नई दिल्ली, 28 फरवरी (आईएएनएस)। दिल्ली हाईकोर्ट ने दिल्ली विकास प्राधिकरण (डीडीए) द्वारा दक्षिण दिल्ली के महरौली इलाके में विध्वंस की कार्रवाई को चुनौती देने वाली याचिका पर मंगलवार को सुनवाई करते हुए गोशिया कॉलोनी सेवा समिति और अन्य के वकील से 467 निवासियों के पहचान दस्तावेजों की एक सूची जमा करने के लिए कहा।
न्यायमूर्ति मनमीत प्रीतम सिंह अरोड़ा की पीठ ने याचिकाकर्ता की वकील अनुप्रधा सिंह को डीडीए और दिल्ली शहरी आश्रय सुधार बोर्ड (डीयूएसआईबी) के वकील को पहचान दस्तावेजों की एक सूची प्रदान करने के लिए कहा।
न्यायाधीश ने उन्हें डीडीए और डीयूएसआईबी द्वारा दायर हलफनामों पर एक प्रत्युत्तर दाखिल करने के लिए भी कहा। इसके लिए अदालत ने उन्हें एक सप्ताह का समय दिया।
अदालत ने इसके बाद मामले की अगली सुनवाई की तारीख 14 मार्च तय कर दी।
हाईकोर्ट ने 17 फरवरी को डीडीए और डीयूएसआईबी को याचिका में हलफनामा दाखिल करने का निर्देश दिया था।
यह दलील 12 दिसंबर, 2022 के विध्वंस नोटिस को चुनौती देती है, जिसमें डीडीए ने पूरी गोशिया कॉलोनी में एक विध्वंस अभियान चलाने की योजना बनाई थी, जो पांच दशकों से अधिक समय से अस्तित्व में है और इसमें लगभग 4,000 आबादी वाले 600 से अधिक घर हैं।
याचिका में अजय माकन और अन्य बनाम भारत संघ मामले का हवाला देते हुए कहा गया है कि हाईकोर्ट के आदेश के अनुसार झुग्गियों को हटाने के लिए प्रोटोकॉल का पालन किए बिना विध्वंस अभियान नहीं चलाया जा सकता।
याचिका में दावा किया गया है कि जब तक डीयूएसआईबी यह निर्धारित नहीं कर लेता कि झुग्गियां पुनर्वास के लिए योग्य नहीं हैं, तब तक जमीन की मालिक एजेंसी विध्वंस प्रक्रिया शुरू नहीं कर सकती।
हालांकि, डीडीए ने अपने हलफनामे में कहा है कि भूमि महरौली पुरातत्व पार्क में आती है जो दक्षिणी मध्य रिज का हिस्सा है, जहां बड़ी संख्या में ऐतिहासिक विश्व प्रसिद्ध स्मारक मौजूद हैं, जो भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) द्वारा संरक्षित किए जाते हैं।
हलफनामे में कहा गया है कि डीडीए के भू-अभिलेख के अनुसार इस याचिका का भूमि विषय खसरा नंबर 216 और 217 गांव लाधा सराय महरौली, नई दिल्ली लिखा है, जो झूठा है और खसरा नंबर 217 अधिग्रहित भूमि है।
डीडीए के हलफनामे में कहा गया है कि शुरुआत से ही दिल्ली के मास्टर प्लान में जमीन को हरे रंग के रूप में अलग रखा गया है और इसे हरे रंग के रूप में विकसित और बनाए रखा जाना है और इसे महरौली हेरिटेज जोन के तहत संरक्षित किया जाना है।
–आईएएनएस
एसजीके/एएनएम
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नई दिल्ली, 28 फरवरी (आईएएनएस)। दिल्ली हाईकोर्ट ने दिल्ली विकास प्राधिकरण (डीडीए) द्वारा दक्षिण दिल्ली के महरौली इलाके में विध्वंस की कार्रवाई को चुनौती देने वाली याचिका पर मंगलवार को सुनवाई करते हुए गोशिया कॉलोनी सेवा समिति और अन्य के वकील से 467 निवासियों के पहचान दस्तावेजों की एक सूची जमा करने के लिए कहा।
न्यायमूर्ति मनमीत प्रीतम सिंह अरोड़ा की पीठ ने याचिकाकर्ता की वकील अनुप्रधा सिंह को डीडीए और दिल्ली शहरी आश्रय सुधार बोर्ड (डीयूएसआईबी) के वकील को पहचान दस्तावेजों की एक सूची प्रदान करने के लिए कहा।
न्यायाधीश ने उन्हें डीडीए और डीयूएसआईबी द्वारा दायर हलफनामों पर एक प्रत्युत्तर दाखिल करने के लिए भी कहा। इसके लिए अदालत ने उन्हें एक सप्ताह का समय दिया।
अदालत ने इसके बाद मामले की अगली सुनवाई की तारीख 14 मार्च तय कर दी।
हाईकोर्ट ने 17 फरवरी को डीडीए और डीयूएसआईबी को याचिका में हलफनामा दाखिल करने का निर्देश दिया था।
यह दलील 12 दिसंबर, 2022 के विध्वंस नोटिस को चुनौती देती है, जिसमें डीडीए ने पूरी गोशिया कॉलोनी में एक विध्वंस अभियान चलाने की योजना बनाई थी, जो पांच दशकों से अधिक समय से अस्तित्व में है और इसमें लगभग 4,000 आबादी वाले 600 से अधिक घर हैं।
याचिका में अजय माकन और अन्य बनाम भारत संघ मामले का हवाला देते हुए कहा गया है कि हाईकोर्ट के आदेश के अनुसार झुग्गियों को हटाने के लिए प्रोटोकॉल का पालन किए बिना विध्वंस अभियान नहीं चलाया जा सकता।
याचिका में दावा किया गया है कि जब तक डीयूएसआईबी यह निर्धारित नहीं कर लेता कि झुग्गियां पुनर्वास के लिए योग्य नहीं हैं, तब तक जमीन की मालिक एजेंसी विध्वंस प्रक्रिया शुरू नहीं कर सकती।
हालांकि, डीडीए ने अपने हलफनामे में कहा है कि भूमि महरौली पुरातत्व पार्क में आती है जो दक्षिणी मध्य रिज का हिस्सा है, जहां बड़ी संख्या में ऐतिहासिक विश्व प्रसिद्ध स्मारक मौजूद हैं, जो भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) द्वारा संरक्षित किए जाते हैं।
हलफनामे में कहा गया है कि डीडीए के भू-अभिलेख के अनुसार इस याचिका का भूमि विषय खसरा नंबर 216 और 217 गांव लाधा सराय महरौली, नई दिल्ली लिखा है, जो झूठा है और खसरा नंबर 217 अधिग्रहित भूमि है।
