बेंगलुरु, 7 अक्टूबर (आईएएनएस)। बिहार सरकार द्वारा अपनी जाति जनगणना रिपोर्ट सार्वजनिक करने के बाद कर्नाटक की कांग्रेस सरकार पर सालों से लंबित राज्य की जाति जनगणना रिपोर्ट को स्वीकार करने का दबाव है। हालांकि, मुख्यमंत्री सिद्धारमैया के नेतृत्व वाली सरकार इस मुद्दे पर सावधानी से आगे बढ़ रही है, क्योंकि इससे राज्य में विवाद पैदा होने का खतरा है।
विश्वसनीय सूत्रों के अनुसार, लिंगायत और वोक्कालिगा, दो प्रभावशाली जाति समूह जल्द ही जाति जनगणना मुद्दे पर चर्चा के लिए एक बैठक कर रहे हैं। उनके नेता कांग्रेस सरकार पर रिपोर्ट न मानने का दबाव बनाने का फैसला ले सकते हैं।
हालांकि, कर्नाटक को देश के सबसे प्रगतिशील राज्यों में से एक माना जाता है, लेकिन, राजनीति जाति-आधारित है। लीक हुई रिपोर्ट से राज्य में हड़कंप मच गया है क्योंकि रिपोर्ट में दावा किया गया है कि निष्कर्षों के अनुसार, अनुसूचित जाति के बाद मुस्लिम सबसे बड़ा समूह हैं।
वोक्कालिगा और लिंगायत समुदाय के प्रभावशाली कांग्रेस नेताओं ने मुख्यमंत्री सिद्धारमैया पर रिपोर्ट स्वीकार न करने का दबाव डाला।
रिपोर्ट के मुताबिक, अब 17 फीसदी आबादी के साथ सबसे बड़ी जाति मानी जाने वाली लिंगायत को तीसरे स्थान पर दिखाया गया है। 14 फीसदी आबादी के साथ दूसरे स्थान पर रहने वाले वोक्कालिगा को चौथे स्थान पर दिखाया गया है।
कांग्रेस, भाजपा और जद (एस) इस मुद्दे पर कूटनीतिक बयान जारी कर रहे हैं, क्योंकि कोई भी रुख या तो ऊंची जातियों या उत्पीड़ित वर्गों और अल्पसंख्यकों को नाराज करेगा।
राजनीतिक विश्लेषक चन्नबसप्पा रुद्रप्पा ने आईएएनएस को बताया कि यह कांग्रेस सरकार के लिए एक मुश्किल स्थिति है। हालांकि, राष्ट्रीय स्तर पर कांग्रेस ने जाति जनगणना का समर्थन किया है, लेकिन कर्नाटक में सभी को साथ लेकर चलने की जरूरत है।
उन्होंने कहा, ”वोक्कालिगा और लिंगायत दावा कर रहे हैं कि सर्वेक्षण वैज्ञानिक तरीके से नहीं किया गया था। लिंगायत सवाल कर रहे हैं कि चिन्नाप्पा रेड्डी आयोग ने जाति जनगणना कराई थी, जिसमें लिंगायतों की संख्या 17 प्रतिशत थी और वर्तमान सर्वेक्षण में उनकी संख्या 14 प्रतिशत है। इस पर सवाल उठ रहे हैं कि ऐसा कैसे संभव हो सका?”
