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Home ताज़ा समाचार

भारत कश्मीरी पंडितों के नरसंहार से इनकार करता है : रिपोर्ट

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December 5, 2022
in ताज़ा समाचार
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भारत कश्मीरी पंडितों के नरसंहार से इनकार करता है : रिपोर्ट
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नई दिल्ली, 5 दिसम्बर (आईएएनएस)। भारत ने पूरी तरह से जम्मू-कश्मीर में कश्मीरी पंडितों के नरसंहार से इनकार किया है। एक रिपोर्ट में कहा गया है कि कश्मीरी पंडित समुदाय कश्मीरियत और धर्मनिरपेक्षता की वेदी पर बलि का बकरा बना हुआ है। यह बात फैक्ट फाइंडिंग रिपोर्ट कश्मीरी पंडितों का बेरोकटोक नरसंहार के निष्कर्ष में सामने आई है। यह रिपोर्ट जम्मू-कश्मीर में अनुच्छेद 370 को हटाने के बाद और 2020 की शुरूआत से टारगेट हत्याओं के बाद हिंदू अल्पसंख्यक के जीवन पर आधारित है।

कई फ्रंटलाइन कश्मीरी पंडित संगठनों द्वारा राहुल कौल, अमित रैना और विट्ठल चौधरी समेत तीन सदस्यीय फैक्ट फाइंडिंग प्रतिनिधिमंडल को नामित किया गया था। कमेटी के सदस्यों को घाटी में पीएम पैकेज के कर्मचारियों, घाटी में सेवारत कर्मचारियों, परिवारों और जम्मू में विरोध कर रहे पीएम पैकेज के कर्मचारियों के शिविरों का दौरा करना था। रिपोर्ट ने अपने निष्कर्ष में कहा कि कश्मीर के आंतरिक रूप से विस्थापित हिंदू उन ताकतों के बीच फंस गए हैं जो उनका नरसंहार करना जारी रखती हैं और नरसंहार से इनकार करने वाली ताकतें हैं।

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घाटी में गजवा-ए-हिंद के लिए जिम्मेदार नेताओं सहित राजनीतिक दलों को राज्य का संरक्षण प्राप्त है। कहा गया है कि महबूबा मुफ्ती, फारूक अब्दुल्ला, उमर अब्दुल्ला, सज्जाद लोन, अल्ताफ बुखारी जैसे कई अन्य राजनीतिक नेताओं को प्रदान की जा रही सुविधाएं और सुरक्षा इसका प्रमुख उदाहरण है। रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि इन अपराध करने वाले अपराधियों को दंडित करने के लिए न्यायपालिका और कार्यपालिका की लगभग शून्य सजा घाटी में जिहादी तत्वों को और बढ़ावा देती है।

रिपोर्ट के निष्कर्ष में कहा गया है कि कश्मीर के आंतरिक रूप से विस्थापित हिंदुओं की वापसी और पुनर्वास की नीतियां जम्मू कश्मीर के साथ साथ केंद्र में पूर्व सरकारों द्वारा अपनाई गई नरसंहार से इनकार की सबसे निर्लज्ज अभिव्यक्ति रही हैं। ये नीतियां वास्तव में प्रयास हैं कश्मीर में हिंदुओं के नरसंहार के लिए जिम्मेदार कश्मीर में मुस्लिम अलगाववादी कट्टरपंथी वर्ग के साथ एक समझौता करें। ऐसी नीतियां नरसंहार के पीड़ितों को एक मुस्लिम कट्टरपंथी आदेश को सौंपने की कोशिश करती हैं जिसने नरसंहार होने दिया।

रिपोर्ट में कहा गया है कि कश्मीर में हिंदुओं के नरसंहार से इनकार न केवल कश्मीर के हिंदुओं के लिए विनाशकारी है, बल्कि भारत के बाकी हिस्सों में भी जिहाद का प्रसार हुआ है। इस्लामवादी विचारधाराओं का विस्तार भारत के कौने-कौने में हो रहा है। रिपोर्ट में कहा गया है कि पूरे भारत में कई जगहों पर डेमोग्राफिक हमले हो रहे हैं। रिपोर्ट में सिफारिश की गई है कि पीएम पैकेज के कर्मचारियों को घाटी से बाहर ट्रांसफर किया जा सकता है। ताकि घाटी में हिंदुओं के नरसंहार और टारगेट हत्याओं से बचा जा सके। इसने यह भी सिफारिश की कि एक नरसंहार विधेयक को तत्काल अधिनियमित किया जाना चाहिए।

–आईएएनएस

एफजेड/एएनएम

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नई दिल्ली, 5 दिसम्बर (आईएएनएस)। भारत ने पूरी तरह से जम्मू-कश्मीर में कश्मीरी पंडितों के नरसंहार से इनकार किया है। एक रिपोर्ट में कहा गया है कि कश्मीरी पंडित समुदाय कश्मीरियत और धर्मनिरपेक्षता की वेदी पर बलि का बकरा बना हुआ है। यह बात फैक्ट फाइंडिंग रिपोर्ट कश्मीरी पंडितों का बेरोकटोक नरसंहार के निष्कर्ष में सामने आई है। यह रिपोर्ट जम्मू-कश्मीर में अनुच्छेद 370 को हटाने के बाद और 2020 की शुरूआत से टारगेट हत्याओं के बाद हिंदू अल्पसंख्यक के जीवन पर आधारित है।

कई फ्रंटलाइन कश्मीरी पंडित संगठनों द्वारा राहुल कौल, अमित रैना और विट्ठल चौधरी समेत तीन सदस्यीय फैक्ट फाइंडिंग प्रतिनिधिमंडल को नामित किया गया था। कमेटी के सदस्यों को घाटी में पीएम पैकेज के कर्मचारियों, घाटी में सेवारत कर्मचारियों, परिवारों और जम्मू में विरोध कर रहे पीएम पैकेज के कर्मचारियों के शिविरों का दौरा करना था। रिपोर्ट ने अपने निष्कर्ष में कहा कि कश्मीर के आंतरिक रूप से विस्थापित हिंदू उन ताकतों के बीच फंस गए हैं जो उनका नरसंहार करना जारी रखती हैं और नरसंहार से इनकार करने वाली ताकतें हैं।

घाटी में गजवा-ए-हिंद के लिए जिम्मेदार नेताओं सहित राजनीतिक दलों को राज्य का संरक्षण प्राप्त है। कहा गया है कि महबूबा मुफ्ती, फारूक अब्दुल्ला, उमर अब्दुल्ला, सज्जाद लोन, अल्ताफ बुखारी जैसे कई अन्य राजनीतिक नेताओं को प्रदान की जा रही सुविधाएं और सुरक्षा इसका प्रमुख उदाहरण है। रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि इन अपराध करने वाले अपराधियों को दंडित करने के लिए न्यायपालिका और कार्यपालिका की लगभग शून्य सजा घाटी में जिहादी तत्वों को और बढ़ावा देती है।

रिपोर्ट के निष्कर्ष में कहा गया है कि कश्मीर के आंतरिक रूप से विस्थापित हिंदुओं की वापसी और पुनर्वास की नीतियां जम्मू कश्मीर के साथ साथ केंद्र में पूर्व सरकारों द्वारा अपनाई गई नरसंहार से इनकार की सबसे निर्लज्ज अभिव्यक्ति रही हैं। ये नीतियां वास्तव में प्रयास हैं कश्मीर में हिंदुओं के नरसंहार के लिए जिम्मेदार कश्मीर में मुस्लिम अलगाववादी कट्टरपंथी वर्ग के साथ एक समझौता करें। ऐसी नीतियां नरसंहार के पीड़ितों को एक मुस्लिम कट्टरपंथी आदेश को सौंपने की कोशिश करती हैं जिसने नरसंहार होने दिया।

