deshbandhu

deshbandu_logo
  • राष्ट्रीय
  • अंतरराष्ट्रीय
  • लाइफ स्टाइल
  • अर्थजगत
  • मनोरंजन
  • खेल
  • अभिमत
  • धर्म
  • विचार
  • ई पेपर
deshbandu_logo
  • राष्ट्रीय
  • अंतरराष्ट्रीय
  • लाइफ स्टाइल
  • अर्थजगत
  • मनोरंजन
  • खेल
  • अभिमत
  • धर्म
  • विचार
  • ई पेपर
Menu
  • राष्ट्रीय
  • अंतरराष्ट्रीय
  • लाइफ स्टाइल
  • अर्थजगत
  • मनोरंजन
  • खेल
  • अभिमत
  • धर्म
  • विचार
  • ई पेपर
Facebook Twitter Youtube
  • भोपाल
  • इंदौर
  • उज्जैन
  • ग्वालियर
  • जबलपुर
  • रीवा
  • चंबल
  • नर्मदापुरम
  • शहडोल
  • सागर
  • देशबन्धु जनमत
  • पाठक प्रतिक्रियाएं
  • हमें जानें
  • विज्ञापन दरें
ADVERTISEMENT
Home ताज़ा समाचार

शूरवीर करम सिंह : गोलियां खत्म हुई तो खंजर से दुश्मनों को सुला दी मौत की नींद

by
September 14, 2024
in ताज़ा समाचार
0
0
SHARES
1
VIEWS
Share on FacebookShare on Whatsapp
ADVERTISEMENT

नई दिल्ली, 14 सितंबर (आईएएनएस)। लांस नायक करम सिंह एक ऐसे योद्धा थे, जिसने अकेले ही पाकिस्तानी दहशतगर्दों के टिथवाल पर कब्जा करने के सपनों को नेस्तनाबूत कर दिया था। इतना ही नहीं करमवीर सिंह परमवीर चक्र से सम्मानित होने वाले दूसरे शूरवीर थे और वो पहले ऐसे जाबांज थे, जिन्हें जीवित रहते हुए परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया।

15 सितंबर को पंजाब के बरनाला में एक साधारण किसान परिवार में जन्मे करम सिंह ने कहां सोचा होगा कि देश को आजादी मिलने के बाद जब तिरंगा फहराने की बात आएगी तो उसमें उनका नाम भी शमिल होगा। आजादी के बाद देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने भारतीय ध्वज फहराने के लिए जिन पांच सैनिकों को चुना था, उसमें करम सिंह का नाम भी था।

READ ALSO

महाराष्ट्र में 77 सामाजिक आंदोलनकारियों पर दर्ज मामले वापस लेने की सिफारिश

नशा मुक्त भारत अभियान के तहत दिल्ली पुलिस की कार्रवाई, भारी मात्रा में मादक पदार्थ नष्ट

करम सिंह भी अपने पिता की तरह किसान बनना चाहते थे। लेकिन, अपने गांव के प्रथम विश्व युद्ध के दिग्गजों की कहानियां सुनी और उससे प्रेरित होकर सेना में शामिल होने का मन बनाया। वह 15 सितंबर 1941 को सिख रेजिमेंट की पहली बटालियन में भर्ती हुए। 13 अक्टूबर 1948 वह तारीख है, जब पाकिस्तान ने बंटवारे के बाद कश्मीर में धोखे से अटैक कर दिया था और घाटी के टिथवाल की रीछमार गली से भारतीय सैनिकों को पीछे धकेलने का नापाक प्रयास किया था।

लेकिन, मौके पर मौजूद सिख रेजिमेंट के एक जवान ने कामयाब नहीं होने दिया। फॉरवर्ड प्वाइंट पर मौजूद इस जवान ने अपनी बंदूक से पाकिस्तान के सैनिकों को हर बार मुंहतोड़ जवाब दिया।

पाकिस्तान ने लगातार करीब 8 बार लांस नायक करम सिंह की पोस्ट पर कब्जे की कोशिश की, मगर पाकिस्तानी सैनिक उनके जज्बे को मात नहीं दे सके। ऐसे में दुश्मन आगबबूला हो गए और वो समझ गए थे कि जब तक लांस नायक करम सिंह पोस्ट पर मौजदू हैं, तब तक वो इस पर कब्जा नहीं कर पाएंगे। ऐसे में पाकिस्तानी सैनिकों ने हमला तेज कर दिया। इसी दौरान करम सिंह बुरी तरह से जख्मी हो गए थे।

लेकिन उन्होंने घुटने नहीं टेके और डटकर पाकिस्तानी सैनिकों का मुकाबला करते रहे। उन पर ग्रेनेड भी फेंकते रहे। वह अकेले एक कंपनी की तरह दुश्मनों को मुंहतोड़ जवाब देते रहे। बताया जाता है कि शूरवीर करम सिंह के पास गोलियां खत्म हो गई थी।

