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मुंबई नाइट्स : संजीव पालीवाल का यह उपन्यास जागती-इतराती मायानगरी के स्याह काले रंग और व्यवस्था की साजिश की पोल खोल  

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October 26, 2024
in राष्ट्रीय
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मुंबई नाइट्स : संजीव पालीवाल का यह उपन्यास जागती-इतराती मायानगरी के स्याह काले रंग और व्यवस्था की साजिश की पोल खोल  
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नई दिल्ली, 26 अक्टूबर (आईएएनएस)। उपन्यास एक ऐसा शब्द जाल जिसके ताने-बाने को ऐसे बुना जाता है कि यह पाठक को अपने से स्वतः जोड़ ले। जिसके पन्नों पर छपे शब्द पाठक के मन के अंदर चित्रों का माध्यम तैयार करे। पाठक तब तक उसके जादू से अपने आप को वापस नहीं निकाल पाते हैं, जब तक आप उपन्यास के पन्नों के अंतिम पायदान तक ना पहुंच जाएं।  ‘नैना’, ‘पिशाच’ और ‘ये इश्क नहीं आसां’ जैसे चर्चित उपन्यासों के बाद अब एक और उपन्यास लेकर पाठकों के बीच आए हैं लेखक-पत्रकार संजीव पालीवाल। अपने तीन पूर्व उपन्यासों के जरिए पहले से ही पाठकों के दिलों में जगह बना चुके क्राइम थ्रिलर के युवराज संजीव पालीवाल का यह उपन्यास मायानगरी की वह हकीकत बयां करती है जिससे कम ही लोग वाकिफ हैं।

वैसे तो जिसने भी क्राइम फ़िक्शन के बादशाह सुरेन्द्र मोहन पाठक के उपन्यास पढ़े हैं उनके लिए संजीव पालीवाल की ह किताब इस त्योहारी मौसम में बोनस से कम नहीं है। इस उपन्यास को पढ़ते हुए आपको मायानगरी की चमकीली रातें याद आ जाएंगी। यह उपन्यास आपके सामने यह सिद्ध करने में कामयाब हो जाएगी की मुंबई कभी सोती नहीं है।

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संजीव पालीवाल की इस नई कृति ‘मुंबई नाइट्स’ को पढ़कर उनके द्वारा किया जा रहा क्लेम कि मैं साहित्यिक उपन्यास नहीं लिखता हूं, आपको झूठा लगेगा। क्योंकि कथानक के सारे किरदार भले क्राइम, थ्रिलर, फिक्शन के इर्द-गिर्द घूमते हों लेकिन संजीव पालीवाल ने जिस साहित्यिक शब्दावलियों का इस्तेमाल इस उपन्यास के पन्नों पर किया है उससे तो साफ पता चलता है कि वह लिखते समय उसी जोन में रहते हैं। मानो कोई सामाजिक उपन्यासकार इसे लिख रहा हो। कहानी के किरदार एक के बाद एक दूसरे के साथ इस तरह से जोड़े गए हैं कि आपका मन ही नहीं होगा कि उपन्यास के पन्नों पर खींची गई शब्दों की लकीरें अभी समाप्त हो। आप निरंतर उन शब्दों के प्रवाह के साथ बहते चले जाएंगे।

इस उपन्यास में किरदारों की तस्वीरों को उकेरते संजीव पालीवाल के शब्द केवल अपराध की गहरी छानबीन नहीं करते बल्कि मानवीय व्यवहारों की भी पड़ताल करते चलते हैं। वैसे भी क्राइम थ्रिलर उपन्यास में आपको शायद ही अपराध की कहानी ऐसी मिले जो शुरू से अंत तक उसके साथ जुड़ी हो बल्कि वह तो अंततः परिणाम तक पहुंचकर हीं आपको चौंकाती है। ऐसे में इन उपन्यासों की खासियत भी यही मानी गई है। लेकिन इस उपन्यास में तो क्राइम थ्रिलर का मायने ही आपको बदला हुआ मिलेगा। यानी यह सपाट पृष्ठभूमि पर रची बसी कहानी तो बिल्कुल नहीं है बल्कि यह बेहद रोचक होने के साथ इसमें कथा प्रवाह है, उत्सुकता का बेहतर मिश्रण है जो आपको उपन्यास के हर पन्नों पर रोके रखता है।

वैसे क्राइम थ्रिलर लिखने में हमेशा इस बात का ध्यान रखा जाता है कि शुरुआत में एक प्रश्न पूछा जाए और अंत में उसका उत्तर दर्शकों को मिले। लेकिन संजीव पालीवाल की मुंबई नाइट्स इस सबसे अलग है जो पहले पन्ने से सवाल उठाती है और अंत तक जवाब की खोज में बांधे रखती है।

इस उपन्यास में मुख्य किरदार के तौर पर मुंबई शहर है। मुंबई जो एक जटिल शहर है, मायानगरी है, रहस्य लोक है, सपनों की जमीन है और जिसे समझना आसान नहीं है। उसके जाल में फंसकर हर दिन लाखों अरमान दम तोड़ रहे हैं। यानी इस मायानगरी की माया को समझना इतना आसान नहीं है। लेकिन, अपनी सहज और समृद्ध लेखन शैली से संजीव पालीवाल इस इस मायानगरी की परत दर परत परदे हटाते चले जाते हैं।

‘मुंबई नाइट्स’ भी रहस्मय सुरागों और अप्रत्याशित मोड़ से भरी है, किताब के अंत तक पहुंच कर ही आप असली अपराधी की पहचान कर पाएंगे। इस उपन्यास का तो मुख्य किरदार यानी शहर मुंबई ही साजिश कर्ता है, मतलब यहां किरदारों में कोई एक अपराधी नहीं, एक व्यक्ति नहीं, एक वजह नहीं बल्कि पूरी व्यवस्था साजिश करती नजर आएगी। यानी ऊपर से लेकर नीचे तक व्यवस्थित अपराध की एक श्रृंखला आपको दिखेगी।

मायानगरी में दबाए जाते, कुचले जाते, मसले जाते और धक्का देकर पीछे की ओर धकेले जाते अरमानों की यह एक ऐसी दास्तां है जिसे शायद इस किताब को पढ़े बिना आप महसूस नहीं कर पाएंगे। यह उपन्यास मायानगरी के बजबजाते सिस्टम की पोल खोलकर रख देता है। जिसमें फिल्मी पर्दे पर चमकते तमाम चेहरे बेनक़ाब हो जाते हैं। नेपोटिज्म का शिकार एक आउटसाइडर को इतना अवसाद से भर दिया जाता है कि वह मर जाना पसंद करता है। यानी यहां कत्ल तो होता है लेकिन कातिल के हाथ खून से सने नहीं होते हैं।

इसके ज्यादातर किरदार वही हैं जो मायानगरी की रोशनी में चमकने तो आते हैं लेकिन पता नहीं कब गुमनामी की काली स्याह कोठरी में धकेल दिए जाते हैं। कुछ जो ऊपर आ भी जाते हैं वह ऐसे ही कत्ल कर दिए जाते हैं जिनके खून के निशान कत्ल के बाद भी दिखाई नहीं पड़ते। यानी ये सपनों की नगरी अभिशप्त नजर आती है। यहां ग्लैमर पसंद लोग पहुंचते हैं और उनमें से ज्यादातर को यहां की जमीन ही लील जाती है।

मुंबई नाइट्स में हर पात्र की अपनी एक कहानी है। कोई मरता है, कोई मारता है। क्योंकि वहां रातें मदहोश हैं और राज घातक। यहां किरदारों को जीना होता है और उन्हें मरना और डरना मना है। ऐसे में क्राइम थ्रिलर पसंद करने वालों को मुंबई नाइट्स की कहानी अपने आप से जोड़े रखकर आगे की यात्रा पर लिए चलेगी और आप संजीव पालीवाल की अगली ऐसी यात्रा का आनंद इसके बाद लेना चाहेंगे। जो शब्दों के जरिए वह पन्नों पर उकेरते हैं।

–आईएएनएस

जीकेटी/

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नई दिल्ली, 26 अक्टूबर (आईएएनएस)। उपन्यास एक ऐसा शब्द जाल जिसके ताने-बाने को ऐसे बुना जाता है कि यह पाठक को अपने से स्वतः जोड़ ले। जिसके पन्नों पर छपे शब्द पाठक के मन के अंदर चित्रों का माध्यम तैयार करे। पाठक तब तक उसके जादू से अपने आप को वापस नहीं निकाल पाते हैं, जब तक आप उपन्यास के पन्नों के अंतिम पायदान तक ना पहुंच जाएं।  ‘नैना’, ‘पिशाच’ और ‘ये इश्क नहीं आसां’ जैसे चर्चित उपन्यासों के बाद अब एक और उपन्यास लेकर पाठकों के बीच आए हैं लेखक-पत्रकार संजीव पालीवाल। अपने तीन पूर्व उपन्यासों के जरिए पहले से ही पाठकों के दिलों में जगह बना चुके क्राइम थ्रिलर के युवराज संजीव पालीवाल का यह उपन्यास मायानगरी की वह हकीकत बयां करती है जिससे कम ही लोग वाकिफ हैं।

वैसे तो जिसने भी क्राइम फ़िक्शन के बादशाह सुरेन्द्र मोहन पाठक के उपन्यास पढ़े हैं उनके लिए संजीव पालीवाल की ह किताब इस त्योहारी मौसम में बोनस से कम नहीं है। इस उपन्यास को पढ़ते हुए आपको मायानगरी की चमकीली रातें याद आ जाएंगी। यह उपन्यास आपके सामने यह सिद्ध करने में कामयाब हो जाएगी की मुंबई कभी सोती नहीं है।

संजीव पालीवाल की इस नई कृति ‘मुंबई नाइट्स’ को पढ़कर उनके द्वारा किया जा रहा क्लेम कि मैं साहित्यिक उपन्यास नहीं लिखता हूं, आपको झूठा लगेगा। क्योंकि कथानक के सारे किरदार भले क्राइम, थ्रिलर, फिक्शन के इर्द-गिर्द घूमते हों लेकिन संजीव पालीवाल ने जिस साहित्यिक शब्दावलियों का इस्तेमाल इस उपन्यास के पन्नों पर किया है उससे तो साफ पता चलता है कि वह लिखते समय उसी जोन में रहते हैं। मानो कोई सामाजिक उपन्यासकार इसे लिख रहा हो। कहानी के किरदार एक के बाद एक दूसरे के साथ इस तरह से जोड़े गए हैं कि आपका मन ही नहीं होगा कि उपन्यास के पन्नों पर खींची गई शब्दों की लकीरें अभी समाप्त हो। आप निरंतर उन शब्दों के प्रवाह के साथ बहते चले जाएंगे।

इस उपन्यास में किरदारों की तस्वीरों को उकेरते संजीव पालीवाल के शब्द केवल अपराध की गहरी छानबीन नहीं करते बल्कि मानवीय व्यवहारों की भी पड़ताल करते चलते हैं। वैसे भी क्राइम थ्रिलर उपन्यास में आपको शायद ही अपराध की कहानी ऐसी मिले जो शुरू से अंत तक उसके साथ जुड़ी हो बल्कि वह तो अंततः परिणाम तक पहुंचकर हीं आपको चौंकाती है। ऐसे में इन उपन्यासों की खासियत भी यही मानी गई है। लेकिन इस उपन्यास में तो क्राइम थ्रिलर का मायने ही आपको बदला हुआ मिलेगा। यानी यह सपाट पृष्ठभूमि पर रची बसी कहानी तो बिल्कुल नहीं है बल्कि यह बेहद रोचक होने के साथ इसमें कथा प्रवाह है, उत्सुकता का बेहतर मिश्रण है जो आपको उपन्यास के हर पन्नों पर रोके रखता है।

वैसे क्राइम थ्रिलर लिखने में हमेशा इस बात का ध्यान रखा जाता है कि शुरुआत में एक प्रश्न पूछा जाए और अंत में उसका उत्तर दर्शकों को मिले। लेकिन संजीव पालीवाल की मुंबई नाइट्स इस सबसे अलग है जो पहले पन्ने से सवाल उठाती है और अंत तक जवाब की खोज में बांधे रखती है।

इस उपन्यास में मुख्य किरदार के तौर पर मुंबई शहर है। मुंबई जो एक जटिल शहर है, मायानगरी है, रहस्य लोक है, सपनों की जमीन है और जिसे समझना आसान नहीं है। उसके जाल में फंसकर हर दिन लाखों अरमान दम तोड़ रहे हैं। यानी इस मायानगरी की माया को समझना इतना आसान नहीं है। लेकिन, अपनी सहज और समृद्ध लेखन शैली से संजीव पालीवाल इस इस मायानगरी की परत दर परत परदे हटाते चले जाते हैं।

‘मुंबई नाइट्स’ भी रहस्मय सुरागों और अप्रत्याशित मोड़ से भरी है, किताब के अंत तक पहुंच कर ही आप असली अपराधी की पहचान कर पाएंगे। इस उपन्यास का तो मुख्य किरदार यानी शहर मुंबई ही साजिश कर्ता है, मतलब यहां किरदारों में कोई एक अपराधी नहीं, एक व्यक्ति नहीं, एक वजह नहीं बल्कि पूरी व्यवस्था साजिश करती नजर आएगी। यानी ऊपर से लेकर नीचे तक व्यवस्थित अपराध की एक श्रृंखला आपको दिखेगी।

मायानगरी में दबाए जाते, कुचले जाते, मसले जाते और धक्का देकर पीछे की ओर धकेले जाते अरमानों की यह एक ऐसी दास्तां है जिसे शायद इस किताब को पढ़े बिना आप महसूस नहीं कर पाएंगे। यह उपन्यास मायानगरी के बजबजाते सिस्टम की पोल खोलकर रख देता है। जिसमें फिल्मी पर्दे पर चमकते तमाम चेहरे बेनक़ाब हो जाते हैं। नेपोटिज्म का शिकार एक आउटसाइडर को इतना अवसाद से भर दिया जाता है कि वह मर जाना पसंद करता है। यानी यहां कत्ल तो होता है लेकिन कातिल के हाथ खून से सने नहीं होते हैं।

