नई दिल्ली, 30 अगस्त (आईएएनएस)। विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने शुक्रवार को कहा कि भारत का पूरा पड़ोस एक पहेली है और पड़ोसी देशों के साथ मजबूत संबंध बनाने की दिशा में हमारा प्रयास जारी रहेगा।
उन्होंने कहा कि सरकार की ‘नेबरहुड फर्स्ट’ नीति लगातार होने वाले परिवर्तनों के बीच संबंधों की रक्षा के लिए बनाई गई है। चाहे वे विघटनकारी हों या स्वाभाविक।
विदेश मंत्री ने राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में एक पुस्तक विमोचन समारोह के दौरान कहा, “बांग्लादेश के साथ, इसकी स्वतंत्रता के बाद से हमारे रिश्ते उतार-चढ़ाव से भरे रहे हैं। यह स्वाभाविक है कि हम वर्तमान सरकार के साथ संबंध बनाएंगे। हमें यह भी पहचानना होगा कि जो राजनीतिक परिवर्तन हो रहे हैं, और वे विघटनकारी हो सकते हैं। हमें हितों की तलाश करनी होगी।”
श्रीलंका के साथ भारत के संबंधों के संबंध में जयशंकर ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली सरकार को कुछ हद तक कठिन विरासत मिली है।
उन्होंने कहा, “इस समय, दो समस्याएं हैं। पहली, अंतरराष्ट्रीय समुद्री सीमा से संबंधित मछली पकड़ने का मुद्दा है और दूसरा, राष्ट्रीय सुरक्षा परिप्रेक्ष्य में चीन का श्रीलंका में उपस्थिति के संबंध में है।
हालांकि, विदेश मंत्री ने कहा कि श्रीलंका की जनता में भारत के बारे में धारणा में महत्वपूर्ण बदलाव आया है।
जयशंकर ने कहा, ” जब श्री लंका के लोग गहरे संकट में थे, तो हम एकमात्र देश थे, जो आगे आए और बड़े पैमाने पर सहयोग किया। अगर श्रीलंका उस स्थिति से काफी हद तक उबरने में सक्षम रहा, तो मुझे लगता है कि इसका बहुत बड़ा श्रेय श्रीलंका की राजनीति और श्रीलंकाई जनता को भी जाता है, जो भारत के साथ संबंधों को तरजीह देते है।”
विदेश मंत्री ने स्वीकार किया कि मालदीव के साथ भारत के संबंधों में भी कई उतार-चढ़ाव आए हैं।
उन्होंने कहा, “हमने 1988 में मालदीव में हस्तक्षेप किया था लेकिन 2012 में जब सरकार बदली, तो हम बहुत निष्क्रिय थे। इसलिए आप देख सकते हैं कि यहां स्थिरता की एक निश्चित कमी है। यह एक ऐसा रिश्ता है, जिसमें हमने बहुत गहराई से निवेश किया है और मालदीव में आज यह मान्यता है कि यह रिश्ता एक स्थिर ताकत है।”
विदेश मंत्री ने कहा कि अफगानिस्तान के साथ भारत के लोगों के बीच गहरे और सामाजिक संबंध हैं तथा वहां भारत के प्रति एक सद्भावना है।
उन्होंने कहा, “आज जब हम अपनी अफगानिस्तान नीति की समीक्षा कर रहे हैं, तो मुझे लगता है कि हम अपने हितों के बारे में बहुत स्पष्ट हैं। हमें यह समझना चाहिए कि अमेरिका की मौजूदगी वाला अफगानिस्तान हमारे लिए अमेरिका की मौजूदगी के बिना वाले अफगानिस्तान से बहुत अलग है।”
–आईएएनएस
एकेएस/सीबीटी
ADVERTISEMENT
नई दिल्ली, 30 अगस्त (आईएएनएस)। विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने शुक्रवार को कहा कि भारत का पूरा पड़ोस एक पहेली है और पड़ोसी देशों के साथ मजबूत संबंध बनाने की दिशा में हमारा प्रयास जारी रहेगा।
उन्होंने कहा कि सरकार की ‘नेबरहुड फर्स्ट’ नीति लगातार होने वाले परिवर्तनों के बीच संबंधों की रक्षा के लिए बनाई गई है। चाहे वे विघटनकारी हों या स्वाभाविक।
विदेश मंत्री ने राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में एक पुस्तक विमोचन समारोह के दौरान कहा, “बांग्लादेश के साथ, इसकी स्वतंत्रता के बाद से हमारे रिश्ते उतार-चढ़ाव से भरे रहे हैं। यह स्वाभाविक है कि हम वर्तमान सरकार के साथ संबंध बनाएंगे। हमें यह भी पहचानना होगा कि जो राजनीतिक परिवर्तन हो रहे हैं, और वे विघटनकारी हो सकते हैं। हमें हितों की तलाश करनी होगी।”
श्रीलंका के साथ भारत के संबंधों के संबंध में जयशंकर ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली सरकार को कुछ हद तक कठिन विरासत मिली है।
उन्होंने कहा, “इस समय, दो समस्याएं हैं। पहली, अंतरराष्ट्रीय समुद्री सीमा से संबंधित मछली पकड़ने का मुद्दा है और दूसरा, राष्ट्रीय सुरक्षा परिप्रेक्ष्य में चीन का श्रीलंका में उपस्थिति के संबंध में है।
हालांकि, विदेश मंत्री ने कहा कि श्रीलंका की जनता में भारत के बारे में धारणा में महत्वपूर्ण बदलाव आया है।
जयशंकर ने कहा, ” जब श्री लंका के लोग गहरे संकट में थे, तो हम एकमात्र देश थे, जो आगे आए और बड़े पैमाने पर सहयोग किया। अगर श्रीलंका उस स्थिति से काफी हद तक उबरने में सक्षम रहा, तो मुझे लगता है कि इसका बहुत बड़ा श्रेय श्रीलंका की राजनीति और श्रीलंकाई जनता को भी जाता है, जो भारत के साथ संबंधों को तरजीह देते है।”
विदेश मंत्री ने स्वीकार किया कि मालदीव के साथ भारत के संबंधों में भी कई उतार-चढ़ाव आए हैं।
उन्होंने कहा, “हमने 1988 में मालदीव में हस्तक्षेप किया था लेकिन 2012 में जब सरकार बदली, तो हम बहुत निष्क्रिय थे। इसलिए आप देख सकते हैं कि यहां स्थिरता की एक निश्चित कमी है। यह एक ऐसा रिश्ता है, जिसमें हमने बहुत गहराई से निवेश किया है और मालदीव में आज यह मान्यता है कि यह रिश्ता एक स्थिर ताकत है।”
विदेश मंत्री ने कहा कि अफगानिस्तान के साथ भारत के लोगों के बीच गहरे और सामाजिक संबंध हैं तथा वहां भारत के प्रति एक सद्भावना है।
उन्होंने कहा, “आज जब हम अपनी अफगानिस्तान नीति की समीक्षा कर रहे हैं, तो मुझे लगता है कि हम अपने हितों के बारे में बहुत स्पष्ट हैं। हमें यह समझना चाहिए कि अमेरिका की मौजूदगी वाला अफगानिस्तान हमारे लिए अमेरिका की मौजूदगी के बिना वाले अफगानिस्तान से बहुत अलग है।”
–आईएएनएस
एकेएस/सीबीटी
ADVERTISEMENT