उन्होंने दुश्मनों को खंजर से मौत की नींद सुला दिया था और अंत में उन्होंने पाकिस्तान के आठवें हमले को भी नाकाम कर दिया था। इस तरह से उन्होंने पाकिस्तानी सैनिकों के टिथवाल पर कब्जा करने के सपने को पूरा नहीं होने दिया।

उनकी वीरता और अदम्य साहस को साल 1950 में भारत का सर्वोच्च सैन्य वीरता सम्मान परमवीर चक्र से भी नवाजा गया था। इसके अलावा दूसरे विश्व युद्ध के दौरान बर्मा कैंपेन में बहादुरी दिखाने के लिए लांस नायक करम सिंह को मिलिट्री मेडल से भी सम्मानित किया गया।

बाद में वो सूबेदार के पद पर पहुंचे और सितंबर 1969 में रिटायर होने से पहले उन्हें मानद कैप्टन का दर्जा भी मिला। लांस नायक करम सिंह उन चंद सैनिकों में रहे, जिन्होंने खुद अपने हाथों से परमवीर चक्र प्राप्त किया और लंबा जीवन जीते हुए 1985 में अपने गांव में अंतिम सांस ली।

–आईएएनएस

एसके/एबीएम

ADVERTISEMENT

नई दिल्ली, 14 सितंबर (आईएएनएस)। लांस नायक करम सिंह एक ऐसे योद्धा थे, जिसने अकेले ही पाकिस्तानी दहशतगर्दों के टिथवाल पर कब्जा करने के सपनों को नेस्तनाबूत कर दिया था। इतना ही नहीं करमवीर सिंह परमवीर चक्र से सम्मानित होने वाले दूसरे शूरवीर थे और वो पहले ऐसे जाबांज थे, जिन्हें जीवित रहते हुए परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया।

15 सितंबर को पंजाब के बरनाला में एक साधारण किसान परिवार में जन्मे करम सिंह ने कहां सोचा होगा कि देश को आजादी मिलने के बाद जब तिरंगा फहराने की बात आएगी तो उसमें उनका नाम भी शमिल होगा। आजादी के बाद देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने भारतीय ध्वज फहराने के लिए जिन पांच सैनिकों को चुना था, उसमें करम सिंह का नाम भी था।

करम सिंह भी अपने पिता की तरह किसान बनना चाहते थे। लेकिन, अपने गांव के प्रथम विश्व युद्ध के दिग्गजों की कहानियां सुनी और उससे प्रेरित होकर सेना में शामिल होने का मन बनाया। वह 15 सितंबर 1941 को सिख रेजिमेंट की पहली बटालियन में भर्ती हुए। 13 अक्टूबर 1948 वह तारीख है, जब पाकिस्तान ने बंटवारे के बाद कश्मीर में धोखे से अटैक कर दिया था और घाटी के टिथवाल की रीछमार गली से भारतीय सैनिकों को पीछे धकेलने का नापाक प्रयास किया था।

लेकिन, मौके पर मौजूद सिख रेजिमेंट के एक जवान ने कामयाब नहीं होने दिया। फॉरवर्ड प्वाइंट पर मौजूद इस जवान ने अपनी बंदूक से पाकिस्तान के सैनिकों को हर बार मुंहतोड़ जवाब दिया।

पाकिस्तान ने लगातार करीब 8 बार लांस नायक करम सिंह की पोस्ट पर कब्जे की कोशिश की, मगर पाकिस्तानी सैनिक उनके जज्बे को मात नहीं दे सके। ऐसे में दुश्मन आगबबूला हो गए और वो समझ गए थे कि जब तक लांस नायक करम सिंह पोस्ट पर मौजदू हैं, तब तक वो इस पर कब्जा नहीं कर पाएंगे। ऐसे में पाकिस्तानी सैनिकों ने हमला तेज कर दिया। इसी दौरान करम सिंह बुरी तरह से जख्मी हो गए थे।

लेकिन उन्होंने घुटने नहीं टेके और डटकर पाकिस्तानी सैनिकों का मुकाबला करते रहे। उन पर ग्रेनेड भी फेंकते रहे। वह अकेले एक कंपनी की तरह दुश्मनों को मुंहतोड़ जवाब देते रहे। बताया जाता है कि शूरवीर करम सिंह के पास गोलियां खत्म हो गई थी।

उन्होंने दुश्मनों को खंजर से मौत की नींद सुला दिया था और अंत में उन्होंने पाकिस्तान के आठवें हमले को भी नाकाम कर दिया था। इस तरह से उन्होंने पाकिस्तानी सैनिकों के टिथवाल पर कब्जा करने के सपने को पूरा नहीं होने दिया।

उनकी वीरता और अदम्य साहस को साल 1950 में भारत का सर्वोच्च सैन्य वीरता सम्मान परमवीर चक्र से भी नवाजा गया था। इसके अलावा दूसरे विश्व युद्ध के दौरान बर्मा कैंपेन में बहादुरी दिखाने के लिए लांस नायक करम सिंह को मिलिट्री मेडल से भी सम्मानित किया गया।