रिपोर्ट में कहा गया है कि कश्मीर में हिंदुओं के नरसंहार से इनकार न केवल कश्मीर के हिंदुओं के लिए विनाशकारी है, बल्कि भारत के बाकी हिस्सों में भी जिहाद का प्रसार हुआ है। इस्लामवादी विचारधाराओं का विस्तार भारत के कौने-कौने में हो रहा है। रिपोर्ट में कहा गया है कि पूरे भारत में कई जगहों पर डेमोग्राफिक हमले हो रहे हैं। रिपोर्ट में सिफारिश की गई है कि पीएम पैकेज के कर्मचारियों को घाटी से बाहर ट्रांसफर किया जा सकता है। ताकि घाटी में हिंदुओं के नरसंहार और टारगेट हत्याओं से बचा जा सके। इसने यह भी सिफारिश की कि एक नरसंहार विधेयक को तत्काल अधिनियमित किया जाना चाहिए।

–आईएएनएस

एफजेड/एएनएम

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नई दिल्ली, 5 दिसम्बर (आईएएनएस)। भारत ने पूरी तरह से जम्मू-कश्मीर में कश्मीरी पंडितों के नरसंहार से इनकार किया है। एक रिपोर्ट में कहा गया है कि कश्मीरी पंडित समुदाय कश्मीरियत और धर्मनिरपेक्षता की वेदी पर बलि का बकरा बना हुआ है। यह बात फैक्ट फाइंडिंग रिपोर्ट कश्मीरी पंडितों का बेरोकटोक नरसंहार के निष्कर्ष में सामने आई है। यह रिपोर्ट जम्मू-कश्मीर में अनुच्छेद 370 को हटाने के बाद और 2020 की शुरूआत से टारगेट हत्याओं के बाद हिंदू अल्पसंख्यक के जीवन पर आधारित है।

कई फ्रंटलाइन कश्मीरी पंडित संगठनों द्वारा राहुल कौल, अमित रैना और विट्ठल चौधरी समेत तीन सदस्यीय फैक्ट फाइंडिंग प्रतिनिधिमंडल को नामित किया गया था। कमेटी के सदस्यों को घाटी में पीएम पैकेज के कर्मचारियों, घाटी में सेवारत कर्मचारियों, परिवारों और जम्मू में विरोध कर रहे पीएम पैकेज के कर्मचारियों के शिविरों का दौरा करना था। रिपोर्ट ने अपने निष्कर्ष में कहा कि कश्मीर के आंतरिक रूप से विस्थापित हिंदू उन ताकतों के बीच फंस गए हैं जो उनका नरसंहार करना जारी रखती हैं और नरसंहार से इनकार करने वाली ताकतें हैं।

घाटी में गजवा-ए-हिंद के लिए जिम्मेदार नेताओं सहित राजनीतिक दलों को राज्य का संरक्षण प्राप्त है। कहा गया है कि महबूबा मुफ्ती, फारूक अब्दुल्ला, उमर अब्दुल्ला, सज्जाद लोन, अल्ताफ बुखारी जैसे कई अन्य राजनीतिक नेताओं को प्रदान की जा रही सुविधाएं और सुरक्षा इसका प्रमुख उदाहरण है। रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि इन अपराध करने वाले अपराधियों को दंडित करने के लिए न्यायपालिका और कार्यपालिका की लगभग शून्य सजा घाटी में जिहादी तत्वों को और बढ़ावा देती है।

रिपोर्ट के निष्कर्ष में कहा गया है कि कश्मीर के आंतरिक रूप से विस्थापित हिंदुओं की वापसी और पुनर्वास की नीतियां जम्मू कश्मीर के साथ साथ केंद्र में पूर्व सरकारों द्वारा अपनाई गई नरसंहार से इनकार की सबसे निर्लज्ज अभिव्यक्ति रही हैं। ये नीतियां वास्तव में प्रयास हैं कश्मीर में हिंदुओं के नरसंहार के लिए जिम्मेदार कश्मीर में मुस्लिम अलगाववादी कट्टरपंथी वर्ग के साथ एक समझौता करें। ऐसी नीतियां नरसंहार के पीड़ितों को एक मुस्लिम कट्टरपंथी आदेश को सौंपने की कोशिश करती हैं जिसने नरसंहार होने दिया।

रिपोर्ट में कहा गया है कि कश्मीर में हिंदुओं के नरसंहार से इनकार न केवल कश्मीर के हिंदुओं के लिए विनाशकारी है, बल्कि भारत के बाकी हिस्सों में भी जिहाद का प्रसार हुआ है। इस्लामवादी विचारधाराओं का विस्तार भारत के कौने-कौने में हो रहा है। रिपोर्ट में कहा गया है कि पूरे भारत में कई जगहों पर डेमोग्राफिक हमले हो रहे हैं। रिपोर्ट में सिफारिश की गई है कि पीएम पैकेज के कर्मचारियों को घाटी से बाहर ट्रांसफर किया जा सकता है। ताकि घाटी में हिंदुओं के नरसंहार और टारगेट हत्याओं से बचा जा सके। इसने यह भी सिफारिश की कि एक नरसंहार विधेयक को तत्काल अधिनियमित किया जाना चाहिए।

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नई दिल्ली, 5 दिसम्बर (आईएएनएस)। भारत ने पूरी तरह से जम्मू-कश्मीर में कश्मीरी पंडितों के नरसंहार से इनकार किया है। एक रिपोर्ट में कहा गया है कि कश्मीरी पंडित समुदाय कश्मीरियत और धर्मनिरपेक्षता की वेदी पर बलि का बकरा बना हुआ है। यह बात फैक्ट फाइंडिंग रिपोर्ट कश्मीरी पंडितों का बेरोकटोक नरसंहार के निष्कर्ष में सामने आई है। यह रिपोर्ट जम्मू-कश्मीर में अनुच्छेद 370 को हटाने के बाद और 2020 की शुरूआत से टारगेट हत्याओं के बाद हिंदू अल्पसंख्यक के जीवन पर आधारित है।

कई फ्रंटलाइन कश्मीरी पंडित संगठनों द्वारा राहुल कौल, अमित रैना और विट्ठल चौधरी समेत तीन सदस्यीय फैक्ट फाइंडिंग प्रतिनिधिमंडल को नामित किया गया था। कमेटी के सदस्यों को घाटी में पीएम पैकेज के कर्मचारियों, घाटी में सेवारत कर्मचारियों, परिवारों और जम्मू में विरोध कर रहे पीएम पैकेज के कर्मचारियों के शिविरों का दौरा करना था। रिपोर्ट ने अपने निष्कर्ष में कहा कि कश्मीर के आंतरिक रूप से विस्थापित हिंदू उन ताकतों के बीच फंस गए हैं जो उनका नरसंहार करना जारी रखती हैं और नरसंहार से इनकार करने वाली ताकतें हैं।

घाटी में गजवा-ए-हिंद के लिए जिम्मेदार नेताओं सहित राजनीतिक दलों को राज्य का संरक्षण प्राप्त है। कहा गया है कि महबूबा मुफ्ती, फारूक अब्दुल्ला, उमर अब्दुल्ला, सज्जाद लोन, अल्ताफ बुखारी जैसे कई अन्य राजनीतिक नेताओं को प्रदान की जा रही सुविधाएं और सुरक्षा इसका प्रमुख उदाहरण है। रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि इन अपराध करने वाले अपराधियों को दंडित करने के लिए न्यायपालिका और कार्यपालिका की लगभग शून्य सजा घाटी में जिहादी तत्वों को और बढ़ावा देती है।

