deshbandhu

deshbandu_logo
  • राष्ट्रीय
  • अंतरराष्ट्रीय
  • लाइफ स्टाइल
  • अर्थजगत
  • मनोरंजन
  • खेल
  • अभिमत
  • धर्म
  • विचार
  • ई पेपर
deshbandu_logo
  • राष्ट्रीय
  • अंतरराष्ट्रीय
  • लाइफ स्टाइल
  • अर्थजगत
  • मनोरंजन
  • खेल
  • अभिमत
  • धर्म
  • विचार
  • ई पेपर
Menu
  • राष्ट्रीय
  • अंतरराष्ट्रीय
  • लाइफ स्टाइल
  • अर्थजगत
  • मनोरंजन
  • खेल
  • अभिमत
  • धर्म
  • विचार
  • ई पेपर
Facebook Twitter Youtube
  • भोपाल
  • इंदौर
  • उज्जैन
  • ग्वालियर
  • जबलपुर
  • रीवा
  • चंबल
  • नर्मदापुरम
  • शहडोल
  • सागर
  • देशबन्धु जनमत
  • पाठक प्रतिक्रियाएं
  • हमें जानें
  • विज्ञापन दरें
ADVERTISEMENT
Home ताज़ा समाचार

वह मंदिर, जहां होती है रावण की पूजा, सिर्फ दशहरे के दिन ही खुलते हैं कपाट

by
October 12, 2024
in ताज़ा समाचार
0
0
SHARES
4
VIEWS
Share on FacebookShare on Whatsapp
ADVERTISEMENT

कानपुर, 12 अक्टूबर (आईएएनएस)। भारत में दशहरा रावण दहन का प्रतीक है। जहां रावण को बुराई के रूप में देखा जाता है और उसकी पराजय को विजय के रूप में मनाया जाता है। वहीं, उत्तर प्रदेश के कानपुर के शिवाला इलाके में एक ऐसा मंदिर है, जहां रावण की पूजा होती है। यह मंदिर करीब 158 साल पुराना है। दशहरे के दिन विशेष रूप से इसके कपाट खोले जाते हैं। इस दिन यहां भक्तगण दशानन रावण की पूजा और आरती करते हैं, जो इसे एक अनोखी धार्मिक परंपरा का केंद्र बनाता है।

आज भी विजयदशमी के अवसर पर नियमानुसार मंदिर के पट खोले गए, जहां भक्तों की लंबी कतार देखने को मिली और बारी बारी भक्तों ने रावण की पूजा-अर्चना की। मान्यता है कि भगवान शिव के सबसे प्रिय भक्त रावण थे, जिनको कई शक्तियां प्राप्त थी। उनकी पूजा करने से बुद्धि बल की प्राप्ति होती है। इस दिन सभी भक्त तेल का दीपक और तरोई का पुष्प चढ़ाकर पूजा अर्चना करते हैं।

READ ALSO

जम्मू-कश्मीर में घुसपैठ नाकाम, सुरक्षा बलों ने सात आतंकियों को किया ढेर

जैसलमेर में मिली बम जैसी वस्तु, पुलिस ने इलाके को किया सील.

बता दें कि वर्ष 1868 में महाराज गुरु प्रसाद शुक्ल ने इस मंदिर का निर्माण कराया था। वे भगवान शिव के परम भक्त थे और रावण को शक्ति और विद्या का प्रतीक मानते थे। मंदिर में स्थापित रावण की प्रतिमा को शक्ति का प्रहरी माना जाता है और विजयदशमी के दिन विशेष श्रृंगार-पूजन किया जाता है। सुबह से ही मंदिर के कपाट खुल जाते हैं और शाम को आरती के साथ विशेष पूजा संपन्न होती है। सालभर मंदिर के कपाट बंद रहते हैं और सिर्फ दशहरे के दिन ही यहां दर्शन किए जा सकते हैं।

मंदिर के पुजारी पंडित राम बाजपेई ने कहा, “हमसे यह सवाल कई लोग करते हैं कि आखिर आप रावण की पूजा क्यों करते हैं, तो हम उनकी पूजा उनकी विद्वता को ध्यान में रखते हुए करते हैं, क्योंकि इनसे बड़ा विद्वान पंडित कोई नहीं हुआ है, इसलिए हम लोग उनकी विद्वता की पूजा करते हैं। यही नहीं, हम लोग इनका जन्मदिन भी मनाते हैं, क्योंकि अश्वनी माह के शुक्ल पक्ष में इनका जन्म भी हुआ था, इसलिए हम लोग इनका जन्मदिन भी मनाते हैं और शाम को इनका पुतला दहन भी करते हैं।”

उन्होंने कहा, “हम वो अहंकारी पुतला दहन करते हैं, जिससे लोगों का अहंकार खत्म हो और पूजा हम लोग इनकी विद्वता की करते हैं, इसलिए हम लोग इनको पूजते हैं। यह मंदिर दशहरे के दिन ही खुलता है। यह बहुत साल पुराना मंदिर है। बड़ी संख्या में भक्त यहां आते हैं और अपनी समृद्धि के लिए प्रार्थना करते हैं। ”

मंदिर के दर्शन करने आईं भक्त खुशविंदर कौर ने बताया, “यह दशानन मंदिर है। बताते हैं कि यह साल में एक बार खुलता है। दशहरे वाले दिन खुलता है। हम चार-पांच साल से यहां आ रहे हैं। पहले पता नहीं था, जब से पता चला है, तब से हम हर साल यहां आते हैं। यह महज दशहरे के दिन ही खुलता है।”

भक्त अनिल सोनकर ने बताया, “यह दशानन मंदिर है। यह दशहरे के दिन ही खुलता है और इसके बाद शाम को बंद हो जाता है। बताते हैं कि यह दशहरे के दिन इसका दर्शन करना चाहिए। मैं पिछले सात-आठ साल से इस मंदिर में आता हूं और दर्शन करता हूं। हमारे बच्चे भी आते थे, लेकिन अभी वो बाहर हैं, इसलिए अभी महज हम ही आ रहे हैं।”

–आईएएनएस

एसएचके/एएस

ADVERTISEMENT

कानपुर, 12 अक्टूबर (आईएएनएस)। भारत में दशहरा रावण दहन का प्रतीक है। जहां रावण को बुराई के रूप में देखा जाता है और उसकी पराजय को विजय के रूप में मनाया जाता है। वहीं, उत्तर प्रदेश के कानपुर के शिवाला इलाके में एक ऐसा मंदिर है, जहां रावण की पूजा होती है। यह मंदिर करीब 158 साल पुराना है। दशहरे के दिन विशेष रूप से इसके कपाट खोले जाते हैं। इस दिन यहां भक्तगण दशानन रावण की पूजा और आरती करते हैं, जो इसे एक अनोखी धार्मिक परंपरा का केंद्र बनाता है।

आज भी विजयदशमी के अवसर पर नियमानुसार मंदिर के पट खोले गए, जहां भक्तों की लंबी कतार देखने को मिली और बारी बारी भक्तों ने रावण की पूजा-अर्चना की। मान्यता है कि भगवान शिव के सबसे प्रिय भक्त रावण थे, जिनको कई शक्तियां प्राप्त थी। उनकी पूजा करने से बुद्धि बल की प्राप्ति होती है। इस दिन सभी भक्त तेल का दीपक और तरोई का पुष्प चढ़ाकर पूजा अर्चना करते हैं।

बता दें कि वर्ष 1868 में महाराज गुरु प्रसाद शुक्ल ने इस मंदिर का निर्माण कराया था। वे भगवान शिव के परम भक्त थे और रावण को शक्ति और विद्या का प्रतीक मानते थे। मंदिर में स्थापित रावण की प्रतिमा को शक्ति का प्रहरी माना जाता है और विजयदशमी के दिन विशेष श्रृंगार-पूजन किया जाता है। सुबह से ही मंदिर के कपाट खुल जाते हैं और शाम को आरती के साथ विशेष पूजा संपन्न होती है। सालभर मंदिर के कपाट बंद रहते हैं और सिर्फ दशहरे के दिन ही यहां दर्शन किए जा सकते हैं।

मंदिर के पुजारी पंडित राम बाजपेई ने कहा, “हमसे यह सवाल कई लोग करते हैं कि आखिर आप रावण की पूजा क्यों करते हैं, तो हम उनकी पूजा उनकी विद्वता को ध्यान में रखते हुए करते हैं, क्योंकि इनसे बड़ा विद्वान पंडित कोई नहीं हुआ है, इसलिए हम लोग उनकी विद्वता की पूजा करते हैं। यही नहीं, हम लोग इनका जन्मदिन भी मनाते हैं, क्योंकि अश्वनी माह के शुक्ल पक्ष में इनका जन्म भी हुआ था, इसलिए हम लोग इनका जन्मदिन भी मनाते हैं और शाम को इनका पुतला दहन भी करते हैं।”

उन्होंने कहा, “हम वो अहंकारी पुतला दहन करते हैं, जिससे लोगों का अहंकार खत्म हो और पूजा हम लोग इनकी विद्वता की करते हैं, इसलिए हम लोग इनको पूजते हैं। यह मंदिर दशहरे के दिन ही खुलता है। यह बहुत साल पुराना मंदिर है। बड़ी संख्या में भक्त यहां आते हैं और अपनी समृद्धि के लिए प्रार्थना करते हैं। ”