बाद में वो सूबेदार के पद पर पहुंचे और सितंबर 1969 में रिटायर होने से पहले उन्हें मानद कैप्टन का दर्जा भी मिला। लांस नायक करम सिंह उन चंद सैनिकों में रहे, जिन्होंने खुद अपने हाथों से परमवीर चक्र प्राप्त किया और लंबा जीवन जीते हुए 1985 में अपने गांव में अंतिम सांस ली।

–आईएएनएस

एसके/एबीएम

ADVERTISEMENT

नई दिल्ली, 14 सितंबर (आईएएनएस)। लांस नायक करम सिंह एक ऐसे योद्धा थे, जिसने अकेले ही पाकिस्तानी दहशतगर्दों के टिथवाल पर कब्जा करने के सपनों को नेस्तनाबूत कर दिया था। इतना ही नहीं करमवीर सिंह परमवीर चक्र से सम्मानित होने वाले दूसरे शूरवीर थे और वो पहले ऐसे जाबांज थे, जिन्हें जीवित रहते हुए परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया।

15 सितंबर को पंजाब के बरनाला में एक साधारण किसान परिवार में जन्मे करम सिंह ने कहां सोचा होगा कि देश को आजादी मिलने के बाद जब तिरंगा फहराने की बात आएगी तो उसमें उनका नाम भी शमिल होगा। आजादी के बाद देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने भारतीय ध्वज फहराने के लिए जिन पांच सैनिकों को चुना था, उसमें करम सिंह का नाम भी था।

करम सिंह भी अपने पिता की तरह किसान बनना चाहते थे। लेकिन, अपने गांव के प्रथम विश्व युद्ध के दिग्गजों की कहानियां सुनी और उससे प्रेरित होकर सेना में शामिल होने का मन बनाया। वह 15 सितंबर 1941 को सिख रेजिमेंट की पहली बटालियन में भर्ती हुए। 13 अक्टूबर 1948 वह तारीख है, जब पाकिस्तान ने बंटवारे के बाद कश्मीर में धोखे से अटैक कर दिया था और घाटी के टिथवाल की रीछमार गली से भारतीय सैनिकों को पीछे धकेलने का नापाक प्रयास किया था।

लेकिन, मौके पर मौजूद सिख रेजिमेंट के एक जवान ने कामयाब नहीं होने दिया। फॉरवर्ड प्वाइंट पर मौजूद इस जवान ने अपनी बंदूक से पाकिस्तान के सैनिकों को हर बार मुंहतोड़ जवाब दिया।

पाकिस्तान ने लगातार करीब 8 बार लांस नायक करम सिंह की पोस्ट पर कब्जे की कोशिश की, मगर पाकिस्तानी सैनिक उनके जज्बे को मात नहीं दे सके। ऐसे में दुश्मन आगबबूला हो गए और वो समझ गए थे कि जब तक लांस नायक करम सिंह पोस्ट पर मौजदू हैं, तब तक वो इस पर कब्जा नहीं कर पाएंगे। ऐसे में पाकिस्तानी सैनिकों ने हमला तेज कर दिया। इसी दौरान करम सिंह बुरी तरह से जख्मी हो गए थे।

लेकिन उन्होंने घुटने नहीं टेके और डटकर पाकिस्तानी सैनिकों का मुकाबला करते रहे। उन पर ग्रेनेड भी फेंकते रहे। वह अकेले एक कंपनी की तरह दुश्मनों को मुंहतोड़ जवाब देते रहे। बताया जाता है कि शूरवीर करम सिंह के पास गोलियां खत्म हो गई थी।

उन्होंने दुश्मनों को खंजर से मौत की नींद सुला दिया था और अंत में उन्होंने पाकिस्तान के आठवें हमले को भी नाकाम कर दिया था। इस तरह से उन्होंने पाकिस्तानी सैनिकों के टिथवाल पर कब्जा करने के सपने को पूरा नहीं होने दिया।

उनकी वीरता और अदम्य साहस को साल 1950 में भारत का सर्वोच्च सैन्य वीरता सम्मान परमवीर चक्र से भी नवाजा गया था। इसके अलावा दूसरे विश्व युद्ध के दौरान बर्मा कैंपेन में बहादुरी दिखाने के लिए लांस नायक करम सिंह को मिलिट्री मेडल से भी सम्मानित किया गया।

बाद में वो सूबेदार के पद पर पहुंचे और सितंबर 1969 में रिटायर होने से पहले उन्हें मानद कैप्टन का दर्जा भी मिला। लांस नायक करम सिंह उन चंद सैनिकों में रहे, जिन्होंने खुद अपने हाथों से परमवीर चक्र प्राप्त किया और लंबा जीवन जीते हुए 1985 में अपने गांव में अंतिम सांस ली।