रिपोर्ट के निष्कर्ष में कहा गया है कि कश्मीर के आंतरिक रूप से विस्थापित हिंदुओं की वापसी और पुनर्वास की नीतियां जम्मू कश्मीर के साथ साथ केंद्र में पूर्व सरकारों द्वारा अपनाई गई नरसंहार से इनकार की सबसे निर्लज्ज अभिव्यक्ति रही हैं। ये नीतियां वास्तव में प्रयास हैं कश्मीर में हिंदुओं के नरसंहार के लिए जिम्मेदार कश्मीर में मुस्लिम अलगाववादी कट्टरपंथी वर्ग के साथ एक समझौता करें। ऐसी नीतियां नरसंहार के पीड़ितों को एक मुस्लिम कट्टरपंथी आदेश को सौंपने की कोशिश करती हैं जिसने नरसंहार होने दिया।

रिपोर्ट में कहा गया है कि कश्मीर में हिंदुओं के नरसंहार से इनकार न केवल कश्मीर के हिंदुओं के लिए विनाशकारी है, बल्कि भारत के बाकी हिस्सों में भी जिहाद का प्रसार हुआ है। इस्लामवादी विचारधाराओं का विस्तार भारत के कौने-कौने में हो रहा है। रिपोर्ट में कहा गया है कि पूरे भारत में कई जगहों पर डेमोग्राफिक हमले हो रहे हैं। रिपोर्ट में सिफारिश की गई है कि पीएम पैकेज के कर्मचारियों को घाटी से बाहर ट्रांसफर किया जा सकता है। ताकि घाटी में हिंदुओं के नरसंहार और टारगेट हत्याओं से बचा जा सके। इसने यह भी सिफारिश की कि एक नरसंहार विधेयक को तत्काल अधिनियमित किया जाना चाहिए।

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कई फ्रंटलाइन कश्मीरी पंडित संगठनों द्वारा राहुल कौल, अमित रैना और विट्ठल चौधरी समेत तीन सदस्यीय फैक्ट फाइंडिंग प्रतिनिधिमंडल को नामित किया गया था। कमेटी के सदस्यों को घाटी में पीएम पैकेज के कर्मचारियों, घाटी में सेवारत कर्मचारियों, परिवारों और जम्मू में विरोध कर रहे पीएम पैकेज के कर्मचारियों के शिविरों का दौरा करना था। रिपोर्ट ने अपने निष्कर्ष में कहा कि कश्मीर के आंतरिक रूप से विस्थापित हिंदू उन ताकतों के बीच फंस गए हैं जो उनका नरसंहार करना जारी रखती हैं और नरसंहार से इनकार करने वाली ताकतें हैं।

घाटी में गजवा-ए-हिंद के लिए जिम्मेदार नेताओं सहित राजनीतिक दलों को राज्य का संरक्षण प्राप्त है। कहा गया है कि महबूबा मुफ्ती, फारूक अब्दुल्ला, उमर अब्दुल्ला, सज्जाद लोन, अल्ताफ बुखारी जैसे कई अन्य राजनीतिक नेताओं को प्रदान की जा रही सुविधाएं और सुरक्षा इसका प्रमुख उदाहरण है। रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि इन अपराध करने वाले अपराधियों को दंडित करने के लिए न्यायपालिका और कार्यपालिका की लगभग शून्य सजा घाटी में जिहादी तत्वों को और बढ़ावा देती है।

रिपोर्ट के निष्कर्ष में कहा गया है कि कश्मीर के आंतरिक रूप से विस्थापित हिंदुओं की वापसी और पुनर्वास की नीतियां जम्मू कश्मीर के साथ साथ केंद्र में पूर्व सरकारों द्वारा अपनाई गई नरसंहार से इनकार की सबसे निर्लज्ज अभिव्यक्ति रही हैं। ये नीतियां वास्तव में प्रयास हैं कश्मीर में हिंदुओं के नरसंहार के लिए जिम्मेदार कश्मीर में मुस्लिम अलगाववादी कट्टरपंथी वर्ग के साथ एक समझौता करें। ऐसी नीतियां नरसंहार के पीड़ितों को एक मुस्लिम कट्टरपंथी आदेश को सौंपने की कोशिश करती हैं जिसने नरसंहार होने दिया।

रिपोर्ट में कहा गया है कि कश्मीर में हिंदुओं के नरसंहार से इनकार न केवल कश्मीर के हिंदुओं के लिए विनाशकारी है, बल्कि भारत के बाकी हिस्सों में भी जिहाद का प्रसार हुआ है। इस्लामवादी विचारधाराओं का विस्तार भारत के कौने-कौने में हो रहा है। रिपोर्ट में कहा गया है कि पूरे भारत में कई जगहों पर डेमोग्राफिक हमले हो रहे हैं। रिपोर्ट में सिफारिश की गई है कि पीएम पैकेज के कर्मचारियों को घाटी से बाहर ट्रांसफर किया जा सकता है। ताकि घाटी में हिंदुओं के नरसंहार और टारगेट हत्याओं से बचा जा सके। इसने यह भी सिफारिश की कि एक नरसंहार विधेयक को तत्काल अधिनियमित किया जाना चाहिए।

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कई फ्रंटलाइन कश्मीरी पंडित संगठनों द्वारा राहुल कौल, अमित रैना और विट्ठल चौधरी समेत तीन सदस्यीय फैक्ट फाइंडिंग प्रतिनिधिमंडल को नामित किया गया था। कमेटी के सदस्यों को घाटी में पीएम पैकेज के कर्मचारियों, घाटी में सेवारत कर्मचारियों, परिवारों और जम्मू में विरोध कर रहे पीएम पैकेज के कर्मचारियों के शिविरों का दौरा करना था। रिपोर्ट ने अपने निष्कर्ष में कहा कि कश्मीर के आंतरिक रूप से विस्थापित हिंदू उन ताकतों के बीच फंस गए हैं जो उनका नरसंहार करना जारी रखती हैं और नरसंहार से इनकार करने वाली ताकतें हैं।

घाटी में गजवा-ए-हिंद के लिए जिम्मेदार नेताओं सहित राजनीतिक दलों को राज्य का संरक्षण प्राप्त है। कहा गया है कि महबूबा मुफ्ती, फारूक अब्दुल्ला, उमर अब्दुल्ला, सज्जाद लोन, अल्ताफ बुखारी जैसे कई अन्य राजनीतिक नेताओं को प्रदान की जा रही सुविधाएं और सुरक्षा इसका प्रमुख उदाहरण है। रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि इन अपराध करने वाले अपराधियों को दंडित करने के लिए न्यायपालिका और कार्यपालिका की लगभग शून्य सजा घाटी में जिहादी तत्वों को और बढ़ावा देती है।

रिपोर्ट के निष्कर्ष में कहा गया है कि कश्मीर के आंतरिक रूप से विस्थापित हिंदुओं की वापसी और पुनर्वास की नीतियां जम्मू कश्मीर के साथ साथ केंद्र में पूर्व सरकारों द्वारा अपनाई गई नरसंहार से इनकार की सबसे निर्लज्ज अभिव्यक्ति रही हैं। ये नीतियां वास्तव में प्रयास हैं कश्मीर में हिंदुओं के नरसंहार के लिए जिम्मेदार कश्मीर में मुस्लिम अलगाववादी कट्टरपंथी वर्ग के साथ एक समझौता करें। ऐसी नीतियां नरसंहार के पीड़ितों को एक मुस्लिम कट्टरपंथी आदेश को सौंपने की कोशिश करती हैं जिसने नरसंहार होने दिया।

