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Home ताज़ा समाचार

विदेशों में इनोवेटिव रिसर्च शुरू करेंगी भारतीय फार्मा कम्पनियां : रिपोर्ट

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December 24, 2024
in ताज़ा समाचार
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नई दिल्ली, 24 दिसम्बर (आईएएनएस)। एक रिपोर्ट में यह बात सामने आई है कि भारतीय कंपनियां विदेशों, विशेषकर अमेरिका और यूरोप में इनोवेटिव रिसर्च और डेवलपमेंट फर्म खोलेंगी।

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डेटा और एनालिटिक्स कंपनी ग्लोबलडाटा की रिपोर्ट से पता चला है कि भारतीय फार्मा कंपनियों ने इनोवेटिव रिसर्च और डेवलपमेंट पर अपना ध्यान बढ़ा दिया है।

सन फार्मा और डॉ. रेड्डी जैसी प्रमुख भारतीय दवा निर्माता कंपनियां विदेशी देशों में एक समर्पित रिसर्च कंपनी के माध्यम से भारत में अपने इनोवेटिव रिसर्च और डेवलपमेंट को अंजाम देती है।

ग्लोबलडाटा के फार्मा विश्लेषक प्रशांत खादायते ने कहा, “रिसर्च और डेवलपमेंट यूनिट्स को अलग करके और नई रिसर्च और डेवलपमेंट कंपनियां बनाकर, पैरेंट फर्म अपने मुख्य व्यवसाय को रिसर्च प्रोजेक्ट्स की विफलता से जुड़े जोखिमों से बिना मुख्य व्यवसाय के लाभ और हानि को प्रभावित किए बचाती हैं।

उन्होंने कहा कि इस कदम से रिसर्च कंपनियों को निवेशकों से अधिक फंड जुटाने में भी मदद मिलेगी।

दूसरी ओर, कुछ कंपनियों ने अमेरिका और यूरोप जैसे प्रमुख बाजारों में समर्पित रिसर्च कंपनियां स्थापित करना शुरू कर दिया है।

ऐसी भारतीय फार्मा कंपनियों में जाइडस लाइफसाइंसेज, ग्लेनमार्क फार्मा, एलेम्बिक फार्मास्यूटिकल्स और सुवेन लाइफ साइंसेज शामिल है।

ग्लोबलडाटा के फार्मास्युटिकल इंटेलिजेंस सेंटर के अनुसार 20 दिसंबर तक कुल 16 दवाइयां फेस I से फेस III तक पाइपलाइन में हैं, इन कंपनियों का आधार अमेरिका या यूरोप में है। इन कंपनियों की दो दवाइयां फेस III में हैं।

खादायते ने कहा, “अमेरिका या यूरोप में अपनी शोध शाखाएं रखने वाली भारतीय फार्मा कंपनियां निश्चित रूप से उन देशों में स्थानीय प्रतिभाओं से लाभान्वित हो रही हैं। इन कंपनियों की दवाओं से उम्मीद है कि भविष्य में इन कंपनियों को इससे लाभ मिलेगा।”

उन्होंने कहा कि अन्य भारतीय कंपनियां भी इन कंपनियों के सफलता मॉडल को अपनाएंगी।

उन्होंने कहा कि इससे न केवल भारतीय कंपनियों को नए अनुसंधान और विकास के मोर्चे पर खुद को स्थापित करने में मदद मिलेगी, बल्कि नई दवाओं के क्षेत्र में वैश्विक स्तर पर उनकी वृद्धि को भी बढ़ावा मिलेगा।

–आईएएनएस

एमकेएस/एएस

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नई दिल्ली, 24 दिसम्बर (आईएएनएस)। एक रिपोर्ट में यह बात सामने आई है कि भारतीय कंपनियां विदेशों, विशेषकर अमेरिका और यूरोप में इनोवेटिव रिसर्च और डेवलपमेंट फर्म खोलेंगी।

डेटा और एनालिटिक्स कंपनी ग्लोबलडाटा की रिपोर्ट से पता चला है कि भारतीय फार्मा कंपनियों ने इनोवेटिव रिसर्च और डेवलपमेंट पर अपना ध्यान बढ़ा दिया है।