–आईएएनएस

एसके/एबीएम

ADVERTISEMENT

नई दिल्ली, 14 सितंबर (आईएएनएस)। लांस नायक करम सिंह एक ऐसे योद्धा थे, जिसने अकेले ही पाकिस्तानी दहशतगर्दों के टिथवाल पर कब्जा करने के सपनों को नेस्तनाबूत कर दिया था। इतना ही नहीं करमवीर सिंह परमवीर चक्र से सम्मानित होने वाले दूसरे शूरवीर थे और वो पहले ऐसे जाबांज थे, जिन्हें जीवित रहते हुए परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया।

15 सितंबर को पंजाब के बरनाला में एक साधारण किसान परिवार में जन्मे करम सिंह ने कहां सोचा होगा कि देश को आजादी मिलने के बाद जब तिरंगा फहराने की बात आएगी तो उसमें उनका नाम भी शमिल होगा। आजादी के बाद देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने भारतीय ध्वज फहराने के लिए जिन पांच सैनिकों को चुना था, उसमें करम सिंह का नाम भी था।

करम सिंह भी अपने पिता की तरह किसान बनना चाहते थे। लेकिन, अपने गांव के प्रथम विश्व युद्ध के दिग्गजों की कहानियां सुनी और उससे प्रेरित होकर सेना में शामिल होने का मन बनाया। वह 15 सितंबर 1941 को सिख रेजिमेंट की पहली बटालियन में भर्ती हुए। 13 अक्टूबर 1948 वह तारीख है, जब पाकिस्तान ने बंटवारे के बाद कश्मीर में धोखे से अटैक कर दिया था और घाटी के टिथवाल की रीछमार गली से भारतीय सैनिकों को पीछे धकेलने का नापाक प्रयास किया था।

लेकिन, मौके पर मौजूद सिख रेजिमेंट के एक जवान ने कामयाब नहीं होने दिया। फॉरवर्ड प्वाइंट पर मौजूद इस जवान ने अपनी बंदूक से पाकिस्तान के सैनिकों को हर बार मुंहतोड़ जवाब दिया।

पाकिस्तान ने लगातार करीब 8 बार लांस नायक करम सिंह की पोस्ट पर कब्जे की कोशिश की, मगर पाकिस्तानी सैनिक उनके जज्बे को मात नहीं दे सके। ऐसे में दुश्मन आगबबूला हो गए और वो समझ गए थे कि जब तक लांस नायक करम सिंह पोस्ट पर मौजदू हैं, तब तक वो इस पर कब्जा नहीं कर पाएंगे। ऐसे में पाकिस्तानी सैनिकों ने हमला तेज कर दिया। इसी दौरान करम सिंह बुरी तरह से जख्मी हो गए थे।

लेकिन उन्होंने घुटने नहीं टेके और डटकर पाकिस्तानी सैनिकों का मुकाबला करते रहे। उन पर ग्रेनेड भी फेंकते रहे। वह अकेले एक कंपनी की तरह दुश्मनों को मुंहतोड़ जवाब देते रहे। बताया जाता है कि शूरवीर करम सिंह के पास गोलियां खत्म हो गई थी।

उन्होंने दुश्मनों को खंजर से मौत की नींद सुला दिया था और अंत में उन्होंने पाकिस्तान के आठवें हमले को भी नाकाम कर दिया था। इस तरह से उन्होंने पाकिस्तानी सैनिकों के टिथवाल पर कब्जा करने के सपने को पूरा नहीं होने दिया।

उनकी वीरता और अदम्य साहस को साल 1950 में भारत का सर्वोच्च सैन्य वीरता सम्मान परमवीर चक्र से भी नवाजा गया था। इसके अलावा दूसरे विश्व युद्ध के दौरान बर्मा कैंपेन में बहादुरी दिखाने के लिए लांस नायक करम सिंह को मिलिट्री मेडल से भी सम्मानित किया गया।

बाद में वो सूबेदार के पद पर पहुंचे और सितंबर 1969 में रिटायर होने से पहले उन्हें मानद कैप्टन का दर्जा भी मिला। लांस नायक करम सिंह उन चंद सैनिकों में रहे, जिन्होंने खुद अपने हाथों से परमवीर चक्र प्राप्त किया और लंबा जीवन जीते हुए 1985 में अपने गांव में अंतिम सांस ली।

–आईएएनएस

एसके/एबीएम

ADVERTISEMENT

नई दिल्ली, 14 सितंबर (आईएएनएस)। लांस नायक करम सिंह एक ऐसे योद्धा थे, जिसने अकेले ही पाकिस्तानी दहशतगर्दों के टिथवाल पर कब्जा करने के सपनों को नेस्तनाबूत कर दिया था। इतना ही नहीं करमवीर सिंह परमवीर चक्र से सम्मानित होने वाले दूसरे शूरवीर थे और वो पहले ऐसे जाबांज थे, जिन्हें जीवित रहते हुए परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया।