मंदिर के दर्शन करने आईं भक्त खुशविंदर कौर ने बताया, “यह दशानन मंदिर है। बताते हैं कि यह साल में एक बार खुलता है। दशहरे वाले दिन खुलता है। हम चार-पांच साल से यहां आ रहे हैं। पहले पता नहीं था, जब से पता चला है, तब से हम हर साल यहां आते हैं। यह महज दशहरे के दिन ही खुलता है।”

भक्त अनिल सोनकर ने बताया, “यह दशानन मंदिर है। यह दशहरे के दिन ही खुलता है और इसके बाद शाम को बंद हो जाता है। बताते हैं कि यह दशहरे के दिन इसका दर्शन करना चाहिए। मैं पिछले सात-आठ साल से इस मंदिर में आता हूं और दर्शन करता हूं। हमारे बच्चे भी आते थे, लेकिन अभी वो बाहर हैं, इसलिए अभी महज हम ही आ रहे हैं।”

–आईएएनएस

एसएचके/एएस

ADVERTISEMENT

कानपुर, 12 अक्टूबर (आईएएनएस)। भारत में दशहरा रावण दहन का प्रतीक है। जहां रावण को बुराई के रूप में देखा जाता है और उसकी पराजय को विजय के रूप में मनाया जाता है। वहीं, उत्तर प्रदेश के कानपुर के शिवाला इलाके में एक ऐसा मंदिर है, जहां रावण की पूजा होती है। यह मंदिर करीब 158 साल पुराना है। दशहरे के दिन विशेष रूप से इसके कपाट खोले जाते हैं। इस दिन यहां भक्तगण दशानन रावण की पूजा और आरती करते हैं, जो इसे एक अनोखी धार्मिक परंपरा का केंद्र बनाता है।

आज भी विजयदशमी के अवसर पर नियमानुसार मंदिर के पट खोले गए, जहां भक्तों की लंबी कतार देखने को मिली और बारी बारी भक्तों ने रावण की पूजा-अर्चना की। मान्यता है कि भगवान शिव के सबसे प्रिय भक्त रावण थे, जिनको कई शक्तियां प्राप्त थी। उनकी पूजा करने से बुद्धि बल की प्राप्ति होती है। इस दिन सभी भक्त तेल का दीपक और तरोई का पुष्प चढ़ाकर पूजा अर्चना करते हैं।

बता दें कि वर्ष 1868 में महाराज गुरु प्रसाद शुक्ल ने इस मंदिर का निर्माण कराया था। वे भगवान शिव के परम भक्त थे और रावण को शक्ति और विद्या का प्रतीक मानते थे। मंदिर में स्थापित रावण की प्रतिमा को शक्ति का प्रहरी माना जाता है और विजयदशमी के दिन विशेष श्रृंगार-पूजन किया जाता है। सुबह से ही मंदिर के कपाट खुल जाते हैं और शाम को आरती के साथ विशेष पूजा संपन्न होती है। सालभर मंदिर के कपाट बंद रहते हैं और सिर्फ दशहरे के दिन ही यहां दर्शन किए जा सकते हैं।

मंदिर के पुजारी पंडित राम बाजपेई ने कहा, “हमसे यह सवाल कई लोग करते हैं कि आखिर आप रावण की पूजा क्यों करते हैं, तो हम उनकी पूजा उनकी विद्वता को ध्यान में रखते हुए करते हैं, क्योंकि इनसे बड़ा विद्वान पंडित कोई नहीं हुआ है, इसलिए हम लोग उनकी विद्वता की पूजा करते हैं। यही नहीं, हम लोग इनका जन्मदिन भी मनाते हैं, क्योंकि अश्वनी माह के शुक्ल पक्ष में इनका जन्म भी हुआ था, इसलिए हम लोग इनका जन्मदिन भी मनाते हैं और शाम को इनका पुतला दहन भी करते हैं।”

उन्होंने कहा, “हम वो अहंकारी पुतला दहन करते हैं, जिससे लोगों का अहंकार खत्म हो और पूजा हम लोग इनकी विद्वता की करते हैं, इसलिए हम लोग इनको पूजते हैं। यह मंदिर दशहरे के दिन ही खुलता है। यह बहुत साल पुराना मंदिर है। बड़ी संख्या में भक्त यहां आते हैं और अपनी समृद्धि के लिए प्रार्थना करते हैं। ”

मंदिर के दर्शन करने आईं भक्त खुशविंदर कौर ने बताया, “यह दशानन मंदिर है। बताते हैं कि यह साल में एक बार खुलता है। दशहरे वाले दिन खुलता है। हम चार-पांच साल से यहां आ रहे हैं। पहले पता नहीं था, जब से पता चला है, तब से हम हर साल यहां आते हैं। यह महज दशहरे के दिन ही खुलता है।”

भक्त अनिल सोनकर ने बताया, “यह दशानन मंदिर है। यह दशहरे के दिन ही खुलता है और इसके बाद शाम को बंद हो जाता है। बताते हैं कि यह दशहरे के दिन इसका दर्शन करना चाहिए। मैं पिछले सात-आठ साल से इस मंदिर में आता हूं और दर्शन करता हूं। हमारे बच्चे भी आते थे, लेकिन अभी वो बाहर हैं, इसलिए अभी महज हम ही आ रहे हैं।”

–आईएएनएस

एसएचके/एएस

ADVERTISEMENT

कानपुर, 12 अक्टूबर (आईएएनएस)। भारत में दशहरा रावण दहन का प्रतीक है। जहां रावण को बुराई के रूप में देखा जाता है और उसकी पराजय को विजय के रूप में मनाया जाता है। वहीं, उत्तर प्रदेश के कानपुर के शिवाला इलाके में एक ऐसा मंदिर है, जहां रावण की पूजा होती है। यह मंदिर करीब 158 साल पुराना है। दशहरे के दिन विशेष रूप से इसके कपाट खोले जाते हैं। इस दिन यहां भक्तगण दशानन रावण की पूजा और आरती करते हैं, जो इसे एक अनोखी धार्मिक परंपरा का केंद्र बनाता है।

आज भी विजयदशमी के अवसर पर नियमानुसार मंदिर के पट खोले गए, जहां भक्तों की लंबी कतार देखने को मिली और बारी बारी भक्तों ने रावण की पूजा-अर्चना की। मान्यता है कि भगवान शिव के सबसे प्रिय भक्त रावण थे, जिनको कई शक्तियां प्राप्त थी। उनकी पूजा करने से बुद्धि बल की प्राप्ति होती है। इस दिन सभी भक्त तेल का दीपक और तरोई का पुष्प चढ़ाकर पूजा अर्चना करते हैं।

बता दें कि वर्ष 1868 में महाराज गुरु प्रसाद शुक्ल ने इस मंदिर का निर्माण कराया था। वे भगवान शिव के परम भक्त थे और रावण को शक्ति और विद्या का प्रतीक मानते थे। मंदिर में स्थापित रावण की प्रतिमा को शक्ति का प्रहरी माना जाता है और विजयदशमी के दिन विशेष श्रृंगार-पूजन किया जाता है। सुबह से ही मंदिर के कपाट खुल जाते हैं और शाम को आरती के साथ विशेष पूजा संपन्न होती है। सालभर मंदिर के कपाट बंद रहते हैं और सिर्फ दशहरे के दिन ही यहां दर्शन किए जा सकते हैं।

मंदिर के पुजारी पंडित राम बाजपेई ने कहा, “हमसे यह सवाल कई लोग करते हैं कि आखिर आप रावण की पूजा क्यों करते हैं, तो हम उनकी पूजा उनकी विद्वता को ध्यान में रखते हुए करते हैं, क्योंकि इनसे बड़ा विद्वान पंडित कोई नहीं हुआ है, इसलिए हम लोग उनकी विद्वता की पूजा करते हैं। यही नहीं, हम लोग इनका जन्मदिन भी मनाते हैं, क्योंकि अश्वनी माह के शुक्ल पक्ष में इनका जन्म भी हुआ था, इसलिए हम लोग इनका जन्मदिन भी मनाते हैं और शाम को इनका पुतला दहन भी करते हैं।”

उन्होंने कहा, “हम वो अहंकारी पुतला दहन करते हैं, जिससे लोगों का अहंकार खत्म हो और पूजा हम लोग इनकी विद्वता की करते हैं, इसलिए हम लोग इनको पूजते हैं। यह मंदिर दशहरे के दिन ही खुलता है। यह बहुत साल पुराना मंदिर है। बड़ी संख्या में भक्त यहां आते हैं और अपनी समृद्धि के लिए प्रार्थना करते हैं। ”

मंदिर के दर्शन करने आईं भक्त खुशविंदर कौर ने बताया, “यह दशानन मंदिर है। बताते हैं कि यह साल में एक बार खुलता है। दशहरे वाले दिन खुलता है। हम चार-पांच साल से यहां आ रहे हैं। पहले पता नहीं था, जब से पता चला है, तब से हम हर साल यहां आते हैं। यह महज दशहरे के दिन ही खुलता है।”

भक्त अनिल सोनकर ने बताया, “यह दशानन मंदिर है। यह दशहरे के दिन ही खुलता है और इसके बाद शाम को बंद हो जाता है। बताते हैं कि यह दशहरे के दिन इसका दर्शन करना चाहिए। मैं पिछले सात-आठ साल से इस मंदिर में आता हूं और दर्शन करता हूं। हमारे बच्चे भी आते थे, लेकिन अभी वो बाहर हैं, इसलिए अभी महज हम ही आ रहे हैं।”

