नई दिल्ली, 3 अगस्त (आईएएनएस)। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शनिवार को कहा कि भारत ने एक मजबूत कृषि क्षेत्र के साथ फूड सरप्लस देश के रूप में अपनी पहचान बनाई है। भारत जलवायु परिवर्तन की चुनौती के बावजूद विश्व स्तर पर भूख और कुपोषण की समस्या का समाधान करने में मदद करने के लिए अपने अनुभव को साझा करने के लिए तैयार है।
पीएम मोदी ने कृषि अर्थशास्त्रियों के 32वें अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन (आईसीएई) का उद्घाटन किया। इस दौरान पीएम मोदी ने अपने संबोधन में कहा कि भारत ने देश के किसानों को लाभ पहुंचाने के लिए विभिन्न फसलों के लिए 1,900 से ज्यादा नई जलवायु-अनुकूल किस्मों के बीज विकसित किए हैं, जिनमें चावल की वे किस्में भी शामिल हैं जिन्हें 25 प्रतिशत कम पानी की जरूरत होती है। इस सम्मेलन में 75 देशों के प्रतिनिधियों ने हिस्सा लिया।
पीएम मोदी ने कहा कि भारत ने काले चावल और बाजरा जैसे ‘सुपरफूड्स’ की एक बास्केट (टोकरी) भी विकसित की है। देश इसे दुनिया के साथ साझा करने के लिए तैयार है, विशेष रूप से ग्लोबल साउथ को लाभ पहुंचाने के लिए।
मणिपुर और असम जैसे पूर्वोत्तर राज्यों में उगाए जा रहे काले चावल में औषधीय गुण हैं। इससे किसानों को अच्छा लाभ मिल सकता है। इसी तरह, भारत बाजरे का सबसे बड़ा उत्पादक बनकर उभरा है। इसे सुपर फूड माना जाता है और इसे ‘कम पानी और ज्यादा उत्पादन’ के सिद्धांत पर उगाया जा रहा है, जो ग्लोबल कुपोषण की समस्या को हल करने में मदद करेगा।
भारत ने जी-20 सम्मेलन में भी इस बात पर जोर दिया था कि देश ‘एक पृथ्वी-एक परिवार’ के सिद्धांत में विश्वास करता है और भूख व कुपोषण को दूर करने में योगदान देने का इच्छुक है। भारत के पास कृषि क्षेत्र में विशाल विशेषज्ञता है। खेती की योजना छह मौसमों को ध्यान में रखकर बनाई जाती है और देश में 50 कृषि-जलवायु क्षेत्र हैं।
पीएम मोदी ने आगे कहा, “देश में हर 100 किलोमीटर पर खेती की प्रकृति बदल जाती है। मैदानी, रेगिस्तानी, अर्ध-शुष्क, तटीय और पहाड़ी क्षेत्रों में अलग-अलग कार्य करने पड़ते हैं।”
उन्होंने कहा कि इस विविधता से भरपूर अनुभव से कृषि क्षेत्र में क्रांतिकारी परिवर्तन लाया जा सकता है, विशेष रूप से ग्लोबल साउथ में, ऐसे समय में जब जलवायु परिवर्तन विश्व में भूख और कुपोषण को समाप्त करने के मार्ग में एक बड़ी बाधा के रूप में चुनौती बन गया है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि भारत का कृषि अनुभव इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि दुनिया रासायनिक उर्वरकों के बढ़ते उपयोग के बीच मानव, पशु और पौधों के स्वास्थ्य को सुनिश्चित करने के लिए प्रयास कर रही है।
–आईएएनएस
एफजेड/एसकेपी
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नई दिल्ली, 3 अगस्त (आईएएनएस)। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शनिवार को कहा कि भारत ने एक मजबूत कृषि क्षेत्र के साथ फूड सरप्लस देश के रूप में अपनी पहचान बनाई है। भारत जलवायु परिवर्तन की चुनौती के बावजूद विश्व स्तर पर भूख और कुपोषण की समस्या का समाधान करने में मदद करने के लिए अपने अनुभव को साझा करने के लिए तैयार है।
पीएम मोदी ने कृषि अर्थशास्त्रियों के 32वें अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन (आईसीएई) का उद्घाटन किया। इस दौरान पीएम मोदी ने अपने संबोधन में कहा कि भारत ने देश के किसानों को लाभ पहुंचाने के लिए विभिन्न फसलों के लिए 1,900 से ज्यादा नई जलवायु-अनुकूल किस्मों के बीज विकसित किए हैं, जिनमें चावल की वे किस्में भी शामिल हैं जिन्हें 25 प्रतिशत कम पानी की जरूरत होती है। इस सम्मेलन में 75 देशों के प्रतिनिधियों ने हिस्सा लिया।
पीएम मोदी ने कहा कि भारत ने काले चावल और बाजरा जैसे ‘सुपरफूड्स’ की एक बास्केट (टोकरी) भी विकसित की है। देश इसे दुनिया के साथ साझा करने के लिए तैयार है, विशेष रूप से ग्लोबल साउथ को लाभ पहुंचाने के लिए।
मणिपुर और असम जैसे पूर्वोत्तर राज्यों में उगाए जा रहे काले चावल में औषधीय गुण हैं। इससे किसानों को अच्छा लाभ मिल सकता है। इसी तरह, भारत बाजरे का सबसे बड़ा उत्पादक बनकर उभरा है। इसे सुपर फूड माना जाता है और इसे ‘कम पानी और ज्यादा उत्पादन’ के सिद्धांत पर उगाया जा रहा है, जो ग्लोबल कुपोषण की समस्या को हल करने में मदद करेगा।
भारत ने जी-20 सम्मेलन में भी इस बात पर जोर दिया था कि देश ‘एक पृथ्वी-एक परिवार’ के सिद्धांत में विश्वास करता है और भूख व कुपोषण को दूर करने में योगदान देने का इच्छुक है। भारत के पास कृषि क्षेत्र में विशाल विशेषज्ञता है। खेती की योजना छह मौसमों को ध्यान में रखकर बनाई जाती है और देश में 50 कृषि-जलवायु क्षेत्र हैं।
पीएम मोदी ने आगे कहा, “देश में हर 100 किलोमीटर पर खेती की प्रकृति बदल जाती है। मैदानी, रेगिस्तानी, अर्ध-शुष्क, तटीय और पहाड़ी क्षेत्रों में अलग-अलग कार्य करने पड़ते हैं।”
