नई दिल्ली, 8 सितंबर (आईएएनएस)। विद्या एक ऐसी पूंजी है, जो जितनी ज्यादा बांटी जाए, उतनी ही बढ़ती है। कहा भी जाता है, “विद्या ददाति विनयं, विनयाद याति पात्रताम्। पात्रत्वात् धनम् आप्नोति, धनाद धर्मं ततः सुखम्॥”
जिसका अर्थ है कि विद्या से इंसान में विनम्रता आती है, विनम्रता से इंसान में सज्जनता आती है, सजन्नता से धन की और धन से धर्म की प्राप्ति होती है और उसके बाद इंसान को सुख की प्राप्ति होती है।
सनातन धर्म में विद्या अर्थात शिक्षा का खास स्थान रहा है। अब दुनिया ने भी माना है कि किसी देश के लोग कितने खुश हैं, वो वहां की ‘साक्षरता दर’ पर निर्भर करती है। जिस देश की ‘साक्षरता दर’ जितनी अधिक रहेगी, उस देश में सुख-समृद्धि उतनी ज्यादा होगी।
प्रत्येक साल 8 सितंबर को ‘विश्व साक्षरता दिवस’ के रूप में मनाया जाता है। जिसका मुख्य उद्देश्य लोगों में शिक्षा की अलख को जगाना और वैश्विक स्तर पर साक्षरता को बढ़ावा देना है।
पहली बार 1966 में ‘विश्व साक्षरता दिवस’ को मनाने की शुरुआत हुई थी। पहली साक्षरता दिवस की जड़ें, ईरान के तेहरान में 1965 में निरक्षता दिवस को लेकर शिक्षा मंत्रियों के विश्व सम्मेलन से जुड़ी हुई हैं।
वैश्विक स्तर पर साक्षरता को बढ़ावा देने के विचार का जन्म इसी सम्मेलन में हुआ। जिसके परिणामस्वरूप यूनेस्को ने साल 1966 में अपने 14वें आम सम्मेलन में बड़ी घोषणा की और प्रत्येक 8 सितंबर को ‘विश्व साक्षरता दिवस’ के रूप में मनाने का आधिकरिक ऐलान किया। इसके अगले साल 8 सितंबर 1967 को पहली बार ‘विश्व साक्षरता दिवस’ पूरी दुनिया में मनाया गया।
इस बार ‘विश्व साक्षरता दिवस’ की थीम “बहुभाषी शिक्षा को बढ़ावा देना : आपसी समझ और शांति के लिए साक्षरता” है।
आजादी के बाद भारत ने समाज को शिक्षित करने के लिए कई महत्वपूर्ण कदम उठाए हैं। अटल सरकार द्वारा ‘सर्व शिक्षा अभियान’ की शुरुआत करना इस क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण पहल थी।
एनएसओ (राष्ट्रीय स्टेस्टिकल ऑफिस) की ताजा रिपोर्ट के अनुसार भारत में सात साल और उससे अधिक उम्र के लोगों में साक्षरता दर 77.5 फीसदी है, जिसमें पुरुषों का साक्षरता दर 84.7 और महिलाओं का साक्षरता दर 70.3 है, जिसका लैंगिक अंतर 14.4 है।
–आईएएनएस
एससीएच/एबीएम