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Home ताज़ा समाचार

लालू के खास अखिलेश को कांग्रेस की कमान, सामने कई चुनौतियां

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December 6, 2022
in ताज़ा समाचार
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लालू के खास अखिलेश को कांग्रेस की कमान, सामने कई चुनौतियां
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पटना, 6 दिसंबर (आईएएनएस)। बिहार कांग्रेस की जिम्मेदारी अब राज्यसभा सांसद अखिलेश प्रसाद सिंह को मिली है। डॉ मदन मोहन झा को प्रदेश अध्यक्ष से हटाकर सिंह को प्रदेश अध्यक्ष बनाकर कांग्रेस ने इसके साफ संकेत दे दिए हैे कि उनकी नजर सवर्ण (अगड़े) जातियों पर है। लेकिन, इसे लेकर अब सवाल भी उठने लगे हैं।

वैसे, सिंह के अध्यक्ष बनने के बाद शुरू में ही उन्हें कई चुनौतियों से निपटना होगा।

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राजद प्रमुख लालू प्रसाद यादव के खास माने जाने वाले सिंह भूमिहार जाति से आते हैं और राजद छोड़कर कांग्रेस में आए है। पिछले कुछ महीनों में देखें तो राजद और कांग्रेस के रिश्ते बनते बिगड़ते रहे हैं। फिलहाल कांग्रेस महागठबंधन में है। कई मौके पर कांग्रेस ने राजद की छाया से बाहर निकलने की कोशिश की, लेकिन सफलता नहीं मिली।

इधर, कांग्रेस के एक नेता ने नाम नहीं प्रकाशित करने की शर्त पर बताया कि सिंह के पहले भी सवर्ण अध्यक्ष थे और फिर से सवर्ण को ही अध्यक्ष बना दिया गया है। उन्होंने कहा कि इससे दलित, पिछड़े, अति पिछड़े नेताओं और कार्यकर्ताओं में असंतोष है।

वैसे, बिहार में कांग्रेस की जिम्मेदारी हाल के वर्षों में कांटो वाली ताज मानी जाती रही है। सिंह को प्रदेश की जिम्मेदारी संभालते हुए कई चुनौतियों का सामना करना पड़ेगा।

इसमें सबसे पहली चुनौती होगी राज्य में पार्टी के लिए जमीन खोजना। इसमें कोई शक नहीं कि कांग्रेस बिहार में वर्षों से अपनी खोई जमीन तलाशने में जुटी है, लेकिन उसे सफलता नहीं मिल रही है। ऐसे में कांग्रेस राजद के छाए से बाहर कैसे खोई जमीन को फिर से तलाश पाती है, यह देखने वाली बात होगी।

इसके अलावा राज्य में पार्टी संगठन को एकजुट रखना उनके लिए सबसे बड़ी चुनौती होगी। बिहार में कांग्रेस कई खेमों में बंटी है। ऐसे में सिंह के सामने सभी खेमों को एकजुट करने की भी चुनौती होगी।

उल्लेखनीय है कि सिंह बिहार सरकार और केंद्र में भी मंत्री रह चुके हैं।

गौरतलब है कि डॉ मदन मोहन झा के कार्यकाल में 2019 का लोकसभा चुनाव, 2020 का विधानसभा चुनाव हुए लेकिन कांग्रेस बिहार में कोई खास प्रभाव नहीं छोड़ सकी। 2020 के चुनाव में 70 सीटों पर चुनाव लड़कर कांग्रेस महज 19 सीटों पर ही जीत दर्ज कर सकी थी।

–आईएएनएस

एमएनपी/एसकेपी

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पटना, 6 दिसंबर (आईएएनएस)। बिहार कांग्रेस की जिम्मेदारी अब राज्यसभा सांसद अखिलेश प्रसाद सिंह को मिली है। डॉ मदन मोहन झा को प्रदेश अध्यक्ष से हटाकर सिंह को प्रदेश अध्यक्ष बनाकर कांग्रेस ने इसके साफ संकेत दे दिए हैे कि उनकी नजर सवर्ण (अगड़े) जातियों पर है। लेकिन, इसे लेकर अब सवाल भी उठने लगे हैं।

