गुवाहाटी, 3 अप्रैल (आईएएनएस)। कभी टीम राहुल की कोर सदस्य रहीं अखिल भारतीय महिला कांग्रेस की पूर्व अध्यक्ष सुष्मिता देव ने पाला बदल लिया और अगस्त 2021 में रातों-रात तृणमूल कांग्रेस में शामिल हो गईं। तब से वह दो राज्यों – गोवा और त्रिपुरा में तृणमूल के अभियान का नेतृत्व करने के लिए मैदान में हैं। हालांकि, इन दोनों राज्यों में चुनाव परिणाम पार्टी के लिए संतोषजनक नहीं रहे।
आईएएनएस के साथ एक विस्तृत बातचीत में सुष्मिता ने लोकसभा से राहुल गांधी की अयोग्यता, असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा के खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोपों, विपक्षी एकता से लेकर ममता बनर्जी और उनकी पार्टी के लिए आगे की राह तक कई मुद्दों पर बात की।
साक्षात्कार के अंश :
आईएएनएस : आपने त्रिपुरा में बड़े पैमाने पर प्रचार किया था, लेकिन हाल के विधानसभा चुनावों में तृणमूल को कोई फायदा नहीं हुआ। तथ्य तो यह है कि तृणमूल का वोट प्रतिशत नोटा से नीचे चला गया..
सुष्मिता : सबसे पहले तो हम सीमित सीटों पर चुनाव लड़े। हमने केवल 28 सीटों (60 में से) पर उम्मीदवार उतारे। यह कांग्रेस-माकपा गठबंधन और भाजपा के बीच एक द्विध्रुवीय प्रतियोगिता बन गई, जबकि आदिवासी वोट कमोबेश टिपरा मोथा पार्टी की ओर ध्रुवीकृत हो गए। हम दोनों की तरफ नहीं जा सकते थे। ममता बनर्जी का पूरा राजनीतिक सफर वामपंथ विरोधी रहा है। यदि आप अपनी विचारधारा पर टिके रहते हैं, तो कभी-कभी आप चुनाव हार सकते हैं।
आईएएनएस : लेकिन करीब एक साल पहले तृणमूल त्रिपुरा में प्रमुख विपक्षी पार्टी होने का दावा कर रही थी..
सुष्मिता : जब हमने 2021 में काम करना शुरू किया, तो जमीन पर कोई विपक्षी दल नहीं था। माकपा और कांग्रेस दोनों ने कई दशकों तक त्रिपुरा पर शासन किया था, इसलिए उनका एक स्थापित आधार था। नई पार्टी के तौर पर हम राजनीतिक हिंसा के कारण कार्यालय भी नहीं खोल पाए। पिछले साल जुलाई में ही हम अगरतला में एक मुख्य कार्यालय खोल सके। हालांकि चुनाव के समय तक हम राजनीतिक हिंसा के डर से प्रखंडों में कार्यालय नहीं खोल पाए थे। कोई हमें ऑफिस के लिए जगह देने को तैयार नहीं था। किसी ने उन चुनौतियों का सामना नहीं किया, जो हमने त्रिपुरा में किया। हमारे कार्यकर्ताओं को लगातार धमकाया जा रहा था।
आईएएनएस : क्या आपको लगता है कि तृणमूल त्रिपुरा में कोई चेहरा आगे लाने से चूक गई?
सुष्मिता : चुनाव जीतने के लिए आपको एक विश्वसनीय चेहरे और एक नैरेटिव की जरूरत होती है। पार्टी ने फैसला किया कि वह धरती के बेटे या बेटी के साथ चुनाव में उतरेगी। दुर्भाग्य से हमें एक मजबूत और विश्वसनीय स्थानीय चेहरा पेश करने में बहुत परेशानी हुई।
आईएएनएस : नैरेटिव भी नहीं गढ़ पाई तृणमूल?