नई दिल्ली, 30 अगस्त (आईएएनएस)। विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने शुक्रवार को कहा कि भारत का पूरा पड़ोस एक पहेली है और पड़ोसी देशों के साथ मजबूत संबंध बनाने की दिशा में हमारा प्रयास जारी रहेगा।
उन्होंने कहा कि सरकार की ‘नेबरहुड फर्स्ट’ नीति लगातार होने वाले परिवर्तनों के बीच संबंधों की रक्षा के लिए बनाई गई है। चाहे वे विघटनकारी हों या स्वाभाविक।
विदेश मंत्री ने राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में एक पुस्तक विमोचन समारोह के दौरान कहा, “बांग्लादेश के साथ, इसकी स्वतंत्रता के बाद से हमारे रिश्ते उतार-चढ़ाव से भरे रहे हैं। यह स्वाभाविक है कि हम वर्तमान सरकार के साथ संबंध बनाएंगे। हमें यह भी पहचानना होगा कि जो राजनीतिक परिवर्तन हो रहे हैं, और वे विघटनकारी हो सकते हैं। हमें हितों की तलाश करनी होगी।”
श्रीलंका के साथ भारत के संबंधों के संबंध में जयशंकर ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली सरकार को कुछ हद तक कठिन विरासत मिली है।
उन्होंने कहा, “इस समय, दो समस्याएं हैं। पहली, अंतरराष्ट्रीय समुद्री सीमा से संबंधित मछली पकड़ने का मुद्दा है और दूसरा, राष्ट्रीय सुरक्षा परिप्रेक्ष्य में चीन का श्रीलंका में उपस्थिति के संबंध में है।
हालांकि, विदेश मंत्री ने कहा कि श्रीलंका की जनता में भारत के बारे में धारणा में महत्वपूर्ण बदलाव आया है।
जयशंकर ने कहा, ” जब श्री लंका के लोग गहरे संकट में थे, तो हम एकमात्र देश थे, जो आगे आए और बड़े पैमाने पर सहयोग किया। अगर श्रीलंका उस स्थिति से काफी हद तक उबरने में सक्षम रहा, तो मुझे लगता है कि इसका बहुत बड़ा श्रेय श्रीलंका की राजनीति और श्रीलंकाई जनता को भी जाता है, जो भारत के साथ संबंधों को तरजीह देते है।”
विदेश मंत्री ने स्वीकार किया कि मालदीव के साथ भारत के संबंधों में भी कई उतार-चढ़ाव आए हैं।
उन्होंने कहा, “हमने 1988 में मालदीव में हस्तक्षेप किया था लेकिन 2012 में जब सरकार बदली, तो हम बहुत निष्क्रिय थे। इसलिए आप देख सकते हैं कि यहां स्थिरता की एक निश्चित कमी है। यह एक ऐसा रिश्ता है, जिसमें हमने बहुत गहराई से निवेश किया है और मालदीव में आज यह मान्यता है कि यह रिश्ता एक स्थिर ताकत है।”
विदेश मंत्री ने कहा कि अफगानिस्तान के साथ भारत के लोगों के बीच गहरे और सामाजिक संबंध हैं तथा वहां भारत के प्रति एक सद्भावना है।
उन्होंने कहा, “आज जब हम अपनी अफगानिस्तान नीति की समीक्षा कर रहे हैं, तो मुझे लगता है कि हम अपने हितों के बारे में बहुत स्पष्ट हैं। हमें यह समझना चाहिए कि अमेरिका की मौजूदगी वाला अफगानिस्तान हमारे लिए अमेरिका की मौजूदगी के बिना वाले अफगानिस्तान से बहुत अलग है।”
–आईएएनएस
एकेएस/सीबीटी
ADVERTISEMENT
नई दिल्ली, 30 अगस्त (आईएएनएस)। विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने शुक्रवार को कहा कि भारत का पूरा पड़ोस एक पहेली है और पड़ोसी देशों के साथ मजबूत संबंध बनाने की दिशा में हमारा प्रयास जारी रहेगा।
उन्होंने कहा कि सरकार की ‘नेबरहुड फर्स्ट’ नीति लगातार होने वाले परिवर्तनों के बीच संबंधों की रक्षा के लिए बनाई गई है। चाहे वे विघटनकारी हों या स्वाभाविक।
विदेश मंत्री ने राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में एक पुस्तक विमोचन समारोह के दौरान कहा, “बांग्लादेश के साथ, इसकी स्वतंत्रता के बाद से हमारे रिश्ते उतार-चढ़ाव से भरे रहे हैं। यह स्वाभाविक है कि हम वर्तमान सरकार के साथ संबंध बनाएंगे। हमें यह भी पहचानना होगा कि जो राजनीतिक परिवर्तन हो रहे हैं, और वे विघटनकारी हो सकते हैं। हमें हितों की तलाश करनी होगी।”
श्रीलंका के साथ भारत के संबंधों के संबंध में जयशंकर ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली सरकार को कुछ हद तक कठिन विरासत मिली है।
उन्होंने कहा, “इस समय, दो समस्याएं हैं। पहली, अंतरराष्ट्रीय समुद्री सीमा से संबंधित मछली पकड़ने का मुद्दा है और दूसरा, राष्ट्रीय सुरक्षा परिप्रेक्ष्य में चीन का श्रीलंका में उपस्थिति के संबंध में है।
हालांकि, विदेश मंत्री ने कहा कि श्रीलंका की जनता में भारत के बारे में धारणा में महत्वपूर्ण बदलाव आया है।
जयशंकर ने कहा, ” जब श्री लंका के लोग गहरे संकट में थे, तो हम एकमात्र देश थे, जो आगे आए और बड़े पैमाने पर सहयोग किया। अगर श्रीलंका उस स्थिति से काफी हद तक उबरने में सक्षम रहा, तो मुझे लगता है कि इसका बहुत बड़ा श्रेय श्रीलंका की राजनीति और श्रीलंकाई जनता को भी जाता है, जो भारत के साथ संबंधों को तरजीह देते है।”
विदेश मंत्री ने स्वीकार किया कि मालदीव के साथ भारत के संबंधों में भी कई उतार-चढ़ाव आए हैं।
उन्होंने कहा, “हमने 1988 में मालदीव में हस्तक्षेप किया था लेकिन 2012 में जब सरकार बदली, तो हम बहुत निष्क्रिय थे। इसलिए आप देख सकते हैं कि यहां स्थिरता की एक निश्चित कमी है। यह एक ऐसा रिश्ता है, जिसमें हमने बहुत गहराई से निवेश किया है और मालदीव में आज यह मान्यता है कि यह रिश्ता एक स्थिर ताकत है।”
विदेश मंत्री ने कहा कि अफगानिस्तान के साथ भारत के लोगों के बीच गहरे और सामाजिक संबंध हैं तथा वहां भारत के प्रति एक सद्भावना है।
उन्होंने कहा, “आज जब हम अपनी अफगानिस्तान नीति की समीक्षा कर रहे हैं, तो मुझे लगता है कि हम अपने हितों के बारे में बहुत स्पष्ट हैं। हमें यह समझना चाहिए कि अमेरिका की मौजूदगी वाला अफगानिस्तान हमारे लिए अमेरिका की मौजूदगी के बिना वाले अफगानिस्तान से बहुत अलग है।”
–आईएएनएस
एकेएस/सीबीटी