वैसे, सिंह के अध्यक्ष बनने के बाद शुरू में ही उन्हें कई चुनौतियों से निपटना होगा।

राजद प्रमुख लालू प्रसाद यादव के खास माने जाने वाले सिंह भूमिहार जाति से आते हैं और राजद छोड़कर कांग्रेस में आए है। पिछले कुछ महीनों में देखें तो राजद और कांग्रेस के रिश्ते बनते बिगड़ते रहे हैं। फिलहाल कांग्रेस महागठबंधन में है। कई मौके पर कांग्रेस ने राजद की छाया से बाहर निकलने की कोशिश की, लेकिन सफलता नहीं मिली।

इधर, कांग्रेस के एक नेता ने नाम नहीं प्रकाशित करने की शर्त पर बताया कि सिंह के पहले भी सवर्ण अध्यक्ष थे और फिर से सवर्ण को ही अध्यक्ष बना दिया गया है। उन्होंने कहा कि इससे दलित, पिछड़े, अति पिछड़े नेताओं और कार्यकर्ताओं में असंतोष है।

वैसे, बिहार में कांग्रेस की जिम्मेदारी हाल के वर्षों में कांटो वाली ताज मानी जाती रही है। सिंह को प्रदेश की जिम्मेदारी संभालते हुए कई चुनौतियों का सामना करना पड़ेगा।

इसमें सबसे पहली चुनौती होगी राज्य में पार्टी के लिए जमीन खोजना। इसमें कोई शक नहीं कि कांग्रेस बिहार में वर्षों से अपनी खोई जमीन तलाशने में जुटी है, लेकिन उसे सफलता नहीं मिल रही है। ऐसे में कांग्रेस राजद के छाए से बाहर कैसे खोई जमीन को फिर से तलाश पाती है, यह देखने वाली बात होगी।

इसके अलावा राज्य में पार्टी संगठन को एकजुट रखना उनके लिए सबसे बड़ी चुनौती होगी। बिहार में कांग्रेस कई खेमों में बंटी है। ऐसे में सिंह के सामने सभी खेमों को एकजुट करने की भी चुनौती होगी।

उल्लेखनीय है कि सिंह बिहार सरकार और केंद्र में भी मंत्री रह चुके हैं।

गौरतलब है कि डॉ मदन मोहन झा के कार्यकाल में 2019 का लोकसभा चुनाव, 2020 का विधानसभा चुनाव हुए लेकिन कांग्रेस बिहार में कोई खास प्रभाव नहीं छोड़ सकी। 2020 के चुनाव में 70 सीटों पर चुनाव लड़कर कांग्रेस महज 19 सीटों पर ही जीत दर्ज कर सकी थी।

–आईएएनएस

एमएनपी/एसकेपी

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पटना, 6 दिसंबर (आईएएनएस)। बिहार कांग्रेस की जिम्मेदारी अब राज्यसभा सांसद अखिलेश प्रसाद सिंह को मिली है। डॉ मदन मोहन झा को प्रदेश अध्यक्ष से हटाकर सिंह को प्रदेश अध्यक्ष बनाकर कांग्रेस ने इसके साफ संकेत दे दिए हैे कि उनकी नजर सवर्ण (अगड़े) जातियों पर है। लेकिन, इसे लेकर अब सवाल भी उठने लगे हैं।

वैसे, सिंह के अध्यक्ष बनने के बाद शुरू में ही उन्हें कई चुनौतियों से निपटना होगा।

राजद प्रमुख लालू प्रसाद यादव के खास माने जाने वाले सिंह भूमिहार जाति से आते हैं और राजद छोड़कर कांग्रेस में आए है। पिछले कुछ महीनों में देखें तो राजद और कांग्रेस के रिश्ते बनते बिगड़ते रहे हैं। फिलहाल कांग्रेस महागठबंधन में है। कई मौके पर कांग्रेस ने राजद की छाया से बाहर निकलने की कोशिश की, लेकिन सफलता नहीं मिली।