सन फार्मा और डॉ. रेड्डी जैसी प्रमुख भारतीय दवा निर्माता कंपनियां विदेशी देशों में एक समर्पित रिसर्च कंपनी के माध्यम से भारत में अपने इनोवेटिव रिसर्च और डेवलपमेंट को अंजाम देती है।

ग्लोबलडाटा के फार्मा विश्लेषक प्रशांत खादायते ने कहा, “रिसर्च और डेवलपमेंट यूनिट्स को अलग करके और नई रिसर्च और डेवलपमेंट कंपनियां बनाकर, पैरेंट फर्म अपने मुख्य व्यवसाय को रिसर्च प्रोजेक्ट्स की विफलता से जुड़े जोखिमों से बिना मुख्य व्यवसाय के लाभ और हानि को प्रभावित किए बचाती हैं।

उन्होंने कहा कि इस कदम से रिसर्च कंपनियों को निवेशकों से अधिक फंड जुटाने में भी मदद मिलेगी।

दूसरी ओर, कुछ कंपनियों ने अमेरिका और यूरोप जैसे प्रमुख बाजारों में समर्पित रिसर्च कंपनियां स्थापित करना शुरू कर दिया है।

ऐसी भारतीय फार्मा कंपनियों में जाइडस लाइफसाइंसेज, ग्लेनमार्क फार्मा, एलेम्बिक फार्मास्यूटिकल्स और सुवेन लाइफ साइंसेज शामिल है।

ग्लोबलडाटा के फार्मास्युटिकल इंटेलिजेंस सेंटर के अनुसार 20 दिसंबर तक कुल 16 दवाइयां फेस I से फेस III तक पाइपलाइन में हैं, इन कंपनियों का आधार अमेरिका या यूरोप में है। इन कंपनियों की दो दवाइयां फेस III में हैं।

खादायते ने कहा, “अमेरिका या यूरोप में अपनी शोध शाखाएं रखने वाली भारतीय फार्मा कंपनियां निश्चित रूप से उन देशों में स्थानीय प्रतिभाओं से लाभान्वित हो रही हैं। इन कंपनियों की दवाओं से उम्मीद है कि भविष्य में इन कंपनियों को इससे लाभ मिलेगा।”

उन्होंने कहा कि अन्य भारतीय कंपनियां भी इन कंपनियों के सफलता मॉडल को अपनाएंगी।

उन्होंने कहा कि इससे न केवल भारतीय कंपनियों को नए अनुसंधान और विकास के मोर्चे पर खुद को स्थापित करने में मदद मिलेगी, बल्कि नई दवाओं के क्षेत्र में वैश्विक स्तर पर उनकी वृद्धि को भी बढ़ावा मिलेगा।

–आईएएनएस

एमकेएस/एएस

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नई दिल्ली, 24 दिसम्बर (आईएएनएस)। एक रिपोर्ट में यह बात सामने आई है कि भारतीय कंपनियां विदेशों, विशेषकर अमेरिका और यूरोप में इनोवेटिव रिसर्च और डेवलपमेंट फर्म खोलेंगी।

डेटा और एनालिटिक्स कंपनी ग्लोबलडाटा की रिपोर्ट से पता चला है कि भारतीय फार्मा कंपनियों ने इनोवेटिव रिसर्च और डेवलपमेंट पर अपना ध्यान बढ़ा दिया है।

सन फार्मा और डॉ. रेड्डी जैसी प्रमुख भारतीय दवा निर्माता कंपनियां विदेशी देशों में एक समर्पित रिसर्च कंपनी के माध्यम से भारत में अपने इनोवेटिव रिसर्च और डेवलपमेंट को अंजाम देती है।

ग्लोबलडाटा के फार्मा विश्लेषक प्रशांत खादायते ने कहा, “रिसर्च और डेवलपमेंट यूनिट्स को अलग करके और नई रिसर्च और डेवलपमेंट कंपनियां बनाकर, पैरेंट फर्म अपने मुख्य व्यवसाय को रिसर्च प्रोजेक्ट्स की विफलता से जुड़े जोखिमों से बिना मुख्य व्यवसाय के लाभ और हानि को प्रभावित किए बचाती हैं।

उन्होंने कहा कि इस कदम से रिसर्च कंपनियों को निवेशकों से अधिक फंड जुटाने में भी मदद मिलेगी।

