नई दिल्ली, 20 अगस्त (आईएएनएस): पूर्व केंद्रीय कानून मंत्री एम वीरप्पा मोइली ने मंगलवार को स्वीकार किया कि उनके नेतृत्व में 2005 में गठित दूसरे प्रशासनिक सुधार आयोग (एआरसी) ने सरकारी सेवाओं में लेटरल एंट्री की सिफारिश की थी, लेकिन दावा किया कि मौजूदा एनडीए सरकार इसे सही मायने में लागू नहीं कर रही है।
आईएएनएस से एक विशेष बातचीत में, वरिष्ठ कांग्रेस नेता वीरप्पा मोइली ने कहा कि इसका उद्देश्य शीर्ष सरकारी पदों पर ‘विशेषज्ञ लोगों’ की निष्पक्ष भर्ती के लिए एक उचित ढांचा तैयार करना था।
लेटरल एंट्री पर मोइली की स्वीकारोक्ति एनडीए के यूपीए पर हमले के मद्देनजर आई है। भाजपा और कांग्रेस लेटरल एंट्री में ‘पिछड़े वर्गों’ की अनदेखी को लेकर एक-दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप लगा रहे हैं। कांग्रेस का दावा है कि भाजपा सरकार ने अनुसूचित जातियों/अनुसूचित जनजातियों और अन्य पिछड़े वर्गों को आरक्षण के अधिकार से वंचित किया है। जबकि भाजपा इसके लिए यूपीए के ‘पक्षपाती’ नीति-निर्माण को जिम्मेदार ठहराती है।
पूर्व केंद्रीय मंत्री और प्रशासनिक सुधार आयोग (एआरसी) के अध्यक्ष रहे वीरप्पा मोइली ने आईएएनएस को दिए इंटरव्यू में सिविल सेवा में लेटरल एंट्री के विषय पर चर्चा की। उन्होंने एआरसी की सिफारिशों को दोहराते हुए वर्तमान सरकार की आलोचना की। नीचे पूरा इंटरव्यू है:
आईएएनएस: आपके द्वारा अध्यक्षता वाली दूसरी एआरसी रिपोर्ट में सिविल सेवा ढांचे में लेटरल एंट्री के महत्व के बारे में कहा गया है। तब इसका आउटपुट क्या था?
वीरप्पा मोइली: एआरसी ने पंद्रह रिपोर्ट तैयार की थीं। लेटरल एंट्री उन रिपोर्टों में से एक थी, जिसे रिफर्बिशिंग पर्सनल एडमिनिस्ट्रेशन कहा जाता था।
रिपोर्ट ने नौकरशाही में लेटरल एंट्री के लिए रूपरेखा और तौर-तरीके सुझाए थे। यह कोई नया विषय नहीं है। डॉ मनमोहन सिंह, मोंटेक सिंह आहलूवालिया जैसे व्यक्ति लेटरल एंट्री के माध्यम से सिस्टम में आए। इसके जरिए कई सफलताएं भी मिली हैं।
हालांकि इसके लिए कोई व्यवस्थित दृष्टिकोण नहीं था, यह योग्यता पर किया गया था और नतीजे भी अच्छे मिले थे। हालांकि, प्रक्रिया को रिकॉर्ड पर रखने की आवश्यकता थी। हमने सोचा कि इसका अध्ययन करने और लेटरल एंट्री के लिए एक सिस्टम विकसित करने की आवश्यकता है। इस तरह यह शुरू हुआ।
प्रशासनिक सुधार आयोग का मत था कि इस तरह की भर्ती अतिरिक्त सचिव के स्तर पर की जानी चाहिए, क्योंकि इससे नए भर्ती होने वाले लोगों को सचिव रैंक तक पहुंचने की प्रेरणा मिलेगी।
हमने संयुक्त राज्य अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, ब्रिटेन और अन्य देशों में विभिन्न मौजूदा मॉडलों का अध्ययन करने के बाद यह प्रस्ताव दिया था। हमने भारत के लिए मॉडल का निष्कर्ष निकालने और डिजाइन करने से पहले सभी मॉडलों की अच्छी तरह से जांच की।
हमने सुझाव दिया कि लेटरल एंट्री एक एडहॉक सिस्टम नहीं हो सकती है और ‘पिक एंड चूज मॉडल’ भी काम नहीं करेगा। एक केंद्रीय सिविल सेवा प्राधिकरण बनाने की आवश्यकता थी, जिसे लोगों को लेटरली भर्ती करने का अधिकार दिया जाता। मेरी जानकारी के अनुसार, वर्तमान सरकार ने किसी केंद्रीय सिविल सेवा प्राधिकरण का गठन नहीं किया है।
इन पदों को भरने के लिए प्रतिभाओं को लिया जाना चाहिए। वे बाहर से और सिस्टम के भीतर से भी हो सकती हैं। इसके लिए एक पारदर्शी प्रक्रिया विकसित करने की आवश्यकता है। चयन प्रक्रिया पूरी होने पर, प्राधिकरण की सिफारिश अंतिम अनुमोदन के लिए सरकार को भेजी जाएगी। प्राधिकरण को उन मामलों में संसद का ध्यान भी आकर्षित करना चाहिए जिनमें सरकार द्वारा इसकी सिफारिशें स्वीकार नहीं की गई थीं।
वर्तमान सरकार का दावा है कि सिफारिशें यूपीए काल के दौरान की गई थी लेकिन इसने एआरसी रिपोर्ट में उल्लेखित कई दिशानिर्देशों पर ध्यान नहीं दिया। लेटरल एंट्री के माध्यम से एडहॉक भर्ती की प्रक्रिया पक्षपाती भर्ती की ओर ले जाएगी।
आईएएनएस: एआरसी ने शॉर्ट-टर्म कॉन्ट्रैक्ट लेवल पर टैलेंट पूल स्थापित करने का प्रस्ताव दिया था। क्या आप इस पर और बता सकते हैं?