इसके ज्यादातर किरदार वही हैं जो मायानगरी की रोशनी में चमकने तो आते हैं लेकिन पता नहीं कब गुमनामी की काली स्याह कोठरी में धकेल दिए जाते हैं। कुछ जो ऊपर आ भी जाते हैं वह ऐसे ही कत्ल कर दिए जाते हैं जिनके खून के निशान कत्ल के बाद भी दिखाई नहीं पड़ते। यानी ये सपनों की नगरी अभिशप्त नजर आती है। यहां ग्लैमर पसंद लोग पहुंचते हैं और उनमें से ज्यादातर को यहां की जमीन ही लील जाती है।

मुंबई नाइट्स में हर पात्र की अपनी एक कहानी है। कोई मरता है, कोई मारता है। क्योंकि वहां रातें मदहोश हैं और राज घातक। यहां किरदारों को जीना होता है और उन्हें मरना और डरना मना है। ऐसे में क्राइम थ्रिलर पसंद करने वालों को मुंबई नाइट्स की कहानी अपने आप से जोड़े रखकर आगे की यात्रा पर लिए चलेगी और आप संजीव पालीवाल की अगली ऐसी यात्रा का आनंद इसके बाद लेना चाहेंगे। जो शब्दों के जरिए वह पन्नों पर उकेरते हैं।

–आईएएनएस

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नई दिल्ली, 26 अक्टूबर (आईएएनएस)। उपन्यास एक ऐसा शब्द जाल जिसके ताने-बाने को ऐसे बुना जाता है कि यह पाठक को अपने से स्वतः जोड़ ले। जिसके पन्नों पर छपे शब्द पाठक के मन के अंदर चित्रों का माध्यम तैयार करे। पाठक तब तक उसके जादू से अपने आप को वापस नहीं निकाल पाते हैं, जब तक आप उपन्यास के पन्नों के अंतिम पायदान तक ना पहुंच जाएं।  ‘नैना’, ‘पिशाच’ और ‘ये इश्क नहीं आसां’ जैसे चर्चित उपन्यासों के बाद अब एक और उपन्यास लेकर पाठकों के बीच आए हैं लेखक-पत्रकार संजीव पालीवाल। अपने तीन पूर्व उपन्यासों के जरिए पहले से ही पाठकों के दिलों में जगह बना चुके क्राइम थ्रिलर के युवराज संजीव पालीवाल का यह उपन्यास मायानगरी की वह हकीकत बयां करती है जिससे कम ही लोग वाकिफ हैं।

वैसे तो जिसने भी क्राइम फ़िक्शन के बादशाह सुरेन्द्र मोहन पाठक के उपन्यास पढ़े हैं उनके लिए संजीव पालीवाल की ह किताब इस त्योहारी मौसम में बोनस से कम नहीं है। इस उपन्यास को पढ़ते हुए आपको मायानगरी की चमकीली रातें याद आ जाएंगी। यह उपन्यास आपके सामने यह सिद्ध करने में कामयाब हो जाएगी की मुंबई कभी सोती नहीं है।

संजीव पालीवाल की इस नई कृति ‘मुंबई नाइट्स’ को पढ़कर उनके द्वारा किया जा रहा क्लेम कि मैं साहित्यिक उपन्यास नहीं लिखता हूं, आपको झूठा लगेगा। क्योंकि कथानक के सारे किरदार भले क्राइम, थ्रिलर, फिक्शन के इर्द-गिर्द घूमते हों लेकिन संजीव पालीवाल ने जिस साहित्यिक शब्दावलियों का इस्तेमाल इस उपन्यास के पन्नों पर किया है उससे तो साफ पता चलता है कि वह लिखते समय उसी जोन में रहते हैं। मानो कोई सामाजिक उपन्यासकार इसे लिख रहा हो। कहानी के किरदार एक के बाद एक दूसरे के साथ इस तरह से जोड़े गए हैं कि आपका मन ही नहीं होगा कि उपन्यास के पन्नों पर खींची गई शब्दों की लकीरें अभी समाप्त हो। आप निरंतर उन शब्दों के प्रवाह के साथ बहते चले जाएंगे।

इस उपन्यास में किरदारों की तस्वीरों को उकेरते संजीव पालीवाल के शब्द केवल अपराध की गहरी छानबीन नहीं करते बल्कि मानवीय व्यवहारों की भी पड़ताल करते चलते हैं। वैसे भी क्राइम थ्रिलर उपन्यास में आपको शायद ही अपराध की कहानी ऐसी मिले जो शुरू से अंत तक उसके साथ जुड़ी हो बल्कि वह तो अंततः परिणाम तक पहुंचकर हीं आपको चौंकाती है। ऐसे में इन उपन्यासों की खासियत भी यही मानी गई है। लेकिन इस उपन्यास में तो क्राइम थ्रिलर का मायने ही आपको बदला हुआ मिलेगा। यानी यह सपाट पृष्ठभूमि पर रची बसी कहानी तो बिल्कुल नहीं है बल्कि यह बेहद रोचक होने के साथ इसमें कथा प्रवाह है, उत्सुकता का बेहतर मिश्रण है जो आपको उपन्यास के हर पन्नों पर रोके रखता है।

वैसे क्राइम थ्रिलर लिखने में हमेशा इस बात का ध्यान रखा जाता है कि शुरुआत में एक प्रश्न पूछा जाए और अंत में उसका उत्तर दर्शकों को मिले। लेकिन संजीव पालीवाल की मुंबई नाइट्स इस सबसे अलग है जो पहले पन्ने से सवाल उठाती है और अंत तक जवाब की खोज में बांधे रखती है।

इस उपन्यास में मुख्य किरदार के तौर पर मुंबई शहर है। मुंबई जो एक जटिल शहर है, मायानगरी है, रहस्य लोक है, सपनों की जमीन है और जिसे समझना आसान नहीं है। उसके जाल में फंसकर हर दिन लाखों अरमान दम तोड़ रहे हैं। यानी इस मायानगरी की माया को समझना इतना आसान नहीं है। लेकिन, अपनी सहज और समृद्ध लेखन शैली से संजीव पालीवाल इस इस मायानगरी की परत दर परत परदे हटाते चले जाते हैं।

‘मुंबई नाइट्स’ भी रहस्मय सुरागों और अप्रत्याशित मोड़ से भरी है, किताब के अंत तक पहुंच कर ही आप असली अपराधी की पहचान कर पाएंगे। इस उपन्यास का तो मुख्य किरदार यानी शहर मुंबई ही साजिश कर्ता है, मतलब यहां किरदारों में कोई एक अपराधी नहीं, एक व्यक्ति नहीं, एक वजह नहीं बल्कि पूरी व्यवस्था साजिश करती नजर आएगी। यानी ऊपर से लेकर नीचे तक व्यवस्थित अपराध की एक श्रृंखला आपको दिखेगी।

मायानगरी में दबाए जाते, कुचले जाते, मसले जाते और धक्का देकर पीछे की ओर धकेले जाते अरमानों की यह एक ऐसी दास्तां है जिसे शायद इस किताब को पढ़े बिना आप महसूस नहीं कर पाएंगे। यह उपन्यास मायानगरी के बजबजाते सिस्टम की पोल खोलकर रख देता है। जिसमें फिल्मी पर्दे पर चमकते तमाम चेहरे बेनक़ाब हो जाते हैं। नेपोटिज्म का शिकार एक आउटसाइडर को इतना अवसाद से भर दिया जाता है कि वह मर जाना पसंद करता है। यानी यहां कत्ल तो होता है लेकिन कातिल के हाथ खून से सने नहीं होते हैं।

इसके ज्यादातर किरदार वही हैं जो मायानगरी की रोशनी में चमकने तो आते हैं लेकिन पता नहीं कब गुमनामी की काली स्याह कोठरी में धकेल दिए जाते हैं। कुछ जो ऊपर आ भी जाते हैं वह ऐसे ही कत्ल कर दिए जाते हैं जिनके खून के निशान कत्ल के बाद भी दिखाई नहीं पड़ते। यानी ये सपनों की नगरी अभिशप्त नजर आती है। यहां ग्लैमर पसंद लोग पहुंचते हैं और उनमें से ज्यादातर को यहां की जमीन ही लील जाती है।

मुंबई नाइट्स में हर पात्र की अपनी एक कहानी है। कोई मरता है, कोई मारता है। क्योंकि वहां रातें मदहोश हैं और राज घातक। यहां किरदारों को जीना होता है और उन्हें मरना और डरना मना है। ऐसे में क्राइम थ्रिलर पसंद करने वालों को मुंबई नाइट्स की कहानी अपने आप से जोड़े रखकर आगे की यात्रा पर लिए चलेगी और आप संजीव पालीवाल की अगली ऐसी यात्रा का आनंद इसके बाद लेना चाहेंगे। जो शब्दों के जरिए वह पन्नों पर उकेरते हैं।

–आईएएनएस

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वैसे तो जिसने भी क्राइम फ़िक्शन के बादशाह सुरेन्द्र मोहन पाठक के उपन्यास पढ़े हैं उनके लिए संजीव पालीवाल की ह किताब इस त्योहारी मौसम में बोनस से कम नहीं है। इस उपन्यास को पढ़ते हुए आपको मायानगरी की चमकीली रातें याद आ जाएंगी। यह उपन्यास आपके सामने यह सिद्ध करने में कामयाब हो जाएगी की मुंबई कभी सोती नहीं है।

संजीव पालीवाल की इस नई कृति ‘मुंबई नाइट्स’ को पढ़कर उनके द्वारा किया जा रहा क्लेम कि मैं साहित्यिक उपन्यास नहीं लिखता हूं, आपको झूठा लगेगा। क्योंकि कथानक के सारे किरदार भले क्राइम, थ्रिलर, फिक्शन के इर्द-गिर्द घूमते हों लेकिन संजीव पालीवाल ने जिस साहित्यिक शब्दावलियों का इस्तेमाल इस उपन्यास के पन्नों पर किया है उससे तो साफ पता चलता है कि वह लिखते समय उसी जोन में रहते हैं। मानो कोई सामाजिक उपन्यासकार इसे लिख रहा हो। कहानी के किरदार एक के बाद एक दूसरे के साथ इस तरह से जोड़े गए हैं कि आपका मन ही नहीं होगा कि उपन्यास के पन्नों पर खींची गई शब्दों की लकीरें अभी समाप्त हो। आप निरंतर उन शब्दों के प्रवाह के साथ बहते चले जाएंगे।

इस उपन्यास में किरदारों की तस्वीरों को उकेरते संजीव पालीवाल के शब्द केवल अपराध की गहरी छानबीन नहीं करते बल्कि मानवीय व्यवहारों की भी पड़ताल करते चलते हैं। वैसे भी क्राइम थ्रिलर उपन्यास में आपको शायद ही अपराध की कहानी ऐसी मिले जो शुरू से अंत तक उसके साथ जुड़ी हो बल्कि वह तो अंततः परिणाम तक पहुंचकर हीं आपको चौंकाती है। ऐसे में इन उपन्यासों की खासियत भी यही मानी गई है। लेकिन इस उपन्यास में तो क्राइम थ्रिलर का मायने ही आपको बदला हुआ मिलेगा। यानी यह सपाट पृष्ठभूमि पर रची बसी कहानी तो बिल्कुल नहीं है बल्कि यह बेहद रोचक होने के साथ इसमें कथा प्रवाह है, उत्सुकता का बेहतर मिश्रण है जो आपको उपन्यास के हर पन्नों पर रोके रखता है।

वैसे क्राइम थ्रिलर लिखने में हमेशा इस बात का ध्यान रखा जाता है कि शुरुआत में एक प्रश्न पूछा जाए और अंत में उसका उत्तर दर्शकों को मिले। लेकिन संजीव पालीवाल की मुंबई नाइट्स इस सबसे अलग है जो पहले पन्ने से सवाल उठाती है और अंत तक जवाब की खोज में बांधे रखती है।

इस उपन्यास में मुख्य किरदार के तौर पर मुंबई शहर है। मुंबई जो एक जटिल शहर है, मायानगरी है, रहस्य लोक है, सपनों की जमीन है और जिसे समझना आसान नहीं है। उसके जाल में फंसकर हर दिन लाखों अरमान दम तोड़ रहे हैं। यानी इस मायानगरी की माया को समझना इतना आसान नहीं है। लेकिन, अपनी सहज और समृद्ध लेखन शैली से संजीव पालीवाल इस इस मायानगरी की परत दर परत परदे हटाते चले जाते हैं।

‘मुंबई नाइट्स’ भी रहस्मय सुरागों और अप्रत्याशित मोड़ से भरी है, किताब के अंत तक पहुंच कर ही आप असली अपराधी की पहचान कर पाएंगे। इस उपन्यास का तो मुख्य किरदार यानी शहर मुंबई ही साजिश कर्ता है, मतलब यहां किरदारों में कोई एक अपराधी नहीं, एक व्यक्ति नहीं, एक वजह नहीं बल्कि पूरी व्यवस्था साजिश करती नजर आएगी। यानी ऊपर से लेकर नीचे तक व्यवस्थित अपराध की एक श्रृंखला आपको दिखेगी।

मायानगरी में दबाए जाते, कुचले जाते, मसले जाते और धक्का देकर पीछे की ओर धकेले जाते अरमानों की यह एक ऐसी दास्तां है जिसे शायद इस किताब को पढ़े बिना आप महसूस नहीं कर पाएंगे। यह उपन्यास मायानगरी के बजबजाते सिस्टम की पोल खोलकर रख देता है। जिसमें फिल्मी पर्दे पर चमकते तमाम चेहरे बेनक़ाब हो जाते हैं। नेपोटिज्म का शिकार एक आउटसाइडर को इतना अवसाद से भर दिया जाता है कि वह मर जाना पसंद करता है। यानी यहां कत्ल तो होता है लेकिन कातिल के हाथ खून से सने नहीं होते हैं।

इसके ज्यादातर किरदार वही हैं जो मायानगरी की रोशनी में चमकने तो आते हैं लेकिन पता नहीं कब गुमनामी की काली स्याह कोठरी में धकेल दिए जाते हैं। कुछ जो ऊपर आ भी जाते हैं वह ऐसे ही कत्ल कर दिए जाते हैं जिनके खून के निशान कत्ल के बाद भी दिखाई नहीं पड़ते। यानी ये सपनों की नगरी अभिशप्त नजर आती है। यहां ग्लैमर पसंद लोग पहुंचते हैं और उनमें से ज्यादातर को यहां की जमीन ही लील जाती है।

