरा आवेदन इस आधार पर दायर किया कि परिस्थितियों में बदलाव आया है, पति के पुनर्विवाह के कारण वह उससे भरण-पोषण का दावा करने की हकदार है।

इस दूसरे आवेदन को एसीजेएम (बांदा) की अदालत ने जनवरी 2004 में स्वीकार कर लिया और उसके पति को उसे प्रति माह 1,500 रुपये का भुगतान करने का निर्देश दिया।

पति ने आपराधिक पुनरीक्षण याचिका में आदेश को चुनौती दी, जिसे अतिरिक्त जिला न्यायाधीश, बांदा ने भी खारिज कर दिया।

–आईएएनएस

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प्रयागराज, 23 जून (आईएएनएस)। इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने कहा है कि सीआरपीसी की धारा 125 के तहत पहले आवेदन की अस्वीकृति के बाद भी भरण-पोषण की मांग करने वाला दूसरा आवेदन कायम रह सकता है। अगर परिस्थितियों में कोई बदलाव हो, तो उक्त प्रावधान के तहत कोई व्यक्ति इसका हकदार बन सकता है।

न्यायमूर्ति ज्योत्सना शर्मा की पीठ ने श्याम बहादुर सिंह नामक व्यक्ति की याचिका खारिज कर दी। इसमें निचली अदालत के उस आदेश को चुनौती दी गई थी, जिसमें उसे अपनी पहली पत्नी को भरण-पोषण के रूप में 1,500 रुपये प्रति माह देने का निर्देश दिया गया था।

पीठ का विचार था कि यदि भरण-पोषण के लिए आवेदन दायर करने का अधिकार बंद कर दिया जाता है, तो यह सीआरपीसी की धारा 125 के मूल उद्देश्य को विफल कर देगा।

अदालत ने कहा कि ऐसे कुछ उदाहरण हो सकते हैं, जहां एक व्यक्ति, जो कुछ समय के लिए अपना भरण-पोषण करने में सक्षम है, लेकिन उसके बाद बदली हुई परिस्थितियों के कारण अपने संसाधनों को खो देता है, ऐसे मामलों में, भरण-पोषण का दावा करने का एक नया अधिकार होता है।

अदालत ने अतिरिक्त मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट, उत्तर-पूर्व रेलवे, बांदा के जनवरी 2004 के आदेश को बरकरार रखते हुए यह बात कही, इसमें सीआरपीसी की धारा 125 के तहत एक महिला द्वारा दायर दूसरे आवेदन को अनुमति दी गई थी।

मामले के मुताबिक प्रतिवादी सं. 2 (पत्नी) ने अपने पति से भरण-पोषण का दावा करते हुए एक आवेदन दायर किया था, जिसे जनवरी 1995 में कुछ आधारों पर खारिज कर दिया गया था।

इसके बाद, 2003 में, उसने सीआरपीसी की धारा 125 के तहत दूसरा आवेदन इस आधार पर दायर किया कि परिस्थितियों में बदलाव आया है, पति के पुनर्विवाह के कारण वह उससे भरण-पोषण का दावा करने की हकदार है।

इस दूसरे आवेदन को एसीजेएम (बांदा) की अदालत ने जनवरी 2004 में स्वीकार कर लिया और उसके पति को उसे प्रति माह 1,500 रुपये का भुगतान करने का निर्देश दिया।

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न्यायमूर्ति ज्योत्सना शर्मा की पीठ ने श्याम बहादुर सिंह नामक व्यक्ति की याचिका खारिज कर दी। इसमें निचली अदालत के उस आदेश को चुनौती दी गई थी, जिसमें उसे अपनी पहली पत्नी को भरण-पोषण के रूप में 1,500 रुपये प्रति माह देने का निर्देश दिया गया था।

पीठ का विचार था कि यदि भरण-पोषण के लिए आवेदन दायर करने का अधिकार बंद कर दिया जाता है, तो यह सीआरपीसी की धारा 125 के मूल उद्देश्य को विफल कर देगा।

अदालत ने कहा कि ऐसे कुछ उदाहरण हो सकते हैं, जहां एक व्यक्ति, जो कुछ समय के लिए अपना भरण-पोषण करने में सक्षम है, लेकिन उसके बाद बदली हुई परिस्थितियों के कारण अपने संसाधनों को खो देता है, ऐसे मामलों में, भरण-पोषण का दावा करने का एक नया अधिकार होता है।