उन्होंने कहा कि इस विविधता से भरपूर अनुभव से कृषि क्षेत्र में क्रांतिकारी परिवर्तन लाया जा सकता है, विशेष रूप से ग्लोबल साउथ में, ऐसे समय में जब जलवायु परिवर्तन विश्व में भूख और कुपोषण को समाप्त करने के मार्ग में एक बड़ी बाधा के रूप में चुनौती बन गया है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि भारत का कृषि अनुभव इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि दुनिया रासायनिक उर्वरकों के बढ़ते उपयोग के बीच मानव, पशु और पौधों के स्वास्थ्य को सुनिश्चित करने के लिए प्रयास कर रही है।
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नई दिल्ली, 3 अगस्त (आईएएनएस)। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शनिवार को कहा कि भारत ने एक मजबूत कृषि क्षेत्र के साथ फूड सरप्लस देश के रूप में अपनी पहचान बनाई है। भारत जलवायु परिवर्तन की चुनौती के बावजूद विश्व स्तर पर भूख और कुपोषण की समस्या का समाधान करने में मदद करने के लिए अपने अनुभव को साझा करने के लिए तैयार है।
पीएम मोदी ने कृषि अर्थशास्त्रियों के 32वें अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन (आईसीएई) का उद्घाटन किया। इस दौरान पीएम मोदी ने अपने संबोधन में कहा कि भारत ने देश के किसानों को लाभ पहुंचाने के लिए विभिन्न फसलों के लिए 1,900 से ज्यादा नई जलवायु-अनुकूल किस्मों के बीज विकसित किए हैं, जिनमें चावल की वे किस्में भी शामिल हैं जिन्हें 25 प्रतिशत कम पानी की जरूरत होती है। इस सम्मेलन में 75 देशों के प्रतिनिधियों ने हिस्सा लिया।
पीएम मोदी ने कहा कि भारत ने काले चावल और बाजरा जैसे ‘सुपरफूड्स’ की एक बास्केट (टोकरी) भी विकसित की है। देश इसे दुनिया के साथ साझा करने के लिए तैयार है, विशेष रूप से ग्लोबल साउथ को लाभ पहुंचाने के लिए।
मणिपुर और असम जैसे पूर्वोत्तर राज्यों में उगाए जा रहे काले चावल में औषधीय गुण हैं। इससे किसानों को अच्छा लाभ मिल सकता है। इसी तरह, भारत बाजरे का सबसे बड़ा उत्पादक बनकर उभरा है। इसे सुपर फूड माना जाता है और इसे ‘कम पानी और ज्यादा उत्पादन’ के सिद्धांत पर उगाया जा रहा है, जो ग्लोबल कुपोषण की समस्या को हल करने में मदद करेगा।
भारत ने जी-20 सम्मेलन में भी इस बात पर जोर दिया था कि देश ‘एक पृथ्वी-एक परिवार’ के सिद्धांत में विश्वास करता है और भूख व कुपोषण को दूर करने में योगदान देने का इच्छुक है। भारत के पास कृषि क्षेत्र में विशाल विशेषज्ञता है। खेती की योजना छह मौसमों को ध्यान में रखकर बनाई जाती है और देश में 50 कृषि-जलवायु क्षेत्र हैं।
पीएम मोदी ने आगे कहा, “देश में हर 100 किलोमीटर पर खेती की प्रकृति बदल जाती है। मैदानी, रेगिस्तानी, अर्ध-शुष्क, तटीय और पहाड़ी क्षेत्रों में अलग-अलग कार्य करने पड़ते हैं।”
उन्होंने कहा कि इस विविधता से भरपूर अनुभव से कृषि क्षेत्र में क्रांतिकारी परिवर्तन लाया जा सकता है, विशेष रूप से ग्लोबल साउथ में, ऐसे समय में जब जलवायु परिवर्तन विश्व में भूख और कुपोषण को समाप्त करने के मार्ग में एक बड़ी बाधा के रूप में चुनौती बन गया है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि भारत का कृषि अनुभव इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि दुनिया रासायनिक उर्वरकों के बढ़ते उपयोग के बीच मानव, पशु और पौधों के स्वास्थ्य को सुनिश्चित करने के लिए प्रयास कर रही है।
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नई दिल्ली, 3 अगस्त (आईएएनएस)। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शनिवार को कहा कि भारत ने एक मजबूत कृषि क्षेत्र के साथ फूड सरप्लस देश के रूप में अपनी पहचान बनाई है। भारत जलवायु परिवर्तन की चुनौती के बावजूद विश्व स्तर पर भूख और कुपोषण की समस्या का समाधान करने में मदद करने के लिए अपने अनुभव को साझा करने के लिए तैयार है।
पीएम मोदी ने कृषि अर्थशास्त्रियों के 32वें अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन (आईसीएई) का उद्घाटन किया। इस दौरान पीएम मोदी ने अपने संबोधन में कहा कि भारत ने देश के किसानों को लाभ पहुंचाने के लिए विभिन्न फसलों के लिए 1,900 से ज्यादा नई जलवायु-अनुकूल किस्मों के बीज विकसित किए हैं, जिनमें चावल की वे किस्में भी शामिल हैं जिन्हें 25 प्रतिशत कम पानी की जरूरत होती है। इस सम्मेलन में 75 देशों के प्रतिनिधियों ने हिस्सा लिया।
पीएम मोदी ने कहा कि भारत ने काले चावल और बाजरा जैसे ‘सुपरफूड्स’ की एक बास्केट (टोकरी) भी विकसित की है। देश इसे दुनिया के साथ साझा करने के लिए तैयार है, विशेष रूप से ग्लोबल साउथ को लाभ पहुंचाने के लिए।
मणिपुर और असम जैसे पूर्वोत्तर राज्यों में उगाए जा रहे काले चावल में औषधीय गुण हैं। इससे किसानों को अच्छा लाभ मिल सकता है। इसी तरह, भारत बाजरे का सबसे बड़ा उत्पादक बनकर उभरा है। इसे सुपर फूड माना जाता है और इसे ‘कम पानी और ज्यादा उत्पादन’ के सिद्धांत पर उगाया जा रहा है, जो ग्लोबल कुपोषण की समस्या को हल करने में मदद करेगा।
भारत ने जी-20 सम्मेलन में भी इस बात पर जोर दिया था कि देश ‘एक पृथ्वी-एक परिवार’ के सिद्धांत में विश्वास करता है और भूख व कुपोषण को दूर करने में योगदान देने का इच्छुक है। भारत के पास कृषि क्षेत्र में विशाल विशेषज्ञता है। खेती की योजना छह मौसमों को ध्यान में रखकर बनाई जाती है और देश में 50 कृषि-जलवायु क्षेत्र हैं।
पीएम मोदी ने आगे कहा, “देश में हर 100 किलोमीटर पर खेती की प्रकृति बदल जाती है। मैदानी, रेगिस्तानी, अर्ध-शुष्क, तटीय और पहाड़ी क्षेत्रों में अलग-अलग कार्य करने पड़ते हैं।”