रिपोर्ट में कहा गया है कि कश्मीर में हिंदुओं के नरसंहार से इनकार न केवल कश्मीर के हिंदुओं के लिए विनाशकारी है, बल्कि भारत के बाकी हिस्सों में भी जिहाद का प्रसार हुआ है। इस्लामवादी विचारधाराओं का विस्तार भारत के कौने-कौने में हो रहा है। रिपोर्ट में कहा गया है कि पूरे भारत में कई जगहों पर डेमोग्राफिक हमले हो रहे हैं। रिपोर्ट में सिफारिश की गई है कि पीएम पैकेज के कर्मचारियों को घाटी से बाहर ट्रांसफर किया जा सकता है। ताकि घाटी में हिंदुओं के नरसंहार और टारगेट हत्याओं से बचा जा सके। इसने यह भी सिफारिश की कि एक नरसंहार विधेयक को तत्काल अधिनियमित किया जाना चाहिए।

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कई फ्रंटलाइन कश्मीरी पंडित संगठनों द्वारा राहुल कौल, अमित रैना और विट्ठल चौधरी समेत तीन सदस्यीय फैक्ट फाइंडिंग प्रतिनिधिमंडल को नामित किया गया था। कमेटी के सदस्यों को घाटी में पीएम पैकेज के कर्मचारियों, घाटी में सेवारत कर्मचारियों, परिवारों और जम्मू में विरोध कर रहे पीएम पैकेज के कर्मचारियों के शिविरों का दौरा करना था। रिपोर्ट ने अपने निष्कर्ष में कहा कि कश्मीर के आंतरिक रूप से विस्थापित हिंदू उन ताकतों के बीच फंस गए हैं जो उनका नरसंहार करना जारी रखती हैं और नरसंहार से इनकार करने वाली ताकतें हैं।

घाटी में गजवा-ए-हिंद के लिए जिम्मेदार नेताओं सहित राजनीतिक दलों को राज्य का संरक्षण प्राप्त है। कहा गया है कि महबूबा मुफ्ती, फारूक अब्दुल्ला, उमर अब्दुल्ला, सज्जाद लोन, अल्ताफ बुखारी जैसे कई अन्य राजनीतिक नेताओं को प्रदान की जा रही सुविधाएं और सुरक्षा इसका प्रमुख उदाहरण है। रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि इन अपराध करने वाले अपराधियों को दंडित करने के लिए न्यायपालिका और कार्यपालिका की लगभग शून्य सजा घाटी में जिहादी तत्वों को और बढ़ावा देती है।

रिपोर्ट के निष्कर्ष में कहा गया है कि कश्मीर के आंतरिक रूप से विस्थापित हिंदुओं की वापसी और पुनर्वास की नीतियां जम्मू कश्मीर के साथ साथ केंद्र में पूर्व सरकारों द्वारा अपनाई गई नरसंहार से इनकार की सबसे निर्लज्ज अभिव्यक्ति रही हैं। ये नीतियां वास्तव में प्रयास हैं कश्मीर में हिंदुओं के नरसंहार के लिए जिम्मेदार कश्मीर में मुस्लिम अलगाववादी कट्टरपंथी वर्ग के साथ एक समझौता करें। ऐसी नीतियां नरसंहार के पीड़ितों को एक मुस्लिम कट्टरपंथी आदेश को सौंपने की कोशिश करती हैं जिसने नरसंहार होने दिया।

रिपोर्ट में कहा गया है कि कश्मीर में हिंदुओं के नरसंहार से इनकार न केवल कश्मीर के हिंदुओं के लिए विनाशकारी है, बल्कि भारत के बाकी हिस्सों में भी जिहाद का प्रसार हुआ है। इस्लामवादी विचारधाराओं का विस्तार भारत के कौने-कौने में हो रहा है। रिपोर्ट में कहा गया है कि पूरे भारत में कई जगहों पर डेमोग्राफिक हमले हो रहे हैं। रिपोर्ट में सिफारिश की गई है कि पीएम पैकेज के कर्मचारियों को घाटी से बाहर ट्रांसफर किया जा सकता है। ताकि घाटी में हिंदुओं के नरसंहार और टारगेट हत्याओं से बचा जा सके। इसने यह भी सिफारिश की कि एक नरसंहार विधेयक को तत्काल अधिनियमित किया जाना चाहिए।

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कई फ्रंटलाइन कश्मीरी पंडित संगठनों द्वारा राहुल कौल, अमित रैना और विट्ठल चौधरी समेत तीन सदस्यीय फैक्ट फाइंडिंग प्रतिनिधिमंडल को नामित किया गया था। कमेटी के सदस्यों को घाटी में पीएम पैकेज के कर्मचारियों, घाटी में सेवारत कर्मचारियों, परिवारों और जम्मू में विरोध कर रहे पीएम पैकेज के कर्मचारियों के शिविरों का दौरा करना था। रिपोर्ट ने अपने निष्कर्ष में कहा कि कश्मीर के आंतरिक रूप से विस्थापित हिंदू उन ताकतों के बीच फंस गए हैं जो उनका नरसंहार करना जारी रखती हैं और नरसंहार से इनकार करने वाली ताकतें हैं।

घाटी में गजवा-ए-हिंद के लिए जिम्मेदार नेताओं सहित राजनीतिक दलों को राज्य का संरक्षण प्राप्त है। कहा गया है कि महबूबा मुफ्ती, फारूक अब्दुल्ला, उमर अब्दुल्ला, सज्जाद लोन, अल्ताफ बुखारी जैसे कई अन्य राजनीतिक नेताओं को प्रदान की जा रही सुविधाएं और सुरक्षा इसका प्रमुख उदाहरण है। रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि इन अपराध करने वाले अपराधियों को दंडित करने के लिए न्यायपालिका और कार्यपालिका की लगभग शून्य सजा घाटी में जिहादी तत्वों को और बढ़ावा देती है।

रिपोर्ट के निष्कर्ष में कहा गया है कि कश्मीर के आंतरिक रूप से विस्थापित हिंदुओं की वापसी और पुनर्वास की नीतियां जम्मू कश्मीर के साथ साथ केंद्र में पूर्व सरकारों द्वारा अपनाई गई नरसंहार से इनकार की सबसे निर्लज्ज अभिव्यक्ति रही हैं। ये नीतियां वास्तव में प्रयास हैं कश्मीर में हिंदुओं के नरसंहार के लिए जिम्मेदार कश्मीर में मुस्लिम अलगाववादी कट्टरपंथी वर्ग के साथ एक समझौता करें। ऐसी नीतियां नरसंहार के पीड़ितों को एक मुस्लिम कट्टरपंथी आदेश को सौंपने की कोशिश करती हैं जिसने नरसंहार होने दिया।

रिपोर्ट में कहा गया है कि कश्मीर में हिंदुओं के नरसंहार से इनकार न केवल कश्मीर के हिंदुओं के लिए विनाशकारी है, बल्कि भारत के बाकी हिस्सों में भी जिहाद का प्रसार हुआ है। इस्लामवादी विचारधाराओं का विस्तार भारत के कौने-कौने में हो रहा है। रिपोर्ट में कहा गया है कि पूरे भारत में कई जगहों पर डेमोग्राफिक हमले हो रहे हैं। रिपोर्ट में सिफारिश की गई है कि पीएम पैकेज के कर्मचारियों को घाटी से बाहर ट्रांसफर किया जा सकता है। ताकि घाटी में हिंदुओं के नरसंहार और टारगेट हत्याओं से बचा जा सके। इसने यह भी सिफारिश की कि एक नरसंहार विधेयक को तत्काल अधिनियमित किया जाना चाहिए।