दूसरी ओर, कुछ कंपनियों ने अमेरिका और यूरोप जैसे प्रमुख बाजारों में समर्पित रिसर्च कंपनियां स्थापित करना शुरू कर दिया है।

ऐसी भारतीय फार्मा कंपनियों में जाइडस लाइफसाइंसेज, ग्लेनमार्क फार्मा, एलेम्बिक फार्मास्यूटिकल्स और सुवेन लाइफ साइंसेज शामिल है।

ग्लोबलडाटा के फार्मास्युटिकल इंटेलिजेंस सेंटर के अनुसार 20 दिसंबर तक कुल 16 दवाइयां फेस I से फेस III तक पाइपलाइन में हैं, इन कंपनियों का आधार अमेरिका या यूरोप में है। इन कंपनियों की दो दवाइयां फेस III में हैं।

खादायते ने कहा, “अमेरिका या यूरोप में अपनी शोध शाखाएं रखने वाली भारतीय फार्मा कंपनियां निश्चित रूप से उन देशों में स्थानीय प्रतिभाओं से लाभान्वित हो रही हैं। इन कंपनियों की दवाओं से उम्मीद है कि भविष्य में इन कंपनियों को इससे लाभ मिलेगा।”

उन्होंने कहा कि अन्य भारतीय कंपनियां भी इन कंपनियों के सफलता मॉडल को अपनाएंगी।

उन्होंने कहा कि इससे न केवल भारतीय कंपनियों को नए अनुसंधान और विकास के मोर्चे पर खुद को स्थापित करने में मदद मिलेगी, बल्कि नई दवाओं के क्षेत्र में वैश्विक स्तर पर उनकी वृद्धि को भी बढ़ावा मिलेगा।

–आईएएनएस

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नई दिल्ली, 24 दिसम्बर (आईएएनएस)। एक रिपोर्ट में यह बात सामने आई है कि भारतीय कंपनियां विदेशों, विशेषकर अमेरिका और यूरोप में इनोवेटिव रिसर्च और डेवलपमेंट फर्म खोलेंगी।

डेटा और एनालिटिक्स कंपनी ग्लोबलडाटा की रिपोर्ट से पता चला है कि भारतीय फार्मा कंपनियों ने इनोवेटिव रिसर्च और डेवलपमेंट पर अपना ध्यान बढ़ा दिया है।

सन फार्मा और डॉ. रेड्डी जैसी प्रमुख भारतीय दवा निर्माता कंपनियां विदेशी देशों में एक समर्पित रिसर्च कंपनी के माध्यम से भारत में अपने इनोवेटिव रिसर्च और डेवलपमेंट को अंजाम देती है।

ग्लोबलडाटा के फार्मा विश्लेषक प्रशांत खादायते ने कहा, “रिसर्च और डेवलपमेंट यूनिट्स को अलग करके और नई रिसर्च और डेवलपमेंट कंपनियां बनाकर, पैरेंट फर्म अपने मुख्य व्यवसाय को रिसर्च प्रोजेक्ट्स की विफलता से जुड़े जोखिमों से बिना मुख्य व्यवसाय के लाभ और हानि को प्रभावित किए बचाती हैं।

उन्होंने कहा कि इस कदम से रिसर्च कंपनियों को निवेशकों से अधिक फंड जुटाने में भी मदद मिलेगी।

दूसरी ओर, कुछ कंपनियों ने अमेरिका और यूरोप जैसे प्रमुख बाजारों में समर्पित रिसर्च कंपनियां स्थापित करना शुरू कर दिया है।

ऐसी भारतीय फार्मा कंपनियों में जाइडस लाइफसाइंसेज, ग्लेनमार्क फार्मा, एलेम्बिक फार्मास्यूटिकल्स और सुवेन लाइफ साइंसेज शामिल है।

ग्लोबलडाटा के फार्मास्युटिकल इंटेलिजेंस सेंटर के अनुसार 20 दिसंबर तक कुल 16 दवाइयां फेस I से फेस III तक पाइपलाइन में हैं, इन कंपनियों का आधार अमेरिका या यूरोप में है। इन कंपनियों की दो दवाइयां फेस III में हैं।

खादायते ने कहा, “अमेरिका या यूरोप में अपनी शोध शाखाएं रखने वाली भारतीय फार्मा कंपनियां निश्चित रूप से उन देशों में स्थानीय प्रतिभाओं से लाभान्वित हो रही हैं। इन कंपनियों की दवाओं से उम्मीद है कि भविष्य में इन कंपनियों को इससे लाभ मिलेगा।”

