नई दिल्ली, 23 सितंबर (आईएएनएस)। लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला ने विकसित भारत के सपने को साकार करने में देश की संसद और राज्यों के विधानमंडलों की महत्वपूर्ण भूमिका के बारे में बोलते हुए दावा किया कि विधायी संस्थाओं के सहयोग और समर्थन के बिना आत्मनिर्भर और विकसित भारत का निर्माण संभव नहीं है।
संसद भवन परिसर में आयोजित 10वें राष्ट्रमंडल संसदीय संघ (सीपीए) भारत क्षेत्र सम्मेलन के पूर्ण सत्र की अध्यक्षता करते हुए लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला ने विधानमंडलों की कार्यकुशलता और कार्यप्रणाली में सुधार के लिए प्रौद्योगिकी के उपयोग पर बल दिया।
उन्होंने आग्रह किया कि तकनीक के माध्यम से समाज के अंतिम व्यक्ति के कल्याण के लिए विधायी संस्थाएं विभिन्न मंचों पर चर्चा करें और जनकल्याणकारी योजनाओं को आकार दें। उन्होंने आगे कहा कि वर्तमान परिप्रेक्ष्य में, जब प्रौद्योगिकी और संचार माध्यम लोगों के दैनिक जीवन का हिस्सा बन गए हैं, जनप्रतिनिधियों को लोगों की लोकतंत्र से बढ़ती आकांक्षाओं और अपेक्षाओं को पूरा करने के तौर-तरीके और साधन विधायी संस्थाओं के माध्यम से खोजने चाहिए।
ओम बिरला ने आगे कहा कि भारत का संविधान समावेशी शासन की भावना का सबसे सशक्त उदाहरण है और भारत की संसद द्वारा पारित ऐतिहासिक कानूनों से विकास की गति तेज हुई है और भारत की प्रगति अधिक समावेशी हुई है। उन्होंने लोकतांत्रिक संस्थाओं द्वारा कार्यपालिका की जवाबदेही और पारदर्शिता सुनिश्चित किए जाने और शासन को अधिक उत्तरदायी और कुशल बनाए जाने का आग्रह करते हुए यह भी कहा कि विधायी निकायों को नियमों, सर्वोत्तम प्रथाओं और प्रक्रियाओं को सुव्यवस्थित रूप देकर अपनी भूमिका प्रभावी ढंग से निभानी चाहिए।
उन्होंने कहा कि भारत का भविष्य शासन व्यवस्था को जन-जन की आशाओं एवं आकांक्षाओं के अनुरूप बनाने से ही उज्जवल होगा। तेजी से बदलती दुनिया में भारत समावेशी सहभागिता एवं उत्तरदायी शासन व्यवस्था के माध्यम से एक आदर्श लोकतांत्रिक राष्ट्र के रूप में उभर सकता है। उन्होंने पीठासीन अधिकारियों और विधायकों से आग्रह किया कि वे इस बात पर चिंतन करें कि पिछले 7 दशकों की यात्रा में देश के विधायी निकाय के रूप में वे लोगों की अपेक्षाओं और आकांक्षाओं को पूरा करने में कहां तक सफल रहे हैं।
उन्होंने कहा कि इस आत्ममंथन के बिना समावेशी विकास का सपना साकार नहीं हो सकता। लोकसभा अध्यक्ष ने भारत में आयोजित हुए पी-20 शिखर सम्मेलन का जिक्र करते हुए कहा कि उस सम्मेलन के दौरान पीठासीन अधिकारियों ने राष्ट्रों के सुदृढ़, स्थिर, संतुलित और समावेशी विकास सुनिश्चित करने की आवश्यकता और इस प्रक्रिया में विधानमंडलों की भूमिका पर जोर दिया था। ऐसी वैश्विक व्यवस्था तभी संभव है जब इसके लिए अनुकूल आवश्यक नीतियां बनाई जाएं, जनप्रतिनिधियों द्वारा ऐसी नीतियों पर व्यापक चर्चा की जाए और सुशासन के माध्यम से उनका क्रियान्वयन किया जाए।
राज्यसभा के उपसभापति हरिवंश और भारत के कई राज्यों के विधायी निकायों के पीठासीन अधिकारियों ने इस सत्र में भाग लिया। इस पूर्ण अधिवेशन का विषय, “सतत एवं समावेशी विकास में विधायी निकायों की भूमिका” थी।
इससे पहले लोकसभा अध्यक्ष ने संसद भवन में राष्ट्रमंडल संसदीय संघ (सीपीए) भारत क्षेत्र की कार्यकारी समिति की बैठक की अध्यक्षता भी की। कार्यकारी समिति में बिरला ने लोकतांत्रिक व्यवस्था में जन भागीदारी बढ़ाने पर जोर दिया। उन्होंने सुझाव दिया कि विधायी निकायों को जमीनी स्तर के निकायों, विशेष रूप से पंचायती राज संस्थाओं के साथ मिलकर काम करना चाहिए। ऐसा करके वे लोगों की आवश्यकताओं और आकांक्षाओं को पूरा करने की अपनी जिम्मेदारियों का अधिक प्रभावी ढंग से निर्वहन कर सकेंगे।
–आईएएनएस
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