नई दिल्ली, 28 मई (आईएएनएस)। वित्तीय वर्ष 2023-24 में भारतीय बाजारों में उछाल आया है, जबकि वैश्विक बाजारों का प्रदर्शन कमजोर रहा है।
डीएसपी एसेट मैनेजर्स ने एक रिपोर्ट में कहा है कि जहां वैश्विक आंकड़े निराशाजनक और बाजार की स्थिति डांवाडोल नजर आ रही है, वहीं भारतीय आर्थिक स्थिति यथोचित रूप से स्थिर नजर आ रही है।
बेहतर जीएसटी संग्रह, पेट्रोलियम उत्पादों की मजबूत बिक्री मात्रा, आशाजनक इलेक्ट्रॉनिक टोल संग्रह, और मजबूत व्यावसायिक गतिविधि और विश्वास तथा अन्य सूचकांक उल्लेखनीय हैं।
ब्याज दरों में वृद्धि के कई वर्षों के उच्च स्तर पर होने के बावजूद, अधिकांश देश अभी भी मुद्रास्फीति से जूझ रहे हैं और इसे लक्षित सीमा के भीतर लाने का प्रयास कर रहे हैं। लेकिन भारत के साथ यह समस्या नहीं है। भारत मुद्रास्फीति में नरमी के साथ उनसे अलग है। रिपोर्ट में कहा गया है कि महंगाई दर में गिरावट मुद्रास्फीति मॉडल और आरबीआई द्वारा ब्याज दरें बढ़ाने का क्रम रोके जाने से स्पष्ट है।
प्रभुदास लीलाधर के हेड एडवाइजरी विक्रम कासात ने कहा कि वित्त वर्ष 2023-24 में निफ्टी पांच फीसदी से ज्यादा चढ़ा है। वहीं अगर वैश्विक बाजारों पर नजर डालें तो उनमें गिरावट आई है। भारतीय बाजारों में इस असाधारण वृद्धि को चलाने वाले कई कारक हैं – आरबीआई की ब्याज दर में बढ़ोतरी का अंत, एफआईआई का भारत में वापस आना, विनिर्माण उद्योग में मजबूत वृद्धि, निर्यात नई ऊंचाई को छू रहा है, अमेरिकी मंदी जारी है, कॅमोडिटी की कीमतों में कमी, चीन प्लस एक थीम, यूरोप प्लस वन के साथ मिलकर, मेक इन इंडिया, पीएलआई (उत्पादन आधारित प्रोत्साहन) योजनाएं और प्रोत्साहन। ये सभी कारक एक साथ जुड़ गए हैं और अब भारतीय बाजारों को नई ऊंचाइयों पर ले जा रहे हैं।
यूरोप में गैस आपूर्ति में कमी, ब्लैकआउट और शटडाउन के कारण चीन प्लस वन की तरह आजकल नया यूरोप प्लस वन बन गया है। कसात ने कहा कि इसने भारत को फिर से एक आकर्षक निवेश गंतव्य बना दिया।
सीएनएन ने बताया कि वैश्विक अर्थव्यवस्था को तीन साल में दो बड़े झटके लगे हैं। अमेरिकी ऋण संकट के रूप में तीसरा झटका भी लग सकता है।
कोविड महामारी और 1945 के बाद से यूरोप में पहले बड़े युद्ध के बाद पहली बार अमेरिकी सरकार के अपने बिलों का भुगतान करने में असमर्थ होने का भूत अब वित्तीय बाजारों पर हावी हो रहा है।
अधिकांश के लिए यह अकल्पनीय है, शायद इसलिए कि इसके परिणाम इतने भयानक हैं। और हो सकता है कि ऐसा कभी न हो — शुक्रवार को संकेत थे कि वाशिंगटन में अमेरिकी सरकार द्वारा उधार ली जा सकने वाली राशि की सीमा बढ़ाने के लिए बातचीत जोर पकड़ रही है। लेकिन अगर ऐसा होता है तो उसके सामने 2008 का वैश्विक वित्तीय संकट बेहद मामूली लग सकता है।
डार्टमाउथ विश्वविद्यालय में अर्थशास्त्र के प्रोफेसर और बैंक ऑफ इंग्लैंड में पूर्व ब्याज दर-सेटर, डैनी ब्लैंचफ्लॉवर ने कहा, डिफॉल्ट की स्थिति में नतीजा 10 लाख गुना खराब होगा।
क्या होगा अगर दुनिया का सबसे बड़ा आर्थिक स्तंभ अपने बिलों का भुगतान नहीं कर सकता है? परिणाम भयावह हैं।
यह विश्वास कि अमेरिका की सरकार अपने देनदारों को समय पर भुगतान करेगी, वैश्विक वित्तीय प्रणाली के सुचारू कामकाज को मजबूत करती है। यह डॉलर को दुनिया की आरक्षित मुद्रा बनाता है और यूएस ट्रेजरी सिक्योरिटीज को दुनिया भर में बांड बाजारों का आधार बनाता है।
वाशिंगटन में एक थिंक टैंक, पीटरसन इंस्टीट्यूट फॉर इंटरनेशनल इकोनॉमिक्स के अनिवासी वरिष्ठ फेलो मौरिस ओब्स्टफेल्ड ने कहा, अगर भुगतान करने के लिए ट्रेजरी की प्रतिबद्धता की विश्वसनीयता पर सवाल उठता है, तो यह कई वैश्विक बाजारों पर कहर बरपा सकता है।
सीएनएन ने बताया कि पहले की रिपोटरें के अनुसार, दुनिया भर में चीनी कंपनियों के शेयरों में लगभग 540 अरब डॉलर मूल्य का नुकसान हुआ है।
देश में आर्थिक अनिश्चितता, बढ़ते भू-राजनीतिक तनाव और अंतर्राष्ट्रीय परामर्श फर्मों पर बीजिंग की कार्रवाई के बीच निवेशकों ने चीन में अपना निवेश कम कर दिया।
हांगकांग स्थित कैयुआन कैपिटल के मुख्य निवेश अधिकारी ब्रॉक सिल्वर ने कहा, निवेशक दो प्राथमिक कारणों से (चीन के बारे में) संशय में हैं। पहला, रिकवरी मजबूत नहीं है।
सीएनएन ने बताया कि वैश्विक निवेशकों के लिए एक और चिंता देश की मौलिक निवेश क्षमता है, उन्होंने भू-राजनीतिक और चीनी नीतिगत जोखिमों का जिक्र किया।
न्यूयॉर्क स्थित एसेट मैनेजमेंट फर्म, पाइनब्रिज इन्वेस्टमेंट्स में मल्टी-एसेट के वैश्विक प्रमुख माइकल केली ने कहा, दुर्भाग्य से दो दशकों के पारस्परिक लाभ के बाद चीन और अमेरिका के बीच वैश्विक तनाव बढ़ गया है।
–आईएएनएस
एकेजे