उन्होंने कहा कि इस विविधता से भरपूर अनुभव से कृषि क्षेत्र में क्रांतिकारी परिवर्तन लाया जा सकता है, विशेष रूप से ग्लोबल साउथ में, ऐसे समय में जब जलवायु परिवर्तन विश्व में भूख और कुपोषण को समाप्त करने के मार्ग में एक बड़ी बाधा के रूप में चुनौती बन गया है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि भारत का कृषि अनुभव इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि दुनिया रासायनिक उर्वरकों के बढ़ते उपयोग के बीच मानव, पशु और पौधों के स्वास्थ्य को सुनिश्चित करने के लिए प्रयास कर रही है।
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पीएम मोदी ने कृषि अर्थशास्त्रियों के 32वें अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन (आईसीएई) का उद्घाटन किया। इस दौरान पीएम मोदी ने अपने संबोधन में कहा कि भारत ने देश के किसानों को लाभ पहुंचाने के लिए विभिन्न फसलों के लिए 1,900 से ज्यादा नई जलवायु-अनुकूल किस्मों के बीज विकसित किए हैं, जिनमें चावल की वे किस्में भी शामिल हैं जिन्हें 25 प्रतिशत कम पानी की जरूरत होती है। इस सम्मेलन में 75 देशों के प्रतिनिधियों ने हिस्सा लिया।
पीएम मोदी ने कहा कि भारत ने काले चावल और बाजरा जैसे ‘सुपरफूड्स’ की एक बास्केट (टोकरी) भी विकसित की है। देश इसे दुनिया के साथ साझा करने के लिए तैयार है, विशेष रूप से ग्लोबल साउथ को लाभ पहुंचाने के लिए।
मणिपुर और असम जैसे पूर्वोत्तर राज्यों में उगाए जा रहे काले चावल में औषधीय गुण हैं। इससे किसानों को अच्छा लाभ मिल सकता है। इसी तरह, भारत बाजरे का सबसे बड़ा उत्पादक बनकर उभरा है। इसे सुपर फूड माना जाता है और इसे ‘कम पानी और ज्यादा उत्पादन’ के सिद्धांत पर उगाया जा रहा है, जो ग्लोबल कुपोषण की समस्या को हल करने में मदद करेगा।
भारत ने जी-20 सम्मेलन में भी इस बात पर जोर दिया था कि देश ‘एक पृथ्वी-एक परिवार’ के सिद्धांत में विश्वास करता है और भूख व कुपोषण को दूर करने में योगदान देने का इच्छुक है। भारत के पास कृषि क्षेत्र में विशाल विशेषज्ञता है। खेती की योजना छह मौसमों को ध्यान में रखकर बनाई जाती है और देश में 50 कृषि-जलवायु क्षेत्र हैं।
पीएम मोदी ने आगे कहा, “देश में हर 100 किलोमीटर पर खेती की प्रकृति बदल जाती है। मैदानी, रेगिस्तानी, अर्ध-शुष्क, तटीय और पहाड़ी क्षेत्रों में अलग-अलग कार्य करने पड़ते हैं।”
उन्होंने कहा कि इस विविधता से भरपूर अनुभव से कृषि क्षेत्र में क्रांतिकारी परिवर्तन लाया जा सकता है, विशेष रूप से ग्लोबल साउथ में, ऐसे समय में जब जलवायु परिवर्तन विश्व में भूख और कुपोषण को समाप्त करने के मार्ग में एक बड़ी बाधा के रूप में चुनौती बन गया है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि भारत का कृषि अनुभव इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि दुनिया रासायनिक उर्वरकों के बढ़ते उपयोग के बीच मानव, पशु और पौधों के स्वास्थ्य को सुनिश्चित करने के लिए प्रयास कर रही है।
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नई दिल्ली, 3 अगस्त (आईएएनएस)। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शनिवार को कहा कि भारत ने एक मजबूत कृषि क्षेत्र के साथ फूड सरप्लस देश के रूप में अपनी पहचान बनाई है। भारत जलवायु परिवर्तन की चुनौती के बावजूद विश्व स्तर पर भूख और कुपोषण की समस्या का समाधान करने में मदद करने के लिए अपने अनुभव को साझा करने के लिए तैयार है।
पीएम मोदी ने कृषि अर्थशास्त्रियों के 32वें अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन (आईसीएई) का उद्घाटन किया। इस दौरान पीएम मोदी ने अपने संबोधन में कहा कि भारत ने देश के किसानों को लाभ पहुंचाने के लिए विभिन्न फसलों के लिए 1,900 से ज्यादा नई जलवायु-अनुकूल किस्मों के बीज विकसित किए हैं, जिनमें चावल की वे किस्में भी शामिल हैं जिन्हें 25 प्रतिशत कम पानी की जरूरत होती है। इस सम्मेलन में 75 देशों के प्रतिनिधियों ने हिस्सा लिया।
पीएम मोदी ने कहा कि भारत ने काले चावल और बाजरा जैसे ‘सुपरफूड्स’ की एक बास्केट (टोकरी) भी विकसित की है। देश इसे दुनिया के साथ साझा करने के लिए तैयार है, विशेष रूप से ग्लोबल साउथ को लाभ पहुंचाने के लिए।
मणिपुर और असम जैसे पूर्वोत्तर राज्यों में उगाए जा रहे काले चावल में औषधीय गुण हैं। इससे किसानों को अच्छा लाभ मिल सकता है। इसी तरह, भारत बाजरे का सबसे बड़ा उत्पादक बनकर उभरा है। इसे सुपर फूड माना जाता है और इसे ‘कम पानी और ज्यादा उत्पादन’ के सिद्धांत पर उगाया जा रहा है, जो ग्लोबल कुपोषण की समस्या को हल करने में मदद करेगा।
भारत ने जी-20 सम्मेलन में भी इस बात पर जोर दिया था कि देश ‘एक पृथ्वी-एक परिवार’ के सिद्धांत में विश्वास करता है और भूख व कुपोषण को दूर करने में योगदान देने का इच्छुक है। भारत के पास कृषि क्षेत्र में विशाल विशेषज्ञता है। खेती की योजना छह मौसमों को ध्यान में रखकर बनाई जाती है और देश में 50 कृषि-जलवायु क्षेत्र हैं।
पीएम मोदी ने आगे कहा, “देश में हर 100 किलोमीटर पर खेती की प्रकृति बदल जाती है। मैदानी, रेगिस्तानी, अर्ध-शुष्क, तटीय और पहाड़ी क्षेत्रों में अलग-अलग कार्य करने पड़ते हैं।”