–आईएएनएस

एसएचके/एएस

ADVERTISEMENT

कानपुर, 12 अक्टूबर (आईएएनएस)। भारत में दशहरा रावण दहन का प्रतीक है। जहां रावण को बुराई के रूप में देखा जाता है और उसकी पराजय को विजय के रूप में मनाया जाता है। वहीं, उत्तर प्रदेश के कानपुर के शिवाला इलाके में एक ऐसा मंदिर है, जहां रावण की पूजा होती है। यह मंदिर करीब 158 साल पुराना है। दशहरे के दिन विशेष रूप से इसके कपाट खोले जाते हैं। इस दिन यहां भक्तगण दशानन रावण की पूजा और आरती करते हैं, जो इसे एक अनोखी धार्मिक परंपरा का केंद्र बनाता है।

आज भी विजयदशमी के अवसर पर नियमानुसार मंदिर के पट खोले गए, जहां भक्तों की लंबी कतार देखने को मिली और बारी बारी भक्तों ने रावण की पूजा-अर्चना की। मान्यता है कि भगवान शिव के सबसे प्रिय भक्त रावण थे, जिनको कई शक्तियां प्राप्त थी। उनकी पूजा करने से बुद्धि बल की प्राप्ति होती है। इस दिन सभी भक्त तेल का दीपक और तरोई का पुष्प चढ़ाकर पूजा अर्चना करते हैं।

बता दें कि वर्ष 1868 में महाराज गुरु प्रसाद शुक्ल ने इस मंदिर का निर्माण कराया था। वे भगवान शिव के परम भक्त थे और रावण को शक्ति और विद्या का प्रतीक मानते थे। मंदिर में स्थापित रावण की प्रतिमा को शक्ति का प्रहरी माना जाता है और विजयदशमी के दिन विशेष श्रृंगार-पूजन किया जाता है। सुबह से ही मंदिर के कपाट खुल जाते हैं और शाम को आरती के साथ विशेष पूजा संपन्न होती है। सालभर मंदिर के कपाट बंद रहते हैं और सिर्फ दशहरे के दिन ही यहां दर्शन किए जा सकते हैं।

मंदिर के पुजारी पंडित राम बाजपेई ने कहा, “हमसे यह सवाल कई लोग करते हैं कि आखिर आप रावण की पूजा क्यों करते हैं, तो हम उनकी पूजा उनकी विद्वता को ध्यान में रखते हुए करते हैं, क्योंकि इनसे बड़ा विद्वान पंडित कोई नहीं हुआ है, इसलिए हम लोग उनकी विद्वता की पूजा करते हैं। यही नहीं, हम लोग इनका जन्मदिन भी मनाते हैं, क्योंकि अश्वनी माह के शुक्ल पक्ष में इनका जन्म भी हुआ था, इसलिए हम लोग इनका जन्मदिन भी मनाते हैं और शाम को इनका पुतला दहन भी करते हैं।”

उन्होंने कहा, “हम वो अहंकारी पुतला दहन करते हैं, जिससे लोगों का अहंकार खत्म हो और पूजा हम लोग इनकी विद्वता की करते हैं, इसलिए हम लोग इनको पूजते हैं। यह मंदिर दशहरे के दिन ही खुलता है। यह बहुत साल पुराना मंदिर है। बड़ी संख्या में भक्त यहां आते हैं और अपनी समृद्धि के लिए प्रार्थना करते हैं। ”

मंदिर के दर्शन करने आईं भक्त खुशविंदर कौर ने बताया, “यह दशानन मंदिर है। बताते हैं कि यह साल में एक बार खुलता है। दशहरे वाले दिन खुलता है। हम चार-पांच साल से यहां आ रहे हैं। पहले पता नहीं था, जब से पता चला है, तब से हम हर साल यहां आते हैं। यह महज दशहरे के दिन ही खुलता है।”

भक्त अनिल सोनकर ने बताया, “यह दशानन मंदिर है। यह दशहरे के दिन ही खुलता है और इसके बाद शाम को बंद हो जाता है। बताते हैं कि यह दशहरे के दिन इसका दर्शन करना चाहिए। मैं पिछले सात-आठ साल से इस मंदिर में आता हूं और दर्शन करता हूं। हमारे बच्चे भी आते थे, लेकिन अभी वो बाहर हैं, इसलिए अभी महज हम ही आ रहे हैं।”

–आईएएनएस

एसएचके/एएस

ADVERTISEMENT

कानपुर, 12 अक्टूबर (आईएएनएस)। भारत में दशहरा रावण दहन का प्रतीक है। जहां रावण को बुराई के रूप में देखा जाता है और उसकी पराजय को विजय के रूप में मनाया जाता है। वहीं, उत्तर प्रदेश के कानपुर के शिवाला इलाके में एक ऐसा मंदिर है, जहां रावण की पूजा होती है। यह मंदिर करीब 158 साल पुराना है। दशहरे के दिन विशेष रूप से इसके कपाट खोले जाते हैं। इस दिन यहां भक्तगण दशानन रावण की पूजा और आरती करते हैं, जो इसे एक अनोखी धार्मिक परंपरा का केंद्र बनाता है।

आज भी विजयदशमी के अवसर पर नियमानुसार मंदिर के पट खोले गए, जहां भक्तों की लंबी कतार देखने को मिली और बारी बारी भक्तों ने रावण की पूजा-अर्चना की। मान्यता है कि भगवान शिव के सबसे प्रिय भक्त रावण थे, जिनको कई शक्तियां प्राप्त थी। उनकी पूजा करने से बुद्धि बल की प्राप्ति होती है। इस दिन सभी भक्त तेल का दीपक और तरोई का पुष्प चढ़ाकर पूजा अर्चना करते हैं।

बता दें कि वर्ष 1868 में महाराज गुरु प्रसाद शुक्ल ने इस मंदिर का निर्माण कराया था। वे भगवान शिव के परम भक्त थे और रावण को शक्ति और विद्या का प्रतीक मानते थे। मंदिर में स्थापित रावण की प्रतिमा को शक्ति का प्रहरी माना जाता है और विजयदशमी के दिन विशेष श्रृंगार-पूजन किया जाता है। सुबह से ही मंदिर के कपाट खुल जाते हैं और शाम को आरती के साथ विशेष पूजा संपन्न होती है। सालभर मंदिर के कपाट बंद रहते हैं और सिर्फ दशहरे के दिन ही यहां दर्शन किए जा सकते हैं।

मंदिर के पुजारी पंडित राम बाजपेई ने कहा, “हमसे यह सवाल कई लोग करते हैं कि आखिर आप रावण की पूजा क्यों करते हैं, तो हम उनकी पूजा उनकी विद्वता को ध्यान में रखते हुए करते हैं, क्योंकि इनसे बड़ा विद्वान पंडित कोई नहीं हुआ है, इसलिए हम लोग उनकी विद्वता की पूजा करते हैं। यही नहीं, हम लोग इनका जन्मदिन भी मनाते हैं, क्योंकि अश्वनी माह के शुक्ल पक्ष में इनका जन्म भी हुआ था, इसलिए हम लोग इनका जन्मदिन भी मनाते हैं और शाम को इनका पुतला दहन भी करते हैं।”

उन्होंने कहा, “हम वो अहंकारी पुतला दहन करते हैं, जिससे लोगों का अहंकार खत्म हो और पूजा हम लोग इनकी विद्वता की करते हैं, इसलिए हम लोग इनको पूजते हैं। यह मंदिर दशहरे के दिन ही खुलता है। यह बहुत साल पुराना मंदिर है। बड़ी संख्या में भक्त यहां आते हैं और अपनी समृद्धि के लिए प्रार्थना करते हैं। ”

मंदिर के दर्शन करने आईं भक्त खुशविंदर कौर ने बताया, “यह दशानन मंदिर है। बताते हैं कि यह साल में एक बार खुलता है। दशहरे वाले दिन खुलता है। हम चार-पांच साल से यहां आ रहे हैं। पहले पता नहीं था, जब से पता चला है, तब से हम हर साल यहां आते हैं। यह महज दशहरे के दिन ही खुलता है।”

भक्त अनिल सोनकर ने बताया, “यह दशानन मंदिर है। यह दशहरे के दिन ही खुलता है और इसके बाद शाम को बंद हो जाता है। बताते हैं कि यह दशहरे के दिन इसका दर्शन करना चाहिए। मैं पिछले सात-आठ साल से इस मंदिर में आता हूं और दर्शन करता हूं। हमारे बच्चे भी आते थे, लेकिन अभी वो बाहर हैं, इसलिए अभी महज हम ही आ रहे हैं।”

–आईएएनएस

एसएचके/एएस

ADVERTISEMENT

कानपुर, 12 अक्टूबर (आईएएनएस)। भारत में दशहरा रावण दहन का प्रतीक है। जहां रावण को बुराई के रूप में देखा जाता है और उसकी पराजय को विजय के रूप में मनाया जाता है। वहीं, उत्तर प्रदेश के कानपुर के शिवाला इलाके में एक ऐसा मंदिर है, जहां रावण की पूजा होती है। यह मंदिर करीब 158 साल पुराना है। दशहरे के दिन विशेष रूप से इसके कपाट खोले जाते हैं। इस दिन यहां भक्तगण दशानन रावण की पूजा और आरती करते हैं, जो इसे एक अनोखी धार्मिक परंपरा का केंद्र बनाता है।

