बीजिंग, 10 अप्रैल (आईएएनएस)। न्यू कोरोना वायरस उत्पति की खोज करना कोई सरल सवाल नहीं है। 2021 में विश्व स्वास्थ्य संगठन के एक विशेषज्ञ दल ने वुहान का दौरा किया और इस बात की पुष्टि की कि वुहान महामारी का मूल नहीं था। लेकिन हाल ही में किसी ने बिल जारी कर 90 दिनों के भीतर वायरस उत्पत्ति का पता लगाने की मांग की। जिस का निशाना चीन के खिलाफ लगता है। लेकिन, पहले निष्कर्ष निकालने और फिर प्रमाण खोजने की यह प्रथा वैज्ञानिक सिद्धांतों का उल्लंघन करती है।
कोविड-19 महामारी आखिरकार एक प्राकृतिक आपदा है। वैश्वीकरण की स्थिति में, कोई भी वायरस लोगों और मालों के साथ-साथ शीघ्र ही पूरी दुनिया को कॉवर सकता है। दुनिया भर में महामारी से मौतों की संख्या 6.8 मिलियन जितनी अधिक है, और कुल 680 मिलियन लोग न्यू कोरोना वायरस से संक्रमित हुए हैं। इसलिए, महामारी की उतपत्ति की सावधानीपूर्वक जांच करने और भविष्य में महामारी से निपटने के लिए अनुभव तैयार करने की वैज्ञानिक आवश्यकता है। लेकिन, कुछ शक्तियों ने बिना प्रमाण के इस सवाल को लेकर चीन पर महामारी फैलाने का दोष लगाने का प्रयास किया। यह कोई वैज्ञानिक रवैया नहीं है, बल्कि सियासी हेरफेर है।
यह पहली बार नहीं है कि पहले दोषी ठहराया जाता है, फिर सबूत की खोज की जाती है। याद है कि कुछ साल पहले किसी ने वाशिंग पाउडर दिखाकर इराक पर तथाकथित जैविक और रासायनिक हथियारों के उपयोग का दोष लगाया, और इस देश के खिलाफ युद्ध बोला। लेकिन बाद में यह साबित कर दिया गया कि इराक में ऐसा कोई हथियार नहीं था। हालांकि, शुरूआत में जानबूझकर झूठ बोलने वालों को दूसरे लोगों की मौत और बलिदान के लिए बिल्कुल भी जिम्मेदार नहीं उठानी पड़ी। अगर गलत काम करने की कीमत शून्य है, तो उन्हें अगली बार वही काम करने के लिए लुभाया जाएगा।
अब महामारी की उत्पत्ति की खोज को किसी के द्वारा अपने प्रतिद्वंद्वियों को दबाने की राजनीतिक रणनीति में शामिल कराया गया है। इसके अलावा, कुछ लोग महामारी के प्रकोप के लिए चीन को जिम्मेदार ठहराने की भी कोशिश कर रहे हैं। उदाहरण के लिए, हाल में किसी के संसद सदस्यों ने बिल पेश कर चीन से 4.6 ट्रिलियन मुआवजे का दावा किया। उनका उद्देश्य क्या है यह बिल्कुल साफ है।
महामारी की उत्पत्ति का पता लगाना बहुत आवश्यक है, लेकिन यह एक वैज्ञानिक मुद्दा है और इसे किसी भी राजनीतिक उद्देश्य के साथ नहीं जोड़ा जाना चाहिए। इस सवाल पर सभी देशों और संस्थानों को एक सहकारी, निष्पक्ष और वैज्ञानिक तरीके से प्रासंगिक कार्य को गंभीरता से करना चाहिए। पहले से कोई आरोप स्थापित कर, और फिर तथाकथित सबूतों की तलाश करना सही नहीं है। हमें ऐसी बात के प्रति सतर्क रहना चाहिए कि कुछ ताकत अपनी तकनीकी वर्चस्व का लाभ उठाकर दूसरों को फ्रेम करेगा।
(साभार- चाइना मीडिया ग्रुप, पेइचिंग)
–आईएएनएस
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