रुद्रप्पा ने कहा कि कर्नाटक में चुनाव लड़ने के लिए टिकट जातिगत गणना के अनुसार आवंटित किए जाते हैं। अन्य राज्यों में उच्च जाति, उत्पीड़ित वर्ग और अल्पसंख्यकों की द्विध्रुवीय राजनीति है। लेकिन, कर्नाटक में त्रिध्रुवीय राजनीति है। यह लिंगायत बनाम वोक्कालिगा बनाम पिछड़ा वर्ग और अल्पसंख्यक है।
जद (एस) और भाजपा का गठबंधन वोक्कालिगा और लिंगायतों के एक साथ आने का संकेत देता है। लिंगायत समुदाय बड़े पैमाने पर भाजपा के साथ है, जबकि वोक्कालिगा जद (एस) के साथ हैं। इस बीच, मुख्यमंत्री सिद्दारमैया उत्पीड़ित वर्गों के निर्विवाद नेता के रूप में उभरे हैं और गरीबों के बीच उनकी छवि जीवन से भी बड़ी है। राज्य में यह एक असहज स्थिति है और लोकसभा नतीजे घोषित होने तक रिपोर्ट को स्थगित रखे जाने की पूरी संभावना है।
पत्रकार और लेखक मोहम्मद हनीफ ने आईएएनएस को बताया कि राज्य में आयोजित जाति जनगणना एक सामाजिक-आर्थिक सर्वेक्षण है। आरक्षण जाति के आधार पर दिया जाता है। उनकी जनसंख्या, आर्थिक और सामाजिक स्थिति के बारे में पता लगाना है कि वे सरकारी या निजी क्षेत्र में कार्यरत हैं या दिहाड़ी मजदूर हैं।
हनीफ ने कहा, ”आरक्षण देने का वैज्ञानिक आधार क्या है? जातीय जनगणना 1952 में हुई थी और बाद में जातीय जनगणना हटा दी गयी। कंथाराजू आयोग ने कर्नाटक में जाति जनगणना कराने के लिए 125 लाख सरकारी कर्मचारियों का उपयोग करके दो साल तक काम किया था। इस पर 167 करोड़ रुपए खर्च होते हैं। सिर्फ इसलिए कि ऊंची जातियां इसका विरोध कर रही हैं, रिपोर्ट को लटकाकर नहीं रखा जा सकता।”
रिपोर्ट प्रशासन के बारे में है। इसका राजनीतिकरण नहीं किया जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि आरक्षण वैज्ञानिक तरीके से दिया जाना चाहिए और जाति जनगणना रिपोर्ट इसमें मदद करती है।
भाजपा के राज्य मीडिया समन्वयक करुणाकर कसाले ने आईएएनएस को बताया कि, ”हम कंथाराजू आयोग की जाति जनगणना रिपोर्ट का स्वागत करते हैं। सर्वे कराने का आदेश तत्कालीन सीएम सिद्दारमैया ने दिया था। बाद में गठबंधन सरकार और भाजपा सरकारों ने इसे स्वीकार नहीं किया। रिपोर्ट का विवरण सामने आने दीजिए और फिर चर्चा हो सकती है।”
पूर्व सीएम बसवराज बोम्मई ने कहा था कि उनकी पार्टी जाति जनगणना के खिलाफ नहीं है। मुख्यमंत्री सिद्दारमैया ने कई बार स्वीकार किया कि उन्होंने अपने कार्यकाल (2013-2018) के दौरान जो सर्वेक्षण करवाया था, वह एक सामाजिक-आर्थिक सर्वेक्षण था, न कि जाति जनगणना। उन्होंने कहा कि उत्तर भारत और दक्षिण भारत में जाति व्यवस्था में बहुत अंतर है।
मुख्यमंत्री सिद्दारमैया ने कहा कि पिछड़ा वर्ग आयोग को जाति जनगणना रिपोर्ट राज्य सरकार को सौंपने के लिए कहा गया है। उन्होंने कहा, ”एक बार रिपोर्ट जमा हो जाने के बाद इसका सत्यापन किया जाएगा।”
सामाजिक-आर्थिक सर्वेक्षण, जिसे लोकप्रिय रूप से जाति जनगणना के रूप में जाना जाता है, 2015 में एच. कंथाराज की अध्यक्षता में कर्नाटक राज्य पिछड़ा वर्ग आयोग (केएसबीसीसी) द्वारा आयोजित किया गया था। सूत्रों ने कहा कि रिपोर्ट में दावा किया गया है कि राज्य में एससी और एसटी समूह बहुसंख्यक हैं, उसके बाद मुस्लिम हैं। सबसे अधिक जनसंख्या समूह माने जाने वाले लिंगायतों को तीसरे सबसे बड़े समूह के रूप में दिखाया गया और वोक्कालिगा जो दूसरे स्थान पर थे उन्हें चौथा स्थान मिला।
इन तथ्यों ने राज्य में हलचल पैदा कर दी और एक बड़ा विवाद खड़ा हो गया क्योंकि मुस्लिम समुदाय को दूसरी सबसे बड़ी आबादी के रूप में दिखाया गया था। बीएस येदियुरप्पा, एचडी कुमारस्वामी और बसवराज बोम्मई सहित लगातार मुख्यमंत्रियों ने रिपोर्ट पर गौर करने की जहमत तक नहीं उठाई, यहां तक कि अपने पिछले कार्यकाल के दौरान वर्तमान मुख्यमंत्री ने भी नहीं।
–आईएएनएस
पीके/एबीएम