डीडीए के हलफनामे में कहा गया है कि शुरुआत से ही दिल्ली के मास्टर प्लान में जमीन को हरे रंग के रूप में अलग रखा गया है और इसे हरे रंग के रूप में विकसित और बनाए रखा जाना है और इसे महरौली हेरिटेज जोन के तहत संरक्षित किया जाना है।
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न्यायमूर्ति मनमीत प्रीतम सिंह अरोड़ा की पीठ ने याचिकाकर्ता की वकील अनुप्रधा सिंह को डीडीए और दिल्ली शहरी आश्रय सुधार बोर्ड (डीयूएसआईबी) के वकील को पहचान दस्तावेजों की एक सूची प्रदान करने के लिए कहा।
न्यायाधीश ने उन्हें डीडीए और डीयूएसआईबी द्वारा दायर हलफनामों पर एक प्रत्युत्तर दाखिल करने के लिए भी कहा। इसके लिए अदालत ने उन्हें एक सप्ताह का समय दिया।
अदालत ने इसके बाद मामले की अगली सुनवाई की तारीख 14 मार्च तय कर दी।
हाईकोर्ट ने 17 फरवरी को डीडीए और डीयूएसआईबी को याचिका में हलफनामा दाखिल करने का निर्देश दिया था।
यह दलील 12 दिसंबर, 2022 के विध्वंस नोटिस को चुनौती देती है, जिसमें डीडीए ने पूरी गोशिया कॉलोनी में एक विध्वंस अभियान चलाने की योजना बनाई थी, जो पांच दशकों से अधिक समय से अस्तित्व में है और इसमें लगभग 4,000 आबादी वाले 600 से अधिक घर हैं।
याचिका में अजय माकन और अन्य बनाम भारत संघ मामले का हवाला देते हुए कहा गया है कि हाईकोर्ट के आदेश के अनुसार झुग्गियों को हटाने के लिए प्रोटोकॉल का पालन किए बिना विध्वंस अभियान नहीं चलाया जा सकता।
याचिका में दावा किया गया है कि जब तक डीयूएसआईबी यह निर्धारित नहीं कर लेता कि झुग्गियां पुनर्वास के लिए योग्य नहीं हैं, तब तक जमीन की मालिक एजेंसी विध्वंस प्रक्रिया शुरू नहीं कर सकती।
हालांकि, डीडीए ने अपने हलफनामे में कहा है कि भूमि महरौली पुरातत्व पार्क में आती है जो दक्षिणी मध्य रिज का हिस्सा है, जहां बड़ी संख्या में ऐतिहासिक विश्व प्रसिद्ध स्मारक मौजूद हैं, जो भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) द्वारा संरक्षित किए जाते हैं।
हलफनामे में कहा गया है कि डीडीए के भू-अभिलेख के अनुसार इस याचिका का भूमि विषय खसरा नंबर 216 और 217 गांव लाधा सराय महरौली, नई दिल्ली लिखा है, जो झूठा है और खसरा नंबर 217 अधिग्रहित भूमि है।
डीडीए के हलफनामे में कहा गया है कि शुरुआत से ही दिल्ली के मास्टर प्लान में जमीन को हरे रंग के रूप में अलग रखा गया है और इसे हरे रंग के रूप में विकसित और बनाए रखा जाना है और इसे महरौली हेरिटेज जोन के तहत संरक्षित किया जाना है।
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न्यायमूर्ति मनमीत प्रीतम सिंह अरोड़ा की पीठ ने याचिकाकर्ता की वकील अनुप्रधा सिंह को डीडीए और दिल्ली शहरी आश्रय सुधार बोर्ड (डीयूएसआईबी) के वकील को पहचान दस्तावेजों की एक सूची प्रदान करने के लिए कहा।
न्यायाधीश ने उन्हें डीडीए और डीयूएसआईबी द्वारा दायर हलफनामों पर एक प्रत्युत्तर दाखिल करने के लिए भी कहा। इसके लिए अदालत ने उन्हें एक सप्ताह का समय दिया।
अदालत ने इसके बाद मामले की अगली सुनवाई की तारीख 14 मार्च तय कर दी।
हाईकोर्ट ने 17 फरवरी को डीडीए और डीयूएसआईबी को याचिका में हलफनामा दाखिल करने का निर्देश दिया था।
यह दलील 12 दिसंबर, 2022 के विध्वंस नोटिस को चुनौती देती है, जिसमें डीडीए ने पूरी गोशिया कॉलोनी में एक विध्वंस अभियान चलाने की योजना बनाई थी, जो पांच दशकों से अधिक समय से अस्तित्व में है और इसमें लगभग 4,000 आबादी वाले 600 से अधिक घर हैं।
याचिका में अजय माकन और अन्य बनाम भारत संघ मामले का हवाला देते हुए कहा गया है कि हाईकोर्ट के आदेश के अनुसार झुग्गियों को हटाने के लिए प्रोटोकॉल का पालन किए बिना विध्वंस अभियान नहीं चलाया जा सकता।
याचिका में दावा किया गया है कि जब तक डीयूएसआईबी यह निर्धारित नहीं कर लेता कि झुग्गियां पुनर्वास के लिए योग्य नहीं हैं, तब तक जमीन की मालिक एजेंसी विध्वंस प्रक्रिया शुरू नहीं कर सकती।
हालांकि, डीडीए ने अपने हलफनामे में कहा है कि भूमि महरौली पुरातत्व पार्क में आती है जो दक्षिणी मध्य रिज का हिस्सा है, जहां बड़ी संख्या में ऐतिहासिक विश्व प्रसिद्ध स्मारक मौजूद हैं, जो भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) द्वारा संरक्षित किए जाते हैं।
हलफनामे में कहा गया है कि डीडीए के भू-अभिलेख के अनुसार इस याचिका का भूमि विषय खसरा नंबर 216 और 217 गांव लाधा सराय महरौली, नई दिल्ली लिखा है, जो झूठा है और खसरा नंबर 217 अधिग्रहित भूमि है।
डीडीए के हलफनामे में कहा गया है कि शुरुआत से ही दिल्ली के मास्टर प्लान में जमीन को हरे रंग के रूप में अलग रखा गया है और इसे हरे रंग के रूप में विकसित और बनाए रखा जाना है और इसे महरौली हेरिटेज जोन के तहत संरक्षित किया जाना है।