उन्होंने कहा कि इस विविधता से भरपूर अनुभव से कृषि क्षेत्र में क्रांतिकारी परिवर्तन लाया जा सकता है, विशेष रूप से ग्लोबल साउथ में, ऐसे समय में जब जलवायु परिवर्तन विश्व में भूख और कुपोषण को समाप्त करने के मार्ग में एक बड़ी बाधा के रूप में चुनौती बन गया है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि भारत का कृषि अनुभव इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि दुनिया रासायनिक उर्वरकों के बढ़ते उपयोग के बीच मानव, पशु और पौधों के स्वास्थ्य को सुनिश्चित करने के लिए प्रयास कर रही है।
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नई दिल्ली, 3 अगस्त (आईएएनएस)। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शनिवार को कहा कि भारत ने एक मजबूत कृषि क्षेत्र के साथ फूड सरप्लस देश के रूप में अपनी पहचान बनाई है। भारत जलवायु परिवर्तन की चुनौती के बावजूद विश्व स्तर पर भूख और कुपोषण की समस्या का समाधान करने में मदद करने के लिए अपने अनुभव को साझा करने के लिए तैयार है।
पीएम मोदी ने कृषि अर्थशास्त्रियों के 32वें अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन (आईसीएई) का उद्घाटन किया। इस दौरान पीएम मोदी ने अपने संबोधन में कहा कि भारत ने देश के किसानों को लाभ पहुंचाने के लिए विभिन्न फसलों के लिए 1,900 से ज्यादा नई जलवायु-अनुकूल किस्मों के बीज विकसित किए हैं, जिनमें चावल की वे किस्में भी शामिल हैं जिन्हें 25 प्रतिशत कम पानी की जरूरत होती है। इस सम्मेलन में 75 देशों के प्रतिनिधियों ने हिस्सा लिया।
पीएम मोदी ने कहा कि भारत ने काले चावल और बाजरा जैसे ‘सुपरफूड्स’ की एक बास्केट (टोकरी) भी विकसित की है। देश इसे दुनिया के साथ साझा करने के लिए तैयार है, विशेष रूप से ग्लोबल साउथ को लाभ पहुंचाने के लिए।
मणिपुर और असम जैसे पूर्वोत्तर राज्यों में उगाए जा रहे काले चावल में औषधीय गुण हैं। इससे किसानों को अच्छा लाभ मिल सकता है। इसी तरह, भारत बाजरे का सबसे बड़ा उत्पादक बनकर उभरा है। इसे सुपर फूड माना जाता है और इसे ‘कम पानी और ज्यादा उत्पादन’ के सिद्धांत पर उगाया जा रहा है, जो ग्लोबल कुपोषण की समस्या को हल करने में मदद करेगा।
भारत ने जी-20 सम्मेलन में भी इस बात पर जोर दिया था कि देश ‘एक पृथ्वी-एक परिवार’ के सिद्धांत में विश्वास करता है और भूख व कुपोषण को दूर करने में योगदान देने का इच्छुक है। भारत के पास कृषि क्षेत्र में विशाल विशेषज्ञता है। खेती की योजना छह मौसमों को ध्यान में रखकर बनाई जाती है और देश में 50 कृषि-जलवायु क्षेत्र हैं।
पीएम मोदी ने आगे कहा, “देश में हर 100 किलोमीटर पर खेती की प्रकृति बदल जाती है। मैदानी, रेगिस्तानी, अर्ध-शुष्क, तटीय और पहाड़ी क्षेत्रों में अलग-अलग कार्य करने पड़ते हैं।”
उन्होंने कहा कि इस विविधता से भरपूर अनुभव से कृषि क्षेत्र में क्रांतिकारी परिवर्तन लाया जा सकता है, विशेष रूप से ग्लोबल साउथ में, ऐसे समय में जब जलवायु परिवर्तन विश्व में भूख और कुपोषण को समाप्त करने के मार्ग में एक बड़ी बाधा के रूप में चुनौती बन गया है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि भारत का कृषि अनुभव इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि दुनिया रासायनिक उर्वरकों के बढ़ते उपयोग के बीच मानव, पशु और पौधों के स्वास्थ्य को सुनिश्चित करने के लिए प्रयास कर रही है।
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पीएम मोदी ने कहा कि भारत ने काले चावल और बाजरा जैसे ‘सुपरफूड्स’ की एक बास्केट (टोकरी) भी विकसित की है। देश इसे दुनिया के साथ साझा करने के लिए तैयार है, विशेष रूप से ग्लोबल साउथ को लाभ पहुंचाने के लिए।
मणिपुर और असम जैसे पूर्वोत्तर राज्यों में उगाए जा रहे काले चावल में औषधीय गुण हैं। इससे किसानों को अच्छा लाभ मिल सकता है। इसी तरह, भारत बाजरे का सबसे बड़ा उत्पादक बनकर उभरा है। इसे सुपर फूड माना जाता है और इसे ‘कम पानी और ज्यादा उत्पादन’ के सिद्धांत पर उगाया जा रहा है, जो ग्लोबल कुपोषण की समस्या को हल करने में मदद करेगा।
भारत ने जी-20 सम्मेलन में भी इस बात पर जोर दिया था कि देश ‘एक पृथ्वी-एक परिवार’ के सिद्धांत में विश्वास करता है और भूख व कुपोषण को दूर करने में योगदान देने का इच्छुक है। भारत के पास कृषि क्षेत्र में विशाल विशेषज्ञता है। खेती की योजना छह मौसमों को ध्यान में रखकर बनाई जाती है और देश में 50 कृषि-जलवायु क्षेत्र हैं।
पीएम मोदी ने आगे कहा, “देश में हर 100 किलोमीटर पर खेती की प्रकृति बदल जाती है। मैदानी, रेगिस्तानी, अर्ध-शुष्क, तटीय और पहाड़ी क्षेत्रों में अलग-अलग कार्य करने पड़ते हैं।”
उन्होंने कहा कि इस विविधता से भरपूर अनुभव से कृषि क्षेत्र में क्रांतिकारी परिवर्तन लाया जा सकता है, विशेष रूप से ग्लोबल साउथ में, ऐसे समय में जब जलवायु परिवर्तन विश्व में भूख और कुपोषण को समाप्त करने के मार्ग में एक बड़ी बाधा के रूप में चुनौती बन गया है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि भारत का कृषि अनुभव इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि दुनिया रासायनिक उर्वरकों के बढ़ते उपयोग के बीच मानव, पशु और पौधों के स्वास्थ्य को सुनिश्चित करने के लिए प्रयास कर रही है।