सुष्मिता : पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी के सुशासन और मजबूत नेतृत्व के लिए त्रिपुरा के लोग बहुत सम्मान करते हैं। लेकिन हमें चीजों को आगे बढ़ाने के लिए एक चेहरा या एक मजबूत स्थानीय नेता की कमी खली। मुझे कहना होगा कि इसके बावजूद हमारे कार्यकर्ताओं और नेताओं ने चुनाव में अपना सर्वश्रेष्ठ प्रयास किया।
आईएएनएस : लेकिन अब त्रिपुरा में आपकी पार्टी के कार्यकर्ता शिकायत कर रहे हैं कि चुनाव के बाद कोई नेता उनकी सुध नहीं ले रहा है..
सुष्मिता : मैं अपने जीवन के 30 वर्षो से एक राष्ट्रीय पार्टी में हूं। मैंने त्रिपुरा में जितना समय बिताया है, वह किसी भी पार्टी के किसी भी प्रतिनिधि से कहीं अधिक है। आप देखिए, कांग्रेस सहित अन्य राष्ट्रीय दलों के पार्टी प्रभारी मुश्किल से ही राज्यों का दौरा करते हैं। दरअसल, इसे एक प्रोपगेंडा के तहत फैलाया गया है। जबसे मैं तृणमूल में शामिल हुई, मैंने पिछले डेढ़ साल का अधिकांश समय त्रिपुरा में बिताया, क्योंकि चुनाव नजदीक थे और हमारे पास लंबे समय तक कोई अध्यक्ष नहीं था। मैंने उन परिस्थितियों में अपनी पूरी कोशिश की।
आईएएनएस : क्या त्रिपुरा में लोकसभा चुनाव लड़ेगी तृणमूल?
सुष्मिता : मेरी राय है कि हमें लड़ना चाहिए, लेकिन निर्णय पार्टी द्वारा लिया जाएगा।
आईएएनएस : असम में तृणमूल की क्या स्थिति है?
सुष्मिता : हम धीरे-धीरे असम में अपने संगठन का विस्तार कर रहे हैं। भाजपा की राजनीति भय से प्रेरित है। अगर आप सोशल मीडिया पर कुछ भी पोस्ट करते हैं, तो आप अगले दिन गिरफ्तार हो जाएंगे। यदि आप सरकार की आलोचना करते हैं, तो वे प्रशासनिक मशीनरी का उपयोग करके आपके खिलाफ कार्रवाई करने का प्रयास करेंगे। इन परिस्थितियों में एक नया संगठन बनाना वास्तव में एक चुनौतीपूर्ण कार्य है। लेकिन मेरा मानना है कि रिपुन बोरा शानदार काम कर रहे हैं और पहले ही सफलता हासिल कर चुके हैं।
आईएएनएस : आप कभी राहुल गांधी के करीबी सहयोगी थे। लोकसभा से उनकी अयोग्यता और भाजपा के रुख पर आपका क्या ख्याल है?
सुष्मिता : यह पहली बार नहीं है कि किसी सांसद को संसद से अयोग्य घोषित किया गया है। लेकिन यहां जो सबसे महत्वपूर्ण है, वह है घटनाओं का मोड़। जिस व्यक्ति ने मानहानि का मुकदमा दायर किया है, वह राजनीति से प्रेरित व्यक्ति है, और उसने खुद कांग्रेस के बयान के अनुसार मामले को एक साल के लिए ठंडे बस्ते में डाल दिया था। अडानी मुद्दे पर संसद में बहस से बचने के उद्देश्य से इस मामले को अचानक स्पष्ट रूप से पुनर्जीवित किया गया। मुझे लगता है कि अडानी मुद्दा देश का सबसे बड़ा घोटाला है।
आईएएनएस : आपकी पार्टी सुप्रीमो ममता बनर्जी राहुल गांधी के साथ खड़ी हैं..