इधर, कांग्रेस के एक नेता ने नाम नहीं प्रकाशित करने की शर्त पर बताया कि सिंह के पहले भी सवर्ण अध्यक्ष थे और फिर से सवर्ण को ही अध्यक्ष बना दिया गया है। उन्होंने कहा कि इससे दलित, पिछड़े, अति पिछड़े नेताओं और कार्यकर्ताओं में असंतोष है।

वैसे, बिहार में कांग्रेस की जिम्मेदारी हाल के वर्षों में कांटो वाली ताज मानी जाती रही है। सिंह को प्रदेश की जिम्मेदारी संभालते हुए कई चुनौतियों का सामना करना पड़ेगा।

इसमें सबसे पहली चुनौती होगी राज्य में पार्टी के लिए जमीन खोजना। इसमें कोई शक नहीं कि कांग्रेस बिहार में वर्षों से अपनी खोई जमीन तलाशने में जुटी है, लेकिन उसे सफलता नहीं मिल रही है। ऐसे में कांग्रेस राजद के छाए से बाहर कैसे खोई जमीन को फिर से तलाश पाती है, यह देखने वाली बात होगी।

इसके अलावा राज्य में पार्टी संगठन को एकजुट रखना उनके लिए सबसे बड़ी चुनौती होगी। बिहार में कांग्रेस कई खेमों में बंटी है। ऐसे में सिंह के सामने सभी खेमों को एकजुट करने की भी चुनौती होगी।

उल्लेखनीय है कि सिंह बिहार सरकार और केंद्र में भी मंत्री रह चुके हैं।

गौरतलब है कि डॉ मदन मोहन झा के कार्यकाल में 2019 का लोकसभा चुनाव, 2020 का विधानसभा चुनाव हुए लेकिन कांग्रेस बिहार में कोई खास प्रभाव नहीं छोड़ सकी। 2020 के चुनाव में 70 सीटों पर चुनाव लड़कर कांग्रेस महज 19 सीटों पर ही जीत दर्ज कर सकी थी।

–आईएएनएस

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पटना, 6 दिसंबर (आईएएनएस)। बिहार कांग्रेस की जिम्मेदारी अब राज्यसभा सांसद अखिलेश प्रसाद सिंह को मिली है। डॉ मदन मोहन झा को प्रदेश अध्यक्ष से हटाकर सिंह को प्रदेश अध्यक्ष बनाकर कांग्रेस ने इसके साफ संकेत दे दिए हैे कि उनकी नजर सवर्ण (अगड़े) जातियों पर है। लेकिन, इसे लेकर अब सवाल भी उठने लगे हैं।

वैसे, सिंह के अध्यक्ष बनने के बाद शुरू में ही उन्हें कई चुनौतियों से निपटना होगा।

राजद प्रमुख लालू प्रसाद यादव के खास माने जाने वाले सिंह भूमिहार जाति से आते हैं और राजद छोड़कर कांग्रेस में आए है। पिछले कुछ महीनों में देखें तो राजद और कांग्रेस के रिश्ते बनते बिगड़ते रहे हैं। फिलहाल कांग्रेस महागठबंधन में है। कई मौके पर कांग्रेस ने राजद की छाया से बाहर निकलने की कोशिश की, लेकिन सफलता नहीं मिली।

इधर, कांग्रेस के एक नेता ने नाम नहीं प्रकाशित करने की शर्त पर बताया कि सिंह के पहले भी सवर्ण अध्यक्ष थे और फिर से सवर्ण को ही अध्यक्ष बना दिया गया है। उन्होंने कहा कि इससे दलित, पिछड़े, अति पिछड़े नेताओं और कार्यकर्ताओं में असंतोष है।

वैसे, बिहार में कांग्रेस की जिम्मेदारी हाल के वर्षों में कांटो वाली ताज मानी जाती रही है। सिंह को प्रदेश की जिम्मेदारी संभालते हुए कई चुनौतियों का सामना करना पड़ेगा।

