नई दिल्ली, 18 मई (आईएएनएस)। सर्वोच्च न्यायालय ने बुधवार को मणिपुर उच्च न्यायालय के कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश एम.वी. मुरलीधरन ने कहा कि अवसर दिए जाने के बावजूद उन्होंने मणिपुर में बहुसंख्यक मेइती को कोटा देने के अपने फैसले को दुरुस्त नहीं किया।
प्रधान न्यायाधीश डी. वाई. चंद्रचूड़ ने कहा कि उच्च न्यायालय का आदेश गलत था और मुझे लगता है कि हमें उच्च न्यायालय के आदेश पर रोक लगानी होगी.. हमने न्यायमूर्ति मुरलीधरन को खुद को सही करने का समय दिया और उन्होंने ऐसा नहीं किया।
पीठ में शामिल जस्टिस पी.एस. नरसिम्हा और जे.बी. पारदीवाला ने कहा कि यह निर्देश सर्वोच्च न्यायालय की संवैधानिक पीठों के पिछले निर्णयों द्वारा निर्धारित सिद्धांतों के खिलाफ था, जो अनुसूचित जातियों या अनुसूचित जनजातियों के रूप में समुदायों के वर्गीकरण से संबंधित था।
शीर्ष अदालत ने उच्च न्यायालय के आदेश पर रोक नहीं लगाई, क्योंकि उसे सूचित किया गया था कि उसके खिलाफ अपील उच्च न्यायालय की एक खंडपीठ के समक्ष लंबित है।
शीर्ष अदालत ने यह बात यह जानने के बाद कहीा कि मणिपुर सरकार द्वारा कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश मुरलीधरन की पीठ के समक्ष एक आवेदन दायर किया गया था, और पीठ ने मेइती को एसटी का दर्जा देने के अपने 27 मार्च के निर्देश का पालन करने के लिए राज्य के लिए समय सीमा बढ़ा दी थी।
आदिवासी 27 मार्च के मणिपुर उच्च न्यायालय के आदेश के बाद मेइती को आरक्षण का विरोध कर रहे हैं, जिसमें राज्य सरकार को समुदाय को एसटी का दर्जा देने की मांग पर चार सप्ताह के भीतर केंद्र को सिफारिश भेजने के लिए कहा गया है।
पीठ ने कहा कि कुकी सहित आदिवासी उच्च न्यायालय की खंडपीठ के समक्ष कार्यवाही में शामिल हो सकते हैं।
–आईएएनएस
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