नई दिल्ली, 8 दिसंबर (आईएएनएस)। उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने रविवार को कहा कि विकसित भारत अब सपना नहीं अपितु लक्ष्य है। हमें गीता का वो ज्ञान ध्यान रखना पड़ेगा। जो एकाग्रता अर्जुन ने दिखाई, अर्जुन की नजर मछली पर नहीं थी, अपने लक्ष्य पर थी। हमें वही नजर, दृष्टि और दृढ़ता रखनी है, ताकि भारत निश्चित रूप से 2047 या इससे पूर्व विकसित राष्ट्र का दर्जा प्राप्त करे।
‘अंतरराष्ट्रीय गीता महोत्सव- 2024’ में उपराष्ट्रपति ने कहा, “साथी और सारथी की भूमिका कितनी निर्णायक होती है, यह भारत ने पिछले दस वर्षों में देखा है। अकल्पनीय आर्थिक प्रगति, अविश्वसनीय संस्थागत ढांचे का निर्माण और वैश्विक स्तर पर जो सम्मान और दर्जा अकल्पनीय था, वह आज भारत को प्राप्त हो रहा है। भारत की आवाज आज पूरी बुलंदी पर है। हम न केवल एक महाशक्ति हैं, बल्कि हमने एक ऐसा रास्ता भी चुना है, 2047 तक विकसित भारत का रास्ता।”
उपराष्ट्रपति ने गीता के उपदेशों से प्रेरणा लेकर शासन और समाज के लिए पंचामृत मॉडल की आवश्यकता पर ज़ोर दिया। उन्होंने कहा, “गीता में दिखाए गए पांच मौलिक आदर्श, जिन्हें मैं शासन का पंचामृत कह रहा हूं, हर नागरिक अपना सकता है। इसके लिए केवल एक दृढ़ संकल्प की आवश्यकता है। पहला है सार्थक संवाद। श्रीकृष्ण और अर्जुन का संवाद हमें सिखाता है कि मतभेद विवाद नहीं बनना चाहिए। मतभेद होंगे, क्योंकि लोग अलग-अलग तरीके से सोचते हैं। हमारे संविधान सभा ने भी मतभेदों का सामना किया, लेकिन उन्होंने वाद-विवाद और विचार-विमर्श के माध्यम से उन्हें हल किया। दूसरा है व्यक्तिगत शुचिता। जो लोग प्रशासनिक, राजनीतिक या आर्थिक क्षेत्रों में किसी भी जिम्मेदारी वाले पद पर हैं, उनका आचरण आदर्श होना चाहिए। उनका आचरण जनता को प्रेरित करने वाला होना चाहिए। तीसरा है निस्वार्थ यज्ञ भाव। भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं, ‘यज्ञार्थात्कर्मणो’, कार्य को व्यक्तिगत लाभ के लिए नहीं, बल्कि बड़े हित के लिए किया जाना चाहिए।
उन्होंने कहा कि इसी भावना के साथ, मैं सभी से अपील करता हूं 2047 तक विकसित भारत का निर्माण एक महान यज्ञ है। इस यज्ञ में सभी को अपनी शक्ति के अनुसार आहुति देनी चाहिए। चौथा है करुणा। करुणा हमारी 5000 साल पुरानी संस्कृति का निचोड़ है। कोविड संकट के दौरान, भारत ने अपनी करुणामयी संस्कृति का प्रदर्शन करते हुए 100 से अधिक देशों को वैक्सीन उपलब्ध कराई, जब हम खुद भी चुनौती का सामना कर रहे थे। आज भी, चाहे समुद्र में फंसे जहाज को बचाना हो, युद्ध के दौरान छात्रों को निकालना हो या भूकंप और अकाल जैसी प्राकृतिक आपदाओं में मदद करनी हो, भारत हमेशा पहला प्रतिक्रिया देने वाला देश होता है।
उन्होंने कहा, “अंतिम है परस्पर भाव-प्रतियोगिता होनी चाहिए, लेकिन इसका मतलब संघर्ष नहीं है। आज के दिन कोई दुश्मन नहीं है, सिर्फ अलग-अलग विचार हो सकते हैं। यह विविधता हमारे देश के लिए आवश्यक है। सोचिए, हमारे पास कितनी विविधता है और फिर भी यह सब एकता में परिवर्तित हो जाती है। इस विचार को पंचामृत के ढांचे के तहत शासन में शामिल किया जा सकता है। कुछ ताकतें, देश और विदेश में, संगठित रूप से भारत की अर्थव्यवस्था और संस्थानों को कमजोर करने की कोशिश कर रही हैं। उनकी मंशा हमारे संवैधानिक संस्थानों को कमजोर करने और हमारी प्रगति के मार्ग को बाधित करने की है। ऐसी ताकतों को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता।”
–आईएएनएस
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