15 सितंबर को पंजाब के बरनाला में एक साधारण किसान परिवार में जन्मे करम सिंह ने कहां सोचा होगा कि देश को आजादी मिलने के बाद जब तिरंगा फहराने की बात आएगी तो उसमें उनका नाम भी शमिल होगा। आजादी के बाद देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने भारतीय ध्वज फहराने के लिए जिन पांच सैनिकों को चुना था, उसमें करम सिंह का नाम भी था।

करम सिंह भी अपने पिता की तरह किसान बनना चाहते थे। लेकिन, अपने गांव के प्रथम विश्व युद्ध के दिग्गजों की कहानियां सुनी और उससे प्रेरित होकर सेना में शामिल होने का मन बनाया। वह 15 सितंबर 1941 को सिख रेजिमेंट की पहली बटालियन में भर्ती हुए। 13 अक्टूबर 1948 वह तारीख है, जब पाकिस्तान ने बंटवारे के बाद कश्मीर में धोखे से अटैक कर दिया था और घाटी के टिथवाल की रीछमार गली से भारतीय सैनिकों को पीछे धकेलने का नापाक प्रयास किया था।

लेकिन, मौके पर मौजूद सिख रेजिमेंट के एक जवान ने कामयाब नहीं होने दिया। फॉरवर्ड प्वाइंट पर मौजूद इस जवान ने अपनी बंदूक से पाकिस्तान के सैनिकों को हर बार मुंहतोड़ जवाब दिया।

पाकिस्तान ने लगातार करीब 8 बार लांस नायक करम सिंह की पोस्ट पर कब्जे की कोशिश की, मगर पाकिस्तानी सैनिक उनके जज्बे को मात नहीं दे सके। ऐसे में दुश्मन आगबबूला हो गए और वो समझ गए थे कि जब तक लांस नायक करम सिंह पोस्ट पर मौजदू हैं, तब तक वो इस पर कब्जा नहीं कर पाएंगे। ऐसे में पाकिस्तानी सैनिकों ने हमला तेज कर दिया। इसी दौरान करम सिंह बुरी तरह से जख्मी हो गए थे।

लेकिन उन्होंने घुटने नहीं टेके और डटकर पाकिस्तानी सैनिकों का मुकाबला करते रहे। उन पर ग्रेनेड भी फेंकते रहे। वह अकेले एक कंपनी की तरह दुश्मनों को मुंहतोड़ जवाब देते रहे। बताया जाता है कि शूरवीर करम सिंह के पास गोलियां खत्म हो गई थी।

उन्होंने दुश्मनों को खंजर से मौत की नींद सुला दिया था और अंत में उन्होंने पाकिस्तान के आठवें हमले को भी नाकाम कर दिया था। इस तरह से उन्होंने पाकिस्तानी सैनिकों के टिथवाल पर कब्जा करने के सपने को पूरा नहीं होने दिया।

उनकी वीरता और अदम्य साहस को साल 1950 में भारत का सर्वोच्च सैन्य वीरता सम्मान परमवीर चक्र से भी नवाजा गया था। इसके अलावा दूसरे विश्व युद्ध के दौरान बर्मा कैंपेन में बहादुरी दिखाने के लिए लांस नायक करम सिंह को मिलिट्री मेडल से भी सम्मानित किया गया।

बाद में वो सूबेदार के पद पर पहुंचे और सितंबर 1969 में रिटायर होने से पहले उन्हें मानद कैप्टन का दर्जा भी मिला। लांस नायक करम सिंह उन चंद सैनिकों में रहे, जिन्होंने खुद अपने हाथों से परमवीर चक्र प्राप्त किया और लंबा जीवन जीते हुए 1985 में अपने गांव में अंतिम सांस ली।

–आईएएनएस

एसके/एबीएम

ADVERTISEMENT

नई दिल्ली, 14 सितंबर (आईएएनएस)। लांस नायक करम सिंह एक ऐसे योद्धा थे, जिसने अकेले ही पाकिस्तानी दहशतगर्दों के टिथवाल पर कब्जा करने के सपनों को नेस्तनाबूत कर दिया था। इतना ही नहीं करमवीर सिंह परमवीर चक्र से सम्मानित होने वाले दूसरे शूरवीर थे और वो पहले ऐसे जाबांज थे, जिन्हें जीवित रहते हुए परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया।

15 सितंबर को पंजाब के बरनाला में एक साधारण किसान परिवार में जन्मे करम सिंह ने कहां सोचा होगा कि देश को आजादी मिलने के बाद जब तिरंगा फहराने की बात आएगी तो उसमें उनका नाम भी शमिल होगा। आजादी के बाद देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने भारतीय ध्वज फहराने के लिए जिन पांच सैनिकों को चुना था, उसमें करम सिंह का नाम भी था।

