जबलपुर. रैगिंग व कठोर ड्यूटी के कारण पीजी मेडिकल सीट मजबूरन छोडनी पडी थी. इसके बावजूद भी सरकार के द्वारा जुर्माने के रूप में तीस लाख रुपये वसूले जाने को चुनौती देते हुए हाईकोर्ट में याचिका दायर की गयी थी. हाईकोर्ट जस्टिस एस ए धर्माधिकारी तथा जस्टिस अनुराधा शुक्ला की युगलपीठ ने याचिका की सुनवाई करते हुए अनावेदकों को नोटिस जारी कर जवाब मांगा है.
सिहोरा निवासी डॉ राज कुमार अहिरवार की तरफ से दायर की गयी याचिका में कहा गया था कि अनुसूचित जाति वर्ग का है.
नीट परीक्षा 2022 में उसका चयन हुआ था और गांधी मेडिकल कॉलेज भोपाल में उसे पीजी पीडियाट्रिक्स की सीट आवंटित हुई थी. दाखिले के समय उसने सीट लिविंग बॉन्ड भी भरा था. कॉलेज में नवम्बर 2022 से जनवारी 2023 तक उसकी रैगिंग की गयी. इसके अलावा जूनियर डॉक्टर के रूप में 48 घंटो तक लगातार ड्यूटी करवाई गयी. प्रताडना से त्रस्त होकर उसने जनवरी 2023 में सीट छोड दी थी. सीट लिविंग बॉन्ड भरने के कारण मूल दस्तावेज लौटाने के एवज में कॉलेज प्रबंधन द्वारा उससे 30 लाख रुपये जुर्माने के रूप में वसूले गये.
याचिका में कहा गया था कि मध्य प्रदेश से गरीब राज्य में पीजी सीट छोड़ने के एवज में 30 लाख रूप से भारी भरकम जुर्माने के संबंध में लोकसभा में सवाल उठाया गया था. जिसके बाद राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग ने उक्त जुर्माने के निर्णय को वापस लेने के निर्देष सरकार को दिये थे. सरकार के द्वारा साल 2024 में सीट छोड़ने के एवज में जुर्माना वसूले जाने के निर्णय को वापस ले लिया. याचिका में कहा गया था कि सरकार द्वारा 2024 में उक्त निर्णय लिया गया है.
वह साल 2022-23 का छात्र था,इसलिए उससे राशि वसूली गयी. जो संविधान के अनुच्छेद 14 व 19 का उल्लंघन है,जो नागरिकों को सामान्यता का अधिकार प्रदान करता है. सीट छोड़ने पर जुर्माने की राशि नहीं जमा करने के कारण पूर्व में पांच व्यक्तियों को मजबूरन आत्महत्या करनी पड़ी थी. युगलपीठ ने सुनवाई के बाद प्रमुख सचिव,संचालक मेडिकल एजुकेशन तथा डीन गांधी मेडिकल कॉलेज को नोटिस जारी कर जवाब मांगा है. याचिकाकर्ता की तरफ से अधिवक्ता आदित्य संघी ने पैरवी की.