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न्यायमूर्ति मनमीत प्रीतम सिंह अरोड़ा की पीठ ने याचिकाकर्ता की वकील अनुप्रधा सिंह को डीडीए और दिल्ली शहरी आश्रय सुधार बोर्ड (डीयूएसआईबी) के वकील को पहचान दस्तावेजों की एक सूची प्रदान करने के लिए कहा।
न्यायाधीश ने उन्हें डीडीए और डीयूएसआईबी द्वारा दायर हलफनामों पर एक प्रत्युत्तर दाखिल करने के लिए भी कहा। इसके लिए अदालत ने उन्हें एक सप्ताह का समय दिया।
अदालत ने इसके बाद मामले की अगली सुनवाई की तारीख 14 मार्च तय कर दी।
हाईकोर्ट ने 17 फरवरी को डीडीए और डीयूएसआईबी को याचिका में हलफनामा दाखिल करने का निर्देश दिया था।
यह दलील 12 दिसंबर, 2022 के विध्वंस नोटिस को चुनौती देती है, जिसमें डीडीए ने पूरी गोशिया कॉलोनी में एक विध्वंस अभियान चलाने की योजना बनाई थी, जो पांच दशकों से अधिक समय से अस्तित्व में है और इसमें लगभग 4,000 आबादी वाले 600 से अधिक घर हैं।
याचिका में अजय माकन और अन्य बनाम भारत संघ मामले का हवाला देते हुए कहा गया है कि हाईकोर्ट के आदेश के अनुसार झुग्गियों को हटाने के लिए प्रोटोकॉल का पालन किए बिना विध्वंस अभियान नहीं चलाया जा सकता।
याचिका में दावा किया गया है कि जब तक डीयूएसआईबी यह निर्धारित नहीं कर लेता कि झुग्गियां पुनर्वास के लिए योग्य नहीं हैं, तब तक जमीन की मालिक एजेंसी विध्वंस प्रक्रिया शुरू नहीं कर सकती।
हालांकि, डीडीए ने अपने हलफनामे में कहा है कि भूमि महरौली पुरातत्व पार्क में आती है जो दक्षिणी मध्य रिज का हिस्सा है, जहां बड़ी संख्या में ऐतिहासिक विश्व प्रसिद्ध स्मारक मौजूद हैं, जो भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) द्वारा संरक्षित किए जाते हैं।
हलफनामे में कहा गया है कि डीडीए के भू-अभिलेख के अनुसार इस याचिका का भूमि विषय खसरा नंबर 216 और 217 गांव लाधा सराय महरौली, नई दिल्ली लिखा है, जो झूठा है और खसरा नंबर 217 अधिग्रहित भूमि है।
डीडीए के हलफनामे में कहा गया है कि शुरुआत से ही दिल्ली के मास्टर प्लान में जमीन को हरे रंग के रूप में अलग रखा गया है और इसे हरे रंग के रूप में विकसित और बनाए रखा जाना है और इसे महरौली हेरिटेज जोन के तहत संरक्षित किया जाना है।
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न्यायमूर्ति मनमीत प्रीतम सिंह अरोड़ा की पीठ ने याचिकाकर्ता की वकील अनुप्रधा सिंह को डीडीए और दिल्ली शहरी आश्रय सुधार बोर्ड (डीयूएसआईबी) के वकील को पहचान दस्तावेजों की एक सूची प्रदान करने के लिए कहा।
न्यायाधीश ने उन्हें डीडीए और डीयूएसआईबी द्वारा दायर हलफनामों पर एक प्रत्युत्तर दाखिल करने के लिए भी कहा। इसके लिए अदालत ने उन्हें एक सप्ताह का समय दिया।
अदालत ने इसके बाद मामले की अगली सुनवाई की तारीख 14 मार्च तय कर दी।
हाईकोर्ट ने 17 फरवरी को डीडीए और डीयूएसआईबी को याचिका में हलफनामा दाखिल करने का निर्देश दिया था।
यह दलील 12 दिसंबर, 2022 के विध्वंस नोटिस को चुनौती देती है, जिसमें डीडीए ने पूरी गोशिया कॉलोनी में एक विध्वंस अभियान चलाने की योजना बनाई थी, जो पांच दशकों से अधिक समय से अस्तित्व में है और इसमें लगभग 4,000 आबादी वाले 600 से अधिक घर हैं।
याचिका में अजय माकन और अन्य बनाम भारत संघ मामले का हवाला देते हुए कहा गया है कि हाईकोर्ट के आदेश के अनुसार झुग्गियों को हटाने के लिए प्रोटोकॉल का पालन किए बिना विध्वंस अभियान नहीं चलाया जा सकता।
याचिका में दावा किया गया है कि जब तक डीयूएसआईबी यह निर्धारित नहीं कर लेता कि झुग्गियां पुनर्वास के लिए योग्य नहीं हैं, तब तक जमीन की मालिक एजेंसी विध्वंस प्रक्रिया शुरू नहीं कर सकती।
हालांकि, डीडीए ने अपने हलफनामे में कहा है कि भूमि महरौली पुरातत्व पार्क में आती है जो दक्षिणी मध्य रिज का हिस्सा है, जहां बड़ी संख्या में ऐतिहासिक विश्व प्रसिद्ध स्मारक मौजूद हैं, जो भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) द्वारा संरक्षित किए जाते हैं।
हलफनामे में कहा गया है कि डीडीए के भू-अभिलेख के अनुसार इस याचिका का भूमि विषय खसरा नंबर 216 और 217 गांव लाधा सराय महरौली, नई दिल्ली लिखा है, जो झूठा है और खसरा नंबर 217 अधिग्रहित भूमि है।
डीडीए के हलफनामे में कहा गया है कि शुरुआत से ही दिल्ली के मास्टर प्लान में जमीन को हरे रंग के रूप में अलग रखा गया है और इसे हरे रंग के रूप में विकसित और बनाए रखा जाना है और इसे महरौली हेरिटेज जोन के तहत संरक्षित किया जाना है।
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न्यायमूर्ति मनमीत प्रीतम सिंह अरोड़ा की पीठ ने याचिकाकर्ता की वकील अनुप्रधा सिंह को डीडीए और दिल्ली शहरी आश्रय सुधार बोर्ड (डीयूएसआईबी) के वकील को पहचान दस्तावेजों की एक सूची प्रदान करने के लिए कहा।
न्यायाधीश ने उन्हें डीडीए और डीयूएसआईबी द्वारा दायर हलफनामों पर एक प्रत्युत्तर दाखिल करने के लिए भी कहा। इसके लिए अदालत ने उन्हें एक सप्ताह का समय दिया।