करम सिंह भी अपने पिता की तरह किसान बनना चाहते थे। लेकिन, अपने गांव के प्रथम विश्व युद्ध के दिग्गजों की कहानियां सुनी और उससे प्रेरित होकर सेना में शामिल होने का मन बनाया। वह 15 सितंबर 1941 को सिख रेजिमेंट की पहली बटालियन में भर्ती हुए। 13 अक्टूबर 1948 वह तारीख है, जब पाकिस्तान ने बंटवारे के बाद कश्मीर में धोखे से अटैक कर दिया था और घाटी के टिथवाल की रीछमार गली से भारतीय सैनिकों को पीछे धकेलने का नापाक प्रयास किया था।

लेकिन, मौके पर मौजूद सिख रेजिमेंट के एक जवान ने कामयाब नहीं होने दिया। फॉरवर्ड प्वाइंट पर मौजूद इस जवान ने अपनी बंदूक से पाकिस्तान के सैनिकों को हर बार मुंहतोड़ जवाब दिया।

पाकिस्तान ने लगातार करीब 8 बार लांस नायक करम सिंह की पोस्ट पर कब्जे की कोशिश की, मगर पाकिस्तानी सैनिक उनके जज्बे को मात नहीं दे सके। ऐसे में दुश्मन आगबबूला हो गए और वो समझ गए थे कि जब तक लांस नायक करम सिंह पोस्ट पर मौजदू हैं, तब तक वो इस पर कब्जा नहीं कर पाएंगे। ऐसे में पाकिस्तानी सैनिकों ने हमला तेज कर दिया। इसी दौरान करम सिंह बुरी तरह से जख्मी हो गए थे।

लेकिन उन्होंने घुटने नहीं टेके और डटकर पाकिस्तानी सैनिकों का मुकाबला करते रहे। उन पर ग्रेनेड भी फेंकते रहे। वह अकेले एक कंपनी की तरह दुश्मनों को मुंहतोड़ जवाब देते रहे। बताया जाता है कि शूरवीर करम सिंह के पास गोलियां खत्म हो गई थी।

उन्होंने दुश्मनों को खंजर से मौत की नींद सुला दिया था और अंत में उन्होंने पाकिस्तान के आठवें हमले को भी नाकाम कर दिया था। इस तरह से उन्होंने पाकिस्तानी सैनिकों के टिथवाल पर कब्जा करने के सपने को पूरा नहीं होने दिया।

उनकी वीरता और अदम्य साहस को साल 1950 में भारत का सर्वोच्च सैन्य वीरता सम्मान परमवीर चक्र से भी नवाजा गया था। इसके अलावा दूसरे विश्व युद्ध के दौरान बर्मा कैंपेन में बहादुरी दिखाने के लिए लांस नायक करम सिंह को मिलिट्री मेडल से भी सम्मानित किया गया।

बाद में वो सूबेदार के पद पर पहुंचे और सितंबर 1969 में रिटायर होने से पहले उन्हें मानद कैप्टन का दर्जा भी मिला। लांस नायक करम सिंह उन चंद सैनिकों में रहे, जिन्होंने खुद अपने हाथों से परमवीर चक्र प्राप्त किया और लंबा जीवन जीते हुए 1985 में अपने गांव में अंतिम सांस ली।

–आईएएनएस

एसके/एबीएम

ADVERTISEMENT

नई दिल्ली, 14 सितंबर (आईएएनएस)। लांस नायक करम सिंह एक ऐसे योद्धा थे, जिसने अकेले ही पाकिस्तानी दहशतगर्दों के टिथवाल पर कब्जा करने के सपनों को नेस्तनाबूत कर दिया था। इतना ही नहीं करमवीर सिंह परमवीर चक्र से सम्मानित होने वाले दूसरे शूरवीर थे और वो पहले ऐसे जाबांज थे, जिन्हें जीवित रहते हुए परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया।

15 सितंबर को पंजाब के बरनाला में एक साधारण किसान परिवार में जन्मे करम सिंह ने कहां सोचा होगा कि देश को आजादी मिलने के बाद जब तिरंगा फहराने की बात आएगी तो उसमें उनका नाम भी शमिल होगा। आजादी के बाद देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने भारतीय ध्वज फहराने के लिए जिन पांच सैनिकों को चुना था, उसमें करम सिंह का नाम भी था।

करम सिंह भी अपने पिता की तरह किसान बनना चाहते थे। लेकिन, अपने गांव के प्रथम विश्व युद्ध के दिग्गजों की कहानियां सुनी और उससे प्रेरित होकर सेना में शामिल होने का मन बनाया। वह 15 सितंबर 1941 को सिख रेजिमेंट की पहली बटालियन में भर्ती हुए। 13 अक्टूबर 1948 वह तारीख है, जब पाकिस्तान ने बंटवारे के बाद कश्मीर में धोखे से अटैक कर दिया था और घाटी के टिथवाल की रीछमार गली से भारतीय सैनिकों को पीछे धकेलने का नापाक प्रयास किया था।