वीरप्पा मोइली: लेटरल एंट्री पक्षपातपूर्ण, भेदभावपूर्ण नहीं हो सकती। सत्ता में बैठे लोग इस प्रक्रिया को प्रभावित करने में सक्षम नहीं होने चाहिए और इसलिए गैर-पक्षपातपूर्ण भर्ती के लिए दिशा निर्देश निर्धारित करने के लिए रूपरेखा तैयार की गई थी।
आईएएनएस: लेटरल एंट्री के लिए नियम बनाने का विचार किसका था? क्या तत्कालीन प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह ने इसका सुझाव दिया था या यह आपका विचार था?
वीरप्पा मोइली: इसका सुझाव डॉ. मनमोहन सिंह या किसी अन्य ने नहीं दिया था। मेरा और सरकार में बैठे लोगों का विचार था कि विशिष्ट क्षेत्रों के लिए नई और विशिष्ट विशेषज्ञता वाली प्रतिभाओं को शासन में आना चाहिए।
आईएएनएस: भाजपा यह आरोप लगा रही है कि आपने नौकरशाही को बाहरी लोगों के लिए खोल दिया। इस पर आपका क्या विचार है?
वीरप्पा मोइली: लेटरल एंट्री एक प्रतिभा खोज की तरह है। यह ‘पिक एंड चूज’ मॉडल नहीं हो सकती। लेटरल एंट्री की जानी चाहिए और एआरसी रिपोर्ट में उल्लिखित सभी दिशानिर्देशों और मानदंडों का पालन करना चाहिए। अगर वे इन सब फॉर्मूले को अपनाते हैं और इसकी सिफारिश करते हैं, तो हमें कोई आपत्ति नहीं होगी।
भाजपा सरकार जिस तरह से इसे चला रही है, उसका असफल होना तय है। इससे कैडर का का मनोबल गिरेगा।
कृष्णमूर्ति, डॉ. मनमोहन सिंह, मोंटेक सिंह अहलूवालिया जैसे लोगों ने लेटरल एंट्री के मामले में दूसरों पर विरासत छोड़ी है। यहां तक कि जवाहर लाल नेहरू के समय भी यह सब बहुत निष्पक्षता से किया गया था।
वर्तमान सरकार गलत योग्यता वाले लोगों को सिस्टम में ला रही है। वे इस पद के लिए उपयुक्त नहीं होंगे और उनको सिस्टम से भी परेशानी होगी।
आईएएनएस: कर्नाटक के राज्यपाल ने एमयूडीए घोटाले में सीएम सिद्धारमैया के खिलाफ जांच को मंजूरी दे दी है। इस पर आपका क्या विचार है?
वीरप्पा मोइली: सिद्धारमैया ने कुछ भी गलत नहीं किया है। उन्होंने एक प्रशासक के रूप में क्या अपराध किया है?
इस मामले में न उनकी भूमिका है, न कोई मकसद। ऐसा तब हुआ जब वह सत्ता में नहीं थे। यह राज्यपाल का गलत निर्णय है। उन्हें सत्ता का दुरुपयोग करने से जरूर बचना चाहिए।
यदि कुछ भी कानून के विरुद्ध हुआ है तो उसकी जांच न्यायिक आयोग द्वारा की जाएगी और निर्णय लिया जाएगा। राज्यपाल के पास साक्ष्य उपलब्ध नहीं है। उनका रवैया पक्षपातपूर्ण है।
आईएएनएस: क्या सिद्धारमैया ने राज्यपाल की मंजूरी को चुनौती देकर सही काम किया?
वीरप्पा मोइली: उन्होंने जो किया अपने वकील की सलाह के अनुसार किया। मैं इस पर और कमेंट नहीं कर सकता।
आईएएनएस: बांग्लादेश में हुई घटनाओं के बाद क्या आपको लगता है कि भारत में भी इसी तरह की अराजकता देखने को मिल सकती है?
वीरप्पा मोइली: नहीं, भारत में ऐसा कभी नहीं हो सकता। इसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती। भारत का लोकतंत्र लंबे समय से सफल रहा है। कई चुनाव हो चुके हैं, हम 75 साल से अधिक समय से लोकतंत्र का अनुभव कर रहे हैं।
हमारा लोकतांत्रिक ढांचा मजबूत और दृढ़ है, इसकी नींव बहुत मजबूत है। मुझे नहीं लगता कि यहां ऐसी चीजें हो सकती हैं।
आईएएनएस: क्या कांग्रेस को स्थानीय पार्टियों की मांग के अनुसार अनुच्छेद 370 बहाल करने का समर्थन करना चाहिए?
वीरप्पा मोइली: अनुच्छेद 370 को खत्म करने से मदद नहीं मिली है, हालांकि यह एक सोच-समझकर लिया गया फैसला था, क्योंकि आजादी के बाद से यह क्षेत्र विवादित रहा है।
वर्तमान सरकार ने अनुच्छेद 370 पर गैर-जिम्मेदाराना तरीके से काम किया है। अगर आप किसी भी अनुच्छेद को रद्द करना चाहते हैं, तो आपको इसके बारे में कई बार सोचना चाहिए। किसी भी निष्कर्ष पर पहुंचने से पहले इसके फायदे और नुकसान पर विचार, जांच और परीक्षण करना चाहिए।
–आईएएनएस
एएस