आज भी विजयदशमी के अवसर पर नियमानुसार मंदिर के पट खोले गए, जहां भक्तों की लंबी कतार देखने को मिली और बारी बारी भक्तों ने रावण की पूजा-अर्चना की। मान्यता है कि भगवान शिव के सबसे प्रिय भक्त रावण थे, जिनको कई शक्तियां प्राप्त थी। उनकी पूजा करने से बुद्धि बल की प्राप्ति होती है। इस दिन सभी भक्त तेल का दीपक और तरोई का पुष्प चढ़ाकर पूजा अर्चना करते हैं।

बता दें कि वर्ष 1868 में महाराज गुरु प्रसाद शुक्ल ने इस मंदिर का निर्माण कराया था। वे भगवान शिव के परम भक्त थे और रावण को शक्ति और विद्या का प्रतीक मानते थे। मंदिर में स्थापित रावण की प्रतिमा को शक्ति का प्रहरी माना जाता है और विजयदशमी के दिन विशेष श्रृंगार-पूजन किया जाता है। सुबह से ही मंदिर के कपाट खुल जाते हैं और शाम को आरती के साथ विशेष पूजा संपन्न होती है। सालभर मंदिर के कपाट बंद रहते हैं और सिर्फ दशहरे के दिन ही यहां दर्शन किए जा सकते हैं।

मंदिर के पुजारी पंडित राम बाजपेई ने कहा, “हमसे यह सवाल कई लोग करते हैं कि आखिर आप रावण की पूजा क्यों करते हैं, तो हम उनकी पूजा उनकी विद्वता को ध्यान में रखते हुए करते हैं, क्योंकि इनसे बड़ा विद्वान पंडित कोई नहीं हुआ है, इसलिए हम लोग उनकी विद्वता की पूजा करते हैं। यही नहीं, हम लोग इनका जन्मदिन भी मनाते हैं, क्योंकि अश्वनी माह के शुक्ल पक्ष में इनका जन्म भी हुआ था, इसलिए हम लोग इनका जन्मदिन भी मनाते हैं और शाम को इनका पुतला दहन भी करते हैं।”

उन्होंने कहा, “हम वो अहंकारी पुतला दहन करते हैं, जिससे लोगों का अहंकार खत्म हो और पूजा हम लोग इनकी विद्वता की करते हैं, इसलिए हम लोग इनको पूजते हैं। यह मंदिर दशहरे के दिन ही खुलता है। यह बहुत साल पुराना मंदिर है। बड़ी संख्या में भक्त यहां आते हैं और अपनी समृद्धि के लिए प्रार्थना करते हैं। ”

मंदिर के दर्शन करने आईं भक्त खुशविंदर कौर ने बताया, “यह दशानन मंदिर है। बताते हैं कि यह साल में एक बार खुलता है। दशहरे वाले दिन खुलता है। हम चार-पांच साल से यहां आ रहे हैं। पहले पता नहीं था, जब से पता चला है, तब से हम हर साल यहां आते हैं। यह महज दशहरे के दिन ही खुलता है।”

भक्त अनिल सोनकर ने बताया, “यह दशानन मंदिर है। यह दशहरे के दिन ही खुलता है और इसके बाद शाम को बंद हो जाता है। बताते हैं कि यह दशहरे के दिन इसका दर्शन करना चाहिए। मैं पिछले सात-आठ साल से इस मंदिर में आता हूं और दर्शन करता हूं। हमारे बच्चे भी आते थे, लेकिन अभी वो बाहर हैं, इसलिए अभी महज हम ही आ रहे हैं।”

–आईएएनएस

एसएचके/एएस

ADVERTISEMENT

कानपुर, 12 अक्टूबर (आईएएनएस)। भारत में दशहरा रावण दहन का प्रतीक है। जहां रावण को बुराई के रूप में देखा जाता है और उसकी पराजय को विजय के रूप में मनाया जाता है। वहीं, उत्तर प्रदेश के कानपुर के शिवाला इलाके में एक ऐसा मंदिर है, जहां रावण की पूजा होती है। यह मंदिर करीब 158 साल पुराना है। दशहरे के दिन विशेष रूप से इसके कपाट खोले जाते हैं। इस दिन यहां भक्तगण दशानन रावण की पूजा और आरती करते हैं, जो इसे एक अनोखी धार्मिक परंपरा का केंद्र बनाता है।

आज भी विजयदशमी के अवसर पर नियमानुसार मंदिर के पट खोले गए, जहां भक्तों की लंबी कतार देखने को मिली और बारी बारी भक्तों ने रावण की पूजा-अर्चना की। मान्यता है कि भगवान शिव के सबसे प्रिय भक्त रावण थे, जिनको कई शक्तियां प्राप्त थी। उनकी पूजा करने से बुद्धि बल की प्राप्ति होती है। इस दिन सभी भक्त तेल का दीपक और तरोई का पुष्प चढ़ाकर पूजा अर्चना करते हैं।

बता दें कि वर्ष 1868 में महाराज गुरु प्रसाद शुक्ल ने इस मंदिर का निर्माण कराया था। वे भगवान शिव के परम भक्त थे और रावण को शक्ति और विद्या का प्रतीक मानते थे। मंदिर में स्थापित रावण की प्रतिमा को शक्ति का प्रहरी माना जाता है और विजयदशमी के दिन विशेष श्रृंगार-पूजन किया जाता है। सुबह से ही मंदिर के कपाट खुल जाते हैं और शाम को आरती के साथ विशेष पूजा संपन्न होती है। सालभर मंदिर के कपाट बंद रहते हैं और सिर्फ दशहरे के दिन ही यहां दर्शन किए जा सकते हैं।

मंदिर के पुजारी पंडित राम बाजपेई ने कहा, “हमसे यह सवाल कई लोग करते हैं कि आखिर आप रावण की पूजा क्यों करते हैं, तो हम उनकी पूजा उनकी विद्वता को ध्यान में रखते हुए करते हैं, क्योंकि इनसे बड़ा विद्वान पंडित कोई नहीं हुआ है, इसलिए हम लोग उनकी विद्वता की पूजा करते हैं। यही नहीं, हम लोग इनका जन्मदिन भी मनाते हैं, क्योंकि अश्वनी माह के शुक्ल पक्ष में इनका जन्म भी हुआ था, इसलिए हम लोग इनका जन्मदिन भी मनाते हैं और शाम को इनका पुतला दहन भी करते हैं।”

उन्होंने कहा, “हम वो अहंकारी पुतला दहन करते हैं, जिससे लोगों का अहंकार खत्म हो और पूजा हम लोग इनकी विद्वता की करते हैं, इसलिए हम लोग इनको पूजते हैं। यह मंदिर दशहरे के दिन ही खुलता है। यह बहुत साल पुराना मंदिर है। बड़ी संख्या में भक्त यहां आते हैं और अपनी समृद्धि के लिए प्रार्थना करते हैं। ”

मंदिर के दर्शन करने आईं भक्त खुशविंदर कौर ने बताया, “यह दशानन मंदिर है। बताते हैं कि यह साल में एक बार खुलता है। दशहरे वाले दिन खुलता है। हम चार-पांच साल से यहां आ रहे हैं। पहले पता नहीं था, जब से पता चला है, तब से हम हर साल यहां आते हैं। यह महज दशहरे के दिन ही खुलता है।”

भक्त अनिल सोनकर ने बताया, “यह दशानन मंदिर है। यह दशहरे के दिन ही खुलता है और इसके बाद शाम को बंद हो जाता है। बताते हैं कि यह दशहरे के दिन इसका दर्शन करना चाहिए। मैं पिछले सात-आठ साल से इस मंदिर में आता हूं और दर्शन करता हूं। हमारे बच्चे भी आते थे, लेकिन अभी वो बाहर हैं, इसलिए अभी महज हम ही आ रहे हैं।”

–आईएएनएस

एसएचके/एएस

कानपुर, 12 अक्टूबर (आईएएनएस)। भारत में दशहरा रावण दहन का प्रतीक है। जहां रावण को बुराई के रूप में देखा जाता है और उसकी पराजय को विजय के रूप में मनाया जाता है। वहीं, उत्तर प्रदेश के कानपुर के शिवाला इलाके में एक ऐसा मंदिर है, जहां रावण की पूजा होती है। यह मंदिर करीब 158 साल पुराना है। दशहरे के दिन विशेष रूप से इसके कपाट खोले जाते हैं। इस दिन यहां भक्तगण दशानन रावण की पूजा और आरती करते हैं, जो इसे एक अनोखी धार्मिक परंपरा का केंद्र बनाता है।

आज भी विजयदशमी के अवसर पर नियमानुसार मंदिर के पट खोले गए, जहां भक्तों की लंबी कतार देखने को मिली और बारी बारी भक्तों ने रावण की पूजा-अर्चना की। मान्यता है कि भगवान शिव के सबसे प्रिय भक्त रावण थे, जिनको कई शक्तियां प्राप्त थी। उनकी पूजा करने से बुद्धि बल की प्राप्ति होती है। इस दिन सभी भक्त तेल का दीपक और तरोई का पुष्प चढ़ाकर पूजा अर्चना करते हैं।

बता दें कि वर्ष 1868 में महाराज गुरु प्रसाद शुक्ल ने इस मंदिर का निर्माण कराया था। वे भगवान शिव के परम भक्त थे और रावण को शक्ति और विद्या का प्रतीक मानते थे। मंदिर में स्थापित रावण की प्रतिमा को शक्ति का प्रहरी माना जाता है और विजयदशमी के दिन विशेष श्रृंगार-पूजन किया जाता है। सुबह से ही मंदिर के कपाट खुल जाते हैं और शाम को आरती के साथ विशेष पूजा संपन्न होती है। सालभर मंदिर के कपाट बंद रहते हैं और सिर्फ दशहरे के दिन ही यहां दर्शन किए जा सकते हैं।