अदालत ने इसके बाद मामले की अगली सुनवाई की तारीख 14 मार्च तय कर दी।
हाईकोर्ट ने 17 फरवरी को डीडीए और डीयूएसआईबी को याचिका में हलफनामा दाखिल करने का निर्देश दिया था।
यह दलील 12 दिसंबर, 2022 के विध्वंस नोटिस को चुनौती देती है, जिसमें डीडीए ने पूरी गोशिया कॉलोनी में एक विध्वंस अभियान चलाने की योजना बनाई थी, जो पांच दशकों से अधिक समय से अस्तित्व में है और इसमें लगभग 4,000 आबादी वाले 600 से अधिक घर हैं।
याचिका में अजय माकन और अन्य बनाम भारत संघ मामले का हवाला देते हुए कहा गया है कि हाईकोर्ट के आदेश के अनुसार झुग्गियों को हटाने के लिए प्रोटोकॉल का पालन किए बिना विध्वंस अभियान नहीं चलाया जा सकता।
याचिका में दावा किया गया है कि जब तक डीयूएसआईबी यह निर्धारित नहीं कर लेता कि झुग्गियां पुनर्वास के लिए योग्य नहीं हैं, तब तक जमीन की मालिक एजेंसी विध्वंस प्रक्रिया शुरू नहीं कर सकती।
हालांकि, डीडीए ने अपने हलफनामे में कहा है कि भूमि महरौली पुरातत्व पार्क में आती है जो दक्षिणी मध्य रिज का हिस्सा है, जहां बड़ी संख्या में ऐतिहासिक विश्व प्रसिद्ध स्मारक मौजूद हैं, जो भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) द्वारा संरक्षित किए जाते हैं।
हलफनामे में कहा गया है कि डीडीए के भू-अभिलेख के अनुसार इस याचिका का भूमि विषय खसरा नंबर 216 और 217 गांव लाधा सराय महरौली, नई दिल्ली लिखा है, जो झूठा है और खसरा नंबर 217 अधिग्रहित भूमि है।
डीडीए के हलफनामे में कहा गया है कि शुरुआत से ही दिल्ली के मास्टर प्लान में जमीन को हरे रंग के रूप में अलग रखा गया है और इसे हरे रंग के रूप में विकसित और बनाए रखा जाना है और इसे महरौली हेरिटेज जोन के तहत संरक्षित किया जाना है।
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न्यायमूर्ति मनमीत प्रीतम सिंह अरोड़ा की पीठ ने याचिकाकर्ता की वकील अनुप्रधा सिंह को डीडीए और दिल्ली शहरी आश्रय सुधार बोर्ड (डीयूएसआईबी) के वकील को पहचान दस्तावेजों की एक सूची प्रदान करने के लिए कहा।
न्यायाधीश ने उन्हें डीडीए और डीयूएसआईबी द्वारा दायर हलफनामों पर एक प्रत्युत्तर दाखिल करने के लिए भी कहा। इसके लिए अदालत ने उन्हें एक सप्ताह का समय दिया।
अदालत ने इसके बाद मामले की अगली सुनवाई की तारीख 14 मार्च तय कर दी।
हाईकोर्ट ने 17 फरवरी को डीडीए और डीयूएसआईबी को याचिका में हलफनामा दाखिल करने का निर्देश दिया था।
यह दलील 12 दिसंबर, 2022 के विध्वंस नोटिस को चुनौती देती है, जिसमें डीडीए ने पूरी गोशिया कॉलोनी में एक विध्वंस अभियान चलाने की योजना बनाई थी, जो पांच दशकों से अधिक समय से अस्तित्व में है और इसमें लगभग 4,000 आबादी वाले 600 से अधिक घर हैं।
याचिका में अजय माकन और अन्य बनाम भारत संघ मामले का हवाला देते हुए कहा गया है कि हाईकोर्ट के आदेश के अनुसार झुग्गियों को हटाने के लिए प्रोटोकॉल का पालन किए बिना विध्वंस अभियान नहीं चलाया जा सकता।
याचिका में दावा किया गया है कि जब तक डीयूएसआईबी यह निर्धारित नहीं कर लेता कि झुग्गियां पुनर्वास के लिए योग्य नहीं हैं, तब तक जमीन की मालिक एजेंसी विध्वंस प्रक्रिया शुरू नहीं कर सकती।
हालांकि, डीडीए ने अपने हलफनामे में कहा है कि भूमि महरौली पुरातत्व पार्क में आती है जो दक्षिणी मध्य रिज का हिस्सा है, जहां बड़ी संख्या में ऐतिहासिक विश्व प्रसिद्ध स्मारक मौजूद हैं, जो भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) द्वारा संरक्षित किए जाते हैं।
हलफनामे में कहा गया है कि डीडीए के भू-अभिलेख के अनुसार इस याचिका का भूमि विषय खसरा नंबर 216 और 217 गांव लाधा सराय महरौली, नई दिल्ली लिखा है, जो झूठा है और खसरा नंबर 217 अधिग्रहित भूमि है।
डीडीए के हलफनामे में कहा गया है कि शुरुआत से ही दिल्ली के मास्टर प्लान में जमीन को हरे रंग के रूप में अलग रखा गया है और इसे हरे रंग के रूप में विकसित और बनाए रखा जाना है और इसे महरौली हेरिटेज जोन के तहत संरक्षित किया जाना है।
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न्यायमूर्ति मनमीत प्रीतम सिंह अरोड़ा की पीठ ने याचिकाकर्ता की वकील अनुप्रधा सिंह को डीडीए और दिल्ली शहरी आश्रय सुधार बोर्ड (डीयूएसआईबी) के वकील को पहचान दस्तावेजों की एक सूची प्रदान करने के लिए कहा।
न्यायाधीश ने उन्हें डीडीए और डीयूएसआईबी द्वारा दायर हलफनामों पर एक प्रत्युत्तर दाखिल करने के लिए भी कहा। इसके लिए अदालत ने उन्हें एक सप्ताह का समय दिया।
अदालत ने इसके बाद मामले की अगली सुनवाई की तारीख 14 मार्च तय कर दी।
हाईकोर्ट ने 17 फरवरी को डीडीए और डीयूएसआईबी को याचिका में हलफनामा दाखिल करने का निर्देश दिया था।
