deshbandhu

deshbandu_logo
  • राष्ट्रीय
  • अंतरराष्ट्रीय
  • लाइफ स्टाइल
  • अर्थजगत
  • मनोरंजन
  • खेल
  • अभिमत
  • धर्म
  • विचार
  • ई पेपर
deshbandu_logo
  • राष्ट्रीय
  • अंतरराष्ट्रीय
  • लाइफ स्टाइल
  • अर्थजगत
  • मनोरंजन
  • खेल
  • अभिमत
  • धर्म
  • विचार
  • ई पेपर
Menu
  • राष्ट्रीय
  • अंतरराष्ट्रीय
  • लाइफ स्टाइल
  • अर्थजगत
  • मनोरंजन
  • खेल
  • अभिमत
  • धर्म
  • विचार
  • ई पेपर
Facebook Twitter Youtube
  • भोपाल
  • इंदौर
  • उज्जैन
  • ग्वालियर
  • जबलपुर
  • रीवा
  • चंबल
  • नर्मदापुरम
  • शहडोल
  • सागर
  • देशबन्धु जनमत
  • पाठक प्रतिक्रियाएं
  • हमें जानें
  • विज्ञापन दरें
ADVERTISEMENT
Home राष्ट्रीय

वर्ल्ड सुसाइड प्रिवेंशन डे: फेल्योर भी जरूरी, तभी आएगा जीत का मजा

by
September 10, 2024
in राष्ट्रीय
0
वर्ल्ड सुसाइड प्रिवेंशन डे: फेल्योर भी जरूरी, तभी आएगा जीत का मजा
0
SHARES
1
VIEWS
Share on FacebookShare on Whatsapp
ADVERTISEMENT
ADVERTISEMENT

नई दिल्ली, 10 सितंबर (आईएएनएस)। वर्ल्ड सुसाइड प्रिवेंशन डे पर इस साल की थीम ‘चेंजिंग द नैरेटिव ऑन सुसाइड’ रखी गई है। वर्तमान में तनाव भरे जीवन में लोग इसका शिकार हो रहे हैं। बड़ो से लेकर बच्‍चों की भी आए दिन सुसाइड की खबरें सुनने को मिल जाती है। नैरेटिव ऐसा जिसमें खाली सफलता और सिर्फ सफलता की ही बात न हो बल्कि बताया जाए कि असफलता भी आगे बढ़ने के लिए जरूरी है।

सक्सेस और फेल्योर को लेकर आईएएनएस ने आयुष निदेशालय दिल्ली के मुख्य चिकित्सा अधिकारी (एसएजी) और इहबास इकाई के प्रभारी डॉक्‍टर अशोक शर्मा से बात की।

READ ALSO

छत्तीसगढ़: एलडब्ल्यूई विरोधी अभियान में बड़ी सफलता, एक साथ 71 नक्सलियों ने किया आत्मसमर्पण

लालू परिवार में लड़ाई की असली वजह- जंगलराज में राजा कौन बनेगा : हर्षवर्धन सिंह

डॉ. अशोक शर्मा ने कहा कि विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्‍ल्‍यूएचओ) ने लोगों को सुसाइड जैसे विचार से बा‍हर निकालने के लिए इस दिन का चुनाव किया है। डब्‍ल्‍यूएचओ की मानें तो हर साल दुनियाभर में लगभग 7 लाख लोग आत्‍महत्‍या जैसा गंभीर कदम उठाते हैं।

उन्होंने कहा, ”यह जानने की जरूरत है कि ऐसा व्‍यक्ति सामाजिक, मानसिक और शारीरिक पटल पर किस चीज से जूझ रहा है। पहले लोग इस बारे में बात करने से भी घबराते थे, मगर आज के समय में कम से कम हम लोग इस मुद्दे पर खुलकर बात कर पाते हैं, जो बेहद ही जरूरी चीज है।”

डॉ. अशोक ने आगे कहा, ”इसके लिए समाज को आगे आकर इस ओर काम करने की जरूरत है, जिससे हम लोगों के लिए मददगार साबित हो सके। इससे यह होगा कि जब किसी की आलोचना नहीं होगी, समाज का भरपूर समर्थन मिलेगा तो व्‍यक्ति गलत राह को न चुनते हुए सही रास्‍ते पर रहेगा।”

आगे कहा कि तभी इस समस्‍या पर बात करने के लिए एक दिन निर्धारित किया गया है कि लोग आगे आकर इस पर बात करें, और प्रतीज्ञा लें कि हमारे आस पास जो भी इस परेशानी से जूझ रहा है तो उससे खुलकर बात करें।

इस समस्‍या पर परिवार क्‍या सहयोग दे सकता है? इस पर डॉ. अशोक ने कहा, ”कई बार रिश्‍तों में आई दिक्‍कतों या कभी पैसे को लेकर आई समस्‍या के बारे में परिवार का एक सदस्‍य जरूरत से ज्‍यादा परेशान रहता है। ऐसे में कई बार परिवार के ही लोग इसे समझ नहीं पाते, मगर ऐसे में परिवार को चहिए कि उस व्‍यक्ति को अपना पूरा सपोर्ट दें ,ताकि वह उस दायरे से बाहर आ सके।”

आगे कहा, ” जिंदगी में तो उतार- चढ़ाव तो हर एक व्‍यक्ति के जीवन में आते हैं। कई बार हम लोग इससे बाहर भी आ जाते है। लेकिन यहां सबसे बड़ी दिक्‍कत यह आती कि हम देख रहे हैं कि हमारे परिवार का एक सदस्‍य बहुत परेशान है इसके बावजूद भी हम उसका साथ नहीं दे रहे, यह गलत बात है।”

उन्होंने कहा कि अगर परिवार को लग रहा है कि किसी सदस्‍य के मन में गलत विचार आ रहे हैं और उसका व्‍यवहार भी बदला-बदला लग रहा है तो परिवार को चाहिए कि वह उस पर अपनी नजर बनाकर रखें।