मंदिर के पुजारी पंडित राम बाजपेई ने कहा, “हमसे यह सवाल कई लोग करते हैं कि आखिर आप रावण की पूजा क्यों करते हैं, तो हम उनकी पूजा उनकी विद्वता को ध्यान में रखते हुए करते हैं, क्योंकि इनसे बड़ा विद्वान पंडित कोई नहीं हुआ है, इसलिए हम लोग उनकी विद्वता की पूजा करते हैं। यही नहीं, हम लोग इनका जन्मदिन भी मनाते हैं, क्योंकि अश्वनी माह के शुक्ल पक्ष में इनका जन्म भी हुआ था, इसलिए हम लोग इनका जन्मदिन भी मनाते हैं और शाम को इनका पुतला दहन भी करते हैं।”

उन्होंने कहा, “हम वो अहंकारी पुतला दहन करते हैं, जिससे लोगों का अहंकार खत्म हो और पूजा हम लोग इनकी विद्वता की करते हैं, इसलिए हम लोग इनको पूजते हैं। यह मंदिर दशहरे के दिन ही खुलता है। यह बहुत साल पुराना मंदिर है। बड़ी संख्या में भक्त यहां आते हैं और अपनी समृद्धि के लिए प्रार्थना करते हैं। ”

मंदिर के दर्शन करने आईं भक्त खुशविंदर कौर ने बताया, “यह दशानन मंदिर है। बताते हैं कि यह साल में एक बार खुलता है। दशहरे वाले दिन खुलता है। हम चार-पांच साल से यहां आ रहे हैं। पहले पता नहीं था, जब से पता चला है, तब से हम हर साल यहां आते हैं। यह महज दशहरे के दिन ही खुलता है।”

भक्त अनिल सोनकर ने बताया, “यह दशानन मंदिर है। यह दशहरे के दिन ही खुलता है और इसके बाद शाम को बंद हो जाता है। बताते हैं कि यह दशहरे के दिन इसका दर्शन करना चाहिए। मैं पिछले सात-आठ साल से इस मंदिर में आता हूं और दर्शन करता हूं। हमारे बच्चे भी आते थे, लेकिन अभी वो बाहर हैं, इसलिए अभी महज हम ही आ रहे हैं।”

–आईएएनएस

एसएचके/एएस

ADVERTISEMENT

कानपुर, 12 अक्टूबर (आईएएनएस)। भारत में दशहरा रावण दहन का प्रतीक है। जहां रावण को बुराई के रूप में देखा जाता है और उसकी पराजय को विजय के रूप में मनाया जाता है। वहीं, उत्तर प्रदेश के कानपुर के शिवाला इलाके में एक ऐसा मंदिर है, जहां रावण की पूजा होती है। यह मंदिर करीब 158 साल पुराना है। दशहरे के दिन विशेष रूप से इसके कपाट खोले जाते हैं। इस दिन यहां भक्तगण दशानन रावण की पूजा और आरती करते हैं, जो इसे एक अनोखी धार्मिक परंपरा का केंद्र बनाता है।

आज भी विजयदशमी के अवसर पर नियमानुसार मंदिर के पट खोले गए, जहां भक्तों की लंबी कतार देखने को मिली और बारी बारी भक्तों ने रावण की पूजा-अर्चना की। मान्यता है कि भगवान शिव के सबसे प्रिय भक्त रावण थे, जिनको कई शक्तियां प्राप्त थी। उनकी पूजा करने से बुद्धि बल की प्राप्ति होती है। इस दिन सभी भक्त तेल का दीपक और तरोई का पुष्प चढ़ाकर पूजा अर्चना करते हैं।

बता दें कि वर्ष 1868 में महाराज गुरु प्रसाद शुक्ल ने इस मंदिर का निर्माण कराया था। वे भगवान शिव के परम भक्त थे और रावण को शक्ति और विद्या का प्रतीक मानते थे। मंदिर में स्थापित रावण की प्रतिमा को शक्ति का प्रहरी माना जाता है और विजयदशमी के दिन विशेष श्रृंगार-पूजन किया जाता है। सुबह से ही मंदिर के कपाट खुल जाते हैं और शाम को आरती के साथ विशेष पूजा संपन्न होती है। सालभर मंदिर के कपाट बंद रहते हैं और सिर्फ दशहरे के दिन ही यहां दर्शन किए जा सकते हैं।

मंदिर के पुजारी पंडित राम बाजपेई ने कहा, “हमसे यह सवाल कई लोग करते हैं कि आखिर आप रावण की पूजा क्यों करते हैं, तो हम उनकी पूजा उनकी विद्वता को ध्यान में रखते हुए करते हैं, क्योंकि इनसे बड़ा विद्वान पंडित कोई नहीं हुआ है, इसलिए हम लोग उनकी विद्वता की पूजा करते हैं। यही नहीं, हम लोग इनका जन्मदिन भी मनाते हैं, क्योंकि अश्वनी माह के शुक्ल पक्ष में इनका जन्म भी हुआ था, इसलिए हम लोग इनका जन्मदिन भी मनाते हैं और शाम को इनका पुतला दहन भी करते हैं।”

उन्होंने कहा, “हम वो अहंकारी पुतला दहन करते हैं, जिससे लोगों का अहंकार खत्म हो और पूजा हम लोग इनकी विद्वता की करते हैं, इसलिए हम लोग इनको पूजते हैं। यह मंदिर दशहरे के दिन ही खुलता है। यह बहुत साल पुराना मंदिर है। बड़ी संख्या में भक्त यहां आते हैं और अपनी समृद्धि के लिए प्रार्थना करते हैं। ”

मंदिर के दर्शन करने आईं भक्त खुशविंदर कौर ने बताया, “यह दशानन मंदिर है। बताते हैं कि यह साल में एक बार खुलता है। दशहरे वाले दिन खुलता है। हम चार-पांच साल से यहां आ रहे हैं। पहले पता नहीं था, जब से पता चला है, तब से हम हर साल यहां आते हैं। यह महज दशहरे के दिन ही खुलता है।”

भक्त अनिल सोनकर ने बताया, “यह दशानन मंदिर है। यह दशहरे के दिन ही खुलता है और इसके बाद शाम को बंद हो जाता है। बताते हैं कि यह दशहरे के दिन इसका दर्शन करना चाहिए। मैं पिछले सात-आठ साल से इस मंदिर में आता हूं और दर्शन करता हूं। हमारे बच्चे भी आते थे, लेकिन अभी वो बाहर हैं, इसलिए अभी महज हम ही आ रहे हैं।”

–आईएएनएस

एसएचके/एएस

ADVERTISEMENT

कानपुर, 12 अक्टूबर (आईएएनएस)। भारत में दशहरा रावण दहन का प्रतीक है। जहां रावण को बुराई के रूप में देखा जाता है और उसकी पराजय को विजय के रूप में मनाया जाता है। वहीं, उत्तर प्रदेश के कानपुर के शिवाला इलाके में एक ऐसा मंदिर है, जहां रावण की पूजा होती है। यह मंदिर करीब 158 साल पुराना है। दशहरे के दिन विशेष रूप से इसके कपाट खोले जाते हैं। इस दिन यहां भक्तगण दशानन रावण की पूजा और आरती करते हैं, जो इसे एक अनोखी धार्मिक परंपरा का केंद्र बनाता है।

आज भी विजयदशमी के अवसर पर नियमानुसार मंदिर के पट खोले गए, जहां भक्तों की लंबी कतार देखने को मिली और बारी बारी भक्तों ने रावण की पूजा-अर्चना की। मान्यता है कि भगवान शिव के सबसे प्रिय भक्त रावण थे, जिनको कई शक्तियां प्राप्त थी। उनकी पूजा करने से बुद्धि बल की प्राप्ति होती है। इस दिन सभी भक्त तेल का दीपक और तरोई का पुष्प चढ़ाकर पूजा अर्चना करते हैं।

बता दें कि वर्ष 1868 में महाराज गुरु प्रसाद शुक्ल ने इस मंदिर का निर्माण कराया था। वे भगवान शिव के परम भक्त थे और रावण को शक्ति और विद्या का प्रतीक मानते थे। मंदिर में स्थापित रावण की प्रतिमा को शक्ति का प्रहरी माना जाता है और विजयदशमी के दिन विशेष श्रृंगार-पूजन किया जाता है। सुबह से ही मंदिर के कपाट खुल जाते हैं और शाम को आरती के साथ विशेष पूजा संपन्न होती है। सालभर मंदिर के कपाट बंद रहते हैं और सिर्फ दशहरे के दिन ही यहां दर्शन किए जा सकते हैं।

मंदिर के पुजारी पंडित राम बाजपेई ने कहा, “हमसे यह सवाल कई लोग करते हैं कि आखिर आप रावण की पूजा क्यों करते हैं, तो हम उनकी पूजा उनकी विद्वता को ध्यान में रखते हुए करते हैं, क्योंकि इनसे बड़ा विद्वान पंडित कोई नहीं हुआ है, इसलिए हम लोग उनकी विद्वता की पूजा करते हैं। यही नहीं, हम लोग इनका जन्मदिन भी मनाते हैं, क्योंकि अश्वनी माह के शुक्ल पक्ष में इनका जन्म भी हुआ था, इसलिए हम लोग इनका जन्मदिन भी मनाते हैं और शाम को इनका पुतला दहन भी करते हैं।”