यह दलील 12 दिसंबर, 2022 के विध्वंस नोटिस को चुनौती देती है, जिसमें डीडीए ने पूरी गोशिया कॉलोनी में एक विध्वंस अभियान चलाने की योजना बनाई थी, जो पांच दशकों से अधिक समय से अस्तित्व में है और इसमें लगभग 4,000 आबादी वाले 600 से अधिक घर हैं।
याचिका में अजय माकन और अन्य बनाम भारत संघ मामले का हवाला देते हुए कहा गया है कि हाईकोर्ट के आदेश के अनुसार झुग्गियों को हटाने के लिए प्रोटोकॉल का पालन किए बिना विध्वंस अभियान नहीं चलाया जा सकता।
याचिका में दावा किया गया है कि जब तक डीयूएसआईबी यह निर्धारित नहीं कर लेता कि झुग्गियां पुनर्वास के लिए योग्य नहीं हैं, तब तक जमीन की मालिक एजेंसी विध्वंस प्रक्रिया शुरू नहीं कर सकती।
हालांकि, डीडीए ने अपने हलफनामे में कहा है कि भूमि महरौली पुरातत्व पार्क में आती है जो दक्षिणी मध्य रिज का हिस्सा है, जहां बड़ी संख्या में ऐतिहासिक विश्व प्रसिद्ध स्मारक मौजूद हैं, जो भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) द्वारा संरक्षित किए जाते हैं।
हलफनामे में कहा गया है कि डीडीए के भू-अभिलेख के अनुसार इस याचिका का भूमि विषय खसरा नंबर 216 और 217 गांव लाधा सराय महरौली, नई दिल्ली लिखा है, जो झूठा है और खसरा नंबर 217 अधिग्रहित भूमि है।
डीडीए के हलफनामे में कहा गया है कि शुरुआत से ही दिल्ली के मास्टर प्लान में जमीन को हरे रंग के रूप में अलग रखा गया है और इसे हरे रंग के रूप में विकसित और बनाए रखा जाना है और इसे महरौली हेरिटेज जोन के तहत संरक्षित किया जाना है।
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न्यायमूर्ति मनमीत प्रीतम सिंह अरोड़ा की पीठ ने याचिकाकर्ता की वकील अनुप्रधा सिंह को डीडीए और दिल्ली शहरी आश्रय सुधार बोर्ड (डीयूएसआईबी) के वकील को पहचान दस्तावेजों की एक सूची प्रदान करने के लिए कहा।
न्यायाधीश ने उन्हें डीडीए और डीयूएसआईबी द्वारा दायर हलफनामों पर एक प्रत्युत्तर दाखिल करने के लिए भी कहा। इसके लिए अदालत ने उन्हें एक सप्ताह का समय दिया।
अदालत ने इसके बाद मामले की अगली सुनवाई की तारीख 14 मार्च तय कर दी।
हाईकोर्ट ने 17 फरवरी को डीडीए और डीयूएसआईबी को याचिका में हलफनामा दाखिल करने का निर्देश दिया था।
यह दलील 12 दिसंबर, 2022 के विध्वंस नोटिस को चुनौती देती है, जिसमें डीडीए ने पूरी गोशिया कॉलोनी में एक विध्वंस अभियान चलाने की योजना बनाई थी, जो पांच दशकों से अधिक समय से अस्तित्व में है और इसमें लगभग 4,000 आबादी वाले 600 से अधिक घर हैं।
याचिका में अजय माकन और अन्य बनाम भारत संघ मामले का हवाला देते हुए कहा गया है कि हाईकोर्ट के आदेश के अनुसार झुग्गियों को हटाने के लिए प्रोटोकॉल का पालन किए बिना विध्वंस अभियान नहीं चलाया जा सकता।
याचिका में दावा किया गया है कि जब तक डीयूएसआईबी यह निर्धारित नहीं कर लेता कि झुग्गियां पुनर्वास के लिए योग्य नहीं हैं, तब तक जमीन की मालिक एजेंसी विध्वंस प्रक्रिया शुरू नहीं कर सकती।
हालांकि, डीडीए ने अपने हलफनामे में कहा है कि भूमि महरौली पुरातत्व पार्क में आती है जो दक्षिणी मध्य रिज का हिस्सा है, जहां बड़ी संख्या में ऐतिहासिक विश्व प्रसिद्ध स्मारक मौजूद हैं, जो भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) द्वारा संरक्षित किए जाते हैं।
हलफनामे में कहा गया है कि डीडीए के भू-अभिलेख के अनुसार इस याचिका का भूमि विषय खसरा नंबर 216 और 217 गांव लाधा सराय महरौली, नई दिल्ली लिखा है, जो झूठा है और खसरा नंबर 217 अधिग्रहित भूमि है।
डीडीए के हलफनामे में कहा गया है कि शुरुआत से ही दिल्ली के मास्टर प्लान में जमीन को हरे रंग के रूप में अलग रखा गया है और इसे हरे रंग के रूप में विकसित और बनाए रखा जाना है और इसे महरौली हेरिटेज जोन के तहत संरक्षित किया जाना है।
–आईएएनएस
एसजीके/एएनएम
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नई दिल्ली, 28 फरवरी (आईएएनएस)। दिल्ली हाईकोर्ट ने दिल्ली विकास प्राधिकरण (डीडीए) द्वारा दक्षिण दिल्ली के महरौली इलाके में विध्वंस की कार्रवाई को चुनौती देने वाली याचिका पर मंगलवार को सुनवाई करते हुए गोशिया कॉलोनी सेवा समिति और अन्य के वकील से 467 निवासियों के पहचान दस्तावेजों की एक सूची जमा करने के लिए कहा।
न्यायमूर्ति मनमीत प्रीतम सिंह अरोड़ा की पीठ ने याचिकाकर्ता की वकील अनुप्रधा सिंह को डीडीए और दिल्ली शहरी आश्रय सुधार बोर्ड (डीयूएसआईबी) के वकील को पहचान दस्तावेजों की एक सूची प्रदान करने के लिए कहा।
न्यायाधीश ने उन्हें डीडीए और डीयूएसआईबी द्वारा दायर हलफनामों पर एक प्रत्युत्तर दाखिल करने के लिए भी कहा। इसके लिए अदालत ने उन्हें एक सप्ताह का समय दिया।
अदालत ने इसके बाद मामले की अगली सुनवाई की तारीख 14 मार्च तय कर दी।
हाईकोर्ट ने 17 फरवरी को डीडीए और डीयूएसआईबी को याचिका में हलफनामा दाखिल करने का निर्देश दिया था।