मुंबई नाइट्स में हर पात्र की अपनी एक कहानी है। कोई मरता है, कोई मारता है। क्योंकि वहां रातें मदहोश हैं और राज घातक। यहां किरदारों को जीना होता है और उन्हें मरना और डरना मना है। ऐसे में क्राइम थ्रिलर पसंद करने वालों को मुंबई नाइट्स की कहानी अपने आप से जोड़े रखकर आगे की यात्रा पर लिए चलेगी और आप संजीव पालीवाल की अगली ऐसी यात्रा का आनंद इसके बाद लेना चाहेंगे। जो शब्दों के जरिए वह पन्नों पर उकेरते हैं।

–आईएएनएस

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नई दिल्ली, 26 अक्टूबर (आईएएनएस)। उपन्यास एक ऐसा शब्द जाल जिसके ताने-बाने को ऐसे बुना जाता है कि यह पाठक को अपने से स्वतः जोड़ ले। जिसके पन्नों पर छपे शब्द पाठक के मन के अंदर चित्रों का माध्यम तैयार करे। पाठक तब तक उसके जादू से अपने आप को वापस नहीं निकाल पाते हैं, जब तक आप उपन्यास के पन्नों के अंतिम पायदान तक ना पहुंच जाएं।  ‘नैना’, ‘पिशाच’ और ‘ये इश्क नहीं आसां’ जैसे चर्चित उपन्यासों के बाद अब एक और उपन्यास लेकर पाठकों के बीच आए हैं लेखक-पत्रकार संजीव पालीवाल। अपने तीन पूर्व उपन्यासों के जरिए पहले से ही पाठकों के दिलों में जगह बना चुके क्राइम थ्रिलर के युवराज संजीव पालीवाल का यह उपन्यास मायानगरी की वह हकीकत बयां करती है जिससे कम ही लोग वाकिफ हैं।

वैसे तो जिसने भी क्राइम फ़िक्शन के बादशाह सुरेन्द्र मोहन पाठक के उपन्यास पढ़े हैं उनके लिए संजीव पालीवाल की ह किताब इस त्योहारी मौसम में बोनस से कम नहीं है। इस उपन्यास को पढ़ते हुए आपको मायानगरी की चमकीली रातें याद आ जाएंगी। यह उपन्यास आपके सामने यह सिद्ध करने में कामयाब हो जाएगी की मुंबई कभी सोती नहीं है।

संजीव पालीवाल की इस नई कृति ‘मुंबई नाइट्स’ को पढ़कर उनके द्वारा किया जा रहा क्लेम कि मैं साहित्यिक उपन्यास नहीं लिखता हूं, आपको झूठा लगेगा। क्योंकि कथानक के सारे किरदार भले क्राइम, थ्रिलर, फिक्शन के इर्द-गिर्द घूमते हों लेकिन संजीव पालीवाल ने जिस साहित्यिक शब्दावलियों का इस्तेमाल इस उपन्यास के पन्नों पर किया है उससे तो साफ पता चलता है कि वह लिखते समय उसी जोन में रहते हैं। मानो कोई सामाजिक उपन्यासकार इसे लिख रहा हो। कहानी के किरदार एक के बाद एक दूसरे के साथ इस तरह से जोड़े गए हैं कि आपका मन ही नहीं होगा कि उपन्यास के पन्नों पर खींची गई शब्दों की लकीरें अभी समाप्त हो। आप निरंतर उन शब्दों के प्रवाह के साथ बहते चले जाएंगे।

इस उपन्यास में किरदारों की तस्वीरों को उकेरते संजीव पालीवाल के शब्द केवल अपराध की गहरी छानबीन नहीं करते बल्कि मानवीय व्यवहारों की भी पड़ताल करते चलते हैं। वैसे भी क्राइम थ्रिलर उपन्यास में आपको शायद ही अपराध की कहानी ऐसी मिले जो शुरू से अंत तक उसके साथ जुड़ी हो बल्कि वह तो अंततः परिणाम तक पहुंचकर हीं आपको चौंकाती है। ऐसे में इन उपन्यासों की खासियत भी यही मानी गई है। लेकिन इस उपन्यास में तो क्राइम थ्रिलर का मायने ही आपको बदला हुआ मिलेगा। यानी यह सपाट पृष्ठभूमि पर रची बसी कहानी तो बिल्कुल नहीं है बल्कि यह बेहद रोचक होने के साथ इसमें कथा प्रवाह है, उत्सुकता का बेहतर मिश्रण है जो आपको उपन्यास के हर पन्नों पर रोके रखता है।

वैसे क्राइम थ्रिलर लिखने में हमेशा इस बात का ध्यान रखा जाता है कि शुरुआत में एक प्रश्न पूछा जाए और अंत में उसका उत्तर दर्शकों को मिले। लेकिन संजीव पालीवाल की मुंबई नाइट्स इस सबसे अलग है जो पहले पन्ने से सवाल उठाती है और अंत तक जवाब की खोज में बांधे रखती है।

इस उपन्यास में मुख्य किरदार के तौर पर मुंबई शहर है। मुंबई जो एक जटिल शहर है, मायानगरी है, रहस्य लोक है, सपनों की जमीन है और जिसे समझना आसान नहीं है। उसके जाल में फंसकर हर दिन लाखों अरमान दम तोड़ रहे हैं। यानी इस मायानगरी की माया को समझना इतना आसान नहीं है। लेकिन, अपनी सहज और समृद्ध लेखन शैली से संजीव पालीवाल इस इस मायानगरी की परत दर परत परदे हटाते चले जाते हैं।

‘मुंबई नाइट्स’ भी रहस्मय सुरागों और अप्रत्याशित मोड़ से भरी है, किताब के अंत तक पहुंच कर ही आप असली अपराधी की पहचान कर पाएंगे। इस उपन्यास का तो मुख्य किरदार यानी शहर मुंबई ही साजिश कर्ता है, मतलब यहां किरदारों में कोई एक अपराधी नहीं, एक व्यक्ति नहीं, एक वजह नहीं बल्कि पूरी व्यवस्था साजिश करती नजर आएगी। यानी ऊपर से लेकर नीचे तक व्यवस्थित अपराध की एक श्रृंखला आपको दिखेगी।

मायानगरी में दबाए जाते, कुचले जाते, मसले जाते और धक्का देकर पीछे की ओर धकेले जाते अरमानों की यह एक ऐसी दास्तां है जिसे शायद इस किताब को पढ़े बिना आप महसूस नहीं कर पाएंगे। यह उपन्यास मायानगरी के बजबजाते सिस्टम की पोल खोलकर रख देता है। जिसमें फिल्मी पर्दे पर चमकते तमाम चेहरे बेनक़ाब हो जाते हैं। नेपोटिज्म का शिकार एक आउटसाइडर को इतना अवसाद से भर दिया जाता है कि वह मर जाना पसंद करता है। यानी यहां कत्ल तो होता है लेकिन कातिल के हाथ खून से सने नहीं होते हैं।

इसके ज्यादातर किरदार वही हैं जो मायानगरी की रोशनी में चमकने तो आते हैं लेकिन पता नहीं कब गुमनामी की काली स्याह कोठरी में धकेल दिए जाते हैं। कुछ जो ऊपर आ भी जाते हैं वह ऐसे ही कत्ल कर दिए जाते हैं जिनके खून के निशान कत्ल के बाद भी दिखाई नहीं पड़ते। यानी ये सपनों की नगरी अभिशप्त नजर आती है। यहां ग्लैमर पसंद लोग पहुंचते हैं और उनमें से ज्यादातर को यहां की जमीन ही लील जाती है।

मुंबई नाइट्स में हर पात्र की अपनी एक कहानी है। कोई मरता है, कोई मारता है। क्योंकि वहां रातें मदहोश हैं और राज घातक। यहां किरदारों को जीना होता है और उन्हें मरना और डरना मना है। ऐसे में क्राइम थ्रिलर पसंद करने वालों को मुंबई नाइट्स की कहानी अपने आप से जोड़े रखकर आगे की यात्रा पर लिए चलेगी और आप संजीव पालीवाल की अगली ऐसी यात्रा का आनंद इसके बाद लेना चाहेंगे। जो शब्दों के जरिए वह पन्नों पर उकेरते हैं।

–आईएएनएस

जीकेटी/

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नई दिल्ली, 26 अक्टूबर (आईएएनएस)। उपन्यास एक ऐसा शब्द जाल जिसके ताने-बाने को ऐसे बुना जाता है कि यह पाठक को अपने से स्वतः जोड़ ले। जिसके पन्नों पर छपे शब्द पाठक के मन के अंदर चित्रों का माध्यम तैयार करे। पाठक तब तक उसके जादू से अपने आप को वापस नहीं निकाल पाते हैं, जब तक आप उपन्यास के पन्नों के अंतिम पायदान तक ना पहुंच जाएं।  ‘नैना’, ‘पिशाच’ और ‘ये इश्क नहीं आसां’ जैसे चर्चित उपन्यासों के बाद अब एक और उपन्यास लेकर पाठकों के बीच आए हैं लेखक-पत्रकार संजीव पालीवाल। अपने तीन पूर्व उपन्यासों के जरिए पहले से ही पाठकों के दिलों में जगह बना चुके क्राइम थ्रिलर के युवराज संजीव पालीवाल का यह उपन्यास मायानगरी की वह हकीकत बयां करती है जिससे कम ही लोग वाकिफ हैं।

वैसे तो जिसने भी क्राइम फ़िक्शन के बादशाह सुरेन्द्र मोहन पाठक के उपन्यास पढ़े हैं उनके लिए संजीव पालीवाल की ह किताब इस त्योहारी मौसम में बोनस से कम नहीं है। इस उपन्यास को पढ़ते हुए आपको मायानगरी की चमकीली रातें याद आ जाएंगी। यह उपन्यास आपके सामने यह सिद्ध करने में कामयाब हो जाएगी की मुंबई कभी सोती नहीं है।

संजीव पालीवाल की इस नई कृति ‘मुंबई नाइट्स’ को पढ़कर उनके द्वारा किया जा रहा क्लेम कि मैं साहित्यिक उपन्यास नहीं लिखता हूं, आपको झूठा लगेगा। क्योंकि कथानक के सारे किरदार भले क्राइम, थ्रिलर, फिक्शन के इर्द-गिर्द घूमते हों लेकिन संजीव पालीवाल ने जिस साहित्यिक शब्दावलियों का इस्तेमाल इस उपन्यास के पन्नों पर किया है उससे तो साफ पता चलता है कि वह लिखते समय उसी जोन में रहते हैं। मानो कोई सामाजिक उपन्यासकार इसे लिख रहा हो। कहानी के किरदार एक के बाद एक दूसरे के साथ इस तरह से जोड़े गए हैं कि आपका मन ही नहीं होगा कि उपन्यास के पन्नों पर खींची गई शब्दों की लकीरें अभी समाप्त हो। आप निरंतर उन शब्दों के प्रवाह के साथ बहते चले जाएंगे।

इस उपन्यास में किरदारों की तस्वीरों को उकेरते संजीव पालीवाल के शब्द केवल अपराध की गहरी छानबीन नहीं करते बल्कि मानवीय व्यवहारों की भी पड़ताल करते चलते हैं। वैसे भी क्राइम थ्रिलर उपन्यास में आपको शायद ही अपराध की कहानी ऐसी मिले जो शुरू से अंत तक उसके साथ जुड़ी हो बल्कि वह तो अंततः परिणाम तक पहुंचकर हीं आपको चौंकाती है। ऐसे में इन उपन्यासों की खासियत भी यही मानी गई है। लेकिन इस उपन्यास में तो क्राइम थ्रिलर का मायने ही आपको बदला हुआ मिलेगा। यानी यह सपाट पृष्ठभूमि पर रची बसी कहानी तो बिल्कुल नहीं है बल्कि यह बेहद रोचक होने के साथ इसमें कथा प्रवाह है, उत्सुकता का बेहतर मिश्रण है जो आपको उपन्यास के हर पन्नों पर रोके रखता है।

वैसे क्राइम थ्रिलर लिखने में हमेशा इस बात का ध्यान रखा जाता है कि शुरुआत में एक प्रश्न पूछा जाए और अंत में उसका उत्तर दर्शकों को मिले। लेकिन संजीव पालीवाल की मुंबई नाइट्स इस सबसे अलग है जो पहले पन्ने से सवाल उठाती है और अंत तक जवाब की खोज में बांधे रखती है।

इस उपन्यास में मुख्य किरदार के तौर पर मुंबई शहर है। मुंबई जो एक जटिल शहर है, मायानगरी है, रहस्य लोक है, सपनों की जमीन है और जिसे समझना आसान नहीं है। उसके जाल में फंसकर हर दिन लाखों अरमान दम तोड़ रहे हैं। यानी इस मायानगरी की माया को समझना इतना आसान नहीं है। लेकिन, अपनी सहज और समृद्ध लेखन शैली से संजीव पालीवाल इस इस मायानगरी की परत दर परत परदे हटाते चले जाते हैं।

‘मुंबई नाइट्स’ भी रहस्मय सुरागों और अप्रत्याशित मोड़ से भरी है, किताब के अंत तक पहुंच कर ही आप असली अपराधी की पहचान कर पाएंगे। इस उपन्यास का तो मुख्य किरदार यानी शहर मुंबई ही साजिश कर्ता है, मतलब यहां किरदारों में कोई एक अपराधी नहीं, एक व्यक्ति नहीं, एक वजह नहीं बल्कि पूरी व्यवस्था साजिश करती नजर आएगी। यानी ऊपर से लेकर नीचे तक व्यवस्थित अपराध की एक श्रृंखला आपको दिखेगी।

मायानगरी में दबाए जाते, कुचले जाते, मसले जाते और धक्का देकर पीछे की ओर धकेले जाते अरमानों की यह एक ऐसी दास्तां है जिसे शायद इस किताब को पढ़े बिना आप महसूस नहीं कर पाएंगे। यह उपन्यास मायानगरी के बजबजाते सिस्टम की पोल खोलकर रख देता है। जिसमें फिल्मी पर्दे पर चमकते तमाम चेहरे बेनक़ाब हो जाते हैं। नेपोटिज्म का शिकार एक आउटसाइडर को इतना अवसाद से भर दिया जाता है कि वह मर जाना पसंद करता है। यानी यहां कत्ल तो होता है लेकिन कातिल के हाथ खून से सने नहीं होते हैं।