बच्‍चों में आ रहे डिप्रेशन को लेकर उन्‍होंने कहा, ”जिस तरीके से हम किसी बीमारी के कारण को ढूंढते हैं उसी तरह हमें बच्‍चे के तनाव के पीछे का कारण जानने की जरूरत है। पेरेंट्स को चहिए कि वह अपने बच्‍चे को फेल होने के लिए भी तैयार करें। बच्‍चों पर उनके करियर को लेकर बिल्‍कुल भी दबाव न बनाएं, उनसे उम्‍मीदें तो बिल्‍कुल न बांधें।”

”जब बच्‍चे परिवार की उम्‍मीदों पर खरे नहीं उतर पाते तो, कई बार पेरेंट्स बच्‍चों का सुनाना शुरू कर देते कि हमने तुम पर कितना पैसा लगाया,उसके बाद भी तुम कुछ नहीं कर पाएं, जिससे बच्‍चे के मन में जीवन को खत्‍म करने जैसे विचार आने लगते हैं।”

उन्‍होंने सलाह देते हुए कहा कि ऐसे में पेरेंट्स को अपने बच्‍चों के साथ एक खास तरह का रिश्‍ता कायम करने की जरूरत है, उससे उसकी परेशानी के बारे में बात करने की जरूरत है, जिससे उसे लगे कि मैं अकेला नहीं हूं जो इस फेलियर का सामना कर रहा हूं।

–आईएएनएस

एमकेएस/केआर

ADVERTISEMENT

नई दिल्ली, 10 सितंबर (आईएएनएस)। वर्ल्ड सुसाइड प्रिवेंशन डे पर इस साल की थीम ‘चेंजिंग द नैरेटिव ऑन सुसाइड’ रखी गई है। वर्तमान में तनाव भरे जीवन में लोग इसका शिकार हो रहे हैं। बड़ो से लेकर बच्‍चों की भी आए दिन सुसाइड की खबरें सुनने को मिल जाती है। नैरेटिव ऐसा जिसमें खाली सफलता और सिर्फ सफलता की ही बात न हो बल्कि बताया जाए कि असफलता भी आगे बढ़ने के लिए जरूरी है।

सक्सेस और फेल्योर को लेकर आईएएनएस ने आयुष निदेशालय दिल्ली के मुख्य चिकित्सा अधिकारी (एसएजी) और इहबास इकाई के प्रभारी डॉक्‍टर अशोक शर्मा से बात की।

डॉ. अशोक शर्मा ने कहा कि विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्‍ल्‍यूएचओ) ने लोगों को सुसाइड जैसे विचार से बा‍हर निकालने के लिए इस दिन का चुनाव किया है। डब्‍ल्‍यूएचओ की मानें तो हर साल दुनियाभर में लगभग 7 लाख लोग आत्‍महत्‍या जैसा गंभीर कदम उठाते हैं।

उन्होंने कहा, ”यह जानने की जरूरत है कि ऐसा व्‍यक्ति सामाजिक, मानसिक और शारीरिक पटल पर किस चीज से जूझ रहा है। पहले लोग इस बारे में बात करने से भी घबराते थे, मगर आज के समय में कम से कम हम लोग इस मुद्दे पर खुलकर बात कर पाते हैं, जो बेहद ही जरूरी चीज है।”

डॉ. अशोक ने आगे कहा, ”इसके लिए समाज को आगे आकर इस ओर काम करने की जरूरत है, जिससे हम लोगों के लिए मददगार साबित हो सके। इससे यह होगा कि जब किसी की आलोचना नहीं होगी, समाज का भरपूर समर्थन मिलेगा तो व्‍यक्ति गलत राह को न चुनते हुए सही रास्‍ते पर रहेगा।”

आगे कहा कि तभी इस समस्‍या पर बात करने के लिए एक दिन निर्धारित किया गया है कि लोग आगे आकर इस पर बात करें, और प्रतीज्ञा लें कि हमारे आस पास जो भी इस परेशानी से जूझ रहा है तो उससे खुलकर बात करें।

इस समस्‍या पर परिवार क्‍या सहयोग दे सकता है? इस पर डॉ. अशोक ने कहा, ”कई बार रिश्‍तों में आई दिक्‍कतों या कभी पैसे को लेकर आई समस्‍या के बारे में परिवार का एक सदस्‍य जरूरत से ज्‍यादा परेशान रहता है। ऐसे में कई बार परिवार के ही लोग इसे समझ नहीं पाते, मगर ऐसे में परिवार को चहिए कि उस व्‍यक्ति को अपना पूरा सपोर्ट दें ,ताकि वह उस दायरे से बाहर आ सके।”

आगे कहा, ” जिंदगी में तो उतार- चढ़ाव तो हर एक व्‍यक्ति के जीवन में आते हैं। कई बार हम लोग इससे बाहर भी आ जाते है। लेकिन यहां सबसे बड़ी दिक्‍कत यह आती कि हम देख रहे हैं कि हमारे परिवार का एक सदस्‍य बहुत परेशान है इसके बावजूद भी हम उसका साथ नहीं दे रहे, यह गलत बात है।”

उन्होंने कहा कि अगर परिवार को लग रहा है कि किसी सदस्‍य के मन में गलत विचार आ रहे हैं और उसका व्‍यवहार भी बदला-बदला लग रहा है तो परिवार को चाहिए कि वह उस पर अपनी नजर बनाकर रखें।

बच्‍चों में आ रहे डिप्रेशन को लेकर उन्‍होंने कहा, ”जिस तरीके से हम किसी बीमारी के कारण को ढूंढते हैं उसी तरह हमें बच्‍चे के तनाव के पीछे का कारण जानने की जरूरत है। पेरेंट्स को चहिए कि वह अपने बच्‍चे को फेल होने के लिए भी तैयार करें। बच्‍चों पर उनके करियर को लेकर बिल्‍कुल भी दबाव न बनाएं, उनसे उम्‍मीदें तो बिल्‍कुल न बांधें।”

”जब बच्‍चे परिवार की उम्‍मीदों पर खरे नहीं उतर पाते तो, कई बार पेरेंट्स बच्‍चों का सुनाना शुरू कर देते कि हमने तुम पर कितना पैसा लगाया,उसके बाद भी तुम कुछ नहीं कर पाएं, जिससे बच्‍चे के मन में जीवन को खत्‍म करने जैसे विचार आने लगते हैं।”

