जबलपुर. मध्य प्रदेश शासन, उच्च शिक्षा विभाग द्वारा विगत दिवस जारी प्रशासनिक आदेश क्रमांक/एफ-5/1/1/0046/2024/38-3 के द्वारा रानी दुर्गावती विश्वविद्यालय (रादुविवि) के तृतीय एवं चतुर्थ श्रेणी संवर्ग के 70 पदोन्नति के पदों को निरस्त/अमान्य करने का आदेश अन्यायपूर्ण एवं प्राकृतिक न्याय के सिद्धान्त के पूर्णत: विपरीत है.
यह आरोप लगाते हुए कर्मचारी संघ के अध्यक्ष वीरेन्द्र सिंह पटैल तथा महासचिव राजेन्द्र शुक्ला ने बताया कि वर्ष 1997 में पद सृजित करने का निर्णय रादुविवि विश्वविद्यालय प्रशासन द्वारा तत्समय कार्य की आवश्यकता को दृष्टिगत रखते हुए लिया गया था. इस हेतु शासन से अतिरिक्त अनुदान की मांग भी नहीं की गई और न ही शासन द्वारा कोई अनुदान स्वीकृत किया गया है.
इन पदों पर आने वाला वित्तीय भार विश्वविद्यालय द्वारा स्वयं अपने स्त्रोतों से वहन किया जा रहा है. राज्य शासन की स्वीकृति की प्रत्याशा में पद सृजन उपरांत कर्मचारियों को पदोन्नत किया गया और पद सृजन के अनुमोदन हेतु राज्य शासन से मांग की गई थी. वर्ष 1997 की तुलना में वर्तमान में विश्वविद्यालय में अध्ययनरत छात्रों, संचालित पाठ्यक्रमों तथा संबद्ध महाविद्यालयों की संख्या में कई गुना वृद्धि के कारण विश्वविद्यालय के प्रशासनिक कार्यक्षेत्र में कई गुना विस्तार हुआ है.
ऐसे में 27 वर्ष पूर्व लिये गये पद सृजन के निर्णय को शासन द्वारा बिना उचित पक्ष के सुने निरस्त कर देना अमानवीय एवं असंवैधानिक एवं निंदनीय है, जिससे न केवल रानी दुर्गावती विश्वविद्यालय अपितु प्रदेश के समस्त शासकीय विश्वविद्यालयों के कर्मचारी प्रतिनिधियों तथा कर्मचारियों में आक्रोश व्याप्त है.
कर्मचारियों के हितों के विपरीत जारी आदेश पर पुनर्विचार हेतु उच्च शिक्षा मंत्री एवं मुख्यमंत्री के समक्ष महासंघ के बैनर तले पुरजोर मांग रखी जायेगी. संघ ने कहा कि यदि सुनवाई नहीं हुई तो न केवल रादुविवि अपितु प्रदेश के समस्त शासकीय विश्वविद्यालयों में कार्यरत् कर्मचारी उग्र आन्दोलन को बाध्य होंगें, जिसकी सम्पूर्ण जिम्मेदारी राज्य शासन की होगी.
संघ ने बताया कि इस संबंध में कुलगुरू प्रो राजेश कुमार वर्मा से दूरभाष पर चर्चा हुई है, उन्होंने प्रकरण में हर संभव सहयोग हेतु आश्वस्त किया है. कर्मचारी संघ के प्रेम पुरोहित, अजय झारिया, बीरेन्द्र कुमार तिवारी, रजनीश पाण्डेय, संजय तिवारी, राम सिंह, पंकज पाण्डेय, सुखदीन कटारे के साथ विश्वविद्यालय के समस्त कर्मचारियो ने पद निरस्त करने संबंधी जारी आदेश को तत्काल प्रभाव से निरस्त करने की मांग की है.