इसके ज्यादातर किरदार वही हैं जो मायानगरी की रोशनी में चमकने तो आते हैं लेकिन पता नहीं कब गुमनामी की काली स्याह कोठरी में धकेल दिए जाते हैं। कुछ जो ऊपर आ भी जाते हैं वह ऐसे ही कत्ल कर दिए जाते हैं जिनके खून के निशान कत्ल के बाद भी दिखाई नहीं पड़ते। यानी ये सपनों की नगरी अभिशप्त नजर आती है। यहां ग्लैमर पसंद लोग पहुंचते हैं और उनमें से ज्यादातर को यहां की जमीन ही लील जाती है।

मुंबई नाइट्स में हर पात्र की अपनी एक कहानी है। कोई मरता है, कोई मारता है। क्योंकि वहां रातें मदहोश हैं और राज घातक। यहां किरदारों को जीना होता है और उन्हें मरना और डरना मना है। ऐसे में क्राइम थ्रिलर पसंद करने वालों को मुंबई नाइट्स की कहानी अपने आप से जोड़े रखकर आगे की यात्रा पर लिए चलेगी और आप संजीव पालीवाल की अगली ऐसी यात्रा का आनंद इसके बाद लेना चाहेंगे। जो शब्दों के जरिए वह पन्नों पर उकेरते हैं।

–आईएएनएस

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नई दिल्ली, 26 अक्टूबर (आईएएनएस)। उपन्यास एक ऐसा शब्द जाल जिसके ताने-बाने को ऐसे बुना जाता है कि यह पाठक को अपने से स्वतः जोड़ ले। जिसके पन्नों पर छपे शब्द पाठक के मन के अंदर चित्रों का माध्यम तैयार करे। पाठक तब तक उसके जादू से अपने आप को वापस नहीं निकाल पाते हैं, जब तक आप उपन्यास के पन्नों के अंतिम पायदान तक ना पहुंच जाएं।  ‘नैना’, ‘पिशाच’ और ‘ये इश्क नहीं आसां’ जैसे चर्चित उपन्यासों के बाद अब एक और उपन्यास लेकर पाठकों के बीच आए हैं लेखक-पत्रकार संजीव पालीवाल। अपने तीन पूर्व उपन्यासों के जरिए पहले से ही पाठकों के दिलों में जगह बना चुके क्राइम थ्रिलर के युवराज संजीव पालीवाल का यह उपन्यास मायानगरी की वह हकीकत बयां करती है जिससे कम ही लोग वाकिफ हैं।

वैसे तो जिसने भी क्राइम फ़िक्शन के बादशाह सुरेन्द्र मोहन पाठक के उपन्यास पढ़े हैं उनके लिए संजीव पालीवाल की ह किताब इस त्योहारी मौसम में बोनस से कम नहीं है। इस उपन्यास को पढ़ते हुए आपको मायानगरी की चमकीली रातें याद आ जाएंगी। यह उपन्यास आपके सामने यह सिद्ध करने में कामयाब हो जाएगी की मुंबई कभी सोती नहीं है।

संजीव पालीवाल की इस नई कृति ‘मुंबई नाइट्स’ को पढ़कर उनके द्वारा किया जा रहा क्लेम कि मैं साहित्यिक उपन्यास नहीं लिखता हूं, आपको झूठा लगेगा। क्योंकि कथानक के सारे किरदार भले क्राइम, थ्रिलर, फिक्शन के इर्द-गिर्द घूमते हों लेकिन संजीव पालीवाल ने जिस साहित्यिक शब्दावलियों का इस्तेमाल इस उपन्यास के पन्नों पर किया है उससे तो साफ पता चलता है कि वह लिखते समय उसी जोन में रहते हैं। मानो कोई सामाजिक उपन्यासकार इसे लिख रहा हो। कहानी के किरदार एक के बाद एक दूसरे के साथ इस तरह से जोड़े गए हैं कि आपका मन ही नहीं होगा कि उपन्यास के पन्नों पर खींची गई शब्दों की लकीरें अभी समाप्त हो। आप निरंतर उन शब्दों के प्रवाह के साथ बहते चले जाएंगे।

इस उपन्यास में किरदारों की तस्वीरों को उकेरते संजीव पालीवाल के शब्द केवल अपराध की गहरी छानबीन नहीं करते बल्कि मानवीय व्यवहारों की भी पड़ताल करते चलते हैं। वैसे भी क्राइम थ्रिलर उपन्यास में आपको शायद ही अपराध की कहानी ऐसी मिले जो शुरू से अंत तक उसके साथ जुड़ी हो बल्कि वह तो अंततः परिणाम तक पहुंचकर हीं आपको चौंकाती है। ऐसे में इन उपन्यासों की खासियत भी यही मानी गई है। लेकिन इस उपन्यास में तो क्राइम थ्रिलर का मायने ही आपको बदला हुआ मिलेगा। यानी यह सपाट पृष्ठभूमि पर रची बसी कहानी तो बिल्कुल नहीं है बल्कि यह बेहद रोचक होने के साथ इसमें कथा प्रवाह है, उत्सुकता का बेहतर मिश्रण है जो आपको उपन्यास के हर पन्नों पर रोके रखता है।

वैसे क्राइम थ्रिलर लिखने में हमेशा इस बात का ध्यान रखा जाता है कि शुरुआत में एक प्रश्न पूछा जाए और अंत में उसका उत्तर दर्शकों को मिले। लेकिन संजीव पालीवाल की मुंबई नाइट्स इस सबसे अलग है जो पहले पन्ने से सवाल उठाती है और अंत तक जवाब की खोज में बांधे रखती है।

इस उपन्यास में मुख्य किरदार के तौर पर मुंबई शहर है। मुंबई जो एक जटिल शहर है, मायानगरी है, रहस्य लोक है, सपनों की जमीन है और जिसे समझना आसान नहीं है। उसके जाल में फंसकर हर दिन लाखों अरमान दम तोड़ रहे हैं। यानी इस मायानगरी की माया को समझना इतना आसान नहीं है। लेकिन, अपनी सहज और समृद्ध लेखन शैली से संजीव पालीवाल इस इस मायानगरी की परत दर परत परदे हटाते चले जाते हैं।

‘मुंबई नाइट्स’ भी रहस्मय सुरागों और अप्रत्याशित मोड़ से भरी है, किताब के अंत तक पहुंच कर ही आप असली अपराधी की पहचान कर पाएंगे। इस उपन्यास का तो मुख्य किरदार यानी शहर मुंबई ही साजिश कर्ता है, मतलब यहां किरदारों में कोई एक अपराधी नहीं, एक व्यक्ति नहीं, एक वजह नहीं बल्कि पूरी व्यवस्था साजिश करती नजर आएगी। यानी ऊपर से लेकर नीचे तक व्यवस्थित अपराध की एक श्रृंखला आपको दिखेगी।

मायानगरी में दबाए जाते, कुचले जाते, मसले जाते और धक्का देकर पीछे की ओर धकेले जाते अरमानों की यह एक ऐसी दास्तां है जिसे शायद इस किताब को पढ़े बिना आप महसूस नहीं कर पाएंगे। यह उपन्यास मायानगरी के बजबजाते सिस्टम की पोल खोलकर रख देता है। जिसमें फिल्मी पर्दे पर चमकते तमाम चेहरे बेनक़ाब हो जाते हैं। नेपोटिज्म का शिकार एक आउटसाइडर को इतना अवसाद से भर दिया जाता है कि वह मर जाना पसंद करता है। यानी यहां कत्ल तो होता है लेकिन कातिल के हाथ खून से सने नहीं होते हैं।

इसके ज्यादातर किरदार वही हैं जो मायानगरी की रोशनी में चमकने तो आते हैं लेकिन पता नहीं कब गुमनामी की काली स्याह कोठरी में धकेल दिए जाते हैं। कुछ जो ऊपर आ भी जाते हैं वह ऐसे ही कत्ल कर दिए जाते हैं जिनके खून के निशान कत्ल के बाद भी दिखाई नहीं पड़ते। यानी ये सपनों की नगरी अभिशप्त नजर आती है। यहां ग्लैमर पसंद लोग पहुंचते हैं और उनमें से ज्यादातर को यहां की जमीन ही लील जाती है।

मुंबई नाइट्स में हर पात्र की अपनी एक कहानी है। कोई मरता है, कोई मारता है। क्योंकि वहां रातें मदहोश हैं और राज घातक। यहां किरदारों को जीना होता है और उन्हें मरना और डरना मना है। ऐसे में क्राइम थ्रिलर पसंद करने वालों को मुंबई नाइट्स की कहानी अपने आप से जोड़े रखकर आगे की यात्रा पर लिए चलेगी और आप संजीव पालीवाल की अगली ऐसी यात्रा का आनंद इसके बाद लेना चाहेंगे। जो शब्दों के जरिए वह पन्नों पर उकेरते हैं।

–आईएएनएस

जीकेटी/

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नई दिल्ली, 26 अक्टूबर (आईएएनएस)। उपन्यास एक ऐसा शब्द जाल जिसके ताने-बाने को ऐसे बुना जाता है कि यह पाठक को अपने से स्वतः जोड़ ले। जिसके पन्नों पर छपे शब्द पाठक के मन के अंदर चित्रों का माध्यम तैयार करे। पाठक तब तक उसके जादू से अपने आप को वापस नहीं निकाल पाते हैं, जब तक आप उपन्यास के पन्नों के अंतिम पायदान तक ना पहुंच जाएं।  ‘नैना’, ‘पिशाच’ और ‘ये इश्क नहीं आसां’ जैसे चर्चित उपन्यासों के बाद अब एक और उपन्यास लेकर पाठकों के बीच आए हैं लेखक-पत्रकार संजीव पालीवाल। अपने तीन पूर्व उपन्यासों के जरिए पहले से ही पाठकों के दिलों में जगह बना चुके क्राइम थ्रिलर के युवराज संजीव पालीवाल का यह उपन्यास मायानगरी की वह हकीकत बयां करती है जिससे कम ही लोग वाकिफ हैं।

वैसे तो जिसने भी क्राइम फ़िक्शन के बादशाह सुरेन्द्र मोहन पाठक के उपन्यास पढ़े हैं उनके लिए संजीव पालीवाल की ह किताब इस त्योहारी मौसम में बोनस से कम नहीं है। इस उपन्यास को पढ़ते हुए आपको मायानगरी की चमकीली रातें याद आ जाएंगी। यह उपन्यास आपके सामने यह सिद्ध करने में कामयाब हो जाएगी की मुंबई कभी सोती नहीं है।

संजीव पालीवाल की इस नई कृति ‘मुंबई नाइट्स’ को पढ़कर उनके द्वारा किया जा रहा क्लेम कि मैं साहित्यिक उपन्यास नहीं लिखता हूं, आपको झूठा लगेगा। क्योंकि कथानक के सारे किरदार भले क्राइम, थ्रिलर, फिक्शन के इर्द-गिर्द घूमते हों लेकिन संजीव पालीवाल ने जिस साहित्यिक शब्दावलियों का इस्तेमाल इस उपन्यास के पन्नों पर किया है उससे तो साफ पता चलता है कि वह लिखते समय उसी जोन में रहते हैं। मानो कोई सामाजिक उपन्यासकार इसे लिख रहा हो। कहानी के किरदार एक के बाद एक दूसरे के साथ इस तरह से जोड़े गए हैं कि आपका मन ही नहीं होगा कि उपन्यास के पन्नों पर खींची गई शब्दों की लकीरें अभी समाप्त हो। आप निरंतर उन शब्दों के प्रवाह के साथ बहते चले जाएंगे।

इस उपन्यास में किरदारों की तस्वीरों को उकेरते संजीव पालीवाल के शब्द केवल अपराध की गहरी छानबीन नहीं करते बल्कि मानवीय व्यवहारों की भी पड़ताल करते चलते हैं। वैसे भी क्राइम थ्रिलर उपन्यास में आपको शायद ही अपराध की कहानी ऐसी मिले जो शुरू से अंत तक उसके साथ जुड़ी हो बल्कि वह तो अंततः परिणाम तक पहुंचकर हीं आपको चौंकाती है। ऐसे में इन उपन्यासों की खासियत भी यही मानी गई है। लेकिन इस उपन्यास में तो क्राइम थ्रिलर का मायने ही आपको बदला हुआ मिलेगा। यानी यह सपाट पृष्ठभूमि पर रची बसी कहानी तो बिल्कुल नहीं है बल्कि यह बेहद रोचक होने के साथ इसमें कथा प्रवाह है, उत्सुकता का बेहतर मिश्रण है जो आपको उपन्यास के हर पन्नों पर रोके रखता है।

वैसे क्राइम थ्रिलर लिखने में हमेशा इस बात का ध्यान रखा जाता है कि शुरुआत में एक प्रश्न पूछा जाए और अंत में उसका उत्तर दर्शकों को मिले। लेकिन संजीव पालीवाल की मुंबई नाइट्स इस सबसे अलग है जो पहले पन्ने से सवाल उठाती है और अंत तक जवाब की खोज में बांधे रखती है।

इस उपन्यास में मुख्य किरदार के तौर पर मुंबई शहर है। मुंबई जो एक जटिल शहर है, मायानगरी है, रहस्य लोक है, सपनों की जमीन है और जिसे समझना आसान नहीं है। उसके जाल में फंसकर हर दिन लाखों अरमान दम तोड़ रहे हैं। यानी इस मायानगरी की माया को समझना इतना आसान नहीं है। लेकिन, अपनी सहज और समृद्ध लेखन शैली से संजीव पालीवाल इस इस मायानगरी की परत दर परत परदे हटाते चले जाते हैं।

‘मुंबई नाइट्स’ भी रहस्मय सुरागों और अप्रत्याशित मोड़ से भरी है, किताब के अंत तक पहुंच कर ही आप असली अपराधी की पहचान कर पाएंगे। इस उपन्यास का तो मुख्य किरदार यानी शहर मुंबई ही साजिश कर्ता है, मतलब यहां किरदारों में कोई एक अपराधी नहीं, एक व्यक्ति नहीं, एक वजह नहीं बल्कि पूरी व्यवस्था साजिश करती नजर आएगी। यानी ऊपर से लेकर नीचे तक व्यवस्थित अपराध की एक श्रृंखला आपको दिखेगी।

मायानगरी में दबाए जाते, कुचले जाते, मसले जाते और धक्का देकर पीछे की ओर धकेले जाते अरमानों की यह एक ऐसी दास्तां है जिसे शायद इस किताब को पढ़े बिना आप महसूस नहीं कर पाएंगे। यह उपन्यास मायानगरी के बजबजाते सिस्टम की पोल खोलकर रख देता है। जिसमें फिल्मी पर्दे पर चमकते तमाम चेहरे बेनक़ाब हो जाते हैं। नेपोटिज्म का शिकार एक आउटसाइडर को इतना अवसाद से भर दिया जाता है कि वह मर जाना पसंद करता है। यानी यहां कत्ल तो होता है लेकिन कातिल के हाथ खून से सने नहीं होते हैं।

