कोच्चि, 23 फरवरी (आईएएनएस)। भारत और ब्रिटेन के मत्स्य वैज्ञानिकों और विशेषज्ञों ने देश में वन हेल्थ एक्वाकल्चर की अवधारणा को हासिल करने के लिए भारत-ब्रिटेन साझेदारी का आह्वान किया है।
वन हेल्थ एक्वाकल्चर दृष्टिकोण का तात्पर्य लोगों, जलीय जानवरों और पौधों और पर्यावरण के इष्टतम स्वास्थ्य को प्राप्त करना है।
यहां आयोजित भारत-ब्रिटेन संयुक्त कार्यशाला में विशेषज्ञों ने कहा कि बढ़ती समुद्री खाद्य मांग को पूरा करने के लिए उत्पादन बढ़ाने पर ध्यान केंद्रित करते हुए जलीय खाद्य क्षेत्र की मूल्य श्रृंखला में शामिल सभी लोगों के स्वास्थ्य में सुधार करना भी उतना ही महत्वपूर्ण है।
कार्यशाला का आयोजन यूके सरकार के सेंटर फॉर एनवायरनमेंट, फिशरीज एंड एक्वाकल्चर साइंस (सीईएफएएस), पर्यावरण, खाद्य और ग्रामीण मामलों के विभाग (डीईएफआरए) और आईसीएआर-सेंट्रल मरीन फिशरीज रिसर्च इंस्टीट्यूट (सीएमएफआरआई) द्वारा संयुक्त रूप से किया गया था।
बैठक में देश में सुरक्षित और टिकाऊ जलीय कृषि उत्पादन में सुधार करने में मदद करने के लिए अनुसंधान सहयोग की सुविधा के लिए भारत-यूके साझेदारी का भी आह्वान किया गया।
यह स्थायी समुद्री खाद्य प्रथाओं को अपनाने में मदद करेगा, अस्थिर गतिविधियों से नकारात्मक प्रभावों के जोखिम को कम करेगा और बाद में देश की आजीविका, पर्यावरण और अर्थव्यवस्था में सुधार करेगा।
ब्रिटिश उच्चायोग से सैली टेलर ने कहा कि एक उच्चस्तरीय यूके-इंडिया वन हेल्थ पार्टनरशिप जलीय खाद्य प्रणाली के एकीकरण के लिए एक स्वास्थ्य अवधारणा के लिए मंच तैयार करेगी, जिससे वैश्विक स्तर पर उभरती वास्तविकताओं और चिंताओं को दूर किया जा सके।
बैठक में खेत से मेज तक मछली उत्पादन की ब्लॉक-चेन सक्षम ट्रैकिंग जैसी नई पहलों का भी सुझाव दिया गया, क्योंकि यह उत्पाद की गुणवत्ता में सुधार करने में मदद करता है।
सीएमएफआरआई के निदेशक ए. गोपालकृष्णन ने कहा, ऐसे तंत्र हैं जो भारतीय जलीय कृषि को एक स्वास्थ्य प्रतिमान की ओर उन्मुख करते हैं, जैसे जलीय पशु रोगों के लिए राष्ट्रीय निगरानी कार्यक्रम (एनएसपीएएडी), मत्स्य पालन और पशु रोगाणुरोधी प्रतिरोध के लिए भारतीय नेटवर्क (आईएनएफएएआर), मछली स्वास्थ्य पर अखिल भारतीय नेटवर्क, कंसोर्टिया रिसर्च प्लेटफॉर्म ऑन वैक्सीन एंड डायग्नोस्टिक्स प्रोजेक्ट।
हालांकि, उन्होंने इस तरह के विभिन्न खंडित प्रयासों के समन्वय के लिए एक राष्ट्रीय स्तर की एजेंसी बनाने की जरूरत पर जोर दिया।
सीएमएफआरआई के प्रधान वैज्ञानिक सी रामचंद्रन ने एक्वाकल्चर में बढ़ते रोग जोखिमों का उल्लेख करते हुए कहा कि एक्वाकल्चर में एंटीबायोटिक्स जैसे रसायनों के दुरुपयोग को रोकने के लिए एक्वा डॉक्टरों की नियुक्ति करना समय की जरूरत है।
उन्होंने कहा, एक स्वास्थ्य लेंस के तहत पोक्कली खेती जैसी पारंपरिक मछली पालन प्रणालियों के पुनरुद्धार और बाजार एकीकरण के लिए सहयोगी अनुसंधान और विकास प्रयासों की जरूरत है।
बैठक में भारत और ब्रिटेन के लगभग 50 वैज्ञानिकों ने भाग लिया।
–आईएएनएस
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