रांची, 7 जनवरी (आईएएनएस)। रांची के मोरहाबादी मैदान में 18 दिनों से चल रहे राष्ट्रीय खादी एवं सरस महोत्सव का मंगलवार को समापन हो गया। इस मौके पर आयोजित समारोह को बतौर मुख्य अतिथि संबोधित करते हुए राज्यपाल संतोष कुमार गंगवार ने कहा कि यह महोत्सव न केवल हमारी समृद्ध संस्कृति और परंपराओं का प्रतीक है, बल्कि ग्रामीण विकास और स्वरोजगार के लिए एक सशक्त मंच भी साबित हुआ है।
इस बार मेले में 500 से अधिक स्टॉल लगाए गए थे। मेले में स्टॉल के नाम झारखंड के जंगलों में पाए जाने वाले पेड़ों के नाम पर रखे गए थे। खादी संस्थाओं के साथ-साथ विभिन्न सरकारी, गैर सरकारी और निजी संस्थाओं ने इसमें भाग लिया। 18 दिनों के दौरान इस महोत्सव में तीन लाख से भी अधिक लोगों ने मेला स्थल का भ्रमण किया। इस दौरान आईएएनएस से सरस महोत्सव में आए कुछ लोगों से भी बातचीत की।
कुणाल प्रसाद ने आईएएनएस से बात करते हुए कहा कि इस तरह के खादी मेलों का आयोजन हमेशा होते रहना चाहिए, क्योंकि इससे ग्रामीणों को आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर बनने का एक माध्यम मिलता है। इसके द्वारा ग्रामीणों के उत्पादों का प्रचार-प्रसार होता है और देशभर के लोग उन उत्पादों को जान पाते हैं, जो उनके हाथों से बनाए गए होते हैं। चाहे वह हस्तशिल्प हो, मिट्टी के बर्तन, अचार, पापड़ या अन्य ग्रामीण उत्पाद हों, इनका प्रमोशन और ब्रांडिंग देशभर में होने से ग्रामीणों को अपनी मेहनत का सही मूल्य मिल सकता है।
उन्होंने आगे कहा कि यह आयोजन हमारे प्रधानमंत्री के दृष्टिकोण के अनुरूप है, जो चाहते हैं कि इस तरह के आयोजनों से ग्रामीणों और खादी के उत्पादों को बढ़ावा मिले। इसके माध्यम से हम स्वदेशी उत्पादों को अपनाने के लिए लोगों को प्रेरित कर सकते हैं, जिससे ग्रामीण अर्थव्यवस्था मजबूत हो और देश में स्वदेशी उत्पादों का महत्व बढ़े।
संजीव कुमार ने आईएएनएस से बात करते हुए कहा कि सबसे पहले महात्मा गांधी ने इसे प्रोत्साहित करने के लिए अंग्रेज़ों के खिलाफ चरखा चलाया था और खुद सूत काटकर खादी के वस्त्र तैयार किए थे। खादी पहनने में बहुत आरामदायक होती है, गर्मी में इसे पहनने से गर्मी का अहसास नहीं होता और ठंड में पहनने से ठंड की भी अनुभूति नहीं होती। इस तरह के मेलों के आयोजन से ग्रामीण क्षेत्रों में कुटीर उद्योगों द्वारा निर्मित उत्पादों को प्रमोट किया जाता है, जो यहां लाए जाते हैं। यहां आप देख सकते हैं कि पापड़, अचार और बहुत सारे हस्तनिर्मित उत्पाद उपलब्ध होते हैं।
उन्होंने आगे कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी खादी को प्रमोट करते हैं और हमें भी इसे अपनाना चाहिए, क्योंकि खादी हमारे देश का निर्मित उत्पाद है। ‘लोकल फॉर वोकल’ का जो नारा है, वह खादी उद्योग से जुड़े लोगों की मदद करता है, क्योंकि वह अपनी आजीविका इस उद्योग से प्राप्त करते हैं और अच्छे जीवन स्तर का आनंद लेते हैं। खादी न केवल हमारे देश की धरोहर है, बल्कि यह लोगों को आत्मनिर्भर बनाने का माध्यम भी है।
अर्चना कुमारी ने आईएएनएस से बात करते हुए कहा कि पहले तो महिलाएं यहां पर स्वावलंबी हो रही हैं। जो काम वह पहले अपने घरों में करती थीं, अब वही काम वह बाहर आकर कर रही हैं, जैसे अचार, पापड़ या खादी का कपड़ा बनाना। इससे वह न केवल अपना घर चला रही हैं, बल्कि खादी को भी बढ़ावा दे रही हैं। खादी से बने हाथ से बुने कपड़े और अन्य उत्पादों का उपयोग हमें करना चाहिए। प्रधानमंत्री मोदी की यह पहल बहुत सराहनीय है और ‘लोकल फॉर वोकल’ का नारा उन्होंने सही तरीके से लागू किया है। यह पहल हमारे देश के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही है।
डॉ. डी. कुमार ने आईएएनएस से बात करते हुए कहा कि गांव के लोग या ग्रामीण इलाकों के लोग, उनका उत्थान करना बहुत ज़रूरी है। इस तरह के आयोजनों, जैसे खादी मेला का होना समय-समय पर आवश्यक है ताकि लोग अपने घर में जो घरेलू सामान बनाते हैं, उसे यहां ला सकें और इसका व्यापार कर सकें। प्रधानमंत्री मोदी भी खादी को लेकर बहुत उत्साहित हैं और इसको बढ़ावा देने की पूरी कोशिश कर रहे हैं। हम चाहते हैं कि खादी का और प्रचार-प्रसार हो, क्योंकि यह प्रथा पहले महात्मा गांधी के समय में प्रचलित थी, लेकिन अब यह लुप्त होती जा रही है। हमें इस प्रथा को बढ़ावा देना चाहिए ताकि यह फिर से जीवित हो सके और ग्रामीणों को भी आर्थिक रूप से सशक्त बनाया जा सके।
–आईएएनएस
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