इसके ज्यादातर किरदार वही हैं जो मायानगरी की रोशनी में चमकने तो आते हैं लेकिन पता नहीं कब गुमनामी की काली स्याह कोठरी में धकेल दिए जाते हैं। कुछ जो ऊपर आ भी जाते हैं वह ऐसे ही कत्ल कर दिए जाते हैं जिनके खून के निशान कत्ल के बाद भी दिखाई नहीं पड़ते। यानी ये सपनों की नगरी अभिशप्त नजर आती है। यहां ग्लैमर पसंद लोग पहुंचते हैं और उनमें से ज्यादातर को यहां की जमीन ही लील जाती है।

मुंबई नाइट्स में हर पात्र की अपनी एक कहानी है। कोई मरता है, कोई मारता है। क्योंकि वहां रातें मदहोश हैं और राज घातक। यहां किरदारों को जीना होता है और उन्हें मरना और डरना मना है। ऐसे में क्राइम थ्रिलर पसंद करने वालों को मुंबई नाइट्स की कहानी अपने आप से जोड़े रखकर आगे की यात्रा पर लिए चलेगी और आप संजीव पालीवाल की अगली ऐसी यात्रा का आनंद इसके बाद लेना चाहेंगे। जो शब्दों के जरिए वह पन्नों पर उकेरते हैं।

–आईएएनएस

जीकेटी/

नई दिल्ली, 26 अक्टूबर (आईएएनएस)। उपन्यास एक ऐसा शब्द जाल जिसके ताने-बाने को ऐसे बुना जाता है कि यह पाठक को अपने से स्वतः जोड़ ले। जिसके पन्नों पर छपे शब्द पाठक के मन के अंदर चित्रों का माध्यम तैयार करे। पाठक तब तक उसके जादू से अपने आप को वापस नहीं निकाल पाते हैं, जब तक आप उपन्यास के पन्नों के अंतिम पायदान तक ना पहुंच जाएं।  ‘नैना’, ‘पिशाच’ और ‘ये इश्क नहीं आसां’ जैसे चर्चित उपन्यासों के बाद अब एक और उपन्यास लेकर पाठकों के बीच आए हैं लेखक-पत्रकार संजीव पालीवाल। अपने तीन पूर्व उपन्यासों के जरिए पहले से ही पाठकों के दिलों में जगह बना चुके क्राइम थ्रिलर के युवराज संजीव पालीवाल का यह उपन्यास मायानगरी की वह हकीकत बयां करती है जिससे कम ही लोग वाकिफ हैं।

वैसे तो जिसने भी क्राइम फ़िक्शन के बादशाह सुरेन्द्र मोहन पाठक के उपन्यास पढ़े हैं उनके लिए संजीव पालीवाल की ह किताब इस त्योहारी मौसम में बोनस से कम नहीं है। इस उपन्यास को पढ़ते हुए आपको मायानगरी की चमकीली रातें याद आ जाएंगी। यह उपन्यास आपके सामने यह सिद्ध करने में कामयाब हो जाएगी की मुंबई कभी सोती नहीं है।

संजीव पालीवाल की इस नई कृति ‘मुंबई नाइट्स’ को पढ़कर उनके द्वारा किया जा रहा क्लेम कि मैं साहित्यिक उपन्यास नहीं लिखता हूं, आपको झूठा लगेगा। क्योंकि कथानक के सारे किरदार भले क्राइम, थ्रिलर, फिक्शन के इर्द-गिर्द घूमते हों लेकिन संजीव पालीवाल ने जिस साहित्यिक शब्दावलियों का इस्तेमाल इस उपन्यास के पन्नों पर किया है उससे तो साफ पता चलता है कि वह लिखते समय उसी जोन में रहते हैं। मानो कोई सामाजिक उपन्यासकार इसे लिख रहा हो। कहानी के किरदार एक के बाद एक दूसरे के साथ इस तरह से जोड़े गए हैं कि आपका मन ही नहीं होगा कि उपन्यास के पन्नों पर खींची गई शब्दों की लकीरें अभी समाप्त हो। आप निरंतर उन शब्दों के प्रवाह के साथ बहते चले जाएंगे।

इस उपन्यास में किरदारों की तस्वीरों को उकेरते संजीव पालीवाल के शब्द केवल अपराध की गहरी छानबीन नहीं करते बल्कि मानवीय व्यवहारों की भी पड़ताल करते चलते हैं। वैसे भी क्राइम थ्रिलर उपन्यास में आपको शायद ही अपराध की कहानी ऐसी मिले जो शुरू से अंत तक उसके साथ जुड़ी हो बल्कि वह तो अंततः परिणाम तक पहुंचकर हीं आपको चौंकाती है। ऐसे में इन उपन्यासों की खासियत भी यही मानी गई है। लेकिन इस उपन्यास में तो क्राइम थ्रिलर का मायने ही आपको बदला हुआ मिलेगा। यानी यह सपाट पृष्ठभूमि पर रची बसी कहानी तो बिल्कुल नहीं है बल्कि यह बेहद रोचक होने के साथ इसमें कथा प्रवाह है, उत्सुकता का बेहतर मिश्रण है जो आपको उपन्यास के हर पन्नों पर रोके रखता है।

वैसे क्राइम थ्रिलर लिखने में हमेशा इस बात का ध्यान रखा जाता है कि शुरुआत में एक प्रश्न पूछा जाए और अंत में उसका उत्तर दर्शकों को मिले। लेकिन संजीव पालीवाल की मुंबई नाइट्स इस सबसे अलग है जो पहले पन्ने से सवाल उठाती है और अंत तक जवाब की खोज में बांधे रखती है।

इस उपन्यास में मुख्य किरदार के तौर पर मुंबई शहर है। मुंबई जो एक जटिल शहर है, मायानगरी है, रहस्य लोक है, सपनों की जमीन है और जिसे समझना आसान नहीं है। उसके जाल में फंसकर हर दिन लाखों अरमान दम तोड़ रहे हैं। यानी इस मायानगरी की माया को समझना इतना आसान नहीं है। लेकिन, अपनी सहज और समृद्ध लेखन शैली से संजीव पालीवाल इस इस मायानगरी की परत दर परत परदे हटाते चले जाते हैं।

‘मुंबई नाइट्स’ भी रहस्मय सुरागों और अप्रत्याशित मोड़ से भरी है, किताब के अंत तक पहुंच कर ही आप असली अपराधी की पहचान कर पाएंगे। इस उपन्यास का तो मुख्य किरदार यानी शहर मुंबई ही साजिश कर्ता है, मतलब यहां किरदारों में कोई एक अपराधी नहीं, एक व्यक्ति नहीं, एक वजह नहीं बल्कि पूरी व्यवस्था साजिश करती नजर आएगी। यानी ऊपर से लेकर नीचे तक व्यवस्थित अपराध की एक श्रृंखला आपको दिखेगी।

मायानगरी में दबाए जाते, कुचले जाते, मसले जाते और धक्का देकर पीछे की ओर धकेले जाते अरमानों की यह एक ऐसी दास्तां है जिसे शायद इस किताब को पढ़े बिना आप महसूस नहीं कर पाएंगे। यह उपन्यास मायानगरी के बजबजाते सिस्टम की पोल खोलकर रख देता है। जिसमें फिल्मी पर्दे पर चमकते तमाम चेहरे बेनक़ाब हो जाते हैं। नेपोटिज्म का शिकार एक आउटसाइडर को इतना अवसाद से भर दिया जाता है कि वह मर जाना पसंद करता है। यानी यहां कत्ल तो होता है लेकिन कातिल के हाथ खून से सने नहीं होते हैं।

इसके ज्यादातर किरदार वही हैं जो मायानगरी की रोशनी में चमकने तो आते हैं लेकिन पता नहीं कब गुमनामी की काली स्याह कोठरी में धकेल दिए जाते हैं। कुछ जो ऊपर आ भी जाते हैं वह ऐसे ही कत्ल कर दिए जाते हैं जिनके खून के निशान कत्ल के बाद भी दिखाई नहीं पड़ते। यानी ये सपनों की नगरी अभिशप्त नजर आती है। यहां ग्लैमर पसंद लोग पहुंचते हैं और उनमें से ज्यादातर को यहां की जमीन ही लील जाती है।

मुंबई नाइट्स में हर पात्र की अपनी एक कहानी है। कोई मरता है, कोई मारता है। क्योंकि वहां रातें मदहोश हैं और राज घातक। यहां किरदारों को जीना होता है और उन्हें मरना और डरना मना है। ऐसे में क्राइम थ्रिलर पसंद करने वालों को मुंबई नाइट्स की कहानी अपने आप से जोड़े रखकर आगे की यात्रा पर लिए चलेगी और आप संजीव पालीवाल की अगली ऐसी यात्रा का आनंद इसके बाद लेना चाहेंगे। जो शब्दों के जरिए वह पन्नों पर उकेरते हैं।

–आईएएनएस

जीकेटी/

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नई दिल्ली, 26 अक्टूबर (आईएएनएस)। उपन्यास एक ऐसा शब्द जाल जिसके ताने-बाने को ऐसे बुना जाता है कि यह पाठक को अपने से स्वतः जोड़ ले। जिसके पन्नों पर छपे शब्द पाठक के मन के अंदर चित्रों का माध्यम तैयार करे। पाठक तब तक उसके जादू से अपने आप को वापस नहीं निकाल पाते हैं, जब तक आप उपन्यास के पन्नों के अंतिम पायदान तक ना पहुंच जाएं।  ‘नैना’, ‘पिशाच’ और ‘ये इश्क नहीं आसां’ जैसे चर्चित उपन्यासों के बाद अब एक और उपन्यास लेकर पाठकों के बीच आए हैं लेखक-पत्रकार संजीव पालीवाल। अपने तीन पूर्व उपन्यासों के जरिए पहले से ही पाठकों के दिलों में जगह बना चुके क्राइम थ्रिलर के युवराज संजीव पालीवाल का यह उपन्यास मायानगरी की वह हकीकत बयां करती है जिससे कम ही लोग वाकिफ हैं।

वैसे तो जिसने भी क्राइम फ़िक्शन के बादशाह सुरेन्द्र मोहन पाठक के उपन्यास पढ़े हैं उनके लिए संजीव पालीवाल की ह किताब इस त्योहारी मौसम में बोनस से कम नहीं है। इस उपन्यास को पढ़ते हुए आपको मायानगरी की चमकीली रातें याद आ जाएंगी। यह उपन्यास आपके सामने यह सिद्ध करने में कामयाब हो जाएगी की मुंबई कभी सोती नहीं है।

संजीव पालीवाल की इस नई कृति ‘मुंबई नाइट्स’ को पढ़कर उनके द्वारा किया जा रहा क्लेम कि मैं साहित्यिक उपन्यास नहीं लिखता हूं, आपको झूठा लगेगा। क्योंकि कथानक के सारे किरदार भले क्राइम, थ्रिलर, फिक्शन के इर्द-गिर्द घूमते हों लेकिन संजीव पालीवाल ने जिस साहित्यिक शब्दावलियों का इस्तेमाल इस उपन्यास के पन्नों पर किया है उससे तो साफ पता चलता है कि वह लिखते समय उसी जोन में रहते हैं। मानो कोई सामाजिक उपन्यासकार इसे लिख रहा हो। कहानी के किरदार एक के बाद एक दूसरे के साथ इस तरह से जोड़े गए हैं कि आपका मन ही नहीं होगा कि उपन्यास के पन्नों पर खींची गई शब्दों की लकीरें अभी समाप्त हो। आप निरंतर उन शब्दों के प्रवाह के साथ बहते चले जाएंगे।

इस उपन्यास में किरदारों की तस्वीरों को उकेरते संजीव पालीवाल के शब्द केवल अपराध की गहरी छानबीन नहीं करते बल्कि मानवीय व्यवहारों की भी पड़ताल करते चलते हैं। वैसे भी क्राइम थ्रिलर उपन्यास में आपको शायद ही अपराध की कहानी ऐसी मिले जो शुरू से अंत तक उसके साथ जुड़ी हो बल्कि वह तो अंततः परिणाम तक पहुंचकर हीं आपको चौंकाती है। ऐसे में इन उपन्यासों की खासियत भी यही मानी गई है। लेकिन इस उपन्यास में तो क्राइम थ्रिलर का मायने ही आपको बदला हुआ मिलेगा। यानी यह सपाट पृष्ठभूमि पर रची बसी कहानी तो बिल्कुल नहीं है बल्कि यह बेहद रोचक होने के साथ इसमें कथा प्रवाह है, उत्सुकता का बेहतर मिश्रण है जो आपको उपन्यास के हर पन्नों पर रोके रखता है।

वैसे क्राइम थ्रिलर लिखने में हमेशा इस बात का ध्यान रखा जाता है कि शुरुआत में एक प्रश्न पूछा जाए और अंत में उसका उत्तर दर्शकों को मिले। लेकिन संजीव पालीवाल की मुंबई नाइट्स इस सबसे अलग है जो पहले पन्ने से सवाल उठाती है और अंत तक जवाब की खोज में बांधे रखती है।

इस उपन्यास में मुख्य किरदार के तौर पर मुंबई शहर है। मुंबई जो एक जटिल शहर है, मायानगरी है, रहस्य लोक है, सपनों की जमीन है और जिसे समझना आसान नहीं है। उसके जाल में फंसकर हर दिन लाखों अरमान दम तोड़ रहे हैं। यानी इस मायानगरी की माया को समझना इतना आसान नहीं है। लेकिन, अपनी सहज और समृद्ध लेखन शैली से संजीव पालीवाल इस इस मायानगरी की परत दर परत परदे हटाते चले जाते हैं।

‘मुंबई नाइट्स’ भी रहस्मय सुरागों और अप्रत्याशित मोड़ से भरी है, किताब के अंत तक पहुंच कर ही आप असली अपराधी की पहचान कर पाएंगे। इस उपन्यास का तो मुख्य किरदार यानी शहर मुंबई ही साजिश कर्ता है, मतलब यहां किरदारों में कोई एक अपराधी नहीं, एक व्यक्ति नहीं, एक वजह नहीं बल्कि पूरी व्यवस्था साजिश करती नजर आएगी। यानी ऊपर से लेकर नीचे तक व्यवस्थित अपराध की एक श्रृंखला आपको दिखेगी।

