कसौली, 14 अक्टूबर (आईएएनएस)। पूर्व रॉ प्रमुख और पूर्ववर्ती जम्मू-कश्मीर राज्य के पूर्व सलाहकार ए.एस. दुलत ने कहा है कि घाटी में अशांति के बावजूद कश्मीर भारत का हिस्सा बना रहेगा। अलगाववादियों और हुर्रियत नेताओं के साथ अपनी बैठकों को याद करतेे हुए उन्होेंने कहा कि कश्मीर में सामान्य स्थिति लाने का एकमात्र रास्ता बातचीत, धैर्य और सहानुभूति है।
घाटी में अनुच्छेद 370 को ख़त्म करने का विरोध करने वाले दुलत का मानना है कि हर कोई ‘बातचीत’ करता है। “और हर हितधारक के साथ बात करने में क्या हर्ज है? कोई भी स्थायी दुश्मन नहीं है, चाहे वह पाकिस्तान हो या चीन। वाजपेयी के कार्यकाल के दौरान, कश्मीरी अलगाववादियों के साथ कई दौर की बैठकें हुईं। इतने सारे लोग मेरे घर आते थे।”
उन्होंने कहा कि इजरायली खुफिया एजेंसी मोसाद भी उन लोगों से बात करती है, जिन्हें वे अपना दुश्मन कहते हैं। मैं उनके प्रमुखों में से एक के काफी करीब था, और उन्होंने स्वीकार किया कि स्थायी शांति केवल मेज पर प्राप्त की जा सकती है, युद्ध के मैदान पर नहीं।”
खुशवंत सिंह साहित्य महोत्सव के पहले दिन बोलते हुए दुलत ने कहा कि अगर प्रधानमंत्री मोदी अपनी यात्रा के दौरान कश्मीरियों के लिए राज्य का दर्जा देने की घोषणा करते हैं, तो स्थानीय लोग उन्हें माला पहनाएंगे।
“वह लाल चौक पर खुली जीप में हो सकते हैं और अगर उन्होंने ऐसा किया तो सुरक्षा को कोई खतरा नहीं होगा। हर स्थानीय व्यक्ति उनके इस कदम का स्वागत करेगा।”
दुलत, जिन्होंने अपनी नवीनतम पुस्तक ‘ए लाइफ इन द शैडोज़: ए मेमॉयर’ (हार्पर कॉलिन्स पब्लिशर्स) में वर्तमान राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार (एनएसए) अजीत डोभाल के बारे में विस्तार से लिखा है, का कहना है कि डोभाल ने उनके बारे में लिखने से बहुत पहले ही उनसे बात करना बंद कर दिया था। .
“अनुच्छेद 370 हटाए जाने से ठीक पहले, उन्होंने मुझसे फोन पर पूछा कि कश्मीर से कैसे निपटा जाए। मैंने उनसे कहा कि हमें बात करने की ज़रूरत है। उनका जवाब था: ‘बहुत बातचीत हो चुकी है।’ उनका दृष्टिकोण बहुत ‘मस्कुलर’ है। लेकिन मैं यह कह दूं कि उन्हें सत्ता के करीब रहना पसंद है। अगर कल राहुल गांधी पीएम बनते हैं, तो उन्हें उनके साथ काम करने में कोई आपत्ति नहीं होगी।’
–आईएएनएस
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