उन्होंने कहा कि अन्य भारतीय कंपनियां भी इन कंपनियों के सफलता मॉडल को अपनाएंगी।

उन्होंने कहा कि इससे न केवल भारतीय कंपनियों को नए अनुसंधान और विकास के मोर्चे पर खुद को स्थापित करने में मदद मिलेगी, बल्कि नई दवाओं के क्षेत्र में वैश्विक स्तर पर उनकी वृद्धि को भी बढ़ावा मिलेगा।

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नई दिल्ली, 24 दिसम्बर (आईएएनएस)। एक रिपोर्ट में यह बात सामने आई है कि भारतीय कंपनियां विदेशों, विशेषकर अमेरिका और यूरोप में इनोवेटिव रिसर्च और डेवलपमेंट फर्म खोलेंगी।

डेटा और एनालिटिक्स कंपनी ग्लोबलडाटा की रिपोर्ट से पता चला है कि भारतीय फार्मा कंपनियों ने इनोवेटिव रिसर्च और डेवलपमेंट पर अपना ध्यान बढ़ा दिया है।

सन फार्मा और डॉ. रेड्डी जैसी प्रमुख भारतीय दवा निर्माता कंपनियां विदेशी देशों में एक समर्पित रिसर्च कंपनी के माध्यम से भारत में अपने इनोवेटिव रिसर्च और डेवलपमेंट को अंजाम देती है।

ग्लोबलडाटा के फार्मा विश्लेषक प्रशांत खादायते ने कहा, “रिसर्च और डेवलपमेंट यूनिट्स को अलग करके और नई रिसर्च और डेवलपमेंट कंपनियां बनाकर, पैरेंट फर्म अपने मुख्य व्यवसाय को रिसर्च प्रोजेक्ट्स की विफलता से जुड़े जोखिमों से बिना मुख्य व्यवसाय के लाभ और हानि को प्रभावित किए बचाती हैं।

उन्होंने कहा कि इस कदम से रिसर्च कंपनियों को निवेशकों से अधिक फंड जुटाने में भी मदद मिलेगी।

दूसरी ओर, कुछ कंपनियों ने अमेरिका और यूरोप जैसे प्रमुख बाजारों में समर्पित रिसर्च कंपनियां स्थापित करना शुरू कर दिया है।

ऐसी भारतीय फार्मा कंपनियों में जाइडस लाइफसाइंसेज, ग्लेनमार्क फार्मा, एलेम्बिक फार्मास्यूटिकल्स और सुवेन लाइफ साइंसेज शामिल है।

ग्लोबलडाटा के फार्मास्युटिकल इंटेलिजेंस सेंटर के अनुसार 20 दिसंबर तक कुल 16 दवाइयां फेस I से फेस III तक पाइपलाइन में हैं, इन कंपनियों का आधार अमेरिका या यूरोप में है। इन कंपनियों की दो दवाइयां फेस III में हैं।

खादायते ने कहा, “अमेरिका या यूरोप में अपनी शोध शाखाएं रखने वाली भारतीय फार्मा कंपनियां निश्चित रूप से उन देशों में स्थानीय प्रतिभाओं से लाभान्वित हो रही हैं। इन कंपनियों की दवाओं से उम्मीद है कि भविष्य में इन कंपनियों को इससे लाभ मिलेगा।”

उन्होंने कहा कि अन्य भारतीय कंपनियां भी इन कंपनियों के सफलता मॉडल को अपनाएंगी।

उन्होंने कहा कि इससे न केवल भारतीय कंपनियों को नए अनुसंधान और विकास के मोर्चे पर खुद को स्थापित करने में मदद मिलेगी, बल्कि नई दवाओं के क्षेत्र में वैश्विक स्तर पर उनकी वृद्धि को भी बढ़ावा मिलेगा।

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डेटा और एनालिटिक्स कंपनी ग्लोबलडाटा की रिपोर्ट से पता चला है कि भारतीय फार्मा कंपनियों ने इनोवेटिव रिसर्च और डेवलपमेंट पर अपना ध्यान बढ़ा दिया है।