मायानगरी में दबाए जाते, कुचले जाते, मसले जाते और धक्का देकर पीछे की ओर धकेले जाते अरमानों की यह एक ऐसी दास्तां है जिसे शायद इस किताब को पढ़े बिना आप महसूस नहीं कर पाएंगे। यह उपन्यास मायानगरी के बजबजाते सिस्टम की पोल खोलकर रख देता है। जिसमें फिल्मी पर्दे पर चमकते तमाम चेहरे बेनक़ाब हो जाते हैं। नेपोटिज्म का शिकार एक आउटसाइडर को इतना अवसाद से भर दिया जाता है कि वह मर जाना पसंद करता है। यानी यहां कत्ल तो होता है लेकिन कातिल के हाथ खून से सने नहीं होते हैं।

इसके ज्यादातर किरदार वही हैं जो मायानगरी की रोशनी में चमकने तो आते हैं लेकिन पता नहीं कब गुमनामी की काली स्याह कोठरी में धकेल दिए जाते हैं। कुछ जो ऊपर आ भी जाते हैं वह ऐसे ही कत्ल कर दिए जाते हैं जिनके खून के निशान कत्ल के बाद भी दिखाई नहीं पड़ते। यानी ये सपनों की नगरी अभिशप्त नजर आती है। यहां ग्लैमर पसंद लोग पहुंचते हैं और उनमें से ज्यादातर को यहां की जमीन ही लील जाती है।

मुंबई नाइट्स में हर पात्र की अपनी एक कहानी है। कोई मरता है, कोई मारता है। क्योंकि वहां रातें मदहोश हैं और राज घातक। यहां किरदारों को जीना होता है और उन्हें मरना और डरना मना है। ऐसे में क्राइम थ्रिलर पसंद करने वालों को मुंबई नाइट्स की कहानी अपने आप से जोड़े रखकर आगे की यात्रा पर लिए चलेगी और आप संजीव पालीवाल की अगली ऐसी यात्रा का आनंद इसके बाद लेना चाहेंगे। जो शब्दों के जरिए वह पन्नों पर उकेरते हैं।

–आईएएनएस

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नई दिल्ली, 26 अक्टूबर (आईएएनएस)। उपन्यास एक ऐसा शब्द जाल जिसके ताने-बाने को ऐसे बुना जाता है कि यह पाठक को अपने से स्वतः जोड़ ले। जिसके पन्नों पर छपे शब्द पाठक के मन के अंदर चित्रों का माध्यम तैयार करे। पाठक तब तक उसके जादू से अपने आप को वापस नहीं निकाल पाते हैं, जब तक आप उपन्यास के पन्नों के अंतिम पायदान तक ना पहुंच जाएं।  ‘नैना’, ‘पिशाच’ और ‘ये इश्क नहीं आसां’ जैसे चर्चित उपन्यासों के बाद अब एक और उपन्यास लेकर पाठकों के बीच आए हैं लेखक-पत्रकार संजीव पालीवाल। अपने तीन पूर्व उपन्यासों के जरिए पहले से ही पाठकों के दिलों में जगह बना चुके क्राइम थ्रिलर के युवराज संजीव पालीवाल का यह उपन्यास मायानगरी की वह हकीकत बयां करती है जिससे कम ही लोग वाकिफ हैं।

वैसे तो जिसने भी क्राइम फ़िक्शन के बादशाह सुरेन्द्र मोहन पाठक के उपन्यास पढ़े हैं उनके लिए संजीव पालीवाल की ह किताब इस त्योहारी मौसम में बोनस से कम नहीं है। इस उपन्यास को पढ़ते हुए आपको मायानगरी की चमकीली रातें याद आ जाएंगी। यह उपन्यास आपके सामने यह सिद्ध करने में कामयाब हो जाएगी की मुंबई कभी सोती नहीं है।

संजीव पालीवाल की इस नई कृति ‘मुंबई नाइट्स’ को पढ़कर उनके द्वारा किया जा रहा क्लेम कि मैं साहित्यिक उपन्यास नहीं लिखता हूं, आपको झूठा लगेगा। क्योंकि कथानक के सारे किरदार भले क्राइम, थ्रिलर, फिक्शन के इर्द-गिर्द घूमते हों लेकिन संजीव पालीवाल ने जिस साहित्यिक शब्दावलियों का इस्तेमाल इस उपन्यास के पन्नों पर किया है उससे तो साफ पता चलता है कि वह लिखते समय उसी जोन में रहते हैं। मानो कोई सामाजिक उपन्यासकार इसे लिख रहा हो। कहानी के किरदार एक के बाद एक दूसरे के साथ इस तरह से जोड़े गए हैं कि आपका मन ही नहीं होगा कि उपन्यास के पन्नों पर खींची गई शब्दों की लकीरें अभी समाप्त हो। आप निरंतर उन शब्दों के प्रवाह के साथ बहते चले जाएंगे।

इस उपन्यास में किरदारों की तस्वीरों को उकेरते संजीव पालीवाल के शब्द केवल अपराध की गहरी छानबीन नहीं करते बल्कि मानवीय व्यवहारों की भी पड़ताल करते चलते हैं। वैसे भी क्राइम थ्रिलर उपन्यास में आपको शायद ही अपराध की कहानी ऐसी मिले जो शुरू से अंत तक उसके साथ जुड़ी हो बल्कि वह तो अंततः परिणाम तक पहुंचकर हीं आपको चौंकाती है। ऐसे में इन उपन्यासों की खासियत भी यही मानी गई है। लेकिन इस उपन्यास में तो क्राइम थ्रिलर का मायने ही आपको बदला हुआ मिलेगा। यानी यह सपाट पृष्ठभूमि पर रची बसी कहानी तो बिल्कुल नहीं है बल्कि यह बेहद रोचक होने के साथ इसमें कथा प्रवाह है, उत्सुकता का बेहतर मिश्रण है जो आपको उपन्यास के हर पन्नों पर रोके रखता है।

वैसे क्राइम थ्रिलर लिखने में हमेशा इस बात का ध्यान रखा जाता है कि शुरुआत में एक प्रश्न पूछा जाए और अंत में उसका उत्तर दर्शकों को मिले। लेकिन संजीव पालीवाल की मुंबई नाइट्स इस सबसे अलग है जो पहले पन्ने से सवाल उठाती है और अंत तक जवाब की खोज में बांधे रखती है।

इस उपन्यास में मुख्य किरदार के तौर पर मुंबई शहर है। मुंबई जो एक जटिल शहर है, मायानगरी है, रहस्य लोक है, सपनों की जमीन है और जिसे समझना आसान नहीं है। उसके जाल में फंसकर हर दिन लाखों अरमान दम तोड़ रहे हैं। यानी इस मायानगरी की माया को समझना इतना आसान नहीं है। लेकिन, अपनी सहज और समृद्ध लेखन शैली से संजीव पालीवाल इस इस मायानगरी की परत दर परत परदे हटाते चले जाते हैं।

‘मुंबई नाइट्स’ भी रहस्मय सुरागों और अप्रत्याशित मोड़ से भरी है, किताब के अंत तक पहुंच कर ही आप असली अपराधी की पहचान कर पाएंगे। इस उपन्यास का तो मुख्य किरदार यानी शहर मुंबई ही साजिश कर्ता है, मतलब यहां किरदारों में कोई एक अपराधी नहीं, एक व्यक्ति नहीं, एक वजह नहीं बल्कि पूरी व्यवस्था साजिश करती नजर आएगी। यानी ऊपर से लेकर नीचे तक व्यवस्थित अपराध की एक श्रृंखला आपको दिखेगी।

मायानगरी में दबाए जाते, कुचले जाते, मसले जाते और धक्का देकर पीछे की ओर धकेले जाते अरमानों की यह एक ऐसी दास्तां है जिसे शायद इस किताब को पढ़े बिना आप महसूस नहीं कर पाएंगे। यह उपन्यास मायानगरी के बजबजाते सिस्टम की पोल खोलकर रख देता है। जिसमें फिल्मी पर्दे पर चमकते तमाम चेहरे बेनक़ाब हो जाते हैं। नेपोटिज्म का शिकार एक आउटसाइडर को इतना अवसाद से भर दिया जाता है कि वह मर जाना पसंद करता है। यानी यहां कत्ल तो होता है लेकिन कातिल के हाथ खून से सने नहीं होते हैं।

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मुंबई नाइट्स में हर पात्र की अपनी एक कहानी है। कोई मरता है, कोई मारता है। क्योंकि वहां रातें मदहोश हैं और राज घातक। यहां किरदारों को जीना होता है और उन्हें मरना और डरना मना है। ऐसे में क्राइम थ्रिलर पसंद करने वालों को मुंबई नाइट्स की कहानी अपने आप से जोड़े रखकर आगे की यात्रा पर लिए चलेगी और आप संजीव पालीवाल की अगली ऐसी यात्रा का आनंद इसके बाद लेना चाहेंगे। जो शब्दों के जरिए वह पन्नों पर उकेरते हैं।

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वैसे तो जिसने भी क्राइम फ़िक्शन के बादशाह सुरेन्द्र मोहन पाठक के उपन्यास पढ़े हैं उनके लिए संजीव पालीवाल की ह किताब इस त्योहारी मौसम में बोनस से कम नहीं है। इस उपन्यास को पढ़ते हुए आपको मायानगरी की चमकीली रातें याद आ जाएंगी। यह उपन्यास आपके सामने यह सिद्ध करने में कामयाब हो जाएगी की मुंबई कभी सोती नहीं है।

संजीव पालीवाल की इस नई कृति ‘मुंबई नाइट्स’ को पढ़कर उनके द्वारा किया जा रहा क्लेम कि मैं साहित्यिक उपन्यास नहीं लिखता हूं, आपको झूठा लगेगा। क्योंकि कथानक के सारे किरदार भले क्राइम, थ्रिलर, फिक्शन के इर्द-गिर्द घूमते हों लेकिन संजीव पालीवाल ने जिस साहित्यिक शब्दावलियों का इस्तेमाल इस उपन्यास के पन्नों पर किया है उससे तो साफ पता चलता है कि वह लिखते समय उसी जोन में रहते हैं। मानो कोई सामाजिक उपन्यासकार इसे लिख रहा हो। कहानी के किरदार एक के बाद एक दूसरे के साथ इस तरह से जोड़े गए हैं कि आपका मन ही नहीं होगा कि उपन्यास के पन्नों पर खींची गई शब्दों की लकीरें अभी समाप्त हो। आप निरंतर उन शब्दों के प्रवाह के साथ बहते चले जाएंगे।

इस उपन्यास में किरदारों की तस्वीरों को उकेरते संजीव पालीवाल के शब्द केवल अपराध की गहरी छानबीन नहीं करते बल्कि मानवीय व्यवहारों की भी पड़ताल करते चलते हैं। वैसे भी क्राइम थ्रिलर उपन्यास में आपको शायद ही अपराध की कहानी ऐसी मिले जो शुरू से अंत तक उसके साथ जुड़ी हो बल्कि वह तो अंततः परिणाम तक पहुंचकर हीं आपको चौंकाती है। ऐसे में इन उपन्यासों की खासियत भी यही मानी गई है। लेकिन इस उपन्यास में तो क्राइम थ्रिलर का मायने ही आपको बदला हुआ मिलेगा। यानी यह सपाट पृष्ठभूमि पर रची बसी कहानी तो बिल्कुल नहीं है बल्कि यह बेहद रोचक होने के साथ इसमें कथा प्रवाह है, उत्सुकता का बेहतर मिश्रण है जो आपको उपन्यास के हर पन्नों पर रोके रखता है।

वैसे क्राइम थ्रिलर लिखने में हमेशा इस बात का ध्यान रखा जाता है कि शुरुआत में एक प्रश्न पूछा जाए और अंत में उसका उत्तर दर्शकों को मिले। लेकिन संजीव पालीवाल की मुंबई नाइट्स इस सबसे अलग है जो पहले पन्ने से सवाल उठाती है और अंत तक जवाब की खोज में बांधे रखती है।

इस उपन्यास में मुख्य किरदार के तौर पर मुंबई शहर है। मुंबई जो एक जटिल शहर है, मायानगरी है, रहस्य लोक है, सपनों की जमीन है और जिसे समझना आसान नहीं है। उसके जाल में फंसकर हर दिन लाखों अरमान दम तोड़ रहे हैं। यानी इस मायानगरी की माया को समझना इतना आसान नहीं है। लेकिन, अपनी सहज और समृद्ध लेखन शैली से संजीव पालीवाल इस इस मायानगरी की परत दर परत परदे हटाते चले जाते हैं।

‘मुंबई नाइट्स’ भी रहस्मय सुरागों और अप्रत्याशित मोड़ से भरी है, किताब के अंत तक पहुंच कर ही आप असली अपराधी की पहचान कर पाएंगे। इस उपन्यास का तो मुख्य किरदार यानी शहर मुंबई ही साजिश कर्ता है, मतलब यहां किरदारों में कोई एक अपराधी नहीं, एक व्यक्ति नहीं, एक वजह नहीं बल्कि पूरी व्यवस्था साजिश करती नजर आएगी। यानी ऊपर से लेकर नीचे तक व्यवस्थित अपराध की एक श्रृंखला आपको दिखेगी।

मायानगरी में दबाए जाते, कुचले जाते, मसले जाते और धक्का देकर पीछे की ओर धकेले जाते अरमानों की यह एक ऐसी दास्तां है जिसे शायद इस किताब को पढ़े बिना आप महसूस नहीं कर पाएंगे। यह उपन्यास मायानगरी के बजबजाते सिस्टम की पोल खोलकर रख देता है। जिसमें फिल्मी पर्दे पर चमकते तमाम चेहरे बेनक़ाब हो जाते हैं। नेपोटिज्म का शिकार एक आउटसाइडर को इतना अवसाद से भर दिया जाता है कि वह मर जाना पसंद करता है। यानी यहां कत्ल तो होता है लेकिन कातिल के हाथ खून से सने नहीं होते हैं।