इसमें सबसे पहली चुनौती होगी राज्य में पार्टी के लिए जमीन खोजना। इसमें कोई शक नहीं कि कांग्रेस बिहार में वर्षों से अपनी खोई जमीन तलाशने में जुटी है, लेकिन उसे सफलता नहीं मिल रही है। ऐसे में कांग्रेस राजद के छाए से बाहर कैसे खोई जमीन को फिर से तलाश पाती है, यह देखने वाली बात होगी।

इसके अलावा राज्य में पार्टी संगठन को एकजुट रखना उनके लिए सबसे बड़ी चुनौती होगी। बिहार में कांग्रेस कई खेमों में बंटी है। ऐसे में सिंह के सामने सभी खेमों को एकजुट करने की भी चुनौती होगी।

उल्लेखनीय है कि सिंह बिहार सरकार और केंद्र में भी मंत्री रह चुके हैं।

गौरतलब है कि डॉ मदन मोहन झा के कार्यकाल में 2019 का लोकसभा चुनाव, 2020 का विधानसभा चुनाव हुए लेकिन कांग्रेस बिहार में कोई खास प्रभाव नहीं छोड़ सकी। 2020 के चुनाव में 70 सीटों पर चुनाव लड़कर कांग्रेस महज 19 सीटों पर ही जीत दर्ज कर सकी थी।

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पटना, 6 दिसंबर (आईएएनएस)। बिहार कांग्रेस की जिम्मेदारी अब राज्यसभा सांसद अखिलेश प्रसाद सिंह को मिली है। डॉ मदन मोहन झा को प्रदेश अध्यक्ष से हटाकर सिंह को प्रदेश अध्यक्ष बनाकर कांग्रेस ने इसके साफ संकेत दे दिए हैे कि उनकी नजर सवर्ण (अगड़े) जातियों पर है। लेकिन, इसे लेकर अब सवाल भी उठने लगे हैं।

वैसे, सिंह के अध्यक्ष बनने के बाद शुरू में ही उन्हें कई चुनौतियों से निपटना होगा।

राजद प्रमुख लालू प्रसाद यादव के खास माने जाने वाले सिंह भूमिहार जाति से आते हैं और राजद छोड़कर कांग्रेस में आए है। पिछले कुछ महीनों में देखें तो राजद और कांग्रेस के रिश्ते बनते बिगड़ते रहे हैं। फिलहाल कांग्रेस महागठबंधन में है। कई मौके पर कांग्रेस ने राजद की छाया से बाहर निकलने की कोशिश की, लेकिन सफलता नहीं मिली।

इधर, कांग्रेस के एक नेता ने नाम नहीं प्रकाशित करने की शर्त पर बताया कि सिंह के पहले भी सवर्ण अध्यक्ष थे और फिर से सवर्ण को ही अध्यक्ष बना दिया गया है। उन्होंने कहा कि इससे दलित, पिछड़े, अति पिछड़े नेताओं और कार्यकर्ताओं में असंतोष है।

वैसे, बिहार में कांग्रेस की जिम्मेदारी हाल के वर्षों में कांटो वाली ताज मानी जाती रही है। सिंह को प्रदेश की जिम्मेदारी संभालते हुए कई चुनौतियों का सामना करना पड़ेगा।

इसमें सबसे पहली चुनौती होगी राज्य में पार्टी के लिए जमीन खोजना। इसमें कोई शक नहीं कि कांग्रेस बिहार में वर्षों से अपनी खोई जमीन तलाशने में जुटी है, लेकिन उसे सफलता नहीं मिल रही है। ऐसे में कांग्रेस राजद के छाए से बाहर कैसे खोई जमीन को फिर से तलाश पाती है, यह देखने वाली बात होगी।

इसके अलावा राज्य में पार्टी संगठन को एकजुट रखना उनके लिए सबसे बड़ी चुनौती होगी। बिहार में कांग्रेस कई खेमों में बंटी है। ऐसे में सिंह के सामने सभी खेमों को एकजुट करने की भी चुनौती होगी।

उल्लेखनीय है कि सिंह बिहार सरकार और केंद्र में भी मंत्री रह चुके हैं।

गौरतलब है कि डॉ मदन मोहन झा के कार्यकाल में 2019 का लोकसभा चुनाव, 2020 का विधानसभा चुनाव हुए लेकिन कांग्रेस बिहार में कोई खास प्रभाव नहीं छोड़ सकी। 2020 के चुनाव में 70 सीटों पर चुनाव लड़कर कांग्रेस महज 19 सीटों पर ही जीत दर्ज कर सकी थी।