सन फार्मा और डॉ. रेड्डी जैसी प्रमुख भारतीय दवा निर्माता कंपनियां विदेशी देशों में एक समर्पित रिसर्च कंपनी के माध्यम से भारत में अपने इनोवेटिव रिसर्च और डेवलपमेंट को अंजाम देती है।

ग्लोबलडाटा के फार्मा विश्लेषक प्रशांत खादायते ने कहा, “रिसर्च और डेवलपमेंट यूनिट्स को अलग करके और नई रिसर्च और डेवलपमेंट कंपनियां बनाकर, पैरेंट फर्म अपने मुख्य व्यवसाय को रिसर्च प्रोजेक्ट्स की विफलता से जुड़े जोखिमों से बिना मुख्य व्यवसाय के लाभ और हानि को प्रभावित किए बचाती हैं।

उन्होंने कहा कि इस कदम से रिसर्च कंपनियों को निवेशकों से अधिक फंड जुटाने में भी मदद मिलेगी।

दूसरी ओर, कुछ कंपनियों ने अमेरिका और यूरोप जैसे प्रमुख बाजारों में समर्पित रिसर्च कंपनियां स्थापित करना शुरू कर दिया है।

ऐसी भारतीय फार्मा कंपनियों में जाइडस लाइफसाइंसेज, ग्लेनमार्क फार्मा, एलेम्बिक फार्मास्यूटिकल्स और सुवेन लाइफ साइंसेज शामिल है।

ग्लोबलडाटा के फार्मास्युटिकल इंटेलिजेंस सेंटर के अनुसार 20 दिसंबर तक कुल 16 दवाइयां फेस I से फेस III तक पाइपलाइन में हैं, इन कंपनियों का आधार अमेरिका या यूरोप में है। इन कंपनियों की दो दवाइयां फेस III में हैं।

खादायते ने कहा, “अमेरिका या यूरोप में अपनी शोध शाखाएं रखने वाली भारतीय फार्मा कंपनियां निश्चित रूप से उन देशों में स्थानीय प्रतिभाओं से लाभान्वित हो रही हैं। इन कंपनियों की दवाओं से उम्मीद है कि भविष्य में इन कंपनियों को इससे लाभ मिलेगा।”

उन्होंने कहा कि अन्य भारतीय कंपनियां भी इन कंपनियों के सफलता मॉडल को अपनाएंगी।

उन्होंने कहा कि इससे न केवल भारतीय कंपनियों को नए अनुसंधान और विकास के मोर्चे पर खुद को स्थापित करने में मदद मिलेगी, बल्कि नई दवाओं के क्षेत्र में वैश्विक स्तर पर उनकी वृद्धि को भी बढ़ावा मिलेगा।

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डेटा और एनालिटिक्स कंपनी ग्लोबलडाटा की रिपोर्ट से पता चला है कि भारतीय फार्मा कंपनियों ने इनोवेटिव रिसर्च और डेवलपमेंट पर अपना ध्यान बढ़ा दिया है।

सन फार्मा और डॉ. रेड्डी जैसी प्रमुख भारतीय दवा निर्माता कंपनियां विदेशी देशों में एक समर्पित रिसर्च कंपनी के माध्यम से भारत में अपने इनोवेटिव रिसर्च और डेवलपमेंट को अंजाम देती है।

ग्लोबलडाटा के फार्मा विश्लेषक प्रशांत खादायते ने कहा, “रिसर्च और डेवलपमेंट यूनिट्स को अलग करके और नई रिसर्च और डेवलपमेंट कंपनियां बनाकर, पैरेंट फर्म अपने मुख्य व्यवसाय को रिसर्च प्रोजेक्ट्स की विफलता से जुड़े जोखिमों से बिना मुख्य व्यवसाय के लाभ और हानि को प्रभावित किए बचाती हैं।

उन्होंने कहा कि इस कदम से रिसर्च कंपनियों को निवेशकों से अधिक फंड जुटाने में भी मदद मिलेगी।

दूसरी ओर, कुछ कंपनियों ने अमेरिका और यूरोप जैसे प्रमुख बाजारों में समर्पित रिसर्च कंपनियां स्थापित करना शुरू कर दिया है।

ऐसी भारतीय फार्मा कंपनियों में जाइडस लाइफसाइंसेज, ग्लेनमार्क फार्मा, एलेम्बिक फार्मास्यूटिकल्स और सुवेन लाइफ साइंसेज शामिल है।

