आइजोल, 12 मई (आईएएनएस)। कभी कांग्रेस का गढ़ रहे मिजोरम में अब मिजो नेशनल फ्रंट (एमएनएफ) का शासन है, जबकि ईसाई बहुल पहाड़ी राज्य में भाजपा धीरे-धीरे एक मजबूत राजनीतिक ताकत बन रही है।
अंडरग्राउंड संगठन एमएनएफ राजनीतिक दल में बदल गया है और अब भाजपा के नेतृत्व वाले एनडीए और असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा के नेतृत्व वाले उत्तर पूर्व लोकतांत्रिक गठबंधन (एनईडीए) का घटक है। इसने 1987, 1998, 2003 और 2018 में मिजोरम में विधानसभा चुनाव जीते हैं जबकि शेष विधानसभा चुनावों 2013, 2008, 1993 और 1989 में कांग्रेस विजयी रही थी।
दिग्गज कांग्रेस नेता ललथनहवला ने 1993 में जनता दल के साथ गठबंधन सरकार का नेतृत्व किया था। 1998 में पार्टी अध्यक्ष जोरमथांगा के नेतृत्व में एमएनएफ ने चुनाव जीता लेकिन मिजो पीपुल्स कॉन्फ्रेंस के साथ गठबंधन सरकार बनाई। हालांकि, स्थानीय पार्टी ने थोड़े ही समय में सरकार से नाता तोड़ लिया था।
कांग्रेस के दिग्गज नेता ललथनहवला ने 1998 और 2018 को छोड़कर सभी विधानसभा चुनाव जीते थे। वह मिजोरम में कांग्रेस के नेतृत्व वाली सभी चार सरकारों के मुख्यमंत्री थे। ललथनहवला 2018 के विधानसभा चुनावों के दौरान मुख्यमंत्री थे, इस चुनाव में चुनाव में वह अपने गृह क्षेत्र सेरछिप और चम्फाई दक्षिण दोनों से हार गए थे।
1973 से पूर्व प्रधानमंत्री स्वर्गीय राजीव गांधी के घनिष्ठ मित्र ललथनहवला कांग्रेस पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष भी रहे हैं। 1998 में ही ललथनहवला सेरछिप से हार गए थे, 1973 के बाद से किसी विधानसभा चुनाव में उनकी यह पहली और एकमात्र हार थी।
86 वर्षीय ललथनहवला ने नवंबर 2021 में राजनीति से संन्यास ले लिया था और इस साल के अंत में होने वाले अगले विधानसभा चुनाव नहीं लड़ने की घोषणा भी की थी।
मजबूत क्षेत्रीय राजनीतिक स्थान के साथ राज्य पार्टी के रूप में एमएनएफ का सीमावर्ती राज्य में मजबूत आधार है। पार्टी ने कांग्रेस द्वारा खोई हुई जमीन पर कब्जा कर लिया है, जो चार दशकों से अधिक समय तक राज्य में राजनीतिक रूप से हावी रही।
ईसाई और आदिवासी बहुल मिजोरम सहित अधिकांश पूर्वोत्तर राज्यों में कांग्रेस के हारने के बाद, भाजपा धीरे-धीरे एक मजबूत राजनीतिक ताकत बन रही है। भाजपा ने 8 से 15 सीटों पर अपने उम्मीदवार को उतारकर 1993 से 40 सदस्यीय मिजोरम विधानसभा के लिए असफल चुनाव लड़ना शुरू किया, लेकिन 2013 तक पार्टी अपना खाता तक नहीं खोल सकी।
भाजपा पार्टी ने 1993 के चुनावों में 3.11 प्रतिशत वोट हासिल किए और तब से इसने धीरे-धीरे अपना वोट शेयर बढ़ाया है। साल 2018 के विधानसभा चुनावों में भाजपा ने 39 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे थे, लेकिन एक सीट पर ही जीत हासिल की। भाजपा को 8.09 प्रतिशत वोट मिले थे।
40 सदस्यीय मिजोरम विधानसभा में पहली बार अपना खाता खोलते हुए, भाजपा विधायक बुद्ध धन चकमा 2018 के चुनावों में तुइचावंग विधानसभा सीट से राज्य विधानसभा के लिए चुने गए थे।
साल 2018 के चुनाव के बाद से भाजपा अल्पसंख्यक कार्ड खेल रही है। भाजपा को बीते साल स्वायत्त जिला परिषदों के चुनावों में सकारात्मक चुनावी परिणाम मिले।
इस साल के अंत में होने वाले अगले विधानसभा चुनावों से पहले और अगले साल होने वाले लोकसभा चुनावों से पहले आदिवासी स्वायत्त जिला परिषदों के हालिया चुनावों में भाजपा की सफलता ने भगवा पार्टी के आत्मविश्वास को बढ़ाते हुए कांग्रेस और सत्तारूढ़ एमएनएफ सहित स्थानीय दलों को चिंतित कर दिया है।
भाजपा ने पिछले महीने पहली बार मारा स्वायत्त जिला परिषद के तहत ग्राम परिषदों (वीसी) के चुनावों में जीत हासिल की थी। भाजपा ने 99 वीसी में से 41 में पर बहुमत हासिल किया जबकि सत्तारूढ़ एमएनएफ ने 25 वीसी में बहुमत हासिल किया।
कांग्रेस और जोरम पीपुल्स मूवमेंट को क्रमश: आठ और दो वीसी में बहुमत मिला, जबकि निर्दलीय उम्मीदवारों ने एक वीसी जीता और 22 वीसी में स्पष्ट बहुमत नहीं है।
कुल 492 ग्राम परिषद सीटों में से भाजपा ने 232 सीटों पर जीत हासिल की, एमएनएफ ने 127 सीटों पर जीत हासिल की। जबिक कांग्रेस ने 18 अप्रैल को एमएडीसी के तहत ग्राम परिषदों के चुनाव में सीटें हासिल कीं थीं।
पिछले साल मई में, दक्षिण मिजोरम के सियाहा जिले में 25 सदस्यीय मारा स्वायत्त जिला परिषद चुनावों में भाजपा सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरी थी। उसे 12 सीटें मिलीं थीं जो पूर्ण बहुमत से एक सीट कम थी।
विभिन्न आदिवासी समुदायों के समग्र सामाजिक-आर्थिक विकास के लिए असम, त्रिपुरा और मेघालय की तरह मिजोरम में तीन आदिवासी स्वायत्त निकाय लाई स्वायत्त जिला परिषद (एलएडीसी), चकमा स्वायत्त जिला परिषद (सीएडीसी) और मारा स्वायत्त जिला परिषद (एमएडीसी) हैं।
एमएनएफ, कांग्रेस और भाजपा के अलावा, जोरम पीपुल्स मूवमेंट (जेडपीएम) ने साल 2018 के विधानसभा चुनावों में 35 सीटों पर चुनाव लड़ा था। पार्टी ने 8 सीटों पर जीत दर्ज की थी। यह पार्टी अगले विधानसभा चुनावों में अन्य दलों के लिए एक बड़ी चुनौती होगी।
जेडपीएम के कार्यकारी अध्यक्ष के. सपदंगा भी अगले विधानसभा चुनाव में पार्टी की संभावनाओं को लेकर काफी आश्वस्त हैं। हम नियमित रूप से अपने पार्टी संगठन में सुधार कर रहे हैं और पारदर्शिता बनाए रख रहे हैं ताकि हमारी पार्टी में लोगों का विश्वास बरकरार रहे।
–आईएएनएस
एफजेड/एएनएम