ADVERTISEMENT
नई दिल्ली, 30 अगस्त (आईएएनएस)। विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने शुक्रवार को कहा कि भारत का पूरा पड़ोस एक पहेली है और पड़ोसी देशों के साथ मजबूत संबंध बनाने की दिशा में हमारा प्रयास जारी रहेगा।
उन्होंने कहा कि सरकार की ‘नेबरहुड फर्स्ट’ नीति लगातार होने वाले परिवर्तनों के बीच संबंधों की रक्षा के लिए बनाई गई है। चाहे वे विघटनकारी हों या स्वाभाविक।
विदेश मंत्री ने राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में एक पुस्तक विमोचन समारोह के दौरान कहा, “बांग्लादेश के साथ, इसकी स्वतंत्रता के बाद से हमारे रिश्ते उतार-चढ़ाव से भरे रहे हैं। यह स्वाभाविक है कि हम वर्तमान सरकार के साथ संबंध बनाएंगे। हमें यह भी पहचानना होगा कि जो राजनीतिक परिवर्तन हो रहे हैं, और वे विघटनकारी हो सकते हैं। हमें हितों की तलाश करनी होगी।”
श्रीलंका के साथ भारत के संबंधों के संबंध में जयशंकर ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली सरकार को कुछ हद तक कठिन विरासत मिली है।
उन्होंने कहा, “इस समय, दो समस्याएं हैं। पहली, अंतरराष्ट्रीय समुद्री सीमा से संबंधित मछली पकड़ने का मुद्दा है और दूसरा, राष्ट्रीय सुरक्षा परिप्रेक्ष्य में चीन का श्रीलंका में उपस्थिति के संबंध में है।
हालांकि, विदेश मंत्री ने कहा कि श्रीलंका की जनता में भारत के बारे में धारणा में महत्वपूर्ण बदलाव आया है।
जयशंकर ने कहा, ” जब श्री लंका के लोग गहरे संकट में थे, तो हम एकमात्र देश थे, जो आगे आए और बड़े पैमाने पर सहयोग किया। अगर श्रीलंका उस स्थिति से काफी हद तक उबरने में सक्षम रहा, तो मुझे लगता है कि इसका बहुत बड़ा श्रेय श्रीलंका की राजनीति और श्रीलंकाई जनता को भी जाता है, जो भारत के साथ संबंधों को तरजीह देते है।”
विदेश मंत्री ने स्वीकार किया कि मालदीव के साथ भारत के संबंधों में भी कई उतार-चढ़ाव आए हैं।
उन्होंने कहा, “हमने 1988 में मालदीव में हस्तक्षेप किया था लेकिन 2012 में जब सरकार बदली, तो हम बहुत निष्क्रिय थे। इसलिए आप देख सकते हैं कि यहां स्थिरता की एक निश्चित कमी है। यह एक ऐसा रिश्ता है, जिसमें हमने बहुत गहराई से निवेश किया है और मालदीव में आज यह मान्यता है कि यह रिश्ता एक स्थिर ताकत है।”
विदेश मंत्री ने कहा कि अफगानिस्तान के साथ भारत के लोगों के बीच गहरे और सामाजिक संबंध हैं तथा वहां भारत के प्रति एक सद्भावना है।
उन्होंने कहा, “आज जब हम अपनी अफगानिस्तान नीति की समीक्षा कर रहे हैं, तो मुझे लगता है कि हम अपने हितों के बारे में बहुत स्पष्ट हैं। हमें यह समझना चाहिए कि अमेरिका की मौजूदगी वाला अफगानिस्तान हमारे लिए अमेरिका की मौजूदगी के बिना वाले अफगानिस्तान से बहुत अलग है।”
–आईएएनएस
एकेएस/सीबीटी
ADVERTISEMENT
नई दिल्ली, 30 अगस्त (आईएएनएस)। विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने शुक्रवार को कहा कि भारत का पूरा पड़ोस एक पहेली है और पड़ोसी देशों के साथ मजबूत संबंध बनाने की दिशा में हमारा प्रयास जारी रहेगा।
उन्होंने कहा कि सरकार की ‘नेबरहुड फर्स्ट’ नीति लगातार होने वाले परिवर्तनों के बीच संबंधों की रक्षा के लिए बनाई गई है। चाहे वे विघटनकारी हों या स्वाभाविक।
विदेश मंत्री ने राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में एक पुस्तक विमोचन समारोह के दौरान कहा, “बांग्लादेश के साथ, इसकी स्वतंत्रता के बाद से हमारे रिश्ते उतार-चढ़ाव से भरे रहे हैं। यह स्वाभाविक है कि हम वर्तमान सरकार के साथ संबंध बनाएंगे। हमें यह भी पहचानना होगा कि जो राजनीतिक परिवर्तन हो रहे हैं, और वे विघटनकारी हो सकते हैं। हमें हितों की तलाश करनी होगी।”
श्रीलंका के साथ भारत के संबंधों के संबंध में जयशंकर ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली सरकार को कुछ हद तक कठिन विरासत मिली है।
उन्होंने कहा, “इस समय, दो समस्याएं हैं। पहली, अंतरराष्ट्रीय समुद्री सीमा से संबंधित मछली पकड़ने का मुद्दा है और दूसरा, राष्ट्रीय सुरक्षा परिप्रेक्ष्य में चीन का श्रीलंका में उपस्थिति के संबंध में है।
हालांकि, विदेश मंत्री ने कहा कि श्रीलंका की जनता में भारत के बारे में धारणा में महत्वपूर्ण बदलाव आया है।
जयशंकर ने कहा, ” जब श्री लंका के लोग गहरे संकट में थे, तो हम एकमात्र देश थे, जो आगे आए और बड़े पैमाने पर सहयोग किया। अगर श्रीलंका उस स्थिति से काफी हद तक उबरने में सक्षम रहा, तो मुझे लगता है कि इसका बहुत बड़ा श्रेय श्रीलंका की राजनीति और श्रीलंकाई जनता को भी जाता है, जो भारत के साथ संबंधों को तरजीह देते है।”
विदेश मंत्री ने स्वीकार किया कि मालदीव के साथ भारत के संबंधों में भी कई उतार-चढ़ाव आए हैं।
उन्होंने कहा, “हमने 1988 में मालदीव में हस्तक्षेप किया था लेकिन 2012 में जब सरकार बदली, तो हम बहुत निष्क्रिय थे। इसलिए आप देख सकते हैं कि यहां स्थिरता की एक निश्चित कमी है। यह एक ऐसा रिश्ता है, जिसमें हमने बहुत गहराई से निवेश किया है और मालदीव में आज यह मान्यता है कि यह रिश्ता एक स्थिर ताकत है।”
विदेश मंत्री ने कहा कि अफगानिस्तान के साथ भारत के लोगों के बीच गहरे और सामाजिक संबंध हैं तथा वहां भारत के प्रति एक सद्भावना है।
उन्होंने कहा, “आज जब हम अपनी अफगानिस्तान नीति की समीक्षा कर रहे हैं, तो मुझे लगता है कि हम अपने हितों के बारे में बहुत स्पष्ट हैं। हमें यह समझना चाहिए कि अमेरिका की मौजूदगी वाला अफगानिस्तान हमारे लिए अमेरिका की मौजूदगी के बिना वाले अफगानिस्तान से बहुत अलग है।”
–आईएएनएस
एकेएस/सीबीटी