अदालत ने अतिरिक्त मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट, उत्तर-पूर्व रेलवे, बांदा के जनवरी 2004 के आदेश को बरकरार रखते हुए यह बात कही, इसमें सीआरपीसी की धारा 125 के तहत एक महिला द्वारा दायर दूसरे आवेदन को अनुमति दी गई थी।

मामले के मुताबिक प्रतिवादी सं. 2 (पत्नी) ने अपने पति से भरण-पोषण का दावा करते हुए एक आवेदन दायर किया था, जिसे जनवरी 1995 में कुछ आधारों पर खारिज कर दिया गया था।

इसके बाद, 2003 में, उसने सीआरपीसी की धारा 125 के तहत दूसरा आवेदन इस आधार पर दायर किया कि परिस्थितियों में बदलाव आया है, पति के पुनर्विवाह के कारण वह उससे भरण-पोषण का दावा करने की हकदार है।

इस दूसरे आवेदन को एसीजेएम (बांदा) की अदालत ने जनवरी 2004 में स्वीकार कर लिया और उसके पति को उसे प्रति माह 1,500 रुपये का भुगतान करने का निर्देश दिया।

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न्यायमूर्ति ज्योत्सना शर्मा की पीठ ने श्याम बहादुर सिंह नामक व्यक्ति की याचिका खारिज कर दी। इसमें निचली अदालत के उस आदेश को चुनौती दी गई थी, जिसमें उसे अपनी पहली पत्नी को भरण-पोषण के रूप में 1,500 रुपये प्रति माह देने का निर्देश दिया गया था।

पीठ का विचार था कि यदि भरण-पोषण के लिए आवेदन दायर करने का अधिकार बंद कर दिया जाता है, तो यह सीआरपीसी की धारा 125 के मूल उद्देश्य को विफल कर देगा।

अदालत ने कहा कि ऐसे कुछ उदाहरण हो सकते हैं, जहां एक व्यक्ति, जो कुछ समय के लिए अपना भरण-पोषण करने में सक्षम है, लेकिन उसके बाद बदली हुई परिस्थितियों के कारण अपने संसाधनों को खो देता है, ऐसे मामलों में, भरण-पोषण का दावा करने का एक नया अधिकार होता है।

अदालत ने अतिरिक्त मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट, उत्तर-पूर्व रेलवे, बांदा के जनवरी 2004 के आदेश को बरकरार रखते हुए यह बात कही, इसमें सीआरपीसी की धारा 125 के तहत एक महिला द्वारा दायर दूसरे आवेदन को अनुमति दी गई थी।

मामले के मुताबिक प्रतिवादी सं. 2 (पत्नी) ने अपने पति से भरण-पोषण का दावा करते हुए एक आवेदन दायर किया था, जिसे जनवरी 1995 में कुछ आधारों पर खारिज कर दिया गया था।

इसके बाद, 2003 में, उसने सीआरपीसी की धारा 125 के तहत दूसरा आवेदन इस आधार पर दायर किया कि परिस्थितियों में बदलाव आया है, पति के पुनर्विवाह के कारण वह उससे भरण-पोषण का दावा करने की हकदार है।

इस दूसरे आवेदन को एसीजेएम (बांदा) की अदालत ने जनवरी 2004 में स्वीकार कर लिया और उसके पति को उसे प्रति माह 1,500 रुपये का भुगतान करने का निर्देश दिया।

पति ने आपराधिक पुनरीक्षण याचिका में आदेश को चुनौती दी, जिसे अतिरिक्त जिला न्यायाधीश, बांदा ने भी खारिज कर दिया।

–आईएएनएस

सीबीटी

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प्रयागराज, 23 जून (आईएएनएस)। इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने कहा है कि सीआरपीसी की धारा 125 के तहत पहले आवेदन की अस्वीकृति के बाद भी भरण-पोषण की मांग करने वाला दूसरा आवेदन कायम रह सकता है। अगर परिस्थितियों में कोई बदलाव हो, तो उक्त प्रावधान के तहत कोई व्यक्ति इसका हकदार बन सकता है।