उन्‍होंने सलाह देते हुए कहा कि ऐसे में पेरेंट्स को अपने बच्‍चों के साथ एक खास तरह का रिश्‍ता कायम करने की जरूरत है, उससे उसकी परेशानी के बारे में बात करने की जरूरत है, जिससे उसे लगे कि मैं अकेला नहीं हूं जो इस फेलियर का सामना कर रहा हूं।

–आईएएनएस

एमकेएस/केआर

ADVERTISEMENT
ADVERTISEMENT

नई दिल्ली, 10 सितंबर (आईएएनएस)। वर्ल्ड सुसाइड प्रिवेंशन डे पर इस साल की थीम ‘चेंजिंग द नैरेटिव ऑन सुसाइड’ रखी गई है। वर्तमान में तनाव भरे जीवन में लोग इसका शिकार हो रहे हैं। बड़ो से लेकर बच्‍चों की भी आए दिन सुसाइड की खबरें सुनने को मिल जाती है। नैरेटिव ऐसा जिसमें खाली सफलता और सिर्फ सफलता की ही बात न हो बल्कि बताया जाए कि असफलता भी आगे बढ़ने के लिए जरूरी है।

सक्सेस और फेल्योर को लेकर आईएएनएस ने आयुष निदेशालय दिल्ली के मुख्य चिकित्सा अधिकारी (एसएजी) और इहबास इकाई के प्रभारी डॉक्‍टर अशोक शर्मा से बात की।

डॉ. अशोक शर्मा ने कहा कि विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्‍ल्‍यूएचओ) ने लोगों को सुसाइड जैसे विचार से बा‍हर निकालने के लिए इस दिन का चुनाव किया है। डब्‍ल्‍यूएचओ की मानें तो हर साल दुनियाभर में लगभग 7 लाख लोग आत्‍महत्‍या जैसा गंभीर कदम उठाते हैं।

उन्होंने कहा, ”यह जानने की जरूरत है कि ऐसा व्‍यक्ति सामाजिक, मानसिक और शारीरिक पटल पर किस चीज से जूझ रहा है। पहले लोग इस बारे में बात करने से भी घबराते थे, मगर आज के समय में कम से कम हम लोग इस मुद्दे पर खुलकर बात कर पाते हैं, जो बेहद ही जरूरी चीज है।”

डॉ. अशोक ने आगे कहा, ”इसके लिए समाज को आगे आकर इस ओर काम करने की जरूरत है, जिससे हम लोगों के लिए मददगार साबित हो सके। इससे यह होगा कि जब किसी की आलोचना नहीं होगी, समाज का भरपूर समर्थन मिलेगा तो व्‍यक्ति गलत राह को न चुनते हुए सही रास्‍ते पर रहेगा।”

आगे कहा कि तभी इस समस्‍या पर बात करने के लिए एक दिन निर्धारित किया गया है कि लोग आगे आकर इस पर बात करें, और प्रतीज्ञा लें कि हमारे आस पास जो भी इस परेशानी से जूझ रहा है तो उससे खुलकर बात करें।

इस समस्‍या पर परिवार क्‍या सहयोग दे सकता है? इस पर डॉ. अशोक ने कहा, ”कई बार रिश्‍तों में आई दिक्‍कतों या कभी पैसे को लेकर आई समस्‍या के बारे में परिवार का एक सदस्‍य जरूरत से ज्‍यादा परेशान रहता है। ऐसे में कई बार परिवार के ही लोग इसे समझ नहीं पाते, मगर ऐसे में परिवार को चहिए कि उस व्‍यक्ति को अपना पूरा सपोर्ट दें ,ताकि वह उस दायरे से बाहर आ सके।”

आगे कहा, ” जिंदगी में तो उतार- चढ़ाव तो हर एक व्‍यक्ति के जीवन में आते हैं। कई बार हम लोग इससे बाहर भी आ जाते है। लेकिन यहां सबसे बड़ी दिक्‍कत यह आती कि हम देख रहे हैं कि हमारे परिवार का एक सदस्‍य बहुत परेशान है इसके बावजूद भी हम उसका साथ नहीं दे रहे, यह गलत बात है।”

उन्होंने कहा कि अगर परिवार को लग रहा है कि किसी सदस्‍य के मन में गलत विचार आ रहे हैं और उसका व्‍यवहार भी बदला-बदला लग रहा है तो परिवार को चाहिए कि वह उस पर अपनी नजर बनाकर रखें।

बच्‍चों में आ रहे डिप्रेशन को लेकर उन्‍होंने कहा, ”जिस तरीके से हम किसी बीमारी के कारण को ढूंढते हैं उसी तरह हमें बच्‍चे के तनाव के पीछे का कारण जानने की जरूरत है। पेरेंट्स को चहिए कि वह अपने बच्‍चे को फेल होने के लिए भी तैयार करें। बच्‍चों पर उनके करियर को लेकर बिल्‍कुल भी दबाव न बनाएं, उनसे उम्‍मीदें तो बिल्‍कुल न बांधें।”

”जब बच्‍चे परिवार की उम्‍मीदों पर खरे नहीं उतर पाते तो, कई बार पेरेंट्स बच्‍चों का सुनाना शुरू कर देते कि हमने तुम पर कितना पैसा लगाया,उसके बाद भी तुम कुछ नहीं कर पाएं, जिससे बच्‍चे के मन में जीवन को खत्‍म करने जैसे विचार आने लगते हैं।”

उन्‍होंने सलाह देते हुए कहा कि ऐसे में पेरेंट्स को अपने बच्‍चों के साथ एक खास तरह का रिश्‍ता कायम करने की जरूरत है, उससे उसकी परेशानी के बारे में बात करने की जरूरत है, जिससे उसे लगे कि मैं अकेला नहीं हूं जो इस फेलियर का सामना कर रहा हूं।