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पीएम मोदी ने कृषि अर्थशास्त्रियों के 32वें अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन (आईसीएई) का उद्घाटन किया। इस दौरान पीएम मोदी ने अपने संबोधन में कहा कि भारत ने देश के किसानों को लाभ पहुंचाने के लिए विभिन्न फसलों के लिए 1,900 से ज्यादा नई जलवायु-अनुकूल किस्मों के बीज विकसित किए हैं, जिनमें चावल की वे किस्में भी शामिल हैं जिन्हें 25 प्रतिशत कम पानी की जरूरत होती है। इस सम्मेलन में 75 देशों के प्रतिनिधियों ने हिस्सा लिया।
पीएम मोदी ने कहा कि भारत ने काले चावल और बाजरा जैसे ‘सुपरफूड्स’ की एक बास्केट (टोकरी) भी विकसित की है। देश इसे दुनिया के साथ साझा करने के लिए तैयार है, विशेष रूप से ग्लोबल साउथ को लाभ पहुंचाने के लिए।
मणिपुर और असम जैसे पूर्वोत्तर राज्यों में उगाए जा रहे काले चावल में औषधीय गुण हैं। इससे किसानों को अच्छा लाभ मिल सकता है। इसी तरह, भारत बाजरे का सबसे बड़ा उत्पादक बनकर उभरा है। इसे सुपर फूड माना जाता है और इसे ‘कम पानी और ज्यादा उत्पादन’ के सिद्धांत पर उगाया जा रहा है, जो ग्लोबल कुपोषण की समस्या को हल करने में मदद करेगा।
भारत ने जी-20 सम्मेलन में भी इस बात पर जोर दिया था कि देश ‘एक पृथ्वी-एक परिवार’ के सिद्धांत में विश्वास करता है और भूख व कुपोषण को दूर करने में योगदान देने का इच्छुक है। भारत के पास कृषि क्षेत्र में विशाल विशेषज्ञता है। खेती की योजना छह मौसमों को ध्यान में रखकर बनाई जाती है और देश में 50 कृषि-जलवायु क्षेत्र हैं।
पीएम मोदी ने आगे कहा, “देश में हर 100 किलोमीटर पर खेती की प्रकृति बदल जाती है। मैदानी, रेगिस्तानी, अर्ध-शुष्क, तटीय और पहाड़ी क्षेत्रों में अलग-अलग कार्य करने पड़ते हैं।”
उन्होंने कहा कि इस विविधता से भरपूर अनुभव से कृषि क्षेत्र में क्रांतिकारी परिवर्तन लाया जा सकता है, विशेष रूप से ग्लोबल साउथ में, ऐसे समय में जब जलवायु परिवर्तन विश्व में भूख और कुपोषण को समाप्त करने के मार्ग में एक बड़ी बाधा के रूप में चुनौती बन गया है।
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पीएम मोदी ने कृषि अर्थशास्त्रियों के 32वें अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन (आईसीएई) का उद्घाटन किया। इस दौरान पीएम मोदी ने अपने संबोधन में कहा कि भारत ने देश के किसानों को लाभ पहुंचाने के लिए विभिन्न फसलों के लिए 1,900 से ज्यादा नई जलवायु-अनुकूल किस्मों के बीज विकसित किए हैं, जिनमें चावल की वे किस्में भी शामिल हैं जिन्हें 25 प्रतिशत कम पानी की जरूरत होती है। इस सम्मेलन में 75 देशों के प्रतिनिधियों ने हिस्सा लिया।
पीएम मोदी ने कहा कि भारत ने काले चावल और बाजरा जैसे ‘सुपरफूड्स’ की एक बास्केट (टोकरी) भी विकसित की है। देश इसे दुनिया के साथ साझा करने के लिए तैयार है, विशेष रूप से ग्लोबल साउथ को लाभ पहुंचाने के लिए।
मणिपुर और असम जैसे पूर्वोत्तर राज्यों में उगाए जा रहे काले चावल में औषधीय गुण हैं। इससे किसानों को अच्छा लाभ मिल सकता है। इसी तरह, भारत बाजरे का सबसे बड़ा उत्पादक बनकर उभरा है। इसे सुपर फूड माना जाता है और इसे ‘कम पानी और ज्यादा उत्पादन’ के सिद्धांत पर उगाया जा रहा है, जो ग्लोबल कुपोषण की समस्या को हल करने में मदद करेगा।
भारत ने जी-20 सम्मेलन में भी इस बात पर जोर दिया था कि देश ‘एक पृथ्वी-एक परिवार’ के सिद्धांत में विश्वास करता है और भूख व कुपोषण को दूर करने में योगदान देने का इच्छुक है। भारत के पास कृषि क्षेत्र में विशाल विशेषज्ञता है। खेती की योजना छह मौसमों को ध्यान में रखकर बनाई जाती है और देश में 50 कृषि-जलवायु क्षेत्र हैं।
पीएम मोदी ने आगे कहा, “देश में हर 100 किलोमीटर पर खेती की प्रकृति बदल जाती है। मैदानी, रेगिस्तानी, अर्ध-शुष्क, तटीय और पहाड़ी क्षेत्रों में अलग-अलग कार्य करने पड़ते हैं।”
उन्होंने कहा कि इस विविधता से भरपूर अनुभव से कृषि क्षेत्र में क्रांतिकारी परिवर्तन लाया जा सकता है, विशेष रूप से ग्लोबल साउथ में, ऐसे समय में जब जलवायु परिवर्तन विश्व में भूख और कुपोषण को समाप्त करने के मार्ग में एक बड़ी बाधा के रूप में चुनौती बन गया है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि भारत का कृषि अनुभव इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि दुनिया रासायनिक उर्वरकों के बढ़ते उपयोग के बीच मानव, पशु और पौधों के स्वास्थ्य को सुनिश्चित करने के लिए प्रयास कर रही है।
–आईएएनएस
एफजेड/एसकेपी
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नई दिल्ली, 3 अगस्त (आईएएनएस)। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शनिवार को कहा कि भारत ने एक मजबूत कृषि क्षेत्र के साथ फूड सरप्लस देश के रूप में अपनी पहचान बनाई है। भारत जलवायु परिवर्तन की चुनौती के बावजूद विश्व स्तर पर भूख और कुपोषण की समस्या का समाधान करने में मदद करने के लिए अपने अनुभव को साझा करने के लिए तैयार है।