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वैसे, सिंह के अध्यक्ष बनने के बाद शुरू में ही उन्हें कई चुनौतियों से निपटना होगा।

राजद प्रमुख लालू प्रसाद यादव के खास माने जाने वाले सिंह भूमिहार जाति से आते हैं और राजद छोड़कर कांग्रेस में आए है। पिछले कुछ महीनों में देखें तो राजद और कांग्रेस के रिश्ते बनते बिगड़ते रहे हैं। फिलहाल कांग्रेस महागठबंधन में है। कई मौके पर कांग्रेस ने राजद की छाया से बाहर निकलने की कोशिश की, लेकिन सफलता नहीं मिली।

इधर, कांग्रेस के एक नेता ने नाम नहीं प्रकाशित करने की शर्त पर बताया कि सिंह के पहले भी सवर्ण अध्यक्ष थे और फिर से सवर्ण को ही अध्यक्ष बना दिया गया है। उन्होंने कहा कि इससे दलित, पिछड़े, अति पिछड़े नेताओं और कार्यकर्ताओं में असंतोष है।

वैसे, बिहार में कांग्रेस की जिम्मेदारी हाल के वर्षों में कांटो वाली ताज मानी जाती रही है। सिंह को प्रदेश की जिम्मेदारी संभालते हुए कई चुनौतियों का सामना करना पड़ेगा।

इसमें सबसे पहली चुनौती होगी राज्य में पार्टी के लिए जमीन खोजना। इसमें कोई शक नहीं कि कांग्रेस बिहार में वर्षों से अपनी खोई जमीन तलाशने में जुटी है, लेकिन उसे सफलता नहीं मिल रही है। ऐसे में कांग्रेस राजद के छाए से बाहर कैसे खोई जमीन को फिर से तलाश पाती है, यह देखने वाली बात होगी।

इसके अलावा राज्य में पार्टी संगठन को एकजुट रखना उनके लिए सबसे बड़ी चुनौती होगी। बिहार में कांग्रेस कई खेमों में बंटी है। ऐसे में सिंह के सामने सभी खेमों को एकजुट करने की भी चुनौती होगी।

उल्लेखनीय है कि सिंह बिहार सरकार और केंद्र में भी मंत्री रह चुके हैं।

गौरतलब है कि डॉ मदन मोहन झा के कार्यकाल में 2019 का लोकसभा चुनाव, 2020 का विधानसभा चुनाव हुए लेकिन कांग्रेस बिहार में कोई खास प्रभाव नहीं छोड़ सकी। 2020 के चुनाव में 70 सीटों पर चुनाव लड़कर कांग्रेस महज 19 सीटों पर ही जीत दर्ज कर सकी थी।

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वैसे, सिंह के अध्यक्ष बनने के बाद शुरू में ही उन्हें कई चुनौतियों से निपटना होगा।

राजद प्रमुख लालू प्रसाद यादव के खास माने जाने वाले सिंह भूमिहार जाति से आते हैं और राजद छोड़कर कांग्रेस में आए है। पिछले कुछ महीनों में देखें तो राजद और कांग्रेस के रिश्ते बनते बिगड़ते रहे हैं। फिलहाल कांग्रेस महागठबंधन में है। कई मौके पर कांग्रेस ने राजद की छाया से बाहर निकलने की कोशिश की, लेकिन सफलता नहीं मिली।

इधर, कांग्रेस के एक नेता ने नाम नहीं प्रकाशित करने की शर्त पर बताया कि सिंह के पहले भी सवर्ण अध्यक्ष थे और फिर से सवर्ण को ही अध्यक्ष बना दिया गया है। उन्होंने कहा कि इससे दलित, पिछड़े, अति पिछड़े नेताओं और कार्यकर्ताओं में असंतोष है।