ADVERTISEMENT
नई दिल्ली, 30 अगस्त (आईएएनएस)। विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने शुक्रवार को कहा कि भारत का पूरा पड़ोस एक पहेली है और पड़ोसी देशों के साथ मजबूत संबंध बनाने की दिशा में हमारा प्रयास जारी रहेगा।
उन्होंने कहा कि सरकार की ‘नेबरहुड फर्स्ट’ नीति लगातार होने वाले परिवर्तनों के बीच संबंधों की रक्षा के लिए बनाई गई है। चाहे वे विघटनकारी हों या स्वाभाविक।
विदेश मंत्री ने राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में एक पुस्तक विमोचन समारोह के दौरान कहा, “बांग्लादेश के साथ, इसकी स्वतंत्रता के बाद से हमारे रिश्ते उतार-चढ़ाव से भरे रहे हैं। यह स्वाभाविक है कि हम वर्तमान सरकार के साथ संबंध बनाएंगे। हमें यह भी पहचानना होगा कि जो राजनीतिक परिवर्तन हो रहे हैं, और वे विघटनकारी हो सकते हैं। हमें हितों की तलाश करनी होगी।”
श्रीलंका के साथ भारत के संबंधों के संबंध में जयशंकर ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली सरकार को कुछ हद तक कठिन विरासत मिली है।
उन्होंने कहा, “इस समय, दो समस्याएं हैं। पहली, अंतरराष्ट्रीय समुद्री सीमा से संबंधित मछली पकड़ने का मुद्दा है और दूसरा, राष्ट्रीय सुरक्षा परिप्रेक्ष्य में चीन का श्रीलंका में उपस्थिति के संबंध में है।
हालांकि, विदेश मंत्री ने कहा कि श्रीलंका की जनता में भारत के बारे में धारणा में महत्वपूर्ण बदलाव आया है।
जयशंकर ने कहा, ” जब श्री लंका के लोग गहरे संकट में थे, तो हम एकमात्र देश थे, जो आगे आए और बड़े पैमाने पर सहयोग किया। अगर श्रीलंका उस स्थिति से काफी हद तक उबरने में सक्षम रहा, तो मुझे लगता है कि इसका बहुत बड़ा श्रेय श्रीलंका की राजनीति और श्रीलंकाई जनता को भी जाता है, जो भारत के साथ संबंधों को तरजीह देते है।”
विदेश मंत्री ने स्वीकार किया कि मालदीव के साथ भारत के संबंधों में भी कई उतार-चढ़ाव आए हैं।
उन्होंने कहा, “हमने 1988 में मालदीव में हस्तक्षेप किया था लेकिन 2012 में जब सरकार बदली, तो हम बहुत निष्क्रिय थे। इसलिए आप देख सकते हैं कि यहां स्थिरता की एक निश्चित कमी है। यह एक ऐसा रिश्ता है, जिसमें हमने बहुत गहराई से निवेश किया है और मालदीव में आज यह मान्यता है कि यह रिश्ता एक स्थिर ताकत है।”
विदेश मंत्री ने कहा कि अफगानिस्तान के साथ भारत के लोगों के बीच गहरे और सामाजिक संबंध हैं तथा वहां भारत के प्रति एक सद्भावना है।
उन्होंने कहा, “आज जब हम अपनी अफगानिस्तान नीति की समीक्षा कर रहे हैं, तो मुझे लगता है कि हम अपने हितों के बारे में बहुत स्पष्ट हैं। हमें यह समझना चाहिए कि अमेरिका की मौजूदगी वाला अफगानिस्तान हमारे लिए अमेरिका की मौजूदगी के बिना वाले अफगानिस्तान से बहुत अलग है।”
–आईएएनएस
एकेएस/सीबीटी
ADVERTISEMENT
नई दिल्ली, 30 अगस्त (आईएएनएस)। विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने शुक्रवार को कहा कि भारत का पूरा पड़ोस एक पहेली है और पड़ोसी देशों के साथ मजबूत संबंध बनाने की दिशा में हमारा प्रयास जारी रहेगा।
उन्होंने कहा कि सरकार की ‘नेबरहुड फर्स्ट’ नीति लगातार होने वाले परिवर्तनों के बीच संबंधों की रक्षा के लिए बनाई गई है। चाहे वे विघटनकारी हों या स्वाभाविक।
विदेश मंत्री ने राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में एक पुस्तक विमोचन समारोह के दौरान कहा, “बांग्लादेश के साथ, इसकी स्वतंत्रता के बाद से हमारे रिश्ते उतार-चढ़ाव से भरे रहे हैं। यह स्वाभाविक है कि हम वर्तमान सरकार के साथ संबंध बनाएंगे। हमें यह भी पहचानना होगा कि जो राजनीतिक परिवर्तन हो रहे हैं, और वे विघटनकारी हो सकते हैं। हमें हितों की तलाश करनी होगी।”
श्रीलंका के साथ भारत के संबंधों के संबंध में जयशंकर ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली सरकार को कुछ हद तक कठिन विरासत मिली है।
उन्होंने कहा, “इस समय, दो समस्याएं हैं। पहली, अंतरराष्ट्रीय समुद्री सीमा से संबंधित मछली पकड़ने का मुद्दा है और दूसरा, राष्ट्रीय सुरक्षा परिप्रेक्ष्य में चीन का श्रीलंका में उपस्थिति के संबंध में है।
हालांकि, विदेश मंत्री ने कहा कि श्रीलंका की जनता में भारत के बारे में धारणा में महत्वपूर्ण बदलाव आया है।
जयशंकर ने कहा, ” जब श्री लंका के लोग गहरे संकट में थे, तो हम एकमात्र देश थे, जो आगे आए और बड़े पैमाने पर सहयोग किया। अगर श्रीलंका उस स्थिति से काफी हद तक उबरने में सक्षम रहा, तो मुझे लगता है कि इसका बहुत बड़ा श्रेय श्रीलंका की राजनीति और श्रीलंकाई जनता को भी जाता है, जो भारत के साथ संबंधों को तरजीह देते है।”
विदेश मंत्री ने स्वीकार किया कि मालदीव के साथ भारत के संबंधों में भी कई उतार-चढ़ाव आए हैं।
उन्होंने कहा, “हमने 1988 में मालदीव में हस्तक्षेप किया था लेकिन 2012 में जब सरकार बदली, तो हम बहुत निष्क्रिय थे। इसलिए आप देख सकते हैं कि यहां स्थिरता की एक निश्चित कमी है। यह एक ऐसा रिश्ता है, जिसमें हमने बहुत गहराई से निवेश किया है और मालदीव में आज यह मान्यता है कि यह रिश्ता एक स्थिर ताकत है।”
विदेश मंत्री ने कहा कि अफगानिस्तान के साथ भारत के लोगों के बीच गहरे और सामाजिक संबंध हैं तथा वहां भारत के प्रति एक सद्भावना है।
उन्होंने कहा, “आज जब हम अपनी अफगानिस्तान नीति की समीक्षा कर रहे हैं, तो मुझे लगता है कि हम अपने हितों के बारे में बहुत स्पष्ट हैं। हमें यह समझना चाहिए कि अमेरिका की मौजूदगी वाला अफगानिस्तान हमारे लिए अमेरिका की मौजूदगी के बिना वाले अफगानिस्तान से बहुत अलग है।”
–आईएएनएस
