राजसमंद (राजस्थान), 2 फरवरी (आईएएनएस)। राजस्थान के राजसमंद स्थित पुष्टिमार्गीय मंदिरों में रविवार से बसंत उत्सव की शुरुआत हो गई है। इस उत्सव की शुरुआत बसंत पंचमी के दिन ठाकुर जी के शयन दर्शन के साथ होती है, जिसमें बड़ी संख्या में श्रद्धालु भाग लेते हैं। इस दिन विशेष रूप से ठाकुर जी के समक्ष पीले फूलों की रंगोली बनाई जाती है और गुलाल का भोग अर्पित किया जाता है, जिससे बसंत उत्सव का आगाज होता है।
इस अवसर पर पुष्टिमार्ग की प्रमुख पीठ श्रीनाथजी मंदिर नाथद्वारा और द्वारकाधीश मंदिर में विशेष आयोजन होते हैं। यहां हर साल बसंत उत्सव के दौरान ठाकुर जी के दर्शन के साथ रंगों का पर्व होली भी मनाया जाता है। बसंत उत्सव 40 दिन तक चलता है, जिसमें राल महोत्सव, रसियागान और अन्य धार्मिक आयोजन होते हैं। यह उत्सव न केवल राजस्थान बल्कि गुजरात और महाराष्ट्र जैसे अन्य राज्यों से भी श्रद्धालुओं को आकर्षित करता है।
बसंत पंचमी के दिन ठाकुर जी को पीले वस्त्रों में सजाया जाता है और उनके समक्ष पीले फूलों की रंगोली बनाई जाती है। इसके बाद राजभोग अर्पित किया जाता है, और विशेष रूप से गुलाल का भोग भी लगता है, जो होली के करीब होने के कारण श्रद्धालुओं के मन में विशेष उत्साह और उमंग जगाता है।
गुजरात से आई श्रद्धालु निशि ने बताया, “हम यहां बसंत पंचमी पर दर्शन करने आए हैं। बसंत पंचमी से बसंत उत्सव की शुरुआत होती है और ठाकुर जी महाराज रंग खेलते हैं।”
मंदिर अधिकारी राजकुमार गोरवा ने कहा, “ यह एक बहुत प्राचीन परंपरा है, जो हर वर्ष मनाई जाती है। बसंत पंचमी के दिन, दर्शनपुर जाएंगे जहां छोटी दीवाली तक उत्सव मनाया जाएगा। दूसरी बात, वसंत उत्सव और अंतरिक्ष में, चालीस दिनों तक ठाकुर जी खेल और होली के रसिया गायेंगे, जो फाल्गुन पूर्णिमा तक चलेंगे। आज का विशेष दर्शन यह है कि राजभोग के बाद, पंद्रह से बीस मिनट बाद दर्शन फिर से खुलेंगे, जब ठाकुर जी को बसंत के फूल, विशेषकर सरसों के पीले फूल चढ़ाए जाएंगे। आज ठाकुर जी सफेद वस्त्र धारण किए हुए हैं और उनकी वफादारी की झलक दिखाई दे रही है।”
इन विशेष आयोजनों के दौरान श्रद्धालु दर्शन करने के लिए दूर-दूर से आते हैं और ठाकुर जी के साथ रंग खेलने का महत्व समझते हैं। बसंत पंचमी का यह पर्व श्रद्धालुओं के लिए एक विशेष अवसर बन जाता है, जिसमें वे अपने उज्जवल भविष्य की कामना करते हैं और ठाकुर जी के प्रति अपनी भक्ति व्यक्त करते हैं।
–आईएएनएस
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