वैसे, बिहार में कांग्रेस की जिम्मेदारी हाल के वर्षों में कांटो वाली ताज मानी जाती रही है। सिंह को प्रदेश की जिम्मेदारी संभालते हुए कई चुनौतियों का सामना करना पड़ेगा।

इसमें सबसे पहली चुनौती होगी राज्य में पार्टी के लिए जमीन खोजना। इसमें कोई शक नहीं कि कांग्रेस बिहार में वर्षों से अपनी खोई जमीन तलाशने में जुटी है, लेकिन उसे सफलता नहीं मिल रही है। ऐसे में कांग्रेस राजद के छाए से बाहर कैसे खोई जमीन को फिर से तलाश पाती है, यह देखने वाली बात होगी।

इसके अलावा राज्य में पार्टी संगठन को एकजुट रखना उनके लिए सबसे बड़ी चुनौती होगी। बिहार में कांग्रेस कई खेमों में बंटी है। ऐसे में सिंह के सामने सभी खेमों को एकजुट करने की भी चुनौती होगी।

उल्लेखनीय है कि सिंह बिहार सरकार और केंद्र में भी मंत्री रह चुके हैं।

गौरतलब है कि डॉ मदन मोहन झा के कार्यकाल में 2019 का लोकसभा चुनाव, 2020 का विधानसभा चुनाव हुए लेकिन कांग्रेस बिहार में कोई खास प्रभाव नहीं छोड़ सकी। 2020 के चुनाव में 70 सीटों पर चुनाव लड़कर कांग्रेस महज 19 सीटों पर ही जीत दर्ज कर सकी थी।

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वैसे, सिंह के अध्यक्ष बनने के बाद शुरू में ही उन्हें कई चुनौतियों से निपटना होगा।

राजद प्रमुख लालू प्रसाद यादव के खास माने जाने वाले सिंह भूमिहार जाति से आते हैं और राजद छोड़कर कांग्रेस में आए है। पिछले कुछ महीनों में देखें तो राजद और कांग्रेस के रिश्ते बनते बिगड़ते रहे हैं। फिलहाल कांग्रेस महागठबंधन में है। कई मौके पर कांग्रेस ने राजद की छाया से बाहर निकलने की कोशिश की, लेकिन सफलता नहीं मिली।

इधर, कांग्रेस के एक नेता ने नाम नहीं प्रकाशित करने की शर्त पर बताया कि सिंह के पहले भी सवर्ण अध्यक्ष थे और फिर से सवर्ण को ही अध्यक्ष बना दिया गया है। उन्होंने कहा कि इससे दलित, पिछड़े, अति पिछड़े नेताओं और कार्यकर्ताओं में असंतोष है।

वैसे, बिहार में कांग्रेस की जिम्मेदारी हाल के वर्षों में कांटो वाली ताज मानी जाती रही है। सिंह को प्रदेश की जिम्मेदारी संभालते हुए कई चुनौतियों का सामना करना पड़ेगा।

इसमें सबसे पहली चुनौती होगी राज्य में पार्टी के लिए जमीन खोजना। इसमें कोई शक नहीं कि कांग्रेस बिहार में वर्षों से अपनी खोई जमीन तलाशने में जुटी है, लेकिन उसे सफलता नहीं मिल रही है। ऐसे में कांग्रेस राजद के छाए से बाहर कैसे खोई जमीन को फिर से तलाश पाती है, यह देखने वाली बात होगी।

इसके अलावा राज्य में पार्टी संगठन को एकजुट रखना उनके लिए सबसे बड़ी चुनौती होगी। बिहार में कांग्रेस कई खेमों में बंटी है। ऐसे में सिंह के सामने सभी खेमों को एकजुट करने की भी चुनौती होगी।

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गौरतलब है कि डॉ मदन मोहन झा के कार्यकाल में 2019 का लोकसभा चुनाव, 2020 का विधानसभा चुनाव हुए लेकिन कांग्रेस बिहार में कोई खास प्रभाव नहीं छोड़ सकी। 2020 के चुनाव में 70 सीटों पर चुनाव लड़कर कांग्रेस महज 19 सीटों पर ही जीत दर्ज कर सकी थी।

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