–आईएएनएस

एफजेड/एएनएम

नई दिल्ली, 5 दिसम्बर (आईएएनएस)। भारत ने पूरी तरह से जम्मू-कश्मीर में कश्मीरी पंडितों के नरसंहार से इनकार किया है। एक रिपोर्ट में कहा गया है कि कश्मीरी पंडित समुदाय कश्मीरियत और धर्मनिरपेक्षता की वेदी पर बलि का बकरा बना हुआ है। यह बात फैक्ट फाइंडिंग रिपोर्ट कश्मीरी पंडितों का बेरोकटोक नरसंहार के निष्कर्ष में सामने आई है। यह रिपोर्ट जम्मू-कश्मीर में अनुच्छेद 370 को हटाने के बाद और 2020 की शुरूआत से टारगेट हत्याओं के बाद हिंदू अल्पसंख्यक के जीवन पर आधारित है।

कई फ्रंटलाइन कश्मीरी पंडित संगठनों द्वारा राहुल कौल, अमित रैना और विट्ठल चौधरी समेत तीन सदस्यीय फैक्ट फाइंडिंग प्रतिनिधिमंडल को नामित किया गया था। कमेटी के सदस्यों को घाटी में पीएम पैकेज के कर्मचारियों, घाटी में सेवारत कर्मचारियों, परिवारों और जम्मू में विरोध कर रहे पीएम पैकेज के कर्मचारियों के शिविरों का दौरा करना था। रिपोर्ट ने अपने निष्कर्ष में कहा कि कश्मीर के आंतरिक रूप से विस्थापित हिंदू उन ताकतों के बीच फंस गए हैं जो उनका नरसंहार करना जारी रखती हैं और नरसंहार से इनकार करने वाली ताकतें हैं।

घाटी में गजवा-ए-हिंद के लिए जिम्मेदार नेताओं सहित राजनीतिक दलों को राज्य का संरक्षण प्राप्त है। कहा गया है कि महबूबा मुफ्ती, फारूक अब्दुल्ला, उमर अब्दुल्ला, सज्जाद लोन, अल्ताफ बुखारी जैसे कई अन्य राजनीतिक नेताओं को प्रदान की जा रही सुविधाएं और सुरक्षा इसका प्रमुख उदाहरण है। रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि इन अपराध करने वाले अपराधियों को दंडित करने के लिए न्यायपालिका और कार्यपालिका की लगभग शून्य सजा घाटी में जिहादी तत्वों को और बढ़ावा देती है।

रिपोर्ट के निष्कर्ष में कहा गया है कि कश्मीर के आंतरिक रूप से विस्थापित हिंदुओं की वापसी और पुनर्वास की नीतियां जम्मू कश्मीर के साथ साथ केंद्र में पूर्व सरकारों द्वारा अपनाई गई नरसंहार से इनकार की सबसे निर्लज्ज अभिव्यक्ति रही हैं। ये नीतियां वास्तव में प्रयास हैं कश्मीर में हिंदुओं के नरसंहार के लिए जिम्मेदार कश्मीर में मुस्लिम अलगाववादी कट्टरपंथी वर्ग के साथ एक समझौता करें। ऐसी नीतियां नरसंहार के पीड़ितों को एक मुस्लिम कट्टरपंथी आदेश को सौंपने की कोशिश करती हैं जिसने नरसंहार होने दिया।

रिपोर्ट में कहा गया है कि कश्मीर में हिंदुओं के नरसंहार से इनकार न केवल कश्मीर के हिंदुओं के लिए विनाशकारी है, बल्कि भारत के बाकी हिस्सों में भी जिहाद का प्रसार हुआ है। इस्लामवादी विचारधाराओं का विस्तार भारत के कौने-कौने में हो रहा है। रिपोर्ट में कहा गया है कि पूरे भारत में कई जगहों पर डेमोग्राफिक हमले हो रहे हैं। रिपोर्ट में सिफारिश की गई है कि पीएम पैकेज के कर्मचारियों को घाटी से बाहर ट्रांसफर किया जा सकता है। ताकि घाटी में हिंदुओं के नरसंहार और टारगेट हत्याओं से बचा जा सके। इसने यह भी सिफारिश की कि एक नरसंहार विधेयक को तत्काल अधिनियमित किया जाना चाहिए।

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नई दिल्ली, 5 दिसम्बर (आईएएनएस)। भारत ने पूरी तरह से जम्मू-कश्मीर में कश्मीरी पंडितों के नरसंहार से इनकार किया है। एक रिपोर्ट में कहा गया है कि कश्मीरी पंडित समुदाय कश्मीरियत और धर्मनिरपेक्षता की वेदी पर बलि का बकरा बना हुआ है। यह बात फैक्ट फाइंडिंग रिपोर्ट कश्मीरी पंडितों का बेरोकटोक नरसंहार के निष्कर्ष में सामने आई है। यह रिपोर्ट जम्मू-कश्मीर में अनुच्छेद 370 को हटाने के बाद और 2020 की शुरूआत से टारगेट हत्याओं के बाद हिंदू अल्पसंख्यक के जीवन पर आधारित है।

कई फ्रंटलाइन कश्मीरी पंडित संगठनों द्वारा राहुल कौल, अमित रैना और विट्ठल चौधरी समेत तीन सदस्यीय फैक्ट फाइंडिंग प्रतिनिधिमंडल को नामित किया गया था। कमेटी के सदस्यों को घाटी में पीएम पैकेज के कर्मचारियों, घाटी में सेवारत कर्मचारियों, परिवारों और जम्मू में विरोध कर रहे पीएम पैकेज के कर्मचारियों के शिविरों का दौरा करना था। रिपोर्ट ने अपने निष्कर्ष में कहा कि कश्मीर के आंतरिक रूप से विस्थापित हिंदू उन ताकतों के बीच फंस गए हैं जो उनका नरसंहार करना जारी रखती हैं और नरसंहार से इनकार करने वाली ताकतें हैं।

घाटी में गजवा-ए-हिंद के लिए जिम्मेदार नेताओं सहित राजनीतिक दलों को राज्य का संरक्षण प्राप्त है। कहा गया है कि महबूबा मुफ्ती, फारूक अब्दुल्ला, उमर अब्दुल्ला, सज्जाद लोन, अल्ताफ बुखारी जैसे कई अन्य राजनीतिक नेताओं को प्रदान की जा रही सुविधाएं और सुरक्षा इसका प्रमुख उदाहरण है। रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि इन अपराध करने वाले अपराधियों को दंडित करने के लिए न्यायपालिका और कार्यपालिका की लगभग शून्य सजा घाटी में जिहादी तत्वों को और बढ़ावा देती है।

रिपोर्ट के निष्कर्ष में कहा गया है कि कश्मीर के आंतरिक रूप से विस्थापित हिंदुओं की वापसी और पुनर्वास की नीतियां जम्मू कश्मीर के साथ साथ केंद्र में पूर्व सरकारों द्वारा अपनाई गई नरसंहार से इनकार की सबसे निर्लज्ज अभिव्यक्ति रही हैं। ये नीतियां वास्तव में प्रयास हैं कश्मीर में हिंदुओं के नरसंहार के लिए जिम्मेदार कश्मीर में मुस्लिम अलगाववादी कट्टरपंथी वर्ग के साथ एक समझौता करें। ऐसी नीतियां नरसंहार के पीड़ितों को एक मुस्लिम कट्टरपंथी आदेश को सौंपने की कोशिश करती हैं जिसने नरसंहार होने दिया।

रिपोर्ट में कहा गया है कि कश्मीर में हिंदुओं के नरसंहार से इनकार न केवल कश्मीर के हिंदुओं के लिए विनाशकारी है, बल्कि भारत के बाकी हिस्सों में भी जिहाद का प्रसार हुआ है। इस्लामवादी विचारधाराओं का विस्तार भारत के कौने-कौने में हो रहा है। रिपोर्ट में कहा गया है कि पूरे भारत में कई जगहों पर डेमोग्राफिक हमले हो रहे हैं। रिपोर्ट में सिफारिश की गई है कि पीएम पैकेज के कर्मचारियों को घाटी से बाहर ट्रांसफर किया जा सकता है। ताकि घाटी में हिंदुओं के नरसंहार और टारगेट हत्याओं से बचा जा सके। इसने यह भी सिफारिश की कि एक नरसंहार विधेयक को तत्काल अधिनियमित किया जाना चाहिए।