एकेएस/सीबीटी
नई दिल्ली, 30 अगस्त (आईएएनएस)। विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने शुक्रवार को कहा कि भारत का पूरा पड़ोस एक पहेली है और पड़ोसी देशों के साथ मजबूत संबंध बनाने की दिशा में हमारा प्रयास जारी रहेगा।
उन्होंने कहा कि सरकार की ‘नेबरहुड फर्स्ट’ नीति लगातार होने वाले परिवर्तनों के बीच संबंधों की रक्षा के लिए बनाई गई है। चाहे वे विघटनकारी हों या स्वाभाविक।
विदेश मंत्री ने राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में एक पुस्तक विमोचन समारोह के दौरान कहा, “बांग्लादेश के साथ, इसकी स्वतंत्रता के बाद से हमारे रिश्ते उतार-चढ़ाव से भरे रहे हैं। यह स्वाभाविक है कि हम वर्तमान सरकार के साथ संबंध बनाएंगे। हमें यह भी पहचानना होगा कि जो राजनीतिक परिवर्तन हो रहे हैं, और वे विघटनकारी हो सकते हैं। हमें हितों की तलाश करनी होगी।”
श्रीलंका के साथ भारत के संबंधों के संबंध में जयशंकर ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली सरकार को कुछ हद तक कठिन विरासत मिली है।
उन्होंने कहा, “इस समय, दो समस्याएं हैं। पहली, अंतरराष्ट्रीय समुद्री सीमा से संबंधित मछली पकड़ने का मुद्दा है और दूसरा, राष्ट्रीय सुरक्षा परिप्रेक्ष्य में चीन का श्रीलंका में उपस्थिति के संबंध में है।
हालांकि, विदेश मंत्री ने कहा कि श्रीलंका की जनता में भारत के बारे में धारणा में महत्वपूर्ण बदलाव आया है।
जयशंकर ने कहा, ” जब श्री लंका के लोग गहरे संकट में थे, तो हम एकमात्र देश थे, जो आगे आए और बड़े पैमाने पर सहयोग किया। अगर श्रीलंका उस स्थिति से काफी हद तक उबरने में सक्षम रहा, तो मुझे लगता है कि इसका बहुत बड़ा श्रेय श्रीलंका की राजनीति और श्रीलंकाई जनता को भी जाता है, जो भारत के साथ संबंधों को तरजीह देते है।”
विदेश मंत्री ने स्वीकार किया कि मालदीव के साथ भारत के संबंधों में भी कई उतार-चढ़ाव आए हैं।
उन्होंने कहा, “हमने 1988 में मालदीव में हस्तक्षेप किया था लेकिन 2012 में जब सरकार बदली, तो हम बहुत निष्क्रिय थे। इसलिए आप देख सकते हैं कि यहां स्थिरता की एक निश्चित कमी है। यह एक ऐसा रिश्ता है, जिसमें हमने बहुत गहराई से निवेश किया है और मालदीव में आज यह मान्यता है कि यह रिश्ता एक स्थिर ताकत है।”
विदेश मंत्री ने कहा कि अफगानिस्तान के साथ भारत के लोगों के बीच गहरे और सामाजिक संबंध हैं तथा वहां भारत के प्रति एक सद्भावना है।
उन्होंने कहा, “आज जब हम अपनी अफगानिस्तान नीति की समीक्षा कर रहे हैं, तो मुझे लगता है कि हम अपने हितों के बारे में बहुत स्पष्ट हैं। हमें यह समझना चाहिए कि अमेरिका की मौजूदगी वाला अफगानिस्तान हमारे लिए अमेरिका की मौजूदगी के बिना वाले अफगानिस्तान से बहुत अलग है।”
–आईएएनएस
एकेएस/सीबीटी
ADVERTISEMENT
नई दिल्ली, 30 अगस्त (आईएएनएस)। विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने शुक्रवार को कहा कि भारत का पूरा पड़ोस एक पहेली है और पड़ोसी देशों के साथ मजबूत संबंध बनाने की दिशा में हमारा प्रयास जारी रहेगा।
उन्होंने कहा कि सरकार की ‘नेबरहुड फर्स्ट’ नीति लगातार होने वाले परिवर्तनों के बीच संबंधों की रक्षा के लिए बनाई गई है। चाहे वे विघटनकारी हों या स्वाभाविक।
विदेश मंत्री ने राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में एक पुस्तक विमोचन समारोह के दौरान कहा, “बांग्लादेश के साथ, इसकी स्वतंत्रता के बाद से हमारे रिश्ते उतार-चढ़ाव से भरे रहे हैं। यह स्वाभाविक है कि हम वर्तमान सरकार के साथ संबंध बनाएंगे। हमें यह भी पहचानना होगा कि जो राजनीतिक परिवर्तन हो रहे हैं, और वे विघटनकारी हो सकते हैं। हमें हितों की तलाश करनी होगी।”
श्रीलंका के साथ भारत के संबंधों के संबंध में जयशंकर ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली सरकार को कुछ हद तक कठिन विरासत मिली है।
उन्होंने कहा, “इस समय, दो समस्याएं हैं। पहली, अंतरराष्ट्रीय समुद्री सीमा से संबंधित मछली पकड़ने का मुद्दा है और दूसरा, राष्ट्रीय सुरक्षा परिप्रेक्ष्य में चीन का श्रीलंका में उपस्थिति के संबंध में है।
हालांकि, विदेश मंत्री ने कहा कि श्रीलंका की जनता में भारत के बारे में धारणा में महत्वपूर्ण बदलाव आया है।
जयशंकर ने कहा, ” जब श्री लंका के लोग गहरे संकट में थे, तो हम एकमात्र देश थे, जो आगे आए और बड़े पैमाने पर सहयोग किया। अगर श्रीलंका उस स्थिति से काफी हद तक उबरने में सक्षम रहा, तो मुझे लगता है कि इसका बहुत बड़ा श्रेय श्रीलंका की राजनीति और श्रीलंकाई जनता को भी जाता है, जो भारत के साथ संबंधों को तरजीह देते है।”
विदेश मंत्री ने स्वीकार किया कि मालदीव के साथ भारत के संबंधों में भी कई उतार-चढ़ाव आए हैं।
उन्होंने कहा, “हमने 1988 में मालदीव में हस्तक्षेप किया था लेकिन 2012 में जब सरकार बदली, तो हम बहुत निष्क्रिय थे। इसलिए आप देख सकते हैं कि यहां स्थिरता की एक निश्चित कमी है। यह एक ऐसा रिश्ता है, जिसमें हमने बहुत गहराई से निवेश किया है और मालदीव में आज यह मान्यता है कि यह रिश्ता एक स्थिर ताकत है।”
विदेश मंत्री ने कहा कि अफगानिस्तान के साथ भारत के लोगों के बीच गहरे और सामाजिक संबंध हैं तथा वहां भारत के प्रति एक सद्भावना है।
उन्होंने कहा, “आज जब हम अपनी अफगानिस्तान नीति की समीक्षा कर रहे हैं, तो मुझे लगता है कि हम अपने हितों के बारे में बहुत स्पष्ट हैं। हमें यह समझना चाहिए कि अमेरिका की मौजूदगी वाला अफगानिस्तान हमारे लिए अमेरिका की मौजूदगी के बिना वाले अफगानिस्तान से बहुत अलग है।”
–आईएएनएस
एकेएस/सीबीटी