यह दलील 12 दिसंबर, 2022 के विध्वंस नोटिस को चुनौती देती है, जिसमें डीडीए ने पूरी गोशिया कॉलोनी में एक विध्वंस अभियान चलाने की योजना बनाई थी, जो पांच दशकों से अधिक समय से अस्तित्व में है और इसमें लगभग 4,000 आबादी वाले 600 से अधिक घर हैं।
याचिका में अजय माकन और अन्य बनाम भारत संघ मामले का हवाला देते हुए कहा गया है कि हाईकोर्ट के आदेश के अनुसार झुग्गियों को हटाने के लिए प्रोटोकॉल का पालन किए बिना विध्वंस अभियान नहीं चलाया जा सकता।
याचिका में दावा किया गया है कि जब तक डीयूएसआईबी यह निर्धारित नहीं कर लेता कि झुग्गियां पुनर्वास के लिए योग्य नहीं हैं, तब तक जमीन की मालिक एजेंसी विध्वंस प्रक्रिया शुरू नहीं कर सकती।
हालांकि, डीडीए ने अपने हलफनामे में कहा है कि भूमि महरौली पुरातत्व पार्क में आती है जो दक्षिणी मध्य रिज का हिस्सा है, जहां बड़ी संख्या में ऐतिहासिक विश्व प्रसिद्ध स्मारक मौजूद हैं, जो भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) द्वारा संरक्षित किए जाते हैं।
हलफनामे में कहा गया है कि डीडीए के भू-अभिलेख के अनुसार इस याचिका का भूमि विषय खसरा नंबर 216 और 217 गांव लाधा सराय महरौली, नई दिल्ली लिखा है, जो झूठा है और खसरा नंबर 217 अधिग्रहित भूमि है।
डीडीए के हलफनामे में कहा गया है कि शुरुआत से ही दिल्ली के मास्टर प्लान में जमीन को हरे रंग के रूप में अलग रखा गया है और इसे हरे रंग के रूप में विकसित और बनाए रखा जाना है और इसे महरौली हेरिटेज जोन के तहत संरक्षित किया जाना है।
–आईएएनएस
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नई दिल्ली, 28 फरवरी (आईएएनएस)। दिल्ली हाईकोर्ट ने दिल्ली विकास प्राधिकरण (डीडीए) द्वारा दक्षिण दिल्ली के महरौली इलाके में विध्वंस की कार्रवाई को चुनौती देने वाली याचिका पर मंगलवार को सुनवाई करते हुए गोशिया कॉलोनी सेवा समिति और अन्य के वकील से 467 निवासियों के पहचान दस्तावेजों की एक सूची जमा करने के लिए कहा।
न्यायमूर्ति मनमीत प्रीतम सिंह अरोड़ा की पीठ ने याचिकाकर्ता की वकील अनुप्रधा सिंह को डीडीए और दिल्ली शहरी आश्रय सुधार बोर्ड (डीयूएसआईबी) के वकील को पहचान दस्तावेजों की एक सूची प्रदान करने के लिए कहा।
न्यायाधीश ने उन्हें डीडीए और डीयूएसआईबी द्वारा दायर हलफनामों पर एक प्रत्युत्तर दाखिल करने के लिए भी कहा। इसके लिए अदालत ने उन्हें एक सप्ताह का समय दिया।
अदालत ने इसके बाद मामले की अगली सुनवाई की तारीख 14 मार्च तय कर दी।
हाईकोर्ट ने 17 फरवरी को डीडीए और डीयूएसआईबी को याचिका में हलफनामा दाखिल करने का निर्देश दिया था।
यह दलील 12 दिसंबर, 2022 के विध्वंस नोटिस को चुनौती देती है, जिसमें डीडीए ने पूरी गोशिया कॉलोनी में एक विध्वंस अभियान चलाने की योजना बनाई थी, जो पांच दशकों से अधिक समय से अस्तित्व में है और इसमें लगभग 4,000 आबादी वाले 600 से अधिक घर हैं।
याचिका में अजय माकन और अन्य बनाम भारत संघ मामले का हवाला देते हुए कहा गया है कि हाईकोर्ट के आदेश के अनुसार झुग्गियों को हटाने के लिए प्रोटोकॉल का पालन किए बिना विध्वंस अभियान नहीं चलाया जा सकता।
याचिका में दावा किया गया है कि जब तक डीयूएसआईबी यह निर्धारित नहीं कर लेता कि झुग्गियां पुनर्वास के लिए योग्य नहीं हैं, तब तक जमीन की मालिक एजेंसी विध्वंस प्रक्रिया शुरू नहीं कर सकती।
हालांकि, डीडीए ने अपने हलफनामे में कहा है कि भूमि महरौली पुरातत्व पार्क में आती है जो दक्षिणी मध्य रिज का हिस्सा है, जहां बड़ी संख्या में ऐतिहासिक विश्व प्रसिद्ध स्मारक मौजूद हैं, जो भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) द्वारा संरक्षित किए जाते हैं।
हलफनामे में कहा गया है कि डीडीए के भू-अभिलेख के अनुसार इस याचिका का भूमि विषय खसरा नंबर 216 और 217 गांव लाधा सराय महरौली, नई दिल्ली लिखा है, जो झूठा है और खसरा नंबर 217 अधिग्रहित भूमि है।
डीडीए के हलफनामे में कहा गया है कि शुरुआत से ही दिल्ली के मास्टर प्लान में जमीन को हरे रंग के रूप में अलग रखा गया है और इसे हरे रंग के रूप में विकसित और बनाए रखा जाना है और इसे महरौली हेरिटेज जोन के तहत संरक्षित किया जाना है।
–आईएएनएस
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नई दिल्ली, 28 फरवरी (आईएएनएस)। दिल्ली हाईकोर्ट ने दिल्ली विकास प्राधिकरण (डीडीए) द्वारा दक्षिण दिल्ली के महरौली इलाके में विध्वंस की कार्रवाई को चुनौती देने वाली याचिका पर मंगलवार को सुनवाई करते हुए गोशिया कॉलोनी सेवा समिति और अन्य के वकील से 467 निवासियों के पहचान दस्तावेजों की एक सूची जमा करने के लिए कहा।
न्यायमूर्ति मनमीत प्रीतम सिंह अरोड़ा की पीठ ने याचिकाकर्ता की वकील अनुप्रधा सिंह को डीडीए और दिल्ली शहरी आश्रय सुधार बोर्ड (डीयूएसआईबी) के वकील को पहचान दस्तावेजों की एक सूची प्रदान करने के लिए कहा।
