कोलकाता, 1 सितंबर (आईएएनएस)। पश्चिम बंगाल के गवर्नर सी.वी. आनंद बोस ने विश्वविद्यालयों में अंतरिम कुलपति की भूमिका निभाने का निर्णय लिया है। वह उन सभी विश्वविद्यालयों का काम देखेंगे जहां कुलपतियों की नियुक्ति नहीं हुई है।
राज्यपाल राज्य विश्वविद्यालयों के कुलाधिपति भी हैं। वह विश्वविद्यालयों में अंतरिम कुलपतियों की नियुक्ति कर रहे थे, जहां कार्यात्मक प्रमुखों की कुर्सियां खाली पड़ी थीं।
हालांकि, यह निर्णय राज्य सरकार को पसंद नहीं आया। राज्यपाल ने जिन अंतरिम-कुलपतियों की नियुक्ति की थी, उनमें से कुछ ने इसे स्वीकार करने से मना कर दिया। वहीं कुछ ने कुर्सी से इस्तीफा दे दिया।
राजनीतिक पर्यवेक्षकों का मानना है कि स्थायी नियुक्ति होने तक ऐसे राज्य विश्वविद्यालयों के लिए खुद को अंतरिम कुलपति घोषित करने से गवर्नर हाउस और राज्य सचिवालय के बीच झगड़े का एक और मोर्चा खुल जाएगा।
गवर्नर हाउस की ओर से विश्वविद्यालयों के छात्रों के लिए संदेश के साथ एक घोषणा भी की गई है ताकि वे अपने संबंधित विश्वविद्यालयों में शैक्षणिक और प्रशासनिक प्रबंधन के बारे में अपनी शिकायतों पर राजभवन से सीधे बातचीत कर सकें।
राजभवन के सूत्रों ने बताया कि हाल ही में उनके संज्ञान में आया है कि जिस विश्वविद्यालय में कुछ समय से कुलपतियों की कुर्सी खाली थी, वहां से स्नातक करने वाला एक युवा सरकारी सेवा में शामिल होने में असमर्थ था क्योंकि उसके स्नातक प्रमाणपत्र पर कुलपति के हस्ताक्षर नहीं थे।
हालांकि, राज्यपाल संबंधित विश्वविद्यालय के चांसलर के रूप में उनके स्नातक प्रमाणपत्र पर हस्ताक्षर करके उनके बचाव में आए।
राजभवन के एक सूत्र ने कहा कि लेकिन यह स्थायी समाधान नहीं हो सकता है और इसलिए राज्यपाल ने स्थायी कुलपतियों की नियुक्ति होने तक ऐसे विश्वविद्यालयों के लिए अंतरिम कुलपतियों की भूमिका निभाने का निर्णय लिया है।
राज्य के शिक्षा मंत्री ब्रत्य बसु ने दावा किया है कि राज्यपाल की यह कार्रवाई उनकी संवैधानिक स्वतंत्रता से परे है और राज्य सरकार इस मामले में सुप्रीम कोर्ट के हस्तक्षेप की मांग कर रही है।
–आईएएनएस
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