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नई दिल्ली, 5 दिसम्बर (आईएएनएस)। भारत ने पूरी तरह से जम्मू-कश्मीर में कश्मीरी पंडितों के नरसंहार से इनकार किया है। एक रिपोर्ट में कहा गया है कि कश्मीरी पंडित समुदाय कश्मीरियत और धर्मनिरपेक्षता की वेदी पर बलि का बकरा बना हुआ है। यह बात फैक्ट फाइंडिंग रिपोर्ट कश्मीरी पंडितों का बेरोकटोक नरसंहार के निष्कर्ष में सामने आई है। यह रिपोर्ट जम्मू-कश्मीर में अनुच्छेद 370 को हटाने के बाद और 2020 की शुरूआत से टारगेट हत्याओं के बाद हिंदू अल्पसंख्यक के जीवन पर आधारित है।

कई फ्रंटलाइन कश्मीरी पंडित संगठनों द्वारा राहुल कौल, अमित रैना और विट्ठल चौधरी समेत तीन सदस्यीय फैक्ट फाइंडिंग प्रतिनिधिमंडल को नामित किया गया था। कमेटी के सदस्यों को घाटी में पीएम पैकेज के कर्मचारियों, घाटी में सेवारत कर्मचारियों, परिवारों और जम्मू में विरोध कर रहे पीएम पैकेज के कर्मचारियों के शिविरों का दौरा करना था। रिपोर्ट ने अपने निष्कर्ष में कहा कि कश्मीर के आंतरिक रूप से विस्थापित हिंदू उन ताकतों के बीच फंस गए हैं जो उनका नरसंहार करना जारी रखती हैं और नरसंहार से इनकार करने वाली ताकतें हैं।

घाटी में गजवा-ए-हिंद के लिए जिम्मेदार नेताओं सहित राजनीतिक दलों को राज्य का संरक्षण प्राप्त है। कहा गया है कि महबूबा मुफ्ती, फारूक अब्दुल्ला, उमर अब्दुल्ला, सज्जाद लोन, अल्ताफ बुखारी जैसे कई अन्य राजनीतिक नेताओं को प्रदान की जा रही सुविधाएं और सुरक्षा इसका प्रमुख उदाहरण है। रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि इन अपराध करने वाले अपराधियों को दंडित करने के लिए न्यायपालिका और कार्यपालिका की लगभग शून्य सजा घाटी में जिहादी तत्वों को और बढ़ावा देती है।

रिपोर्ट के निष्कर्ष में कहा गया है कि कश्मीर के आंतरिक रूप से विस्थापित हिंदुओं की वापसी और पुनर्वास की नीतियां जम्मू कश्मीर के साथ साथ केंद्र में पूर्व सरकारों द्वारा अपनाई गई नरसंहार से इनकार की सबसे निर्लज्ज अभिव्यक्ति रही हैं। ये नीतियां वास्तव में प्रयास हैं कश्मीर में हिंदुओं के नरसंहार के लिए जिम्मेदार कश्मीर में मुस्लिम अलगाववादी कट्टरपंथी वर्ग के साथ एक समझौता करें। ऐसी नीतियां नरसंहार के पीड़ितों को एक मुस्लिम कट्टरपंथी आदेश को सौंपने की कोशिश करती हैं जिसने नरसंहार होने दिया।

रिपोर्ट में कहा गया है कि कश्मीर में हिंदुओं के नरसंहार से इनकार न केवल कश्मीर के हिंदुओं के लिए विनाशकारी है, बल्कि भारत के बाकी हिस्सों में भी जिहाद का प्रसार हुआ है। इस्लामवादी विचारधाराओं का विस्तार भारत के कौने-कौने में हो रहा है। रिपोर्ट में कहा गया है कि पूरे भारत में कई जगहों पर डेमोग्राफिक हमले हो रहे हैं। रिपोर्ट में सिफारिश की गई है कि पीएम पैकेज के कर्मचारियों को घाटी से बाहर ट्रांसफर किया जा सकता है। ताकि घाटी में हिंदुओं के नरसंहार और टारगेट हत्याओं से बचा जा सके। इसने यह भी सिफारिश की कि एक नरसंहार विधेयक को तत्काल अधिनियमित किया जाना चाहिए।

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कई फ्रंटलाइन कश्मीरी पंडित संगठनों द्वारा राहुल कौल, अमित रैना और विट्ठल चौधरी समेत तीन सदस्यीय फैक्ट फाइंडिंग प्रतिनिधिमंडल को नामित किया गया था। कमेटी के सदस्यों को घाटी में पीएम पैकेज के कर्मचारियों, घाटी में सेवारत कर्मचारियों, परिवारों और जम्मू में विरोध कर रहे पीएम पैकेज के कर्मचारियों के शिविरों का दौरा करना था। रिपोर्ट ने अपने निष्कर्ष में कहा कि कश्मीर के आंतरिक रूप से विस्थापित हिंदू उन ताकतों के बीच फंस गए हैं जो उनका नरसंहार करना जारी रखती हैं और नरसंहार से इनकार करने वाली ताकतें हैं।

घाटी में गजवा-ए-हिंद के लिए जिम्मेदार नेताओं सहित राजनीतिक दलों को राज्य का संरक्षण प्राप्त है। कहा गया है कि महबूबा मुफ्ती, फारूक अब्दुल्ला, उमर अब्दुल्ला, सज्जाद लोन, अल्ताफ बुखारी जैसे कई अन्य राजनीतिक नेताओं को प्रदान की जा रही सुविधाएं और सुरक्षा इसका प्रमुख उदाहरण है। रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि इन अपराध करने वाले अपराधियों को दंडित करने के लिए न्यायपालिका और कार्यपालिका की लगभग शून्य सजा घाटी में जिहादी तत्वों को और बढ़ावा देती है।

रिपोर्ट के निष्कर्ष में कहा गया है कि कश्मीर के आंतरिक रूप से विस्थापित हिंदुओं की वापसी और पुनर्वास की नीतियां जम्मू कश्मीर के साथ साथ केंद्र में पूर्व सरकारों द्वारा अपनाई गई नरसंहार से इनकार की सबसे निर्लज्ज अभिव्यक्ति रही हैं। ये नीतियां वास्तव में प्रयास हैं कश्मीर में हिंदुओं के नरसंहार के लिए जिम्मेदार कश्मीर में मुस्लिम अलगाववादी कट्टरपंथी वर्ग के साथ एक समझौता करें। ऐसी नीतियां नरसंहार के पीड़ितों को एक मुस्लिम कट्टरपंथी आदेश को सौंपने की कोशिश करती हैं जिसने नरसंहार होने दिया।

रिपोर्ट में कहा गया है कि कश्मीर में हिंदुओं के नरसंहार से इनकार न केवल कश्मीर के हिंदुओं के लिए विनाशकारी है, बल्कि भारत के बाकी हिस्सों में भी जिहाद का प्रसार हुआ है। इस्लामवादी विचारधाराओं का विस्तार भारत के कौने-कौने में हो रहा है। रिपोर्ट में कहा गया है कि पूरे भारत में कई जगहों पर डेमोग्राफिक हमले हो रहे हैं। रिपोर्ट में सिफारिश की गई है कि पीएम पैकेज के कर्मचारियों को घाटी से बाहर ट्रांसफर किया जा सकता है। ताकि घाटी में हिंदुओं के नरसंहार और टारगेट हत्याओं से बचा जा सके। इसने यह भी सिफारिश की कि एक नरसंहार विधेयक को तत्काल अधिनियमित किया जाना चाहिए।