उन्होंने कहा, “हम वो अहंकारी पुतला दहन करते हैं, जिससे लोगों का अहंकार खत्म हो और पूजा हम लोग इनकी विद्वता की करते हैं, इसलिए हम लोग इनको पूजते हैं। यह मंदिर दशहरे के दिन ही खुलता है। यह बहुत साल पुराना मंदिर है। बड़ी संख्या में भक्त यहां आते हैं और अपनी समृद्धि के लिए प्रार्थना करते हैं। ”

मंदिर के दर्शन करने आईं भक्त खुशविंदर कौर ने बताया, “यह दशानन मंदिर है। बताते हैं कि यह साल में एक बार खुलता है। दशहरे वाले दिन खुलता है। हम चार-पांच साल से यहां आ रहे हैं। पहले पता नहीं था, जब से पता चला है, तब से हम हर साल यहां आते हैं। यह महज दशहरे के दिन ही खुलता है।”

भक्त अनिल सोनकर ने बताया, “यह दशानन मंदिर है। यह दशहरे के दिन ही खुलता है और इसके बाद शाम को बंद हो जाता है। बताते हैं कि यह दशहरे के दिन इसका दर्शन करना चाहिए। मैं पिछले सात-आठ साल से इस मंदिर में आता हूं और दर्शन करता हूं। हमारे बच्चे भी आते थे, लेकिन अभी वो बाहर हैं, इसलिए अभी महज हम ही आ रहे हैं।”

–आईएएनएस

एसएचके/एएस

ADVERTISEMENT

कानपुर, 12 अक्टूबर (आईएएनएस)। भारत में दशहरा रावण दहन का प्रतीक है। जहां रावण को बुराई के रूप में देखा जाता है और उसकी पराजय को विजय के रूप में मनाया जाता है। वहीं, उत्तर प्रदेश के कानपुर के शिवाला इलाके में एक ऐसा मंदिर है, जहां रावण की पूजा होती है। यह मंदिर करीब 158 साल पुराना है। दशहरे के दिन विशेष रूप से इसके कपाट खोले जाते हैं। इस दिन यहां भक्तगण दशानन रावण की पूजा और आरती करते हैं, जो इसे एक अनोखी धार्मिक परंपरा का केंद्र बनाता है।

आज भी विजयदशमी के अवसर पर नियमानुसार मंदिर के पट खोले गए, जहां भक्तों की लंबी कतार देखने को मिली और बारी बारी भक्तों ने रावण की पूजा-अर्चना की। मान्यता है कि भगवान शिव के सबसे प्रिय भक्त रावण थे, जिनको कई शक्तियां प्राप्त थी। उनकी पूजा करने से बुद्धि बल की प्राप्ति होती है। इस दिन सभी भक्त तेल का दीपक और तरोई का पुष्प चढ़ाकर पूजा अर्चना करते हैं।

बता दें कि वर्ष 1868 में महाराज गुरु प्रसाद शुक्ल ने इस मंदिर का निर्माण कराया था। वे भगवान शिव के परम भक्त थे और रावण को शक्ति और विद्या का प्रतीक मानते थे। मंदिर में स्थापित रावण की प्रतिमा को शक्ति का प्रहरी माना जाता है और विजयदशमी के दिन विशेष श्रृंगार-पूजन किया जाता है। सुबह से ही मंदिर के कपाट खुल जाते हैं और शाम को आरती के साथ विशेष पूजा संपन्न होती है। सालभर मंदिर के कपाट बंद रहते हैं और सिर्फ दशहरे के दिन ही यहां दर्शन किए जा सकते हैं।

मंदिर के पुजारी पंडित राम बाजपेई ने कहा, “हमसे यह सवाल कई लोग करते हैं कि आखिर आप रावण की पूजा क्यों करते हैं, तो हम उनकी पूजा उनकी विद्वता को ध्यान में रखते हुए करते हैं, क्योंकि इनसे बड़ा विद्वान पंडित कोई नहीं हुआ है, इसलिए हम लोग उनकी विद्वता की पूजा करते हैं। यही नहीं, हम लोग इनका जन्मदिन भी मनाते हैं, क्योंकि अश्वनी माह के शुक्ल पक्ष में इनका जन्म भी हुआ था, इसलिए हम लोग इनका जन्मदिन भी मनाते हैं और शाम को इनका पुतला दहन भी करते हैं।”

उन्होंने कहा, “हम वो अहंकारी पुतला दहन करते हैं, जिससे लोगों का अहंकार खत्म हो और पूजा हम लोग इनकी विद्वता की करते हैं, इसलिए हम लोग इनको पूजते हैं। यह मंदिर दशहरे के दिन ही खुलता है। यह बहुत साल पुराना मंदिर है। बड़ी संख्या में भक्त यहां आते हैं और अपनी समृद्धि के लिए प्रार्थना करते हैं। ”

मंदिर के दर्शन करने आईं भक्त खुशविंदर कौर ने बताया, “यह दशानन मंदिर है। बताते हैं कि यह साल में एक बार खुलता है। दशहरे वाले दिन खुलता है। हम चार-पांच साल से यहां आ रहे हैं। पहले पता नहीं था, जब से पता चला है, तब से हम हर साल यहां आते हैं। यह महज दशहरे के दिन ही खुलता है।”

भक्त अनिल सोनकर ने बताया, “यह दशानन मंदिर है। यह दशहरे के दिन ही खुलता है और इसके बाद शाम को बंद हो जाता है। बताते हैं कि यह दशहरे के दिन इसका दर्शन करना चाहिए। मैं पिछले सात-आठ साल से इस मंदिर में आता हूं और दर्शन करता हूं। हमारे बच्चे भी आते थे, लेकिन अभी वो बाहर हैं, इसलिए अभी महज हम ही आ रहे हैं।”

–आईएएनएस

एसएचके/एएस

ADVERTISEMENT

कानपुर, 12 अक्टूबर (आईएएनएस)। भारत में दशहरा रावण दहन का प्रतीक है। जहां रावण को बुराई के रूप में देखा जाता है और उसकी पराजय को विजय के रूप में मनाया जाता है। वहीं, उत्तर प्रदेश के कानपुर के शिवाला इलाके में एक ऐसा मंदिर है, जहां रावण की पूजा होती है। यह मंदिर करीब 158 साल पुराना है। दशहरे के दिन विशेष रूप से इसके कपाट खोले जाते हैं। इस दिन यहां भक्तगण दशानन रावण की पूजा और आरती करते हैं, जो इसे एक अनोखी धार्मिक परंपरा का केंद्र बनाता है।

आज भी विजयदशमी के अवसर पर नियमानुसार मंदिर के पट खोले गए, जहां भक्तों की लंबी कतार देखने को मिली और बारी बारी भक्तों ने रावण की पूजा-अर्चना की। मान्यता है कि भगवान शिव के सबसे प्रिय भक्त रावण थे, जिनको कई शक्तियां प्राप्त थी। उनकी पूजा करने से बुद्धि बल की प्राप्ति होती है। इस दिन सभी भक्त तेल का दीपक और तरोई का पुष्प चढ़ाकर पूजा अर्चना करते हैं।

बता दें कि वर्ष 1868 में महाराज गुरु प्रसाद शुक्ल ने इस मंदिर का निर्माण कराया था। वे भगवान शिव के परम भक्त थे और रावण को शक्ति और विद्या का प्रतीक मानते थे। मंदिर में स्थापित रावण की प्रतिमा को शक्ति का प्रहरी माना जाता है और विजयदशमी के दिन विशेष श्रृंगार-पूजन किया जाता है। सुबह से ही मंदिर के कपाट खुल जाते हैं और शाम को आरती के साथ विशेष पूजा संपन्न होती है। सालभर मंदिर के कपाट बंद रहते हैं और सिर्फ दशहरे के दिन ही यहां दर्शन किए जा सकते हैं।

मंदिर के पुजारी पंडित राम बाजपेई ने कहा, “हमसे यह सवाल कई लोग करते हैं कि आखिर आप रावण की पूजा क्यों करते हैं, तो हम उनकी पूजा उनकी विद्वता को ध्यान में रखते हुए करते हैं, क्योंकि इनसे बड़ा विद्वान पंडित कोई नहीं हुआ है, इसलिए हम लोग उनकी विद्वता की पूजा करते हैं। यही नहीं, हम लोग इनका जन्मदिन भी मनाते हैं, क्योंकि अश्वनी माह के शुक्ल पक्ष में इनका जन्म भी हुआ था, इसलिए हम लोग इनका जन्मदिन भी मनाते हैं और शाम को इनका पुतला दहन भी करते हैं।”

उन्होंने कहा, “हम वो अहंकारी पुतला दहन करते हैं, जिससे लोगों का अहंकार खत्म हो और पूजा हम लोग इनकी विद्वता की करते हैं, इसलिए हम लोग इनको पूजते हैं। यह मंदिर दशहरे के दिन ही खुलता है। यह बहुत साल पुराना मंदिर है। बड़ी संख्या में भक्त यहां आते हैं और अपनी समृद्धि के लिए प्रार्थना करते हैं। ”

मंदिर के दर्शन करने आईं भक्त खुशविंदर कौर ने बताया, “यह दशानन मंदिर है। बताते हैं कि यह साल में एक बार खुलता है। दशहरे वाले दिन खुलता है। हम चार-पांच साल से यहां आ रहे हैं। पहले पता नहीं था, जब से पता चला है, तब से हम हर साल यहां आते हैं। यह महज दशहरे के दिन ही खुलता है।”

