चेन्नई, 22 मार्च (आईएएनएस)। ऐसा लगता है कि भारतीय अंतरिक्ष एजेंसी ने अपने प्रक्षेपण यान का नामकरण करते समय अपना मन बदल लिया है। इसरो ने अपने लॉन्च वाहन के लिए ‘पुष्पक’ नाम चुना है।
लंबे समय से इसरो अपने रॉकेट का नामकरण पोलर सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल, जियोसिंक्रोनस सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल (जीएसएलवी) और स्मॉल सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल (एसएसएलवी) जैसे नामों से करता रहा है। दिलचस्प बात यह है कि विदेशी अंतरिक्ष एजेंसियों के रॉकेटों के नाम छोटे होते हैं, जिन्हें याद रखना और ब्रांड बनाना आसान होता है।
इसरो के एक सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर आईएएनएस को बताया, “यहां तक कि यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी एरियनस्पेस के रॉकेट एरियन का नाम फ्रांसीसी पौराणिक चरित्र एराडने से लिया गया है।”
उन्होंने कहा कि चीनी और रूसी रॉकेट – क्रमशः लॉन्ग मार्च और सोयुज – के नाम उनकी विचारधारा और इतिहास से जुड़े हैं।
दिलचस्प बात यह है कि भारत के पहले साउंडिंग रॉकेट का नाम रोहिणी रखा गया था। रॉकेट को मौसम विज्ञान और वायुमंडलीय अध्ययन के लिए बनाया गया था।
बाद में रॉकेट को उस कक्षा के आधार पर लंबे घुमावदार नाम दिए गए जहां उन्होंने ध्रुवीय उपग्रह प्रक्षेपण यान (ध्रुवीय कक्षा – पीएसएलवी) और जीएसएलवी (जियोसिंक्रोनस कक्षा) जैसे उपग्रहों को स्थापित किया था।
भारत ने अपने प्रारंभिक उपग्रहों का नाम भी प्रसिद्ध गणितज्ञ-खगोलशास्त्री आर्यभट्ट और गणितज्ञ भास्कर प्रथम और भास्कर द्वितीय के नाम पर रखा।
कुछ समय बाद इसरो के अंदर सोच बदल गई। उपग्रहों का नाम उस उद्देश्य के अनुरूप रखा गया था, जिसके लिए उन्हें लॉन्च किया गया था और अब उनका एक सामान्य नाम है।
इसरो ने अपने पृथ्वी अवलोकन उपग्रहों का नामकरण बदलकर ईओएस के साथ क्रमांक 1, 2, 3 और अन्य टैग कर दिया है।
नामकरण में एक उल्लेखनीय परिवर्तन भारतीय उपग्रह नेविगेशन प्रणाली के साथ हुआ। प्रारंभ में इसे भारतीय क्षेत्रीय नेविगेशन सैटेलाइट सिस्टम (आईआरएनएसएस) नाम दिया गया था। अंततः इसका नाम बदलकर एनएवीआईसी कर दिया गया – नेविगेशन शब्द से पहले तीन अक्षर और ‘भारतीय तारामंडल’ शब्द से पहले दो अक्षर लिए गए।
इसरो के पूर्व अध्यक्ष जी. माधवन नायर ने पहले आईएएनएस को बताया था, “अब समय आ गया है कि हम अपने धर्मग्रंथों, संस्कृति पर गौर करें और ऐसा नाम रखें जो नए रॉकेट की विशेषताओं और उसकी शक्ति को दर्शाए।”
भारतीय रडार इमेजिंग उपग्रह आरआईएसएटी का नाम सबसे पहले महाभारत में संजय के नाम पर ‘संजय’ रखने का प्रस्ताव रखा गया था, जिनके पास दिव्य दृष्टि थी और उन्होंने महल में अपने अंधे राजा धृतराष्ट्र को युद्ध के मैदान में होने वाली घटनाओं के बारे में बताया था।
सिसिर राडार प्राइवेट लिमिटेड के संस्थापक निदेशक और मुख्य वैज्ञानिक तपन मिश्रा ने आईएएनएस को बताया, “मैंने भारतीय महाकाव्य महाभारत के चरित्र के बाद आरआईएसएटी का नाम ‘संजय’ रखने का प्रस्ताव रखा था। हालांकि, इस विचार को खारिज कर दिया गया।”
मिश्रा पहले इसरो के अंतरिक्ष अनुप्रयोग केंद्र में निदेशक थे। भारतीय अंतरिक्ष एजेंसी के एसएआर उपग्रहों की आरआईएसएटी श्रृंखला के साथ-साथ चंद्रयान 2 ऑर्बिटर पर दोहरी आवृत्ति एसएआर के पीछे उनका दिमाग था।
–आईएएनएस
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