सुष्मिता : मेरी पार्टी के नेता किसी व्यक्ति विशेष के साथ नहीं खड़े हुए, बल्कि विपक्ष का गला घोंटने की पूरी कोशिश के खिलाफ खड़े हुए। ममता बनर्जी 2021 से लगातार कह रही हैं कि कानून की नजर में समानता नहीं है। यदि आप विपक्ष में हैं, तो प्रवर्तन एजेंसियां आपके साथ पक्षपात करेंगी और यदि आप भाजपा में हैं, तो वे हर जांच को रोक देंगी।
एक उदाहरण असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा का है। संसद के सेंट्रल हॉल में मैंने भाजपा द्वारा प्रकाशित एक पुस्तिका पढ़ी, जिसमें सरमा पर लुइस बर्जर घोटाले में शामिल होने का आरोप लगाया गया था। इसके महीनों बाद वह भाजपा में शामिल हो गए और यह मुद्दा खत्म हो गया।
आईएएनएस : क्या आपको लगता है कि वर्तमान स्थिति मजबूत विपक्षी एकता का अवसर प्रदान करती है?
सुष्मिता : अगर विपक्षी पार्टियों में एकता हो तो नरेंद्र मोदी और बीजेपी को हराया जा सकता है। लेकिन यह तभी प्रभावी साबित होगा, जब कांग्रेस लगभग 180 लोकसभा सीटों में से कम से कम 100 सीटें जीत सके, जिसमें वे भाजपा के साथ द्विध्रुवी मुकाबले में हैं। यदि वे उन सीटों पर खराब प्रदर्शन करना जारी रखते हैं, और यदि तृणमूल पश्चिम बंगाल की सभी 42 सीटें नहीं जीतती है, तो भाजपा को बाहर नहीं किया जा सकता। इसलिए, यह महत्वपूर्ण नहीं है कि राहुल गांधी संसद के अंदर हैं या नहीं, एक पार्टी के रूप में कांग्रेस को अपना संगठनात्मक काम करना चाहिए और अंतत: विपक्षी एकता के लिए जीत हासिल करनी चाहिए।
आईएएनएस : क्या कांग्रेस के लिए भाजपा को टक्कर देना संभव है?
सुष्मिता : मैं उस पर टिप्पणी करने के लिए सही व्यक्ति नहीं हूं। लेकिन पार्टी में अपने पहले के अनुभव से मैं कह सकती हूं कि कांग्रेस एक शीर्ष संगठन है और जब तक यह प्रदेश कांग्रेस से बूथ स्तर तक जाती है, तब तक संरचना कमजोर हो जाती है। 2021 में ममता बनर्जी को क्यों नहीं हरा पाई बीजेपी, जानिए इसकी वजह : तृणमूल का जमीनी स्तर पर काफी मजबूत संगठन है। अगर कांग्रेस 2024 में अच्छा प्रदर्शन करना चाहती है, तो उन्हें संगठन पर ध्यान देना चाहिए और यह कोई आसान काम नहीं है।
आईएएनएस : कांग्रेस ने तृणमूल पर मेघालय और गोवा में विपक्ष के वोट बांटने का आरोप लगाया है। क्या आप स्वीकार नहीं करतीं कि इससे अंतत: भाजपा को मदद मिली?
सुष्मिता : विपक्षी एकता एक ऐसी कवायद है, जिसमें कांग्रेस सहित सभी को समान दूरी पर चलना होता है। आज बंगाल में कांग्रेस इतनी सीटों पर चुनाव लड़ रही है, जिससे बीजेपी को ही फायदा होता है। हाल ही में सागरदिघी उपचुनाव में स्थानीय कांग्रेस नेताओं ने भाजपा, कांग्रेस और वाम दलों के बीच विपक्षी एकता की अपील की। अगर इस तरह का वैचारिक भ्रम सबसे पुरानी पार्टी में रहा तो गठबंधन मुश्किल हो जाएगा।
कांग्रेस को सात-आठ राज्यों में अपनी स्थिति पर पुनर्विचार करना चाहिए, जिनमें पश्चिम बंगाल, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, उत्तर प्रदेश आदि शामिल हैं, जहां अन्य दल कांग्रेस से बेहतर प्रदर्शन कर रहे हैं। अगर कांग्रेस ममता बनर्जी से बंगाल के बाहर की सीटों पर चुनाव नहीं लड़ने की उम्मीद करती है, तो यह बात उन राज्यों पर भी लागू होती है, जहां कांग्रेस से ज्यादा मजबूत दावेदार हैं।
–आईएएनएस
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