रांची, 2 मई (आईएएनएस)। हॉकी इंडिया ने गुरुवार को जिस सलीमा टेटे को इंडियन महिला हॉकी टीम का कप्तान बनाया है, उनका इस मुकाम पर पहुंचने का सफर बेहद संघर्ष भरा रहा है।
झारखंड के सिमडेगा जिले के एक छोटे से गांव बड़की छापर की रहने वाली सलीमा का करियर बनाने के लिए उसकी मां ने रसोइया और बड़ी बहन ने दूसरों के घरों में बर्तन तक मांजा है।
हॉकी इंडिया ने एफआईएच प्रो लीग के बेल्जियम और इंग्लैंड चरण के लिए जिस 24 सदस्यीय भारतीय महिला हॉकी टीम की घोषणा की है, उसमें नई कैप्टन सलीमा सहित झारखंड की चार खिलाड़ी शामिल हैं। इनमें निक्की प्रधान, संगीता कुमारी एवं दीपिका सोरेंग हैं और इन सभी के संघर्षों की दास्तान कमोबेश एक जैसी है।
वर्ष 2023 में टोक्यो ओलंपिक में जब भारतीय महिला हॉकी टीम क्वार्टर फाइनल मुकाबला खेल रही थी, तब इस टीम में शामिल सलीमा टेटे के पैतृक घर में एक अदद टीवी तक नहीं था कि उनके घरवाले उन्हें खेलते हुए देख सकें। इसकी जानकारी जब झारखंड के तत्कालीन मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन को हुई तो तत्काल उनके घर में 43 इंच का स्मार्ट टीवी और इन्वर्टर लगवाया गया था।
उनका परिवार हाल तक गांव में एक कच्चे घर में रहता था। उनके पिता सुलक्षण टेटे भी स्थानीय स्तर पर हॉकी खेलते रहे हैं। उनकी बेटी सलीमा ने जब गांव के मैदान में हॉकी खेलना शुरू किया था, तब उनके पास एक अदद हॉकी स्टिक भी नहीं थी। वह बांस की खपच्ची से बने स्टिक से खेलती थीं। सलीमा के हॉकी के सपनों को पूरा करने के लिए उनकी बड़ी बहन अनिमा ने बेंगलुरू से लेकर सिमडेगा तक दूसरों के घरों में बर्तन मांजने का काम किया। वह भी तब, जब अनिमा खुद एक बेहतरीन हॉकी प्लेयर थीं।
उन्होंने अपनी बहनों के लिए पैसे जुटाने में अपना करियर कुर्बान कर दिया। अनिमा और सलीमा की बहन महिमा टेटे भी झारखंड की जूनियर महिला हॉकी टीम में खेलती हैं। सलीमा की प्रतिभा नवंबर 2013 में पहली बार तब पहचानी गई, जब उन्हें झारखंड सरकार की ओर से सिमडेगा में चलाए जाने वाले आवासीय हॉकी सेंटर के लिए चुना गया। फिर, वह अपनी मेहनत और प्रतिभा की बदौलत पहले स्टेट और फिर नेशनल टीम में चुनी गईं।
अंतरराष्ट्रीय स्तर पर उनका सफर 2016 में शुरू हुआ, जब उन्हें जूनियर भारतीय महिला टीम के लिए चुना गया। इसके बाद टोक्यो ओलंपिक, विश्व कप, कॉमनवेल्थ गेम्स सहित कई अंतरराष्ट्रीय हॉकी प्रतियोगिताओं में उन्होंने देश की ओर से खेलते हुए शानदार प्रदर्शन किया। टोक्यो ओलंपिक में उनके खेल की प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी सराहना की थी।
पिछले साल एशियन हॉकी फेडरेशन ने इंडियन महिला हॉकी प्लेयर सलीमा टेटे को अगले दो वर्षों के लिए एथलेटिक एंबेसडर नियुक्त किया। उन्हें फेडरेशन ने एशिया के ‘इमर्जिंग प्लेयर ऑफ द ईयर’ के अवॉर्ड से भी नवाजा था। टीम में जगह बनाने वाली निक्की प्रधान झारखंड के खूंटी की रहने वाली हैं। वर्ष 2003-04 में स्कूल में पढ़ाई करते हुए जब उन्होंने पहली बार हॉकी खेलने का सपना देखा था, तब उसके घर की माली हालत ऐसी थी कि उसके लिए एक अदद हॉकी स्टीक तक नहीं खरीदी जा सकी थी।
निक्की के पिता कांस्टेबल हैं। तनख्वाह ज्यादा नहीं मिलती थी। निक्की खुद मां के साथ घर से लेकर खेतों तक में काम करती और समय निकालकर गांव के उबड़-खाबड़ खेतों में सहेलियों के साथ हॉकी खेलती। उसने बांस से छिलकर बनाई गई स्टिक के साथ अपनी शुरुआत की।
दरअसल, उसके स्कूल में एक कार्यक्रम में कुछ इंटरनेशनल हॉकी प्लेयर आए थे। उन्हें देखकर निक्की ने हॉकी खेलने का सपना देखा। उसने अपनी लगन और मेहनत से 2006 में रांची के गवर्नमेंट हाई स्कूल में दाखिला लेकर वहां के हॉकी ट्रेनिंग सेंटर में जॉइन किया। उसके बाद उन्होंने पीछे मुड़कर नहीं देखा। फॉरवर्ड खिलाड़ी के रूप में शामिल दीपिका सोरेंग सिमडेगा जिले के केरसई प्रखंड के करंगागुड़ी सेमरटोली की रहने वाली हैं।
दीपिका जब छोटी थीं तब ही उनके पिता दानियल सोरेंग की हत्या हो गई थी। इसके बाद बेबस मां फ्रिस्का सोरेंग ने राउरकेला में दिहाड़ी मजदूरी कर अपनी संतानों की परवरिश की। दीपिका सोरेंग के हॉकी के प्रति झुकाव को देखते हुए उन्होंने जी जान लगा दी। फॉरवर्ड प्लेयर संगीता भी केरसई प्रखंड अंतर्गत करंगागुड़ी नवाटोली गांव की रहने वाली है। उसके माता-पिता लखमनी देवी एवं रंजीत मांझी आज भी खेती कर परिवार चलाते हैं।
संगीता ने भी बांस की बनी लकड़ियों से नंगे पांव हॉकी खेलना शुरू किया था। दो साल पहले संगीता को रेलवे में तृतीय श्रेणी की नौकरी मिली है। अब इस नौकरी की बदौलत वह घर-परिवार का जरूरी खर्च और बहनों की पढ़ाई का खर्च उठा ले रही हैं। रेलवे की नौकरी का पहला वेतन जब उसे मिला था, तो वह अपने गांव के बच्चों के लिए हॉकी बॉल लेकर पहुंची थीं।
2016 में पहली बार इंडिया के कैंप में उसका सेलेक्शन हुआ और इसी साल उन्होंने स्पेन में आयोजित फाइव नेशन जूनियर महिला हॉकी टूर्नामेंट में शानदार प्रदर्शन किया। फिर, 2016 में ही थाईलैंड में आयोजित अंडर-18 एशिया कप में भारतीय महिला टीम ने कांस्य पदक जीता था। भारत की ओर से इस प्रतियोगिता में कुल 14 गोल किए गए थे, जिसमें से 8 गोल अकेले संगीता के नाम थे।
–आईएएनएस
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