न्यायमूर्ति ज्योत्सना शर्मा की पीठ ने श्याम बहादुर सिंह नामक व्यक्ति की याचिका खारिज कर दी। इसमें निचली अदालत के उस आदेश को चुनौती दी गई थी, जिसमें उसे अपनी पहली पत्नी को भरण-पोषण के रूप में 1,500 रुपये प्रति माह देने का निर्देश दिया गया था।

पीठ का विचार था कि यदि भरण-पोषण के लिए आवेदन दायर करने का अधिकार बंद कर दिया जाता है, तो यह सीआरपीसी की धारा 125 के मूल उद्देश्य को विफल कर देगा।

अदालत ने कहा कि ऐसे कुछ उदाहरण हो सकते हैं, जहां एक व्यक्ति, जो कुछ समय के लिए अपना भरण-पोषण करने में सक्षम है, लेकिन उसके बाद बदली हुई परिस्थितियों के कारण अपने संसाधनों को खो देता है, ऐसे मामलों में, भरण-पोषण का दावा करने का एक नया अधिकार होता है।

अदालत ने अतिरिक्त मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट, उत्तर-पूर्व रेलवे, बांदा के जनवरी 2004 के आदेश को बरकरार रखते हुए यह बात कही, इसमें सीआरपीसी की धारा 125 के तहत एक महिला द्वारा दायर दूसरे आवेदन को अनुमति दी गई थी।

मामले के मुताबिक प्रतिवादी सं. 2 (पत्नी) ने अपने पति से भरण-पोषण का दावा करते हुए एक आवेदन दायर किया था, जिसे जनवरी 1995 में कुछ आधारों पर खारिज कर दिया गया था।

इसके बाद, 2003 में, उसने सीआरपीसी की धारा 125 के तहत दूसरा आवेदन इस आधार पर दायर किया कि परिस्थितियों में बदलाव आया है, पति के पुनर्विवाह के कारण वह उससे भरण-पोषण का दावा करने की हकदार है।

इस दूसरे आवेदन को एसीजेएम (बांदा) की अदालत ने जनवरी 2004 में स्वीकार कर लिया और उसके पति को उसे प्रति माह 1,500 रुपये का भुगतान करने का निर्देश दिया।

पति ने आपराधिक पुनरीक्षण याचिका में आदेश को चुनौती दी, जिसे अतिरिक्त जिला न्यायाधीश, बांदा ने भी खारिज कर दिया।

–आईएएनएस

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प्रयागराज, 23 जून (आईएएनएस)। इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने कहा है कि सीआरपीसी की धारा 125 के तहत पहले आवेदन की अस्वीकृति के बाद भी भरण-पोषण की मांग करने वाला दूसरा आवेदन कायम रह सकता है। अगर परिस्थितियों में कोई बदलाव हो, तो उक्त प्रावधान के तहत कोई व्यक्ति इसका हकदार बन सकता है।

न्यायमूर्ति ज्योत्सना शर्मा की पीठ ने श्याम बहादुर सिंह नामक व्यक्ति की याचिका खारिज कर दी। इसमें निचली अदालत के उस आदेश को चुनौती दी गई थी, जिसमें उसे अपनी पहली पत्नी को भरण-पोषण के रूप में 1,500 रुपये प्रति माह देने का निर्देश दिया गया था।

पीठ का विचार था कि यदि भरण-पोषण के लिए आवेदन दायर करने का अधिकार बंद कर दिया जाता है, तो यह सीआरपीसी की धारा 125 के मूल उद्देश्य को विफल कर देगा।

अदालत ने कहा कि ऐसे कुछ उदाहरण हो सकते हैं, जहां एक व्यक्ति, जो कुछ समय के लिए अपना भरण-पोषण करने में सक्षम है, लेकिन उसके बाद बदली हुई परिस्थितियों के कारण अपने संसाधनों को खो देता है, ऐसे मामलों में, भरण-पोषण का दावा करने का एक नया अधिकार होता है।

अदालत ने अतिरिक्त मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट, उत्तर-पूर्व रेलवे, बांदा के जनवरी 2004 के आदेश को बरकरार रखते हुए यह बात कही, इसमें सीआरपीसी की धारा 125 के तहत एक महिला द्वारा दायर दूसरे आवेदन को अनुमति दी गई थी।