–आईएएनएस

एमकेएस/केआर

ADVERTISEMENT

नई दिल्ली, 10 सितंबर (आईएएनएस)। वर्ल्ड सुसाइड प्रिवेंशन डे पर इस साल की थीम ‘चेंजिंग द नैरेटिव ऑन सुसाइड’ रखी गई है। वर्तमान में तनाव भरे जीवन में लोग इसका शिकार हो रहे हैं। बड़ो से लेकर बच्‍चों की भी आए दिन सुसाइड की खबरें सुनने को मिल जाती है। नैरेटिव ऐसा जिसमें खाली सफलता और सिर्फ सफलता की ही बात न हो बल्कि बताया जाए कि असफलता भी आगे बढ़ने के लिए जरूरी है।

सक्सेस और फेल्योर को लेकर आईएएनएस ने आयुष निदेशालय दिल्ली के मुख्य चिकित्सा अधिकारी (एसएजी) और इहबास इकाई के प्रभारी डॉक्‍टर अशोक शर्मा से बात की।

डॉ. अशोक शर्मा ने कहा कि विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्‍ल्‍यूएचओ) ने लोगों को सुसाइड जैसे विचार से बा‍हर निकालने के लिए इस दिन का चुनाव किया है। डब्‍ल्‍यूएचओ की मानें तो हर साल दुनियाभर में लगभग 7 लाख लोग आत्‍महत्‍या जैसा गंभीर कदम उठाते हैं।

उन्होंने कहा, ”यह जानने की जरूरत है कि ऐसा व्‍यक्ति सामाजिक, मानसिक और शारीरिक पटल पर किस चीज से जूझ रहा है। पहले लोग इस बारे में बात करने से भी घबराते थे, मगर आज के समय में कम से कम हम लोग इस मुद्दे पर खुलकर बात कर पाते हैं, जो बेहद ही जरूरी चीज है।”

डॉ. अशोक ने आगे कहा, ”इसके लिए समाज को आगे आकर इस ओर काम करने की जरूरत है, जिससे हम लोगों के लिए मददगार साबित हो सके। इससे यह होगा कि जब किसी की आलोचना नहीं होगी, समाज का भरपूर समर्थन मिलेगा तो व्‍यक्ति गलत राह को न चुनते हुए सही रास्‍ते पर रहेगा।”

आगे कहा कि तभी इस समस्‍या पर बात करने के लिए एक दिन निर्धारित किया गया है कि लोग आगे आकर इस पर बात करें, और प्रतीज्ञा लें कि हमारे आस पास जो भी इस परेशानी से जूझ रहा है तो उससे खुलकर बात करें।

इस समस्‍या पर परिवार क्‍या सहयोग दे सकता है? इस पर डॉ. अशोक ने कहा, ”कई बार रिश्‍तों में आई दिक्‍कतों या कभी पैसे को लेकर आई समस्‍या के बारे में परिवार का एक सदस्‍य जरूरत से ज्‍यादा परेशान रहता है। ऐसे में कई बार परिवार के ही लोग इसे समझ नहीं पाते, मगर ऐसे में परिवार को चहिए कि उस व्‍यक्ति को अपना पूरा सपोर्ट दें ,ताकि वह उस दायरे से बाहर आ सके।”

आगे कहा, ” जिंदगी में तो उतार- चढ़ाव तो हर एक व्‍यक्ति के जीवन में आते हैं। कई बार हम लोग इससे बाहर भी आ जाते है। लेकिन यहां सबसे बड़ी दिक्‍कत यह आती कि हम देख रहे हैं कि हमारे परिवार का एक सदस्‍य बहुत परेशान है इसके बावजूद भी हम उसका साथ नहीं दे रहे, यह गलत बात है।”

उन्होंने कहा कि अगर परिवार को लग रहा है कि किसी सदस्‍य के मन में गलत विचार आ रहे हैं और उसका व्‍यवहार भी बदला-बदला लग रहा है तो परिवार को चाहिए कि वह उस पर अपनी नजर बनाकर रखें।

बच्‍चों में आ रहे डिप्रेशन को लेकर उन्‍होंने कहा, ”जिस तरीके से हम किसी बीमारी के कारण को ढूंढते हैं उसी तरह हमें बच्‍चे के तनाव के पीछे का कारण जानने की जरूरत है। पेरेंट्स को चहिए कि वह अपने बच्‍चे को फेल होने के लिए भी तैयार करें। बच्‍चों पर उनके करियर को लेकर बिल्‍कुल भी दबाव न बनाएं, उनसे उम्‍मीदें तो बिल्‍कुल न बांधें।”

”जब बच्‍चे परिवार की उम्‍मीदों पर खरे नहीं उतर पाते तो, कई बार पेरेंट्स बच्‍चों का सुनाना शुरू कर देते कि हमने तुम पर कितना पैसा लगाया,उसके बाद भी तुम कुछ नहीं कर पाएं, जिससे बच्‍चे के मन में जीवन को खत्‍म करने जैसे विचार आने लगते हैं।”

उन्‍होंने सलाह देते हुए कहा कि ऐसे में पेरेंट्स को अपने बच्‍चों के साथ एक खास तरह का रिश्‍ता कायम करने की जरूरत है, उससे उसकी परेशानी के बारे में बात करने की जरूरत है, जिससे उसे लगे कि मैं अकेला नहीं हूं जो इस फेलियर का सामना कर रहा हूं।

–आईएएनएस

एमकेएस/केआर

ADVERTISEMENT

नई दिल्ली, 10 सितंबर (आईएएनएस)। वर्ल्ड सुसाइड प्रिवेंशन डे पर इस साल की थीम ‘चेंजिंग द नैरेटिव ऑन सुसाइड’ रखी गई है। वर्तमान में तनाव भरे जीवन में लोग इसका शिकार हो रहे हैं। बड़ो से लेकर बच्‍चों की भी आए दिन सुसाइड की खबरें सुनने को मिल जाती है। नैरेटिव ऐसा जिसमें खाली सफलता और सिर्फ सफलता की ही बात न हो बल्कि बताया जाए कि असफलता भी आगे बढ़ने के लिए जरूरी है।

सक्सेस और फेल्योर को लेकर आईएएनएस ने आयुष निदेशालय दिल्ली के मुख्य चिकित्सा अधिकारी (एसएजी) और इहबास इकाई के प्रभारी डॉक्‍टर अशोक शर्मा से बात की।

