वाराणसी, 13 सितंबर (आईएएनएस)। जम्मू-कश्मीर के उपराज्यपाल मनोज सिन्हा ने शनिवार को महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ में आयोजित ‘भारतीय भाषा समागम’ को संबोधित किया। इस अवसर पर उन्होंने अनेक भाषाओं और बोलियों के प्रति आपसी सम्मान और समझ की आवश्यकता का जिक्र किया और कहा कि भाषायी विविधता देश की एकता और समावेशी विकास की आधारशिला है।
उप राज्यपाल ने कहा, “भाषायी सौहार्द्र समाज में तेज सामाजिक-आर्थिक विकास की नींव रखता है, समाजिक बंधनों को मजबूत करता है और सामाजिक समानता को बढ़ावा देता है। भाषायी विविधता हमारे सांस्कृतिक धरोहर को सुरक्षित रखती है और लोगों को राष्ट्रनिर्माण में योगदान देने के लिए सशक्त बनाती है।”
एलजी सिन्हा ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भारत की विकास यात्रा की चर्चा भी की। उन्होंने बताया कि प्रधानमंत्री द्वारा प्रतिपादित ‘पंच प्रण’ देश के भविष्य का स्पष्ट मार्गदर्शन है।
उन्होंने आग्रह किया कि भाषा-विशारदों, शोधकर्ताओं और लेखकों को चाहिए कि वे ऐसे तंत्र विकसित करें जो भारत के प्राचीन ज्ञान को सभी मातृभाषाओं में स्कूल पाठ्यक्रमों और पुस्तकालयों में उपलब्ध कराएं। इससे युवा पीढ़ी को अपने गौरवशाली इतिहास और सांस्कृतिक धरोहर की गहरी समझ मिलेगी।
उप राज्यपाल ने कहा कि जब बच्चे अपनी मातृभाषा में पढ़ाई करते हैं, साथ ही अन्य भाषाएं सीखते भी हैं, तो वे अधिक सशक्त, सक्षम और आत्मविश्वासी बनते हैं। मातृभाषा सृजनात्मकता और नवाचार को बढ़ावा देती है। भाषा की विविधता से कला, प्रौद्योगिकी और अन्य क्षेत्रों में अलग-अलग दृष्टिकोणों का समावेश संभव होता है, जिससे देश की प्रगति और सुदृढ़ होती है।
एलजी सिन्हा ने यह भी उल्लेख किया कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति‑2020 मातृभाषा या क्षेत्रीय भाषा को शिक्षा की प्रारंभिक अवस्था में माध्यम भाषा के रूप में इस्तेमाल करने का समर्थन करती है। इस नीति का उद्देश्य सांस्कृतिक संरक्षण को प्रोत्साहित करना है।
उपराज्यपाल कार्यालय की ओर से सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म ‘एक्स’ पर लिखा गया, “वाराणसी के महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ में आयोजित ‘भारतीय भाषा समागम’ को संबोधित करते हुए अत्यंत प्रसन्नता हुई। राष्ट्रीय एकता और समावेशी विकास को बढ़ावा देने के लिए भाषाई सद्भाव, विविध भाषाओं और बोलियों के प्रति आपसी सम्मान और समझ पर बात की।”
–आईएएनएश
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