मामले के मुताबिक प्रतिवादी सं. 2 (पत्नी) ने अपने पति से भरण-पोषण का दावा करते हुए एक आवेदन दायर किया था, जिसे जनवरी 1995 में कुछ आधारों पर खारिज कर दिया गया था।

इसके बाद, 2003 में, उसने सीआरपीसी की धारा 125 के तहत दूसरा आवेदन इस आधार पर दायर किया कि परिस्थितियों में बदलाव आया है, पति के पुनर्विवाह के कारण वह उससे भरण-पोषण का दावा करने की हकदार है।

इस दूसरे आवेदन को एसीजेएम (बांदा) की अदालत ने जनवरी 2004 में स्वीकार कर लिया और उसके पति को उसे प्रति माह 1,500 रुपये का भुगतान करने का निर्देश दिया।

पति ने आपराधिक पुनरीक्षण याचिका में आदेश को चुनौती दी, जिसे अतिरिक्त जिला न्यायाधीश, बांदा ने भी खारिज कर दिया।

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प्रयागराज, 23 जून (आईएएनएस)। इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने कहा है कि सीआरपीसी की धारा 125 के तहत पहले आवेदन की अस्वीकृति के बाद भी भरण-पोषण की मांग करने वाला दूसरा आवेदन कायम रह सकता है। अगर परिस्थितियों में कोई बदलाव हो, तो उक्त प्रावधान के तहत कोई व्यक्ति इसका हकदार बन सकता है।

न्यायमूर्ति ज्योत्सना शर्मा की पीठ ने श्याम बहादुर सिंह नामक व्यक्ति की याचिका खारिज कर दी। इसमें निचली अदालत के उस आदेश को चुनौती दी गई थी, जिसमें उसे अपनी पहली पत्नी को भरण-पोषण के रूप में 1,500 रुपये प्रति माह देने का निर्देश दिया गया था।

पीठ का विचार था कि यदि भरण-पोषण के लिए आवेदन दायर करने का अधिकार बंद कर दिया जाता है, तो यह सीआरपीसी की धारा 125 के मूल उद्देश्य को विफल कर देगा।

अदालत ने कहा कि ऐसे कुछ उदाहरण हो सकते हैं, जहां एक व्यक्ति, जो कुछ समय के लिए अपना भरण-पोषण करने में सक्षम है, लेकिन उसके बाद बदली हुई परिस्थितियों के कारण अपने संसाधनों को खो देता है, ऐसे मामलों में, भरण-पोषण का दावा करने का एक नया अधिकार होता है।

अदालत ने अतिरिक्त मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट, उत्तर-पूर्व रेलवे, बांदा के जनवरी 2004 के आदेश को बरकरार रखते हुए यह बात कही, इसमें सीआरपीसी की धारा 125 के तहत एक महिला द्वारा दायर दूसरे आवेदन को अनुमति दी गई थी।

मामले के मुताबिक प्रतिवादी सं. 2 (पत्नी) ने अपने पति से भरण-पोषण का दावा करते हुए एक आवेदन दायर किया था, जिसे जनवरी 1995 में कुछ आधारों पर खारिज कर दिया गया था।

इसके बाद, 2003 में, उसने सीआरपीसी की धारा 125 के तहत दूसरा आवेदन इस आधार पर दायर किया कि परिस्थितियों में बदलाव आया है, पति के पुनर्विवाह के कारण वह उससे भरण-पोषण का दावा करने की हकदार है।

इस दूसरे आवेदन को एसीजेएम (बांदा) की अदालत ने जनवरी 2004 में स्वीकार कर लिया और उसके पति को उसे प्रति माह 1,500 रुपये का भुगतान करने का निर्देश दिया।

पति ने आपराधिक पुनरीक्षण याचिका में आदेश को चुनौती दी, जिसे अतिरिक्त जिला न्यायाधीश, बांदा ने भी खारिज कर दिया।

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न्यायमूर्ति ज्योत्सना शर्मा की पीठ ने श्याम बहादुर सिंह नामक व्यक्ति की याचिका खारिज कर दी। इसमें निचली अदालत के उस आदेश को चुनौती दी गई थी, जिसमें उसे अपनी पहली पत्नी को भरण-पोषण के रूप में 1,500 रुपये प्रति माह देने का निर्देश दिया गया था।