डॉ. अशोक शर्मा ने कहा कि विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्‍ल्‍यूएचओ) ने लोगों को सुसाइड जैसे विचार से बा‍हर निकालने के लिए इस दिन का चुनाव किया है। डब्‍ल्‍यूएचओ की मानें तो हर साल दुनियाभर में लगभग 7 लाख लोग आत्‍महत्‍या जैसा गंभीर कदम उठाते हैं।

उन्होंने कहा, ”यह जानने की जरूरत है कि ऐसा व्‍यक्ति सामाजिक, मानसिक और शारीरिक पटल पर किस चीज से जूझ रहा है। पहले लोग इस बारे में बात करने से भी घबराते थे, मगर आज के समय में कम से कम हम लोग इस मुद्दे पर खुलकर बात कर पाते हैं, जो बेहद ही जरूरी चीज है।”

डॉ. अशोक ने आगे कहा, ”इसके लिए समाज को आगे आकर इस ओर काम करने की जरूरत है, जिससे हम लोगों के लिए मददगार साबित हो सके। इससे यह होगा कि जब किसी की आलोचना नहीं होगी, समाज का भरपूर समर्थन मिलेगा तो व्‍यक्ति गलत राह को न चुनते हुए सही रास्‍ते पर रहेगा।”

आगे कहा कि तभी इस समस्‍या पर बात करने के लिए एक दिन निर्धारित किया गया है कि लोग आगे आकर इस पर बात करें, और प्रतीज्ञा लें कि हमारे आस पास जो भी इस परेशानी से जूझ रहा है तो उससे खुलकर बात करें।

इस समस्‍या पर परिवार क्‍या सहयोग दे सकता है? इस पर डॉ. अशोक ने कहा, ”कई बार रिश्‍तों में आई दिक्‍कतों या कभी पैसे को लेकर आई समस्‍या के बारे में परिवार का एक सदस्‍य जरूरत से ज्‍यादा परेशान रहता है। ऐसे में कई बार परिवार के ही लोग इसे समझ नहीं पाते, मगर ऐसे में परिवार को चहिए कि उस व्‍यक्ति को अपना पूरा सपोर्ट दें ,ताकि वह उस दायरे से बाहर आ सके।”

आगे कहा, ” जिंदगी में तो उतार- चढ़ाव तो हर एक व्‍यक्ति के जीवन में आते हैं। कई बार हम लोग इससे बाहर भी आ जाते है। लेकिन यहां सबसे बड़ी दिक्‍कत यह आती कि हम देख रहे हैं कि हमारे परिवार का एक सदस्‍य बहुत परेशान है इसके बावजूद भी हम उसका साथ नहीं दे रहे, यह गलत बात है।”

उन्होंने कहा कि अगर परिवार को लग रहा है कि किसी सदस्‍य के मन में गलत विचार आ रहे हैं और उसका व्‍यवहार भी बदला-बदला लग रहा है तो परिवार को चाहिए कि वह उस पर अपनी नजर बनाकर रखें।

बच्‍चों में आ रहे डिप्रेशन को लेकर उन्‍होंने कहा, ”जिस तरीके से हम किसी बीमारी के कारण को ढूंढते हैं उसी तरह हमें बच्‍चे के तनाव के पीछे का कारण जानने की जरूरत है। पेरेंट्स को चहिए कि वह अपने बच्‍चे को फेल होने के लिए भी तैयार करें। बच्‍चों पर उनके करियर को लेकर बिल्‍कुल भी दबाव न बनाएं, उनसे उम्‍मीदें तो बिल्‍कुल न बांधें।”

”जब बच्‍चे परिवार की उम्‍मीदों पर खरे नहीं उतर पाते तो, कई बार पेरेंट्स बच्‍चों का सुनाना शुरू कर देते कि हमने तुम पर कितना पैसा लगाया,उसके बाद भी तुम कुछ नहीं कर पाएं, जिससे बच्‍चे के मन में जीवन को खत्‍म करने जैसे विचार आने लगते हैं।”

उन्‍होंने सलाह देते हुए कहा कि ऐसे में पेरेंट्स को अपने बच्‍चों के साथ एक खास तरह का रिश्‍ता कायम करने की जरूरत है, उससे उसकी परेशानी के बारे में बात करने की जरूरत है, जिससे उसे लगे कि मैं अकेला नहीं हूं जो इस फेलियर का सामना कर रहा हूं।

–आईएएनएस

एमकेएस/केआर

ADVERTISEMENT

नई दिल्ली, 10 सितंबर (आईएएनएस)। वर्ल्ड सुसाइड प्रिवेंशन डे पर इस साल की थीम ‘चेंजिंग द नैरेटिव ऑन सुसाइड’ रखी गई है। वर्तमान में तनाव भरे जीवन में लोग इसका शिकार हो रहे हैं। बड़ो से लेकर बच्‍चों की भी आए दिन सुसाइड की खबरें सुनने को मिल जाती है। नैरेटिव ऐसा जिसमें खाली सफलता और सिर्फ सफलता की ही बात न हो बल्कि बताया जाए कि असफलता भी आगे बढ़ने के लिए जरूरी है।

सक्सेस और फेल्योर को लेकर आईएएनएस ने आयुष निदेशालय दिल्ली के मुख्य चिकित्सा अधिकारी (एसएजी) और इहबास इकाई के प्रभारी डॉक्‍टर अशोक शर्मा से बात की।

डॉ. अशोक शर्मा ने कहा कि विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्‍ल्‍यूएचओ) ने लोगों को सुसाइड जैसे विचार से बा‍हर निकालने के लिए इस दिन का चुनाव किया है। डब्‍ल्‍यूएचओ की मानें तो हर साल दुनियाभर में लगभग 7 लाख लोग आत्‍महत्‍या जैसा गंभीर कदम उठाते हैं।

उन्होंने कहा, ”यह जानने की जरूरत है कि ऐसा व्‍यक्ति सामाजिक, मानसिक और शारीरिक पटल पर किस चीज से जूझ रहा है। पहले लोग इस बारे में बात करने से भी घबराते थे, मगर आज के समय में कम से कम हम लोग इस मुद्दे पर खुलकर बात कर पाते हैं, जो बेहद ही जरूरी चीज है।”