न्यायाधीश ने उन्हें डीडीए और डीयूएसआईबी द्वारा दायर हलफनामों पर एक प्रत्युत्तर दाखिल करने के लिए भी कहा। इसके लिए अदालत ने उन्हें एक सप्ताह का समय दिया।
अदालत ने इसके बाद मामले की अगली सुनवाई की तारीख 14 मार्च तय कर दी।
हाईकोर्ट ने 17 फरवरी को डीडीए और डीयूएसआईबी को याचिका में हलफनामा दाखिल करने का निर्देश दिया था।
यह दलील 12 दिसंबर, 2022 के विध्वंस नोटिस को चुनौती देती है, जिसमें डीडीए ने पूरी गोशिया कॉलोनी में एक विध्वंस अभियान चलाने की योजना बनाई थी, जो पांच दशकों से अधिक समय से अस्तित्व में है और इसमें लगभग 4,000 आबादी वाले 600 से अधिक घर हैं।
याचिका में अजय माकन और अन्य बनाम भारत संघ मामले का हवाला देते हुए कहा गया है कि हाईकोर्ट के आदेश के अनुसार झुग्गियों को हटाने के लिए प्रोटोकॉल का पालन किए बिना विध्वंस अभियान नहीं चलाया जा सकता।
याचिका में दावा किया गया है कि जब तक डीयूएसआईबी यह निर्धारित नहीं कर लेता कि झुग्गियां पुनर्वास के लिए योग्य नहीं हैं, तब तक जमीन की मालिक एजेंसी विध्वंस प्रक्रिया शुरू नहीं कर सकती।
हालांकि, डीडीए ने अपने हलफनामे में कहा है कि भूमि महरौली पुरातत्व पार्क में आती है जो दक्षिणी मध्य रिज का हिस्सा है, जहां बड़ी संख्या में ऐतिहासिक विश्व प्रसिद्ध स्मारक मौजूद हैं, जो भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) द्वारा संरक्षित किए जाते हैं।
हलफनामे में कहा गया है कि डीडीए के भू-अभिलेख के अनुसार इस याचिका का भूमि विषय खसरा नंबर 216 और 217 गांव लाधा सराय महरौली, नई दिल्ली लिखा है, जो झूठा है और खसरा नंबर 217 अधिग्रहित भूमि है।
डीडीए के हलफनामे में कहा गया है कि शुरुआत से ही दिल्ली के मास्टर प्लान में जमीन को हरे रंग के रूप में अलग रखा गया है और इसे हरे रंग के रूप में विकसित और बनाए रखा जाना है और इसे महरौली हेरिटेज जोन के तहत संरक्षित किया जाना है।
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नई दिल्ली, 28 फरवरी (आईएएनएस)। दिल्ली हाईकोर्ट ने दिल्ली विकास प्राधिकरण (डीडीए) द्वारा दक्षिण दिल्ली के महरौली इलाके में विध्वंस की कार्रवाई को चुनौती देने वाली याचिका पर मंगलवार को सुनवाई करते हुए गोशिया कॉलोनी सेवा समिति और अन्य के वकील से 467 निवासियों के पहचान दस्तावेजों की एक सूची जमा करने के लिए कहा।
न्यायमूर्ति मनमीत प्रीतम सिंह अरोड़ा की पीठ ने याचिकाकर्ता की वकील अनुप्रधा सिंह को डीडीए और दिल्ली शहरी आश्रय सुधार बोर्ड (डीयूएसआईबी) के वकील को पहचान दस्तावेजों की एक सूची प्रदान करने के लिए कहा।
न्यायाधीश ने उन्हें डीडीए और डीयूएसआईबी द्वारा दायर हलफनामों पर एक प्रत्युत्तर दाखिल करने के लिए भी कहा। इसके लिए अदालत ने उन्हें एक सप्ताह का समय दिया।
अदालत ने इसके बाद मामले की अगली सुनवाई की तारीख 14 मार्च तय कर दी।
हाईकोर्ट ने 17 फरवरी को डीडीए और डीयूएसआईबी को याचिका में हलफनामा दाखिल करने का निर्देश दिया था।
यह दलील 12 दिसंबर, 2022 के विध्वंस नोटिस को चुनौती देती है, जिसमें डीडीए ने पूरी गोशिया कॉलोनी में एक विध्वंस अभियान चलाने की योजना बनाई थी, जो पांच दशकों से अधिक समय से अस्तित्व में है और इसमें लगभग 4,000 आबादी वाले 600 से अधिक घर हैं।
याचिका में अजय माकन और अन्य बनाम भारत संघ मामले का हवाला देते हुए कहा गया है कि हाईकोर्ट के आदेश के अनुसार झुग्गियों को हटाने के लिए प्रोटोकॉल का पालन किए बिना विध्वंस अभियान नहीं चलाया जा सकता।
याचिका में दावा किया गया है कि जब तक डीयूएसआईबी यह निर्धारित नहीं कर लेता कि झुग्गियां पुनर्वास के लिए योग्य नहीं हैं, तब तक जमीन की मालिक एजेंसी विध्वंस प्रक्रिया शुरू नहीं कर सकती।
हालांकि, डीडीए ने अपने हलफनामे में कहा है कि भूमि महरौली पुरातत्व पार्क में आती है जो दक्षिणी मध्य रिज का हिस्सा है, जहां बड़ी संख्या में ऐतिहासिक विश्व प्रसिद्ध स्मारक मौजूद हैं, जो भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) द्वारा संरक्षित किए जाते हैं।
हलफनामे में कहा गया है कि डीडीए के भू-अभिलेख के अनुसार इस याचिका का भूमि विषय खसरा नंबर 216 और 217 गांव लाधा सराय महरौली, नई दिल्ली लिखा है, जो झूठा है और खसरा नंबर 217 अधिग्रहित भूमि है।
डीडीए के हलफनामे में कहा गया है कि शुरुआत से ही दिल्ली के मास्टर प्लान में जमीन को हरे रंग के रूप में अलग रखा गया है और इसे हरे रंग के रूप में विकसित और बनाए रखा जाना है और इसे महरौली हेरिटेज जोन के तहत संरक्षित किया जाना है।
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नई दिल्ली, 28 फरवरी (आईएएनएस)। दिल्ली हाईकोर्ट ने दिल्ली विकास प्राधिकरण (डीडीए) द्वारा दक्षिण दिल्ली के महरौली इलाके में विध्वंस की कार्रवाई को चुनौती देने वाली याचिका पर मंगलवार को सुनवाई करते हुए गोशिया कॉलोनी सेवा समिति और अन्य के वकील से 467 निवासियों के पहचान दस्तावेजों की एक सूची जमा करने के लिए कहा।