लेकिन, मौके पर मौजूद सिख रेजिमेंट के एक जवान ने कामयाब नहीं होने दिया। फॉरवर्ड प्वाइंट पर मौजूद इस जवान ने अपनी बंदूक से पाकिस्तान के सैनिकों को हर बार मुंहतोड़ जवाब दिया।

पाकिस्तान ने लगातार करीब 8 बार लांस नायक करम सिंह की पोस्ट पर कब्जे की कोशिश की, मगर पाकिस्तानी सैनिक उनके जज्बे को मात नहीं दे सके। ऐसे में दुश्मन आगबबूला हो गए और वो समझ गए थे कि जब तक लांस नायक करम सिंह पोस्ट पर मौजदू हैं, तब तक वो इस पर कब्जा नहीं कर पाएंगे। ऐसे में पाकिस्तानी सैनिकों ने हमला तेज कर दिया। इसी दौरान करम सिंह बुरी तरह से जख्मी हो गए थे।

लेकिन उन्होंने घुटने नहीं टेके और डटकर पाकिस्तानी सैनिकों का मुकाबला करते रहे। उन पर ग्रेनेड भी फेंकते रहे। वह अकेले एक कंपनी की तरह दुश्मनों को मुंहतोड़ जवाब देते रहे। बताया जाता है कि शूरवीर करम सिंह के पास गोलियां खत्म हो गई थी।

उन्होंने दुश्मनों को खंजर से मौत की नींद सुला दिया था और अंत में उन्होंने पाकिस्तान के आठवें हमले को भी नाकाम कर दिया था। इस तरह से उन्होंने पाकिस्तानी सैनिकों के टिथवाल पर कब्जा करने के सपने को पूरा नहीं होने दिया।

उनकी वीरता और अदम्य साहस को साल 1950 में भारत का सर्वोच्च सैन्य वीरता सम्मान परमवीर चक्र से भी नवाजा गया था। इसके अलावा दूसरे विश्व युद्ध के दौरान बर्मा कैंपेन में बहादुरी दिखाने के लिए लांस नायक करम सिंह को मिलिट्री मेडल से भी सम्मानित किया गया।

बाद में वो सूबेदार के पद पर पहुंचे और सितंबर 1969 में रिटायर होने से पहले उन्हें मानद कैप्टन का दर्जा भी मिला। लांस नायक करम सिंह उन चंद सैनिकों में रहे, जिन्होंने खुद अपने हाथों से परमवीर चक्र प्राप्त किया और लंबा जीवन जीते हुए 1985 में अपने गांव में अंतिम सांस ली।

–आईएएनएस

एसके/एबीएम

ADVERTISEMENT

नई दिल्ली, 14 सितंबर (आईएएनएस)। लांस नायक करम सिंह एक ऐसे योद्धा थे, जिसने अकेले ही पाकिस्तानी दहशतगर्दों के टिथवाल पर कब्जा करने के सपनों को नेस्तनाबूत कर दिया था। इतना ही नहीं करमवीर सिंह परमवीर चक्र से सम्मानित होने वाले दूसरे शूरवीर थे और वो पहले ऐसे जाबांज थे, जिन्हें जीवित रहते हुए परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया।

15 सितंबर को पंजाब के बरनाला में एक साधारण किसान परिवार में जन्मे करम सिंह ने कहां सोचा होगा कि देश को आजादी मिलने के बाद जब तिरंगा फहराने की बात आएगी तो उसमें उनका नाम भी शमिल होगा। आजादी के बाद देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने भारतीय ध्वज फहराने के लिए जिन पांच सैनिकों को चुना था, उसमें करम सिंह का नाम भी था।

करम सिंह भी अपने पिता की तरह किसान बनना चाहते थे। लेकिन, अपने गांव के प्रथम विश्व युद्ध के दिग्गजों की कहानियां सुनी और उससे प्रेरित होकर सेना में शामिल होने का मन बनाया। वह 15 सितंबर 1941 को सिख रेजिमेंट की पहली बटालियन में भर्ती हुए। 13 अक्टूबर 1948 वह तारीख है, जब पाकिस्तान ने बंटवारे के बाद कश्मीर में धोखे से अटैक कर दिया था और घाटी के टिथवाल की रीछमार गली से भारतीय सैनिकों को पीछे धकेलने का नापाक प्रयास किया था।

लेकिन, मौके पर मौजूद सिख रेजिमेंट के एक जवान ने कामयाब नहीं होने दिया। फॉरवर्ड प्वाइंट पर मौजूद इस जवान ने अपनी बंदूक से पाकिस्तान के सैनिकों को हर बार मुंहतोड़ जवाब दिया।

पाकिस्तान ने लगातार करीब 8 बार लांस नायक करम सिंह की पोस्ट पर कब्जे की कोशिश की, मगर पाकिस्तानी सैनिक उनके जज्बे को मात नहीं दे सके। ऐसे में दुश्मन आगबबूला हो गए और वो समझ गए थे कि जब तक लांस नायक करम सिंह पोस्ट पर मौजदू हैं, तब तक वो इस पर कब्जा नहीं कर पाएंगे। ऐसे में पाकिस्तानी सैनिकों ने हमला तेज कर दिया। इसी दौरान करम सिंह बुरी तरह से जख्मी हो गए थे।