ग्लोबलडाटा के फार्मास्युटिकल इंटेलिजेंस सेंटर के अनुसार 20 दिसंबर तक कुल 16 दवाइयां फेस I से फेस III तक पाइपलाइन में हैं, इन कंपनियों का आधार अमेरिका या यूरोप में है। इन कंपनियों की दो दवाइयां फेस III में हैं।

खादायते ने कहा, “अमेरिका या यूरोप में अपनी शोध शाखाएं रखने वाली भारतीय फार्मा कंपनियां निश्चित रूप से उन देशों में स्थानीय प्रतिभाओं से लाभान्वित हो रही हैं। इन कंपनियों की दवाओं से उम्मीद है कि भविष्य में इन कंपनियों को इससे लाभ मिलेगा।”

उन्होंने कहा कि अन्य भारतीय कंपनियां भी इन कंपनियों के सफलता मॉडल को अपनाएंगी।

उन्होंने कहा कि इससे न केवल भारतीय कंपनियों को नए अनुसंधान और विकास के मोर्चे पर खुद को स्थापित करने में मदद मिलेगी, बल्कि नई दवाओं के क्षेत्र में वैश्विक स्तर पर उनकी वृद्धि को भी बढ़ावा मिलेगा।

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डेटा और एनालिटिक्स कंपनी ग्लोबलडाटा की रिपोर्ट से पता चला है कि भारतीय फार्मा कंपनियों ने इनोवेटिव रिसर्च और डेवलपमेंट पर अपना ध्यान बढ़ा दिया है।

सन फार्मा और डॉ. रेड्डी जैसी प्रमुख भारतीय दवा निर्माता कंपनियां विदेशी देशों में एक समर्पित रिसर्च कंपनी के माध्यम से भारत में अपने इनोवेटिव रिसर्च और डेवलपमेंट को अंजाम देती है।

ग्लोबलडाटा के फार्मा विश्लेषक प्रशांत खादायते ने कहा, “रिसर्च और डेवलपमेंट यूनिट्स को अलग करके और नई रिसर्च और डेवलपमेंट कंपनियां बनाकर, पैरेंट फर्म अपने मुख्य व्यवसाय को रिसर्च प्रोजेक्ट्स की विफलता से जुड़े जोखिमों से बिना मुख्य व्यवसाय के लाभ और हानि को प्रभावित किए बचाती हैं।

उन्होंने कहा कि इस कदम से रिसर्च कंपनियों को निवेशकों से अधिक फंड जुटाने में भी मदद मिलेगी।

दूसरी ओर, कुछ कंपनियों ने अमेरिका और यूरोप जैसे प्रमुख बाजारों में समर्पित रिसर्च कंपनियां स्थापित करना शुरू कर दिया है।

ऐसी भारतीय फार्मा कंपनियों में जाइडस लाइफसाइंसेज, ग्लेनमार्क फार्मा, एलेम्बिक फार्मास्यूटिकल्स और सुवेन लाइफ साइंसेज शामिल है।

ग्लोबलडाटा के फार्मास्युटिकल इंटेलिजेंस सेंटर के अनुसार 20 दिसंबर तक कुल 16 दवाइयां फेस I से फेस III तक पाइपलाइन में हैं, इन कंपनियों का आधार अमेरिका या यूरोप में है। इन कंपनियों की दो दवाइयां फेस III में हैं।

खादायते ने कहा, “अमेरिका या यूरोप में अपनी शोध शाखाएं रखने वाली भारतीय फार्मा कंपनियां निश्चित रूप से उन देशों में स्थानीय प्रतिभाओं से लाभान्वित हो रही हैं। इन कंपनियों की दवाओं से उम्मीद है कि भविष्य में इन कंपनियों को इससे लाभ मिलेगा।”

उन्होंने कहा कि अन्य भारतीय कंपनियां भी इन कंपनियों के सफलता मॉडल को अपनाएंगी।

उन्होंने कहा कि इससे न केवल भारतीय कंपनियों को नए अनुसंधान और विकास के मोर्चे पर खुद को स्थापित करने में मदद मिलेगी, बल्कि नई दवाओं के क्षेत्र में वैश्विक स्तर पर उनकी वृद्धि को भी बढ़ावा मिलेगा।

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