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कई फ्रंटलाइन कश्मीरी पंडित संगठनों द्वारा राहुल कौल, अमित रैना और विट्ठल चौधरी समेत तीन सदस्यीय फैक्ट फाइंडिंग प्रतिनिधिमंडल को नामित किया गया था। कमेटी के सदस्यों को घाटी में पीएम पैकेज के कर्मचारियों, घाटी में सेवारत कर्मचारियों, परिवारों और जम्मू में विरोध कर रहे पीएम पैकेज के कर्मचारियों के शिविरों का दौरा करना था। रिपोर्ट ने अपने निष्कर्ष में कहा कि कश्मीर के आंतरिक रूप से विस्थापित हिंदू उन ताकतों के बीच फंस गए हैं जो उनका नरसंहार करना जारी रखती हैं और नरसंहार से इनकार करने वाली ताकतें हैं।

घाटी में गजवा-ए-हिंद के लिए जिम्मेदार नेताओं सहित राजनीतिक दलों को राज्य का संरक्षण प्राप्त है। कहा गया है कि महबूबा मुफ्ती, फारूक अब्दुल्ला, उमर अब्दुल्ला, सज्जाद लोन, अल्ताफ बुखारी जैसे कई अन्य राजनीतिक नेताओं को प्रदान की जा रही सुविधाएं और सुरक्षा इसका प्रमुख उदाहरण है। रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि इन अपराध करने वाले अपराधियों को दंडित करने के लिए न्यायपालिका और कार्यपालिका की लगभग शून्य सजा घाटी में जिहादी तत्वों को और बढ़ावा देती है।

रिपोर्ट के निष्कर्ष में कहा गया है कि कश्मीर के आंतरिक रूप से विस्थापित हिंदुओं की वापसी और पुनर्वास की नीतियां जम्मू कश्मीर के साथ साथ केंद्र में पूर्व सरकारों द्वारा अपनाई गई नरसंहार से इनकार की सबसे निर्लज्ज अभिव्यक्ति रही हैं। ये नीतियां वास्तव में प्रयास हैं कश्मीर में हिंदुओं के नरसंहार के लिए जिम्मेदार कश्मीर में मुस्लिम अलगाववादी कट्टरपंथी वर्ग के साथ एक समझौता करें। ऐसी नीतियां नरसंहार के पीड़ितों को एक मुस्लिम कट्टरपंथी आदेश को सौंपने की कोशिश करती हैं जिसने नरसंहार होने दिया।

रिपोर्ट में कहा गया है कि कश्मीर में हिंदुओं के नरसंहार से इनकार न केवल कश्मीर के हिंदुओं के लिए विनाशकारी है, बल्कि भारत के बाकी हिस्सों में भी जिहाद का प्रसार हुआ है। इस्लामवादी विचारधाराओं का विस्तार भारत के कौने-कौने में हो रहा है। रिपोर्ट में कहा गया है कि पूरे भारत में कई जगहों पर डेमोग्राफिक हमले हो रहे हैं। रिपोर्ट में सिफारिश की गई है कि पीएम पैकेज के कर्मचारियों को घाटी से बाहर ट्रांसफर किया जा सकता है। ताकि घाटी में हिंदुओं के नरसंहार और टारगेट हत्याओं से बचा जा सके। इसने यह भी सिफारिश की कि एक नरसंहार विधेयक को तत्काल अधिनियमित किया जाना चाहिए।

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नई दिल्ली, 5 दिसम्बर (आईएएनएस)। भारत ने पूरी तरह से जम्मू-कश्मीर में कश्मीरी पंडितों के नरसंहार से इनकार किया है। एक रिपोर्ट में कहा गया है कि कश्मीरी पंडित समुदाय कश्मीरियत और धर्मनिरपेक्षता की वेदी पर बलि का बकरा बना हुआ है। यह बात फैक्ट फाइंडिंग रिपोर्ट कश्मीरी पंडितों का बेरोकटोक नरसंहार के निष्कर्ष में सामने आई है। यह रिपोर्ट जम्मू-कश्मीर में अनुच्छेद 370 को हटाने के बाद और 2020 की शुरूआत से टारगेट हत्याओं के बाद हिंदू अल्पसंख्यक के जीवन पर आधारित है।

कई फ्रंटलाइन कश्मीरी पंडित संगठनों द्वारा राहुल कौल, अमित रैना और विट्ठल चौधरी समेत तीन सदस्यीय फैक्ट फाइंडिंग प्रतिनिधिमंडल को नामित किया गया था। कमेटी के सदस्यों को घाटी में पीएम पैकेज के कर्मचारियों, घाटी में सेवारत कर्मचारियों, परिवारों और जम्मू में विरोध कर रहे पीएम पैकेज के कर्मचारियों के शिविरों का दौरा करना था। रिपोर्ट ने अपने निष्कर्ष में कहा कि कश्मीर के आंतरिक रूप से विस्थापित हिंदू उन ताकतों के बीच फंस गए हैं जो उनका नरसंहार करना जारी रखती हैं और नरसंहार से इनकार करने वाली ताकतें हैं।

घाटी में गजवा-ए-हिंद के लिए जिम्मेदार नेताओं सहित राजनीतिक दलों को राज्य का संरक्षण प्राप्त है। कहा गया है कि महबूबा मुफ्ती, फारूक अब्दुल्ला, उमर अब्दुल्ला, सज्जाद लोन, अल्ताफ बुखारी जैसे कई अन्य राजनीतिक नेताओं को प्रदान की जा रही सुविधाएं और सुरक्षा इसका प्रमुख उदाहरण है। रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि इन अपराध करने वाले अपराधियों को दंडित करने के लिए न्यायपालिका और कार्यपालिका की लगभग शून्य सजा घाटी में जिहादी तत्वों को और बढ़ावा देती है।

रिपोर्ट के निष्कर्ष में कहा गया है कि कश्मीर के आंतरिक रूप से विस्थापित हिंदुओं की वापसी और पुनर्वास की नीतियां जम्मू कश्मीर के साथ साथ केंद्र में पूर्व सरकारों द्वारा अपनाई गई नरसंहार से इनकार की सबसे निर्लज्ज अभिव्यक्ति रही हैं। ये नीतियां वास्तव में प्रयास हैं कश्मीर में हिंदुओं के नरसंहार के लिए जिम्मेदार कश्मीर में मुस्लिम अलगाववादी कट्टरपंथी वर्ग के साथ एक समझौता करें। ऐसी नीतियां नरसंहार के पीड़ितों को एक मुस्लिम कट्टरपंथी आदेश को सौंपने की कोशिश करती हैं जिसने नरसंहार होने दिया।

रिपोर्ट में कहा गया है कि कश्मीर में हिंदुओं के नरसंहार से इनकार न केवल कश्मीर के हिंदुओं के लिए विनाशकारी है, बल्कि भारत के बाकी हिस्सों में भी जिहाद का प्रसार हुआ है। इस्लामवादी विचारधाराओं का विस्तार भारत के कौने-कौने में हो रहा है। रिपोर्ट में कहा गया है कि पूरे भारत में कई जगहों पर डेमोग्राफिक हमले हो रहे हैं। रिपोर्ट में सिफारिश की गई है कि पीएम पैकेज के कर्मचारियों को घाटी से बाहर ट्रांसफर किया जा सकता है। ताकि घाटी में हिंदुओं के नरसंहार और टारगेट हत्याओं से बचा जा सके। इसने यह भी सिफारिश की कि एक नरसंहार विधेयक को तत्काल अधिनियमित किया जाना चाहिए।