ADVERTISEMENT
नई दिल्ली, 30 अगस्त (आईएएनएस)। विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने शुक्रवार को कहा कि भारत का पूरा पड़ोस एक पहेली है और पड़ोसी देशों के साथ मजबूत संबंध बनाने की दिशा में हमारा प्रयास जारी रहेगा।
उन्होंने कहा कि सरकार की ‘नेबरहुड फर्स्ट’ नीति लगातार होने वाले परिवर्तनों के बीच संबंधों की रक्षा के लिए बनाई गई है। चाहे वे विघटनकारी हों या स्वाभाविक।
विदेश मंत्री ने राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में एक पुस्तक विमोचन समारोह के दौरान कहा, “बांग्लादेश के साथ, इसकी स्वतंत्रता के बाद से हमारे रिश्ते उतार-चढ़ाव से भरे रहे हैं। यह स्वाभाविक है कि हम वर्तमान सरकार के साथ संबंध बनाएंगे। हमें यह भी पहचानना होगा कि जो राजनीतिक परिवर्तन हो रहे हैं, और वे विघटनकारी हो सकते हैं। हमें हितों की तलाश करनी होगी।”
श्रीलंका के साथ भारत के संबंधों के संबंध में जयशंकर ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली सरकार को कुछ हद तक कठिन विरासत मिली है।
उन्होंने कहा, “इस समय, दो समस्याएं हैं। पहली, अंतरराष्ट्रीय समुद्री सीमा से संबंधित मछली पकड़ने का मुद्दा है और दूसरा, राष्ट्रीय सुरक्षा परिप्रेक्ष्य में चीन का श्रीलंका में उपस्थिति के संबंध में है।
हालांकि, विदेश मंत्री ने कहा कि श्रीलंका की जनता में भारत के बारे में धारणा में महत्वपूर्ण बदलाव आया है।
जयशंकर ने कहा, ” जब श्री लंका के लोग गहरे संकट में थे, तो हम एकमात्र देश थे, जो आगे आए और बड़े पैमाने पर सहयोग किया। अगर श्रीलंका उस स्थिति से काफी हद तक उबरने में सक्षम रहा, तो मुझे लगता है कि इसका बहुत बड़ा श्रेय श्रीलंका की राजनीति और श्रीलंकाई जनता को भी जाता है, जो भारत के साथ संबंधों को तरजीह देते है।”
विदेश मंत्री ने स्वीकार किया कि मालदीव के साथ भारत के संबंधों में भी कई उतार-चढ़ाव आए हैं।
उन्होंने कहा, “हमने 1988 में मालदीव में हस्तक्षेप किया था लेकिन 2012 में जब सरकार बदली, तो हम बहुत निष्क्रिय थे। इसलिए आप देख सकते हैं कि यहां स्थिरता की एक निश्चित कमी है। यह एक ऐसा रिश्ता है, जिसमें हमने बहुत गहराई से निवेश किया है और मालदीव में आज यह मान्यता है कि यह रिश्ता एक स्थिर ताकत है।”
विदेश मंत्री ने कहा कि अफगानिस्तान के साथ भारत के लोगों के बीच गहरे और सामाजिक संबंध हैं तथा वहां भारत के प्रति एक सद्भावना है।
उन्होंने कहा, “आज जब हम अपनी अफगानिस्तान नीति की समीक्षा कर रहे हैं, तो मुझे लगता है कि हम अपने हितों के बारे में बहुत स्पष्ट हैं। हमें यह समझना चाहिए कि अमेरिका की मौजूदगी वाला अफगानिस्तान हमारे लिए अमेरिका की मौजूदगी के बिना वाले अफगानिस्तान से बहुत अलग है।”
–आईएएनएस
एकेएस/सीबीटी
ADVERTISEMENT
नई दिल्ली, 30 अगस्त (आईएएनएस)। विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने शुक्रवार को कहा कि भारत का पूरा पड़ोस एक पहेली है और पड़ोसी देशों के साथ मजबूत संबंध बनाने की दिशा में हमारा प्रयास जारी रहेगा।
उन्होंने कहा कि सरकार की ‘नेबरहुड फर्स्ट’ नीति लगातार होने वाले परिवर्तनों के बीच संबंधों की रक्षा के लिए बनाई गई है। चाहे वे विघटनकारी हों या स्वाभाविक।
विदेश मंत्री ने राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में एक पुस्तक विमोचन समारोह के दौरान कहा, “बांग्लादेश के साथ, इसकी स्वतंत्रता के बाद से हमारे रिश्ते उतार-चढ़ाव से भरे रहे हैं। यह स्वाभाविक है कि हम वर्तमान सरकार के साथ संबंध बनाएंगे। हमें यह भी पहचानना होगा कि जो राजनीतिक परिवर्तन हो रहे हैं, और वे विघटनकारी हो सकते हैं। हमें हितों की तलाश करनी होगी।”
श्रीलंका के साथ भारत के संबंधों के संबंध में जयशंकर ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली सरकार को कुछ हद तक कठिन विरासत मिली है।
उन्होंने कहा, “इस समय, दो समस्याएं हैं। पहली, अंतरराष्ट्रीय समुद्री सीमा से संबंधित मछली पकड़ने का मुद्दा है और दूसरा, राष्ट्रीय सुरक्षा परिप्रेक्ष्य में चीन का श्रीलंका में उपस्थिति के संबंध में है।
हालांकि, विदेश मंत्री ने कहा कि श्रीलंका की जनता में भारत के बारे में धारणा में महत्वपूर्ण बदलाव आया है।
जयशंकर ने कहा, ” जब श्री लंका के लोग गहरे संकट में थे, तो हम एकमात्र देश थे, जो आगे आए और बड़े पैमाने पर सहयोग किया। अगर श्रीलंका उस स्थिति से काफी हद तक उबरने में सक्षम रहा, तो मुझे लगता है कि इसका बहुत बड़ा श्रेय श्रीलंका की राजनीति और श्रीलंकाई जनता को भी जाता है, जो भारत के साथ संबंधों को तरजीह देते है।”
विदेश मंत्री ने स्वीकार किया कि मालदीव के साथ भारत के संबंधों में भी कई उतार-चढ़ाव आए हैं।
उन्होंने कहा, “हमने 1988 में मालदीव में हस्तक्षेप किया था लेकिन 2012 में जब सरकार बदली, तो हम बहुत निष्क्रिय थे। इसलिए आप देख सकते हैं कि यहां स्थिरता की एक निश्चित कमी है। यह एक ऐसा रिश्ता है, जिसमें हमने बहुत गहराई से निवेश किया है और मालदीव में आज यह मान्यता है कि यह रिश्ता एक स्थिर ताकत है।”
विदेश मंत्री ने कहा कि अफगानिस्तान के साथ भारत के लोगों के बीच गहरे और सामाजिक संबंध हैं तथा वहां भारत के प्रति एक सद्भावना है।
उन्होंने कहा, “आज जब हम अपनी अफगानिस्तान नीति की समीक्षा कर रहे हैं, तो मुझे लगता है कि हम अपने हितों के बारे में बहुत स्पष्ट हैं। हमें यह समझना चाहिए कि अमेरिका की मौजूदगी वाला अफगानिस्तान हमारे लिए अमेरिका की मौजूदगी के बिना वाले अफगानिस्तान से बहुत अलग है।”
–आईएएनएस