डॉ. अशोक ने आगे कहा, ”इसके लिए समाज को आगे आकर इस ओर काम करने की जरूरत है, जिससे हम लोगों के लिए मददगार साबित हो सके। इससे यह होगा कि जब किसी की आलोचना नहीं होगी, समाज का भरपूर समर्थन मिलेगा तो व्‍यक्ति गलत राह को न चुनते हुए सही रास्‍ते पर रहेगा।”

आगे कहा कि तभी इस समस्‍या पर बात करने के लिए एक दिन निर्धारित किया गया है कि लोग आगे आकर इस पर बात करें, और प्रतीज्ञा लें कि हमारे आस पास जो भी इस परेशानी से जूझ रहा है तो उससे खुलकर बात करें।

इस समस्‍या पर परिवार क्‍या सहयोग दे सकता है? इस पर डॉ. अशोक ने कहा, ”कई बार रिश्‍तों में आई दिक्‍कतों या कभी पैसे को लेकर आई समस्‍या के बारे में परिवार का एक सदस्‍य जरूरत से ज्‍यादा परेशान रहता है। ऐसे में कई बार परिवार के ही लोग इसे समझ नहीं पाते, मगर ऐसे में परिवार को चहिए कि उस व्‍यक्ति को अपना पूरा सपोर्ट दें ,ताकि वह उस दायरे से बाहर आ सके।”

आगे कहा, ” जिंदगी में तो उतार- चढ़ाव तो हर एक व्‍यक्ति के जीवन में आते हैं। कई बार हम लोग इससे बाहर भी आ जाते है। लेकिन यहां सबसे बड़ी दिक्‍कत यह आती कि हम देख रहे हैं कि हमारे परिवार का एक सदस्‍य बहुत परेशान है इसके बावजूद भी हम उसका साथ नहीं दे रहे, यह गलत बात है।”

उन्होंने कहा कि अगर परिवार को लग रहा है कि किसी सदस्‍य के मन में गलत विचार आ रहे हैं और उसका व्‍यवहार भी बदला-बदला लग रहा है तो परिवार को चाहिए कि वह उस पर अपनी नजर बनाकर रखें।

बच्‍चों में आ रहे डिप्रेशन को लेकर उन्‍होंने कहा, ”जिस तरीके से हम किसी बीमारी के कारण को ढूंढते हैं उसी तरह हमें बच्‍चे के तनाव के पीछे का कारण जानने की जरूरत है। पेरेंट्स को चहिए कि वह अपने बच्‍चे को फेल होने के लिए भी तैयार करें। बच्‍चों पर उनके करियर को लेकर बिल्‍कुल भी दबाव न बनाएं, उनसे उम्‍मीदें तो बिल्‍कुल न बांधें।”

”जब बच्‍चे परिवार की उम्‍मीदों पर खरे नहीं उतर पाते तो, कई बार पेरेंट्स बच्‍चों का सुनाना शुरू कर देते कि हमने तुम पर कितना पैसा लगाया,उसके बाद भी तुम कुछ नहीं कर पाएं, जिससे बच्‍चे के मन में जीवन को खत्‍म करने जैसे विचार आने लगते हैं।”

उन्‍होंने सलाह देते हुए कहा कि ऐसे में पेरेंट्स को अपने बच्‍चों के साथ एक खास तरह का रिश्‍ता कायम करने की जरूरत है, उससे उसकी परेशानी के बारे में बात करने की जरूरत है, जिससे उसे लगे कि मैं अकेला नहीं हूं जो इस फेलियर का सामना कर रहा हूं।

–आईएएनएस

एमकेएस/केआर

ADVERTISEMENT
ADVERTISEMENT

नई दिल्ली, 10 सितंबर (आईएएनएस)। वर्ल्ड सुसाइड प्रिवेंशन डे पर इस साल की थीम ‘चेंजिंग द नैरेटिव ऑन सुसाइड’ रखी गई है। वर्तमान में तनाव भरे जीवन में लोग इसका शिकार हो रहे हैं। बड़ो से लेकर बच्‍चों की भी आए दिन सुसाइड की खबरें सुनने को मिल जाती है। नैरेटिव ऐसा जिसमें खाली सफलता और सिर्फ सफलता की ही बात न हो बल्कि बताया जाए कि असफलता भी आगे बढ़ने के लिए जरूरी है।

सक्सेस और फेल्योर को लेकर आईएएनएस ने आयुष निदेशालय दिल्ली के मुख्य चिकित्सा अधिकारी (एसएजी) और इहबास इकाई के प्रभारी डॉक्‍टर अशोक शर्मा से बात की।

डॉ. अशोक शर्मा ने कहा कि विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्‍ल्‍यूएचओ) ने लोगों को सुसाइड जैसे विचार से बा‍हर निकालने के लिए इस दिन का चुनाव किया है। डब्‍ल्‍यूएचओ की मानें तो हर साल दुनियाभर में लगभग 7 लाख लोग आत्‍महत्‍या जैसा गंभीर कदम उठाते हैं।

उन्होंने कहा, ”यह जानने की जरूरत है कि ऐसा व्‍यक्ति सामाजिक, मानसिक और शारीरिक पटल पर किस चीज से जूझ रहा है। पहले लोग इस बारे में बात करने से भी घबराते थे, मगर आज के समय में कम से कम हम लोग इस मुद्दे पर खुलकर बात कर पाते हैं, जो बेहद ही जरूरी चीज है।”

डॉ. अशोक ने आगे कहा, ”इसके लिए समाज को आगे आकर इस ओर काम करने की जरूरत है, जिससे हम लोगों के लिए मददगार साबित हो सके। इससे यह होगा कि जब किसी की आलोचना नहीं होगी, समाज का भरपूर समर्थन मिलेगा तो व्‍यक्ति गलत राह को न चुनते हुए सही रास्‍ते पर रहेगा।”

आगे कहा कि तभी इस समस्‍या पर बात करने के लिए एक दिन निर्धारित किया गया है कि लोग आगे आकर इस पर बात करें, और प्रतीज्ञा लें कि हमारे आस पास जो भी इस परेशानी से जूझ रहा है तो उससे खुलकर बात करें।