पीएम मोदी ने कृषि अर्थशास्त्रियों के 32वें अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन (आईसीएई) का उद्घाटन किया। इस दौरान पीएम मोदी ने अपने संबोधन में कहा कि भारत ने देश के किसानों को लाभ पहुंचाने के लिए विभिन्न फसलों के लिए 1,900 से ज्यादा नई जलवायु-अनुकूल किस्मों के बीज विकसित किए हैं, जिनमें चावल की वे किस्में भी शामिल हैं जिन्हें 25 प्रतिशत कम पानी की जरूरत होती है। इस सम्मेलन में 75 देशों के प्रतिनिधियों ने हिस्सा लिया।
पीएम मोदी ने कहा कि भारत ने काले चावल और बाजरा जैसे ‘सुपरफूड्स’ की एक बास्केट (टोकरी) भी विकसित की है। देश इसे दुनिया के साथ साझा करने के लिए तैयार है, विशेष रूप से ग्लोबल साउथ को लाभ पहुंचाने के लिए।
मणिपुर और असम जैसे पूर्वोत्तर राज्यों में उगाए जा रहे काले चावल में औषधीय गुण हैं। इससे किसानों को अच्छा लाभ मिल सकता है। इसी तरह, भारत बाजरे का सबसे बड़ा उत्पादक बनकर उभरा है। इसे सुपर फूड माना जाता है और इसे ‘कम पानी और ज्यादा उत्पादन’ के सिद्धांत पर उगाया जा रहा है, जो ग्लोबल कुपोषण की समस्या को हल करने में मदद करेगा।
भारत ने जी-20 सम्मेलन में भी इस बात पर जोर दिया था कि देश ‘एक पृथ्वी-एक परिवार’ के सिद्धांत में विश्वास करता है और भूख व कुपोषण को दूर करने में योगदान देने का इच्छुक है। भारत के पास कृषि क्षेत्र में विशाल विशेषज्ञता है। खेती की योजना छह मौसमों को ध्यान में रखकर बनाई जाती है और देश में 50 कृषि-जलवायु क्षेत्र हैं।
पीएम मोदी ने आगे कहा, “देश में हर 100 किलोमीटर पर खेती की प्रकृति बदल जाती है। मैदानी, रेगिस्तानी, अर्ध-शुष्क, तटीय और पहाड़ी क्षेत्रों में अलग-अलग कार्य करने पड़ते हैं।”
उन्होंने कहा कि इस विविधता से भरपूर अनुभव से कृषि क्षेत्र में क्रांतिकारी परिवर्तन लाया जा सकता है, विशेष रूप से ग्लोबल साउथ में, ऐसे समय में जब जलवायु परिवर्तन विश्व में भूख और कुपोषण को समाप्त करने के मार्ग में एक बड़ी बाधा के रूप में चुनौती बन गया है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि भारत का कृषि अनुभव इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि दुनिया रासायनिक उर्वरकों के बढ़ते उपयोग के बीच मानव, पशु और पौधों के स्वास्थ्य को सुनिश्चित करने के लिए प्रयास कर रही है।
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नई दिल्ली, 3 अगस्त (आईएएनएस)। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शनिवार को कहा कि भारत ने एक मजबूत कृषि क्षेत्र के साथ फूड सरप्लस देश के रूप में अपनी पहचान बनाई है। भारत जलवायु परिवर्तन की चुनौती के बावजूद विश्व स्तर पर भूख और कुपोषण की समस्या का समाधान करने में मदद करने के लिए अपने अनुभव को साझा करने के लिए तैयार है।
पीएम मोदी ने कृषि अर्थशास्त्रियों के 32वें अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन (आईसीएई) का उद्घाटन किया। इस दौरान पीएम मोदी ने अपने संबोधन में कहा कि भारत ने देश के किसानों को लाभ पहुंचाने के लिए विभिन्न फसलों के लिए 1,900 से ज्यादा नई जलवायु-अनुकूल किस्मों के बीज विकसित किए हैं, जिनमें चावल की वे किस्में भी शामिल हैं जिन्हें 25 प्रतिशत कम पानी की जरूरत होती है। इस सम्मेलन में 75 देशों के प्रतिनिधियों ने हिस्सा लिया।
पीएम मोदी ने कहा कि भारत ने काले चावल और बाजरा जैसे ‘सुपरफूड्स’ की एक बास्केट (टोकरी) भी विकसित की है। देश इसे दुनिया के साथ साझा करने के लिए तैयार है, विशेष रूप से ग्लोबल साउथ को लाभ पहुंचाने के लिए।
मणिपुर और असम जैसे पूर्वोत्तर राज्यों में उगाए जा रहे काले चावल में औषधीय गुण हैं। इससे किसानों को अच्छा लाभ मिल सकता है। इसी तरह, भारत बाजरे का सबसे बड़ा उत्पादक बनकर उभरा है। इसे सुपर फूड माना जाता है और इसे ‘कम पानी और ज्यादा उत्पादन’ के सिद्धांत पर उगाया जा रहा है, जो ग्लोबल कुपोषण की समस्या को हल करने में मदद करेगा।
भारत ने जी-20 सम्मेलन में भी इस बात पर जोर दिया था कि देश ‘एक पृथ्वी-एक परिवार’ के सिद्धांत में विश्वास करता है और भूख व कुपोषण को दूर करने में योगदान देने का इच्छुक है। भारत के पास कृषि क्षेत्र में विशाल विशेषज्ञता है। खेती की योजना छह मौसमों को ध्यान में रखकर बनाई जाती है और देश में 50 कृषि-जलवायु क्षेत्र हैं।
पीएम मोदी ने आगे कहा, “देश में हर 100 किलोमीटर पर खेती की प्रकृति बदल जाती है। मैदानी, रेगिस्तानी, अर्ध-शुष्क, तटीय और पहाड़ी क्षेत्रों में अलग-अलग कार्य करने पड़ते हैं।”
उन्होंने कहा कि इस विविधता से भरपूर अनुभव से कृषि क्षेत्र में क्रांतिकारी परिवर्तन लाया जा सकता है, विशेष रूप से ग्लोबल साउथ में, ऐसे समय में जब जलवायु परिवर्तन विश्व में भूख और कुपोषण को समाप्त करने के मार्ग में एक बड़ी बाधा के रूप में चुनौती बन गया है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि भारत का कृषि अनुभव इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि दुनिया रासायनिक उर्वरकों के बढ़ते उपयोग के बीच मानव, पशु और पौधों के स्वास्थ्य को सुनिश्चित करने के लिए प्रयास कर रही है।
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नई दिल्ली, 3 अगस्त (आईएएनएस)। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शनिवार को कहा कि भारत ने एक मजबूत कृषि क्षेत्र के साथ फूड सरप्लस देश के रूप में अपनी पहचान बनाई है। भारत जलवायु परिवर्तन की चुनौती के बावजूद विश्व स्तर पर भूख और कुपोषण की समस्या का समाधान करने में मदद करने के लिए अपने अनुभव को साझा करने के लिए तैयार है।