पीठ का विचार था कि यदि भरण-पोषण के लिए आवेदन दायर करने का अधिकार बंद कर दिया जाता है, तो यह सीआरपीसी की धारा 125 के मूल उद्देश्य को विफल कर देगा।

अदालत ने कहा कि ऐसे कुछ उदाहरण हो सकते हैं, जहां एक व्यक्ति, जो कुछ समय के लिए अपना भरण-पोषण करने में सक्षम है, लेकिन उसके बाद बदली हुई परिस्थितियों के कारण अपने संसाधनों को खो देता है, ऐसे मामलों में, भरण-पोषण का दावा करने का एक नया अधिकार होता है।

अदालत ने अतिरिक्त मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट, उत्तर-पूर्व रेलवे, बांदा के जनवरी 2004 के आदेश को बरकरार रखते हुए यह बात कही, इसमें सीआरपीसी की धारा 125 के तहत एक महिला द्वारा दायर दूसरे आवेदन को अनुमति दी गई थी।

मामले के मुताबिक प्रतिवादी सं. 2 (पत्नी) ने अपने पति से भरण-पोषण का दावा करते हुए एक आवेदन दायर किया था, जिसे जनवरी 1995 में कुछ आधारों पर खारिज कर दिया गया था।

इसके बाद, 2003 में, उसने सीआरपीसी की धारा 125 के तहत दूसरा आवेदन इस आधार पर दायर किया कि परिस्थितियों में बदलाव आया है, पति के पुनर्विवाह के कारण वह उससे भरण-पोषण का दावा करने की हकदार है।

इस दूसरे आवेदन को एसीजेएम (बांदा) की अदालत ने जनवरी 2004 में स्वीकार कर लिया और उसके पति को उसे प्रति माह 1,500 रुपये का भुगतान करने का निर्देश दिया।

पति ने आपराधिक पुनरीक्षण याचिका में आदेश को चुनौती दी, जिसे अतिरिक्त जिला न्यायाधीश, बांदा ने भी खारिज कर दिया।

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न्यायमूर्ति ज्योत्सना शर्मा की पीठ ने श्याम बहादुर सिंह नामक व्यक्ति की याचिका खारिज कर दी। इसमें निचली अदालत के उस आदेश को चुनौती दी गई थी, जिसमें उसे अपनी पहली पत्नी को भरण-पोषण के रूप में 1,500 रुपये प्रति माह देने का निर्देश दिया गया था।

पीठ का विचार था कि यदि भरण-पोषण के लिए आवेदन दायर करने का अधिकार बंद कर दिया जाता है, तो यह सीआरपीसी की धारा 125 के मूल उद्देश्य को विफल कर देगा।

अदालत ने कहा कि ऐसे कुछ उदाहरण हो सकते हैं, जहां एक व्यक्ति, जो कुछ समय के लिए अपना भरण-पोषण करने में सक्षम है, लेकिन उसके बाद बदली हुई परिस्थितियों के कारण अपने संसाधनों को खो देता है, ऐसे मामलों में, भरण-पोषण का दावा करने का एक नया अधिकार होता है।

अदालत ने अतिरिक्त मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट, उत्तर-पूर्व रेलवे, बांदा के जनवरी 2004 के आदेश को बरकरार रखते हुए यह बात कही, इसमें सीआरपीसी की धारा 125 के तहत एक महिला द्वारा दायर दूसरे आवेदन को अनुमति दी गई थी।

मामले के मुताबिक प्रतिवादी सं. 2 (पत्नी) ने अपने पति से भरण-पोषण का दावा करते हुए एक आवेदन दायर किया था, जिसे जनवरी 1995 में कुछ आधारों पर खारिज कर दिया गया था।

इसके बाद, 2003 में, उसने सीआरपीसी की धारा 125 के तहत दूसरा आवेदन इस आधार पर दायर किया कि परिस्थितियों में बदलाव आया है, पति के पुनर्विवाह के कारण वह उससे भरण-पोषण का दावा करने की हकदार है।

इस दूसरे आवेदन को एसीजेएम (बांदा) की अदालत ने जनवरी 2004 में स्वीकार कर लिया और उसके पति को उसे प्रति माह 1,500 रुपये का भुगतान करने का निर्देश दिया।

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