प्रयागराज, 14 जनवरी (आईएएनएस)। माघ मेला सोमवार से शुरू होने जा रहा है। ऐसे में ‘भूले भटके शिविर’, जो कि 53 दिनों तक चलने वाले धार्मिक मेले का एक निर्विवाद हिस्सा है, एक बड़े बदलाव से गुजरेगा।
शिविर के आयोजक उमेश तिवारी ने कहा, ”पहली बार, खोया-पाया शिविर में शिविर के स्वयंसेवकों के लिए वेब-कैमरा और इंटरनेट सेवाओं के साथ कंप्यूटर सेट होंगे ताकि वे पुलिस अधिकारियों के साथ लगातार संपर्क में रह सकें और लापता व्यक्तियों को उनके परिजनों से मिलवाने में मदद कर सकें।”
शिविर मेले का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। माघ मेला देश के सभी हिस्सों से लाखों भक्तों को आकर्षित करता है, जिनमें से अधिकांश बुजुर्ग और अशिक्षित हैं। बड़ी संख्या में श्रद्धालु बस्ती में अपना रास्ता भूल जाते हैं। शिविर ने 1946 से अब तक 15.32 लाख लोगों को उनके परिवारों से दोबारा मिलवाया है।
उमेश तिवारी ने कहा कि अब मोबाइल फोन के साथ कई लोगों ने सीख लिया है कि खो जाने की स्थिति में अपने परिवार और दोस्तों तक कैसे पहुंचा जाए। लेकिन अभी भी हजारों लोग हैं जो हम पर निर्भर हैं।
उन्होंने कहा, ”हम खोए हुए लोगों की मदद के लिए मेला परिसर में 50 सक्रिय स्वयंसेवकों को कंप्यूटर सेट देने की योजना बना रहे हैं। शिविर त्रिवेणी रोड पर लगेगा और खोए हुए लोगों को उनके परिवारों से मिलाने के लिए सोशल मीडिया का ज्यादा इस्तेमाल किया जाएगा।”
इस साल स्वयंसेवक लापता व्यक्तियों के नाम, पते और तस्वीरों सहित डेटा भी संकलित करेंगे। लापता व्यक्तियों के स्थानों का पता लगाने के लिए अन्य जिलों के पुलिस अधिकारियों के साथ डेटा/विवरण भी साझा किया जाएगा।
पहले काम मैन्युअल रूप से किया जाता था, और डेटा संकलित करना कठिन था। एक बार जब स्वयंसेवक लापता व्यक्तियों की तस्वीरें और अन्य विवरण लेने में सक्षम हो जाएंगे, तो वे परिवारों का पता लगाने के लिए शहर और पड़ोसी जिलों की पुलिस से भी मदद ले सकेंगे।
मेला अधिकारियों ने मेला परिसर में दो स्थानों पर शिविर लगाने और स्वयंसेवकों को सभी प्रकार की सहायता प्रदान करने की भी योजना बनाई है। शिविर की शुरुआत 1946 में अस्सी वर्षीय राजा राम तिवारी ने की थी। तब से, भूले भटके शिविर मेले का एक अभिन्न अंग बन गए। इसने महाकुंभ, अर्ध कुंभ और 55 से अधिक माघ मेलों के दौरान 21,853 बच्चों सहित 15.32 लाख लोगों को उनके परिवारों से मिलाया है।
मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, बिहार और अन्य राज्यों सहित विभिन्न राज्यों के स्वयंसेवक इस उद्देश्य का हिस्सा बनने के लिए संगठन में शामिल होते हैं।
पिछले पांच वर्षों से शिविर के लिए काम कर रहे एक स्वयंसेवक ने कहा, “जब कोई व्यक्ति स्वयंसेवकों के प्रयासों से अपने परिवार के सदस्य से मिलता है, तो ऐसा लगता है जैसे भगवान ने प्रार्थना स्वीकार कर ली है।”
–आईएएनएस
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