नई दिल्ली, 23 अगस्त (आईएएनएस)। वकील वारिशा फरासत ने बुधवार को सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ को बताया कि 2019 में 5 और 6 अगस्त के बीच जब केंद्र द्वारा अनुच्छेद 370 को निरस्त कर दिया गया, जम्मू-कश्मीर के लोगों की इच्छा का प्रतिनिधित्व करने वाले तीन पूर्व मुख्यमंत्रियों सहित ज्यादातर विधायकों को हिरासत में रखा गया था।
उन्होंने अनुच्छेद 370 को निरस्त करने को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई कर रही संविधान पीठ के समक्ष बहस करते हुए कहा, “… तीन पूर्व मुख्यमंत्री हिरासत में थे और ये सभी तथ्य हैं। तीन पूर्व मुख्यमंत्री और विधानसभा के अधिकांश (सदस्य) जो लोगों की इच्छा का प्रतिनिधित्व करते हैं, उन्हें सार्वजनिक सुरक्षा अधिनियम के तहत या 107 या 151 (आपराधिक प्रक्रिया) के तहत हिरासत में ले लिया गया था, जो हास्यास्पद है।”
वारिशा ने कहा कि उन सभी राजनेताओं को भी नजरबंद कर दिया गया था, जिन्होंने निरस्तीकरण के खिलाफ बयान दिया था।
उन्होंने कहा कि अनुच्छेद 370 को निष्प्रभावी करने का केंद्र का कदम कानूनी दुर्भावना से प्रभावित है।
वारिशा ने कहा कि भारत “सबको साथ लेकर चलने” वाले संघवाद का देश है, हालांकि जम्मू-कश्मीर एक “एक साथ आने” वाले संघ का प्रतिनिधित्व करता है, क्योंकि पहले की संप्रभु राजनीति ने एक साथ आने के लिए अपनी संप्रभुता को एकजुट किया था। उन्होंने अमेरिकी संविधान के दसवें संशोधन का जिक्र किया था जो उनके संघवाद को परिभाषित करता है।
वकील ने इस बात पर जोर दिया कि भारतीय संविधान के तहत संघवाद इकाइयों के विभिन्न रूप मौजूद हैं, जैसे केंद्र शासित प्रदेश, दिल्ली जैसी विधायी शक्तियों वाला केंद्र शासित प्रदेश और जम्मू-कश्मीर जैसा राज्य, जिसका अपना संविधान है। उन्होंने कहा, “यह अनोखा है, लेकिन संघवाद का एक सामान्य हिस्सा है।”
उन्होंने कहा कि संविधान निर्माताओं को इस तथ्य के बारे में पता था कि जम्मू-कश्मीर की “संविधान सभा” अपने कार्य समाप्त कर देगी और शायद अब नहीं भी रहेगी, उन्होंने कहा कि परिवर्तन लागू करने की प्रक्रिया अनुच्छेद 370 के खंड (1) के तहत निहित थी।
वारिशा ने तर्क दिया कि भारतीय संविधान को लागू करने के लिए राज्य विधानमंडल की सहमति की जरूरी है, क्योंकि यह प्रक्रिया जम्मू-कश्मीर के लोगों की इच्छा का प्रतिनिधित्व करती है। उन्होंने तर्क दिया, “लेकिन इसे निरस्त करने के लिए उन्होंने इसे केवल (राज्य की) संविधान सभा पर छोड़ दिया और इसे सुलझाने का कोई अन्य तरीका नहीं है।”
उन्होंने कहा कि अनुच्छेद 370 की स्पष्ट व्याख्या की जरूरत है, क्योंकि एक प्राधिकरण को दूसरे के साथ प्रतिस्थापित किया गया था, उन्होंने ‘विधानसभा’ को बहाल करने की जरूरत का भी जिक्र किया।
इससे पहले दिन में सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने पीठ के समक्ष कहा कि केंद्र सरकार का पूर्वोत्तर राज्यों या देश के किसी अन्य हिस्से पर लागू संविधान के विशेष प्रावधानों में हस्तक्षेप करने का कोई इरादा नहीं है।
गुरुवार को केंद्र की ओर से अटॉर्नी जनरल आर. वेंकटरमनी और सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता दलीलें पेश करेंगे।
–आईएएनएस
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