इसके ज्यादातर किरदार वही हैं जो मायानगरी की रोशनी में चमकने तो आते हैं लेकिन पता नहीं कब गुमनामी की काली स्याह कोठरी में धकेल दिए जाते हैं। कुछ जो ऊपर आ भी जाते हैं वह ऐसे ही कत्ल कर दिए जाते हैं जिनके खून के निशान कत्ल के बाद भी दिखाई नहीं पड़ते। यानी ये सपनों की नगरी अभिशप्त नजर आती है। यहां ग्लैमर पसंद लोग पहुंचते हैं और उनमें से ज्यादातर को यहां की जमीन ही लील जाती है।

मुंबई नाइट्स में हर पात्र की अपनी एक कहानी है। कोई मरता है, कोई मारता है। क्योंकि वहां रातें मदहोश हैं और राज घातक। यहां किरदारों को जीना होता है और उन्हें मरना और डरना मना है। ऐसे में क्राइम थ्रिलर पसंद करने वालों को मुंबई नाइट्स की कहानी अपने आप से जोड़े रखकर आगे की यात्रा पर लिए चलेगी और आप संजीव पालीवाल की अगली ऐसी यात्रा का आनंद इसके बाद लेना चाहेंगे। जो शब्दों के जरिए वह पन्नों पर उकेरते हैं।

–आईएएनएस

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वैसे तो जिसने भी क्राइम फ़िक्शन के बादशाह सुरेन्द्र मोहन पाठक के उपन्यास पढ़े हैं उनके लिए संजीव पालीवाल की ह किताब इस त्योहारी मौसम में बोनस से कम नहीं है। इस उपन्यास को पढ़ते हुए आपको मायानगरी की चमकीली रातें याद आ जाएंगी। यह उपन्यास आपके सामने यह सिद्ध करने में कामयाब हो जाएगी की मुंबई कभी सोती नहीं है।

संजीव पालीवाल की इस नई कृति ‘मुंबई नाइट्स’ को पढ़कर उनके द्वारा किया जा रहा क्लेम कि मैं साहित्यिक उपन्यास नहीं लिखता हूं, आपको झूठा लगेगा। क्योंकि कथानक के सारे किरदार भले क्राइम, थ्रिलर, फिक्शन के इर्द-गिर्द घूमते हों लेकिन संजीव पालीवाल ने जिस साहित्यिक शब्दावलियों का इस्तेमाल इस उपन्यास के पन्नों पर किया है उससे तो साफ पता चलता है कि वह लिखते समय उसी जोन में रहते हैं। मानो कोई सामाजिक उपन्यासकार इसे लिख रहा हो। कहानी के किरदार एक के बाद एक दूसरे के साथ इस तरह से जोड़े गए हैं कि आपका मन ही नहीं होगा कि उपन्यास के पन्नों पर खींची गई शब्दों की लकीरें अभी समाप्त हो। आप निरंतर उन शब्दों के प्रवाह के साथ बहते चले जाएंगे।

इस उपन्यास में किरदारों की तस्वीरों को उकेरते संजीव पालीवाल के शब्द केवल अपराध की गहरी छानबीन नहीं करते बल्कि मानवीय व्यवहारों की भी पड़ताल करते चलते हैं। वैसे भी क्राइम थ्रिलर उपन्यास में आपको शायद ही अपराध की कहानी ऐसी मिले जो शुरू से अंत तक उसके साथ जुड़ी हो बल्कि वह तो अंततः परिणाम तक पहुंचकर हीं आपको चौंकाती है। ऐसे में इन उपन्यासों की खासियत भी यही मानी गई है। लेकिन इस उपन्यास में तो क्राइम थ्रिलर का मायने ही आपको बदला हुआ मिलेगा। यानी यह सपाट पृष्ठभूमि पर रची बसी कहानी तो बिल्कुल नहीं है बल्कि यह बेहद रोचक होने के साथ इसमें कथा प्रवाह है, उत्सुकता का बेहतर मिश्रण है जो आपको उपन्यास के हर पन्नों पर रोके रखता है।

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‘मुंबई नाइट्स’ भी रहस्मय सुरागों और अप्रत्याशित मोड़ से भरी है, किताब के अंत तक पहुंच कर ही आप असली अपराधी की पहचान कर पाएंगे। इस उपन्यास का तो मुख्य किरदार यानी शहर मुंबई ही साजिश कर्ता है, मतलब यहां किरदारों में कोई एक अपराधी नहीं, एक व्यक्ति नहीं, एक वजह नहीं बल्कि पूरी व्यवस्था साजिश करती नजर आएगी। यानी ऊपर से लेकर नीचे तक व्यवस्थित अपराध की एक श्रृंखला आपको दिखेगी।

मायानगरी में दबाए जाते, कुचले जाते, मसले जाते और धक्का देकर पीछे की ओर धकेले जाते अरमानों की यह एक ऐसी दास्तां है जिसे शायद इस किताब को पढ़े बिना आप महसूस नहीं कर पाएंगे। यह उपन्यास मायानगरी के बजबजाते सिस्टम की पोल खोलकर रख देता है। जिसमें फिल्मी पर्दे पर चमकते तमाम चेहरे बेनक़ाब हो जाते हैं। नेपोटिज्म का शिकार एक आउटसाइडर को इतना अवसाद से भर दिया जाता है कि वह मर जाना पसंद करता है। यानी यहां कत्ल तो होता है लेकिन कातिल के हाथ खून से सने नहीं होते हैं।

इसके ज्यादातर किरदार वही हैं जो मायानगरी की रोशनी में चमकने तो आते हैं लेकिन पता नहीं कब गुमनामी की काली स्याह कोठरी में धकेल दिए जाते हैं। कुछ जो ऊपर आ भी जाते हैं वह ऐसे ही कत्ल कर दिए जाते हैं जिनके खून के निशान कत्ल के बाद भी दिखाई नहीं पड़ते। यानी ये सपनों की नगरी अभिशप्त नजर आती है। यहां ग्लैमर पसंद लोग पहुंचते हैं और उनमें से ज्यादातर को यहां की जमीन ही लील जाती है।

मुंबई नाइट्स में हर पात्र की अपनी एक कहानी है। कोई मरता है, कोई मारता है। क्योंकि वहां रातें मदहोश हैं और राज घातक। यहां किरदारों को जीना होता है और उन्हें मरना और डरना मना है। ऐसे में क्राइम थ्रिलर पसंद करने वालों को मुंबई नाइट्स की कहानी अपने आप से जोड़े रखकर आगे की यात्रा पर लिए चलेगी और आप संजीव पालीवाल की अगली ऐसी यात्रा का आनंद इसके बाद लेना चाहेंगे। जो शब्दों के जरिए वह पन्नों पर उकेरते हैं।

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नई दिल्ली, 26 अक्टूबर (आईएएनएस)। उपन्यास एक ऐसा शब्द जाल जिसके ताने-बाने को ऐसे बुना जाता है कि यह पाठक को अपने से स्वतः जोड़ ले। जिसके पन्नों पर छपे शब्द पाठक के मन के अंदर चित्रों का माध्यम तैयार करे। पाठक तब तक उसके जादू से अपने आप को वापस नहीं निकाल पाते हैं, जब तक आप उपन्यास के पन्नों के अंतिम पायदान तक ना पहुंच जाएं।  ‘नैना’, ‘पिशाच’ और ‘ये इश्क नहीं आसां’ जैसे चर्चित उपन्यासों के बाद अब एक और उपन्यास लेकर पाठकों के बीच आए हैं लेखक-पत्रकार संजीव पालीवाल। अपने तीन पूर्व उपन्यासों के जरिए पहले से ही पाठकों के दिलों में जगह बना चुके क्राइम थ्रिलर के युवराज संजीव पालीवाल का यह उपन्यास मायानगरी की वह हकीकत बयां करती है जिससे कम ही लोग वाकिफ हैं।

वैसे तो जिसने भी क्राइम फ़िक्शन के बादशाह सुरेन्द्र मोहन पाठक के उपन्यास पढ़े हैं उनके लिए संजीव पालीवाल की ह किताब इस त्योहारी मौसम में बोनस से कम नहीं है। इस उपन्यास को पढ़ते हुए आपको मायानगरी की चमकीली रातें याद आ जाएंगी। यह उपन्यास आपके सामने यह सिद्ध करने में कामयाब हो जाएगी की मुंबई कभी सोती नहीं है।

संजीव पालीवाल की इस नई कृति ‘मुंबई नाइट्स’ को पढ़कर उनके द्वारा किया जा रहा क्लेम कि मैं साहित्यिक उपन्यास नहीं लिखता हूं, आपको झूठा लगेगा। क्योंकि कथानक के सारे किरदार भले क्राइम, थ्रिलर, फिक्शन के इर्द-गिर्द घूमते हों लेकिन संजीव पालीवाल ने जिस साहित्यिक शब्दावलियों का इस्तेमाल इस उपन्यास के पन्नों पर किया है उससे तो साफ पता चलता है कि वह लिखते समय उसी जोन में रहते हैं। मानो कोई सामाजिक उपन्यासकार इसे लिख रहा हो। कहानी के किरदार एक के बाद एक दूसरे के साथ इस तरह से जोड़े गए हैं कि आपका मन ही नहीं होगा कि उपन्यास के पन्नों पर खींची गई शब्दों की लकीरें अभी समाप्त हो। आप निरंतर उन शब्दों के प्रवाह के साथ बहते चले जाएंगे।

इस उपन्यास में किरदारों की तस्वीरों को उकेरते संजीव पालीवाल के शब्द केवल अपराध की गहरी छानबीन नहीं करते बल्कि मानवीय व्यवहारों की भी पड़ताल करते चलते हैं। वैसे भी क्राइम थ्रिलर उपन्यास में आपको शायद ही अपराध की कहानी ऐसी मिले जो शुरू से अंत तक उसके साथ जुड़ी हो बल्कि वह तो अंततः परिणाम तक पहुंचकर हीं आपको चौंकाती है। ऐसे में इन उपन्यासों की खासियत भी यही मानी गई है। लेकिन इस उपन्यास में तो क्राइम थ्रिलर का मायने ही आपको बदला हुआ मिलेगा। यानी यह सपाट पृष्ठभूमि पर रची बसी कहानी तो बिल्कुल नहीं है बल्कि यह बेहद रोचक होने के साथ इसमें कथा प्रवाह है, उत्सुकता का बेहतर मिश्रण है जो आपको उपन्यास के हर पन्नों पर रोके रखता है।

वैसे क्राइम थ्रिलर लिखने में हमेशा इस बात का ध्यान रखा जाता है कि शुरुआत में एक प्रश्न पूछा जाए और अंत में उसका उत्तर दर्शकों को मिले। लेकिन संजीव पालीवाल की मुंबई नाइट्स इस सबसे अलग है जो पहले पन्ने से सवाल उठाती है और अंत तक जवाब की खोज में बांधे रखती है।

इस उपन्यास में मुख्य किरदार के तौर पर मुंबई शहर है। मुंबई जो एक जटिल शहर है, मायानगरी है, रहस्य लोक है, सपनों की जमीन है और जिसे समझना आसान नहीं है। उसके जाल में फंसकर हर दिन लाखों अरमान दम तोड़ रहे हैं। यानी इस मायानगरी की माया को समझना इतना आसान नहीं है। लेकिन, अपनी सहज और समृद्ध लेखन शैली से संजीव पालीवाल इस इस मायानगरी की परत दर परत परदे हटाते चले जाते हैं।

‘मुंबई नाइट्स’ भी रहस्मय सुरागों और अप्रत्याशित मोड़ से भरी है, किताब के अंत तक पहुंच कर ही आप असली अपराधी की पहचान कर पाएंगे। इस उपन्यास का तो मुख्य किरदार यानी शहर मुंबई ही साजिश कर्ता है, मतलब यहां किरदारों में कोई एक अपराधी नहीं, एक व्यक्ति नहीं, एक वजह नहीं बल्कि पूरी व्यवस्था साजिश करती नजर आएगी। यानी ऊपर से लेकर नीचे तक व्यवस्थित अपराध की एक श्रृंखला आपको दिखेगी।

मायानगरी में दबाए जाते, कुचले जाते, मसले जाते और धक्का देकर पीछे की ओर धकेले जाते अरमानों की यह एक ऐसी दास्तां है जिसे शायद इस किताब को पढ़े बिना आप महसूस नहीं कर पाएंगे। यह उपन्यास मायानगरी के बजबजाते सिस्टम की पोल खोलकर रख देता है। जिसमें फिल्मी पर्दे पर चमकते तमाम चेहरे बेनक़ाब हो जाते हैं। नेपोटिज्म का शिकार एक आउटसाइडर को इतना अवसाद से भर दिया जाता है कि वह मर जाना पसंद करता है। यानी यहां कत्ल तो होता है लेकिन कातिल के हाथ खून से सने नहीं होते हैं।

इसके ज्यादातर किरदार वही हैं जो मायानगरी की रोशनी में चमकने तो आते हैं लेकिन पता नहीं कब गुमनामी की काली स्याह कोठरी में धकेल दिए जाते हैं। कुछ जो ऊपर आ भी जाते हैं वह ऐसे ही कत्ल कर दिए जाते हैं जिनके खून के निशान कत्ल के बाद भी दिखाई नहीं पड़ते। यानी ये सपनों की नगरी अभिशप्त नजर आती है। यहां ग्लैमर पसंद लोग पहुंचते हैं और उनमें से ज्यादातर को यहां की जमीन ही लील जाती है।

मुंबई नाइट्स में हर पात्र की अपनी एक कहानी है। कोई मरता है, कोई मारता है। क्योंकि वहां रातें मदहोश हैं और राज घातक। यहां किरदारों को जीना होता है और उन्हें मरना और डरना मना है। ऐसे में क्राइम थ्रिलर पसंद करने वालों को मुंबई नाइट्स की कहानी अपने आप से जोड़े रखकर आगे की यात्रा पर लिए चलेगी और आप संजीव पालीवाल की अगली ऐसी यात्रा का आनंद इसके बाद लेना चाहेंगे। जो शब्दों के जरिए वह पन्नों पर उकेरते हैं।