इस समस्‍या पर परिवार क्‍या सहयोग दे सकता है? इस पर डॉ. अशोक ने कहा, ”कई बार रिश्‍तों में आई दिक्‍कतों या कभी पैसे को लेकर आई समस्‍या के बारे में परिवार का एक सदस्‍य जरूरत से ज्‍यादा परेशान रहता है। ऐसे में कई बार परिवार के ही लोग इसे समझ नहीं पाते, मगर ऐसे में परिवार को चहिए कि उस व्‍यक्ति को अपना पूरा सपोर्ट दें ,ताकि वह उस दायरे से बाहर आ सके।”

आगे कहा, ” जिंदगी में तो उतार- चढ़ाव तो हर एक व्‍यक्ति के जीवन में आते हैं। कई बार हम लोग इससे बाहर भी आ जाते है। लेकिन यहां सबसे बड़ी दिक्‍कत यह आती कि हम देख रहे हैं कि हमारे परिवार का एक सदस्‍य बहुत परेशान है इसके बावजूद भी हम उसका साथ नहीं दे रहे, यह गलत बात है।”

उन्होंने कहा कि अगर परिवार को लग रहा है कि किसी सदस्‍य के मन में गलत विचार आ रहे हैं और उसका व्‍यवहार भी बदला-बदला लग रहा है तो परिवार को चाहिए कि वह उस पर अपनी नजर बनाकर रखें।

बच्‍चों में आ रहे डिप्रेशन को लेकर उन्‍होंने कहा, ”जिस तरीके से हम किसी बीमारी के कारण को ढूंढते हैं उसी तरह हमें बच्‍चे के तनाव के पीछे का कारण जानने की जरूरत है। पेरेंट्स को चहिए कि वह अपने बच्‍चे को फेल होने के लिए भी तैयार करें। बच्‍चों पर उनके करियर को लेकर बिल्‍कुल भी दबाव न बनाएं, उनसे उम्‍मीदें तो बिल्‍कुल न बांधें।”

”जब बच्‍चे परिवार की उम्‍मीदों पर खरे नहीं उतर पाते तो, कई बार पेरेंट्स बच्‍चों का सुनाना शुरू कर देते कि हमने तुम पर कितना पैसा लगाया,उसके बाद भी तुम कुछ नहीं कर पाएं, जिससे बच्‍चे के मन में जीवन को खत्‍म करने जैसे विचार आने लगते हैं।”

उन्‍होंने सलाह देते हुए कहा कि ऐसे में पेरेंट्स को अपने बच्‍चों के साथ एक खास तरह का रिश्‍ता कायम करने की जरूरत है, उससे उसकी परेशानी के बारे में बात करने की जरूरत है, जिससे उसे लगे कि मैं अकेला नहीं हूं जो इस फेलियर का सामना कर रहा हूं।

–आईएएनएस

एमकेएस/केआर

ADVERTISEMENT

नई दिल्ली, 10 सितंबर (आईएएनएस)। वर्ल्ड सुसाइड प्रिवेंशन डे पर इस साल की थीम ‘चेंजिंग द नैरेटिव ऑन सुसाइड’ रखी गई है। वर्तमान में तनाव भरे जीवन में लोग इसका शिकार हो रहे हैं। बड़ो से लेकर बच्‍चों की भी आए दिन सुसाइड की खबरें सुनने को मिल जाती है। नैरेटिव ऐसा जिसमें खाली सफलता और सिर्फ सफलता की ही बात न हो बल्कि बताया जाए कि असफलता भी आगे बढ़ने के लिए जरूरी है।

सक्सेस और फेल्योर को लेकर आईएएनएस ने आयुष निदेशालय दिल्ली के मुख्य चिकित्सा अधिकारी (एसएजी) और इहबास इकाई के प्रभारी डॉक्‍टर अशोक शर्मा से बात की।

डॉ. अशोक शर्मा ने कहा कि विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्‍ल्‍यूएचओ) ने लोगों को सुसाइड जैसे विचार से बा‍हर निकालने के लिए इस दिन का चुनाव किया है। डब्‍ल्‍यूएचओ की मानें तो हर साल दुनियाभर में लगभग 7 लाख लोग आत्‍महत्‍या जैसा गंभीर कदम उठाते हैं।

उन्होंने कहा, ”यह जानने की जरूरत है कि ऐसा व्‍यक्ति सामाजिक, मानसिक और शारीरिक पटल पर किस चीज से जूझ रहा है। पहले लोग इस बारे में बात करने से भी घबराते थे, मगर आज के समय में कम से कम हम लोग इस मुद्दे पर खुलकर बात कर पाते हैं, जो बेहद ही जरूरी चीज है।”

डॉ. अशोक ने आगे कहा, ”इसके लिए समाज को आगे आकर इस ओर काम करने की जरूरत है, जिससे हम लोगों के लिए मददगार साबित हो सके। इससे यह होगा कि जब किसी की आलोचना नहीं होगी, समाज का भरपूर समर्थन मिलेगा तो व्‍यक्ति गलत राह को न चुनते हुए सही रास्‍ते पर रहेगा।”

आगे कहा कि तभी इस समस्‍या पर बात करने के लिए एक दिन निर्धारित किया गया है कि लोग आगे आकर इस पर बात करें, और प्रतीज्ञा लें कि हमारे आस पास जो भी इस परेशानी से जूझ रहा है तो उससे खुलकर बात करें।

इस समस्‍या पर परिवार क्‍या सहयोग दे सकता है? इस पर डॉ. अशोक ने कहा, ”कई बार रिश्‍तों में आई दिक्‍कतों या कभी पैसे को लेकर आई समस्‍या के बारे में परिवार का एक सदस्‍य जरूरत से ज्‍यादा परेशान रहता है। ऐसे में कई बार परिवार के ही लोग इसे समझ नहीं पाते, मगर ऐसे में परिवार को चहिए कि उस व्‍यक्ति को अपना पूरा सपोर्ट दें ,ताकि वह उस दायरे से बाहर आ सके।”

