गोटेगांव, देशबन्धु। गोटेगांव में जैन समाज ने विद्या भवन में मुनि श्री 108 प्रशांत सागर जी महाराज के श्री चरणों में विनयांजलि अर्पित की| आपको बतादें कि मुनि श्री प्रशांत सागर का जन्म गोटेगांव नगर में हुआ था | उन्होंने ब्रम्हचर्य व्रत लेते हुए आचार्य गुरुवर विद्यासागर जी महाराज से मुनि दीक्षा प्राप्त की थी |
13 फरवरी को सिद्ध तीर्थ क्षेत्र चंपापुर में उनका उत्कृष्ट मरण, समाधि मरण हो गया था| नगर मैं विराजमान पूज्य आर्यिका 105 अनुनयमति माता जी के ससंघ सानिध्य में उन्हें विनयांजलि अर्पित की| सभा में पारसनाथ दिगंबर जैन मंदिर कमेटी अध्यक्ष सिघंई राजकुमार जैन, सिघंई अनिल जैन, चौधरी विभाष जैन, विकास जैन, सिंघई पंकज जैन, चौधरी सुरेंद्र कुमार कमल कुमार जैन कमल स्टोर्स , चक्रेश, संदीप अजित जैन विकास जैन राजू पंडित जी अनिल जैन टेंट राकेश जैन अनिल जैन अशोक जैन विक्की बड़कोट भानु जैन के साथ ही मुनि श्री प्रशांत सागर जी महाराज के ग्रहस्थ के परिवारजन ब्रह्मचारी भैया, बहनों मुकेश जैन रविता जैन सुलेखा जैन रेखा जैन मुस्कान जैन एवं उपस्थित सभी आर्यिका माताजी ने अपनी अपनी भावना व्यक्त कर महाराज श्री से जुड़े विभिन्न संस्मरण को सुनाते हुए विनयांजलि अर्पित की |
मंच पर विराजमान आर्यिका 105 अनुनय मति माताजी ने मुनि प्रशांत सागर जी महाराज से जुड़े जुड़े अपने संस्मरण सुनाते हुए कहा कि मृत्यु तो सभी की होनी है लेकिन उत्तम दर्शन ज्ञान चरित्र रत्नाकर धारण करते हुए जिस तरह मुनि श्री प्रशांत सागर जी ने समाधि मरण किया है वह समाधि मरण हम सभी को प्राप्त हो | निश्चित ही वह केवल गोटेगांव नगर के नहीं बल्कि संपूर्ण जैन समाज के गौरव थे | सभा में पारसनाथ दिगंबर जैन मंदिर कमेटी अध्यक्ष राजकुमार जैन ने अपनी भावना व्यक्त करते हुए कहा कि मुनि श्री प्रशांत सागर जी महाराज नगर का गौरव, नगर का अभिमान, एवं नगर की पहचान थे | उन्होंने जैनत्व की भावना को उच्चतम मानते हुए श्रेष्ठ मरण ,समाधि मरण किया|
*परिचय*
विदित हो कि आचार्य गुरुवर विद्यासागर जी महाराज के परम प्रभावक शिष्य मुनि श्री 108 प्रशांत सागर जी महाराज का नरसिंहपुर जिले के गोटेगांव में 3 जनवरी 1961 को जन्म हुआ था बीकॉम प्रथम वर्ष तक शिक्षा प्राप्त करने के बाद उनका ध्यान धर्म में ज्यादा था| ग्रहस्थ अवस्था में उनका नाम राजेंद्र जैन राजू भैया था पिता देवचंद जैन और माता सुशीला जैन के 7 बच्चों में वह चौथे नंबर पर थे | 18 फरवरी 1989 को उन्होंने ब्रह्मचर्य व्रत लिया था जैन धर्म की विभिन्न तपश्चार्य को निभाते हुए उन्हें 16 मई 1991 आचार्य श्री द्वारा मुक्तागिरी में छुल्लक दीक्षा दी गई इसके बाद 25 जुलाई 1991 को मुक्तागिरी में ही ऐलक दीक्षा प्रदान की गई और इसके बाद उन्हें 16 अक्टूबर 1997 को शरद पूर्णिमा के दिन सिद्ध क्षेत्र नेमावर में आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज द्वारा मुनि दीक्षा प्रदान की गई | आपको बता दें कि मुनि श्री प्रशांत सागर जी और मुनि श्री निर्वेग सागर जी महाराज पिछले 23 सालों से संसघ विहार कर रहे थे
वह सम्मेद शिखर सिद्ध क्षेत्र की वंदना कर पंचतीर्थ वंदना कर रहे थे इसी दौरान चंपापुर में 13 फरवरी को उनका समाधि मरण हो गया
विनयांजलि सभा के अवसर पर मुनि श्री प्रशांत सागर जी महाराज की याद में विद्या भवन की हाल को विद्या प्रशांत नामकरण किया गया| सभा में बड़ी संख्या में जैन एवं जैनेत्तर समाज के लोग उपस्थित रहे |
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