भक्त अनिल सोनकर ने बताया, “यह दशानन मंदिर है। यह दशहरे के दिन ही खुलता है और इसके बाद शाम को बंद हो जाता है। बताते हैं कि यह दशहरे के दिन इसका दर्शन करना चाहिए। मैं पिछले सात-आठ साल से इस मंदिर में आता हूं और दर्शन करता हूं। हमारे बच्चे भी आते थे, लेकिन अभी वो बाहर हैं, इसलिए अभी महज हम ही आ रहे हैं।”

–आईएएनएस

एसएचके/एएस

ADVERTISEMENT

कानपुर, 12 अक्टूबर (आईएएनएस)। भारत में दशहरा रावण दहन का प्रतीक है। जहां रावण को बुराई के रूप में देखा जाता है और उसकी पराजय को विजय के रूप में मनाया जाता है। वहीं, उत्तर प्रदेश के कानपुर के शिवाला इलाके में एक ऐसा मंदिर है, जहां रावण की पूजा होती है। यह मंदिर करीब 158 साल पुराना है। दशहरे के दिन विशेष रूप से इसके कपाट खोले जाते हैं। इस दिन यहां भक्तगण दशानन रावण की पूजा और आरती करते हैं, जो इसे एक अनोखी धार्मिक परंपरा का केंद्र बनाता है।

आज भी विजयदशमी के अवसर पर नियमानुसार मंदिर के पट खोले गए, जहां भक्तों की लंबी कतार देखने को मिली और बारी बारी भक्तों ने रावण की पूजा-अर्चना की। मान्यता है कि भगवान शिव के सबसे प्रिय भक्त रावण थे, जिनको कई शक्तियां प्राप्त थी। उनकी पूजा करने से बुद्धि बल की प्राप्ति होती है। इस दिन सभी भक्त तेल का दीपक और तरोई का पुष्प चढ़ाकर पूजा अर्चना करते हैं।

बता दें कि वर्ष 1868 में महाराज गुरु प्रसाद शुक्ल ने इस मंदिर का निर्माण कराया था। वे भगवान शिव के परम भक्त थे और रावण को शक्ति और विद्या का प्रतीक मानते थे। मंदिर में स्थापित रावण की प्रतिमा को शक्ति का प्रहरी माना जाता है और विजयदशमी के दिन विशेष श्रृंगार-पूजन किया जाता है। सुबह से ही मंदिर के कपाट खुल जाते हैं और शाम को आरती के साथ विशेष पूजा संपन्न होती है। सालभर मंदिर के कपाट बंद रहते हैं और सिर्फ दशहरे के दिन ही यहां दर्शन किए जा सकते हैं।

मंदिर के पुजारी पंडित राम बाजपेई ने कहा, “हमसे यह सवाल कई लोग करते हैं कि आखिर आप रावण की पूजा क्यों करते हैं, तो हम उनकी पूजा उनकी विद्वता को ध्यान में रखते हुए करते हैं, क्योंकि इनसे बड़ा विद्वान पंडित कोई नहीं हुआ है, इसलिए हम लोग उनकी विद्वता की पूजा करते हैं। यही नहीं, हम लोग इनका जन्मदिन भी मनाते हैं, क्योंकि अश्वनी माह के शुक्ल पक्ष में इनका जन्म भी हुआ था, इसलिए हम लोग इनका जन्मदिन भी मनाते हैं और शाम को इनका पुतला दहन भी करते हैं।”

उन्होंने कहा, “हम वो अहंकारी पुतला दहन करते हैं, जिससे लोगों का अहंकार खत्म हो और पूजा हम लोग इनकी विद्वता की करते हैं, इसलिए हम लोग इनको पूजते हैं। यह मंदिर दशहरे के दिन ही खुलता है। यह बहुत साल पुराना मंदिर है। बड़ी संख्या में भक्त यहां आते हैं और अपनी समृद्धि के लिए प्रार्थना करते हैं। ”

मंदिर के दर्शन करने आईं भक्त खुशविंदर कौर ने बताया, “यह दशानन मंदिर है। बताते हैं कि यह साल में एक बार खुलता है। दशहरे वाले दिन खुलता है। हम चार-पांच साल से यहां आ रहे हैं। पहले पता नहीं था, जब से पता चला है, तब से हम हर साल यहां आते हैं। यह महज दशहरे के दिन ही खुलता है।”

भक्त अनिल सोनकर ने बताया, “यह दशानन मंदिर है। यह दशहरे के दिन ही खुलता है और इसके बाद शाम को बंद हो जाता है। बताते हैं कि यह दशहरे के दिन इसका दर्शन करना चाहिए। मैं पिछले सात-आठ साल से इस मंदिर में आता हूं और दर्शन करता हूं। हमारे बच्चे भी आते थे, लेकिन अभी वो बाहर हैं, इसलिए अभी महज हम ही आ रहे हैं।”

–आईएएनएस

एसएचके/एएस

ADVERTISEMENT

कानपुर, 12 अक्टूबर (आईएएनएस)। भारत में दशहरा रावण दहन का प्रतीक है। जहां रावण को बुराई के रूप में देखा जाता है और उसकी पराजय को विजय के रूप में मनाया जाता है। वहीं, उत्तर प्रदेश के कानपुर के शिवाला इलाके में एक ऐसा मंदिर है, जहां रावण की पूजा होती है। यह मंदिर करीब 158 साल पुराना है। दशहरे के दिन विशेष रूप से इसके कपाट खोले जाते हैं। इस दिन यहां भक्तगण दशानन रावण की पूजा और आरती करते हैं, जो इसे एक अनोखी धार्मिक परंपरा का केंद्र बनाता है।

आज भी विजयदशमी के अवसर पर नियमानुसार मंदिर के पट खोले गए, जहां भक्तों की लंबी कतार देखने को मिली और बारी बारी भक्तों ने रावण की पूजा-अर्चना की। मान्यता है कि भगवान शिव के सबसे प्रिय भक्त रावण थे, जिनको कई शक्तियां प्राप्त थी। उनकी पूजा करने से बुद्धि बल की प्राप्ति होती है। इस दिन सभी भक्त तेल का दीपक और तरोई का पुष्प चढ़ाकर पूजा अर्चना करते हैं।

बता दें कि वर्ष 1868 में महाराज गुरु प्रसाद शुक्ल ने इस मंदिर का निर्माण कराया था। वे भगवान शिव के परम भक्त थे और रावण को शक्ति और विद्या का प्रतीक मानते थे। मंदिर में स्थापित रावण की प्रतिमा को शक्ति का प्रहरी माना जाता है और विजयदशमी के दिन विशेष श्रृंगार-पूजन किया जाता है। सुबह से ही मंदिर के कपाट खुल जाते हैं और शाम को आरती के साथ विशेष पूजा संपन्न होती है। सालभर मंदिर के कपाट बंद रहते हैं और सिर्फ दशहरे के दिन ही यहां दर्शन किए जा सकते हैं।

मंदिर के पुजारी पंडित राम बाजपेई ने कहा, “हमसे यह सवाल कई लोग करते हैं कि आखिर आप रावण की पूजा क्यों करते हैं, तो हम उनकी पूजा उनकी विद्वता को ध्यान में रखते हुए करते हैं, क्योंकि इनसे बड़ा विद्वान पंडित कोई नहीं हुआ है, इसलिए हम लोग उनकी विद्वता की पूजा करते हैं। यही नहीं, हम लोग इनका जन्मदिन भी मनाते हैं, क्योंकि अश्वनी माह के शुक्ल पक्ष में इनका जन्म भी हुआ था, इसलिए हम लोग इनका जन्मदिन भी मनाते हैं और शाम को इनका पुतला दहन भी करते हैं।”

उन्होंने कहा, “हम वो अहंकारी पुतला दहन करते हैं, जिससे लोगों का अहंकार खत्म हो और पूजा हम लोग इनकी विद्वता की करते हैं, इसलिए हम लोग इनको पूजते हैं। यह मंदिर दशहरे के दिन ही खुलता है। यह बहुत साल पुराना मंदिर है। बड़ी संख्या में भक्त यहां आते हैं और अपनी समृद्धि के लिए प्रार्थना करते हैं। ”

मंदिर के दर्शन करने आईं भक्त खुशविंदर कौर ने बताया, “यह दशानन मंदिर है। बताते हैं कि यह साल में एक बार खुलता है। दशहरे वाले दिन खुलता है। हम चार-पांच साल से यहां आ रहे हैं। पहले पता नहीं था, जब से पता चला है, तब से हम हर साल यहां आते हैं। यह महज दशहरे के दिन ही खुलता है।”

भक्त अनिल सोनकर ने बताया, “यह दशानन मंदिर है। यह दशहरे के दिन ही खुलता है और इसके बाद शाम को बंद हो जाता है। बताते हैं कि यह दशहरे के दिन इसका दर्शन करना चाहिए। मैं पिछले सात-आठ साल से इस मंदिर में आता हूं और दर्शन करता हूं। हमारे बच्चे भी आते थे, लेकिन अभी वो बाहर हैं, इसलिए अभी महज हम ही आ रहे हैं।”