लेकिन उन्होंने घुटने नहीं टेके और डटकर पाकिस्तानी सैनिकों का मुकाबला करते रहे। उन पर ग्रेनेड भी फेंकते रहे। वह अकेले एक कंपनी की तरह दुश्मनों को मुंहतोड़ जवाब देते रहे। बताया जाता है कि शूरवीर करम सिंह के पास गोलियां खत्म हो गई थी।

उन्होंने दुश्मनों को खंजर से मौत की नींद सुला दिया था और अंत में उन्होंने पाकिस्तान के आठवें हमले को भी नाकाम कर दिया था। इस तरह से उन्होंने पाकिस्तानी सैनिकों के टिथवाल पर कब्जा करने के सपने को पूरा नहीं होने दिया।

उनकी वीरता और अदम्य साहस को साल 1950 में भारत का सर्वोच्च सैन्य वीरता सम्मान परमवीर चक्र से भी नवाजा गया था। इसके अलावा दूसरे विश्व युद्ध के दौरान बर्मा कैंपेन में बहादुरी दिखाने के लिए लांस नायक करम सिंह को मिलिट्री मेडल से भी सम्मानित किया गया।

बाद में वो सूबेदार के पद पर पहुंचे और सितंबर 1969 में रिटायर होने से पहले उन्हें मानद कैप्टन का दर्जा भी मिला। लांस नायक करम सिंह उन चंद सैनिकों में रहे, जिन्होंने खुद अपने हाथों से परमवीर चक्र प्राप्त किया और लंबा जीवन जीते हुए 1985 में अपने गांव में अंतिम सांस ली।

–आईएएनएस

एसके/एबीएम

Related Posts

ताज़ा समाचार

महाराष्ट्र में 77 सामाजिक आंदोलनकारियों पर दर्ज मामले वापस लेने की सिफारिश

September 30, 2025
ताज़ा समाचार

नशा मुक्त भारत अभियान के तहत दिल्ली पुलिस की कार्रवाई, भारी मात्रा में मादक पदार्थ नष्ट

September 30, 2025
ताज़ा समाचार

केंद्र सरकार की विदेश नीति फेल, केवल भाषणबाजी से नहीं चलता देश : कांग्रेस प्रवक्ता आलोक कुमार

September 30, 2025
ताज़ा समाचार

त्रिपुरा में 60 करोड़ की ड्रग्स बरामद, सुरक्षा बल सतर्क

September 30, 2025
ताज़ा समाचार

भूपेश बघेल का भाजपा पर तंज, जीएसटी के फायदे गिना रही, पर बाजारों में सन्नाटा पसरा

September 30, 2025
ताज़ा समाचार

उत्तर प्रदेश: अयोध्‍या में रामलीला में रावण दहन पर लगी रोक

September 30, 2025
Next Post

हरियाणा में आ रही कांग्रेस की सरकार : पवन खेड़ा

Leave a Reply Cancel reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

ADVERTISEMENT

Contact us

Address

Deshbandhu Complex, Naudra Bridge Jabalpur 482001

Mail

deshbandhump@gmail.com

Mobile

9425156056

Important links

  • राशि-भविष्य
  • वर्गीकृत विज्ञापन
  • लाइफ स्टाइल
  • मनोरंजन
  • ब्लॉग

Important links

  • देशबन्धु जनमत
  • पाठक प्रतिक्रियाएं
  • हमें जानें
  • विज्ञापन दरें
  • ई पेपर

Related Links

  • Mayaram Surjan
  • Swayamsiddha
  • Deshbandhu

Social Links

115807
Total views : 6025561
Powered By WPS Visitor Counter

Published by Abhas Surjan on behalf of Patrakar Prakashan Pvt.Ltd., Deshbandhu Complex, Naudra Bridge, Jabalpur – 482001 |T:+91 761 4006577 |M: +91 9425156056 Disclaimer, Privacy Policy & Other Terms & Conditions The contents of this website is for reading only. Any unauthorised attempt to temper / edit / change the contents of this website comes under cyber crime and is punishable.

Copyright @ 2022 Deshbandhu. All rights are reserved.

  • Disclaimer, Privacy Policy & Other Terms & Conditions
No Result
View All Result
  • राष्ट्रीय
  • अंतरराष्ट्रीय
  • लाइफ स्टाइल
  • अर्थजगत
  • मनोरंजन
  • खेल
  • अभिमत
  • धर्म
  • विचार
  • ई पेपर

Copyright @ 2022 Deshbandhu-MP All rights are reserved.

Welcome Back!

Login to your account below

Forgotten Password? Sign Up

Create New Account!

Fill the forms below to register

All fields are required. Log In

Retrieve your password

Please enter your username or email address to reset your password.

Log In