–आईएएनएस

जीकेटी/

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नई दिल्ली, 26 अक्टूबर (आईएएनएस)। उपन्यास एक ऐसा शब्द जाल जिसके ताने-बाने को ऐसे बुना जाता है कि यह पाठक को अपने से स्वतः जोड़ ले। जिसके पन्नों पर छपे शब्द पाठक के मन के अंदर चित्रों का माध्यम तैयार करे। पाठक तब तक उसके जादू से अपने आप को वापस नहीं निकाल पाते हैं, जब तक आप उपन्यास के पन्नों के अंतिम पायदान तक ना पहुंच जाएं।  ‘नैना’, ‘पिशाच’ और ‘ये इश्क नहीं आसां’ जैसे चर्चित उपन्यासों के बाद अब एक और उपन्यास लेकर पाठकों के बीच आए हैं लेखक-पत्रकार संजीव पालीवाल। अपने तीन पूर्व उपन्यासों के जरिए पहले से ही पाठकों के दिलों में जगह बना चुके क्राइम थ्रिलर के युवराज संजीव पालीवाल का यह उपन्यास मायानगरी की वह हकीकत बयां करती है जिससे कम ही लोग वाकिफ हैं।

वैसे तो जिसने भी क्राइम फ़िक्शन के बादशाह सुरेन्द्र मोहन पाठक के उपन्यास पढ़े हैं उनके लिए संजीव पालीवाल की ह किताब इस त्योहारी मौसम में बोनस से कम नहीं है। इस उपन्यास को पढ़ते हुए आपको मायानगरी की चमकीली रातें याद आ जाएंगी। यह उपन्यास आपके सामने यह सिद्ध करने में कामयाब हो जाएगी की मुंबई कभी सोती नहीं है।

संजीव पालीवाल की इस नई कृति ‘मुंबई नाइट्स’ को पढ़कर उनके द्वारा किया जा रहा क्लेम कि मैं साहित्यिक उपन्यास नहीं लिखता हूं, आपको झूठा लगेगा। क्योंकि कथानक के सारे किरदार भले क्राइम, थ्रिलर, फिक्शन के इर्द-गिर्द घूमते हों लेकिन संजीव पालीवाल ने जिस साहित्यिक शब्दावलियों का इस्तेमाल इस उपन्यास के पन्नों पर किया है उससे तो साफ पता चलता है कि वह लिखते समय उसी जोन में रहते हैं। मानो कोई सामाजिक उपन्यासकार इसे लिख रहा हो। कहानी के किरदार एक के बाद एक दूसरे के साथ इस तरह से जोड़े गए हैं कि आपका मन ही नहीं होगा कि उपन्यास के पन्नों पर खींची गई शब्दों की लकीरें अभी समाप्त हो। आप निरंतर उन शब्दों के प्रवाह के साथ बहते चले जाएंगे।

इस उपन्यास में किरदारों की तस्वीरों को उकेरते संजीव पालीवाल के शब्द केवल अपराध की गहरी छानबीन नहीं करते बल्कि मानवीय व्यवहारों की भी पड़ताल करते चलते हैं। वैसे भी क्राइम थ्रिलर उपन्यास में आपको शायद ही अपराध की कहानी ऐसी मिले जो शुरू से अंत तक उसके साथ जुड़ी हो बल्कि वह तो अंततः परिणाम तक पहुंचकर हीं आपको चौंकाती है। ऐसे में इन उपन्यासों की खासियत भी यही मानी गई है। लेकिन इस उपन्यास में तो क्राइम थ्रिलर का मायने ही आपको बदला हुआ मिलेगा। यानी यह सपाट पृष्ठभूमि पर रची बसी कहानी तो बिल्कुल नहीं है बल्कि यह बेहद रोचक होने के साथ इसमें कथा प्रवाह है, उत्सुकता का बेहतर मिश्रण है जो आपको उपन्यास के हर पन्नों पर रोके रखता है।

वैसे क्राइम थ्रिलर लिखने में हमेशा इस बात का ध्यान रखा जाता है कि शुरुआत में एक प्रश्न पूछा जाए और अंत में उसका उत्तर दर्शकों को मिले। लेकिन संजीव पालीवाल की मुंबई नाइट्स इस सबसे अलग है जो पहले पन्ने से सवाल उठाती है और अंत तक जवाब की खोज में बांधे रखती है।

इस उपन्यास में मुख्य किरदार के तौर पर मुंबई शहर है। मुंबई जो एक जटिल शहर है, मायानगरी है, रहस्य लोक है, सपनों की जमीन है और जिसे समझना आसान नहीं है। उसके जाल में फंसकर हर दिन लाखों अरमान दम तोड़ रहे हैं। यानी इस मायानगरी की माया को समझना इतना आसान नहीं है। लेकिन, अपनी सहज और समृद्ध लेखन शैली से संजीव पालीवाल इस इस मायानगरी की परत दर परत परदे हटाते चले जाते हैं।

‘मुंबई नाइट्स’ भी रहस्मय सुरागों और अप्रत्याशित मोड़ से भरी है, किताब के अंत तक पहुंच कर ही आप असली अपराधी की पहचान कर पाएंगे। इस उपन्यास का तो मुख्य किरदार यानी शहर मुंबई ही साजिश कर्ता है, मतलब यहां किरदारों में कोई एक अपराधी नहीं, एक व्यक्ति नहीं, एक वजह नहीं बल्कि पूरी व्यवस्था साजिश करती नजर आएगी। यानी ऊपर से लेकर नीचे तक व्यवस्थित अपराध की एक श्रृंखला आपको दिखेगी।

मायानगरी में दबाए जाते, कुचले जाते, मसले जाते और धक्का देकर पीछे की ओर धकेले जाते अरमानों की यह एक ऐसी दास्तां है जिसे शायद इस किताब को पढ़े बिना आप महसूस नहीं कर पाएंगे। यह उपन्यास मायानगरी के बजबजाते सिस्टम की पोल खोलकर रख देता है। जिसमें फिल्मी पर्दे पर चमकते तमाम चेहरे बेनक़ाब हो जाते हैं। नेपोटिज्म का शिकार एक आउटसाइडर को इतना अवसाद से भर दिया जाता है कि वह मर जाना पसंद करता है। यानी यहां कत्ल तो होता है लेकिन कातिल के हाथ खून से सने नहीं होते हैं।

इसके ज्यादातर किरदार वही हैं जो मायानगरी की रोशनी में चमकने तो आते हैं लेकिन पता नहीं कब गुमनामी की काली स्याह कोठरी में धकेल दिए जाते हैं। कुछ जो ऊपर आ भी जाते हैं वह ऐसे ही कत्ल कर दिए जाते हैं जिनके खून के निशान कत्ल के बाद भी दिखाई नहीं पड़ते। यानी ये सपनों की नगरी अभिशप्त नजर आती है। यहां ग्लैमर पसंद लोग पहुंचते हैं और उनमें से ज्यादातर को यहां की जमीन ही लील जाती है।

मुंबई नाइट्स में हर पात्र की अपनी एक कहानी है। कोई मरता है, कोई मारता है। क्योंकि वहां रातें मदहोश हैं और राज घातक। यहां किरदारों को जीना होता है और उन्हें मरना और डरना मना है। ऐसे में क्राइम थ्रिलर पसंद करने वालों को मुंबई नाइट्स की कहानी अपने आप से जोड़े रखकर आगे की यात्रा पर लिए चलेगी और आप संजीव पालीवाल की अगली ऐसी यात्रा का आनंद इसके बाद लेना चाहेंगे। जो शब्दों के जरिए वह पन्नों पर उकेरते हैं।

–आईएएनएस

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नई दिल्ली, 26 अक्टूबर (आईएएनएस)। उपन्यास एक ऐसा शब्द जाल जिसके ताने-बाने को ऐसे बुना जाता है कि यह पाठक को अपने से स्वतः जोड़ ले। जिसके पन्नों पर छपे शब्द पाठक के मन के अंदर चित्रों का माध्यम तैयार करे। पाठक तब तक उसके जादू से अपने आप को वापस नहीं निकाल पाते हैं, जब तक आप उपन्यास के पन्नों के अंतिम पायदान तक ना पहुंच जाएं।  ‘नैना’, ‘पिशाच’ और ‘ये इश्क नहीं आसां’ जैसे चर्चित उपन्यासों के बाद अब एक और उपन्यास लेकर पाठकों के बीच आए हैं लेखक-पत्रकार संजीव पालीवाल। अपने तीन पूर्व उपन्यासों के जरिए पहले से ही पाठकों के दिलों में जगह बना चुके क्राइम थ्रिलर के युवराज संजीव पालीवाल का यह उपन्यास मायानगरी की वह हकीकत बयां करती है जिससे कम ही लोग वाकिफ हैं।

वैसे तो जिसने भी क्राइम फ़िक्शन के बादशाह सुरेन्द्र मोहन पाठक के उपन्यास पढ़े हैं उनके लिए संजीव पालीवाल की ह किताब इस त्योहारी मौसम में बोनस से कम नहीं है। इस उपन्यास को पढ़ते हुए आपको मायानगरी की चमकीली रातें याद आ जाएंगी। यह उपन्यास आपके सामने यह सिद्ध करने में कामयाब हो जाएगी की मुंबई कभी सोती नहीं है।

संजीव पालीवाल की इस नई कृति ‘मुंबई नाइट्स’ को पढ़कर उनके द्वारा किया जा रहा क्लेम कि मैं साहित्यिक उपन्यास नहीं लिखता हूं, आपको झूठा लगेगा। क्योंकि कथानक के सारे किरदार भले क्राइम, थ्रिलर, फिक्शन के इर्द-गिर्द घूमते हों लेकिन संजीव पालीवाल ने जिस साहित्यिक शब्दावलियों का इस्तेमाल इस उपन्यास के पन्नों पर किया है उससे तो साफ पता चलता है कि वह लिखते समय उसी जोन में रहते हैं। मानो कोई सामाजिक उपन्यासकार इसे लिख रहा हो। कहानी के किरदार एक के बाद एक दूसरे के साथ इस तरह से जोड़े गए हैं कि आपका मन ही नहीं होगा कि उपन्यास के पन्नों पर खींची गई शब्दों की लकीरें अभी समाप्त हो। आप निरंतर उन शब्दों के प्रवाह के साथ बहते चले जाएंगे।

इस उपन्यास में किरदारों की तस्वीरों को उकेरते संजीव पालीवाल के शब्द केवल अपराध की गहरी छानबीन नहीं करते बल्कि मानवीय व्यवहारों की भी पड़ताल करते चलते हैं। वैसे भी क्राइम थ्रिलर उपन्यास में आपको शायद ही अपराध की कहानी ऐसी मिले जो शुरू से अंत तक उसके साथ जुड़ी हो बल्कि वह तो अंततः परिणाम तक पहुंचकर हीं आपको चौंकाती है। ऐसे में इन उपन्यासों की खासियत भी यही मानी गई है। लेकिन इस उपन्यास में तो क्राइम थ्रिलर का मायने ही आपको बदला हुआ मिलेगा। यानी यह सपाट पृष्ठभूमि पर रची बसी कहानी तो बिल्कुल नहीं है बल्कि यह बेहद रोचक होने के साथ इसमें कथा प्रवाह है, उत्सुकता का बेहतर मिश्रण है जो आपको उपन्यास के हर पन्नों पर रोके रखता है।

वैसे क्राइम थ्रिलर लिखने में हमेशा इस बात का ध्यान रखा जाता है कि शुरुआत में एक प्रश्न पूछा जाए और अंत में उसका उत्तर दर्शकों को मिले। लेकिन संजीव पालीवाल की मुंबई नाइट्स इस सबसे अलग है जो पहले पन्ने से सवाल उठाती है और अंत तक जवाब की खोज में बांधे रखती है।

इस उपन्यास में मुख्य किरदार के तौर पर मुंबई शहर है। मुंबई जो एक जटिल शहर है, मायानगरी है, रहस्य लोक है, सपनों की जमीन है और जिसे समझना आसान नहीं है। उसके जाल में फंसकर हर दिन लाखों अरमान दम तोड़ रहे हैं। यानी इस मायानगरी की माया को समझना इतना आसान नहीं है। लेकिन, अपनी सहज और समृद्ध लेखन शैली से संजीव पालीवाल इस इस मायानगरी की परत दर परत परदे हटाते चले जाते हैं।

‘मुंबई नाइट्स’ भी रहस्मय सुरागों और अप्रत्याशित मोड़ से भरी है, किताब के अंत तक पहुंच कर ही आप असली अपराधी की पहचान कर पाएंगे। इस उपन्यास का तो मुख्य किरदार यानी शहर मुंबई ही साजिश कर्ता है, मतलब यहां किरदारों में कोई एक अपराधी नहीं, एक व्यक्ति नहीं, एक वजह नहीं बल्कि पूरी व्यवस्था साजिश करती नजर आएगी। यानी ऊपर से लेकर नीचे तक व्यवस्थित अपराध की एक श्रृंखला आपको दिखेगी।

मायानगरी में दबाए जाते, कुचले जाते, मसले जाते और धक्का देकर पीछे की ओर धकेले जाते अरमानों की यह एक ऐसी दास्तां है जिसे शायद इस किताब को पढ़े बिना आप महसूस नहीं कर पाएंगे। यह उपन्यास मायानगरी के बजबजाते सिस्टम की पोल खोलकर रख देता है। जिसमें फिल्मी पर्दे पर चमकते तमाम चेहरे बेनक़ाब हो जाते हैं। नेपोटिज्म का शिकार एक आउटसाइडर को इतना अवसाद से भर दिया जाता है कि वह मर जाना पसंद करता है। यानी यहां कत्ल तो होता है लेकिन कातिल के हाथ खून से सने नहीं होते हैं।

इसके ज्यादातर किरदार वही हैं जो मायानगरी की रोशनी में चमकने तो आते हैं लेकिन पता नहीं कब गुमनामी की काली स्याह कोठरी में धकेल दिए जाते हैं। कुछ जो ऊपर आ भी जाते हैं वह ऐसे ही कत्ल कर दिए जाते हैं जिनके खून के निशान कत्ल के बाद भी दिखाई नहीं पड़ते। यानी ये सपनों की नगरी अभिशप्त नजर आती है। यहां ग्लैमर पसंद लोग पहुंचते हैं और उनमें से ज्यादातर को यहां की जमीन ही लील जाती है।

मुंबई नाइट्स में हर पात्र की अपनी एक कहानी है। कोई मरता है, कोई मारता है। क्योंकि वहां रातें मदहोश हैं और राज घातक। यहां किरदारों को जीना होता है और उन्हें मरना और डरना मना है। ऐसे में क्राइम थ्रिलर पसंद करने वालों को मुंबई नाइट्स की कहानी अपने आप से जोड़े रखकर आगे की यात्रा पर लिए चलेगी और आप संजीव पालीवाल की अगली ऐसी यात्रा का आनंद इसके बाद लेना चाहेंगे। जो शब्दों के जरिए वह पन्नों पर उकेरते हैं।

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