एकेएस/सीबीटी
ADVERTISEMENT
नई दिल्ली, 30 अगस्त (आईएएनएस)। विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने शुक्रवार को कहा कि भारत का पूरा पड़ोस एक पहेली है और पड़ोसी देशों के साथ मजबूत संबंध बनाने की दिशा में हमारा प्रयास जारी रहेगा।
उन्होंने कहा कि सरकार की ‘नेबरहुड फर्स्ट’ नीति लगातार होने वाले परिवर्तनों के बीच संबंधों की रक्षा के लिए बनाई गई है। चाहे वे विघटनकारी हों या स्वाभाविक।
विदेश मंत्री ने राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में एक पुस्तक विमोचन समारोह के दौरान कहा, “बांग्लादेश के साथ, इसकी स्वतंत्रता के बाद से हमारे रिश्ते उतार-चढ़ाव से भरे रहे हैं। यह स्वाभाविक है कि हम वर्तमान सरकार के साथ संबंध बनाएंगे। हमें यह भी पहचानना होगा कि जो राजनीतिक परिवर्तन हो रहे हैं, और वे विघटनकारी हो सकते हैं। हमें हितों की तलाश करनी होगी।”
श्रीलंका के साथ भारत के संबंधों के संबंध में जयशंकर ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली सरकार को कुछ हद तक कठिन विरासत मिली है।
उन्होंने कहा, “इस समय, दो समस्याएं हैं। पहली, अंतरराष्ट्रीय समुद्री सीमा से संबंधित मछली पकड़ने का मुद्दा है और दूसरा, राष्ट्रीय सुरक्षा परिप्रेक्ष्य में चीन का श्रीलंका में उपस्थिति के संबंध में है।
हालांकि, विदेश मंत्री ने कहा कि श्रीलंका की जनता में भारत के बारे में धारणा में महत्वपूर्ण बदलाव आया है।
जयशंकर ने कहा, ” जब श्री लंका के लोग गहरे संकट में थे, तो हम एकमात्र देश थे, जो आगे आए और बड़े पैमाने पर सहयोग किया। अगर श्रीलंका उस स्थिति से काफी हद तक उबरने में सक्षम रहा, तो मुझे लगता है कि इसका बहुत बड़ा श्रेय श्रीलंका की राजनीति और श्रीलंकाई जनता को भी जाता है, जो भारत के साथ संबंधों को तरजीह देते है।”
विदेश मंत्री ने स्वीकार किया कि मालदीव के साथ भारत के संबंधों में भी कई उतार-चढ़ाव आए हैं।
उन्होंने कहा, “हमने 1988 में मालदीव में हस्तक्षेप किया था लेकिन 2012 में जब सरकार बदली, तो हम बहुत निष्क्रिय थे। इसलिए आप देख सकते हैं कि यहां स्थिरता की एक निश्चित कमी है। यह एक ऐसा रिश्ता है, जिसमें हमने बहुत गहराई से निवेश किया है और मालदीव में आज यह मान्यता है कि यह रिश्ता एक स्थिर ताकत है।”
विदेश मंत्री ने कहा कि अफगानिस्तान के साथ भारत के लोगों के बीच गहरे और सामाजिक संबंध हैं तथा वहां भारत के प्रति एक सद्भावना है।
उन्होंने कहा, “आज जब हम अपनी अफगानिस्तान नीति की समीक्षा कर रहे हैं, तो मुझे लगता है कि हम अपने हितों के बारे में बहुत स्पष्ट हैं। हमें यह समझना चाहिए कि अमेरिका की मौजूदगी वाला अफगानिस्तान हमारे लिए अमेरिका की मौजूदगी के बिना वाले अफगानिस्तान से बहुत अलग है।”
–आईएएनएस
एकेएस/सीबीटी
ADVERTISEMENT
नई दिल्ली, 30 अगस्त (आईएएनएस)। विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने शुक्रवार को कहा कि भारत का पूरा पड़ोस एक पहेली है और पड़ोसी देशों के साथ मजबूत संबंध बनाने की दिशा में हमारा प्रयास जारी रहेगा।
उन्होंने कहा कि सरकार की ‘नेबरहुड फर्स्ट’ नीति लगातार होने वाले परिवर्तनों के बीच संबंधों की रक्षा के लिए बनाई गई है। चाहे वे विघटनकारी हों या स्वाभाविक।
विदेश मंत्री ने राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में एक पुस्तक विमोचन समारोह के दौरान कहा, “बांग्लादेश के साथ, इसकी स्वतंत्रता के बाद से हमारे रिश्ते उतार-चढ़ाव से भरे रहे हैं। यह स्वाभाविक है कि हम वर्तमान सरकार के साथ संबंध बनाएंगे। हमें यह भी पहचानना होगा कि जो राजनीतिक परिवर्तन हो रहे हैं, और वे विघटनकारी हो सकते हैं। हमें हितों की तलाश करनी होगी।”
श्रीलंका के साथ भारत के संबंधों के संबंध में जयशंकर ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली सरकार को कुछ हद तक कठिन विरासत मिली है।
उन्होंने कहा, “इस समय, दो समस्याएं हैं। पहली, अंतरराष्ट्रीय समुद्री सीमा से संबंधित मछली पकड़ने का मुद्दा है और दूसरा, राष्ट्रीय सुरक्षा परिप्रेक्ष्य में चीन का श्रीलंका में उपस्थिति के संबंध में है।
हालांकि, विदेश मंत्री ने कहा कि श्रीलंका की जनता में भारत के बारे में धारणा में महत्वपूर्ण बदलाव आया है।
जयशंकर ने कहा, ” जब श्री लंका के लोग गहरे संकट में थे, तो हम एकमात्र देश थे, जो आगे आए और बड़े पैमाने पर सहयोग किया। अगर श्रीलंका उस स्थिति से काफी हद तक उबरने में सक्षम रहा, तो मुझे लगता है कि इसका बहुत बड़ा श्रेय श्रीलंका की राजनीति और श्रीलंकाई जनता को भी जाता है, जो भारत के साथ संबंधों को तरजीह देते है।”
विदेश मंत्री ने स्वीकार किया कि मालदीव के साथ भारत के संबंधों में भी कई उतार-चढ़ाव आए हैं।
उन्होंने कहा, “हमने 1988 में मालदीव में हस्तक्षेप किया था लेकिन 2012 में जब सरकार बदली, तो हम बहुत निष्क्रिय थे। इसलिए आप देख सकते हैं कि यहां स्थिरता की एक निश्चित कमी है। यह एक ऐसा रिश्ता है, जिसमें हमने बहुत गहराई से निवेश किया है और मालदीव में आज यह मान्यता है कि यह रिश्ता एक स्थिर ताकत है।”
विदेश मंत्री ने कहा कि अफगानिस्तान के साथ भारत के लोगों के बीच गहरे और सामाजिक संबंध हैं तथा वहां भारत के प्रति एक सद्भावना है।
उन्होंने कहा, “आज जब हम अपनी अफगानिस्तान नीति की समीक्षा कर रहे हैं, तो मुझे लगता है कि हम अपने हितों के बारे में बहुत स्पष्ट हैं। हमें यह समझना चाहिए कि अमेरिका की मौजूदगी वाला अफगानिस्तान हमारे लिए अमेरिका की मौजूदगी के बिना वाले अफगानिस्तान से बहुत अलग है।”
–आईएएनएस
