लखनऊ, 15 अक्टूबर (आईएएसएन)। लखनऊ में ऐशबाग की प्रसिद्ध रामलीला शहर की सबसे पुरानी रामलीलाओं में से एक है और इसकी उत्पत्ति 16वीं शताब्दी में संत-कवि गोस्वामी तुलसीदास से मानी जाती है, जो इसे लगभग 500 वर्ष से अधिक पुरानी बनाती है।
आज यह देश की सबसे हाईटेक रामलीला बनने का गौरव हासिल कर चुकी है।
ऐशबाग के श्री राम लीला समिति के महासचिव आदित्य द्विवेदी ने कहा, ”16वीं शताब्दी में जब गोस्वामी तुलसीदास चौमासा के लिए यहां आये तो वे इसी स्थान पर रुके थे जो सन्यासियों का अखाड़ा था। वह उन सन्यासियों को राम कथा सुनाते थे जिन्होंने रामलीला का मंचन करना शुरू किया था ताकि इसका मूल संदेश जनता तक आसान तरीके से पहुंचे। तुलसीदास के निर्देशन में ही रामलीला का मंचन प्रारम्भ हुआ।”
आदित्य द्विवेदी ने कहा, ”1773 में नवाब आसफुद्दौला अपने मंत्रियों के साथ यहां रामलीला देखने आए थे। यह देखकर वे इतने प्रसन्न हुए कि उन्होंने न केवल अखाड़े को 6.5 एकड़ जमीन दान में दे दी, बल्कि रामलीला के लिए वार्षिक सहायता भी देनी शुरू कर दी। आज यह सहायता लखनऊ नगर निगम द्वारा दी जाती है।”
उन्होंने आगे कहा, ”1857 तक, चौमासा के लिए यहां आने वाले सन्यासियों द्वारा रामलीला का मंचन किया जाता था। 1857 के विद्रोह के बाद अंग्रेजों ने सन्यासियों के आंदोलन पर प्रतिबंध लगा दिया था। इसके बाद अखाड़े के साधुओं ने स्थानीय लोगों से संपर्क किया जिन्होंने रामलीला का मंचन करना शुरू कर दिया। तब से अब तक कई परिवार रामलीला समिति से जुड़े हुए हैं और 10 से अधिक परिवार पीढ़ियों से समिति की सेवा कर रहे हैं।”
ऐसा ही एक परिवार किशन लाल अग्रवाल का है, जिनके बेटे कन्हैयालाल, पोते प्राग दास, परपोते चमन लाल, परपोते गुलाबचंद और परपोते हरीश चंद्र समिति के प्रमुख थे। ऐशबाग के श्री रामलीला समिति के हरीश चंद्र वर्तमान अध्यक्ष हैं।
द्विवेदी ने कहा, ‘गिरिजा भूषण सिन्हा, बसंत लाल कोहली, विष्णु नारायण चड्ढा, देवी प्रसाद वर्मा, वृन्दावन अवस्थी और केदारनाथ पाधा (राज्यसभा सदस्य दिनेश शर्मा के पिता) के परिवार के सदस्य आज भी रामलीला समिति से जुड़े हुए हैं। मैं गर्व से कह सकता हूं कि हम सभी देश की सबसे पुरानी रामलीला का हिस्सा हैं। यहां तक कि कोविड काल में भी हमने ऑनलाइन ही रामलीला का मंचन किया।”
आदित्य द्विवेदी ने आगे कहा, ”हम रामलीला में विशेष प्रभावों का उपयोग करने वाले पहले व्यक्ति थे और आज हम युवाओं को आकर्षित करने के लिए सर्वोत्तम तकनीक का उपयोग कर रहे हैं। आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि यहां आने वाली भीड़ में 80 प्रतिशत युवा होते हैं और जिन दिनों रामलीला का मंचन होता है, उस दौरान हमारा मैदान खचाखच भरा रहता है। आज हम विशेष प्रभाव, संगीत और ध्वनि प्रणाली के साथ त्रेता युग के दृश्य बनाते हैं। जब लड़ाई के दृश्यों का अभिनय किया जाता है, तो हमारे विशेष प्रभाव सुर्खियों में आ जाते हैं, खासकर जब हमें किसी को आकाश में उड़ते हुए और दुश्मनों को मारते हुए दिखाना होता है। हम भगवान राम को लंका जाते हुए दिखाते हुए समुद्र में लहरें पैदा करने का भी प्रबंधन करते हैं। युवा यह देखने के लिए यहां आते हैं कि हम यह कैसे करते हैं।”
उन्होंने कहा, ”आज रामलीला बहुत महंगी होती जा रही है लेकिन हम भाग्यशाली हैं कि जो कलाकार अलग-अलग भूमिकाएं निभाने आते हैं, वे कोई शुल्क नहीं लेते। इनमें से अधिकतर विभिन्न क्षेत्रों में काम करने वाले पेशेवर हैं। उनमें से कई हमारी रामलीला में अपनी भूमिका निभाने के लिए विशेष छुट्टी लेते हैं।”
उन्होंने कहा, ”पिछले तीन महीनों से, वे ज़ूम पर अपने डायलॉग की प्रैक्टिस कर रहे हैं क्योंकि वे दिल्ली, कोलकाता और लखनऊ आदि जैसे विभिन्न शहरों में स्थित हैं। हम एक भूमिका के लिए दो कलाकारों को तैयार कर रहे हैं क्योंकि अंतिम समय में कोई भी कलाकार बीमार पड़ सकता है। हालांकि, यहां धार्मिक रूप से होने वाली रामलीला के मुख्य पात्रों की पूजा करने की परंपरा है।”
पिछले 10 सालों से रावण की भूमिका निभा रहे शंकर लाल ने कहा, ”मैं अपना व्यवसाय अपने परिवार के सदस्यों पर छोड़कर हर साल कोलकाता से आता हूं। मुझे लगता है कि जितना अधिक मैं यहां काम करूंगा उतना ही मैं जीवन में प्रगति करूंगा। यहां काम करके मुझे शांति मिली है जो उस पैसे से कहीं अधिक है जो मैंने एक पेशेवर के रूप में कमाया होता।”
हनुमान का किरदार निभाने वाले भास्कर बोस ने कहा, ”एक समय था जब बिना लाउडस्पीकर के, मिट्टी के दीयों और पेट्रोमैक्स की रोशनी में रामलीला का मंचन किया जाता था। आज यह पूरी तरह से बदल चुकी है और देश की सबसे हाईटेक रामलीलाओं में से एक बन गई है। मुझे इस रामलीला का हिस्सा बनने पर गर्व है।”
–आईएएनएस
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