पीएम मोदी ने कृषि अर्थशास्त्रियों के 32वें अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन (आईसीएई) का उद्घाटन किया। इस दौरान पीएम मोदी ने अपने संबोधन में कहा कि भारत ने देश के किसानों को लाभ पहुंचाने के लिए विभिन्न फसलों के लिए 1,900 से ज्यादा नई जलवायु-अनुकूल किस्मों के बीज विकसित किए हैं, जिनमें चावल की वे किस्में भी शामिल हैं जिन्हें 25 प्रतिशत कम पानी की जरूरत होती है। इस सम्मेलन में 75 देशों के प्रतिनिधियों ने हिस्सा लिया।
पीएम मोदी ने कहा कि भारत ने काले चावल और बाजरा जैसे ‘सुपरफूड्स’ की एक बास्केट (टोकरी) भी विकसित की है। देश इसे दुनिया के साथ साझा करने के लिए तैयार है, विशेष रूप से ग्लोबल साउथ को लाभ पहुंचाने के लिए।
मणिपुर और असम जैसे पूर्वोत्तर राज्यों में उगाए जा रहे काले चावल में औषधीय गुण हैं। इससे किसानों को अच्छा लाभ मिल सकता है। इसी तरह, भारत बाजरे का सबसे बड़ा उत्पादक बनकर उभरा है। इसे सुपर फूड माना जाता है और इसे ‘कम पानी और ज्यादा उत्पादन’ के सिद्धांत पर उगाया जा रहा है, जो ग्लोबल कुपोषण की समस्या को हल करने में मदद करेगा।
भारत ने जी-20 सम्मेलन में भी इस बात पर जोर दिया था कि देश ‘एक पृथ्वी-एक परिवार’ के सिद्धांत में विश्वास करता है और भूख व कुपोषण को दूर करने में योगदान देने का इच्छुक है। भारत के पास कृषि क्षेत्र में विशाल विशेषज्ञता है। खेती की योजना छह मौसमों को ध्यान में रखकर बनाई जाती है और देश में 50 कृषि-जलवायु क्षेत्र हैं।
पीएम मोदी ने आगे कहा, “देश में हर 100 किलोमीटर पर खेती की प्रकृति बदल जाती है। मैदानी, रेगिस्तानी, अर्ध-शुष्क, तटीय और पहाड़ी क्षेत्रों में अलग-अलग कार्य करने पड़ते हैं।”
उन्होंने कहा कि इस विविधता से भरपूर अनुभव से कृषि क्षेत्र में क्रांतिकारी परिवर्तन लाया जा सकता है, विशेष रूप से ग्लोबल साउथ में, ऐसे समय में जब जलवायु परिवर्तन विश्व में भूख और कुपोषण को समाप्त करने के मार्ग में एक बड़ी बाधा के रूप में चुनौती बन गया है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि भारत का कृषि अनुभव इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि दुनिया रासायनिक उर्वरकों के बढ़ते उपयोग के बीच मानव, पशु और पौधों के स्वास्थ्य को सुनिश्चित करने के लिए प्रयास कर रही है।
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नई दिल्ली, 3 अगस्त (आईएएनएस)। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शनिवार को कहा कि भारत ने एक मजबूत कृषि क्षेत्र के साथ फूड सरप्लस देश के रूप में अपनी पहचान बनाई है। भारत जलवायु परिवर्तन की चुनौती के बावजूद विश्व स्तर पर भूख और कुपोषण की समस्या का समाधान करने में मदद करने के लिए अपने अनुभव को साझा करने के लिए तैयार है।
पीएम मोदी ने कृषि अर्थशास्त्रियों के 32वें अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन (आईसीएई) का उद्घाटन किया। इस दौरान पीएम मोदी ने अपने संबोधन में कहा कि भारत ने देश के किसानों को लाभ पहुंचाने के लिए विभिन्न फसलों के लिए 1,900 से ज्यादा नई जलवायु-अनुकूल किस्मों के बीज विकसित किए हैं, जिनमें चावल की वे किस्में भी शामिल हैं जिन्हें 25 प्रतिशत कम पानी की जरूरत होती है। इस सम्मेलन में 75 देशों के प्रतिनिधियों ने हिस्सा लिया।
पीएम मोदी ने कहा कि भारत ने काले चावल और बाजरा जैसे ‘सुपरफूड्स’ की एक बास्केट (टोकरी) भी विकसित की है। देश इसे दुनिया के साथ साझा करने के लिए तैयार है, विशेष रूप से ग्लोबल साउथ को लाभ पहुंचाने के लिए।
मणिपुर और असम जैसे पूर्वोत्तर राज्यों में उगाए जा रहे काले चावल में औषधीय गुण हैं। इससे किसानों को अच्छा लाभ मिल सकता है। इसी तरह, भारत बाजरे का सबसे बड़ा उत्पादक बनकर उभरा है। इसे सुपर फूड माना जाता है और इसे ‘कम पानी और ज्यादा उत्पादन’ के सिद्धांत पर उगाया जा रहा है, जो ग्लोबल कुपोषण की समस्या को हल करने में मदद करेगा।
भारत ने जी-20 सम्मेलन में भी इस बात पर जोर दिया था कि देश ‘एक पृथ्वी-एक परिवार’ के सिद्धांत में विश्वास करता है और भूख व कुपोषण को दूर करने में योगदान देने का इच्छुक है। भारत के पास कृषि क्षेत्र में विशाल विशेषज्ञता है। खेती की योजना छह मौसमों को ध्यान में रखकर बनाई जाती है और देश में 50 कृषि-जलवायु क्षेत्र हैं।
पीएम मोदी ने आगे कहा, “देश में हर 100 किलोमीटर पर खेती की प्रकृति बदल जाती है। मैदानी, रेगिस्तानी, अर्ध-शुष्क, तटीय और पहाड़ी क्षेत्रों में अलग-अलग कार्य करने पड़ते हैं।”
उन्होंने कहा कि इस विविधता से भरपूर अनुभव से कृषि क्षेत्र में क्रांतिकारी परिवर्तन लाया जा सकता है, विशेष रूप से ग्लोबल साउथ में, ऐसे समय में जब जलवायु परिवर्तन विश्व में भूख और कुपोषण को समाप्त करने के मार्ग में एक बड़ी बाधा के रूप में चुनौती बन गया है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि भारत का कृषि अनुभव इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि दुनिया रासायनिक उर्वरकों के बढ़ते उपयोग के बीच मानव, पशु और पौधों के स्वास्थ्य को सुनिश्चित करने के लिए प्रयास कर रही है।