एकेएस/सीबीटी
ADVERTISEMENT
नई दिल्ली, 30 अगस्त (आईएएनएस)। विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने शुक्रवार को कहा कि भारत का पूरा पड़ोस एक पहेली है और पड़ोसी देशों के साथ मजबूत संबंध बनाने की दिशा में हमारा प्रयास जारी रहेगा।
उन्होंने कहा कि सरकार की ‘नेबरहुड फर्स्ट’ नीति लगातार होने वाले परिवर्तनों के बीच संबंधों की रक्षा के लिए बनाई गई है। चाहे वे विघटनकारी हों या स्वाभाविक।
विदेश मंत्री ने राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में एक पुस्तक विमोचन समारोह के दौरान कहा, “बांग्लादेश के साथ, इसकी स्वतंत्रता के बाद से हमारे रिश्ते उतार-चढ़ाव से भरे रहे हैं। यह स्वाभाविक है कि हम वर्तमान सरकार के साथ संबंध बनाएंगे। हमें यह भी पहचानना होगा कि जो राजनीतिक परिवर्तन हो रहे हैं, और वे विघटनकारी हो सकते हैं। हमें हितों की तलाश करनी होगी।”
श्रीलंका के साथ भारत के संबंधों के संबंध में जयशंकर ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली सरकार को कुछ हद तक कठिन विरासत मिली है।
उन्होंने कहा, “इस समय, दो समस्याएं हैं। पहली, अंतरराष्ट्रीय समुद्री सीमा से संबंधित मछली पकड़ने का मुद्दा है और दूसरा, राष्ट्रीय सुरक्षा परिप्रेक्ष्य में चीन का श्रीलंका में उपस्थिति के संबंध में है।
हालांकि, विदेश मंत्री ने कहा कि श्रीलंका की जनता में भारत के बारे में धारणा में महत्वपूर्ण बदलाव आया है।
जयशंकर ने कहा, ” जब श्री लंका के लोग गहरे संकट में थे, तो हम एकमात्र देश थे, जो आगे आए और बड़े पैमाने पर सहयोग किया। अगर श्रीलंका उस स्थिति से काफी हद तक उबरने में सक्षम रहा, तो मुझे लगता है कि इसका बहुत बड़ा श्रेय श्रीलंका की राजनीति और श्रीलंकाई जनता को भी जाता है, जो भारत के साथ संबंधों को तरजीह देते है।”
विदेश मंत्री ने स्वीकार किया कि मालदीव के साथ भारत के संबंधों में भी कई उतार-चढ़ाव आए हैं।
उन्होंने कहा, “हमने 1988 में मालदीव में हस्तक्षेप किया था लेकिन 2012 में जब सरकार बदली, तो हम बहुत निष्क्रिय थे। इसलिए आप देख सकते हैं कि यहां स्थिरता की एक निश्चित कमी है। यह एक ऐसा रिश्ता है, जिसमें हमने बहुत गहराई से निवेश किया है और मालदीव में आज यह मान्यता है कि यह रिश्ता एक स्थिर ताकत है।”
विदेश मंत्री ने कहा कि अफगानिस्तान के साथ भारत के लोगों के बीच गहरे और सामाजिक संबंध हैं तथा वहां भारत के प्रति एक सद्भावना है।
उन्होंने कहा, “आज जब हम अपनी अफगानिस्तान नीति की समीक्षा कर रहे हैं, तो मुझे लगता है कि हम अपने हितों के बारे में बहुत स्पष्ट हैं। हमें यह समझना चाहिए कि अमेरिका की मौजूदगी वाला अफगानिस्तान हमारे लिए अमेरिका की मौजूदगी के बिना वाले अफगानिस्तान से बहुत अलग है।”
–आईएएनएस
एकेएस/सीबीटी
ADVERTISEMENT
नई दिल्ली, 30 अगस्त (आईएएनएस)। विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने शुक्रवार को कहा कि भारत का पूरा पड़ोस एक पहेली है और पड़ोसी देशों के साथ मजबूत संबंध बनाने की दिशा में हमारा प्रयास जारी रहेगा।
उन्होंने कहा कि सरकार की ‘नेबरहुड फर्स्ट’ नीति लगातार होने वाले परिवर्तनों के बीच संबंधों की रक्षा के लिए बनाई गई है। चाहे वे विघटनकारी हों या स्वाभाविक।
विदेश मंत्री ने राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में एक पुस्तक विमोचन समारोह के दौरान कहा, “बांग्लादेश के साथ, इसकी स्वतंत्रता के बाद से हमारे रिश्ते उतार-चढ़ाव से भरे रहे हैं। यह स्वाभाविक है कि हम वर्तमान सरकार के साथ संबंध बनाएंगे। हमें यह भी पहचानना होगा कि जो राजनीतिक परिवर्तन हो रहे हैं, और वे विघटनकारी हो सकते हैं। हमें हितों की तलाश करनी होगी।”
श्रीलंका के साथ भारत के संबंधों के संबंध में जयशंकर ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली सरकार को कुछ हद तक कठिन विरासत मिली है।
उन्होंने कहा, “इस समय, दो समस्याएं हैं। पहली, अंतरराष्ट्रीय समुद्री सीमा से संबंधित मछली पकड़ने का मुद्दा है और दूसरा, राष्ट्रीय सुरक्षा परिप्रेक्ष्य में चीन का श्रीलंका में उपस्थिति के संबंध में है।
हालांकि, विदेश मंत्री ने कहा कि श्रीलंका की जनता में भारत के बारे में धारणा में महत्वपूर्ण बदलाव आया है।
जयशंकर ने कहा, ” जब श्री लंका के लोग गहरे संकट में थे, तो हम एकमात्र देश थे, जो आगे आए और बड़े पैमाने पर सहयोग किया। अगर श्रीलंका उस स्थिति से काफी हद तक उबरने में सक्षम रहा, तो मुझे लगता है कि इसका बहुत बड़ा श्रेय श्रीलंका की राजनीति और श्रीलंकाई जनता को भी जाता है, जो भारत के साथ संबंधों को तरजीह देते है।”
विदेश मंत्री ने स्वीकार किया कि मालदीव के साथ भारत के संबंधों में भी कई उतार-चढ़ाव आए हैं।
उन्होंने कहा, “हमने 1988 में मालदीव में हस्तक्षेप किया था लेकिन 2012 में जब सरकार बदली, तो हम बहुत निष्क्रिय थे। इसलिए आप देख सकते हैं कि यहां स्थिरता की एक निश्चित कमी है। यह एक ऐसा रिश्ता है, जिसमें हमने बहुत गहराई से निवेश किया है और मालदीव में आज यह मान्यता है कि यह रिश्ता एक स्थिर ताकत है।”
विदेश मंत्री ने कहा कि अफगानिस्तान के साथ भारत के लोगों के बीच गहरे और सामाजिक संबंध हैं तथा वहां भारत के प्रति एक सद्भावना है।
उन्होंने कहा, “आज जब हम अपनी अफगानिस्तान नीति की समीक्षा कर रहे हैं, तो मुझे लगता है कि हम अपने हितों के बारे में बहुत स्पष्ट हैं। हमें यह समझना चाहिए कि अमेरिका की मौजूदगी वाला अफगानिस्तान हमारे लिए अमेरिका की मौजूदगी के बिना वाले अफगानिस्तान से बहुत अलग है।”