नई दिल्ली, 20 सितंबर (आईएएनएस)। शिंजो आबे, जापान के उन चुनिंदा नेताओं में से एक थे जिन्होंने न केवल अपने देश की राजनीति को गहराई से प्रभावित किया, बल्कि वैश्विक स्तर पर भी अपनी छाप छोड़ी। जापान के पूर्व प्रधानमंत्री शिंजो आबे की लीडरशिप ने भारत-जापान संबंधों पर व्यापक प्रभाव छोड़ा था। 21 सितंबर 1954 को शिंजो आबे का जन्म जापान के एक प्रमुख राजनीतिक परिवार में हुआ था। कहा जाता है राजनीति में यह मुकाम उनकी किस्मत में ही लिखा था। वह जीवन के अंतिम दिन भी सार्वजनिक जिंदगी का हिस्सा रहे और जापान की राजनीति में सक्रिय भूमिका निभाते रहे थे।
शिंजो आबे का चेहरा जेहन में आते ही भारत-जापान की एक ऐसी तस्वीर उभरती है जिसमें आबे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ खड़े नजर आते हैं। कुछ ऐसी ही बॉन्डिंग इन दोनों नेताओं के बीच थी। भारत-जापान के रिश्तों में 1998 में जो बर्फ की परत चढ़ी थी वह बाद में पिघली जरूर थी। लेकिन उन रिश्तों को असली गरमाहट शिंजो आबे ने दी थी। पीएम मोदी के साथ उनकी केमिस्ट्री गजब की थी। इससे पहले भारत के पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के साथ भी उनके बढ़िया रिश्ते थे। पीएम मोदी के कार्यकाल के इन संबंधों को और एक नया आयाम मिला था।
चाहे साल 2018 में पीएम मोदी को जापान के दौरे पर अपने पैतृक घर पर खास दावत देना हो, या साल 2015 में भारत में आकर वाराणसी में गंगा आरती का आनंद लेना, शिंजो आबे और पीएम मोदी की दोस्ती की कई मिसालें दी जाती हैं। पीएम मोदी ने शिंजो आबे के सहयोग और उनकी प्रतिबद्धता के बीच एक सपना भी देखा था। यह था काशी को क्योटो की तर्ज पर बसाने का सपना। क्योटो जापान का विकसित शहर है जिसे स्मार्ट सिटी माना जाता है। पीएम मोदी के जापान दौरे के समय साल 2014 में इसे लेकर एक समझौते पर दस्तखत भी किए गए थे।
सिर्फ काशी ही नहीं, बुलेट ट्रेन की तस्वीर भी कल्पनाओं में कौंधते ही जापान की याद आ जाती है। भारत इस परियोजना को लेकर भी काफी महत्वकांक्षी रहा है। यहां भी शिंजो आबे की भूमिका थी। जब वह साल 2017 में भारत आए थे तो उन्होंने पीएम मोदी के साथ मिलकर अहमदाबाद में बुलेट ट्रेन परियोजना की नींव रखी थी। जापान की मदद से इस परियोजना पर काम चल रहा है। साल 2020 में शिंजो आबे ने खराब हेल्थ के चलते अपना पीएम पद छोड़ दिया था। पीएम मोदी ने इस बात के प्रति अपना दुख प्रकट किया था। साल 2020 के बाद भी जब पीएम मोदी ने वाराणसी में कन्वेक्शन सेंटर का उद्घाटन किया था, तब भी वह शिंजो आबे को धन्यवाद देना नहीं भूले थे।
इसके दो साल बाद, 8 जुलाई, 2022 को शिजों आबे ने दुनिया को अलविदा कह दिया था। वह एक चुनावी सभा के दौरान बोल रहे थे। इसी सभा में उन्हें गोली मार दी गई थी। वह शुक्रवार का दिन था और भारत-जापान संबंधों के लिए एक बड़ा झटका था। शिंजो आबे ऐसी मौत के हकदार नहीं थे, शायद यह भी उनकी नियति का एक हिस्सा था। लेकिन भारत ने उस दिन एक ऐसे वैश्विक नेता को खो दिया था जिसने साल 1998 के भारत-जापान संबंधों को मौजूदा स्थिति तक पहुंचाने में बड़ी अहम भूमिका अदा की थी। तब भारत में भी एक दिन के राष्ट्रीय शोक की घोषणा की गई थी।
जापान भारत का परंपरागत दोस्त रहा है। लेकिन साल 1998 का दौर थोड़ा मुश्किल था। यह वह दौर था जब भारत ने दोबारा परमाणु परीक्षण करके दुनिया को चौंकाया था। राजस्थान के पोखरण में किए गए उन तीन परीक्षण के बाद अमेरिका सहित बड़े पश्चिमी देशों ने भारत पर कई प्रतिबंध लगा दिए थे। हिरोशिमा और नागासाकी में परमाणु हमलों से होने वाली त्रासदी को सबसे करीब से देखने वाले जापान के लिए भी यह संवेदनशील मुद्दा था। तब जापान भी भारत पर प्रतिबंध लगाने वाले देशों में एक रहा। जापान का यह प्रतिबंध दो साल तक जारी रहा। साल 2000 में रिश्तों में दोनों देशों के रिश्ते फिर से सामान्य होने लगे थे।
प्रतिबंधों के उस दौर के बाद आज स्थिति यह है कि जापान ने भारत को रक्षा, सुरक्षा से लेकर आधारभूत संरचना तक के क्षेत्रों में योगदान दिया है। इसका बहुत हद तक श्रेय शिंजो आबे को जाता है।
–आईएएनएस
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