न्यायमूर्ति मनमीत प्रीतम सिंह अरोड़ा की पीठ ने याचिकाकर्ता की वकील अनुप्रधा सिंह को डीडीए और दिल्ली शहरी आश्रय सुधार बोर्ड (डीयूएसआईबी) के वकील को पहचान दस्तावेजों की एक सूची प्रदान करने के लिए कहा।
न्यायाधीश ने उन्हें डीडीए और डीयूएसआईबी द्वारा दायर हलफनामों पर एक प्रत्युत्तर दाखिल करने के लिए भी कहा। इसके लिए अदालत ने उन्हें एक सप्ताह का समय दिया।
अदालत ने इसके बाद मामले की अगली सुनवाई की तारीख 14 मार्च तय कर दी।
हाईकोर्ट ने 17 फरवरी को डीडीए और डीयूएसआईबी को याचिका में हलफनामा दाखिल करने का निर्देश दिया था।
यह दलील 12 दिसंबर, 2022 के विध्वंस नोटिस को चुनौती देती है, जिसमें डीडीए ने पूरी गोशिया कॉलोनी में एक विध्वंस अभियान चलाने की योजना बनाई थी, जो पांच दशकों से अधिक समय से अस्तित्व में है और इसमें लगभग 4,000 आबादी वाले 600 से अधिक घर हैं।
याचिका में अजय माकन और अन्य बनाम भारत संघ मामले का हवाला देते हुए कहा गया है कि हाईकोर्ट के आदेश के अनुसार झुग्गियों को हटाने के लिए प्रोटोकॉल का पालन किए बिना विध्वंस अभियान नहीं चलाया जा सकता।
याचिका में दावा किया गया है कि जब तक डीयूएसआईबी यह निर्धारित नहीं कर लेता कि झुग्गियां पुनर्वास के लिए योग्य नहीं हैं, तब तक जमीन की मालिक एजेंसी विध्वंस प्रक्रिया शुरू नहीं कर सकती।
हालांकि, डीडीए ने अपने हलफनामे में कहा है कि भूमि महरौली पुरातत्व पार्क में आती है जो दक्षिणी मध्य रिज का हिस्सा है, जहां बड़ी संख्या में ऐतिहासिक विश्व प्रसिद्ध स्मारक मौजूद हैं, जो भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) द्वारा संरक्षित किए जाते हैं।
हलफनामे में कहा गया है कि डीडीए के भू-अभिलेख के अनुसार इस याचिका का भूमि विषय खसरा नंबर 216 और 217 गांव लाधा सराय महरौली, नई दिल्ली लिखा है, जो झूठा है और खसरा नंबर 217 अधिग्रहित भूमि है।
डीडीए के हलफनामे में कहा गया है कि शुरुआत से ही दिल्ली के मास्टर प्लान में जमीन को हरे रंग के रूप में अलग रखा गया है और इसे हरे रंग के रूप में विकसित और बनाए रखा जाना है और इसे महरौली हेरिटेज जोन के तहत संरक्षित किया जाना है।
–आईएएनएस
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नई दिल्ली, 28 फरवरी (आईएएनएस)। दिल्ली हाईकोर्ट ने दिल्ली विकास प्राधिकरण (डीडीए) द्वारा दक्षिण दिल्ली के महरौली इलाके में विध्वंस की कार्रवाई को चुनौती देने वाली याचिका पर मंगलवार को सुनवाई करते हुए गोशिया कॉलोनी सेवा समिति और अन्य के वकील से 467 निवासियों के पहचान दस्तावेजों की एक सूची जमा करने के लिए कहा।
न्यायमूर्ति मनमीत प्रीतम सिंह अरोड़ा की पीठ ने याचिकाकर्ता की वकील अनुप्रधा सिंह को डीडीए और दिल्ली शहरी आश्रय सुधार बोर्ड (डीयूएसआईबी) के वकील को पहचान दस्तावेजों की एक सूची प्रदान करने के लिए कहा।
न्यायाधीश ने उन्हें डीडीए और डीयूएसआईबी द्वारा दायर हलफनामों पर एक प्रत्युत्तर दाखिल करने के लिए भी कहा। इसके लिए अदालत ने उन्हें एक सप्ताह का समय दिया।
अदालत ने इसके बाद मामले की अगली सुनवाई की तारीख 14 मार्च तय कर दी।
हाईकोर्ट ने 17 फरवरी को डीडीए और डीयूएसआईबी को याचिका में हलफनामा दाखिल करने का निर्देश दिया था।
यह दलील 12 दिसंबर, 2022 के विध्वंस नोटिस को चुनौती देती है, जिसमें डीडीए ने पूरी गोशिया कॉलोनी में एक विध्वंस अभियान चलाने की योजना बनाई थी, जो पांच दशकों से अधिक समय से अस्तित्व में है और इसमें लगभग 4,000 आबादी वाले 600 से अधिक घर हैं।
याचिका में अजय माकन और अन्य बनाम भारत संघ मामले का हवाला देते हुए कहा गया है कि हाईकोर्ट के आदेश के अनुसार झुग्गियों को हटाने के लिए प्रोटोकॉल का पालन किए बिना विध्वंस अभियान नहीं चलाया जा सकता।
याचिका में दावा किया गया है कि जब तक डीयूएसआईबी यह निर्धारित नहीं कर लेता कि झुग्गियां पुनर्वास के लिए योग्य नहीं हैं, तब तक जमीन की मालिक एजेंसी विध्वंस प्रक्रिया शुरू नहीं कर सकती।
हालांकि, डीडीए ने अपने हलफनामे में कहा है कि भूमि महरौली पुरातत्व पार्क में आती है जो दक्षिणी मध्य रिज का हिस्सा है, जहां बड़ी संख्या में ऐतिहासिक विश्व प्रसिद्ध स्मारक मौजूद हैं, जो भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) द्वारा संरक्षित किए जाते हैं।
हलफनामे में कहा गया है कि डीडीए के भू-अभिलेख के अनुसार इस याचिका का भूमि विषय खसरा नंबर 216 और 217 गांव लाधा सराय महरौली, नई दिल्ली लिखा है, जो झूठा है और खसरा नंबर 217 अधिग्रहित भूमि है।
डीडीए के हलफनामे में कहा गया है कि शुरुआत से ही दिल्ली के मास्टर प्लान में जमीन को हरे रंग के रूप में अलग रखा गया है और इसे हरे रंग के रूप में विकसित और बनाए रखा जाना है और इसे महरौली हेरिटेज जोन के तहत संरक्षित किया जाना है।