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पीएम मोदी ने कृषि अर्थशास्त्रियों के 32वें अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन (आईसीएई) का उद्घाटन किया। इस दौरान पीएम मोदी ने अपने संबोधन में कहा कि भारत ने देश के किसानों को लाभ पहुंचाने के लिए विभिन्न फसलों के लिए 1,900 से ज्यादा नई जलवायु-अनुकूल किस्मों के बीज विकसित किए हैं, जिनमें चावल की वे किस्में भी शामिल हैं जिन्हें 25 प्रतिशत कम पानी की जरूरत होती है। इस सम्मेलन में 75 देशों के प्रतिनिधियों ने हिस्सा लिया।
पीएम मोदी ने कहा कि भारत ने काले चावल और बाजरा जैसे ‘सुपरफूड्स’ की एक बास्केट (टोकरी) भी विकसित की है। देश इसे दुनिया के साथ साझा करने के लिए तैयार है, विशेष रूप से ग्लोबल साउथ को लाभ पहुंचाने के लिए।
मणिपुर और असम जैसे पूर्वोत्तर राज्यों में उगाए जा रहे काले चावल में औषधीय गुण हैं। इससे किसानों को अच्छा लाभ मिल सकता है। इसी तरह, भारत बाजरे का सबसे बड़ा उत्पादक बनकर उभरा है। इसे सुपर फूड माना जाता है और इसे ‘कम पानी और ज्यादा उत्पादन’ के सिद्धांत पर उगाया जा रहा है, जो ग्लोबल कुपोषण की समस्या को हल करने में मदद करेगा।
भारत ने जी-20 सम्मेलन में भी इस बात पर जोर दिया था कि देश ‘एक पृथ्वी-एक परिवार’ के सिद्धांत में विश्वास करता है और भूख व कुपोषण को दूर करने में योगदान देने का इच्छुक है। भारत के पास कृषि क्षेत्र में विशाल विशेषज्ञता है। खेती की योजना छह मौसमों को ध्यान में रखकर बनाई जाती है और देश में 50 कृषि-जलवायु क्षेत्र हैं।
पीएम मोदी ने आगे कहा, “देश में हर 100 किलोमीटर पर खेती की प्रकृति बदल जाती है। मैदानी, रेगिस्तानी, अर्ध-शुष्क, तटीय और पहाड़ी क्षेत्रों में अलग-अलग कार्य करने पड़ते हैं।”
उन्होंने कहा कि इस विविधता से भरपूर अनुभव से कृषि क्षेत्र में क्रांतिकारी परिवर्तन लाया जा सकता है, विशेष रूप से ग्लोबल साउथ में, ऐसे समय में जब जलवायु परिवर्तन विश्व में भूख और कुपोषण को समाप्त करने के मार्ग में एक बड़ी बाधा के रूप में चुनौती बन गया है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि भारत का कृषि अनुभव इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि दुनिया रासायनिक उर्वरकों के बढ़ते उपयोग के बीच मानव, पशु और पौधों के स्वास्थ्य को सुनिश्चित करने के लिए प्रयास कर रही है।
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नई दिल्ली, 3 अगस्त (आईएएनएस)। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शनिवार को कहा कि भारत ने एक मजबूत कृषि क्षेत्र के साथ फूड सरप्लस देश के रूप में अपनी पहचान बनाई है। भारत जलवायु परिवर्तन की चुनौती के बावजूद विश्व स्तर पर भूख और कुपोषण की समस्या का समाधान करने में मदद करने के लिए अपने अनुभव को साझा करने के लिए तैयार है।
पीएम मोदी ने कृषि अर्थशास्त्रियों के 32वें अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन (आईसीएई) का उद्घाटन किया। इस दौरान पीएम मोदी ने अपने संबोधन में कहा कि भारत ने देश के किसानों को लाभ पहुंचाने के लिए विभिन्न फसलों के लिए 1,900 से ज्यादा नई जलवायु-अनुकूल किस्मों के बीज विकसित किए हैं, जिनमें चावल की वे किस्में भी शामिल हैं जिन्हें 25 प्रतिशत कम पानी की जरूरत होती है। इस सम्मेलन में 75 देशों के प्रतिनिधियों ने हिस्सा लिया।
पीएम मोदी ने कहा कि भारत ने काले चावल और बाजरा जैसे ‘सुपरफूड्स’ की एक बास्केट (टोकरी) भी विकसित की है। देश इसे दुनिया के साथ साझा करने के लिए तैयार है, विशेष रूप से ग्लोबल साउथ को लाभ पहुंचाने के लिए।
मणिपुर और असम जैसे पूर्वोत्तर राज्यों में उगाए जा रहे काले चावल में औषधीय गुण हैं। इससे किसानों को अच्छा लाभ मिल सकता है। इसी तरह, भारत बाजरे का सबसे बड़ा उत्पादक बनकर उभरा है। इसे सुपर फूड माना जाता है और इसे ‘कम पानी और ज्यादा उत्पादन’ के सिद्धांत पर उगाया जा रहा है, जो ग्लोबल कुपोषण की समस्या को हल करने में मदद करेगा।
भारत ने जी-20 सम्मेलन में भी इस बात पर जोर दिया था कि देश ‘एक पृथ्वी-एक परिवार’ के सिद्धांत में विश्वास करता है और भूख व कुपोषण को दूर करने में योगदान देने का इच्छुक है। भारत के पास कृषि क्षेत्र में विशाल विशेषज्ञता है। खेती की योजना छह मौसमों को ध्यान में रखकर बनाई जाती है और देश में 50 कृषि-जलवायु क्षेत्र हैं।
पीएम मोदी ने आगे कहा, “देश में हर 100 किलोमीटर पर खेती की प्रकृति बदल जाती है। मैदानी, रेगिस्तानी, अर्ध-शुष्क, तटीय और पहाड़ी क्षेत्रों में अलग-अलग कार्य करने पड़ते हैं।”
उन्होंने कहा कि इस विविधता से भरपूर अनुभव से कृषि क्षेत्र में क्रांतिकारी परिवर्तन लाया जा सकता है, विशेष रूप से ग्लोबल साउथ में, ऐसे समय में जब जलवायु परिवर्तन विश्व में भूख और कुपोषण को समाप्त करने के मार्ग में एक बड़ी बाधा के रूप में चुनौती बन गया है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि भारत का कृषि अनुभव इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि दुनिया रासायनिक उर्वरकों के बढ़ते उपयोग के बीच मानव, पशु और पौधों के स्वास्थ्य को सुनिश्चित करने के लिए प्रयास कर रही है।