नई दिल्ली, 11 सितंबर (आईएएनएस)। घरेलू सर्जिकल टांके का बाजार 13 प्रतिशत से अधिक की औसत वार्षिक दर से बढ़ता हुआ 2030 तक 38 करोड़ डॉलर तक पहुंच जाएगा। सोमवार को जारी एक रिपोर्ट में यह बात सामने आई है।
ऑपरेशन के बाद दर्द कम होने, अस्पताल में कम समय तक रुकने और मरीजों के जल्दी ठीक होने के कारण हाल के दिनों में मिनिमल एक्सेस सर्जरी (एमएएस) को काफी महत्व मिल रहा है।
भारत में जहां एक बड़ी आबादी किफायती स्वास्थ्य देखभाल चाहती है, एमएएस की सफलता काफी हद तक कुशल टांके लगाने की तकनीकों पर निर्भर करती है जो जटिलताओं और संक्रमण को कम करने के लिए महत्वपूर्ण हैं।
अग्रणी डेटा और एनालिटिक्स कंपनी ग्लोबलडेटा की रिपोर्ट से पता चलता है कि 2023 में राजस्व के हिसाब से एशिया-प्रशांत (एपीएसी) सर्जिकल टांकों के बाजार में भारत की हिस्सेदारी लगभग 18 प्रतिशत होगी।
ग्लोबलडेटा में चिकित्सा उपकरण विश्लेषक आयशी गांगुली ने एक बयान में कहा, “भारत में पारंपरिक टांके लगाने की तकनीकों में अक्सर धातु क्लिप, प्लास्टर और पट्टियों का उपयोग शामिल होता है। हालांकि, ऐसी तकनीकों को खराब नसबंदी के कारण जोखिम और रोगियों में अवांछित प्रतिक्रियाओं के कारण के रूप में जाना जाता है।”
उन्होंने कहा, “इसके अलावा, कुशल चिकित्सकों की सीमित संख्या और ग्रामीण क्षेत्रों में स्वास्थ्य देखभाल की खराब पहुंच अतिरिक्त कमियां हैं। इससे वैकल्पिक टांके लगाने की तकनीक की आवश्यकता बढ़ जाती है जो पारंपरिक टांके से जुड़ी जटिलताओं को कम कर सकती है।”
सर्जिकल टांके ऊतकों को सुरक्षित रूप से एक साथ पकड़कर घावों और चीरों को कुशलतापूर्वक सील कर देते हैं, जिससे संक्रमण का खतरा कम हो गया है और घाव के निशान कम हो गए हैं, जिससे वे एमएएस में एक प्रभावी उपकरण बन गए हैं।
गांगुली ने भारत की ‘मेक-इन-इंडिया’ नीति की ओर इशारा किया, जिसका उद्देश्य ऐसे चिकित्सा उपकरणों और उपकरणों के घरेलू विनिर्माण को बढ़ावा देना है, जिससे आने वाले वर्षों में आयात पर निर्भरता कम हो सके।
गांगुली ने कहा, “ऐसे उपकरणों के विकास से निर्यात का दायरा बढ़ेगा और स्वास्थ्य सेवा क्षेत्र के लिए अनुकूल कारोबारी माहौल तैयार होगा। इसके साथ, भारतीय सर्जिकल टांके का बाजार फलने-फूलने के लिए तैयार है, जो भारतीय निर्माताओं के लिए आशाजनक घरेलू और निर्यात अवसर प्रदान करेगा।”
–आईएएनएस
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