–आईएएनएस

एसएचके/एएस

ADVERTISEMENT

कानपुर, 12 अक्टूबर (आईएएनएस)। भारत में दशहरा रावण दहन का प्रतीक है। जहां रावण को बुराई के रूप में देखा जाता है और उसकी पराजय को विजय के रूप में मनाया जाता है। वहीं, उत्तर प्रदेश के कानपुर के शिवाला इलाके में एक ऐसा मंदिर है, जहां रावण की पूजा होती है। यह मंदिर करीब 158 साल पुराना है। दशहरे के दिन विशेष रूप से इसके कपाट खोले जाते हैं। इस दिन यहां भक्तगण दशानन रावण की पूजा और आरती करते हैं, जो इसे एक अनोखी धार्मिक परंपरा का केंद्र बनाता है।

आज भी विजयदशमी के अवसर पर नियमानुसार मंदिर के पट खोले गए, जहां भक्तों की लंबी कतार देखने को मिली और बारी बारी भक्तों ने रावण की पूजा-अर्चना की। मान्यता है कि भगवान शिव के सबसे प्रिय भक्त रावण थे, जिनको कई शक्तियां प्राप्त थी। उनकी पूजा करने से बुद्धि बल की प्राप्ति होती है। इस दिन सभी भक्त तेल का दीपक और तरोई का पुष्प चढ़ाकर पूजा अर्चना करते हैं।

बता दें कि वर्ष 1868 में महाराज गुरु प्रसाद शुक्ल ने इस मंदिर का निर्माण कराया था। वे भगवान शिव के परम भक्त थे और रावण को शक्ति और विद्या का प्रतीक मानते थे। मंदिर में स्थापित रावण की प्रतिमा को शक्ति का प्रहरी माना जाता है और विजयदशमी के दिन विशेष श्रृंगार-पूजन किया जाता है। सुबह से ही मंदिर के कपाट खुल जाते हैं और शाम को आरती के साथ विशेष पूजा संपन्न होती है। सालभर मंदिर के कपाट बंद रहते हैं और सिर्फ दशहरे के दिन ही यहां दर्शन किए जा सकते हैं।

मंदिर के पुजारी पंडित राम बाजपेई ने कहा, “हमसे यह सवाल कई लोग करते हैं कि आखिर आप रावण की पूजा क्यों करते हैं, तो हम उनकी पूजा उनकी विद्वता को ध्यान में रखते हुए करते हैं, क्योंकि इनसे बड़ा विद्वान पंडित कोई नहीं हुआ है, इसलिए हम लोग उनकी विद्वता की पूजा करते हैं। यही नहीं, हम लोग इनका जन्मदिन भी मनाते हैं, क्योंकि अश्वनी माह के शुक्ल पक्ष में इनका जन्म भी हुआ था, इसलिए हम लोग इनका जन्मदिन भी मनाते हैं और शाम को इनका पुतला दहन भी करते हैं।”

उन्होंने कहा, “हम वो अहंकारी पुतला दहन करते हैं, जिससे लोगों का अहंकार खत्म हो और पूजा हम लोग इनकी विद्वता की करते हैं, इसलिए हम लोग इनको पूजते हैं। यह मंदिर दशहरे के दिन ही खुलता है। यह बहुत साल पुराना मंदिर है। बड़ी संख्या में भक्त यहां आते हैं और अपनी समृद्धि के लिए प्रार्थना करते हैं। ”

मंदिर के दर्शन करने आईं भक्त खुशविंदर कौर ने बताया, “यह दशानन मंदिर है। बताते हैं कि यह साल में एक बार खुलता है। दशहरे वाले दिन खुलता है। हम चार-पांच साल से यहां आ रहे हैं। पहले पता नहीं था, जब से पता चला है, तब से हम हर साल यहां आते हैं। यह महज दशहरे के दिन ही खुलता है।”

भक्त अनिल सोनकर ने बताया, “यह दशानन मंदिर है। यह दशहरे के दिन ही खुलता है और इसके बाद शाम को बंद हो जाता है। बताते हैं कि यह दशहरे के दिन इसका दर्शन करना चाहिए। मैं पिछले सात-आठ साल से इस मंदिर में आता हूं और दर्शन करता हूं। हमारे बच्चे भी आते थे, लेकिन अभी वो बाहर हैं, इसलिए अभी महज हम ही आ रहे हैं।”

–आईएएनएस

एसएचके/एएस

Related Posts

ताज़ा समाचार

जम्मू-कश्मीर में घुसपैठ नाकाम, सुरक्षा बलों ने सात आतंकियों को किया ढेर

May 9, 2025
ताज़ा समाचार

जैसलमेर में मिली बम जैसी वस्तु, पुलिस ने इलाके को किया सील.

May 9, 2025
ताज़ा समाचार

भारत-पाक तनाव के बीच आईपीएल 2025 अनिश्चितकाल के लिए स्थगित

May 9, 2025
ताज़ा समाचार

राष्ट्रीय शिक्षा नीति को लागू करने वाली जनहित याचिका खारिज, सुप्रीम कोर्ट ने कहा – हम किसी राज्य को आदेश नहीं दे सकते

May 9, 2025
ताज़ा समाचार

अगस्ता वेस्टलैंड घोटाला : दिल्ली हाई कोर्ट ने आरोपी क्रिश्चियन मिशेल की याचिका पर फैसला रखा सुरक्षित

May 9, 2025
ताज़ा समाचार

रक्षा मंत्री ने सेना प्रमुखों के साथ की ‘ऑपरेशन सिंदूर’ व मौजूदा स्थिति की समीक्षा

May 9, 2025
Next Post

डासना मंदिर में 13 अक्टूबर को 36 बिरादरियों की पंचायत बुलाए जाने पर पुलिस ने लगाई धारा 163

Leave a Reply Cancel reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

POPULAR NEWS

बंदा प्रकाश तेलंगाना विधान परिषद के उप सभापति चुने गए

बंदा प्रकाश तेलंगाना विधान परिषद के उप सभापति चुने गए

February 12, 2023
बीएसएफ ने मेघालय में 40 मवेशियों को छुड़ाया, 3 तस्कर गिरफ्तार

बीएसएफ ने मेघालय में 40 मवेशियों को छुड़ाया, 3 तस्कर गिरफ्तार

February 12, 2023
चीनी शताब्दी की दूर-दूर तक संभावना नहीं

चीनी शताब्दी की दूर-दूर तक संभावना नहीं

February 12, 2023

बंगाल के जलपाईगुड़ी में बाढ़ जैसे हालात, शहर में घुसने लगा नदी का पानी

August 26, 2023
राधिका खेड़ा ने छोड़ा कांग्रेस का दामन, प्राथमिक सदस्यता से दिया इस्तीफा

राधिका खेड़ा ने छोड़ा कांग्रेस का दामन, प्राथमिक सदस्यता से दिया इस्तीफा

May 5, 2024

EDITOR'S PICK

नोएडा : रेस्टोरेंट में बिना लाइसेंस छलकाए जा रहे थे जाम, पुलिस ने की कार्रवाई

नोएडा : रेस्टोरेंट में बिना लाइसेंस छलकाए जा रहे थे जाम, पुलिस ने की कार्रवाई

September 2, 2024
15 स्कूली छात्राओं के यौन उत्पीड़न के आरोप में यूपी के शिक्षक को जेल

15 स्कूली छात्राओं के यौन उत्पीड़न के आरोप में यूपी के शिक्षक को जेल

May 15, 2023
हिंदू कार्यकर्ता पठान की स्क्रीनिंग रोकने कर्नाटक के सिनेमाघरों में पहुंचे

हिंदू कार्यकर्ता पठान की स्क्रीनिंग रोकने कर्नाटक के सिनेमाघरों में पहुंचे

January 25, 2023

एनसीडीआरसी ने आईसीआईसीआई बैंक को संपत्ति के मालिकाना हक के दस्तावेज खोने पर 25 लाख रुपये का मुआवजा देने का आदेश दिया

September 5, 2023
ADVERTISEMENT

Contact us

Address

Deshbandhu Complex, Naudra Bridge Jabalpur 482001

Mail

deshbandhump@gmail.com

Mobile

9425156056

Important links

  • राशि-भविष्य
  • वर्गीकृत विज्ञापन
  • लाइफ स्टाइल
  • मनोरंजन
  • ब्लॉग

Important links

  • देशबन्धु जनमत
  • पाठक प्रतिक्रियाएं
  • हमें जानें
  • विज्ञापन दरें
  • ई पेपर

Related Links

  • Mayaram Surjan
  • Swayamsiddha
  • Deshbandhu

Social Links

080649
Total views : 5868174
Powered By WPS Visitor Counter

Published by Abhas Surjan on behalf of Patrakar Prakashan Pvt.Ltd., Deshbandhu Complex, Naudra Bridge, Jabalpur – 482001 |T:+91 761 4006577 |M: +91 9425156056 Disclaimer, Privacy Policy & Other Terms & Conditions The contents of this website is for reading only. Any unauthorised attempt to temper / edit / change the contents of this website comes under cyber crime and is punishable.

Copyright @ 2022 Deshbandhu. All rights are reserved.

  • Disclaimer, Privacy Policy & Other Terms & Conditions
No Result
View All Result
  • राष्ट्रीय
  • अंतरराष्ट्रीय
  • लाइफ स्टाइल
  • अर्थजगत
  • मनोरंजन
  • खेल
  • अभिमत
  • धर्म
  • विचार
  • ई पेपर

Copyright @ 2022 Deshbandhu-MP All rights are reserved.

Welcome Back!

Login to your account below

Forgotten Password? Sign Up

Create New Account!

Fill the forms below to register

All fields are required. Log In

Retrieve your password

Please enter your username or email address to reset your password.

Log In

Notifications