आगे कहा, ” जिंदगी में तो उतार- चढ़ाव तो हर एक व्‍यक्ति के जीवन में आते हैं। कई बार हम लोग इससे बाहर भी आ जाते है। लेकिन यहां सबसे बड़ी दिक्‍कत यह आती कि हम देख रहे हैं कि हमारे परिवार का एक सदस्‍य बहुत परेशान है इसके बावजूद भी हम उसका साथ नहीं दे रहे, यह गलत बात है।”

उन्होंने कहा कि अगर परिवार को लग रहा है कि किसी सदस्‍य के मन में गलत विचार आ रहे हैं और उसका व्‍यवहार भी बदला-बदला लग रहा है तो परिवार को चाहिए कि वह उस पर अपनी नजर बनाकर रखें।

बच्‍चों में आ रहे डिप्रेशन को लेकर उन्‍होंने कहा, ”जिस तरीके से हम किसी बीमारी के कारण को ढूंढते हैं उसी तरह हमें बच्‍चे के तनाव के पीछे का कारण जानने की जरूरत है। पेरेंट्स को चहिए कि वह अपने बच्‍चे को फेल होने के लिए भी तैयार करें। बच्‍चों पर उनके करियर को लेकर बिल्‍कुल भी दबाव न बनाएं, उनसे उम्‍मीदें तो बिल्‍कुल न बांधें।”

”जब बच्‍चे परिवार की उम्‍मीदों पर खरे नहीं उतर पाते तो, कई बार पेरेंट्स बच्‍चों का सुनाना शुरू कर देते कि हमने तुम पर कितना पैसा लगाया,उसके बाद भी तुम कुछ नहीं कर पाएं, जिससे बच्‍चे के मन में जीवन को खत्‍म करने जैसे विचार आने लगते हैं।”

उन्‍होंने सलाह देते हुए कहा कि ऐसे में पेरेंट्स को अपने बच्‍चों के साथ एक खास तरह का रिश्‍ता कायम करने की जरूरत है, उससे उसकी परेशानी के बारे में बात करने की जरूरत है, जिससे उसे लगे कि मैं अकेला नहीं हूं जो इस फेलियर का सामना कर रहा हूं।

–आईएएनएस

एमकेएस/केआर

Related Posts

छत्तीसगढ़: एलडब्ल्यूई विरोधी अभियान में बड़ी सफलता, एक साथ 71 नक्सलियों ने किया आत्मसमर्पण
राष्ट्रीय

छत्तीसगढ़: एलडब्ल्यूई विरोधी अभियान में बड़ी सफलता, एक साथ 71 नक्सलियों ने किया आत्मसमर्पण

September 24, 2025
लालू परिवार में लड़ाई की असली वजह- जंगलराज में राजा कौन बनेगा : हर्षवर्धन सिंह
राष्ट्रीय

लालू परिवार में लड़ाई की असली वजह- जंगलराज में राजा कौन बनेगा : हर्षवर्धन सिंह

September 24, 2025
राष्ट्रीय

रेलकर्मियों को 78 दिनों का बोनस, कर्मचारियों ने पीएम मोदी को दिया धन्यवाद

September 24, 2025
भारत के लिए राष्ट्रहित सर्वोपरि, किसी भी देश के दबाव में संप्रभुता से समझौता नहीं : सरबजीत सिंह शेंटी
राष्ट्रीय

भारत के लिए राष्ट्रहित सर्वोपरि, किसी भी देश के दबाव में संप्रभुता से समझौता नहीं : सरबजीत सिंह शेंटी

September 24, 2025
जाति आधारित रैलियों पर प्रतिबंध यूपी सरकार का तानाशाही आदेश : इकरा हसन
राष्ट्रीय

जाति आधारित रैलियों पर प्रतिबंध यूपी सरकार का तानाशाही आदेश : इकरा हसन

September 24, 2025
मुस्लिम महिलाओं को आज तक नहीं मिला बराबरी का दर्जा : उत्तर प्रदेश महिला आयोग अध्यक्ष
राष्ट्रीय

मुस्लिम महिलाओं को आज तक नहीं मिला बराबरी का दर्जा : उत्तर प्रदेश महिला आयोग अध्यक्ष

September 24, 2025
Next Post
पूरी दुनिया ग्लोबल विलेज है, चाहें जहां बोलो हर जगह फैल जाता है : नसीर हुसैन

पूरी दुनिया ग्लोबल विलेज है, चाहें जहां बोलो हर जगह फैल जाता है : नसीर हुसैन

Leave a Reply Cancel reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

ADVERTISEMENT

Contact us

Address

Deshbandhu Complex, Naudra Bridge Jabalpur 482001

Mail

deshbandhump@gmail.com

Mobile

9425156056

Important links

  • राशि-भविष्य
  • वर्गीकृत विज्ञापन
  • लाइफ स्टाइल
  • मनोरंजन
  • ब्लॉग

Important links

  • देशबन्धु जनमत
  • पाठक प्रतिक्रियाएं
  • हमें जानें
  • विज्ञापन दरें
  • ई पेपर

Related Links

  • Mayaram Surjan
  • Swayamsiddha
  • Deshbandhu

Social Links

113087
Total views : 6010980
Powered By WPS Visitor Counter

Published by Abhas Surjan on behalf of Patrakar Prakashan Pvt.Ltd., Deshbandhu Complex, Naudra Bridge, Jabalpur – 482001 |T:+91 761 4006577 |M: +91 9425156056 Disclaimer, Privacy Policy & Other Terms & Conditions The contents of this website is for reading only. Any unauthorised attempt to temper / edit / change the contents of this website comes under cyber crime and is punishable.

Copyright @ 2022 Deshbandhu. All rights are reserved.

  • Disclaimer, Privacy Policy & Other Terms & Conditions
No Result
View All Result
  • राष्ट्रीय
  • अंतरराष्ट्रीय
  • लाइफ स्टाइल
  • अर्थजगत
  • मनोरंजन
  • खेल
  • अभिमत
  • धर्म
  • विचार
  • ई पेपर

Copyright @ 2022 Deshbandhu-MP All rights are reserved.

Welcome Back!

Login to your account below

Forgotten Password? Sign Up

Create New Account!

Fill the forms below to register

All fields are required. Log In

Retrieve your password

Please enter your username or email address to reset your password.

Log In