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कई फ्रंटलाइन कश्मीरी पंडित संगठनों द्वारा राहुल कौल, अमित रैना और विट्ठल चौधरी समेत तीन सदस्यीय फैक्ट फाइंडिंग प्रतिनिधिमंडल को नामित किया गया था। कमेटी के सदस्यों को घाटी में पीएम पैकेज के कर्मचारियों, घाटी में सेवारत कर्मचारियों, परिवारों और जम्मू में विरोध कर रहे पीएम पैकेज के कर्मचारियों के शिविरों का दौरा करना था। रिपोर्ट ने अपने निष्कर्ष में कहा कि कश्मीर के आंतरिक रूप से विस्थापित हिंदू उन ताकतों के बीच फंस गए हैं जो उनका नरसंहार करना जारी रखती हैं और नरसंहार से इनकार करने वाली ताकतें हैं।

घाटी में गजवा-ए-हिंद के लिए जिम्मेदार नेताओं सहित राजनीतिक दलों को राज्य का संरक्षण प्राप्त है। कहा गया है कि महबूबा मुफ्ती, फारूक अब्दुल्ला, उमर अब्दुल्ला, सज्जाद लोन, अल्ताफ बुखारी जैसे कई अन्य राजनीतिक नेताओं को प्रदान की जा रही सुविधाएं और सुरक्षा इसका प्रमुख उदाहरण है। रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि इन अपराध करने वाले अपराधियों को दंडित करने के लिए न्यायपालिका और कार्यपालिका की लगभग शून्य सजा घाटी में जिहादी तत्वों को और बढ़ावा देती है।

रिपोर्ट के निष्कर्ष में कहा गया है कि कश्मीर के आंतरिक रूप से विस्थापित हिंदुओं की वापसी और पुनर्वास की नीतियां जम्मू कश्मीर के साथ साथ केंद्र में पूर्व सरकारों द्वारा अपनाई गई नरसंहार से इनकार की सबसे निर्लज्ज अभिव्यक्ति रही हैं। ये नीतियां वास्तव में प्रयास हैं कश्मीर में हिंदुओं के नरसंहार के लिए जिम्मेदार कश्मीर में मुस्लिम अलगाववादी कट्टरपंथी वर्ग के साथ एक समझौता करें। ऐसी नीतियां नरसंहार के पीड़ितों को एक मुस्लिम कट्टरपंथी आदेश को सौंपने की कोशिश करती हैं जिसने नरसंहार होने दिया।

रिपोर्ट में कहा गया है कि कश्मीर में हिंदुओं के नरसंहार से इनकार न केवल कश्मीर के हिंदुओं के लिए विनाशकारी है, बल्कि भारत के बाकी हिस्सों में भी जिहाद का प्रसार हुआ है। इस्लामवादी विचारधाराओं का विस्तार भारत के कौने-कौने में हो रहा है। रिपोर्ट में कहा गया है कि पूरे भारत में कई जगहों पर डेमोग्राफिक हमले हो रहे हैं। रिपोर्ट में सिफारिश की गई है कि पीएम पैकेज के कर्मचारियों को घाटी से बाहर ट्रांसफर किया जा सकता है। ताकि घाटी में हिंदुओं के नरसंहार और टारगेट हत्याओं से बचा जा सके। इसने यह भी सिफारिश की कि एक नरसंहार विधेयक को तत्काल अधिनियमित किया जाना चाहिए।

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नई दिल्ली, 5 दिसम्बर (आईएएनएस)। भारत ने पूरी तरह से जम्मू-कश्मीर में कश्मीरी पंडितों के नरसंहार से इनकार किया है। एक रिपोर्ट में कहा गया है कि कश्मीरी पंडित समुदाय कश्मीरियत और धर्मनिरपेक्षता की वेदी पर बलि का बकरा बना हुआ है। यह बात फैक्ट फाइंडिंग रिपोर्ट कश्मीरी पंडितों का बेरोकटोक नरसंहार के निष्कर्ष में सामने आई है। यह रिपोर्ट जम्मू-कश्मीर में अनुच्छेद 370 को हटाने के बाद और 2020 की शुरूआत से टारगेट हत्याओं के बाद हिंदू अल्पसंख्यक के जीवन पर आधारित है।

कई फ्रंटलाइन कश्मीरी पंडित संगठनों द्वारा राहुल कौल, अमित रैना और विट्ठल चौधरी समेत तीन सदस्यीय फैक्ट फाइंडिंग प्रतिनिधिमंडल को नामित किया गया था। कमेटी के सदस्यों को घाटी में पीएम पैकेज के कर्मचारियों, घाटी में सेवारत कर्मचारियों, परिवारों और जम्मू में विरोध कर रहे पीएम पैकेज के कर्मचारियों के शिविरों का दौरा करना था। रिपोर्ट ने अपने निष्कर्ष में कहा कि कश्मीर के आंतरिक रूप से विस्थापित हिंदू उन ताकतों के बीच फंस गए हैं जो उनका नरसंहार करना जारी रखती हैं और नरसंहार से इनकार करने वाली ताकतें हैं।

घाटी में गजवा-ए-हिंद के लिए जिम्मेदार नेताओं सहित राजनीतिक दलों को राज्य का संरक्षण प्राप्त है। कहा गया है कि महबूबा मुफ्ती, फारूक अब्दुल्ला, उमर अब्दुल्ला, सज्जाद लोन, अल्ताफ बुखारी जैसे कई अन्य राजनीतिक नेताओं को प्रदान की जा रही सुविधाएं और सुरक्षा इसका प्रमुख उदाहरण है। रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि इन अपराध करने वाले अपराधियों को दंडित करने के लिए न्यायपालिका और कार्यपालिका की लगभग शून्य सजा घाटी में जिहादी तत्वों को और बढ़ावा देती है।

रिपोर्ट के निष्कर्ष में कहा गया है कि कश्मीर के आंतरिक रूप से विस्थापित हिंदुओं की वापसी और पुनर्वास की नीतियां जम्मू कश्मीर के साथ साथ केंद्र में पूर्व सरकारों द्वारा अपनाई गई नरसंहार से इनकार की सबसे निर्लज्ज अभिव्यक्ति रही हैं। ये नीतियां वास्तव में प्रयास हैं कश्मीर में हिंदुओं के नरसंहार के लिए जिम्मेदार कश्मीर में मुस्लिम अलगाववादी कट्टरपंथी वर्ग के साथ एक समझौता करें। ऐसी नीतियां नरसंहार के पीड़ितों को एक मुस्लिम कट्टरपंथी आदेश को सौंपने की कोशिश करती हैं जिसने नरसंहार होने दिया।

रिपोर्ट में कहा गया है कि कश्मीर में हिंदुओं के नरसंहार से इनकार न केवल कश्मीर के हिंदुओं के लिए विनाशकारी है, बल्कि भारत के बाकी हिस्सों में भी जिहाद का प्रसार हुआ है। इस्लामवादी विचारधाराओं का विस्तार भारत के कौने-कौने में हो रहा है। रिपोर्ट में कहा गया है कि पूरे भारत में कई जगहों पर डेमोग्राफिक हमले हो रहे हैं। रिपोर्ट में सिफारिश की गई है कि पीएम पैकेज के कर्मचारियों को घाटी से बाहर ट्रांसफर किया जा सकता है। ताकि घाटी में हिंदुओं के नरसंहार और टारगेट हत्याओं से बचा जा सके। इसने यह भी सिफारिश की कि एक नरसंहार विधेयक को तत्काल अधिनियमित किया जाना चाहिए।

–आईएएनएस

एफजेड/एएनएम

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